Bihar Board class10 Hindi Chapter11: नौबतखाने में इबादत Revision Notes | बिस्मिल्लाह खान: जीवन, संगीत और सादगी

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नौबतखाने में इबादत Class 10 Notes | बिस्मिल्लाह खान: जीवन, संगीत और सादगी | Chapter 11 Hindi

स्व-अध्ययन नोट्स: नौबतखाने में इबादत

इस विस्तृत ब्लॉग पोस्ट में Class 10 Hindi Chapter 11 'नौबतखाने में इबादत' के संपूर्ण self-learning notes दिए गए हैं। यह अध्याय प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के जीवन, उनकी संगीत साधना, सादगी, और काशी से उनके गहरे रिश्ते को दर्शाता है। यहाँ आपको सभी महत्वपूर्ण विषयों की व्याख्या, प्रश्न-उत्तर (NCERT Solutions), अतिरिक्त प्रश्न और परीक्षा के लिए एक संक्षिप्त सारांश मिलेगा। यह ब्लॉग पोस्ट Bismillah Khan की कला और उनके जीवन के माध्यम से गंगा-जमुनी संस्कृति को समझने में आपकी मदद करेगा।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अपनी शहनाई के साथ

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान - संगीत की इबादत करते एक सच्चे साधक

अध्याय का परिचय

'नौबतखाने में इबादत' एक प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान (उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ) के जीवन पर आधारित एक प्रेरणादायक पाठ है। यह पाठ बताता है कि कैसे संगीत, धर्म और मानवता एक साथ जुड़ सकते हैं, और कैसे एक कलाकार अपनी कला के माध्यम से ईश्वर की आराधना करता है। यह बिस्मिल्लाह खान के जीवन, उनकी संगीत साधना, उनकी सरल जीवन-शैली, और काशी (वाराणसी) नगरी से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है।

1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या

इस अध्याय में कई महत्वपूर्ण विषय हैं जो बिस्मिल्लाह खान के व्यक्तित्व और भारतीय संस्कृति के सार को उजागर करते हैं:

बिस्मिल्लाह खान का बचपन और संगीत शिक्षा:

  • बिस्मिल्लाह खान का जन्म डुमरॉव, बिहार में 1916 के आसपास हुआ था। उनका बचपन का नाम कमरुद्दीन था।
  • वे लगभग 5-6 वर्ष की उम्र में अपने ननिहाल काशी आ गए।
  • उन्होंने शहनाई वादन की शिक्षा अपने मामा सादक हुसैन और उस्ताद पैगम्बर बख्श खान (उनके नाना) से प्राप्त की। उनके साथ मिट्ठन साहब भी उनके उस्ताद थे।
  • बिस्मिल्लाह खान की उम्र जब 14 साल थी, तब वे बालाजी मंदिर के नौबतखाने में रियाज (अभ्यास) करते थे। नौबतखाना वह स्थान होता है जहाँ मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाई जाती है।
  • वे बालाजी मंदिर के नौबतखाने में रियाज के बाद गंगा मैया की ओर भी दौड़ते हुए जाते थे, जहाँ से उनका संगीत प्रतिदिन नई ऊँचाइयों को छूता था।
काशी के घाट का सुंदर दृश्य

काशी के घाट - जहाँ बिस्मिल्लाह खान की कला और आत्मा बसती थी।

संगीत और धर्म का समन्वय:

  • बिस्मिल्लाह खान एक पक्के मुसलमान थे, लेकिन उनका संगीत साधना स्थल काशी का बालाजी मंदिर था।
  • वे प्रतिदिन बालाजी मंदिर के ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर दिन की शुरुआत करते थे।
  • वे विभिन्न रागों जैसे मुलतान, कल्याण, ललित और कभी-कभी भैरव रागों में शहनाई बजाते थे।
  • यह उनकी ईश्वर के प्रति सच्ची इबादत (उपासना) थी, जिसे वे अपनी शहनाई के माध्यम से करते थे।
  • मुहर्रम के दस दिनों तक, वे अजादारी (मातम) मनाते थे और कोई राग-रागिनी नहीं बजाते थे। वे अपने पूरे परिवार के साथ 8वीं तारीख को पैदल ही रोते हुए इमाम हुसैन के गम में मातम मनाते थे। यह उनकी धर्मपरायणता और कला के प्रति अगाध श्रद्धा का अद्भुत उदाहरण है।
  • उनके लिए काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर काशी के गंगा तट की तरह ही पवित्र थे।
गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक - मंदिर और मस्जिद

गंगा-जमुनी संस्कृति: बिस्मिल्लाह खान के जीवन का सार।

काशी और शहनाई का संबंध:

  • शहनाई को काशी की पहचान माना जाता है और इसे काशी की संगीत परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है।
  • बिस्मिल्लाह खान ने काशी को सुर की पाठशाला और आनंदकानन कहा है।
  • काशी संगीत, साहित्य और कला का केंद्र है, जहाँ शहनाई भी एक विशेष स्थान रखती है।
  • काशी बिस्मिल्लाह खान के लिए स्वर्ग के समान थी, जहाँ वे अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक रहना चाहते थे।
  • उन्होंने काशी और गंगा मैया को कभी नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें विश्वभर में नाम और सम्मान मिला हो।

बिस्मिल्लाह खान का व्यक्तित्व और उनकी सादगी:

  • वे अपनी कला के प्रति पूर्ण समर्पित थे और हमेशा रियाज (अभ्यास) को महत्व देते थे।
  • वे एक विनम्र, सादे और सीधे-सादे इंसान थे।
  • उन्हें दिखावा पसंद नहीं था। एक बार एक शिष्य ने उनके फटे तहबंद (लुंगी) पर टिप्पणी की, तो उन्होंने कहा कि यह लुंगी फटी है लेकिन ईश्वर ने उन्हें ऐसी आवाज दी है जिससे वे भारत रत्न जैसे सम्मान पा सके हैं।
  • उनकी जीवन-शैली बहुत सरल थी; वे कभी भी बड़े पैसे या भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागे।
  • वे हमेशा कहते थे कि ईश्वर उन पर मेहरबान हैं।
  • वे काशी, शहनाई और गंगा मैया को एक-दूसरे से अलग नहीं मानते थे और इसे भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग मानते थे।

2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या

यहाँ अध्याय में प्रयुक्त कुछ महत्वपूर्ण शब्द और संकल्पनाएँ दी गई हैं, जिन्हें 'शब्द निधि' से भी स्पष्ट किया गया है:

नौबतखाना (Nautbakhana): प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान। बालाजी मंदिर के प्रवेश द्वार पर यह स्थान था जहाँ बिस्मिल्लाह खान अभ्यास करते थे।

इबादत (Ibadat): उपासना या पूजा, विशेषकर इस्लामिक संदर्भ में। बिस्मिल्लाह खान के लिए संगीत ही उनकी इबादत थी।

रियाज (Riyaz): अभ्यास, संगीत का अभ्यास करना। बिस्मिल्लाह खान घंटों रियाज करते थे।

शहनाई (Shehnai): एक प्रकार का सुषिर वाद्य यंत्र, जो फूँक कर बजाया जाता है। यह रीड (नरकट) से बनता है और इसे शुभ अवसरों पर बजाया जाता है।

एक सुंदर शहनाई वाद्य यंत्र का क्लोज-अप

शहनाई - मंगल ध्वनि का प्रतीक।

सुषिर वाद्य (Sushir Vādya): ऐसे वाद्य यंत्र जो फूँक कर बजाए जाते हैं, जैसे बाँसुरी, शहनाई, नागस्वरम।

मुहर्रम (Muharram): शिया मुसलमानों का एक पवित्र महीना जिसमें इमाम हुसैन की शहादत का मातम मनाया जाता है। बिस्मिल्लाह खान इस महीने में शहनाई नहीं बजाते थे।

अजादारी (Azādārī): मातम करना, दुःख मनाना। मुहर्रम के दौरान इमाम हुसैन की शहादत पर किया जाने वाला मातम।

काशी (Kashi): वाराणसी का प्राचीन नाम, जो भारतीय संस्कृति और संगीत का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

ड्योढ़ी (Dyodhi): देहली, दरवाजे की चौखट। यहाँ बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी का उल्लेख है जहाँ शहनाई बजाई जाती थी।

तहबंद (Tahmad): लुंगी या धोती के समान एक पहनावा। बिस्मिल्लाह खान अपनी सादगी के कारण अक्सर फटे तहबंद में भी दिखते थे।

3. पुस्तक में दिए गए सभी उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए

यह अध्याय गणित या विज्ञान का नहीं है, जहाँ संख्यात्मक उदाहरण होते हैं। यहाँ "उदाहरण" का तात्पर्य बिस्मिल्लाह खान के जीवन की उन घटनाओं और anecdotes (किस्सों) से है जो उनके व्यक्तित्व और सिद्धांतों को दर्शाते हैं।

उदाहरण 1: नौबतखाने में रियाज (अभ्यास) का महत्व

पृष्ठभूमि: बिस्मिल्लाह खान का बचपन।

घटना: कमरुद्दीन (बिस्मिल्लाह खान) मात्र 14 वर्ष की आयु में ही काशी के बालाजी मंदिर के नौबतखाने में प्रतिदिन रियाज करने जाते थे।

स्पष्टीकरण: यह दर्शाता है कि बिस्मिल्लाह खान कितने कम उम्र से ही अपनी कला के प्रति समर्पित थे। नौबतखाना उनके लिए केवल एक जगह नहीं, बल्कि संगीत की पहली पाठशाला थी, जहाँ से उन्होंने अपने रियाज की नींव रखी। यह उनके कठोर परिश्रम और एकाग्रता को भी उजागर करता है।

उदाहरण 2: मुहर्रम के दौरान अजादारी और संगीत का त्याग

पृष्ठभूमि: बिस्मिल्लाह खान की धार्मिक आस्था।

घटना: मुहर्रम के दस दिनों तक बिस्मिल्लाह खान कोई राग-रागिनी नहीं बजाते थे। वे 8वीं तारीख को पैदल ही रोते हुए, मातम करते हुए, अपने परिवार के साथ इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते थे।

स्पष्टीकरण: यह घटना बिस्मिल्लाह खान की गहरी धार्मिक आस्था और संगीत के प्रति उनकी 'अजादारी' (अनुशासन) को दर्शाती है। वे एक सच्चे कलाकार होने के साथ-साथ एक सच्चे मुसलमान भी थे, जो अपने धर्म के रीति-रिवाजों का सम्मान करते थे। यह उनके लिए संगीत से भी बढ़कर, अपने विश्वास और श्रद्धा का प्रतीक था।

उदाहरण 3: शिष्य का फटे तहबंद पर प्रश्न और बिस्मिल्लाह खान का उत्तर

पृष्ठभूमि: बिस्मिल्लाह खान की सादगी।

घटना: एक दिन एक शिष्य ने बिस्मिल्लाह खान के फटे हुए तहबंद (लुंगी) को देखकर आपत्ति की। शिष्य ने कहा, "बाबा! आप यह क्या करते हैं? यह फटा तहबंद न पहना करें।"

बिस्मिल्लाह खान का उत्तर: बिस्मिल्लाह खान ने मुस्कुराते हुए कहा, "धत्! पगली! ई भारत रत्न हमको शहनाइया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं। अब का बताएँ, मालिक से यही सुर बख्शा है, लुंगिया का क्या है, आज फटी है तो कल सिल जाएगी।"

स्पष्टीकरण: यह घटना बिस्मिल्लाह खान की अद्भुत सादगी, अहंकार-रहित व्यक्तित्व और अपनी कला के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाती है। उनके लिए भौतिक वस्तुएँ (जैसे फटी लुंगी) महत्वहीन थीं; महत्वपूर्ण केवल उनकी संगीत कला और उस पर ईश्वर की कृपा थी।

उदाहरण 4: काशी न छोड़ने का आग्रह

पृष्ठभूमि: बिस्मिल्लाह खान का काशी से अगाध प्रेम।

घटना: एक बार विदेश में उन्हें शहनाई बजाने के लिए आमंत्रित किया गया। एक शिष्या ने उनसे काशी छोड़कर विदेश में बसने का आग्रह किया, जहाँ गंगा भी होगी और बालाजी मंदिर भी बनवाया जाएगा।

बिस्मिल्लाह खान का उत्तर: बिस्मिल्लाह खान ने उत्तर दिया, "काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मैया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी मंदिर यहाँ। यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है। हम कहाँ जाएँ! काशी को छोड़कर जन्नत नहीं! शहनाई और काशी को छोड़कर जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए!"

स्पष्टीकरण: यह कथन बिस्मिल्लाह खान के काशी, गंगा और बालाजी मंदिर से अटूट रिश्ते को दर्शाता है। उनके लिए काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि उनकी पहचान, उनकी कला का आधार और उनके जीवन का केंद्र था।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर

1. डुमरॉव की महत्ता किस कारण से है?

डुमरॉव की महत्ता दो कारणों से है: पहला, यह बिस्मिल्लाह खान का जन्म स्थान है। दूसरा, यहाँ नरकट (एक प्रकार की घास) पाई जाती है, जिसका उपयोग शहनाई बनाने में किया जाता है। इसी नरकट से बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की रीड बनती थी।

2. सुषिर वाद्य किन्हें कहते हैं? ‘शहनाई’ शब्द की व्युत्पत्ति किस प्रकार हुई है?

सुषिर वाद्य उन वाद्यों को कहते हैं जिन्हें फूँककर बजाया जाता है, जैसे बांसुरी, शहनाई, नागस्वरम आदि।

‘शहनाई’ शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में लोकमत है कि यह ‘शाह’ (अर्थात सम्राट) और ‘नई’ (अर्थात नरकट से बनी हुई नली) के मेल से बना है, क्योंकि यह वाद्य कभी बादशाहों के शाही दरबार में बजाया जाता था और इसकी आवाज़ बहुत मधुर होती है।

3. बिस्मिल्लाह खाँ सजदे में किस चीज के लिए गिड़गिड़ाते थे? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष उद्घाटित होता है?

बिस्मिल्लाह खान सजदे (ईश्वर के आगे झुकना) में सच्चे सुर की नेमत (ईश्वर की देन/वरदान) के लिए गिड़गिड़ाते थे।

इससे उनके व्यक्तित्व का विनम्र, कला के प्रति समर्पित और ईश्वर पर आस्थावान पक्ष उद्घाटित होता है। वे मानते थे कि सुर ईश्वर की देन है और वे अपनी कला को ईश्वर की इबादत मानते थे।

4. मुहर्रम से बिस्मिल्लाह खाँ के जुड़ाव को पाठ के आधार पर बताएँ।

मुहर्रम से बिस्मिल्लाह खान का गहरा जुड़ाव था। वे एक सच्चे शिया मुसलमान थे। मुहर्रम के दस दिनों तक वे कोई राग-रागिनी नहीं बजाते थे। वे 8वीं तारीख को अपने पूरे परिवार के साथ मातम मनाते हुए, पैदल ही इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हुए, फातमान के करीब 8 कि.मी. की दूरी तक रोते हुए जाते थे। यह उनकी धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का प्रतीक था।

5. ‘संगीतमय कचौड़ी’ का क्या अभिप्राय है?

‘संगीतमय कचौड़ी’ का अभिप्राय यह है कि बिस्मिल्लाह खान के लिए कचौड़ी में भी संगीत की गमक होती थी। उनके लिए कचौड़ी के गरमागरम मसाले में भी सुर और लय का अनुभव होता था। यह उनकी सरल, रसिक और संगीत में डूबी हुई प्रवृत्ति को दर्शाता है।

6. बिस्मिल्लाह खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है?

जब बिस्मिल्लाह खान काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे, तो वे काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर की दिशा में मुँह करके बैठते थे और गंगा मैया की ओर अपनी शहनाई का मुँह करके बजाते थे।

इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी मातृभूमि और संस्कृति की जड़ों से हमेशा जुड़े रहना चाहिए। यह मातृभूमि के प्रति प्रेम और अपनी पहचान को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

7. ‘बिस्मिल्लाह खाँ का मतलब – बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई’। एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्लाह खाँ का परिचय पाठ के आधार पर दें।

'बिस्मिल्लाह खाँ का मतलब – बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई' इस कथन का अर्थ है कि बिस्मिल्लाह खान और उनकी शहनाई एक-दूसरे के पर्याय थे, अविभाज्य थे।

एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्लाह खान का परिचय:

  • महान शहनाई वादक: वे भारत के सर्वोच्च शहनाई वादक थे।
  • संगीत के प्रति समर्पण: उन्होंने अपना पूरा जीवन संगीत साधना को समर्पित कर दिया।
  • विनम्र और सादगीपूर्ण: वे अत्यंत विनम्र और सादगीपसंद व्यक्ति थे।
  • सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक: वे गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक थे।
  • मातृभूमि से प्रेम: उन्हें अपनी मातृभूमि काशी से अगाध प्रेम था।

8. आशय स्पष्ट करें: क) फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है तो कल सिल जाएगी।

आशय: इस कथन से बिस्मिल्लाह खान की विनम्रता, सादगी और कला के प्रति समर्पण स्पष्ट होता है। वे कहना चाहते थे कि भौतिक वस्तुएँ (जैसे फटी लुंगी) महत्वहीन हैं, लेकिन संगीत में 'फटा सुर' (बेसुरापन) कभी स्वीकार्य नहीं है। उनके लिए कला की शुद्धता सर्वोपरि थी, न कि बाहरी दिखावा।

ख) काशी संस्कृति की पाठशाला है।

आशय: काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, संगीत और आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र है। यहाँ गंगा-जमुनी तहजीब, विभिन्न कलाएँ और शास्त्रीय संगीत की परंपराएँ फलती-फूलती हैं। बिस्मिल्लाह खान ने काशी में ही अपनी संगीत शिक्षा ली और अपनी कला को निखारा, इसलिए उनके लिए काशी 'सुरों की पाठशाला' थी।

5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित 20 नये अभ्यास प्रश्न (विस्तृत हल सहित)

1. बिस्मिल्लाह खान के बचपन का नाम क्या था और वे किस आयु में अपने ननिहाल काशी आए?

बिस्मिल्लाह खान के बचपन का नाम कमरुद्दीन था। वे लगभग 5-6 वर्ष की आयु में अपने ननिहाल काशी आए थे।

2. बिस्मिल्लाह खान के संगीत गुरु कौन-कौन थे?

बिस्मिल्लाह खान के संगीत गुरु उनके मामा सादक हुसैन और उनके नाना उस्ताद पैगम्बर बख्श खान थे। मिट्ठन साहब भी उनके उस्तादों में से एक थे।

3. नौबतखाना किसे कहते हैं और बिस्मिल्लाह खान का इससे क्या संबंध था?

नौबतखाना मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर वह स्थान है जहाँ मंगल ध्वनि बजाई जाती है। बिस्मिल्लाह खान 14 वर्ष की आयु से ही काशी के बालाजी मंदिर के नौबतखाने में रियाज (अभ्यास) करते थे। यह उनके संगीत साधना का प्रारंभिक केंद्र था।

4. बिस्मिल्लाह खान ईश्वर से क्या दुआ करते थे?

बिस्मिल्लाह खान ईश्वर से सच्चे सुर की नेमत (वरदान) की दुआ करते थे। वे हमेशा कहते थे कि मालिक उन्हें ऐसा सुर बख्शे जिससे उनकी शहनाई की धुनें लोगों के दिल में उतर सकें।

5. बिस्मिल्लाह खान की दृष्टि में काशी किस प्रकार का स्थान था?

बिस्मिल्लाह खान की दृष्टि में काशी सुर की पाठशाला और आनंदकानन था। उनके लिए काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि उनकी कला, संस्कृति और जीवन का आधार था।

6. मुहर्रम के अवसर पर बिस्मिल्लाह खान की दिनचर्या में क्या परिवर्तन आता था?

मुहर्रम के दस दिनों तक बिस्मिल्लाह खान शहनाई नहीं बजाते थे और किसी भी प्रकार के राग-रागिनी से दूर रहते थे। वे अपने पूरे परिवार के साथ मातम मनाते हुए, पैदल चलकर इमाम हुसैन की शहादत का स्मरण करते थे।

7. पाठ में बिस्मिल्लाह खान के किन गुणों का उल्लेख किया गया है?

पाठ में बिस्मिल्लाह खान की सादगी, विनम्रता, संगीत के प्रति समर्पण, धार्मिक सहिष्णुता, ईश्वर पर आस्था, मातृभूमि से प्रेम और कला की शुद्धता जैसे गुणों का उल्लेख किया गया है।

8. गंगा-जमुनी संस्कृति से क्या अभिप्राय है और बिस्मिल्लाह खान इसके प्रतीक कैसे थे?

गंगा-जमुनी संस्कृति से अभिप्राय भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांस्कृतिक समन्वय और सह-अस्तित्व से है। बिस्मिल्लाह खान मुस्लिम होने के बावजूद काशी के बालाजी मंदिर और विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते थे, जो उनके हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द का सबसे बड़ा प्रतीक था।

9. शहनाई को सुषिर वाद्यों में 'शाह' की उपाधि क्यों दी गई है?

शहनाई को सुषिर वाद्यों में 'शाह' की उपाधि इसलिए दी गई है क्योंकि यह अपनी मधुर ध्वनि और शुभता के कारण अन्य फूँक वाद्यों में श्रेष्ठ मानी जाती थी और इसे शाही दरबारों में बजाया जाता था।

10. बिस्मिल्लाह खान को भारत रत्न कब मिला और इसका उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

बिस्मिल्लाह खान को 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इस सम्मान के बाद भी उनके जीवन-शैली में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया। वे अपनी सादगी और कला के प्रति समर्पण पर अटल रहे।

11. बिस्मिल्लाह खान को 'खुदा उन पर मेहरबान' क्यों लगता था?

बिस्मिल्लाह खान को लगता था कि खुदा उन पर मेहरबान है क्योंकि उन्हें ईश्वर ने ऐसा सुर बख्शा था जिससे वे लोगों के दिलों को छू सकते थे। उनका मानना था कि उनकी कला ईश्वर की ही देन है।

12. काशी छोड़कर विदेश जाने के प्रस्ताव पर बिस्मिल्लाह खान की क्या प्रतिक्रिया थी?

काशी छोड़कर विदेश जाने के प्रस्ताव पर बिस्मिल्लाह खान ने स्पष्ट मना कर दिया। उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ, बालाजी मंदिर और गंगा मैया को छोड़कर वे कहीं और नहीं जा सकते। उनके लिए काशी ही जन्नत थी।

13. बिस्मिल्लाह खान की कला को कौन-कौन से प्रसिद्ध रागों में सुना जा सकता था?

बिस्मिल्लाह खान की कला को प्रतिदिन बजाए जाने वाले विभिन्न रागों जैसे मुलतानी, कल्याण, ललित और कभी-कभी भैरव रागों में सुना जा सकता था।

14. शहनाई बनाने में नरकट का क्या महत्व है?

नरकट एक प्रकार की घास है जिसका उपयोग शहनाई की रीड (मुख) बनाने में किया जाता है। इसी रीड से शहनाई से ध्वनि उत्पन्न होती है, अतः यह शहनाई के निर्माण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

15. लेखक ने बिस्मिल्लाह खान को संगीत का 'नायक' क्यों कहा है?

लेखक ने बिस्मिल्लाह खान को संगीत का 'नायक' इसलिए कहा है क्योंकि उन्होंने शहनाई को शास्त्रीय संगीत के मंच पर स्थापित किया और उसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान ने उन्हें संगीत जगत का नायक बना दिया।

16. बिस्मिल्लाह खान के किन शिष्यों का उल्लेख पाठ में किया गया है?

पाठ में बिस्मिल्लाह खान की एक शिष्या का उल्लेख है, जिसने उनसे काशी छोड़कर विदेश में बसने का आग्रह किया था, और एक अन्य शिष्य का जिसने उनके फटे तहबंद पर टिप्पणी की थी।

17. भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी बिस्मिल्लाह खान की जीवन-शैली में क्या बदलाव नहीं आया?

भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी बिस्मिल्लाह खान की जीवन-शैली में कोई बदलाव नहीं आया। वे पहले की तरह ही सादी और विनम्र जीवन-शैली जीते थे, फटे तहबंद पहनते थे, और पैसों से ज़्यादा अपनी कला की शुद्धता को महत्व देते थे।

18. बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की मंगल ध्वनि कहाँ-कहाँ सुनाई देती थी?

बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की मंगल ध्वनि काशी के बालाजी मंदिर के नौबतखाने में प्रतिदिन, भारत के स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर, और विभिन्न रियासतों के दरबारों में तथा फिल्मों में भी सुनाई देती थी।

19. बिस्मिल्लाह खान के लिए 'जन्नत' क्या थी?

बिस्मिल्लाह खान के लिए काशी और उनकी शहनाई ही जन्नत थी। वे मानते थे कि काशी में ही गंगा मैया, बाबा विश्वनाथ और बालाजी मंदिर हैं, और यही वह भूमि है जहाँ उन्होंने अपनी कला को निखारा।

20. अध्याय में किन दो धर्मों और उनके त्योहारों का उल्लेख है जो बिस्मिल्लाह खान के जीवन से जुड़े थे?

अध्याय में हिंदू धर्म (बालाजी मंदिर में रियाज, काशी विश्वनाथ और गंगा मैया में आस्था) और इस्लाम धर्म (मुहर्रम का मातम, नमाज़) का उल्लेख है, जिनसे बिस्मिल्लाह खान का जीवन गहराई से जुड़ा था।

अध्याय का संक्षिप्त सारांश (Quick Revision)

'नौबतखाने में इबादत' पाठ उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के प्रेरणादायक जीवन और व्यक्तित्व पर केंद्रित है, जो संगीत, धर्म और मानवता के अद्भुत संगम थे।

  • बिस्मिल्लाह खान का परिचय: उनका जन्म डुमरॉव में कमरुद्दीन के नाम से हुआ और बचपन काशी में बीता, जहाँ उन्होंने मामा सादक हुसैन और नाना पैगम्बर बख्श खान से शहनाई सीखी।
  • कला और साधना: वे 14 साल की उम्र से ही बालाजी मंदिर के नौबतखाने में रियाज करते थे और सच्चे सुर की नेमत के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते थे।
  • धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक: मुस्लिम होने के बावजूद, वे काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर को पवित्र मानते थे, जो उनकी गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक था।
  • मुहर्रम का महत्व: मुहर्रम के दस दिनों तक वे शहनाई नहीं बजाते थे और इमाम हुसैन की शहादत का मातम मनाते थे।
  • काशी से प्रेम: उन्हें अपनी मातृभूमि काशी से अगाध प्रेम था और उन्होंने इसे कभी नहीं छोड़ा।
  • सादगी और विनम्रता: वे आजीवन सादगी और विनम्रता से जिए, भौतिक सुखों से दूर रहकर कला की शुद्धता को सर्वोपरि माना।
  • राष्ट्रीय सम्मान: उन्हें 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  • अध्याय का संदेश: यह पाठ हमें कला के प्रति समर्पण, धार्मिक सहिष्णुता, विनम्रता और अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है।

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