अध्याय 7: जीव जनन कैसे करते हैं
यह अध्याय हमें यह समझने में मदद करता है कि जीव अपनी संतति कैसे उत्पन्न करते हैं। यह प्रक्रिया जीवन को बनाए रखने और प्रजातियों के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. क्या जीव पूर्णतः अपनी प्रतिकृति का सृजन करते हैं?
जीव एक-दूसरे के समान इसलिए दिखते हैं क्योंकि उनका शरीर अभिकल्प, आकार और आकृति समान होती है। शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए उनका ब्लू प्रिंट भी समान होना चाहिए। जनन की प्रक्रिया जीव के अभिकल्प का यह ब्लू प्रिंट तैयार करती है।
कक्षा 9 में आपने पढ़ा है कि कोशिका के केंद्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. (डियरिबो न्यूक्लिक एसिड) के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का संदेश होता है। यही संदेश जनक से अगली पीढ़ी में जाता है। डी.एन.ए. में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है। इस संदेश के भिन्न होने पर बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी। भिन्न प्रोटीन के कारण शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता आएगी।
प्रमुख संकल्पना: जनन का मूल आधार डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना है।
डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएं रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती हैं। जनन कोशिका में डी.एन.ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती हैं और उनका अलग होना आवश्यक है। डी.एन.ए. प्रतिकृति के साथ-साथ अन्य कोशिकीय संरचनाओं का सृजन भी होता रहता है। इसके बाद डी.एन.ए. की प्रतिकृतियाँ अलग हो जाती हैं और एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएं बनाती है।
2. विभिन्नताओं का महत्व
दो नई कोशिकाएं जो बनती हैं, वे यद्यपि एकसमान होती हैं, परंतु पूर्णतः समरूप नहीं होतीं। इसका कारण यह है कि डी.एन.ए. प्रतिकृति की प्रक्रियाएं पूर्णतः विश्वसनीय नहीं होतीं, इसलिए कुछ विभिन्नता आना अपेक्षित है। परिणामतः, बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृतियाँ एकसमान होंगी, परंतु मौलिक डी.एन.ए. के समरूप नहीं होंगी।
कुछ विभिन्नताएँ इतनी उग्र हो सकती हैं कि नई डी.एन.ए. प्रतिकृति कोशिकीय संगठन के साथ समायोजित न हो पाए और ऐसी संतति कोशिका मर जाती है। दूसरी ओर, अनेक विभिन्नताएँ इतनी उग्र नहीं होतीं। इसलिए संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से भिन्न होती हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु: जनन में होने वाली यह विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार हैं।
जीव अपनी जनन क्षमता का उपयोग करके पारितंत्र में स्थान (निकेत) ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान डी.एन.ए. प्रतिकृति का अवरोध जीव की शारीरिक संरचना और डिज़ाइन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। अतः, किसी प्रजाति की समष्टि का स्थायित्व जनन से संबंधित है।
निकेत में अनेक परिवर्तन आ सकते हैं (जैसे पृथ्वी का ताप, जल स्तर में परिवर्तन, या उल्का पिंड का टकराना) जो जीवों के नियंत्रण से बाहर हैं। यदि एक समष्टि अपने निकेत के अनुकूल है और निकेत में उग्र परिवर्तन आते हैं, तो ऐसी स्थिति में समष्टि का समूल विनाश संभव है। परंतु यदि समष्टि के जीवों में कुछ विभिन्नता होगी, तो उनके जीवित रहने की संभावना है। उदाहरण के लिए, यदि शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं की समष्टि में कुछ ताप प्रतिरोधी क्षमता वाले परिवर्तन हैं, तो वैश्विक ऊष्मीकरण से जल का ताप बढ़ने पर अधिकतर जीवाणु मर जाएंगे, परंतु ताप प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ जीवित रहेंगे और वृद्धि करेंगे।
महत्वपूर्ण बिंदु: विभिन्नताएँ स्पीशीज़ की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं।
प्रश्न 2 (पुस्तक से): जीवों में विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है, परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?
विभिन्नताएँ स्पीशीज़ के लिए लाभदायक हैं क्योंकि वे बदलती परिस्थितियों में स्पीशीज़ के जीवित रहने की संभावना बढ़ाती हैं। यदि किसी स्पीशीज़ के सभी सदस्य बिल्कुल एक जैसे होंगे, और पर्यावरण में कोई ऐसा परिवर्तन आए जो उस विशिष्ट संरचना या डिज़ाइन के लिए हानिकारक हो, तो पूरी स्पीशीज़ का विनाश हो सकता है। परंतु यदि स्पीशीज़ के सदस्यों में विभिन्नताएँ मौजूद हैं, तो संभावना है कि कुछ सदस्य इन बदली हुई परिस्थितियों के प्रति प्रतिरोधी या अनुकूलित हों, और वे जीवित रहकर जनन करें, जिससे स्पीशीज़ का अस्तित्व बना रहे।
दूसरी ओर, किसी विशिष्ट व्यष्टि (एकल जीव) के लिए विभिन्नता हमेशा लाभदायक नहीं होती। डी.एन.ए. प्रतिकृति के दौरान होने वाली विभिन्नताएँ कभी-कभी इतनी उग्र हो सकती हैं कि नई डी.एन.ए. प्रतिकृति कोशिकीय संगठन के साथ समायोजित न हो पाए, जिससे उस व्यष्टि कोशिका की मृत्यु हो जाती है। इसलिए, किसी एकल जीव के लिए विभिन्नताएँ हानिकारक भी हो सकती हैं, जबकि पूरी स्पीशीज़ के स्तर पर, विभिन्नताओं का पूल (pool) प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।
3. एकल जीवों में प्रजनन की विधि (अलैंगिक जनन)
जनन की वे विधियाँ जिनमें नई पीढ़ी का सृजन केवल एकल जीव द्वारा होता है, अलैंगिक जनन कहलाती हैं। विभिन्न जीवों में जनन की विधियाँ उनके शारीरिक अभिकल्प पर निर्भर करती हैं।
विखंडन (Fission)
एककोशिकीय जीवों में कोशिका विभाजन या विखंडन द्वारा नए जीवों की उत्पत्ति होती है। अनेक जीवाणु तथा प्रोटोजोआ की कोशिका विभाजन द्वारा सामान्यतः दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती है। अमीबा जैसे जीवों में कोशिका विभाजन किसी भी तल से हो सकता है। कालाज़ार के रोगाणु, लैशमैनिया में कोशिका के एक सिरे पर कोड़े के समान सूक्ष्म संरचना होती है, और ऐसे जीवों में विखंडन एक निर्धारित तल से होता है। मलेरिया परजीवी, प्लाज्मोडियम में बहुखंडन होता है।
विखंडन के उदाहरण:
- अमीबा में द्विखंडन: एक कोशिका किसी भी तल से विभाजित होकर दो नई कोशिकाएं बनाती है [7, 9a]।
- लैशमैनिया में द्विखंडन: कोशिका एक निर्धारित तल से विभाजित होती है क्योंकि इसमें एक विशेष संरचना (कशाभिका) होती है [6, 9b]।
- प्लाज़्मोडियम में बहुखंडन: कोशिका एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है।
पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) (Regeneration)
पूर्णरूपेण विभेदित जीवों में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है। यदि किसी कारणवश जीव खंडित हो जाता है या कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तो इसके अनेक टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं। यह पुनरुद्भवन कहलाता है। उदाहरणतः, हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए, तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण कर देता है।
यह प्रक्रिया विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा संपादित होती है। इन कोशिकाओं के प्रसरण से अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। कोशिकाओं के इस समूह से परिवर्तन के दौरान विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं। यह परिवर्तन बहुत व्यवस्थित रूप एवं क्रम से होता है, जिसे परिवर्धन कहते हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु: पुनरुद्भवन जनन के समान नहीं है, क्योंकि प्रत्येक जीव के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतः नया जीव उत्पन्न नहीं होता।
खंडन (Fragmentation)
स्पाइरोगाइरा जैसे कुछ सरल बहुकोशिकीय जीव वृद्धि करके छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाते हैं, और प्रत्येक खंड एक नया जीव बन जाता है। (यह विधि स्रोत में सीधे तौर पर विखंडन या पुनरुद्भवन से अलग वर्णित नहीं है, लेकिन गतिविधि 7.4 स्पाइरोगाइरा के अवलोकन के लिए दी गई है, और अलैंगिक जनन के अंतर्गत वर्णित अन्य विधियों के साथ इसका उल्लेख अक्सर किया जाता है।)
मुकुलन (Budding)
हाइड्रा जैसे जीवों में पुनरुद्भवन की क्षमता वाली कोशिकाओं का उपयोग मुकुलन के लिए होता है। कोशिकाएँ नियमित कोशिका विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित करती हैं जिसे मुकुल कहते हैं। यह मुकुल वृद्धि करता हुआ छोटा वयस्क जीव बन जाता है और जनक से अलग होकर स्वतंत्र जीव बन जाता है। (स्रोत 39 में इसका संक्षिप्त उल्लेख है)। यीस्ट में भी मुकुलन द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
यीस्ट वृद्धि का उदाहरण (क्रियाकलाप 7.2): 100 मिलीलीटर जल में 10 ग्राम चीनी घोलकर, 20 मिलीलीटर विलयन में चुटकी भर यीस्ट पाउडर डालकर गरम स्थान पर रखने पर यीस्ट की वृद्धि होती है। सूक्ष्मदर्शी से स्लाइड पर अवलोकन करने पर मुकुलन की प्रक्रिया देखी जा सकती है।
कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation)
कुछ पौधों में जड़, तना अथवा पत्ती जैसे कायिक भागों से नए पौधे विकसित होते हैं। यह कायिक प्रवर्धन कहलाता है।
- ब्रायोफिलम का उदाहरण: ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ विकसित होकर मृदा में गिर जाती हैं और नए पौधे में विकसित हो जाती हैं।
आलू का उदाहरण (क्रियाकलाप 7.5): आलू की सतह पर गड्ढे (कलिकाएँ) दिखाई देते हैं। इन गड्ढों वाले टुकड़ों को नम रुई में रखने पर उनमें से हरे प्ररोह तथा जड़ विकसित होती हैं। बिना गड्ढों वाले टुकड़ों में वृद्धि नहीं होती।
मनी प्लांट का उदाहरण (क्रियाकलाप 7.6): मनी प्लांट को टुकड़ों में काटकर, जिनमें कम से कम एक पत्ती हो (या पत्ती के बीच वाले भाग के टुकड़े), जल में डुबोकर रखने पर जिन टुकड़ों में नोड (गाँठ) होती है, उनमें वृद्धि होती है और नई पत्तियाँ निकलती हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि नए पौधे नोड वाले भाग से विकसित होते हैं।
कायिक प्रवर्धन का उपयोग: कुछ पौधों (जैसे गन्ना, गुलाब, अंगूर) को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया जाता है। यह विधि बीजों से पौधे उगाने की तुलना में प्रायः तेज़ होती है, और नए पौधे जनक पौधे के बिल्कुल समान होते हैं। फल वाले पौधे जिनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता कम होती है, उन्हें उगाने के लिए यह विधि बहुत उपयोगी है।
बीजाणु समासंघ (Spore Formation)
अनेक सरल बहुकोशिकीय जीवों में विशिष्ट जनन संरचनाएँ पाई जाती हैं। राइजोपस (ब्रेड मोल्ड) में ऊर्ध्व तंतुओं पर सूक्ष्म गुच्छ (गोल) संरचनाएँ जनन में भाग लेती हैं। ये गुच्छ बीजाणुधानी हैं, जिनमें विशिष्ट कोशिकाएँ अथवा बीजाणु पाए जाते हैं। यह बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं।
बीजाणु की संरचना और सुरक्षा: बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है। नम सतह के संपर्क में आने पर वह वृद्धि करने लगते हैं।
बीजाणु द्वारा जनन से लाभ: बीजाणु द्वारा जनन से जीव को लाभ होता है क्योंकि बीजाणु चारों ओर मोटी भित्ति होने के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों में सुरक्षित रहते हैं और जीवित बने रहते हैं। बीजाणु बहुत हल्की संरचनाएँ होती हैं जो वायु या अन्य माध्यमों द्वारा आसानी से दूर तक फैल सकती हैं, जिससे नए स्थानों पर जीव का प्रसार हो सकता है। (यह लाभ स्रोत में स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है, लेकिन यह बीजाणु जनन की एक सामान्य विशेषता है)।
ऊतक संवर्द्धन (Tissue Culture)
यह एक तकनीक है जिसमें पौधे के ऊतक या कोशिकाओँ को पौधे के शीर्ष के वर्धमान भाग से अलग करके नए पौधे उगाए जाते हैं। इन कोशिकाओं को कृत्रिम पोषक माध्यम में रखा जाता है, जहाँ वे विभाजित होकर अनेक कोशिकाओं का छोटा समूह (कैलस) बनाती हैं। कैलस को वृद्धि एवं विभेदन हार्मोन युक्त अन्य माध्यम में स्थानांतरित करते हैं। फिर पौधे को मिट्टी में रोप देते हैं। इस तकनीक द्वारा संक्रमण-मुक्त परिस्थितियों में एकल पौधे से अनेक पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। यह तकनीक सामान्यतः सजावटी पौधों के संवर्द्धन में उपयोग की जाती है।
4. लैंगिक जनन प्रणाली
लैंगिक जनन में संतति उत्पादन हेतु दो जीव भाग लेते हैं। लैंगिक जनन की प्रणाली अधिक सार्थक होती है क्योंकि इसमें अधिक विभिन्नता उत्पन्न हो सकती है।
डी.एन.ए. प्रतिकृति की प्रणाली पूर्णतः यथार्थ नहीं है, और विभिन्नता अत्यंत धीमी गति से उत्पन्न होती है। यदि डी.एन.ए. प्रतिकृति की क्रियाविधि कम परिशुद्ध होती, तो बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृतियाँ कोशिकीय संरचना के साथ सामंजस्य नहीं रख पातीं, जिससे कोशिका की मृत्यु हो जाती। परिवर्तन उत्पन्न करने की प्रक्रिया को कैसे गति दी जा सकती है? प्रत्येक डी.एन.ए. प्रतिकृति में नई विभिन्नता के साथ-साथ पूर्व पीढ़ियों की विभिन्नताएँ भी संग्रहीत होती रहती हैं। दो जीवों में संग्रहीत विभिन्नताओं के पैटर्न काफी भिन्न होंगे। दो या अधिक एकल जीवों की विभिन्नताओं के संयोजन से विभिन्नताओं के नए संयोजन उत्पन्न होंगे, जो अनोखे होंगे। लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. को समाहित किया जाता है।
लैंगिक जनन की समस्या और समाधान: यदि संतति पीढ़ी में जनक जीवों के डी.एन.ए. का युग्मन होता रहे, तो प्रत्येक पीढ़ी में डी.एन.ए. की मात्रा दोगुनी होती जाएगी। इससे डी.एन.ए. द्वारा कोशिकीय संगठन पर नियंत्रण टूटने की संभावना है। इस समस्या का समाधान जीवों ने यह खोजा कि विशिष्ट अंगों में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं (जनन कोशिकाएँ या युग्मक) की परत होती है। इनमें कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है और डी.एन.ए. की मात्रा भी आधी होती है। यह कोशिका विभाजन की प्रक्रिया जिसे अर्धसूत्री विभाजन कहते हैं, के द्वारा प्राप्त किया जाता है। अतः, दो भिन्न जीवों की ये युग्मक कोशिकाएँ लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (ज़ायगोट) बनाती हैं, तो संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी.एन.ए. की मात्रा पुनर्स्थापित हो जाती है।
यदि युग्मनज वृद्धि एवं परिवर्धन द्वारा नए जीव में विकसित होता है, तो इसमें ऊर्जा का भंडार पर्याप्त होना चाहिए। अत्यंत सरल संरचना वाले जीवों में प्रायः दो जनन कोशिकाओं (युग्मकों) की आकृति एवं आकार में विशेष अंतर नहीं होता (समयुग्मक)। परंतु जैसे ही शारीरिक डिज़ाइन अधिक जटिल होता है, जनन कोशिकाएँ भी विशिष्ट हो जाती हैं। एक जनन-कोशिका अपेक्षाकृत बड़ी होती है और उसमें भोजन का पर्याप्त भंडार होता है (मादा युग्मक), जबकि दूसरी अपेक्षाकृत छोटी एवं अधिक गतिशील होती है (नर युग्मक)।
5. पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन
पुष्प में पुंकेसर (नर जननांग) और स्त्रीकेसर (मादा जननांग) होते हैं।
- एकलिंगी पुष्प: जिनमें पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है (जैसे पपीता, तरबूज)।
- उभयलिंगी पुष्प: जिनमें पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं (जैसे गुड़हल, सरसों)।
पुंकेसर नर जननांग है, जो परागकण बनाते हैं। परागकण सामान्यतः पीले हो सकते हैं और इनमें नर युग्मक होते हैं। स्त्रीकेसर पुष्प के केंद्र में मादा जननांग है। यह तीन भागों से बना होता है: अंडाशय (आधार पर उभरा-फूला भाग जिसमें बीजांड होते हैं, और प्रत्येक बीजांड में एक अंड-कोशिका होती है), वर्तिका (मध्य में लंबा भाग), तथा वर्तिकाग्र (शीर्ष भाग, जो प्रायः चिपचिपा होता है)। अंडकोशिका मादा युग्मक है।
परागकण द्वारा उत्पादित नर युग्मक अंडाशय की अंडकोशिका (मादा युग्मक) से संलयित हो जाता है। जनन कोशिकाओं के इस युग्मन अथवा निषेचन से युग्मनज बनता है। युग्मनज में नए पौधे में विकसित होने की क्षमता होती है।
परागण और निषेचन
निषेचन के लिए परागकणों को पुंकेसर से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है।
- स्वपरागण: यदि परागकणों का स्थानांतरण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर होता है।
- पर-परागण: यदि एक पुष्प के परागकण दूसरे पुष्प पर स्थानांतरित होते हैं। परागकणों का यह स्थानांतरण वायु, जल अथवा प्राणी जैसे वाहक द्वारा संपन्न होता है।
परागकणों के उपयुक्त वर्तिकाग्र पर पहुँचने के पश्चात नर युग्मक को अंडाशय में स्थित मादा-युग्मक तक पहुँचना होता है। इसके लिए परागकण से एक नलिका (पराग नली) विकसित होती है तथा वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुँचती है।
निषेचन के बाद परिवर्तन
निषेचन के पश्चात युग्मनज बीजांड में विकसित होता है। अंडाशय फल में विकसित होता है। बीजांड के चारों ओर एक कठोर आवरण विकसित होता है जो बीज बन जाता है। बीज में भावी पौधा (भ्रूण) होता है जो प्रांकुर (भावी प्ररोह) और मूलांकुर (भावी जड़) तथा बीजपत्र (खाद्य संग्रह) से बना होता है।
क्रियाकलाप 7.7: बीजों का अंकुरण समझना
- चने के कुछ बीजों को रात भर पानी में भिगोएँ।
- अगले दिन अतिरिक्त पानी फेंक दें और बीजों को गीले कपड़े से ढककर एक दिन के लिए रखें (ध्यान रहे कि बीज सूखें नहीं)।
- बीजों को सावधानी से खोलकर उसके विभिन्न भागों (प्रांकुर, मूलांकुर, बीजपत्र) का प्रेक्षण करें और उनकी चित्र 7.9 से तुलना करें।
प्रश्न 1 (पुस्तक से): परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
- परागण (Pollination): यह परागकणों का पुंकेसर से स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र तक पहुँचने की प्रक्रिया है। यह स्थानांतरण वायु, जल या प्राणियों जैसे वाहकों द्वारा हो सकता है। परागण निषेचन से पहले की क्रिया है।
- निषेचन (Fertilization): यह नर युग्मक (जो परागकण में होता है) का मादा युग्मक (अंडकोशिका, जो बीजांड के अंदर अंडाशय में होती है) से संलयन होने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया परागण के बाद तब होती है जब पराग नली वर्तिकाग्र से बीजांड तक पहुँच जाती है।
सरल शब्दों में, परागण परागकणों को सही स्थान तक पहुँचाना है, जबकि निषेचन नर और मादा युग्मकों का आपस में मिलकर युग्मनज बनाना है।
6. मानव में लैंगिक जनन
मानव में लैंगिक जनन होता है। आयु के साथ शरीर में कुछ परिवर्तन आते हैं। सामान्य शारीरिक वृद्धि (लंबाई, भार बढ़ना, दूध के दाँतों का गिरना) के अतिरिक्त, किशोरावस्था के प्रारंभिक वर्षों में कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं जिन्हें केवल शारीरिक वृद्धि नहीं कहा जा सकता। इन्हें यौवनारंभ (Puberty) कहा जाता है।
यौवनारंभ के दौरान परिवर्तन:
- लड़के एवं लड़कियों में समान परिवर्तन: काँख एवं जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल-गुच्छ निकल आते हैं और उनका रंग गहरा हो जाता है। पैर, हाथ एवं चेहरे पर भी महीन रोएँ आ जाते हैं। त्वचा तैलीय हो जाती है और कभी-कभी मुहाँसे भी निकल आते हैं। हम अपने और दूसरों के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं।
- लड़कियों में होने वाले विशेष परिवर्तन: स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है तथा स्तनाग्र की त्वचा का रंग भी गहरा होने लगता है। इस समय लड़कियों में ऋतुस्राव होने लगता है।
- लड़कों में होने वाले विशेष परिवर्तन: चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ निकल आती है तथा उनकी आवाज़ फटने लगती है। साथ ही, दिवसावपन अथवा रात्रि में शिश्न भी अक्सर विवर्धन के कारण ऊर्ध्व हो जाता है।
ये सभी परिवर्तन शरीर की लैंगिक परिपक्वता के पहलू हैं। जनन ऊतक परिपक्व होना तब प्रारंभ करते हैं जब शरीर की सामान्य वृद्धि दर धीमी होनी शुरू होती है।
मानव जनन तंत्र:
नर जनन तंत्र:
जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग मिलकर नर जनन तंत्र बनाते हैं।
- वृषण (Testes): नर जनन-कोशिका (शुक्राणु) का निर्माण वृषण में होता है। ये उदर गुहा के बाहर वृषण कोष (Scrotum) में स्थित होते हैं, क्योंकि शुक्राणु उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है। वृषण टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का उत्पादन भी करते हैं। टेस्टोस्टेरॉन शुक्राणु उत्पादन और यौवनावस्था के लक्षणों का नियंत्रण करता है।
- शुक्रवाहिनी (Vas deferens): उत्पादित शुक्राणुओं का मोचन शुक्रवाहिनियों द्वारा होता है। ये मूत्र मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़कर एक संयुक्त नली बनाती हैं।
- शुक्राशय (Seminal Vesicles) और प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate Gland): ये अपने स्राव शुक्रवाहिका में डालते हैं। यह स्राव शुक्राणुओं को एक तरल माध्यम प्रदान करता है जिससे उनका स्थानांतरण सरलता से होता है, साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है।
- मूत्रमार्ग (Urethra): यह शुक्राणुओं एवं मूत्र दोनों के प्रवाह के लिए उभय मार्ग है।
- शिश्न (Penis): यह शुक्राणुओं को मादा जननांग में स्थानांतरित करने वाला अंग है।
- शुक्राणु सूक्ष्म संरचनाएं हैं जिनमें मुख्यतः आनुवंशिक पदार्थ होते हैं तथा एक लंबी पूंछ होती है, जो उन्हें मादा जनन-कोशिका की ओर तैरने में सहायता करती है।
मादा जनन तंत्र:
मादा जनन-कोशिकाओं (अंड-कोशिका) का निर्माण अंडाशय में होता है। अंडाशय कुछ हार्मोन भी उत्पादित करते हैं।
- अंडाशय (Ovaries): जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं। यौवनारंभ में इनमें से कुछ परिपक्व होने लगते हैं। दो में से एक अंडाशय द्वारा प्रत्येक माह एक अंड परिपक्व होता है।
- अंडवाहिनी (फेलोपियन ट्यूब) (Oviduct/Fallopian Tube): परिपक्व अंडकोशिका महीन अंडवाहिनी द्वारा गर्भाशय तक ले जाई जाती है। मानव में निषेचन अंडवाहिनी में ही होता है।
- गर्भाशय (Uterus): दोनों अंडवाहिनियाँ संयुक्त होकर एक लचीली थैलेनुमा संरचना (गर्भाशय) का निर्माण करती हैं। यहीं पर निषेचित अंड (भ्रूण) स्थापित होकर वृद्धि करता है। गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है।
- योनि (Vagina): यह गर्भाशय ग्रीवा द्वारा बाहर खुलता है। मैथुन के समय शुक्राणु यहीं स्थापित होते हैं।
निषेचन, गर्भाधान और विकास:
मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं, जहाँ से ऊपर की ओर यात्रा करके वे अंडवाहिनी तक पहुँच जाते हैं, जहाँ वे अंडकोशिका से मिल सकते हैं। निषेचित अंडा विभाजित होकर कोशिकाओं की गेंद जैसी संरचना या भ्रूण बनाता है। भ्रूण गर्भाशय में स्थापित हो जाता है, जहाँ यह लगातार विभाजित होकर वृद्धि करता है तथा अंगों का विकास करता है।
माँ का शरीर गर्भाधारण एवं उसके विकास के लिए विशेष रूप से अनुकूलित होता है। गर्भाशय प्रत्येक माह भ्रूण को ग्रहण करने एवं उसके पोषण हेतु तैयारी करता है। इसकी आंतरिक परत मोटी होती जाती है तथा भ्रूण के पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ़ जाता है।
भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष संरचना होती है जिसे प्लेसेंटा (Placenta) कहते हैं। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है, जो गर्भाशय की भित्ति में धंसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर के ऊतक में प्रवर्ध (villi) होते हैं, जिन्हें माँ के ऊतकों में रक्तस्थान आच्छादित करते हैं। यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानांतरण हेतु एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करते हैं। विकासशील भ्रूण द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थ प्लेसेंटा के माध्यम से माँ के रुधिर में स्थानांतरण द्वारा निपटाए जाते हैं। माँ के शरीर में गर्भ को विकसित होने में लगभग 9 मास का समय लगता है। गर्भाशय की पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है।
क्या होता है जब अंड का निषेचन नहीं होता?
यदि अंडकोशिका का निषेचन नहीं हो तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहती है। चूंकि अंडाशय प्रत्येक माह एक अंड का मोचन करता है, अतः निषेचित अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी प्रति माह तैयारी करता है। इसकी अंतःभित्ति मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है। परंतु निषेचन न होने की अवस्था में इस परत की आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह परत धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में लगभग एक मास का समय लगता है तथा इसे ऋतुस्राव (Menstruation) अथवा रजोदर्शन कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 2 से 8 दिनों की होती है।
7. जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)
लैंगिक परिपक्वता एक क्रमिक प्रक्रिया है जो शारीरिक वृद्धि के साथ होती है। लैंगिक परिपक्वता का अर्थ यह नहीं है कि शरीर अथवा मस्तिष्क जनन क्रिया अथवा गर्भाधारण योग्य हो गए हैं। इस विषय पर विभिन्न प्रकार के सामाजिक (मित्रों का दबाव, विवाह एवं संतानोत्पत्ति के लिए पारिवारिक दबाव) और सरकारी (संतानोत्पत्ति से बचने का दबाव) दबाव हो सकते हैं।
यौन क्रियाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में सोचना चाहिए। यौन क्रिया में प्रगाढ़ शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं, इसलिए अनेक रोगों का लैंगिक संचरण हो सकता है। इनमें जीवाणुजनित रोग जैसे गोनेरिया तथा सिफिलिस एवं वायरस संक्रमण जैसे मस्सा (Wart) तथा HIV-AIDS शामिल हैं।
लैंगिक संचारित रोगों का निवारण:
शिश्न के लिए आवरण अथवा कंडोम के प्रयोग से इनमें से अनेक रोगों के संचरण का कुछ सीमा तक निवारण संभव है।
गर्भाधारण रोकने के तरीके (Contraceptive Methods):
यौन क्रिया द्वारा गर्भाधारण की संभावना सदा बनी रहती है। यदि स्त्री इसके लिए तैयार नहीं है तो इसका उसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः गर्भाधारण रोकने के अनेक तरीके खोजे गए हैं।
- यांत्रिक अवरोध: जिससे शुक्राणु अंडकोशिका तक न पहुँच सके। उदाहरण: कंडोम, योनि में रखने वाली अनेक युक्तियाँ।
- हार्मोन संतुलन परिवर्तन: जिससे अंड का मोचन ही नहीं होता। ये दवाएँ सामान्यतः गोली के रूप में ली जाती हैं। ये हार्मोन संतुलन को परिवर्तित करती हैं अतः इनके कुछ विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं।
- IUD (Intrauterine Device): लूप अथवा कॉपर-टी (Copper-T) को गर्भाशय में स्थापित करके भी गर्भाधारण रोका जाता है। गर्भाशय के उत्तेजन से भी कुछ विपरीत प्रभाव हो सकते हैं। (ध्यान दें: कॉपर-टी यौन-संचारित रोगों से सुरक्षा प्रदान नहीं करती)।
- शल्यक्रिया तकनीक:
- पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध करना (नसबंदी)।
- स्त्रियों में अंडवाहिनी अथवा फेलोपियन नलिका को अवरुद्ध करना (बंध्याकरण)। दोनों ही अवस्थाओं में निषेचन नहीं हो पाएगा। शल्य तकनीक भविष्य के लिए पूर्णतः सुरक्षित है, परंतु असावधानीपूर्वक की गई शल्यक्रिया से संक्रमण अथवा दूसरी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
अवांछित गर्भ को हटाना:
शल्यक्रिया द्वारा अवांछित गर्भ को हटाया भी जा सकता है। इस तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण लिंग निर्धारण करके मादा भ्रूण की निर्मम हत्या के लिए किया जा रहा है। यह गैरकानूनी है। एक स्वस्थ समाज के लिए, मादा-नर लिंग अनुपात बनाए रखना आवश्यक है। हमारे देश में शिशु लिंग अनुपात तीव्रता से घट रहा है जो चिंता का विषय है।
जनसंख्या का आकार:
जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं। एक समष्टि में जन्म दर एवं मृत्यु दर उसके आकार का निर्धारण करते हैं। जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाना दुष्कर कार्य है। यद्यपि सामाजिक असमानता भी निम्न जीवन स्तर का कारण हो सकती है।
8. अध्याय का संक्षिप्त सारांश (पुनरावृत्ति के लिए):
- अन्य जैव प्रक्रमों के विपरीत, जनन किसी जीव के अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक नहीं है।
- जनन में एक कोशिका द्वारा डी.एन.ए. प्रतिकृति का निर्माण तथा अतिरिक्त कोशिकीय संगठन का सृजन होता है।
- विभिन्न जीवों द्वारा अपनाई जाने वाली जनन की प्रणाली उनके शारीरिक अभिकल्प पर निर्भर करती है।
- खंडन विधि में जीवाणु एवं प्रोटोजोआ की कोशिका विभाजित होकर दो या अधिक संतति कोशिका का निर्माण करती है।
- यदि हाइड्रा जैसे जीवों का शरीर कई टुकड़ों में अलग हो जाए तो प्रत्येक भाग से पुनरुद्भवन द्वारा नए जीव विकसित हो जाते हैं। इनमें कुछ मुकुल की ऊपर उठकर नए जीव में विकसित हो जाते हैं।
- कुछ पौधों में कायिक प्रवर्धन द्वारा जड़, तना अथवा पत्ती से नए पौधे विकसित होते हैं।
- उपरोक्त अलैंगिक जनन के उदाहरण हैं, जिसमें संतति की उत्पत्ति एक एकल जीव (व्यष्टि) द्वारा होती है।
- लैंगिक जनन में संतति उत्पादन हेतु दो जीव भाग लेते हैं।
- डी.एन.ए. प्रतिकृति की तकनीक से विभिन्नता उत्पन्न होती है, जो प्रजातियों के अस्तित्व के लिए लाभदायक है। लैंगिक जनन द्वारा अधिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
- पुष्पी पौधों में जनन प्रक्रम में परागकण परागकोश से स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित होते हैं, जिसे परागण कहते हैं। इसका अनुगमन निषेचन द्वारा होता है।
- यौवनारंभ के समय शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं, उदाहरण के लिए लड़कियों में स्तन का विकास तथा लड़कों के चेहरे पर नए बालों का आना, लैंगिक परिपक्वता के चिह्न हैं।
- मानव में नर जनन तंत्र में वृषण, शुक्राणुवाहिनी, शुक्राशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, मूत्रमार्ग तथा शिश्न होते हैं। वृषण शुक्राणु उत्पन्न करते हैं।
- मानव के मादा जनन तंत्र में अंडाशय, डिंबवाहिनी (अंडवाहिनी), गर्भाशय तथा योनि पाए जाते हैं।
- मानव में लैंगिक जनन प्रक्रिया में शुक्राणुओं का स्त्री की योनि में स्थानांतरण होता है तथा निषेचन डिंबवाहिनी (अंडवाहिनी) में होता है।
- गर्भरिोधी युक्तियाँ अपनाकर गर्भाधारण रोका जा सकता है। कंडोम, गर्भरिोधी गोलियाँ, कॉपर-टी तथा अन्य युक्तियाँ इसके उदाहरण हैं।
9. अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर:
(पुस्तक में दिए गए प्रश्न के उत्तर):
प्रश्न 1 (पुस्तक से): द्विखंडन, बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?
गुण | द्विखंडन (Binary Fission) | बहुखंडन (Multiple Fission) |
---|---|---|
संतति कोशिकाओं की संख्या | जनक कोशिका विभाजित होकर दो संतति कोशिकाएं बनाती है। | जनक कोशिका एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित होती है। |
परिस्थितियाँ | सामान्यतः अनुकूल परिस्थितियों में होता है। | प्रायः प्रतिकूल परिस्थितियों में (कोशिका के चारों ओर पुटी बनाकर)। |
उदाहरण | अमीबा, लैशमैनिया, जीवाणु, प्रोटोजोआ। | प्लाज़्मोडियम (मलेरिया परजीवी)। |
मुख्य अंतर यह है कि द्विखंडन में दो संतति कोशिकाएं बनती हैं, जबकि बहुखंडन में अनेक संतति कोशिकाएं बनती हैं।
प्रश्न 2 (पुस्तक से): बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है?
बीजाणु द्वारा जनन से जीव निम्नलिखित प्रकार से लाभान्वित होता है:
- प्रतिकूल परिस्थितियों से सुरक्षा: बीजाणुओं के चारों ओर एक मोटी सुरक्षात्मक भित्ति होती है जो उन्हें उच्च ताप, सूखापन जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाती है, जिससे वे जीवित बने रहते हैं। अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर वे अंकुरित हो जाते हैं।
- प्रसारण में सुगमता: बीजाणु बहुत हल्के होते हैं और वायु धाराओं द्वारा आसानी से दूर-दूर तक फैल सकते हैं। यह जीव को नए पर्यावासों में पहुँचने और अपने वितरण क्षेत्र का विस्तार करने में मदद करता है।
- बड़ी संख्या में उत्पादन: एक बीजाणुधानी में बड़ी संख्या में बीजाणु उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे संतति की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है और प्रजाति के फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
प्रश्न 3 (पुस्तक से): क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं, जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?
जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते क्योंकि:
- अत्यधिक विशिष्टता: जटिल जीवों की शारीरिक संरचना बहुत जटिल होती है जिसमें अनेक अंग तंत्र होते हैं, और ये अंग तंत्र विशिष्ट ऊतकों और कोशिकाओं से बने होते हैं जो अत्यंत विशिष्ट कार्य करते हैं। ये कोशिकाएँ, ऊतक और अंग शरीर में निश्चित स्थानों पर एक सुनियोजित तरीके से व्यवस्थित होते हैं।
- पुनर्जनन क्षमता का अभाव: पुनरुद्भवन विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा होता है जिनमें प्रसरण और विभेदन की उच्च क्षमता होती है। सरल जीवों में, कोशिकाएँ कम विशिष्ट होती हैं और उनमें यह क्षमता व्यापक रूप से मौजूद होती है। जटिल जीवों में, कोशिकाएँ अत्यधिक विशिष्ट (differentiated) हो जाती हैं और अपनी पुनरुत्पादन और विभेदन की क्षमता खो देती हैं।
- जटिल प्रक्रिया: शरीर के किसी भी कटे हुए टुकड़े में सभी आवश्यक विशिष्ट कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों का व्यवस्थित रूप से विकास करके एक पूर्ण जीव बनाना अत्यंत जटिल, ऊर्जा-खर्चीली और अव्यावहारिक प्रक्रिया है। शरीर के कुछ भाग तो पुनरुद्भवन कर सकते हैं (जैसे छिपकली की पूंछ का सीमित पुनर्जनन), लेकिन पूरा जीव शरीर के किसी भी सामान्य भाग से उत्पन्न नहीं हो सकता।
प्रश्न 4 (पुस्तक से): कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग निम्नलिखित कारणों से किया जाता है:
- शीघ्र उत्पादन: कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधे बीज से उगाए गए पौधों की तुलना में जल्दी वृद्धि करते हैं और शीघ्र ही फल या फूल उत्पन्न करने लगते हैं।
- आनुवंशिक समानता (क्लोनिंग): कायिक प्रवर्धन द्वारा उत्पन्न पौधे जनक पौधे के आनुवंशिक रूप से बिल्कुल समान होते हैं (क्लोन)। यह उन पौधों के लिए उपयोगी है जिनमें वांछित गुण (जैसे बेहतर फल, सुंदर फूल) हों, ताकि वे गुण अगली पीढ़ी में भी बिना किसी परिवर्तन के बने रहें।
- बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे: कुछ पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता बहुत कम होती है या वे बीज रहित होते हैं (जैसे केला, संतरा, गुलाब, चमेली, अंगूर की कुछ किस्में)। ऐसे पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन ही एकमात्र या सबसे प्रभावी तरीका होता है।
- प्रसारण में सुगमता और विश्वसनीयता: कायिक भाग (जैसे कटिंग, कलम) को रोपना अक्सर बीजों को रोपने की तुलना में आसान और अधिक विश्वसनीय होता है, क्योंकि बीजों के अंकुरण की दर विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है।
- रोग प्रतिरोधी पौधों का उत्पादन: कभी-कभी रोग-मुक्त पौधे उत्पन्न करने के लिए भी यह तकनीक उपयोगी होती है (जैसे ऊतक संवर्धन)।
प्रश्न 5 (पुस्तक से): डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?
डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि:
- आनुवंशिक सूचना का वाहक: डी.एन.ए. (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) में जीव के शरीर के अभिकल्प (डिजाइन), संरचना और कार्यों के लिए आवश्यक सभी आनुवंशिक जानकारी निहित होती है। यह एक ब्लूप्रिंट की तरह कार्य करता है।
- संतति में गुणों का स्थानांतरण: जनन का मूल उद्देश्य जनक के समान शारीरिक अभिकल्प और गुणों वाली संतति उत्पन्न करना है। इसके लिए, यह आवश्यक है कि जनक जीव के पास मौजूद आनुवंशिक जानकारी (डी.एन.ए.) संतति तक पहुँचे।
- कोशिकीय निरंतरता: डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने पर आनुवंशिक जानकारी की दो सटीक प्रतियाँ बनती हैं। कोशिका विभाजन के समय, इनमें से एक प्रति नई संतति कोशिका में स्थानांतरित हो जाती है, जिससे नई कोशिका में भी जनक जैसी संरचना बनाने और कार्य करने की क्षमता आती है।
- प्रजाति की निरंतरता: डी.एन.ए. प्रतिकृति सुनिश्चित करती है कि अगली पीढ़ी के जीवों में आनुवंशिक सामग्री मौजूद हो ताकि वे वृद्धि कर सकें, अपने जीवन चक्र को पूरा कर सकें और प्रजाति की निरंतरता बनाए रख सकें। डी.एन.ए. के बिना, नई कोशिकाएं या जीव नहीं बन सकते जिनमें जनक के गुण हों।
- विभिन्नता का स्रोत (त्रुटियों के कारण): यद्यपि प्रतिकृति अत्यंत सटीक होती है, कभी-कभी इसमें छोटी-मोटी त्रुटियाँ (उत्परिवर्तन) हो सकती हैं, जो विभिन्नताओं का स्रोत बनती हैं। ये विभिन्नताएँ जैव-विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 1 (पुस्तक से): अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है।
(a) अमीबा
(b) यीस्ट
(c) प्लाज़्मोडियम
(d) लैशमैनिया
उत्तर: (b) यीस्ट
प्रश्न 2 (पुस्तक से): निम्नलिखित में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है?
(a) अंडाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिका
(d) डिंबवाहिनी
उत्तर: (c) शुक्रवाहिका (यह नर जनन तंत्र का भाग है)
प्रश्न 3 (पुस्तक से): परागकोश में होते हैं—
(a) बाह्यदल
(b) अंडाशय
(c) अंडप
(d) पराग कण
उत्तर: (d) पराग कण
प्रश्न 4 (पुस्तक से): अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
- अधिक विभिन्नता: लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों (नर और मादा) से प्राप्त डी.एन.ए. का संयोजन होता है। इससे विभिन्नताओं के नए संयोजन बनते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संतति में अधिक आनुवंशिक विभिन्नता उत्पन्न होती है। अलैंगिक जनन में विभिन्नताएँ केवल डी.एन.ए. प्रतिकृति में होने वाली त्रुटियों (उत्परिवर्तन) के कारण ही उत्पन्न होती हैं, जो धीमी प्रक्रिया है।
- जैव-विकास में सहायक: अधिक विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार बनती हैं। विभिन्नताओं के संचय से नई प्रजातियों (speciation) के विकास की संभावना बढ़ती है, क्योंकि प्राकृतिक चयन इन विभिन्नताओं पर कार्य करता है।
- प्रजाति की उत्तरजीविता में वृद्धि: विभिन्नताएँ प्रजाति को बदलती पर्यावरण परिस्थितियों के प्रति अधिक अनुकूलनीय और प्रतिरोधी बनाती हैं। यदि पर्यावरण में कोई आकस्मिक या उग्र परिवर्तन आता है (जैसे बीमारी, जलवायु परिवर्तन), तो विभिन्नताओं के कारण स्पीशीज़ के कुछ सदस्यों के जीवित रहने और जनन करने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे पूरी प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा कम हो जाता है।
- हानिकारक उत्परिवर्तनों का उन्मूलन: लैंगिक जनन हानिकारक उत्परिवर्तनों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जमा होने से रोकने में मदद कर सकता है, क्योंकि युग्मकों के संयोजन से नए जीनोटाइप बनते हैं।
प्रश्न 5 (पुस्तक से): मानव में वृषण के क्या कार्य हैं?
मानव में वृषण (testes) के दो मुख्य कार्य हैं:
- शुक्राणुओं का उत्पादन (Spermatogenesis): वृषण नर जनन कोशिकाएं, जिन्हें शुक्राणु (sperm) कहते हैं, उत्पन्न करते हैं। यह प्रक्रिया वृषण की शुक्रजनक नलिकाओं में होती है। शुक्राणु नर युग्मक होते हैं जो निषेचन के लिए आवश्यक हैं। यह कार्य उदर गुहा के बाहर वृषण कोष (scrotum) में होता है क्योंकि शुक्राणु उत्पादन के लिए शरीर के सामान्य तापमान (37°C) से लगभग 2-3°C कम तापमान आवश्यक होता है।
- टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का स्राव (Hormone Production): वृषण अंतःस्रावी ग्रंथि के रूप में भी कार्य करते हैं और नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का उत्पादन करते हैं। यह हार्मोन निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी है:
- शुक्राणु उत्पादन की प्रक्रिया को प्रेरित और नियंत्रित करना।
- लड़कों में यौवनारंभ के समय द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास करना, जैसे दाढ़ी-मूँछ का आना, आवाज़ का भारी होना, मांसपेशियों का विकास, और जननांगों का विकास।
- यौन इच्छा (libido) को बनाए रखना।
प्रश्न 6 (पुस्तक से): ऋतुस्राव क्यों होता है?
ऋतुस्राव (menstruation) या मासिक धर्म, मादाओं में होने वाली एक प्राकृतिक चक्रीय प्रक्रिया है जो तब होती है जब अंडाशय द्वारा मोचित अंडकोशिका का निषेचन नहीं होता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं:
- अंड का मोचन: प्रत्येक माह (लगभग 28-30 दिनों के चक्र में), मादा के अंडाशय में से एक परिपक्व अंड (अंडकोशिका) मोचित होता है (अंडोत्सर्ग)।
- गर्भाशय की तैयारी: अंडोत्सर्ग के साथ ही, गर्भाशय स्वयं को संभावित गर्भाधारण के लिए तैयार करता है। गर्भाशय की आंतरिक परत, जिसे एंडोमेट्रियम (endometrium) कहते हैं, मोटी, मांसल और रक्त वाहिकाओं से भरपूर (स्पंजी) हो जाती है। यह तैयारी निषेचित अंड (युग्मनज) को रोपित होने और विकसित हो रहे भ्रूण को पोषण प्रदान करने के लिए होती है।
- निषेचन न होना: यदि मोचित अंड का शुक्राणु द्वारा निषेचन नहीं होता है, तो यह अंड कुछ समय (लगभग 24-48 घंटे) बाद नष्ट हो जाता है।
- एंडोमेट्रियम का टूटना: जब निषेचन नहीं होता, तो गर्भाशय की तैयार की गई मोटी परत (एंडोमेट्रियम) की कोई आवश्यकता नहीं रहती। हार्मोन स्तर में परिवर्तन के कारण यह परत धीरे-धीरे टूट जाती है।
- निष्कासन: टूटी हुई एंडोमेट्रियम परत, रक्त और श्लेष्म (म्यूकस) के साथ योनि मार्ग से शरीर से बाहर निकल जाती है। इसी रक्तस्राव को ऋतुस्राव कहते हैं। यह सामान्यतः 2 से 8 दिनों तक चलता है।
यह चक्र यौवनारंभ से शुरू होकर रजोनिवृत्ति (menopause) तक हर महीने दोहराया जाता है, सिवाय गर्भावस्था के दौरान।
प्रश्न 7 (पुस्तक से): पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।
इस प्रश्न के लिए एक चित्र की आवश्यकता है। कृपया अपनी पाठ्यपुस्तक में चित्र 7.7 (या संबंधित चित्र) देखें जो एक पुष्प की अनुदैर्ध्य काट (Longitudinal section of a flower) को दर्शाता है।
चित्र में निम्नलिखित भागों को नामांकित किया जाना चाहिए:
- बाह्यदल (Sepals): पुष्प का सबसे बाहरी चक्र, जो कली अवस्था में आंतरिक भागों की रक्षा करता है।
- पंखुड़ी/दल (Petals): रंगीन भाग जो परागण के लिए कीटों को आकर्षित करते हैं।
- पुंकेसर (Stamen) - नर जननांग: इसके दो भाग होते हैं:
- परागकोश (Anther): जिसमें परागकण (pollen grains) बनते हैं।
- तंतु (Filament): परागकोश को पुष्प से जोड़ने वाली डंडी।
- स्त्रीकेसर (Pistil/Carpel) - मादा जननांग: इसके तीन भाग होते हैं:
- वर्तिकाग्र (Stigma): शीर्ष का चिपचिपा भाग जो परागकणों को ग्रहण करता है।
- वर्तिका (Style): वर्तिकाग्र को अंडाशय से जोड़ने वाली लंबी नलिका।
- अंडाशय (Ovary): आधार का फूला हुआ भाग जिसमें बीजांड (ovules) होते हैं। प्रत्येक बीजांड में मादा युग्मक (अंड कोशिका) होती है।
- पुष्पासन (Thalamus): पुष्प के सभी भाग जिस पर टिके होते हैं।
- (बीजांड (Ovule) - अंडाशय के अंदर)
कृपया सटीक चित्र और नामांकन के लिए अपनी पाठ्यपुस्तक का संदर्भ लें।
प्रश्न 8 (पुस्तक से): गर्भाधिनरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन सी हैं?
गर्भाधिनरोधन (Contraception) या गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं, जिनका उद्देश्य गर्भाधारण को रोकना है:
- यांत्रिक अवरोध (Mechanical/Barrier Methods): ये विधियाँ शुक्राणुओं को अंडकोशिका तक भौतिक रूप से पहुँचने से रोकती हैं।
- कंडोम (Condoms): पुरुषों के लिए (शिश्न पर पहना जाता है) और महिलाओं के लिए (योनि में लगाया जाता है) उपलब्ध। ये यौन संचारित रोगों (STDs) से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- डायाफ्राम (Diaphragm), सर्वाइकल कैप (Cervical Cap): ये महिलाओं द्वारा योनि में गर्भाशय ग्रीवा को ढकने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- रासायनिक विधियाँ/हार्मोनल विधियाँ (Chemical/Hormonal Methods): ये शरीर के हार्मोन संतुलन को परिवर्तित करके कार्य करती हैं।
- गर्भनिरोधक गोलियाँ (Oral Contraceptive Pills): ये गोलियाँ सामान्यतः एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का मिश्रण होती हैं, जो अंडाशय से अंड के मोचन (अंडोत्सर्ग) को रोकती हैं। इनके कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
- आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियाँ (Emergency Contraceptive Pills): असुरक्षित यौन संबंध के बाद कुछ घंटों के भीतर ली जाती हैं।
- इंजेक्शन और त्वचा के नीचे प्रत्यारोपण (Injectables and Implants): ये भी हार्मोन जारी करते हैं और लंबी अवधि तक प्रभावी होते हैं।
- अंतर्गर्भाशयी युक्तियाँ (Intrauterine Devices - IUDs): इन्हें गर्भाशय में स्थापित किया जाता है।
- कॉपर-टी (Copper-T): यह तांबा (copper) मुक्त करती है जो शुक्राणुओं की गतिशीलता और निषेचन क्षमता को कम करता है और गर्भाशय को आरोपण के लिए अनुपयुक्त बनाता है।
- हार्मोनल IUDs: ये धीरे-धीरे हार्मोन (प्रोजेस्टिन) जारी करती हैं, जो गर्भाशय ग्रीवा के श्लेष्म को गाढ़ा करती हैं और अंडोत्सर्ग को भी रोक सकती हैं।
(ध्यान दें: कॉपर-टी यौन-संचारित रोगों से सुरक्षा प्रदान नहीं करती)।
- शल्यक्रिया विधियाँ (Surgical Methods - Sterilization): ये स्थायी तरीके हैं और इन्हें आमतौर पर तब अपनाया जाता है जब व्यक्ति भविष्य में और बच्चे नहीं चाहता।
- पुरुष नसबंदी (Vasectomy): पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं (vas deferens) को काटकर या अवरुद्ध कर दिया जाता है, जिससे शुक्राणु वीर्य में नहीं पहुँच पाते।
- महिला नसबंदी (Tubal Ligation/Tubectomy): स्त्रियों में अंडवाहिनी (फेलोपियन ट्यूब) को काटकर या अवरुद्ध कर दिया जाता है, जिससे अंड शुक्राणुओं से नहीं मिल पाता और निषेचन नहीं हो पाता।
- प्राकृतिक विधियाँ (Natural Methods): इनमें सुरक्षित काल (rhythm method), स्तनपान (lactational amenorrhea method - LAM), और स्खलन पूर्व शिश्न को बाहर निकालना (coitus interruptus) शामिल हैं, लेकिन ये कम विश्वसनीय होती हैं। (स्रोत में इनका उल्लेख नहीं है, पर सामान्यतः गर्भनिरोधन विधियों में गिनी जाती हैं)।
प्रश्न 9 (पुस्तक से): एककोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है?
एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीवों की जनन पद्धति में निम्नलिखित मुख्य अंतर हैं:
लक्षण | एककोशिकीय जीव | बहुकोशिकीय जीव |
---|---|---|
शारीरिक संगठन | शरीर केवल एक कोशिका का बना होता है। कोई विशिष्ट जनन अंग या ऊतक नहीं होते। | शरीर अनेक कोशिकाओं से बना होता है जो ऊतकों, अंगों और अंग तंत्रों में संगठित होती हैं। प्रायः विशिष्ट जनन अंग होते हैं। |
जनन की विधि | जनन प्रायः सरल होता है, मुख्य रूप से कोशिका विभाजन द्वारा (अलैंगिक जनन)। जैसे द्विखंडन (अमीबा), बहुखंडन (प्लाज़्मोडियम), मुकुलन (यीस्ट)। | जनन प्रक्रिया अधिक जटिल हो सकती है। अलैंगिक (जैसे खंडन, पुनरुद्भवन, मुकुलन, कायिक प्रवर्धन, बीजाणु निर्माण) और लैंगिक दोनों प्रकार का जनन पाया जाता है। जटिल जीवों में लैंगिक जनन प्रमुख होता है। |
जनन कोशिकाएं | संपूर्ण कोशिका ही जनन इकाई के रूप में कार्य करती है। विशेष जनन कोशिकाओं (युग्मकों) का निर्माण सामान्यतः नहीं होता (कुछ प्रोटिस्टा को छोड़कर)। | लैंगिक जनन में विशिष्ट जनन कोशिकाओं (युग्मकों - शुक्राणु और अंड) का निर्माण होता है। अलैंगिक जनन में कायिक कोशिकाएं या बीजाणु भाग ले सकते हैं। |
जटिलता | जनन प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल और तीव्र होती है। | जनन प्रक्रिया, विशेषकर लैंगिक जनन, धीमी और अधिक जटिल होती है, जिसमें युग्मक निर्माण, निषेचन और भ्रूणीय विकास शामिल हो सकते हैं। |
ऊर्जा व्यय | जनन में कम ऊर्जा व्यय होती है। | जनन में, विशेष रूप से लैंगिक जनन में, अधिक ऊर्जा व्यय होती है। |
विभिन्नता | अलैंगिक जनन में विभिन्नता केवल उत्परिवर्तन से आती है, अतः कम होती है। | लैंगिक जनन में युग्मकों के संयोजन से अधिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। अलैंगिक जनन में कम विभिन्नता होती है। |
प्रश्न 10 (पुस्तक से): जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?
जनन किसी स्पीशीज़ (प्रजाति) की समष्टि (population) के स्थायित्व में निम्नलिखित प्रकार से सहायक है:
- संतति का निर्माण एवं निरंतरता: जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव अपनी संतति उत्पन्न करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि जब वयस्क जीव बूढ़े होकर मर जाते हैं, तो नई पीढ़ी उनका स्थान ले सके, जिससे प्रजाति का अस्तित्व समय के साथ बना रहे।
- समष्टि का प्रतिस्थापन और वृद्धि: प्राकृतिक मृत्यु, बीमारी, या अन्य कारणों से समष्टि के सदस्यों की संख्या में कमी होती रहती है। जनन द्वारा उत्पन्न नई संतति इस कमी को पूरा करती है और समष्टि के आकार को बनाए रखने या अनुकूल परिस्थितियों में वृद्धि करने में मदद करती है।
- निकेत (Niche) पर अधिकार बनाए रखना: जीव अपनी जनन क्षमता का उपयोग करके अपने पारितंत्र में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हैं और अपने विशिष्ट निकेत (ecological niche) पर अपना अधिकार बनाए रखते हैं।
- विभिन्नता द्वारा अनुकूलन क्षमता: जनन, विशेष रूप से लैंगिक जनन, संतति में आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न करता है। ये विभिन्नताएँ प्रजाति को बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियों (जैसे जलवायु परिवर्तन, नए शिकारी, या बीमारियों का प्रकोप) के प्रति अनुकूलित होने में मदद करती हैं। यदि पर्यावरण में कोई बड़ा परिवर्तन आता है, तो विभिन्नताओं के कारण कुछ ऐसे सदस्य हो सकते हैं जो नई परिस्थितियों में जीवित रहने और जनन करने में सक्षम हों। इस प्रकार, जनन प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व और विकास के लिए आवश्यक विभिन्नताएँ प्रदान करके समष्टि के स्थायित्व को सुनिश्चित करता है।
- प्रजाति का भौगोलिक विस्तार: जनन द्वारा संतति उत्पन्न होती है जो नए क्षेत्रों में फैल सकती है, जिससे प्रजाति का भौगोलिक वितरण बढ़ता है और विभिन्न पर्यावासों में उसके जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
संक्षेप में, जनन न केवल व्यक्तिगत जीवों का स्थान लेने के लिए नई पीढ़ियां बनाता है, बल्कि प्रजाति को बदलती दुनिया में अनुकूलित होने और जीवित रहने की क्षमता भी प्रदान करता है, जिससे समष्टि का स्थायित्व सुनिश्चित होता है।
प्रश्न 11 (पुस्तक से): गर्भाधिनरोधिक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
गर्भाधिनरोधिक युक्तियाँ (गर्भनिरोधक उपाय) अपनाने के निम्नलिखित मुख्य कारण हो सकते हैं:
- अवांछित गर्भ से बचाव (परिवार नियोजन): यह सबसे प्रमुख कारण है। व्यक्ति या दंपति यह निर्णय ले सकते हैं कि उन्हें कब और कितने बच्चे चाहिए। यह उन्हें अपनी पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार परिवार की योजना बनाने की स्वतंत्रता देता है।
- महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा: बार-बार और कम अंतराल पर गर्भाधारण और प्रसव एक स्त्री के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। गर्भनिरोधक उपायों का उपयोग स्त्री को गर्भधारण के बीच पर्याप्त अंतराल रखने और अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है।
- यौन संचारित रोगों (STDs) से बचाव: कुछ गर्भनिरोधक उपाय, विशेष रूप से कंडोम, यौन क्रिया के दौरान संचरित होने वाले रोगों (जैसे HIV/AIDS, सिफिलिस, गोनोरिया) से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- जनसंख्या नियंत्रण: व्यक्तिगत स्तर पर परिवार नियोजन के साथ-साथ, बड़े पैमाने पर गर्भनिरोधक उपायों का उपयोग बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करने में सहायक होता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम करने, पर्यावरण संरक्षण और देश के समग्र विकास में मदद कर सकता है।
- आर्थिक और सामाजिक स्थिरता: छोटे परिवार अक्सर बेहतर जीवन स्तर, बच्चों की अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित कर पाते हैं। यह व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर आर्थिक स्थिरता में योगदान देता है।
- माता-पिता बनने की तैयारी: गर्भनिरोधक उपाय जोड़ों को तब तक बच्चे पैदा न करने का निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं जब तक वे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से माता-पिता बनने की जिम्मेदारियों के लिए तैयार न हों।
- चिकित्सीय कारण: कुछ स्वास्थ्य स्थितियों में गर्भावस्था महिला के लिए खतरनाक हो सकती है, ऐसी स्थिति में गर्भनिरोधक आवश्यक हो जाते हैं।
10. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नए अभ्यास प्रश्न:
- डी.एन.ए. प्रतिकृति में होने वाली त्रुटियों का क्या परिणाम हो सकता है? समझाइए।
- कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधे आनुवंशिक रूप से जनक पौधे के समान क्यों होते हैं?
- लैंगिक जनन में युग्मकों का निर्माण अर्धसूत्री विभाजन द्वारा क्यों होता है?
- पुष्प के नर और मादा जननांगों के नाम लिखिए और उनमें बनने वाले युग्मकों का उल्लेख कीजिए।
- मानव नर जनन तंत्र में वृषण उदर गुहा के बाहर क्यों स्थित होते हैं?
- प्लेसेंटा की संरचना और कार्य का वर्णन कीजिए।
- ऋतुस्राव चक्र के दौरान गर्भाशय की आंतरिक परत में क्या परिवर्तन होते हैं?
- HIV-AIDS किस प्रकार का रोग है और इसका संचरण कैसे होता है? इससे बचाव का एक तरीका बताइए।
- सामाजिक असमानता और बढ़ती जनसंख्या - इनमें से कौन जीवन स्तर को प्रभावित करने वाला अधिक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है? इस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (यह एक विवेचनात्मक प्रश्न है, इसका उत्तर अध्याय की सीधी जानकारी से परे हो सकता है।)
- अंडवाहिनी (फेलोपियन ट्यूब) में अवरोध होने पर गर्भाधारण क्यों नहीं हो पाता है?
आशा है कि ये नोट्स आपके लिए उपयोगी होंगे और आपको अध्याय को गहराई से समझने तथा परीक्षा के लिए अच्छी तैयारी करने में मदद करेंगे।
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