कक्षा 11 इतिहास अध्याय 3:चंगेज़ खान, मंगोल साम्राज्य: बिहार बोर्ड इतिहास हेतु यायावर साम्राज्य

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यायावर साम्राज्य (मंगोल): चंगेज़ खान, मंगोल साम्राज्य का उदय और पतन | अध्याय 3 संपूर्ण नोट्स

अध्याय: यायावर साम्राज्य (मंगोल)

परिचय

यह अध्याय मध्य एशिया के मंगोलों के बारे में है जिन्होंने 13वीं और 14वीं शताब्दी में चंगेज़ खान के नेतृत्व में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। यह साम्राज्य यूरोप और एशिया महाद्वीप तक फैला हुआ था। पिछले अध्याय में हमने अरब प्रायद्वीप के बद्दू यायावर परंपरा पर आधारित राज्य-निर्माण का अध्ययन किया था। मंगोल उनसे अलग वर्ग के यायावर थे।

भले ही कृषि-आधारित चीनी साम्राज्य की तुलना में मंगोलिया के यायावर लोग अपेक्षाकृत सरल सामाजिक और आर्थिक परिवेश में रहते थे, वे इतिहासिक परिवर्तनों से अछूते नहीं थे। इन समाजों ने विश्व के कई देशों से संपर्क बनाए रखा, उन पर अपना प्रभाव छोड़ा और उनसे सीखा भी।

प्रमुख अवधारणाएँ और व्याख्याएँ

  • यायावर (Nomads): वे लोग जो किसी एक स्थान पर स्थाई रूप से नहीं रहते, बल्कि चरागाहों या शिकार की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। मंगोल भी यायावर थे।
  • स्टेप्स (Steppes): मध्य एशिया के घास के मैदान। मंगोलों का यायावरीकरण यहीं हुआ था। यह क्षेत्र चरागाह और शिकार के लिए उपयुक्त था।
  • कबीला (Tribe) / वंश (Clan): यायावर समाज परिवारों के समूहों या पितृपक्षीय वंशों में विभाजित था।
  • महासंघ (Confederation): परिवारों या कबीलों के समूह मिलकर आक्रमण या रक्षा के लिए अधिक शक्तिशाली कुलों से मित्रता कर लेते थे और परिसंघ बना लेते थे। चंगेज़ खान ने मंगोल और तुर्की कबीलों का एक महासंघ बनाया था।
  • यूलूस (Ulus): चंगेज़ खान द्वारा अपने बेटों को सौंपे गए विजित क्षेत्रों का समूह। शुरुआत में यह निश्चित भूभाग नहीं था, बल्कि एक अधिकार क्षेत्र था।
  • कुरिल्ताई (Quriltaï): सरदारों की परिषद जिसमें साम्राज्य के भविष्य, अभियानों, लूट के माल के बँटवारे, चरागाह भूमि और उत्तराधिकार आदि के सभी निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाते थे।
  • तमा (Tama): प्रत्येक यूलूस में तैनात की गई सैनिक टुकड़ियाँ जो विभिन्न राजकुमारों के लिए निर्धारित थीं।
  • नोयान (Noyan): नई सैनिक टुकड़ियों के कप्तान, जो चंगेज़ खान के चार बेटों के अधीन काम करते थे।
  • आंडा (Anda): चंगेज़ खान द्वारा सार्वजनिक रूप से सम्मानित किए गए व्यक्ति जिन्हें वह 'सगा भाई' कहकर बुलाता था। यह गहरा संबंध दर्शाता था।
  • पैज़ा (Paiza) / गेरेगे (Gerege): सुरक्षित यात्रा के लिए यात्रियों को जारी किए जाने वाले पास।
  • बाज़ (Baz): व्यापारियों द्वारा पैज़ा/गेरेगे सुविधा के लिए दिया जाने वाला कर, जो मंगोल शासक की सत्ता स्वीकार करने का प्रतीक था।
  • यासा (Yasa): मंगोल जनजातियों की प्रथागत परंपराओं का एक संकलन, जिसे चंगेज़ खान की विधि-संहिता कहा गया। इसने मंगोलों को समान आस्था के आधार पर एकजुट किया और चंगेज़ खान व उनके वंशजों से मंगोलों की निकटता को स्वीकार किया।
  • स्थानबद्ध समाज (Sedentary societies): वे समाज जो किसी एक स्थान पर स्थाई रूप से रहते हैं और आमतौर पर कृषि करते हैं या शहरों में रहते हैं। मंगोलों ने ऐसे समाजों पर शासन किया।

मंगोलों की सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि

मंगोल लोग विविध समुदायों का एक निकाय थे जो भाषागत समानता के कारण पूर्व में तातार, खितन, मंचू और पश्चिम में तुर्की कबीलों से जुड़े थे। कुछ मंगोल पशुपालक थे और कुछ शिकारी-संग्राहक। पशुपालक घोड़े, भेड़, बकरी और ऊँट पालते थे। वे मध्य एशिया के स्टेप्स में रहते थे। शिकारी-संग्राहक साइबेरियाई वनों में रहते थे और पशुपालकों की तुलना में गरीब होते थे। वे जानवरों की खाल का व्यापार करते थे।

इस क्षेत्र की जलवायु में बहुत अंतर था: कठोर और लंबी सर्दी के बाद छोटी और शुष्क गर्मी आती थी। मंगोलों ने कृषि को नहीं अपनाया। पशुपालक और शिकारी-संग्राहक दोनों की अर्थव्यवस्था घनी आबादी का भरण-पोषण नहीं कर सकती थी, इसलिए कोई शहर नहीं उभर पाया। मंगोल तंबू और यर्ट्स में रहते थे और अपने पशुओं के साथ शीतकालीन निवास से ग्रीष्मकालीन चरागाहों की ओर चले जाते थे।

आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण उनका समाज कई पितृपक्षीय वंशों में बंटा था। धनी परिवारों के पास अधिक पशु और चरागाह होते थे और उनका स्थानीय राजनीति में अधिक दबदबा होता था। प्राकृतिक आपदाओं (जैसे भीषण सर्दी या सूखा) के कारण उन्हें चरागाहों की खोज में भटकना पड़ता था, जिससे उनमें संघर्ष होता था। वे पशुधन प्राप्त करने के लिए लूटपाट भी करते थे। परिवार समूह अक्सर परिसंघ बनाते थे। ऐसे परिसंघ आमतौर पर छोटे और अल्पकालिक होते थे, लेकिन चंगेज़ खान द्वारा बनाया गया परिसंघ स्थायी रहा।

यायावर और स्थानबद्ध समाजों के बीच संबंध

यायावर और कृषि अर्थव्यवस्था वाले समाज एक दूसरे से अनभिज्ञ नहीं थे। स्टेप्स में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों को व्यापार के लिए अपने पड़ोसी चीन के स्थाई निवासियों के पास जाना पड़ता था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद थी। मंगोल चीन से खेती के उत्पाद और लोहे के उपकरण लाते थे और घोड़े, फर व शिकार का विनिमय करते थे। इस व्यापार में अक्सर तनाव रहता था क्योंकि दोनों पक्ष अधिक लाभ के लिए सैनिक कार्रवाई भी करते थे। एकजुट होने पर मंगोल चीनियों को बेहतर व्यापारिक शर्तें मानने पर मजबूर कर देते थे। कभी-कभी वे व्यापार छोड़कर केवल लूटपाट करने लगते थे। जब मंगोलों का जीवन अस्त-व्यस्त होता था तो चीनी स्टेप्स में अपना प्रभाव बढ़ाते थे।

इन सीमावर्ती झड़पों से स्थाई समाज कमजोर पड़ते थे, कृषि अव्यवस्थित होती थी और शहर लूटे जाते थे। यायावरों को कम नुकसान होता था। चीन को इन यायावरों से हमेशा नुकसान हुआ है। अपनी प्रजा की रक्षा के लिए चीनियों ने 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही किलेबंदी शुरू कर दी थी। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से इन किलेबंदियों को एकीकृत किया गया, जिसे आज 'चीन की महान दीवार' कहते हैं। यह उत्तरी चीन के कृषक समाजों पर यायावरों के लगातार हमलों और उससे पनपने वाली अस्थिरता व भय का प्रमाण है।

चंगेज़ खान का जीवन और विजय

चंगेज़ खान का जन्म लगभग 1162 ईस्वी में आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनान नदी के निकट हुआ था। उसका प्रारंभिक नाम तेमुजिन था। उसके पिता येसूजेई कियात कबीले के मुखिया थे, जो बोर्जिगिद कुल से संबंधित था। कम उम्र में उसके पिता की हत्या हो गई थी। 1170 के दशक विपत्तियों से भरे थे - तेमुजिन का अपहरण कर उसे गुलाम बना लिया गया, उसकी पत्नी बोर्ते का अपहरण हो गया, और उसे उसे छुड़ाने के लिए लड़ना पड़ा। इन वर्षों में भी उसने कई मित्र बनाए (बोग़ुर्चू, जमुका) और पिता के पुराने संबंधों को पुनः स्थापित किया (ओंग खान)।

1206 ईस्वी में कुरिल्ताई से मान्यता मिलने से पहले, चंगेज़ खान ने मंगोल लोगों को एक शक्तिशाली अनुशासित सैन्य शक्ति के रूप में पुनर्गठित कर लिया था। उसकी पहली मंशा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी। उसने शी शिआ (1209), चीन की महान दीवार (1213) और पेकिंग (1215) पर विजय प्राप्त की।

1218 में क़रा खिता की पराजय के बाद, मंगोल साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख्वारज़्म राज्यों तक फैल गया। ख्वारज़्म के सुल्तान मुहम्मद ने मंगोल दूतों का वध करके चंगेज़ खान का कोप मोल लिया। 1219-1221 के अभियानों में ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बाल्ख, गुरगंज, मर्व, नीशापुर और हेरात जैसे बड़े शहरों ने समर्पण कर दिया। जिन शहरों ने प्रतिरोध किया, उनका विध्वंस कर दिया गया। नीशापुर में एक मंगोल राजकुमार की हत्या के बदले चंगेज़ खान ने पूरे शहर को नष्ट करने और बिल्ली-कुत्तों तक को जीवित न छोड़ने का आदेश दिया।

मंगोल सेनाएँ सुल्तान मुहम्मद का पीछा करते हुए अज़रबैजान तक गईं और क्रीमिया में रूसी सेनाओं को हराकर कैस्पियन सागर को घेर लिया। एक अन्य टुकड़ी ने सुल्तान के बेटे जलालूद्दीन का पीछा अफगानिस्तान और सिंध प्रदेश तक किया। सिंध नदी के तट पर, असह्य गर्मी और अपशकुन के कारण चंगेज़ खान ने उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया लौटने का विचार छोड़ दिया।

चंगेज़ खान का अधिकांश जीवन युद्धों में बीता और 1227 में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी सैन्य उपलब्धियाँ विस्मयकारी थीं। इसका कारण स्टेप्स की युद्ध शैली में आवश्यकतानुसार परिवर्तन और सुधार करना था। मंगोलों और तुर्कों के घुड़सवारी कौशल ने उसकी सेना को गति दी। शिकार से प्राप्त घुड़सवारी और तीरंदाज़ी कौशल ने उनकी सैन्य गति को बहुत तेज़ कर दिया। वे कठोर शीत ऋतु में भी अभियान करते थे और जमी हुई नदियों का राजमार्गों की तरह उपयोग करते थे। यायावर किलेबंद शिविरों में घुसने में सक्षम नहीं थे, लेकिन चंगेज़ खान ने घेराबंदी यंत्रों (siege-engine) और नेफ़्था बमबारी का महत्व जल्दी जान लिया। उसके इंजीनियरों ने युद्ध के लिए हल्के चल-उपस्करों (light portable equipment) का निर्माण किया जो घातक थे।

कालक्रम

  • लगभग 1167: तेमुजिन का जन्म
  • 1160 और 70 के दशक: दासता और संघर्ष के वर्ष
  • 1180 और 90 के दशक: संधि संबंधों का काल
  • 1203-27: विस्तार और विजय
  • 1206: तेमुजिन को चंगेज़ खान ('मंगोलों का सार्वभौम शासक') घोषित किया गया
  • 1227: चंगेज़ खान की मृत्यु
  • 1227-41: चंगेज़ खान के बेटे ओगदेई का शासन
  • 1227-60: तीन महान खानों का शासन और मंगोल एकता की स्थापना
  • 1236-42: बाटू (जोची का पुत्र) के अधीन रूस, हंगरी, पोलैंड और ऑस्ट्रिया पर आक्रमण
  • 1258: बगदाद पर अधिकार और अब्बासी खिलाफत का अंत। ईरान में इल-खानी राज्य की स्थापना। जोचिद और इल-खान के मध्य संघर्ष का प्रारंभ
  • 1260: पेकिंग में कुबलाई खान का 'महान खान' के रूप में राज्यारोहण। चंगेज़ खान के उत्तराधिकारियों में संघर्ष। मुगल राज्य अनेक स्वतंत्र भागों में विभक्त - तोलुई, चग़ताई और जोची (ओगदेई का वंश पराजित होकर तोलुइद में मिल गया)। तोलुइद: चीन का युआन वंश और ईरान का इल-खानी राज्य। चग़ताई: उत्तरी-तूरान के स्टेप्स क्षेत्र और तुर्किस्तान में। जोचिद वंश रूसी स्टेप्स क्षेत्र में (जिन्हें गोल्डन होर्डे कहते थे)।
  • 1495-1530: ज़हीरुद्दीन बाबर (तैमूर और चंगेज़ खान का वंशज), फरगना और समरकंद के तैमूरी क्षेत्र का उत्तराधिकारी बना। वहाँ से खदेड़ा गया। काबुल पर कब्ज़ा किया और 1526 में दिल्ली व आगरा पर अधिकार कर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
  • 1500: शिबानी खान (जोची के कनिष्ठ पुत्र शिबान का वंशज) द्वारा तूरान पर अधिकार। तूरान में शिबानी सत्ता को सुदृढ़ किया और इस क्षेत्र से बाबर और तैमूर के वंशजों को खदेड़ दिया।

साम्राज्य का प्रशासन और स्थानबद्ध समाजों के साथ संबंध

चंगेज़ खान ने अपने महासंघ के विभिन्न जातीय समूहों की पहचान को योजनाबद्ध रूप से मिटाने का निश्चय किया। उसने सेना को स्टेप्स की पुरानी दशमलव पद्धति (दस, सौ, हज़ार, दस हज़ार की इकाई) के अनुसार गठित किया। उसने प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नई सैनिक इकाइयों में बांट दिया। किसी को भी अधिकारी की अनुमति के बिना बाहर जाने पर कठोर दंड दिया जाता था। सबसे बड़ी इकाई दस हज़ार सैनिकों (तुमेन) की होती थी जिसमें अनेक कबीलों के लोग शामिल होते थे। इस प्रकार उसने पुरानी सामाजिक व्यवस्था को बदला और विभिन्न वंशों व कुलों को एकीकृत करके एक नई पहचान दी।

नई सैनिक टुकड़ियों और वफादार अनुयायियों को 'नोयान' कहा जाता था। चंगेज़ खान ने कई वफादारों को 'आंडा' और 'खास नौकर' जैसे पद दिए। इस नई व्यवस्था में पुराने सरदारों के अधिकार सुरक्षित नहीं रहे, बल्कि एक नया अभिजात वर्ग उभरा जिसकी प्रतिष्ठा चंगेज़ खान से उसके करीबी रिश्ते से प्राप्त हुई।

चंगेज़ खान ने विजित लोगों पर शासन का उत्तरदायित्व अपने चार बेटों को सौंपा, जिससे यूलूस का गठन हुआ। उसने चाहा कि उसके बेटे मिलकर साम्राज्य का शासन चलाएँ और हर यूलूस में सैनिक टुकड़ियाँ (तमा) रखीं। परिवार में राज्य की भागीदारी का निर्णय कुरिल्ताई (सरदारों की परिषद) में होता था।

हालांकि, विजित लोगों का अपने नए यायावर शासकों से कोई लगाव नहीं था। 13वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में युद्धों से शहर नष्ट हुए, कृषि भूमि को नुकसान हुआ, व्यापार चौपट हुआ और उत्पादन अव्यवस्थित हुआ। हजारों लोग मारे गए और गुलाम बनाए गए। ईरान के पठार में भूमिगत नहरों (कनात) की मरम्मत न होने से रेगिस्तान फैल गया, जिससे भारी पारिस्थितिक विनाश हुआ।

धीरे-धीरे मंगोल शासकों ने स्थानबद्ध समाजों को समझने का प्रयास किया। 1270 के दशक तक कुबलाई खान (चंगेज़ खान का पोता) किसानों और शहरों के रक्षक के रूप में उभरा। ग़ज़ान खान (चंगेज़ खान के सबसे छोटे बेटे तोलुई का वंशज) ने अपने सेनापतियों को किसानों को न लूटने की चेतावनी दी, क्योंकि इससे राज्य में स्थायित्व और समृद्धि नहीं आती। उसका भाषण स्थानबद्ध समाजों के महत्व को दर्शाता था।

चंगेज़ खान के शासनकाल से ही विजित राज्यों से नागरिक प्रशासकों की भर्ती की गई। इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता था (चीनी सचिव ईरान में, ईरानी सचिव चीन में)। इन्होंने दूरस्थ राज्यों को संगठित करने में मदद की और यायावरों की लूटमार के प्रभाव को कम किया। मंगोल शासकों का इन प्रशासकों पर विश्वास तब तक बना रहता था जब तक वे कर इकट्ठा कर पाते थे। कुछ प्रशासक प्रभावशाली थे और खानों को भी प्रभावित कर पाते थे (जैसे चीनी मंत्री ये-लू चु-त्साइ ने ओगदेई को प्रभावित किया, या जुवैनी परिवार और वज़ीर राशिदुद्दीन ने ईरान में)।

साम्राज्य का पतन और आंतरिक संघर्ष

1260 के दशक के बाद पश्चिम में सैन्य अभियानों की गति धीमी पड़ गई। हालाँकि मंगोलों का यूरोप और मिस्र पर अधिकार रहा, लेकिन हंगरी से पीछे हटना और मिस्र से हार नई राजनीतिक प्रवृत्तियों का संकेत था। इसके दो पहलू थे: उत्तराधिकार को लेकर मंगोल परिवार में आंतरिक राजनीति और तोलुई वंश के उत्तराधिकारियों का चीन में हित बढ़ना। तोलुई वंश ने जोची और ओगदेई वंशों को कमजोर किया। चीन में बढ़ते हित के कारण सैन्य सामग्री मुख्य भागों की ओर भेजी गई, जिससे मिस्र का सामना करने के लिए छोटी सेना भेजी गई और मंगोलों की हार हुई। इससे पश्चिम में विस्तार रुक गया। इसी दौरान रूस और चीन की सीमा पर जोची और तोलुई वंशजों के झगड़ों ने जोचिदों का ध्यान यूरोपीय अभियानों से हटा दिया।

सबसे बड़ी सफलताएँ प्राप्त करने के समय ही शासक परिवार के सदस्यों के मध्य आंतरिक विक्षोभ दिखाई देने लगे। चंगेज़ खान के वंशजों का धीरे-धीरे अलग होकर पृथक वंश समूहों में बँट जाना, परिवार से जुड़ी स्मृतियों और परंपराओं में बदलाव का संकेत था। यह सब आपसी प्रतिस्पर्धा का परिणाम था। तोलुई वंश ने अपने संरक्षण में लिखे इतिहासों में इन पारिवारिक मतभेदों को कुशलता से प्रस्तुत किया।

यासा का महत्व

तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक मंगोल एक एकीकृत जनसमूह के रूप में उभरे और एक विशाल साम्राज्य बनाया। उन्होंने जटिल शहरी समाजों पर शासन किया। संख्यात्मक रूप से वे अल्पसंख्यक थे। अपनी पहचान बनाए रखने का एकमात्र तरीका पवित्र नियम (यासा) के अधिकार का दावा करना था जो उन्हें पूर्वजों से प्राप्त हुआ था। यासा ने मंगोलों को समान आस्था के आधार पर एकजुट किया।

यासा के बारे में परवर्ती मंगोलों की सोच, चंगेज़ खान की स्मृति से जुड़े उनके तनावपूर्ण संबंधों को उजागर करती है। इल-खानी ईरान में इतिहासों में रक्त रंजित हत्याओं का वर्णन बढ़ा-चढ़ा कर दिया गया। वे चंगेज़ खान की प्रशंसा करते थे, लेकिन साथ ही यह भी कहते थे कि समय बदल गया है और रक्तपात समाप्त हो गया है। वे दिखाना चाहते थे कि वे स्थानबद्ध समाज में अपनी धाक कैसे जमा रहे हैं, जो चंगेज़ खान की वीरता की छवि से अलग थी। अब्दुल्लाह खान (चंगेज़ खान के जोची वंश का दूर का वंशज) ने बुखारा के उसी उत्सव मैदान में छुट्टी की नमाज़ अदा की जहाँ चंगेज़ खान ने निवासियों को पापी कहकर धमकाया था। अब्दुल्लाह खान के इतिहासकार ने इसे 'चंगेज़ खान के यासा के अनुसार' बताया, जो दर्शाता है कि यासा को अलग-अलग समय और संदर्भों में कैसे व्याख्यायित किया गया।

ऐतिहासिक व्याख्या

आज चंगेज़ खान को एक विजेता, शहर विनाशक और हजारों लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है। 13वीं शताब्दी के शहरवासी उन्हें भय और घृणा से देखते थे। लेकिन मंगोलों के लिए वह अब तक का सबसे महान शासक था जिसने उन्हें संगठित किया, कबीलाई लड़ाइयों और चीनी शोषण से मुक्ति दिलाई, समृद्ध बनाया और व्यापार मार्गों को पुनः स्थापित किया। ये विरोधी चित्र केवल परिप्रेक्ष्य के अंतर के कारण नहीं हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि कैसे एक प्रभावशाली दृष्टिकोण दूसरे को पूरी तरह से मिटा देता है।

मंगोल शासन बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु-धार्मिक था। उन्होंने सभी जातियों और धर्मों के लोगों को प्रशासकों और सेना में भर्ती किया। यह उस समय के लिए असामान्य था। इतिहासकार अब उन तरीकों का अध्ययन कर रहे हैं जिनसे मंगोलों ने बाद की शासन प्रणालियों (जैसे भारत में मुगल) के लिए आदर्श प्रस्तुत किए।

साम्राज्य निर्माण की प्रेरणा को पूरी तरह से समझना मुश्किल है। हालाँकि साम्राज्य अलग-अलग वातावरण में बदल गया, लेकिन संस्थापक की प्रेरणा एक शक्तिशाली शक्ति बनी रही। 14वीं शताब्दी के अंत में, तैमूर, जो चंगेज़ खान का वंशज नहीं था, ने राजा घोषित होने में संकोच महसूस किया और खुद को चंगेज़ खानी परिवार के दामाद के रूप में प्रस्तुत किया।

पुस्तक में दिए गए उदाहरणों की चरण-दर-चरण व्याख्या

1. बुखारा विजय पर जुवैनी का वृत्तांत:

  1. चरण 1: 1220 ईस्वी में बुखारा पर मंगोलों ने कब्ज़ा किया।
  2. चरण 2: विजय के बाद, चंगेज़ खान उत्सव मैदान में गया जहाँ शहर के धनी व्यापारी एकत्रित थे।
  3. चरण 3: उसने व्यापारियों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने अनेक पाप किए हैं और धनी लोगों ने सबसे अधिक पाप किए हैं।
  4. चरण 4: उसने खुद को 'ईश्वर का दंड' बताया और कहा कि अगर उन्होंने पाप न किए होते तो ईश्वर उसे दंड हेतु उनके पास न भेजता।
  5. चरण 5: शहर के भाग्य के बारे में पूछे जाने पर, खुरासान भागे एक व्यक्ति ने बताया कि वे (मंगोल) आए, दीवारें ढहा दीं, जला दिया, लोगों का वध किया, लूटा और चले गए।

2. मोंगके का फ्रांसीसी शासक लुई नौवें को चेतावनी पत्र (आदर्शों पर आधारित):

  1. चरण 1: चंगेज़ खान के पोते मोंगके (1251-60) ने फ्रांस के शासक लुई नौवें (1226-70) को पत्र भेजा।
  2. चरण 2: पत्र में चंगेज़ खान के आदर्शों का पालन करते हुए कहा गया कि स्वर्ग में केवल एक शाश्वत आकाश है और पृथ्वी का केवल एक अधिपति, चंगेज़ खान, स्वर्ग पुत्र।
  3. चरण 3: बताया गया कि जब शाश्वत स्वर्ग की शक्ति से संपूर्ण विश्व शांति में रहेगा, तब उनका (मंगोलों का) इरादा स्पष्ट होगा।
  4. चरण 4: चेतावनी दी गई कि यदि लुई शाश्वत स्वर्ग की आज्ञा को नहीं समझता और उस पर विश्वास नहीं करता, यह कहते हुए कि 'हमारा देश दूर है, हमारे पर्वत विशाल हैं और हमारे समुद्र विशाल हैं', और सैन्य बल लेकर आता है, तो मंगोल भी जानते हैं कि वे क्या कर सकते हैं।
  5. चरण 5: कहा गया कि शाश्वत स्वर्ग, जिसने कठिनाई को आसान और सुदूर को निकट लाया है, यह भी जानता है।

3. विजयों के दौरान विनाश का आकलन (जुवैनी और इल-खानी इतिहासों से):

  1. चरण 1: चंगेज़ खान के अभियानों में जिन शहरों ने आत्मसमर्पण नहीं किया, वहाँ बड़ी संख्या में लोगों को मार दिया गया। संख्याएँ चौंकाने वाली बताई गई हैं।
  2. चरण 2: विभिन्न शहरों में मारे गए लोगों की संख्या बताई गई (नीशापुर - 17,47,000; हेरात - 16,00,000; बगदाद - 8,00,000; नासा - 70,000; बैहाक़ - 70,000; तून - 12,000)।
  3. चरण 3: मध्यकालीन इतिहासकारों ने ये संख्याएँ कैसे आँकी? जुवैनी (इल-खानों के फ़ारसी इतिहासकार) ने मर्व में 13,00,000 लोगों का वध बताया।
  4. चरण 4: जुवैनी ने यह संख्या इस प्रकार आँकी कि तेरह दिन तक प्रतिदिन 1,00,000 शव गिने जाते थे।
  5. चरण 5: इल-खानी इतिहासों में भी बगदाद विजय पर बड़ी संख्या बताई गई (राशिद अल-दीन के वृत्तांत में दिया गया लघुचित्र)। हालांकि, इल-खानी वृत्तांत अक्सर संख्याएं बहुत बढ़ा-चढ़ा कर देते थे, जैसे बुखारा के किले के आक्रमण में 30,000 सैनिक मारे गए बताया, जबकि एक प्रत्यक्षदर्शी ने 400 रक्षक बताए थे।

4. ग़ज़ान खान का भाषण (किसानों की रक्षा पर):

  1. चरण 1: ग़ज़ान खान (1295-1304), पहला इल-खानी शासक जिसने इस्लाम अपनाया, ने अपने मंगोल-तुर्की यायावर सेनापतियों को संबोधित किया। यह भाषण संभवतः उसके ईरानी वज़ीर राशिदुद्दीन ने लिखा था।
  2. चरण 2: ग़ज़ान खान ने कहा कि वह फ़ारसी कृषक वर्ग के पक्ष में नहीं बोल रहा है। यदि उन्हें लूटने का कोई उद्देश्य है, तो वह भी इसमें शामिल हो सकता है।
  3. चरण 3: लेकिन यदि वे भविष्य में भोजन के लिए अनाज इकट्ठा करना चाहते हैं, तो उसे उनके साथ कठोर होना पड़ेगा और उन्हें तर्क व बुद्धि से काम लेना सिखाना पड़ेगा।
  4. चरण 4: उसने चेतावनी दी कि यदि वे किसानों का अपमान करेंगे, उनसे उनके बैल व बीज छीनेंगे और फ़सलों को कुचलेंगे, तो भविष्य में वे क्या करेंगे?।
  5. चरण 5: कहा गया कि एक आज्ञाकारी और एक विद्रोही कृषक वर्ग में अंतर समझना आवश्यक है।

5. विलियम ऑफ़ रुब्रुक का कुरिल्ताई दरबार का वृत्तांत (पॉक्स मंगोलिका का चरित्र):

  1. चरण 1: फ्रांसीसी भिक्षु विलियम ऑफ़ रुब्रुक को फ्रांस के सम्राट लुई IX ने 1254 में महान खान मोंगके के दरबार, कराकोरम, में राजदूत बनाकर भेजा।
  2. चरण 2: कराकोरम में वह हंगरी से लाई गई एक फ्रांसीसी महिला पक्वेट और एक फ़ारसी जौहरी गिलाउम बूशेर (जिसका भाई पेरिस में रहता था) के संपर्क में आया। यह महिला नेस्टोरियन ईसाई थी और राजकुमार की पत्नी की सेवा में थी।
  3. चरण 3: विलियम ने देखा कि विशाल दरबारी उत्सवों में सबसे पहले नेस्टोरियन पुजारियों को उनके चिह्नों के साथ और इसके बाद मुसलमान, बौद्ध और ताओ पुजारियों को महान खान को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जाता था।
  4. चरण 4: यह वृत्तांत मंगोल दरबार में मौजूद विविधता (विभिन्न राष्ट्रीयताओं और पृष्ठभूमियों के लोग) और धार्मिक सहिष्णुता या बहुलवाद को दर्शाता है, जो पॉक्स मंगोलिका के चरित्र को उजागर करता है।

अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर

1. मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्वपूर्ण था?

मंगोलों के लिए व्यापार इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि वे मध्य एशिया के स्टेप्स क्षेत्र में रहते थे जहाँ संसाधन सीमित थे। उनकी पशुपालक और शिकारी-संग्राहक अर्थव्यवस्थाएं घनी आबादी का समर्थन नहीं कर सकती थीं और कृषि भी सीमित थी। अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए उन्हें अपने पड़ोसी स्थानबद्ध समाजों, विशेष रूप से चीन के साथ व्यापार और वस्तु विनिमय करना पड़ता था। वे चीन से कृषि उत्पाद और लोहे के उपकरण प्राप्त करते थे, जिनके बदले में वे घोड़े, फर और स्टेप्स में पकड़े गए शिकार देते थे। यह व्यापार दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद था। व्यापार उन्हें आवश्यक वस्तुएं प्राप्त करने का एक तरीका प्रदान करता था और उनके जीवन का एक अभिन्न अंग था, भले ही इसमें अक्सर तनाव और संघर्ष शामिल होता था।

2. चंगेज़ खान ने यह क्यों अनुभव किया कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता है?

चंगेज़ खान ने मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता इसलिए महसूस की क्योंकि वह अपने महासंघ के सदस्य विभिन्न जनजातीय समूहों की पहचान को योजनाबद्ध तरीके से मिटाना चाहता था। पुरानी व्यवस्था में कुल (वंश), कबीले और सैनिक दशमलव इकाइयाँ एक साथ मौजूद थीं। चंगेज़ खान ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। उसने प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नई सैनिक इकाइयों (दस, सौ, हज़ार, दस हज़ार के समूह) में बांट दिया। इससे कबीलाई निष्ठाएँ कमजोर हुईं और एक केंद्रीकृत सैन्य व सामाजिक व्यवस्था का निर्माण हुआ जो व्यक्तिगत कबीलाई पहचान के बजाय मंगोलों की एक नई एकीकृत पहचान पर आधारित थी। इस पुनर्गठन ने उसकी भविष्य की सैन्य अभियानों की सफलता तय की और एक अनुशासित सेना का निर्माण किया।

3. यासा के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिंतन किस तरह चंगेज़ खान की स्मृति के साथ जुड़े हुए उनके तनावपूर्ण संबंधों को उजागर करता है?

यासा के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिंतन चंगेज़ खान की स्मृति के साथ जुड़े उनके तनावपूर्ण संबंधों को उजागर करता है क्योंकि चंगेज़ खान के वंशज धीरे-धीरे अलग होकर पृथक वंश समूहों में बंट गए, जिससे उनकी पिछली पारिवारिक स्मृतियों और परंपराओं के साथ तालमेल में बदलाव आया। यह विशेष रूप से तोलुई वंश द्वारा अपने संरक्षण में प्रस्तुत इतिहासों में देखा गया, जहाँ उन्होंने अपने पारिवारिक मतभेदों को प्रस्तुत किया और मौजूदा शासकों के गुणों को पिछले शासकों, यहाँ तक कि चंगेज़ खान की तुलना में अधिक लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया। इल-खानी ईरान में 13वीं शताब्दी के अंत में फ़ारसी इतिहासों में महान खानों द्वारा की गई हत्याओं का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया, जबकि यह भी कहा गया कि समय बदल गया है और ऐसा रक्तपात समाप्त हो गया है। यह एक तरीका था जिससे परवर्ती शासकों ने खुद को चंगेज़ खान के हिंसक विजयों से अलग दिखाया और स्थानबद्ध समाज पर शासन करने की अपनी बदलती भूमिका को उचित ठहराया, क्योंकि उस बदले हुए समय में वे चंगेज़ खान जैसी वीरता की छवि प्रस्तुत नहीं कर सकते थे। बुखारा में अब्दुल्लाह खान द्वारा यासा को मुस्लिम धार्मिक अनुपालन से जोड़ना भी दर्शाता है कि कैसे यासा की व्याख्या और उपयोग बदल गया, जो मूल चंगेज़ खान द्वारा उसी स्थान पर किए गए कार्यों से बिल्कुल भिन्न था।

4. यदि इतिहास शहरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है तो यायावर समाजों के बारे में हमेशा प्रतिकूल विचार ही रखे जाएँगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्या आप इसका कारण बताएँगे कि फ़ारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा-चढ़ाकर संख्या क्यों बताई है?

हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि यदि इतिहास मुख्य रूप से शहरी साहित्यकारों के विवरणों पर निर्भर करता है, तो यायावर समाजों के बारे में अक्सर प्रतिकूल विचार ही रखे जाएँगे। इसका कारण यह है कि यायावर समाजों का ज्ञान मुख्य रूप से इतिवृत्तों, यात्रा वृत्तांतों और शहरी साहित्यकारों के दस्तावेजों से प्राप्त होता है। शहरी लेखक अक्सर यायावरों के जीवन के बारे में अनभिज्ञ और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होते थे। वे यायावरों को 'स्टेप्स के लुटेरे' या 'आदिम-बर्बर' के रूप में देखते थे। 13वीं शताब्दी के चीन, ईरान और पूर्वी यूरोप के शहरवासी इन 'स्टेप्स के गिरोहों' को भय और घृणा की दृष्टि से देखते थे। इसलिए, जब वे यायावरों के बारे में लिखते हैं, तो यह संभावना है कि उनके विचारों में नकारात्मकता और पक्षपात होगा।

फ़ारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की संख्या इतनी बढ़ा-चढ़ाकर इसलिए बताई हो सकती है क्योंकि:

  • वे मंगोल विजयों के विनाशकारी प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाना चाहते थे।
  • यह भय और आघात की स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो सकती है, जहाँ लोग वास्तविक संख्या से अधिक संख्या का अनुमान लगाते हैं।
  • इल-खानी काल के फ़ारसी इतिवृत्तकारों (जैसे जुवैनी) द्वारा लिखित वृत्तांतों में संख्याएँ बढ़ाने का एक कारण राजनीतिक भी हो सकता है। वे अपने मंगोल संरक्षकों की शक्ति और विनाशकारी क्षमता को दर्शाना चाहते थे। बाद में, विशेष रूप से तोलुई वंश के संरक्षण में लिखे गए इतिहासों में, बढ़ी हुई संख्याएँ पिछले शासकों की हिंसा को उजागर करके मौजूदा शासकों की अपेक्षाकृत अधिक स्थिर और कम हिंसक नीतियों (किसानों की रक्षा आदि) को बेहतर दिखाने का प्रयास हो सकता है। यह शासक परिवार के भीतर आंतरिक प्रतिस्पर्धा और वैधता स्थापित करने के प्रयास का हिस्सा हो सकता है। जैसा कि स्रोत कहता है, वास्तविक संख्याएँ अतिशयोक्तिपूर्ण तथ्यों के जाल में खो गई हैं।

5. मंगोल और बेडौइन समाज की यायावरी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, यह बताइए कि आपके विचार में किस तरह उनके ऐतिहासिक अनुभव एक दूसरे से भिन्न थे? इन भिन्नताओं से जुड़े कारणों को समझाने के लिए आप क्या स्पष्टीकरण देंगे?

मंगोल और बेडौइन दोनों यायावर समाज थे जिन्होंने साम्राज्य निर्माण का प्रयास किया। हालांकि, उपलब्ध जानकारी के आधार पर उनके ऐतिहासिक अनुभव कई मायनों में भिन्न थे:

  • पर्यावरण और अर्थव्यवस्था: मंगोल मध्य एशिया के स्टेप्स में रहते थे जिनकी अपनी विशिष्ट भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियाँ थीं। उनकी अर्थव्यवस्था पशुपालन (घोड़े, भेड़, आदि) और सीमित शिकार-संग्रह पर आधारित थी। बेडौइन अरब प्रायद्वीप के रेगिस्तानी या अर्ध-रेगिस्तानी क्षेत्रों से जुड़े थे।
  • पड़ोसी सभ्यताएँ: मंगोलों का सामना चीन और फारस जैसी विशाल, पुरानी और जटिल कृषि-आधारित तथा शहरी सभ्यताओं से हुआ। इन सभ्यताओं के साथ उनके संबंध व्यापार, लूटपाट और संघर्ष से बने थे। उन्होंने इन सभ्यताओं से प्रशासनिक और सैन्य तकनीकों को भी सीखा और अपनाया। बेडौइन समाजों के पड़ोसियों और उनसे संबंधों की प्रकृति शायद अलग रही होगी।
  • साम्राज्य का पैमाना और विविधता: चंगेज़ खान के नेतृत्व में मंगोलों ने एक अभूतपूर्व पैमाने का पारमहाद्वीपीय साम्राज्य बनाया जो यूरोप और एशिया के विशाल क्षेत्रों (चीन, फारस, रूस, पूर्वी यूरोप) तक फैला था। इस साम्राज्य में अत्यंत विविध जाति, भाषा, अर्थव्यवस्था और धर्म के लोग शामिल थे। यह बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु-धार्मिक शासन उस समय के लिए असामान्य था।
  • सैन्य और प्रशासनिक नवाचार: चंगेज़ खान ने मंगोल कबीलों का एकीकरण किया, उनकी पहचान मिटाकर एक नई एकीकृत पहचान और दशमलव पर आधारित अनुशासित सैन्य प्रणाली बनाई। उन्होंने घेराबंदी तकनीकों को अपनाया। उन्होंने विजित समाजों से प्रशासकों को भर्ती किया। यासा जैसी विधि संहिता ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • ऐतिहासिक स्रोत और व्याख्या: मंगोलों के बारे में जानकारी मुख्य रूप से शहरी लेखकों से आती है, जिसमें पूर्वाग्रह शामिल हैं, लेकिन साथ ही यात्री वृत्तांत और बाद के स्वदेशी इतिहास भी हैं। मंगोलों के इतिहास की व्याख्या में विरोधाभासी दृष्टिकोण शामिल हैं।
इन भिन्नताओं के कारणों को समझाने के लिए स्पष्टीकरण में शामिल हो सकते हैं:
  • भौगोलिक और पारिस्थितिक कारक: विभिन्न क्षेत्रों (स्टेप्स बनाम रेगिस्तान) की अलग-अलग परिस्थितियाँ समाजों के संगठन, आजीविका और पड़ोसी संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।
  • ऐतिहासिक संपर्क: मंगोलों का शक्तिशाली और संगठित कृषि साम्राज्यों (चीन, फारस) के निकट होना उनके सैन्य, प्रशासनिक और सांस्कृतिक विकास पर गहरा प्रभाव डाल सकता था।
  • नेतृत्व और संगठन: चंगेज़ खान जैसे असाधारण नेता का उदय और उसका विशिष्ट संगठनात्मक दृष्टिकोण मंगोल साम्राज्य की सफलता और प्रकृति के लिए निर्णायक था।

6. तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित 'पैक्स मंगोलिका' का निम्नलिखित विवरण उसके चरित्र को किस तरह उजागर करता है?

विलियम ऑफ़ रुब्रुक का कराकोरम स्थित मोंगके के दरबार का वृत्तांत तेरहवीं शताब्दी के मध्य में 'पैक्स मंगोलिका' (मंगोल शांति) के चरित्र को कई तरह से उजागर करता है:

  • व्यापक संपर्क और गतिशीलता: वृत्तांत दर्शाता है कि मंगोल साम्राज्य के केंद्र (कराकोरम) में दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग आते थे और रहते थे। फ्रांसीसी भिक्षु, हंगरी से लाई गई फ्रांसीसी महिला, और फ़ारसी जौहरी - ये सब साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों और उससे बाहर के क्षेत्रों के बीच लोगों और विचारों के आवागमन को दर्शाते हैं। यह 'पैक्स मंगोलिका' की विशेषता थी जिसने व्यापार, यात्रा और संचार को सुरक्षित और सुगम बनाया था।
  • सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता: दरबार में नेस्टोरियन, मुस्लिम, बौद्ध और ताओ पुजारियों को महान खान को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करना मंगोल शासकों द्वारा विभिन्न धर्मों और विश्वासों के प्रति सहनशीलता या बहुलवाद को दर्शाता है। यह इंगित करता है कि साम्राज्य में विविध धार्मिक समुदायों को समायोजित किया गया था।
  • विदेशी प्रतिभा का उपयोग: मंगोल शासकों द्वारा विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को अपनी सेवा में रखना दर्शाता है कि वे साम्राज्य के प्रशासन और संचालन के लिए बाहरी प्रतिभाओं का उपयोग करते थे।
संक्षेप में, विलियम ऑफ़ रुब्रुक का वृत्तांत कराकोरम को एक cosmopolitan केंद्र के रूप में प्रस्तुत करता है जो मंगोल साम्राज्य की व्यापक पहुँच, इसमें शामिल लोगों की विविधता और शासकों की धार्मिक नीति को दर्शाता है, जो 'पैक्स मंगोलिका' की शांति और व्यवस्था की अवधि के दौरान सांस्कृतिक आदान-प्रदान और यात्रा को संभव बनाता था।

अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न

  1. मंगोलों द्वारा विजित स्थानबद्ध समाजों पर शासन करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या थीं, और उन्होंने इन चुनौतियों का सामना कैसे किया?
  2. चंगेज़ खान की मृत्यु के बाद मंगोल साम्राज्य का विघटन किन कारणों से हुआ? आंतरिक पारिवारिक संघर्षों ने इसमें क्या भूमिका निभाई?
  3. चंगेज़ खान की सैन्य सफलता के पीछे कौन से कारक थे? उनकी सैन्य रणनीति में कौन से विशिष्ट तत्व शामिल थे?
  4. मंगोल इतिहास के स्रोतों की प्रकृति मंगोलों के बारे में हमारी समझ को कैसे प्रभावित करती है? शहरी लेखकों के पूर्वाग्रह को दूर करने के लिए इतिहासकारों को क्या करना पड़ता है?
  5. 'पैक्स मंगोलिका' की अवधि में मंगोल साम्राज्य में यात्रा और संचार कैसे सुगम बनाया गया था? पैज़ा/गेरेगे और बाज़ कर की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  6. ग़ज़ान खान के भाषण के आधार पर, मंगोल शासकों के स्थानबद्ध कृषक समाजों के प्रति दृष्टिकोण में आए बदलाव की व्याख्या कीजिए। इस बदलाव के क्या कारण हो सकते थे?

बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश

  • मंगोल मध्य एशिया के यायावर थे जिन्होंने 13वीं-14वीं शताब्दी में चंगेज़ खान के नेतृत्व में विशाल साम्राज्य बनाया।
  • उनका समाज पशुपालन और शिकार पर आधारित था, जो कबीलों व वंशों में बंटा था।
  • उन्होंने चीन जैसे स्थानबद्ध समाजों से व्यापार और संघर्ष किया, जिसने 'महान दीवार' जैसे सुरक्षात्मक निर्माण को जन्म दिया।
  • चंगेज़ खान ने मंगोलों को एकीकृत कर एक अनुशासित दशमलव सैन्य प्रणाली बनाई और कबीलाई पहचानों को मिटाया।
  • उसने चीन, मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप के विशाल क्षेत्रों को जीता, जो विनाशकारी थे लेकिन सैन्य रूप से सफल रहे।
  • साम्राज्य को बेटों में यूलूस के रूप में बांटा गया; कुरिल्ताई सामूहिक निर्णय लेती थी।
  • प्रारंभिक विजयों में शहरों का विनाश और लोगों का नरसंहार हुआ।
  • धीरे-धीरे, मंगोल शासकों ने स्थानबद्ध समाजों के प्रशासन और संरक्षण पर ध्यान दिया, प्रशासकों की भर्ती की और किसानों को न लूटने की नीति अपनाई।
  • साम्राज्य बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु-धार्मिक था, जो उस समय के लिए असामान्य था।
  • यासा नामक विधि संहिता ने मंगोलों को एकजुट किया और बाद में इसे चंगेज़ खान से जोड़ा गया, हालांकि इसकी व्याख्या समय के साथ बदल गई।
  • आंतरिक संघर्षों और विभिन्न वंशों के क्षेत्रीय हितों ने साम्राज्य की एकता और विस्तार को प्रभावित किया।
  • मंगोलों के इतिहास के स्रोत (मुख्य रूप से शहरी लेखकों के) अक्सर पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होते हैं।
  • चंगेज़ खान की विरासत विरोधाभासी है (विनाशक बनाम मंगोलों का महान नेता)।

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ये नोट्स आपको अध्याय को समझने और परीक्षा की तैयारी करने में मदद करेंगे। भाषा को सरल रखने का प्रयास किया गया है ताकि आत्म-अध्ययन में आसानी हो। शुभकामनाएं!

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