आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' (Class 10 Hindi Chapter 4) के इस विस्तृत ब्लॉग में आपका स्वागत है। यहाँ आपको इस अध्याय के संपूर्ण आत्म-अध्ययन नोट्स, सारांश, और सभी प्रश्न उत्तर (Q&A) मिलेंगे। यह निबंध एक सरल प्रश्न के माध्यम से मानव सभ्यता के विकास, मनुष्यता और पशुता के बीच के द्वंद्व, और आत्म-बंधन के महत्व पर गहरा चिंतन करता है, जो परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या
इस निबंध में लेखक कई महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालते हैं:
नाखूनों का बढ़ना और मनुष्य की बर्बरता (पशुता) का प्रतीक
लेखक बताते हैं कि नाखून का बढ़ना मनुष्य की सहज पशुवृत्ति का प्रतीक है। प्राचीन काल में नाखून ही मनुष्य के अस्त्र-शस्त्र थे। आज जब मनुष्य नाखूनों को काट देता है, तो यह उसकी पशुता से मुक्ति और सभ्यता की ओर बढ़ने का संकेत है। नाखून का बार-बार बढ़ना हमें याद दिलाता है कि हमारे भीतर आज भी पशुत्व के अवशेष मौजूद हैं।
हथियारों का विकास और सभ्यता का क्रम
मनुष्य ने अपनी जीवन-रक्षा के लिए नाखूनों का उपयोग करना शुरू किया। फिर उसने हड्डियों के हथियार बनाए, लोहे के अस्त्र और अंततः धातुओं के हथियार बनाए। यह विकास मनुष्य की प्रगति और बुद्धि के प्रयोग को दर्शाता है, जो उसे पशुओं से अलग करता है।
आत्म-बंधन ही मनुष्यता है
लेखक इस बात पर जोर देते हैं कि मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता उसका आत्म-बंधन है। अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना, दूसरों के सुख-दुख के प्रति संवेदनशीलता रखना और अहिंसा का पालन करना ही मनुष्यता है। पशु की प्रवृत्ति है, हर वस्तु को अपनी शक्ति से छीन लेना, जबकि मनुष्य त्याग और प्रेम से मिलता है।
'स्वतंत्रता' और 'चरितार्थता' की अवधारणा
लेखक 'स्वतंत्रता' शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि यह केवल बाहरी आज़ादी नहीं, बल्कि भीतर की 'स्व' (मनुष्य की आत्मिक शक्ति) की पहचान है। मनुष्य की चरितार्थता (सार्थकता) प्रेम, मैत्री, त्याग और अपने को सबके मंगल के लिए विशेष भाव से देने में है। केवल सफलता (भौतिक उपलब्धियाँ) चरितार्थता नहीं है।
महात्मा गांधी का अहिंसा का संदेश
लेखक महात्मा गांधी के 'अहिंसा' के संदेश का उल्लेख करते हैं, जो मनुष्य को अपनी पशुता (जैसे नाखूनों को बढ़ाना) से ऊपर उठने और प्रेम, त्याग व दूसरों के प्रति संवेदनशीलता अपनाने का मार्ग दिखाता है।
बच्चों के सहज प्रश्न और बड़ों का चिंतन
निबंध की शुरुआत बच्चों के इस सहज प्रश्न से होती है कि नाखून क्यों बढ़ते हैं। लेखक इस प्रश्न को एक गहरे दार्शनिक चिंतन का आधार बनाते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बच्चों के सरल प्रश्न भी गंभीर ज्ञान की ओर ले जा सकते हैं।
2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या
यहां अध्याय में प्रयुक्त कुछ प्रमुख शब्दों और संकल्पनाओं की व्याख्या दी गई है:
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बर्बरता (पशुता):
मनुष्य की आदिम, जंगली प्रवृत्तियाँ जो आत्म-नियंत्रण और नैतिकता से रहित होती हैं। नाखून का बढ़ना इसका प्रतीक है।
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मनुष्यता:
मानव का वह गुण जिसमें वह अपनी सहज पशुवृत्तियों (जैसे नाखून बढ़ाना) को नियंत्रित कर अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाता है, दूसरों के प्रति प्रेम, सहानुभूति, त्याग और अहिंसा का भाव रखता है।
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आत्म-बंधन:
स्वयं पर नियंत्रण रखना, अपनी इच्छाओं को स्वेच्छा से सीमित करना। लेखक के अनुसार यही मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है।
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स्वतंत्रता:
लेखक के अनुसार, यह केवल बाहरी आजादी नहीं, बल्कि भीतर की 'स्व' की पहचान और अपनी आत्मा के अनुसार जीने का सामर्थ्य है।
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चरितार्थता:
जीवन की सार्थकता या पूर्णता। लेखक के अनुसार, यह केवल भौतिक सफलता नहीं, बल्कि प्रेम, मैत्री, त्याग और परोपकार में निहित है।
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दंते थे:
दांत ही हथियार थे।
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प्रतिस्पर्धी:
प्रतिद्वंद्वी, मुकाबला करने वाला।
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निर्जीव अपराधी:
निर्जीव वस्तु जो अपराधी जैसी हो।
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वनमानुष:
आदिकाल का मनुष्य, बंदर जैसा।
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अजेय:
जिसे जीता न जा सके।
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वज्र:
इंद्र का अस्त्र, जो दधीचि मुनि की हड्डियों से बना था।
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अनुलंबिता:
पीछे-पीछे चलना, आज्ञाकारिता।
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अनायास:
बिना प्रयत्न के, सहसा।
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आत्मतोष:
अपने को संतुष्ट करना।
3. पुस्तक में दिए गए उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए
यह अध्याय सीधे 'उदाहरणों' के बजाय तर्कों, उपमाओं और ऐतिहासिक संदर्भों का उपयोग करता है। हम यहाँ लेखक द्वारा प्रस्तुत प्रमुख युक्तियों और उपमाओं को समझेंगे:
नाखूनों का बढ़ना - बर्बरता का प्रमाण
- लेखक बच्चे के प्रश्न से शुरू करते हैं कि नाखून क्यों बढ़ते हैं।
- वे बताते हैं कि नाखून मनुष्य के भीतर की आदिम, जंगली प्रवृत्ति के अवशेष हैं। जब मनुष्य जंगल में रहता था, तो नाखून उसके हथियार थे।
- आज भी नाखून का बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य अपनी पशुता को पूरी तरह त्याग नहीं पाया है, वह बार-बार अपनी पुरानी प्रवृत्ति की ओर लौटता है। नाखूनों को काटना मनुष्य का अपनी पशुता से मुक्ति का प्रयास है।
प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों का विकास
- लेखक बताते हैं कि हजारों साल पहले, मनुष्य नाखूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता था।
- फिर उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके हड्डियों के हथियार बनाए (जैसे वज्र, जो दधीचि मुनि की हड्डियों से बना था)।
- अंततः, उसने लोहे और धातुओं के हथियार बनाए।
निष्कर्ष: यह विकास मनुष्य की बौद्धिक प्रगति और स्वयं को सुरक्षित रखने की उसकी क्षमता को दर्शाता है, जिससे वह पशुओं से अलग हो जाता है। यह मनुष्य की सभ्यता की यात्रा का प्रतीक है।
'बंदरिया' का उदाहरण और मनुष्य का आदर्श
- लेखक एक प्रश्न उठाते हैं कि क्या बंदरिया मनुष्य का आदर्श बन सकती है?
- बंदरिया अपने बच्चे को हमेशा पकड़े रहती है, जबकि मनुष्य अपने बच्चों को ममता के साथ स्वतंत्रता भी देता है।
निष्कर्ष: यह उदाहरण बताता है कि मनुष्य का आदर्श अपनी सहज प्रवृत्तियों (पशुता) का दास होना नहीं है, बल्कि अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना, दूसरों के प्रति प्रेम और त्याग का भाव रखना है। मनुष्य वह है जो स्वयं को बांधता है, न कि वह जो केवल अपनी सहज वृत्तियों का पालन करता है।
सफलता बनाम चरितार्थता
- लेखक बताते हैं कि 'सफलता' का अर्थ भौतिक उपलब्धियाँ या वस्तुओं का संचय हो सकता है।
- लेकिन 'चरितार्थता' का अर्थ है प्रेम, मैत्री, त्याग और अपने को सबके मंगल के लिए समर्पित करना।
निष्कर्ष: यह उदाहरण समझाता है कि मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य केवल सफल होना नहीं, बल्कि सार्थक जीवन जीना है, जिसमें वह अपनी पशुता (स्वार्थ) का त्याग कर दूसरों के हित में कार्य करे।
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर
1. नाखून क्यों बढ़ते हैं? यह प्रश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ?
उत्तर: नाखून का बढ़ना मनुष्य की सहज पाशविक वृत्ति का प्रतीक है। लेखक के बच्चे ने उनसे यह प्रश्न पूछा था, जिससे लेखक को मानव सभ्यता के विकास और मनुष्य की आदिम प्रवृत्तियों पर सोचने की प्रेरणा मिली।
2. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?
उत्तर: लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना पूर्णतः संगत है। प्राचीन काल में जब मनुष्य असभ्य और जंगली था, तब वह अपनी रक्षा और भोजन के लिए अपने नाखूनों और दाँतों का ही प्रयोग करता था। नाखून तब उसके प्राथमिक हथियार थे, जैसे आज भी पशुओं के होते हैं। यह मानव सभ्यता के विकास की प्रारंभिक अवस्था को दर्शाता है।
3. मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?
उत्तर: मनुष्य बार-बार नाखूनों को इसलिए काटता है क्योंकि वह अपनी पशुता (बर्बरता) को छोड़ना चाहता है। नाखून उसकी आदिम, जंगली प्रवृत्ति का प्रतीक हैं। उन्हें काटकर मनुष्य अपनी सभ्यता और मनुष्यता को स्थापित करना चाहता है। यह स्वयं पर नियंत्रण और सांस्कृतिक उन्नयन का प्रतीक है।
4. सुकुमार विनोदों के लिए नाखून का उपयोग में लाना मानव ने कब शुरू किया? लेखक इस संबंध में क्या बताता है?
उत्तर: लेखक के अनुसार, सुकुमार विनोदों (नाखूनों को विभिन्न आकृतियों में सजाना) के लिए नाखूनों का उपयोग दो हजार वर्ष पूर्व से शुरू हुआ। वात्स्यायन के 'कामसूत्र' में नाखूनों को कलात्मक रूप से काटने का वर्णन मिलता है, जैसे त्रिकोण \(\triangle\), वर्तुलाकार \(\bigcirc\), चंद्रकार \(\large{\unicode{x263D}}\) आदि। यह मनुष्य के सौंदर्य बोध और कलात्मकता के विकास को दर्शाता है।
5. नाखून बढ़ाना और उन्हें काटना मनुष्य की सहज वृत्तियाँ हैं? इनका क्या अभिप्राय है?
उत्तर: हाँ, नाखून बढ़ाना मनुष्य की सहज पाशविक वृत्ति है, जो उसके भीतर निहित जंगली स्वभाव का द्योतक है। वहीं, नाखूनों को काटना मनुष्य की आत्म-नियंत्रित और सांस्कृतिक वृत्ति है, जिसका अभिप्राय अपनी पशुता को त्यागकर मनुष्यता और सभ्यता की ओर बढ़ना है। यह मनुष्य के भीतर चल रहे द्वंद्व को दर्शाता है।
6. लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें।
उत्तर: लेखक यह प्रश्न इसलिए पूछता है क्योंकि मनुष्य के भीतर हमेशा पशुता (स्वार्थ, हिंसा) और मनुष्यता (प्रेम, त्याग, अहिंसा) के बीच द्वंद्व चलता रहता है। नाखून का बढ़ना मनुष्य की आदिम पशुता को याद दिलाता है, जबकि उन्हें काटना मनुष्यता की ओर बढ़ने का प्रयास है। लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि मनुष्य को सचेत रूप से अपनी पशुता का त्याग कर मनुष्यता के गुणों को अपनाना चाहिए।
7. देश की आज़ादी के लिए प्रयुक्त किन शब्दों की अर्थ मीमांसा करता है और लेखक के निष्कर्ष क्या हैं?
उत्तर: लेखक 'स्वतंत्रता' और 'अधीधीनता' (पराधीनता) जैसे शब्दों की अर्थ मीमांसा करता है। लेखक का निष्कर्ष है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल बाहरी मुक्ति नहीं है, बल्कि भीतर की 'स्व' (अपनी आत्मा) की पहचान और उस पर आधारित आत्म-बंधन है। 'स्व' का अर्थ अपने स्वभाव में रहना, अपने द्वारा तय किए गए नियमों का पालन करना है।
8. लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर: लेखक ने 'स्वतंत्रता' और 'बंधन' के प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती। बंदरिया अपने बच्चे को हमेशा कसकर पकड़े रहती है, जबकि मनुष्य अपने बच्चों को ममता के साथ-साथ बढ़ने की स्वतंत्रता भी देता है। लेखक का अभिप्राय यह है कि मनुष्य का आदर्श केवल सहज प्रवृत्तियों (पशुता) का पालन करना नहीं है, बल्कि अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना, दूसरों को मुक्त करना और त्याग की भावना रखना है। मनुष्य वह है जो स्वयं को बांधता है, न कि वह जो केवल अपनी इच्छाओं के पीछे भागता है।
9. 'स्वतंत्रता' शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है?
उत्तर: लेखक 'स्वतंत्रता' शब्द की सार्थकता को बाहरी पराधीनता से मुक्ति के साथ-साथ आंतरिक मुक्ति और 'स्व' (अपनी आत्मा) की पहचान में बताता है। उसके अनुसार, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना और अपने विवेक से कार्य करना ही सच्ची स्वतंत्रता है।
10. निबंध में लेखक ने किस बूढ़े का जिक्र किया है? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है?
उत्तर: निबंध में लेखक ने महात्मा गांधी का जिक्र किया है। बूढ़े के कथनों (अहिंसा, प्रेम, त्याग) की सार्थकता यह है कि वे मनुष्य को उसकी आदिम, हिंसक प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर मनुष्यता के आदर्शों को अपनाने का मार्ग दिखाते हैं। उनके अनुसार, स्वयं पर संयम और दूसरों के प्रति प्रेम ही मानव समाज के विकास का आधार है।
11. मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे - प्राणि-शास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है?
उत्तर: प्राणि-शास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में यह आशा जगती है कि मनुष्य अपनी आदिम पशुता (नाखून बढ़ाना) को पूरी तरह से त्याग देगा और पूर्ण मनुष्यता प्राप्त कर लेगा। यह इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य अपनी अनावश्यक वृत्तियों को छोड़कर, अपने आंतरिक गुणों को विकसित कर सकेगा।
12. 'सफलता' और 'चरितार्थता' शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है?
उत्तर: लेखक 'सफलता' को भौतिक प्राप्तियों और संग्रह से जोड़ता है। जैसे कि प्रचुर उपकरण और बाहरी वस्तुओं की बहुलता से प्राप्त की गई वस्तु। इसके विपरीत, 'चरितार्थता' को प्रेम, मैत्री, त्याग और अपने को सबके मंगल के लिए विशेष भाव से देने में मानता है। सफलता भौतिक है, चरितार्थता नैतिक और आध्यात्मिक है।
13. व्याख्या करें -
(क) काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे; निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सैंध पर हाजिर।
उत्तर: यह पंक्ति नाखूनों के बार-बार बढ़ने की प्रवृत्ति को दर्शाती है। लेखक कहते हैं कि नाखून को काटने पर वे थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते हैं, जैसे कोई अपराधी अपनी सज़ा स्वीकार कर ले। लेकिन फिर वे निर्लज्जता से बिना किसी शर्म के वापस बढ़ जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कोई अपराधी अपनी पिछली गलतियों से सीखे बिना फिर से अपराध करने को तैयार हो। यह मनुष्य के भीतर पशुता की सहज, अनियंत्रित प्रवृत्ति को उजागर करता है।
(ख) मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ।
उत्तर: लेखक इसलिए निराश हो जाते हैं क्योंकि नाखून का बढ़ना इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य लाखों वर्ष के विकास के बाद भी अपनी आदिम, पाशविक प्रवृत्तियों को पूरी तरह त्याग नहीं पाया है। बार-बार नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की हिंसा और स्वार्थ की प्रवृत्ति को याद दिलाता है, जिससे लेखक को लगता है कि मनुष्य अभी भी पूरी तरह से अपनी मनुष्यता को प्राप्त नहीं कर पाया है।
(ग) कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़े, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।
उत्तर: यह पंक्ति मनुष्य के संकल्प और उसकी आत्म-नियंत्रण की शक्ति को दर्शाती है। लेखक कहते हैं कि भले ही नाखून (यानी पशुता) स्वाभाविक रूप से बढ़ती रहे, लेकिन मनुष्य अपनी चेतना और विवेक से उसे बढ़ने नहीं देगा, अर्थात अपनी पशुता को नियंत्रित करेगा। यह मनुष्य के अपनी सहज वृत्तियों से ऊपर उठकर श्रेष्ठ मनुष्य बनने के दृढ़ निश्चय का प्रतीक है।
14. लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी विशेषता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी विशेषता आत्म-बंधन है। मनुष्य अपने भीतर की पशुता को पहचानकर अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखता है। यह त्याग, प्रेम, मैत्री और सबके कल्याण के लिए स्वयं को अर्पित करने में है। यह वह प्रवृत्ति है जो मनुष्य को पशुओं से अलग करती है और उसे सच्ची मनुष्यता की ओर ले जाती है।
15. 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर: 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित एक वैचारिक निबंध है, जो नाखून बढ़ने के सामान्य प्रश्न के माध्यम से मानव सभ्यता, संस्कृति और मनुष्यता के विकास पर चिंतन करता है। लेखक बताते हैं कि नाखून का बढ़ना मनुष्य की आदिम, पाशविक वृत्ति का प्रतीक है, क्योंकि प्राचीन काल में नाखून ही मनुष्य के हथियार थे। मनुष्य उन्हें काटता है क्योंकि वह अपनी पशुता को त्यागकर सभ्यता की ओर बढ़ना चाहता है। निबंध इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता उसका आत्म-बंधन (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण) है, न कि उसकी सहज वृत्तियों का पालन। लेखक 'सफलता' (भौतिक उपलब्धि) और 'चरितार्थता' (प्रेम, त्याग, परोपकार) के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मनुष्य की सच्ची सार्थकता दूसरों के कल्याण में है। यह निबंध महात्मा गांधी के अहिंसा के संदेश को भी प्रतिध्वनित करता है, जो मनुष्य को उसकी पशुता से ऊपर उठकर वास्तविक मनुष्यता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित 20 नये अभ्यास प्रश्न
1. लेखक ने मनुष्य को "परेशान होकर सोचने वाला जीव" क्यों कहा है?
उत्तर: लेखक ने मनुष्य को "परेशान होकर सोचने वाला जीव" इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य केवल अपनी सहज वृत्तियों का पालन नहीं करता, बल्कि वह अपने अस्तित्व, अपनी प्रवृत्तियों और अपने विकास पर विचार करता है। वह पशुओं की तरह केवल जीने के लिए नहीं जीता, बल्कि अपनी समस्याओं और आदतों पर चिंतन करता है, जैसे कि नाखून क्यों बढ़ते हैं, यह प्रश्न लेखक को गहरे चिंतन की ओर ले जाता है।
2. पुराने और नए का द्वंद्व निबंध में किस प्रकार प्रकट होता है?
उत्तर: निबंध में पुराने और नए का द्वंद्व कई स्तरों पर प्रकट होता है। 'पुराना' नाखूनों के रूप में मनुष्य की आदिम पशुता और बर्बरता का प्रतीक है, जबकि 'नया' नाखूनों को काटने के रूप में मनुष्य की सभ्यता और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। लेखक कालिदास का भी उदाहरण देते हैं कि "सब पुराने अच्छे नहीं होते, सब नए खराब नहीं होते", जो यह दर्शाता है कि हमें पुराने ज्ञान और नई सोच के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
3. लेखक नाखून के बार-बार बढ़ने को किस रूप में देखता है? क्या यह केवल एक शारीरिक प्रक्रिया है?
उत्तर: लेखक नाखून के बार-बार बढ़ने को केवल एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं देखता, बल्कि इसे मनुष्य के भीतर निहित पाशविक वृत्तियों (बर्बरता) के बार-बार उभरने के रूप में देखता है। यह एक चेतावनी है कि मनुष्य लाखों वर्षों के सांस्कृतिक विकास के बावजूद अपनी आदिम प्रवृत्तियों को पूरी तरह से नहीं छोड़ पाया है। यह मनुष्य और पशु के बीच के अनवरत संघर्ष का प्रतीक है।
4. हड्डियों के हथियार बनाने की प्रक्रिया मनुष्य के बौद्धिक विकास को कैसे दर्शाती है?
उत्तर: हड्डियों के हथियार बनाने की प्रक्रिया मनुष्य के बौद्धिक विकास को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। जब मनुष्य ने केवल नाखूनों पर निर्भर रहने के बजाय अपनी बुद्धि का प्रयोग करके हड्डियों को औजार के रूप में ढालना सीखा, तो यह उसकी आविष्कारशीलता और समस्या-समाधान क्षमता का प्रतीक था। यह उसकी प्रगति और पशुओं से अलग होने का पहला बड़ा कदम था।
5. 'मनुष्य की मनुष्यता' के संदर्भ में लेखक ने किस भारतीय मनीषी के विचारों का उल्लेख किया है?
उत्तर: 'मनुष्य की मनुष्यता' के संदर्भ में लेखक ने महात्मा गांधी के विचारों का उल्लेख किया है। गांधीजी के अनुसार, मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि उसके भीतर की अहिंसा, प्रेम और त्याग का भाव है, न कि हथियार बनाने या अपनी पशुता को बनाए रखने का। मनुष्य की सच्ची मनुष्यता दूसरों के प्रति संवेदना और आत्म-नियंत्रण में है।
6. लेखक 'अधीधीनता' शब्द के माध्यम से क्या समझाना चाहते हैं?
उत्तर: लेखक 'अधीधीनता' शब्द के माध्यम से केवल किसी बाहरी सत्ता द्वारा गुलाम बनाए जाने की स्थिति को ही नहीं समझाना चाहते, बल्कि वे यह भी समझाना चाहते हैं कि मनुष्य अपनी ही सहज प्रवृत्तियों (पशुता) के अधीन हो सकता है। सच्ची स्वतंत्रता तब आती है जब मनुष्य अपनी इन आंतरिक 'अधीधीनताओं' से भी मुक्त हो जाए और अपने 'स्व' के अनुसार कार्य करे।
7. नाखून क्यों बढ़ते हैं, इस प्रश्न के माध्यम से लेखक किन बड़े प्रश्नों को उठाने में सफल रहे हैं?
उत्तर: नाखून क्यों बढ़ते हैं, इस साधारण से प्रश्न के माध्यम से लेखक मानव सभ्यता का विकास, मनुष्य की पाशविक और मानवीय प्रवृत्तियों के बीच का द्वंद्व, सभ्यता का अर्थ, आत्म-बंधन का महत्व, और 'सफलता' व 'चरितार्थता' की अवधारणा जैसे बड़े दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रश्नों को उठाने में सफल रहे हैं।
8. मनुष्य अपनी पशुता का त्याग क्यों करना चाहता है?
उत्तर: मनुष्य अपनी पशुता का त्याग इसलिए करना चाहता है क्योंकि वह अपनी बुद्धि, विवेक और नैतिक चेतना से जानता है कि पशुता हिंसा, स्वार्थ और संघर्ष की ओर ले जाती है। मनुष्यता का मार्ग प्रेम, सहयोग और त्याग का है, जिससे समाज का कल्याण होता है। अपनी पशुता को त्यागकर मनुष्य सभ्य और श्रेष्ठ जीवन की ओर अग्रसर होता है।
9. निबंध के आधार पर मनुष्य की 'सफलता' और 'चरितार्थता' में मूलभूत अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: निबंध के अनुसार, 'सफलता' का संबंध भौतिक उपलब्धियों, बाहरी संपदा और शक्ति के संग्रह से है। यह केवल भौतिक वस्तुओं की प्रचुरता हो सकती है। वहीं, 'चरितार्थता' का संबंध मनुष्य के आंतरिक गुणों से है, जैसे प्रेम, मैत्री, त्याग, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता और अपने को सबके मंगल के लिए समर्पित करना। सफलता बाहरी है, चरितार्थता आंतरिक और नैतिक है।
10. लेखक ने मनुष्य को 'स्वभाव' से 'सभ्य' नहीं कहा है, इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर: लेखक का तात्पर्य है कि मनुष्य जन्म से ही सभ्य नहीं होता। उसकी कुछ प्रवृत्तियाँ (जैसे नाखून बढ़ाना) पशुओं जैसी ही होती हैं। मनुष्य को सभ्य बनने के लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है, अपनी सहज पशुवृत्तियों को नियंत्रित करना पड़ता है और सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना पड़ता है। सभ्यता मनुष्य का अर्जित गुण है, न कि जन्मजात।
11. लेखक ने 'स्व' को जानने पर क्यों बल दिया है?
उत्तर: लेखक ने 'स्व' को जानने पर इसलिए बल दिया है क्योंकि सच्ची स्वतंत्रता और मनुष्यता 'स्व' की पहचान से ही आती है। 'स्व' का अर्थ है अपनी आत्मा, अपना वास्तविक स्वभाव और अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानना। जब मनुष्य अपने 'स्व' को जान लेता है, तो वह अपनी इच्छाओं का दास नहीं बनता, बल्कि अपने विवेक और नैतिक मूल्यों के अनुसार जीवन जीता है।
12. 'मनुष्य की गरिमा' निबंध में किस प्रकार दर्शायी गई है?
उत्तर: निबंध में मनुष्य की गरिमा उसकी आत्म-बंधन की क्षमता में दर्शायी गई है। पशु अपनी वृत्तियों का दास होता है, लेकिन मनुष्य अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रख सकता है। प्रेम, मैत्री, त्याग, अहिंसा और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता जैसे गुण मनुष्य की गरिमा को बढ़ाते हैं, जो उसे अन्य जीवों से श्रेष्ठ बनाते हैं।
13. निबंध में मनुष्य और पशु के बीच क्या समानताएँ और क्या भिन्नताएँ बताई गई हैं?
उत्तर: समानताएँ: दोनों में सहज वृत्तियाँ होती हैं। जैसे, नाखूनों का बढ़ना दोनों में देखा जा सकता है। भिन्नताएँ: पशु अपनी सहज वृत्तियों का दास होता है और उन्हें नियंत्रित नहीं करता, जबकि मनुष्य अपनी वृत्तियों पर आत्म-बंधन लगा सकता है। मनुष्य में बुद्धि, विवेक, त्याग, प्रेम और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता होती है, जो पशुओं में नहीं होती। मनुष्य सभ्यता और संस्कृति का निर्माण कर सकता है।
14. 'मानव शरीर का अध्ययन करने वाले प्राणि-विज्ञानियों' का मत लेखक के चिंतन को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर: प्राणि-विज्ञानियों का यह मत कि मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे, लेखक को एक सकारात्मक आशा देता है। यह अनुमान लेखक को विश्वास दिलाता है कि मनुष्य अपनी आदिम पशुता को पूरी तरह से त्याग देगा और भविष्य में पूर्णतः सभ्य और मनुष्यता के गुणों से युक्त हो जाएगा।
15. निबंध में लेखक ने भारतीय संस्कृति की कौन सी विशेषता बताई है?
उत्तर: लेखक ने भारतीय संस्कृति की यह विशेषता बताई है कि वह अपने 'आत्म-बंधन' पर बल देती है। भारतीय संस्कृति में त्याग, तपस्या, प्रेम और परोपकार को महत्व दिया जाता है, न कि केवल भौतिक संग्रह और सहज वृत्तियों के पालन को। यह हमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखकर दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा देती है।
16. नाखून के विभिन्न आकृतियों में सजाने का चलन किस बात का प्रतीक है?
उत्तर: नाखून को विभिन्न आकृतियों में सजाने का चलन मनुष्य के सौंदर्य बोध और कलात्मक प्रवृत्ति का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि मनुष्य ने अपनी आदिम उपयोगिता (हथियार के रूप में) को छोड़कर नाखूनों को अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना शुरू कर दिया है। यह सभ्यता और संस्कृति के विकास का एक सूक्ष्म पहलू है।
17. लेखक 'अल्पज्ञ पिता का दयनीय जीव' किसे कहता है?
उत्तर: लेखक अपनी छोटी बच्ची को 'अल्पज्ञ पिता का दयनीय जीव' कहता है। यह एक आत्मीय और स्नेहपूर्ण संबोधन है, जिसमें बच्ची के मासूम प्रश्न (नाखून क्यों बढ़ते हैं?) के प्रति लेखक का प्रेम और उसकी मासूमियत पर आधारित चिंतन का भाव निहित है। यह दर्शाता है कि ज्ञान अक्सर अज्ञानता के सरल प्रश्नों से ही उत्पन्न होता है।
18. निबंध के शीर्षक 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर: शीर्षक 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' निबंध का केंद्र बिंदु है। यह प्रश्न जितना सीधा लगता है, लेखक ने उसी के माध्यम से मानव सभ्यता के विकास, मनुष्य की पशुता और मनुष्यता के बीच के द्वंद्व, आत्म-बंधन के महत्व और भारतीय संस्कृति के मूल स्वभाव जैसे गहरे दार्शनिक विषयों को प्रभावी ढंग से उठाया है। शीर्षक एक सरल प्रश्न से गंभीर चिंतन की यात्रा का प्रतीक है, अतः यह पूरी तरह सार्थक है।
19. मनुष्य को कब 'निर्लज्ज अपराधी' की भाँति कहा गया है? इसका क्या अर्थ है?
उत्तर: मनुष्य के नाखून को 'निर्लज्ज अपराधी' की भाँति कहा गया है। इसका अर्थ है कि नाखून को बार-बार काटे जाने के बावजूद वे बेशर्मी से फिर से बढ़ आते हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक अपराधी बार-बार अपराध करता है, चाहे उसे कितनी भी सज़ा क्यों न मिली हो। यह तुलना मनुष्य के भीतर की उस आदिम पशुवृत्ति की निरंतरता को दर्शाती है, जिसे वह चाहकर भी पूरी तरह त्याग नहीं पाता।
20. 'मनुष्य की बार्बरता का इतिहास' से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: 'मनुष्य की बार्बरता का इतिहास' से लेखक का क्या अभिप्राय मनुष्य की आदिम, असभ्य और हिंसक प्रवृत्तियों के काल से है। यह वह समय था जब मनुष्य जंगली था, नाखून उसके हथियार थे, और वह अपनी इच्छाओं पर कोई नियंत्रण नहीं रखता था। यह बताता है कि मनुष्य का इतिहास केवल प्रगति का ही नहीं, बल्कि हिंसा और बर्बरता का भी रहा है, जिसे मनुष्य ने धीरे-धीरे त्यागना सीखा है।
बोर्ड परीक्षा के लिए संक्षिप्त सारांश
- मुख्य विचार: नाखून का बढ़ना मनुष्य की सहज पाशविक वृत्ति (बर्बरता) का प्रतीक है, जो आदिकाल में उसके हथियार थे।
- मनुष्यता का विकास: मनुष्य ने बुद्धि का प्रयोग कर हथियार बनाए, जो उसकी सभ्यता की ओर यात्रा को दर्शाता है।
- आत्म-बंधन: मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता आत्म-बंधन (इच्छाओं पर नियंत्रण) है, जो उसे पशुओं से अलग करती है।
- सफलता बनाम चरितार्थता: सच्ची मनुष्यता चरितार्थता (प्रेम, त्याग, परोपकार) में है, न कि केवल सफलता (भौतिक प्राप्ति) में।
- अहिंसा का संदेश: निबंध महात्मा गांधी के अहिंसा, प्रेम और त्याग के संदेश को महत्व देता है।
- निष्कर्ष: नाखून काटना पशुता को त्यागकर मनुष्यता की ओर बढ़ने का प्रतीक है। लेखक एक ऐसे भविष्य की आशा करते हैं जहाँ मनुष्य पूर्ण मनुष्यता को प्राप्त कर लेगा।
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