नमस्ते! आपके द्वारा दिए गए पाठ्यपुस्तक अध्याय के आधार पर, यहाँ आपके लिए प्राकृतिक आपदा - एक परिचय पर आधारित संपूर्ण स्वयं-अध्ययन नोट्स प्रस्तुत हैं। ये नोट्स इस प्रकार तैयार किए गए हैं कि आप स्वयं पढ़कर पूरे अध्याय को आसानी से समझ सकें, जिसमें प्राकृतिक आपदा, मानवजनित आपदा, आपदा प्रबंधन, सुनामी, बाढ़, सूखा, और भूकंप जैसी सभी प्रमुख अवधारणाओं को आत्मसात कर सकें और अपनी बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर सकें।

1. परिचय
हम अपनी पिछली कक्षा (नौवीं) में प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पढ़ चुके हैं। हमने यह भी समझा है कि ये आपदाएँ मानवीय गलतियों के कारण कम होती हैं और प्रकृति के असंतुलन से अधिक आती हैं। जब प्रकृति में कोई असंतुलन या व्यवधान उत्पन्न होता है, तो वह प्रकृति जनित आपदा के रूप में हमारे सामने आती है। ऐसी भयानक आपदाओं की स्थिति में मनुष्य अक्सर बेबस हो जाता है। इस अध्याय का मूल उद्देश्य यह है कि आपको अपने आसपास घटने वाले किसी भी संभावित खतरे की पहले से जानकारी हो ताकि उसके विनाश को कम किया जा सके।
2. प्रमुख अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ
यहाँ अध्याय में दिए गए कुछ महत्वपूर्ण शब्दों और अवधारणाओं की सरल व्याख्या दी गई है:
वे घटनाएँ जो मानवीय गलतियों के बजाय प्रकृति में होने वाले बड़े बदलावों या असंतुलन के कारण होती हैं और बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान करती हैं, प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। उदाहरण: बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी, चक्रवात, भूस्खलन आदि।
यह समुद्र की तली में उत्पन्न होने वाली भूकंपीय तरंगें होती हैं। ये तरंगें लहरों के रूप में तट से टकराती हैं और कई मीटर की ऊँचाई तक उठकर तटीय क्षेत्रों में भारी तबाही मचाती हैं।
जब किसी नदी का जल-स्तर उसके सामान्य औसत प्रवाह से ऊपर उठ जाता है और पानी आसपास के निचले इलाकों में फैल जाता है, तो इस स्थिति को बाढ़ कहते हैं।
पृथ्वी में जब कोई कंपन या हलचल होती है, तो उसे भूकंप कहते हैं। भूकंप की तीव्रता को रिक्टर स्केल (Richter Scale) पर मापा जाता है।
यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा में 25 प्रतिशत से अधिक की कमी आ जाती है। जिन क्षेत्रों में सामान्यतः 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है, वहाँ प्रतिवर्ष सूखे की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
यह पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टानों या मिट्टी के बड़े पैमाने पर खिसकने या गिरने की घटना है।
किसी भी आपदा से होने वाले नुकसान को कम करने या उससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए की गई योजनाबद्ध व्यवस्था और प्रयासों को आपदा प्रबंधन कहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य आपदाओं से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम करना है।
3. महत्वपूर्ण विषयों की विस्तृत व्याख्या
यह खंड अध्याय के सभी प्रमुख विषयों को सरल और विस्तृत रूप से समझाता है:
क. प्राकृतिक आपदाओं के प्रमुख प्रकार
प्राकृतिक आपदाएँ कई प्रकार की होती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
- चक्रवात (Cyclones): ये विनाशकारी तूफानी हवाएँ होती हैं, जो भारी बारिश के साथ आती हैं और तटीय क्षेत्रों में तबाही मचाती हैं।
- ओलावृष्टि (Hailstorms): आसमान से बर्फ के गोले गिरने की घटना, जो फसलों और संपत्ति को नुकसान पहुँचा सकती है।
- हिमस्खलन (Avalanches): पहाड़ी ढलानों पर बर्फ के बड़े द्रव्यमान का अचानक नीचे खिसकना।
- भूस्खलन (Landslides): मिट्टी, चट्टानों या मलबे के ढलान से नीचे गिरने की घटना।
- बाढ़ (Floods): नदियों के उफान या अत्यधिक वर्षा से जल का भूमि पर फैल जाना।
- सूखा (Droughts): लंबे समय तक पानी की कमी, खासकर अपर्याप्त वर्षा के कारण।
- भूकंप (Earthquakes): पृथ्वी की सतह का अचानक हिलना।
- सुनामी (Tsunamis): समुद्र के नीचे भूकंप या अन्य हलचल से उत्पन्न विशाल समुद्री लहरें।
अध्याय में बाढ़, सूखा, भूकंप और सुनामी पर विशेष ध्यान दिया गया है, क्योंकि इनका प्रभाव बड़े पैमाने पर होता है।

ख. भारत में प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ और उनके विशिष्ट उदाहरण
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं। आइए कुछ प्रमुख आपदाओं और उनके उदाहरणों को विस्तार से समझते हैं:
1. बाढ़:
- बिहार में बाढ़ की स्थिति: बिहार के कई भागों में बाढ़ एक स्थायी त्रासदी है। लगभग प्रतिवर्ष बाढ़ से जान-माल की भारी बर्बादी होती है।
- कोसी नदी (बिहार का शोक): वर्ष 2008 में कोसी नदी ने अपनी धारा बदल दी थी, जिससे बिहार में भीषण विनाश हुआ। इसी विनाशलीला के कारण कोसी नदी को 'बिहार का शोक' कहा जाता है। यह बिहार के लोगों के लिए एक दुखद अनुभव था।
2. सूखा:
- परिभाषा और कारण: जब औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा में 25 प्रतिशत से अधिक की कमी हो जाती है, तो उसे सूखे की स्थिति माना जाता है। आमतौर पर, जिन क्षेत्रों में 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है, वहाँ प्रतिवर्ष सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- बिहार में सूखा: वर्ष 2009 में भी बिहार के अनेक भागों में वर्षा की मात्रा कम होने के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न हुई थी। बाढ़ और सूखा दोनों ही बिहार के लोगों के लिए एक बड़ी समस्या हैं।
3. भूकंप:
- 1934 का विनाशकारी भूकंप: यदि आप अपने दादा-दादी से बात करेंगे तो वे 1934 के भूकंप की याद दिला सकते हैं। इस भूकंप के कारण बिहार के कई भागों में जमीन फटने की घटनाएँ हुईं, जिससे सैकड़ों-हजारों लोगों की मौत हुई थी। यह भारत में आए प्रमुख विनाशकारी भूकंपों में से एक था।
4. सुनामी:
- भारत में सुनामी का प्रभाव: भारत के तटीय क्षेत्रों में सुनामी का प्रभाव देखा गया है। 2002 में भारत के पूर्वी तट तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सुनामी से भारी बर्बादी हुई थी। भारत में एक प्रमुख सुनामी 26 दिसंबर, 2004 को आई थी।
- बिहार पर सुनामी का प्रभाव: चूंकि बिहार समुद्र तट से दूर है, इसलिए सुनामी का प्रभाव यहाँ नहीं होता।
5. भूस्खलन:
- भारत में स्थिति: भूस्खलन और मृदा स्खलन जैसी घटनाएँ भारत के पर्वतीय क्षेत्रों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सबसे अधिक होती हैं।
- कारण: हिमालय में विकास कार्यों में लगातार हो रही वृद्धि और वहाँ की चट्टानों के कमजोर होने के कारण भूस्खलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- प्रभाव: मैदानी क्षेत्रों के लोगों के लिए भूस्खलन की समस्या अत्यंत छोटी प्राकृतिक आपदा है। लेकिन भारत के पर्वतीय राज्यों के लिए यह एक गंभीर आपदा है।
6. चक्रवात:
- भारत में स्थिति: भारत में विनाशकारी चक्रवात 29 अक्टूबर, 1999 को आया था। बिहार में भी लगभग प्रतिवर्ष चक्रवात से जान-माल की भारी बर्बादी होती है।

ग. आपदा प्रबंधन
किसी भी आपदा से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए उसका प्रबंधन (Management) अनिवार्य है। आपदा प्रबंधन न केवल विकास कार्यों को प्रभावित करता है बल्कि कई व्यवधान भी उत्पन्न करता है।
1. आपदा प्रबंधन की आवश्यकता:
- आपदाएँ विकास कार्यों में बाधा डालती हैं और नई समस्याएँ उत्पन्न करती हैं।
- आपदाओं से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए पूर्व जानकारी और तैयारी आवश्यक है।
2. आपदा प्रबंधन की संरचना (ढाँचा):
भारत में आपदा प्रबंधन के लिए विभिन्न स्तरों पर व्यवस्थाएँ की गई हैं:
- राष्ट्रीय स्तर: नोडल मंत्रालय (जो आपदाओं से संबंधित नीतियों और योजनाओं को बनाता है)।
- राज्य स्तर: राहत और पुनर्वास प्रभाग/आपदा प्रबंधन विभाग (जो राज्य स्तर पर राहत और पुनर्वास कार्यों का प्रबंधन करता है)।
- जिला स्तर: जिला मजिस्ट्रेट का कार्यालय (जो जिले में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करता है)।
- खंड (ब्लॉक) स्तर: पंचायत समिति का कार्यालय (जो ब्लॉक स्तर पर आपदा प्रबंधन में सहायता करता है)।
- गाँव स्तर: ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति (जो गाँव स्तर पर स्थानीय रूप से आपदाओं से निपटने में मदद करती है)।
इन व्यवस्थाओं के असफल होने पर नई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
3. विशिष्ट आपदाओं का प्रबंधन:
- बाढ़ प्रबंधन: उत्तर बिहार के लोग और विशेषकर कोसी प्रदेश के लोग परंपरागत रूप से बाढ़ नियंत्रण में दक्ष होते हैं। उन्होंने प्राचीन काल से ही बाढ़ के अनुरूप जीवनशैली अपना रखी है।
- सूखा प्रबंधन: सूखे के प्रबंधन के लिए आम लोगों के सहयोग से कार्य करना आवश्यक होता है। सामूहिक प्रयासों से कुओं की खुदाई हो सकती है और सामूहिक रूप से ही तालाबों की खुदाई कर रोजगार के नए क्षेत्र भी सृजित किए जा सकते हैं।
- भूकंप प्रबंधन: भूकंप और सुनामी दोनों ही भारत के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। भूकंप के प्रबंधन हेतु नए तकनीक पर आधारित भवन निर्माण का कार्य किया गया है। भूकंप रोधी भवनों के निर्माण में वृत्ताकार या बहुभुजीय आकृति के बदले आयताकार अथवा वर्गाकार भवन आकृति को प्राथमिकता दी गई है।
- चक्रवात और सुनामी प्रबंधन: भारत के तटीय क्षेत्रों में सुनामी की चेतावनी और प्रबंधन के लिए विशेष कार्य किए गए हैं।
4. जनभागीदारी का महत्व:
कोई भी प्रबंधन कार्य तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसमें आम लोगों की सहभागिता नहीं होती। आम लोगों की सहभागिता तथा पंचायतों की मदद से ही ठोस प्रशासनिक निर्णय लिए जा सकते हैं और ये निर्णय ही दीर्घकाल में प्रबंधन हेतु आवश्यक होते हैं।
4. पुस्तकीय उदाहरणों का चरण-दर-चरण विश्लेषण
यह खंड अध्याय में दिए गए विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं और उदाहरणों को विस्तार से समझाता है:
- घटित घटना: वर्ष 2008 में।
- स्थान: बिहार में।
- मुख्य कारण: कोसी नदी ने अपनी पुरानी धारा बदल दी थी।
- परिणाम: इस धारा बदलने से बिहार में भयंकर बाढ़ आई और व्यापक विनाश हुआ।
- विशेष पहचान: इसी विनाश के कारण कोसी नदी को 'बिहार का शोक' कहा जाने लगा।
- घटित घटना: वर्ष 1934 में।
- स्थान: भारत, विशेषकर बिहार के कई भागों में।
- मुख्य प्रभाव: इस भूकंप से बिहार के कई हिस्सों में जमीन फट गई थी।
- परिणाम: इस भीषण भूकंप के कारण सैकड़ों-हजारों लोगों की जानें गईं। यह भारत में आए सबसे विनाशकारी भूकंपों में से एक था।
- विनाशकारी चक्रवात: 29 अक्टूबर, 1999।
- प्रमुख सूखा वर्ष: 1966।
- प्रमुख सुनामी: 26 दिसंबर, 2004। इस सुनामी ने भारत के पूर्वी तट और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भारी बर्बादी की थी। (ध्यान दें कि 2002 में भी भारत के पूर्वी तट तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सुनामी से भारी बर्बादी का उल्लेख हैl)
ये उदाहरण हमें दिखाते हैं कि प्राकृतिक आपदाएँ हमारे जीवन और पर्यावरण पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकती हैं, और इसलिए उनके प्रबंधन की आवश्यकता कितनी महत्वपूर्ण है।
5. अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Questions):
1. इनमें से कौन प्राकृतिक आपदा नहीं है?
(क) सुनामी (ख) बाढ़ (ग) आतंकवाद (घ) भूकंप
उत्तर: (ग) आतंकवाद
व्याख्या: सुनामी, बाढ़ और भूकंप प्रकृति द्वारा उत्पन्न घटनाएँ हैं और इसलिए प्राकृतिक आपदाएँ हैं। जबकि आतंकवाद एक मानवीय क्रिया है, जो समाज में भय और हिंसा फैलाती है, यह एक मानवजनित आपदा है।
2. इनमें से कौन मानवजनित आपदा है?
(क) सांप्रदायिक दंगे (ख) आतंकवाद (ग) महामारी (घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: सांप्रदायिक दंगे, आतंकवाद और महामारी (हालांकि कुछ महामारियाँ प्राकृतिक कारणों से शुरू हो सकती हैं, उनका व्यापक प्रसार और प्रबंधन मानवीय कारकों पर निर्भर करता है) ये सभी मानवीय गतिविधियों या उनके परिणामों से जुड़ी आपदाएँ हैं।
3. सुनामी का प्रमुख कारण क्या है?
(क) समुद्र में भूकंप का आना (ख) स्थलीय क्षेत्र पर भूकंप का आना (ग) द्वीप पर भूकंप का आना (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (क) समुद्र में भूकंप का आना
व्याख्या: सुनामी की परिभाषा के अनुसार, यह समुद्र की तली में उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के कारण उत्पन्न होती है। इसलिए, समुद्र में भूकंप का आना ही सुनामी का प्रमुख कारण है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions):
1. आपदा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: आपदा एक ऐसी घटना है जो अचानक घटित होती है और जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है, सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, और समाज को भारी क्षति पहुँचती है। आपदाएँ प्राकृतिक कारणों (जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी) या मानवीय कारणों (जैसे आतंकवाद, सांप्रदायिक दंगे) से उत्पन्न हो सकती हैं। आपदाओं की स्थिति में अक्सर मनुष्य निसहाय होता है।
2. आपदा कितने प्रकार की होती है?
उत्तर: आपदाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं:
- प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters): वे आपदाएँ जो प्रकृति में होने वाले असंतुलन या बड़े बदलावों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी, चक्रवात, भूस्खलन, हिमस्खलन, ओलावृष्टि आदि। ये आपदाएँ मानवीय गलतियों के कारण नहीं होतीं, बल्कि प्रकृति जनित होती हैं।
- मानवजनित आपदाएँ (Man-made Disasters): वे आपदाएँ जो मानवीय गतिविधियों, लापरवाही या गलतियों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे सांप्रदायिक दंगे, आतंकवाद, औद्योगिक दुर्घटनाएँ, या कुछ मामलों में महामारियाँ।
3. आपदा प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: आपदा प्रबंधन की आवश्यकता कई कारणों से है:
- जान-माल की सुरक्षा: आपदाएँ जान-माल का भारी नुकसान करती हैं। प्रभावी प्रबंधन से इस नुकसान को कम किया जा सकता है।
- विकास कार्यों में बाधा: आपदाएँ विकास कार्यों को बाधित करती हैं और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाती हैं। प्रबंधन से विकास कार्यों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।
- व्यवधानों से निपटना: आपदाएँ जीवन और समाज में कई व्यवधान उत्पन्न करती हैं। प्रबंधन इन व्यवधानों से निपटने और सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद करता है।
- दीर्घकालिक स्थिरता: ठोस प्रशासनिक निर्णय और जनभागीदारी के साथ दीर्घकालिक प्रबंधन से समाज को आपदाओं के प्रति अधिक resilient (लचीला) बनाया जा सकता है।
- पूर्व जानकारी और तैयारी: आपदा प्रबंधन का मूल उद्देश्य संभावित खतरों की पूर्व जानकारी रखना और उनसे निपटने के लिए तैयार रहना है ताकि विनाश को कम किया जा सके।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions):
1. प्राकृतिक आपदा एवं मानव जनित आपदा में अंतर उदाहरणों के साथ प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: प्राकृतिक आपदा और मानव जनित आपदा में मुख्य अंतर उनके उत्पन्न होने के कारणों में है:
प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster):
- कारण: ये आपदाएँ प्रकृति में होने वाले बड़े बदलावों, असंतुलन या प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण उत्पन्न होती हैं। इनमें मानवीय हस्तक्षेप या गलती का सीधा योगदान नहीं होता।
- उदाहरण:
- बाढ़: अत्यधिक वर्षा या नदियों में जलस्तर बढ़ने के कारण पानी का फैल जाना। जैसे, 2008 में कोसी नदी द्वारा अपनी धारा बदलने से बिहार में आई भीषण बाढ़।
- सूखा: वर्षा की मात्रा में भारी कमी आना। जैसे, 2009 में बिहार के कई भागों में वर्षा की कमी से उत्पन्न सूखा।
- भूकंप: पृथ्वी की प्लेटों की गति के कारण भूमि का हिलना। जैसे, 1934 का विनाशकारी भूकंप जिसने बिहार में भारी तबाही मचाई थी।
- सुनामी: समुद्र के भीतर भूकंप आने से उत्पन्न विशाल लहरें। जैसे, 26 दिसंबर, 2004 को भारत में आई सुनामी।
- चक्रवात, भूस्खलन, हिमस्खलन, ओलावृष्टि आदि भी प्राकृतिक आपदाएँ हैं।
मानव जनित आपदा (Man-made Disaster):
- कारण: ये आपदाएँ मानवीय गतिविधियों, लापरवाही, गलत निर्णयों, सामाजिक संघर्षों या तकनीकी विफलताओं के कारण उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण:
- आतंकवाद: योजनाबद्ध तरीके से भय और हिंसा फैलाना।
- सांप्रदायिक दंगे: विभिन्न समुदायों के बीच हिंसात्मक संघर्ष।
- महामारी: किसी बीमारी का बड़े पैमाने पर फैल जाना, जिसमें मानवीय स्वच्छता, यात्रा या स्वास्थ्य प्रणाली की विफलताएँ एक भूमिका निभा सकती हैं।
- औद्योगिक दुर्घटनाएँ: जैसे गैस रिसाव या परमाणु संयंत्र में दुर्घटना।
- सड़क दुर्घटनाएँ, वनों की कटाई से होने वाले पर्यावरणीय असंतुलन।
संक्षेप में, प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति की देन हैं, जबकि मानवजनित आपदाएँ मानवीय क्रियाओं का परिणाम हैं।
2. आपदा प्रबंधन की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए आपदा प्रबंधन की आवश्यकता, अनिवार्यता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आपदा प्रबंधन की संकल्पना (Concept of Disaster Management): आपदा प्रबंधन से तात्पर्य ऐसी योजनाओं, नीतियों और प्रक्रियाओं के एक समूह से है जो किसी भी आपदा के आने से पहले, उसके दौरान और उसके बाद जान-माल के नुकसान को कम करने और प्रभावित समुदाय को सामान्य स्थिति में वापस लाने के लिए की जाती हैं। यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली, बचाव, राहत, पुनर्वास और दीर्घकालिक विकास जैसे विभिन्न चरण शामिल होते हैं।
आपदा प्रबंधन की आवश्यकता एवं अनिवार्यता (Necessity and Indispensability of Disaster Management): आपदा प्रबंधन आज के समय में अत्यधिक आवश्यक और अनिवार्य हो गया है, जिसके कई कारण हैं:
- जान-माल की सुरक्षा: उचित प्रबंधन से हताहतों की संख्या को काफी कम किया जा सकता है।
- आर्थिक नुकसान कम करना: प्रभावी प्रबंधन से आर्थिक क्षति को कम किया जा सकता है।
- विकास कार्यों की निरंतरता: आपदा प्रबंधन यह सुनिश्चित करता है कि विकास कार्य आपदाओं के कारण पूरी तरह से रुकें नहीं।
- मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्थिरता: आपदा प्रबंधन लोगों को मानसिक रूप से तैयार करने और उन्हें सहारा देने में मदद करता है।
- दीर्घकालिक समाधान: यह भविष्य की आपदाओं के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
- संसाधनों का प्रभावी उपयोग: यह सीमित संसाधनों का सबसे प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करता है।
- जनभागीदारी का महत्व: आम लोगों की सहभागिता के बिना कोई भी प्रबंधन कार्य सफल नहीं हो सकता।
संक्षेप में, आपदा प्रबंधन एक जीवन रक्षक और विकास-उन्मुख प्रक्रिया है जो समाज को आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों से बचाने के लिए अत्यंत अनिवार्य है।
6. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित 20 नए अभ्यास प्रश्न (विस्तृत समाधान सहित)
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ):
1. निम्नलिखित में से कौन सी आपदा मुख्य रूप से समुद्र के भीतर भूकंप के कारण उत्पन्न होती है?
उत्तर: (घ) सुनामी। सुनामी समुद्र की तली में उत्पन्न भूकंपीय तरंगों से बनती है।
2. बिहार को 'कोसी का शोक' किस वर्ष की बाढ़ के कारण कहा गया?
उत्तर: (ग) 2008। 2008 में कोसी नदी ने अपनी धारा बदली थी, जिससे बिहार में भारी विनाश हुआ।
3. भूकंप की तीव्रता मापने के लिए किस पैमाने का उपयोग किया जाता है?
उत्तर: (ग) रिक्टर स्केल। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता को मापा जाता है।
4. किस वर्ष को भारत में एक प्रमुख सूखा वर्ष के रूप में दर्ज किया गया है?
उत्तर: (ख) 1966। 1966 को भारत का प्रमुख सूखा वर्ष बताया गया है।
5. आपदा प्रबंधन के लिए ग्राम स्तर पर कौन सी समिति कार्य करती है?
उत्तर: (ग) ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति। ग्राम स्तर पर आपदा प्रबंधन का कार्य ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति द्वारा किया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न:
6. 'बिहार का शोक' किस नदी को कहा जाता है और क्यों?
उत्तर: बिहार का शोक कोसी नदी को कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि 2008 में इस नदी ने अपनी धारा बदल दी थी, जिसके कारण बिहार के कई हिस्सों में भयंकर बाढ़ आई और बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ।
7. सूखा की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर: सूखा की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा में 25 प्रतिशत से अधिक की कमी आ जाती है। जिन क्षेत्रों में सालाना 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है, वहाँ प्रतिवर्ष सूखे की संभावना अधिक रहती है।
8. भूकंप रोधी भवन निर्माण में किस प्रकार की आकृति को प्राथमिकता दी जाती है?
उत्तर: भूकंप रोधी भवनों के निर्माण में आयताकार अथवा वर्गाकार भवन आकृति को प्राथमिकता दी जाती है। वृत्ताकार या बहुभुजीय आकृतियों की तुलना में इन्हें भूकंप के झटकों का सामना करने के लिए बेहतर माना जाता है।
9. भारत में सुनामी से प्रभावित दो प्रमुख क्षेत्रों के नाम बताइए।
उत्तर: भारत में सुनामी से प्रभावित दो प्रमुख क्षेत्र पूर्वी तट तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह हैं। 2002 और 2004 में इन क्षेत्रों में सुनामी से भारी बर्बादी हुई थी।
10. आपदा प्रबंधन में जनभागीदारी क्यों आवश्यक है?
उत्तर: आपदा प्रबंधन में जनभागीदारी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि आम लोगों की सहभागिता के बिना कोई भी प्रबंधन कार्य सफल नहीं हो सकता। जनभागीदारी से ही ठोस प्रशासनिक निर्णय लिए जा सकते हैं और ये निर्णय दीर्घकाल में प्रबंधन के लिए आवश्यक होते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न:
11. भूस्खलन किन क्षेत्रों में अधिक होता है और इसके मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर: भूस्खलन भारत के पर्वतीय क्षेत्रों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सबसे अधिक होता है। इसके मुख्य कारण हैं: विकास कार्य (सड़क, भवन निर्माण), चट्टानों का कमजोर होना, और प्राकृतिक कारण (भारी वर्षा, भूकंप)।
12. भारत में आपदा प्रबंधन की संरचना को विस्तार से समझाइए।
उत्तर: भारत में आपदा प्रबंधन की एक बहु-स्तरीय संरचना है: राष्ट्रीय स्तर (नोडल मंत्रालय), राज्य स्तर (आपदा प्रबंधन विभाग), जिला स्तर (जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय), खंड स्तर (पंचायत समिति), और ग्राम स्तर (ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति)। यह संरचना सुनिश्चित करती है कि आपदा प्रबंधन हर स्तर पर प्रभावी ढंग से हो।
13. बाढ़ और सूखा दोनों बिहार के लिए स्थायी त्रासदी क्यों हैं?
उत्तर: बिहार के लिए बाढ़ और सूखा दोनों स्थायी त्रासदी हैं क्योंकि ये दोनों आपदाएँ लगभग हर साल राज्य के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करती हैं। उत्तरी बिहार प्रतिवर्ष कोसी जैसी नदियों की बाढ़ से ग्रस्त रहता है, जबकि दक्षिणी हिस्से वर्षा की कमी के कारण सूखे की चपेट में आ जाते हैं। इस दोहरे संकट के कारण बिहार की कृषि, अर्थव्यवस्था और जनजीवन पर निरंतर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
14. आपदा के प्रभावों को कम करने में 'पूर्व जानकारी' की क्या भूमिका है?
उत्तर: 'पूर्व जानकारी' आपदा के प्रभावों को कम करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह लोगों और प्रशासन को तैयारी करने, सुरक्षित निकासी की योजना बनाने, प्रबंधन योजनाओं को समय पर सक्रिय करने और संसाधनों को पहले से तैनात करने का समय देती है, जिससे जान-माल का नुकसान कम होता है।
15. प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में आम लोगों की क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर: आम लोग जागरूकता फैलाकर, पूर्व तैयारी करके (जैसे आपातकालीन किट), स्थानीय समितियों में भाग लेकर, राहत कार्यों में सहयोग करके और अपने पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
16. चक्रवात और सुनामी के प्रबंधन के लिए भारत में क्या विशेष कार्य किए गए हैं?
उत्तर: भारत में चक्रवात और सुनामी के लिए विशेष कार्य किए गए हैं, जिनमें तटीय क्षेत्रों में चेतावनी प्रणालियों की स्थापना, लोगों को सुरक्षित निकालने की योजनाएँ, आश्रय स्थलों का निर्माण और तटीय समुदायों के लिए जागरूकता अभियान शामिल हैं।
17. आपदाओं के कारण विकास कार्य कैसे प्रभावित होते हैं?
उत्तर: आपदाएँ बुनियादी ढाँचे (सड़क, पुल, स्कूल) को नष्ट कर, आर्थिक गतिविधियों को रोककर, और उपलब्ध संसाधनों को राहत कार्यों में लगाकर विकास कार्यों को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं, जिससे विकास की गति धीमी हो जाती है।
18. क्या बिहार में सुनामी का प्रभाव संभव है? अपने उत्तर का कारण भी दीजिए।
उत्तर: नहीं, बिहार में सुनामी का प्रभाव संभव नहीं है। कारण: सुनामी एक समुद्री आपदा है और बिहार एक भू-आबद्ध (landlocked) राज्य है, जिसका कोई समुद्री तट नहीं है।
19. सूखा प्रबंधन के लिए सामूहिक प्रयासों की क्या भूमिका है?
उत्तर: सूखा प्रबंधन के लिए सामूहिक प्रयास अत्यंत आवश्यक हैं। सामूहिक रूप से कुओं और तालाबों की खुदाई से जल संरक्षण और रोजगार सृजन होता है, और समुदाय मिलकर जल के विवेकपूर्ण उपयोग और सूखा-प्रतिरोधी कृषि को बढ़ावा दे सकता है।
20. इस अध्याय के अध्ययन का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस अध्याय का मूल उद्देश्य हमें अपने आसपास के संभावित खतरों (आपदाओं) की पूर्व जानकारी देना है ताकि हम तैयारी कर सकें और आपदा के विनाशकारी प्रभावों को कम कर सकें, जिससे जान-माल का नुकसान न्यूनतम हो।
7. संक्षिप्त सारांश (Quick Revision Summary)
परीक्षा से पहले त्वरित पुनरावृत्ति
- प्राकृतिक आपदाएँ: प्रकृति के असंतुलन से उत्पन्न (बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी)।
- बाढ़: कोसी नदी 'बिहार का शोक' (2008 की बाढ़)।
- सूखा: वार्षिक वर्षा में 25% से अधिक कमी।
- भूकंप: 1934 का भूकंप बिहार में विनाशकारी था।
- सुनामी: समुद्र में भूकंप से उत्पन्न लहरें, तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं।
- आपदा प्रबंधन: नुकसान कम करने की योजनाबद्ध व्यवस्था।
- प्रबंधन संरचना: राष्ट्रीय से ग्राम स्तर तक।
- भूकंप रोधी भवन: आयताकार/वर्गाकार आकृति को प्राथमिकता।
- जनभागीदारी: प्रबंधन की सफलता के लिए अनिवार्य।
- अध्याय का उद्देश्य: खतरों की पूर्व जानकारी से विनाश कम करना।
अध्याय से संबंधित महत्वपूर्ण कीवर्ड्स
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