Bihar Board class10 Hindi Chapter12: शिक्षा और संस्कृति Revision Notes | महात्मा गाँधी के विचार |

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शिक्षा और संस्कृति Class 10 Notes | महात्मा गाँधी के विचार | Chapter 12 Hindi

शिक्षा और संस्कृति: आत्म-अध्ययन नोट्स

Class 10 Hindi Chapter 12 'शिक्षा और संस्कृति' के इस विस्तृत ब्लॉग में आपका स्वागत है। यह अध्याय राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के शिक्षा, संस्कृति, दस्तकारी और मातृभाषा पर गहरे विचारों को प्रस्तुत करता है। इस पोस्ट में आपको गाँधीजी के शिक्षा पर विचार, अहिंसक प्रतिरोध का महत्व, और सर्वांगीण विकास की अवधारणा पर आधारित संपूर्ण नोट्स, प्रश्न-उत्तर और अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न मिलेंगे, जो आपकी परीक्षा की तैयारी को आसान बना देंगे।

महात्मा गाँधी शिक्षा और संस्कृति पर विचार करते हुए

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी - शिक्षा को चरित्र निर्माण का आधार मानते हुए।

1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या

क. गाँधीजी की शिक्षा की अवधारणा

गाँधीजी के अनुसार, अहिंसक प्रतिरोध सबसे उदात्त और बढ़िया शिक्षा है। उनका मानना था कि शिक्षा का अर्थ सिर्फ अक्षर ज्ञान देना नहीं है, बल्कि बच्चों को भयहीन, सत्य और अहिंसा के साथ जीना सिखाना है। गाँधीजी के लिए शिक्षा का अभिप्राय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का पूर्ण विकास (सर्वांगीण विकास) है। वे कहते हैं कि मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास इंद्रियों के बुद्धिपूर्वक उपयोग से ही संभव है।

बच्चे हाथ से मिट्टी के बर्तन बनाना सीख रहे हैं - दस्तकारी का प्रतीक

दस्तकारी (हस्तकला) - गाँधीजी की शिक्षा का अभिन्न अंग।

ख. दस्तकारी (व्यवहारिक शिक्षा) का महत्व

गाँधीजी का मानना था कि शिक्षा का आरंभ किसी दस्तकारी या उद्योग के साथ होना चाहिए, जिससे बच्चा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उत्पादन का काम करके अपनी जीविका कमा सके। वे चाहते थे कि सारी शिक्षा दस्तकारी या उद्योगों के माध्यम से दी जाए। यह बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में भी सहायक होगा। इससे सामाजिक क्रांति भी संभव है, जैसे कताई और बुनाई जैसे ग्रामीणोद्योगों से गरीबी-अमीरी का भेद मिट सकता है।

ग. मातृभाषा और संस्कृति का महत्व

गाँधीजी अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने के प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि अपनी भाषा और संस्कृति के माध्यम से ही मनुष्य का सच्चा आत्म-विकास हो सकता है। वे विदेशी भाषा सीखने के विरोधी नहीं थे, लेकिन यह अपनी मातृभाषा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। गाँधीजी भारतीय संस्कृति को एक विशाल वृक्ष के समान मानते थे, जो विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय है। वे चाहते थे कि हम दूसरी संस्कृतियों को आत्मसात करें, पर अपनी संस्कृति को भूलकर नहीं

एक विशाल बरगद का पेड़ जो भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाता है

भारतीय संस्कृति - एक विशाल वृक्ष जिसकी अनेक शाखाएँ हैं।

2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या

अहिंसक प्रतिरोध: बिना हिंसा के विरोध करना, सत्याग्रह का मार्ग अपनाना। गाँधीजी इसे सबसे बढ़िया शिक्षा मानते थे।

इंद्रियों का सदुपयोग: आँख, कान, हाथ, पैर आदि इंद्रियों का सही और रचनात्मक ढंग से उपयोग।

सर्वांगीण: संपूर्ण, सभी अंगों का विकास; शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक सभी पहलुओं का विकास।

दस्तकारी: हस्तकौशल, हस्तशिल्प; हाथ से की जाने वाली कारीगरी। गाँधीजी इसे शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा मानते थे।

अभिविभाज्य: जिसे अलग-अलग बांटा न जा सके; अविभाज्य।

कुएँ का मेंढक: एक मुहावरा जिसका अर्थ है संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति जो सीमित ज्ञान रखता है और बाहर की दुनिया से अनभिज्ञ रहता है।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर

1. गाँधीजी बढ़िया शिक्षा किसे कहते हैं?

गाँधीजी के अनुसार, अहिंसक प्रतिरोध सबसे बढ़िया शिक्षा है। वे मानते थे कि यह शिक्षा बच्चों को निर्भय बनाती है और उन्हें सत्य तथा अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाती है।

2. इंद्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग सोखना क्यों जरूरी है?

इंद्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग सोखना इसलिए जरूरी है क्योंकि मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास तभी संभव है जब बच्चा अपनी इंद्रियों का सही उपयोग करे। इसके बिना बुद्धि का विकास एकांगी रह जाता है।

3. शिक्षा का अभिप्राय गाँधीजी क्या मानते हैं?

गाँधीजी के अनुसार, शिक्षा का अभिप्राय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का सर्वांगीण और सबसे अच्छा विकास है। यह सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है।

4. मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास कैसे संभव है?

मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास इंद्रियों के बुद्धिपूर्वक उपयोग और तालीम के द्वारा ही संभव है।

5. गाँधीजी कताई और बुनाई जैसे ग्रामीणोद्योग द्वारा सामाजिक क्रांति कैसे संभव मानते थे?

गाँधीजी का मानना था कि कताई-बुनाई जैसे ग्रामीणोद्योगों को शिक्षा का अंग बनाने से बच्चे आत्मनिर्भर बनेंगे, जिससे बेरोजगारी कम होगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। यह गरीब-अमीर का भेद मिटाकर एक सामाजिक-आर्थिक क्रांति लाएगा।

6. शिक्षा का ध्येय गाँधीजी क्या मानते थे और क्यों?

गाँधीजी शिक्षा का ध्येय मनुष्य के शारीरिक, बुद्धि और आत्मा के सभी उत्तम गुणों को प्रकट करना मानते थे। वे इसे व्यक्ति के सर्वांगीण विकास और चरित्र निर्माण का साधन मानते थे।

7. गाँधीजी देशी भाषाओं में बड़े पैमाने पर अनुवाद कार्य क्यों आवश्यक मानते थे?

गाँधीजी देशी भाषाओं में अनुवाद कार्य इसलिए आवश्यक मानते थे ताकि भारतीय लोग दुनिया के ज्ञान-भंडार से अपनी ही भाषाओं के माध्यम से जुड़ सकें और 'कुएँ का मेंढक' न बनें

8. दूसरी संस्कृति से पहले अपनी संस्कृति की गहरी समझ क्यों जरूरी है?

अपनी संस्कृति की गहरी समझ इसलिए जरूरी है ताकि व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा रहे और अपनी पहचान बनाए रखे। अपनी संस्कृति की नींव पर ही दूसरी संस्कृतियों को सही ढंग से समझा और आत्मसात किया जा सकता है।

9. अपनी संस्कृति और मातृभाषा का बुनियाद पर दूसरी संस्कृतियों और भाषाओं से संपर्क क्यों बनाया जाना चाहिए? गाँधीजी की राय स्पष्ट कीजिए।

गाँधीजी के अनुसार, अपनी संस्कृति और मातृभाषा की बुनियाद पर दूसरी संस्कृतियों से संपर्क इसलिए बनाना चाहिए ताकि व्यक्ति समृद्ध हो सके, पर अपनी पहचान न खोए। यह हमें संकीर्ण होने से बचाता है और विश्व ज्ञान से जोड़ता है।

10. गाँधीजी किस तरह के सामंजस्य को भारत के बेहतर मानते हैं और क्यों?

गाँधीजी भारत के लिए विभिन्न संस्कृतियों के वास्तविक और सहज सामंजस्य को बेहतर मानते हैं। वे ऐसी एकता चाहते थे जो कृत्रिम या जबरदस्ती की न हो, बल्कि स्वयंस्फूर्त हो और विविधता का सम्मान करे।

11. आशय स्पष्ट करें:

(क) मैं चाहता हूँ कि सारी शिक्षा किसी दस्तकारी या उद्योगों के द्वारा दी जाए।
आशय: इस कथन का आशय है कि गाँधीजी चाहते थे कि शिक्षा का माध्यम कोई हस्तकला या उद्योग हो, जिससे छात्र बचपन से ही उत्पादन का काम सीखें। इससे वे आत्मनिर्भर बनेंगे और शिक्षा पूरी होने पर अपनी जीविका कमा सकेंगे।

(ख) इस समय भारत में शुद्ध आर्य संस्कृति जैसी कोई चीज मौजूद नहीं है।
आशय: इस कथन से गाँधीजी समझाना चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति एक विशाल संगम है, जो सदियों से विभिन्न जातियों, संस्कृतियों और धर्मों के मेल से बनी है, न कि किसी 'शुद्ध' या एक अकेली परंपरा से।

(ग) मेरा धर्म कैदखाने का धर्म नहीं है।
आशय: इस कथन का अर्थ है कि गाँधीजी का धर्म संकीर्ण, कट्टर या सीमित नहीं है, बल्कि यह उदार, व्यापक और सभी को समाहित करने वाला है। यह प्रेम और सहिष्णुता सिखाता है।

5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित 20 नए अभ्यास प्रश्न

1. गाँधीजी बच्चों को मिलने वाली साधारण अक्षर-ज्ञान की शिक्षा के बाद और क्या सिखाना आवश्यक मानते थे?

गाँधीजी बच्चों को साधारण अक्षर-ज्ञान के बाद यह सिखाना आवश्यक मानते थे कि वे मनुष्य के रूप में क्या हैं, वे दुनिया में क्या करने आए हैं, और आत्मा क्या है। वे चाहते थे कि बच्चे भयहीन होकर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर जीना सीखें।

2. गाँधीजी ने बच्चों की तालीम देने का प्रयोग किन आश्रमों में किया था?

गाँधीजी ने बच्चों की तालीम देने का प्रयोग पहले टॉलस्टॉय फ़ार्म और बाद में फिनिक्स आश्रम में किया था।

3. 'मेरा हृदय की शिक्षा है' से गाँधीजी का क्या अभिप्राय है?

'मेरा हृदय की शिक्षा है' से गाँधीजी का अभिप्राय यह है कि शिक्षा केवल बौद्धिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और नैतिक होनी चाहिए, जो हृदय को शुद्ध करे और प्रेम-सहानुभूति सिखाए।

4. गाँधीजी अंग्रेजी भाषा सीखने के विरोधी थे या नहीं? स्पष्ट कीजिए।

गाँधीजी अंग्रेजी भाषा सीखने के विरोधी नहीं थे। वे चाहते थे कि हम अन्य भाषाओं से ज्ञान प्राप्त करें, लेकिन यह अपनी मातृभाषा की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

5. गाँधीजी 'कुएँ का मेंढक' मुहावरे का प्रयोग किस संदर्भ में करते हैं?

गाँधीजी 'कुएँ का मेंढक' मुहावरे का प्रयोग उन लोगों के लिए करते हैं जो अपनी भाषा और संस्कृति से कटकर केवल विदेशी ज्ञान को ही सब कुछ मान लेते हैं और संकीर्ण हो जाते हैं।

6. गाँधीजी के अनुसार भारतीय संस्कृति की क्या विशेषता है?

गाँधीजी के अनुसार भारतीय संस्कृति की विशेषता यह है कि यह किसी एक जाति की नहीं, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों, जातियों और धर्मों का एक विशाल संगम है। यह समन्वय और सहिष्णुता पर आधारित है।

7. गाँधीजी की शिक्षा पद्धति किस प्रकार एक सामाजिक क्रांति ला सकती है?

गाँधीजी की शिक्षा पद्धति, जिसमें दस्तकारी को प्राथमिकता दी जाती है, लोगों को आत्मनिर्भर बनाकर बेरोजगारी कम करेगी। इससे समाज में गरीब-अमीर का भेद कम होगा और एक समतावादी समाज का निर्माण होगा, जो एक सामाजिक क्रांति है।

8. गाँधीजी के अनुसार, भारतीय समाज के लिए किस प्रकार की 'विदेशी सहायता' हानिकारक हो सकती है?

गाँधीजी के अनुसार, भारतीय समाज के लिए ऐसी विदेशी सहायता हानिकारक हो सकती है जो उसे अपनी पारंपरिक उद्योगों और आत्मनिर्भरता से दूर ले जाए, या जो लोगों को अपनी संस्कृति और भाषाओं से विमुख करे।

9. गाँधीजी के अनुसार 'मस्तिष्क और आत्मा' का उच्चतम विकास किन दो साधनों से होता है?

गाँधीजी के अनुसार 'मस्तिष्क और आत्मा' का उच्चतम विकास इंद्रियों के बुद्धिपूर्वक उपयोग और तालीम (शिक्षा/प्रशिक्षण) द्वारा होता है।

10. गाँधीजी शिक्षा को किस प्रकार 'कष्ट-सहन' से जोड़ते हैं?

गाँधीजी शिक्षा को बालक के जीवन-संग्राम का हिस्सा मानते थे, जहाँ उसे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए कठिनाइयों का सामना करने और उन्हें सरलता से सहने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।

अध्याय का संक्षिप्त सारांश (Quick Revision)

"शिक्षा और संस्कृति" अध्याय महात्मा गाँधी के शैक्षिक और सांस्कृतिक दर्शन का सार प्रस्तुत करता है।

  • शिक्षा का उद्देश्य: शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान नहीं, बल्कि मनुष्य का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक (सर्वांगीण) विकास है।
  • आत्मनिर्भरता और दस्तकारी: शिक्षा का आरंभ किसी दस्तकारी या उद्योग से हो, ताकि छात्र आत्मनिर्भर बन सकें।
  • मातृभाषा का महत्व: शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए, क्योंकि इसी से सच्चा आत्म-विकास संभव है।
  • संस्कृति का स्वरूप: भारतीय संस्कृति एक विशाल संगम है, जो विभिन्न संस्कृतियों के मेल से बनी है। यह उदार है, संकीर्ण नहीं।
  • समन्वय: भारत में विभिन्न संस्कृतियों का वास्तविक और सहज सामंजस्य होना चाहिए, न कि कृत्रिम एकता।

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