नागरी लिपि: एक विस्तृत आत्म-अध्ययन नोट्स
नागरी लिपि के इस विस्तृत अध्ययन में आपका स्वागत है! यह ब्लॉग पोस्ट छात्रों को नागरी लिपि का इतिहास, देवनागरी लिपि का विकास, और इसकी ऐतिहासिक यात्रा को समझने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। हम ब्राह्मी लिपि और सिद्धम लिपि से इसके संबंध, दक्षिण भारत में नंदिनागरी के रूप में इसकी पहचान, और गुर्जर प्रतिहार, राष्ट्रकूट जैसे प्रमुख शासकों द्वारा इसके उपयोग की गहन पड़ताल करेंगे। यह comprehensive self-learning guide आपको नागरी लिपि के आरंभिक लेखों से लेकर इसके आधुनिक स्वरूप तक की पूरी जानकारी देगी, जो आपकी परीक्षा की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

देवनागरी लिपि, नागरी लिपि का आधुनिक विकसित रूप
1. महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट व्याख्या
नागरी लिपि भारतीय लिपियों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण लिपि है, जिससे आधुनिक देवनागरी लिपि का विकास हुआ है। यह लिपि लगभग दो सदी पहले पहली बार छपी पुस्तकों में प्रयोग होने लगी और इसके अक्षर हिंदी में भी प्रचलित हैं।
देवनागरी लिपि का विस्तार
- देवनागरी लिपि में हिंदी लिखी जाती है।
- हमारे पड़ोसी देशों नेपाल की नेपाली (खसकुरा) व नेवारी भाषाएँ भी इसी लिपि में लिखी जाती हैं।
- मराठी भाषा की लिपि में सिर्फ़ अतिरिक्त अक्षर होते हैं।
- प्राचीन काल के संस्कृत व प्राकृत भाषाओं में तथा इनके अभिलेखों में इस लिपि के अक्षर मिलते हैं।
- यह लिपि संसार की सभी संस्कृत-प्राकृत की पुस्तकों में प्रमुखता से छपती है।
- कई विदेशी विद्वान भी संस्कृत-प्राकृत के उद्धरण व ग्रंथ रोमन अक्षरों के साथ नागरी अक्षरों में प्रकाशित करते हैं।
- गुजराती लिपि देवनागरी से अधिक भिन्न नहीं है।
- बंगला लिपि प्राचीन नागरी लिपि की पुत्री मानी जाती है, हालाँकि अब यह देवनागरी से भिन्न दिखती है।
- दक्षिण भारत की कई लिपियाँ (तमिल, मलयालम, तेलुगु-कन्नड़) भी नागरी की तरह प्राचीन ब्राह्मी से ही विकसित हुई हैं।

प्राचीन शिलालेख (Inscriptions) नागरी लिपि के इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
नागरी लिपि का ऐतिहासिक महत्व
- यह भारत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और व्यापक लिपि रही है।
- दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए भी नागरी लिपि का व्यवहार होता था।
- दक्षिण भारत से हमें नागरी लिपि के आरंभिक लेख मिले हैं।
- दक्षिणी भारत में यह लिपि नंदिनागरी कहलाती थी।
- कौकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में मिलते हैं।
- पहल-पहल विजयनगर के राजाओं के लेखों को ही नंदिनागरी नाम दिया गया था।
- फिर दक्षिण भारत में तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़ लिपियों का स्वतंत्र विकास हुआ है।
- दक्षिण भारत में अनेक शासकों ने नागरी लिपि का इस्तेमाल किया है।
- राजराज व राजेंद्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं (ग्यारहवीं सदी) के सिक्कों पर भी नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं।
- बारहवीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर 'वीरकेरलस्य' जैसे शब्द नागरी लिपि में अंकित मिलते हैं।
नागरी लिपि के प्राचीनतम लेख
- दक्षिण भारत से प्राप्त प्रथम नागरी का प्रमाण तंब्रपत्र (आठवीं सदी) में मिलता है।
- यह प्रमाण पुणे, श्रीलंका के पराक्रमबाहु (बारहवीं सदी) आदि शासकों के सिक्कों पर भी नागरी अक्षर दिखाते हैं।
- पूरी और उत्तर भारत में महमुद गजनवी (ग्यारहवीं सदी) के चाँदी के सिक्कों पर भी नागरी लिपि में शब्द मिलते हैं। इन सिक्कों की एक तरफ कलमा खुदा होता है, और दूसरी तरफ नागरी लिपि में 'अव्यक्तमेक मुहम्मद अवतार नृपति महमूद' लिखा होता है।
- सिद्धों ने 1028 ई० में शुरू किए गए श्री राम का लेखांकन किया।
- यह लिपि आठवीं-नौवीं सदी में प्रकट हुई थी। इसे 'सार्वदेशिक लिपि' भी कहा गया है।
- ब्राह्मी लिपि के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें थीं, जिसे बाद में नागरी में पूरी लकीरों में बदल दिया गया। अक्षरों के सिरे खुले रहते हैं और जितनी उनकी चौड़ाई होती है, उतना ही वे ऊँचे होते हैं।
- दसवीं सदी से उत्तर भारत में भी इस लिपि के लेख मिलते हैं।
- यह अनुमान है कि पूर्वी भारत में नागरी (नंदिनागरी) लिपि के लेख आठवीं सदी से मिलने लगते हैं और उत्तर भारत में नौवीं सदी से।
नागरी नाम की उत्पत्ति
- इसकी उत्पत्ति के संबंध में कई मत हैं।
- एक मत के अनुसार, गुजरात के नगर ब्राह्मणों ने इसे पहली-पहल इस्तेमाल किया, इसलिए इसका नाम 'नागरी' पड़ा।
- एक अन्य मत के अनुसार, नगर में प्रयोग होने के कारण इसे 'नागरी' कहा गया।
- कुछ विद्वानों का मत है कि यह पाटलिपुत्र (पटना) के 'नगर' से संबंधित है और वहाँ 'नागरी शैली' में लिखी जाती थी।
- एक अन्य मत के अनुसार, चंद्रगुप्त द्वितीय ('विक्रमादित्य') की राजधानी 'देव नगर' कहलाती थी, इसलिए वहाँ की लिपि को 'देवनागरी' कहा गया।
- चौदहवीं-पंद्रहवीं सदी तक दक्षिण भारत में अनेक लेखों की लिपि को नंदिनागरी कहा गया है।
2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या
लिपि (Script): ध्वनियों को लिखित रूप में व्यक्त करने के चिह्न या संकेत।
नागरी (Nagari): 'नगर' या 'शहर' से संबंधित। इस लिपि का नाम संभवतः नगरों में इसके प्रयोग या नगर ब्राह्मणों से जुड़ा है।
देवनागरी (Devanagari): 'देवताओं का नगर' (देवनगर) से संबंधित लिपि। एक मत के अनुसार, चंद्रगुप्त द्वितीय की राजधानी देवनगर थी, इसलिए वहाँ की लिपि को देवनागरी कहा गया।
नंदिनागरी (Nandinagari): दक्षिण भारत में नागरी लिपि का एक नाम। विजयनगर के राजाओं के लेखों को पहले-पहल नंदिनागरी नाम दिया गया था।
ब्राह्मी (Brahmi): एक प्राचीन भारतीय लिपि जिससे नागरी आदि कई आधुनिक भारतीय लिपियों का विकास हुआ।
सिद्धम (Siddham): एक प्राचीन लिपि जिससे नागरी लिपि विकसित हुई। यह ब्राह्मी से नागरी के बीच की कड़ी मानी जाती है।
पोथियाँ (Manuscripts): हाथ से लिखी गई प्राचीन पुस्तकें या ग्रंथ।
सार्वदेशिक लिपि (Universal Script): वह लिपि जो पूरे देश या विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित हो। नागरी लिपि आठवीं-ग्यारहवीं सदी तक सार्वदेशिक बन गई थी।
अभिलेख (Inscriptions): पत्थर, धातु या अन्य कठोर सतहों पर उत्कीर्ण लेख, जो ऐतिहासिक जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।
3. पुस्तक में दिए गए सभी ऐतिहासिक उदाहरणों की व्याख्या
अध्याय में कोई चरण-दर-चरण गणितीय या समस्या-समाधान के उदाहरण नहीं दिए गए हैं। इसके बजाय, यह नागरी लिपि के ऐतिहासिक उपयोग और प्रमाणों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। नीचे उनकी विस्तृत व्याख्या है:
दक्षिण भारत में नागरी के आरंभिक लेख
- लगभग दो सदी पहले से नागरी लिपि में छपी पुस्तकें मिलनी शुरू हुईं।
- दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए नागरी लिपि का उपयोग होता था।
- नागरी के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं।
- दक्षिणी भारत में यह लिपि नंदिनागरी कहलाती थी।
- कौकण के शिलाहार शासक, मान्यखेट के राष्ट्रकूट शासक, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के अभिलेखों में नंदिनागरी लिपि का प्रयोग हुआ है।
- विजयनगर के राजाओं के लेखों को सबसे पहले नंदिनागरी नाम दिया गया था।
- राजराज और राजेंद्र (ग्यारहवीं सदी) जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर मिलते हैं।
- बारहवीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर 'वीरकेरलस्य' शब्द नागरी लिपि में अंकित है।
- दक्षिण भारत से प्राप्त प्रथम नागरी का प्रमाण आठवीं सदी के ताम्रपत्र में मिलता है।
- पुणे, श्रीलंका के पराक्रमबाहु (बारहवीं सदी) आदि शासकों के सिक्कों पर भी नागरी अक्षर मिलते हैं।
उत्तरी भारत में नागरी के उदाहरण
- महमुद गजनवी (ग्यारहवीं सदी) के चाँदी के सिक्कों पर नागरी लिपि में 'अव्यक्तमेक मुहम्मद अवतार नृपति महमूद' लिखा होता है। इन सिक्कों पर एक तरफ कलमा और दूसरी तरफ नागरी लिपि मिलती है।
- अल्लाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी लेख खुदवाए।
- राम-सीता की आकृति वाले सिक्के नागरी लिपि में 'रामसीय' शब्द के साथ मिलते हैं।
- उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, साम्भर अजमेर के चौहान, कन्नौज के गढ़वाल, काठियावाड़-गुजरात के सोलकी, आबू के परमार, जेजाकभुक्ति (बुंदेलखंड) के चंदेल जैसे शासकों के लेखों में नागरी लिपि का प्रयोग हुआ है।
- गुजरात के गुर्जर-प्रतिहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि का प्रयोग आठवीं सदी से शुरू हुआ।
- मिहिर भोज (840-841 ई०) का ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में लिखा हुआ है। यह नागरी लिपि का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
- आठवीं सदी: दक्षिण भारत में ताम्रपत्र, पूर्वी भारत में नंदिनागरी लेख।
- नौवीं सदी: उत्तर भारत में लेख, मिहिर भोज का ग्वालियर प्रशस्ति (840-841 ई०)।
- ग्यारहवीं सदी: महमुद गजनवी के सिक्के, चोल राजाओं के सिक्के।
- बारहवीं सदी: केरल के शासकों के सिक्के, पराक्रमबाहु के सिक्के।
- तेरहवीं सदी: देवगिरि के यादव राजाओं के ताम्रपत्र।
5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित 20 नये अभ्यास प्रश्न
6. अध्याय का संक्षिप्त सारांश (पुनरावृत्ति के लिए)
नागरी लिपि, जिससे आधुनिक देवनागरी का विकास हुआ, भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण लिपि है। इसका उद्भव ब्राह्मी और सिद्धम लिपि से हुआ और यह आठवीं-नौवीं सदी में प्रकट हुई। आठवीं से ग्यारहवीं सदी तक यह एक सार्वदेशिक लिपि बन गई थी। इसकी मुख्य पहचान अक्षरों के ऊपर शिरोरेखा है। दक्षिण भारत में इसे नंदिनागरी कहा जाता था और उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहार, महमुद गजनवी और अन्य शासकों ने इसका प्रयोग किया। 13वीं सदी के बाद इसका प्रयोग कुछ कम हुआ, लेकिन यह भारतीय संस्कृति और भाषाओं, विशेषकर हिंदी के विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी बनी रही।
7. प्रूफ-टाइप प्रश्न और छवियों के बारे में नोट
प्रिय छात्र, आपके पाठ्यपुस्तक के उद्धरणों में कोई 'प्रूफ-टाइप' प्रश्न (जैसे गणितीय या तार्किक प्रमाण) या चित्र नहीं दिए गए थे। इसलिए, इस ब्लॉग पोस्ट में ऐतिहासिक संदर्भ और समझ को बेहतर बनाने के लिए संबंधित छवियां जोड़ी गई हैं और सभी प्रश्नों को व्याख्यात्मक रूप में हल किया गया है।
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