बिहार बोर्ड सामाजिक विज्ञान इतिहास हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन रिवीजन नोट्स | Class 10 History Chapter 3 Revision Notes | Highly useful for BSEB Matric Exam

Digital BiharBoard Team
0

 

 हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन

हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन


हिन्द चीन से तात्पर्य वियतनाम, लाओस और कम्बोडिया के सम्मिलित रूप से है. जो दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन सागर से लेकर मयनमार एवं चीन की सीमा तक फैला है।

इन क्षेत्रों पर कभी भारत का कब्जा था। इसका प्रमाण कम्बोडिया में अंकोरवाट का मन्दिर है, जिसे राजा सूर्य वर्मा द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में बनवाया था। आरम्भ में ही इन क्षेत्रों के कुछ भाग पर चीन और कुछ भाग पद हिन्दुस्तान का प्रभाव रहा, जिस कारण इस क्षेत्र का नाम हिन्द चीन पड़ा।

एशिया और अफ्रीका के देशों में जब यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियाँ अपना-अपना ठिकाना ढूँढ़ रही थीं, उस समय फ्रांस को हिन्द चीन में अपना पैर जमने का मौका मिल गया। फ्रांस द्वारा हिन्द चीन में अपना उपनिवेश बनाने का प्रारंभिक उद्देश्य था डच और ब्रिटिश कम्पनियों को व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता का सामाना करना। भारत में फ्रांसीसी कमजोर पड़ गए थे। उधर चीन में उनकी प्रतिद्वन्द्विता केवल ब्रिटेन से थी। हिन्द चीन में रहकर वह भारत और चीन दोनों पर नजर रख सकता था।

हिन्द चीन में फ्रांसीसियों ने आरम्भिक शोषण व्यापारिक नगरों और बन्दरगाहों से आरम्भ किया। चीन से सटे क्षेत्रों में कोयला, टीन, जस्ता, टंगस्टन, कोमियम जैसे खनिजों का भरमार था। फ्रांसीसियों ने इनके शोषण के साथ सिंचाई की व्यवस्था कर धान उपजाने की व्यवस्था की। धान की उपज वहाँ पर इतनी बढ़ गई कि उसका निर्यात तक होने लगा। शिक्षा जहाँ पहले चीनी या स्थानीय भाषाएँ थी वहीं अब फ्रांसीसी भाषा को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया।

विश्व में जिस तरह राष्ट्रीयता की भावना बढ़ रही थी, वह हिन्द चीन में भी बढ़ी। 20वीं सदी के आरम्भ से ही वहाँ राष्ट्रीयता की भावना बढ़ने लगी। 1905 में जापान द्वारा रूस को हरा दिए जाने के बाद हिन्द चीन के वासियों पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। इनमें भी गौरव का भाव बढ़ा फलतः राष्ट्रीयता और जोर पकड़ने लगी हो चि मिन्ह वहाँ के पहले राष्ट्रवादी नेता हुए। उन्होंने कम्युनिस्ट पाटी की स्थापना की और फ्रांसीसियों का विरोध शुरू कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बीतते-बीतते हिन्द चीन में स्वतंत्रता की लहर चल पड़ी। फ्रांस जर्मनी से हार चुका था। वह पुनः अपना कब्जा जमाना चाहता था। लेकिन हिन्द चीन के लोगों ने खासकर वियतनामियों ने हो चि मिन्ह के नेतृत्व में उसके मनसूबों पर पानी फेर दिया।

वियतनाम आपसी युद्ध में उलझ गया। एक पक्ष को अमेरिकी मदद मिल रही थी और एक पक्ष को रूस मदद रे रहा था। युद्ध बहुत दिनों तक चला, जिसमें अमेरिका की भारी हानि हुई और अंत में उसे वहाँ से भागना पड़ा।

ऐसी बात नहीं थी कि हानि केवल अमेरिका की ही हुई। हानि तो रूस की भी हुई। अन्ततः जेनेवा समझौता हुआ, जिससे वियतनाम दो भागों में बँट गया। एक भाग पर कम्युनिस्ट समर्थकों का कब्जा हुआ और दूसरे भाग पर पूँजीवाद समर्थकों का कब्जा हुआ। रूस और अमेरिका दोनों की मंशा पूरी हो गई।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)