Bihar Board class10 Political science(SST)लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Class 10 Notes | Power Sharing Chapter 1

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लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Class 10 Notes | Power Sharing Chapter 1

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी: सम्पूर्ण आत्म-अध्ययन नोट्स

नमस्ते प्रिय छात्रों! इस अध्याय में हम लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक - 'सत्ता की साझेदारी' (Power Sharing in Democracy) को समझने जा रहे हैं। लोकतंत्र सिर्फ वोट देने या सरकार चुनने का नाम नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि समाज के सभी वर्गों को सत्ता में उचित हिस्सेदारी मिले। यह ब्लॉग Class 10 Political Science Chapter 1 की सभी अवधारणाओं, जैसे सामाजिक विभाजन, साम्प्रदायिकता, और जाति, धर्म और लिंग की राजनीति पर प्रभाव को सरल भाषा में समझाएगा। हम बेल्जियम मॉडल और भारत में सत्ता की साझेदारी के उदाहरणों का भी विश्लेषण करेंगे।

विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ मिलकर भारत का नक्शा बना रहे हैं, जो सत्ता की साझेदारी को दर्शाता है।

सत्ता की साझेदारी - लोकतंत्र की आत्मा और विविधता में एकता का आधार।

1. महत्वपूर्ण अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ

सामाजिक विविधता (Social Diversity): यह समाज में लोगों के बीच पाए जाने वाले विभिन्न अंतरों (भाषा, धर्म, जाति, लिंग आदि) को दर्शाती है। यह एक स्वाभाविक घटना है।

सामाजिक विभाजन (Social Division): जब सामाजिक विविधताएँ भेदभाव या संघर्ष का कारण बनती हैं, तो वे सामाजिक विभाजन का रूप ले लेती हैं।

साम्प्रदायिकता (Communalism): यह एक विचारधारा है जहाँ धर्म को समुदाय का मुख्य आधार माना जाता है और एक धार्मिक समूह दूसरे पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश करता है।

लैंगिक असमानता (Gender Inequality): समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषों को दी गई असमान भूमिकाएँ, जिससे महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में कम अवसर मिलते हैं।

जातिवाद (Casteism): यह एक विचारधारा है जहाँ जाति को व्यक्ति की पहचान का मुख्य आधार माना जाता है, जो भेदभाव को जन्म देता है।

धर्मनिरपेक्षता (Secularism): एक ऐसा सिद्धांत जहाँ राज्य का कोई अपना धर्म नहीं होता और वह सभी धर्मों को समान सम्मान देता है।

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था (Democratic Governance System): एक ऐसी शासन प्रणाली जिसमें लोग ही शासन के केंद्र बिंदु होते हैं और अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाते हैं।

भारत की सामाजिक विविधता दर्शाने वाली छवि - विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग एक साथ।

भारत की सामाजिक विविधता: चुनौतियाँ और अवसर।

2. उदाहरणों का विस्तृत विश्लेषण

क. मुंबई का भाषाई और क्षेत्रीय मुद्दा

यह उदाहरण क्षेत्रीय और भाषाई अंतरों के कारण होने वाले सामाजिक विभाजन को दर्शाता है।

  • विश्लेषण: 1961 से 2001 तक मुंबई में मराठी भाषी आबादी का प्रभुत्व बढ़ा। काम की तलाश में आए उत्तर भारतीयों (जिन्हें 'गरीब भैया' कहा गया) को भेदभाव का सामना करना पड़ा।
  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। यह किसी भी नागरिक को देश में कहीं भी बसने और काम करने का अधिकार देता है।
  • राजनीतिक प्रभाव: यह दिखाता है कि कैसे क्षेत्रीय भावनाएँ सामाजिक बंटवारे को जन्म दे सकती हैं, जो लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है।

ख. बेल्जियम का भाषाई विभाजन

यह उदाहरण दिखाता है कि भाषाई विविधता और आर्थिक असमानता कैसे गंभीर तनाव पैदा कर सकती है और सत्ता की साझेदारी से इसे कैसे हल किया जा सकता है।

  • जनसंख्या: 59% डच भाषी (फ्लेमिश) और 40% फ्रेंच भाषी (वालोनिया)। राजधानी ब्रुसेल्स में 80% फ्रेंच भाषी।
  • संघर्ष: फ्रेंच भाषी लोग अधिक समृद्ध थे, जिससे डच भाषियों में नाराजगी थी।
  • समाधान: बेल्जियम ने सत्ता की साझेदारी का एक सफल मॉडल अपनाया, जिससे गृहयुद्ध टल गया।

ग. उत्तरी आयरलैंड का धार्मिक विभाजन

यह उदाहरण धार्मिक विविधता के राजनीतिक पहचान से जुड़ने पर होने वाले हिंसक संघर्ष को दर्शाता है।

  • विभाजन: 53% प्रोटेस्टेंट (ग्रेट ब्रिटेन के साथ रहना चाहते हैं) और कैथोलिक (आयरलैंड गणराज्य में मिलना चाहते हैं)।
  • संघर्ष: दोनों समूहों के बीच हिंसक टकराव हुए, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई। यह दिखाता है कि जब सामाजिक विभाजन को ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

घ. भारत में सामाजिक विविधता और विभाजन

भारत सामाजिक विविधताओं का एक जटिल उदाहरण है, जहाँ सत्ता की साझेदारी ने देश को एकजुट रखा है।

  • पहचान: भारत में जन्म-आधारित (जाति, लिंग) और इच्छा-आधारित (धर्म, पेशा) दोनों तरह की विविधताएँ हैं। हम सभी की एक से ज़्यादा पहचान होती है (बहुआयामी पहचान)।
  • युगोस्लाविया से तुलना: युगोस्लाविया सामाजिक विविधताओं को संभालने में असमर्थ रहा और टूट गया, जबकि भारत ने सामाजिक न्याय को महत्व देकर समरसता बनाए रखी है।

3. जाति, धर्म और लिंग का राजनीति पर प्रभाव

क. जाति का राजनीति पर प्रभाव

जातिगत असमानताएँ और वर्ण-व्यवस्था भारतीय समाज की ऐतिहासिक सच्चाई रही है। हालांकि शहरीकरण और शिक्षा ने इसे कमजोर किया है, फिर भी यह राजनीति को प्रभावित करती है।

  • दलित जातियों में राजनीतिक चेतना बढ़ी है।
  • चुनावों में पार्टियाँ जातीय समीकरणों को ध्यान में रखती हैं, लेकिन यह मानना गलत है कि चुनाव सिर्फ जातियों का खेल है। कोई भी पार्टी सिर्फ एक जाति के वोट से नहीं जीत सकती।
  • राजनीति ने वंचित जातियों को अपनी आवाज उठाने और सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने का मंच दिया है।
"सदियों से शोषित लोगों ने 'अंधेरे की इस पथ यात्रा से' सफर किया है और उन्हें 'खाने को पत्थर' मिला है, लेकिन अब वे बदलाव चाहते हैं।" - यह कवि नामदेव ढसाल की कविता दलितों के ऐतिहासिक संघर्ष को दर्शाती है।
एक संतुलित तराजू जिस पर विभिन्न धर्मों के प्रतीक रखे हैं, जो धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है।

धर्मनिरपेक्षता - भारतीय लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ।

ख. धर्म का राजनीति पर प्रभाव

गांधीजी मानते थे कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित नैतिक मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए। हालांकि, जब धर्म का उपयोग राजनीतिक प्रभुत्व के लिए किया जाता है, तो यह साम्प्रदायिक राजनीति बन जाती है।

  • साम्प्रदायिक राजनीति: इसमें एक धर्म के अनुयायी दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं और अपनी मांगों को दूसरे के विरोध में खड़ा करते हैं। यह देश की एकता के लिए खतरनाक है।
  • भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश: भारत में कोई राजकीय धर्म नहीं है। संविधान सभी को धार्मिक स्वतंत्रता और समान अधिकार देता है।

ग. लैंगिक मसले और राजनीति

लैंगिक विभाजन समाज द्वारा पुरुषों और महिलाओं को दी गई असमान भूमिकाओं पर आधारित है।

  • हमारा समाज अभी भी पितृ-प्रधान है, जहाँ सार्वजनिक जीवन में पुरुषों का वर्चस्व है।
  • महिलाओं की साक्षरता दर (54%) पुरुषों (76%) से कम है।
  • राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व असंतोषजनक है। यद्यपि महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, फिर भी उन्हें समान अवसर के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर

1. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?

सामाजिक अंतर तब सामाजिक विभाजन का रूप ले लेते हैं जब कुछ अंतर एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं (Overlapping Differences)। उदाहरण के लिए, यदि एक देश में दलित होने का अर्थ हमेशा गरीब होना भी हो, तो यह एक गहरा सामाजिक विभाजन पैदा करेगा। इसके अलावा, जब राजनीतिक दल इन अंतरों का उपयोग अपने लाभ के लिए करते हैं, तो ये विभाजन और भी गहरे हो जाते हैं।

2. सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है?

यह तीन चीजों पर निर्भर करता है:
1. लोगों की अपनी पहचान की भावना: क्या वे खुद को केवल एक समुदाय तक सीमित रखते हैं या उनकी कई पहचानें होती हैं?
2. राजनीतिक नेताओं का रवैया: क्या वे मांगों को संवैधानिक दायरे में रखते हैं या उन्हें दूसरे समुदायों के खिलाफ खड़ा करते हैं?
3. सरकार की प्रतिक्रिया: क्या सरकार न्यायसंगत मांगों को स्वीकार करती है और सामंजस्य स्थापित करती है, या किसी एक समूह का पक्ष लेती है?

3. निम्नलिखित कथनों में से कौन लोकतांत्रिक राजनीति के परिणाम के संदर्भ में सही नहीं है?

उत्तर: (ग) सामाजिक विभाजन हमेशा समाज के विखंडन की ओर ले जाता है।
स्पष्टीकरण: यह कथन सही नहीं है। यदि इन विभाजनों को लोकतंत्र में सही तरीके से प्रबंधित किया जाए, जैसे कि सत्ता की साझेदारी के माध्यम से, तो वे लोकतंत्र को मजबूत भी कर सकते हैं।

4. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा कथन सही है?

उत्तर: (ख) एक व्यक्ति की कई पहचान होना संभव है।
स्पष्टीकरण: हम सभी की एक से ज़्यादा पहचान होती है, जैसे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, भाषाई, धार्मिक आदि।

5. भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाने वाले किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें।

1. कोई राजकीय धर्म नहीं: भारत का संविधान किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता।
2. सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता: संविधान हर नागरिक को अपने विश्वास के अनुसार किसी भी धर्म को अपनाने, उसका पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।

6. साम्प्रदायिक राजनीति के अर्थ संबंधी निम्न कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति किस पर आधारित है?

उत्तर: (ख) अ, स, द
स्पष्टीकरण: साम्प्रदायिक राजनीति में एक धार्मिक समूह दूसरे पर प्रभुत्व कायम करने, धर्म के नाम पर वोट मांगने और राज्य द्वारा किसी धर्म को विशेष दर्जा देने जैसी बातें शामिल होती हैं। कथन (ब) धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है।

7. भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन सही है-

उत्तर: (ग) क और घ
स्पष्टीकरण: भारतीय संविधान धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है (क) और सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है (घ)। यह किसी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं करता (ख गलत है) और सभी को धर्म मानने की आजादी देता है (ग गलत है)।

8. ............. पर आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।

उत्तर: (क) जाति
स्पष्टीकरण: जाति-आधारित विभाजन और इसका जटिल स्वरूप भारतीय समाज की एक अनूठी विशेषता है।

9. धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति ............ कहलाता है।

उत्तर: (क) साम्प्रदायिक

10. भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेदारी और उद्देश्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेदारी सामाजिक विविधताओं का सम्मान करते हुए सभी समूहों को सत्ता में उचित भागीदारी देना है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय स्थापित करना, संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान खोजना और किसी भी आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है।

11. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं? स्पष्ट करें।

भारत में जातिगत असमानताएँ आज भी सामाजिक व्यवहार, शैक्षिक असमानता, आर्थिक असमानता और विवाह जैसे सामाजिक संबंधों में जारी हैं। ऐतिहासिक रूप से वंचित जातियों की स्थिति अभी भी कई क्षेत्रों में कमजोर है।

12. क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके दो कारण दें।

इसके दो मुख्य कारण हैं:
1. मतदाताओं की बहुआयामी पहचान: लोगों की केवल जातीय पहचान नहीं होती, उनकी क्षेत्रीय, भाषाई, और आर्थिक पहचान भी होती है।
2. किसी एक जाति का प्रभुत्व न होना: किसी भी संसदीय क्षेत्र में किसी एक जाति का पूर्ण बहुमत नहीं होता। पार्टियों को जीतने के लिए कई जातियों का समर्थन हासिल करना पड़ता है।

13. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण दें।

1. रोजमर्रा की साम्प्रदायिक सोच: धार्मिक पूर्वाग्रह और रूढ़ियाँ (जैसे, किसी धर्म का मजाक उड़ाना)।
2. राजनीतिक गोलबंदी: धर्म के नाम पर वोट मांगना (जैसे, चुनावों में धार्मिक अपील)।
3. साम्प्रदायिक हिंसा: धर्म के नाम पर दंगे और नरसंहार (जैसे, भारत विभाजन के समय की हिंसा)।
4. राज्य द्वारा धर्म को विशेष दर्जा: किसी एक धर्म को राजकीय धर्म बनाना (जैसे, पाकिस्तान में इस्लाम)।

14. लोकतंत्र में सत्ता की जिम्मेदारी और उद्देश्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

(यह प्रश्न 10 के समान है) लोकतंत्र की जिम्मेदारी सभी सामाजिक विविधताओं का सम्मान करना, वंचितों को सत्ता में भागीदारी देना, सामाजिक न्याय स्थापित करना और संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान खोजना है।

5. 20 नए अभ्यास प्रश्न (विस्तृत हल सहित)

1. बेल्जियम में कौन सी दो मुख्य भाषाएँ बोली जाती हैं?

उत्तर: (ख) डच और फ्रेंच।

2. किस अनुच्छेद के तहत भारतीय संविधान में धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध है?

उत्तर: (ख) अनुच्छेद 15।

3. उत्तरी आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट आबादी का कितना प्रतिशत ग्रेट ब्रिटेन के साथ रहने के पक्ष में था?

उत्तर: (ग) 53%।

4. भारत में शासन का कौन सा मॉडल अपनाया गया है जो उसे धर्मनिरपेक्ष बनाता है?

उत्तर: (ग) धर्मनिरपेक्ष।

5. जनगणना 1991 और 2001 के आंकड़ों के अनुसार, किस क्षेत्र में स्त्रीकरण (feminization) देखा जा रहा है?

उत्तर: (ग) कृषि क्षेत्र।

6. लोकतंत्र में लोगों को शासन का केंद्र बिंदु क्यों माना जाता है?

उत्तर: क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता अंततः जनता में निहित होती है और वे अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करते हैं।

7. सामाजिक विविधता और सामाजिक विभाजन में एक मुख्य अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर: सामाजिक विविधता समाज में मौजूद सामान्य अंतरों को दर्शाती है, जबकि सामाजिक विभाजन तब होता है जब ये अंतर भेदभाव या संघर्ष का कारण बनते हैं।

8. भारतीय संविधान के अनुसार, क्या भारत में किसी विशेष धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा प्राप्त है?

उत्तर: नहीं, भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहाँ किसी भी धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा प्राप्त नहीं है।

9. पितृ-प्रधान समाज से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जहाँ पुरुषों का वर्चस्व होता है और महिलाओं को अक्सर अधीनस्थ भूमिकाओं में देखा जाता है।

10. "गरीब भैया" शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?

उत्तर: यह शब्द उत्तर भारतीय हिंदी-भाषी लोगों, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासियों के लिए किया गया है, जो मुंबई में काम की तलाश में आते हैं।

11. भारत में भाषाई और क्षेत्रीय विविधताएँ किस प्रकार सामाजिक विभाजन का कारण बन सकती हैं? मुंबई के उदाहरण से समझाएँ।

उत्तर: जब क्षेत्रीय पहचान राष्ट्रीय पहचान पर हावी हो जाए, तो यह सामाजिक विभाजन का कारण बन सकती है। मुंबई में मराठी भाषी प्रभुत्व के कारण उत्तर भारतीय प्रवासियों के साथ भेदभाव हुआ, जो क्षेत्रीय तनाव को दर्शाता है।

12. सामाजिक विविधताओं से निपटने में लोकतंत्र की भूमिका पर प्रकाश डालें।

उत्तर: लोकतंत्र सत्ता की साझेदारी के माध्यम से विभिन्न समुदायों को प्रतिनिधित्व देकर संघर्षों को कम करता है। यह सभी को अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से उठाने का अवसर देता है, जिससे समाज में समरसता बनी रहती है।

13. साम्प्रदायिक राजनीति भारत जैसे बहुधार्मिक देश के लिए क्यों खतरनाक है?

उत्तर: यह धर्म के आधार पर समाज को विभाजित करती है, घृणा और हिंसा को बढ़ावा देती है, और देश की एकता और अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है।

14. शिक्षा का स्तर लैंगिक असमानता को कैसे प्रभावित करता है?

उत्तर: शिक्षा की कमी महिलाओं को सार्वजनिक और पेशेवर जीवन में आगे बढ़ने से रोकती है, उन्हें आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर बनाती है और पितृ-प्रधान मानसिकता को मजबूत करती है, जिससे राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व कम होता है।

15. जाति आधारित जनगणना के आँकड़े भारत में जातिगत असमानताओं को कैसे उजागर करते हैं?

उत्तर: 1999-2000 के गरीबी के आँकड़े दिखाते हैं कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों में गरीबी का प्रतिशत उच्च जातियों की तुलना में बहुत अधिक है। यह प्रमाणित करता है कि जाति और आर्थिक स्थिति के बीच एक गहरा संबंध है।

16. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी क्यों आवश्यक है? बेल्जियम और भारत के उदाहरणों से स्पष्ट करें।

उत्तर: सत्ता की साझेदारी आवश्यक है क्योंकि यह सामाजिक संघर्षों को रोकती है और शासन को स्थिरता प्रदान करती है। बेल्जियम ने सत्ता की साझेदारी अपनाकर गृहयुद्ध टाला। भारत ने भी आरक्षण और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे उपायों से देश को एकजुट रखा है।

17. भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका पर एक विस्तृत नोट लिखें।

उत्तर: भारतीय राजनीति में जाति एक जटिल भूमिका निभाती है। पार्टियाँ उम्मीदवार चुनते समय जातीय समीकरणों पर ध्यान देती हैं, लेकिन कोई भी पार्टी सिर्फ एक जाति के वोट से नहीं जीत सकती। राजनीति ने वंचित जातियों को अपनी आवाज उठाने और सशक्त होने का अवसर भी दिया है।

18. भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने वाले संवैधानिक प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण करें।

उत्तर: भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने वाले मुख्य प्रावधान हैं: कोई राजकीय धर्म नहीं, सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, धर्म के आधार पर भेदभाव का निषेध, और अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकारों का संरक्षण।

19. लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए समाज और राजनीति में क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

उत्तर: समाज में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना और पितृ-प्रधान मानसिकता को बदलना आवश्यक है। राजनीति में, विधानमंडलों में महिलाओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित करना, महिला-उन्मुख नीतियां बनाना और राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को अधिक अवसर देना महत्वपूर्ण कदम हैं।

20. "बहुआयामी पहचान" की अवधारणा को उदाहरण सहित समझाएँ।

उत्तर: "बहुआयामी पहचान" का अर्थ है कि एक व्यक्ति की कई पहचानें होती हैं (जैसे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, भाषाई, धार्मिक)। यह सामाजिक संघर्षों को कम करती है क्योंकि यह "हम" बनाम "वे" के कठोर विभाजन को मुश्किल बनाती है और विभिन्न समूहों के बीच साझा हितों को उजागर करती है।

बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए सारांश

  • सत्ता की साझेदारी: लोकतंत्र का आधार, जो विभिन्न सामाजिक समूहों को सत्ता में हिस्सेदारी देती है।
  • सामाजिक विभाजन: जब भाषा, धर्म, जाति जैसी विविधताएँ भेदभाव का कारण बनती हैं। इन्हें सत्ता की साझेदारी से प्रबंधित किया जा सकता है।
  • जाति और राजनीति: भारत में जाति एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कारक है, लेकिन एकमात्र नहीं। राजनीति ने वंचित जातियों को सशक्त भी किया है।
  • धर्म और राजनीति: भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। साम्प्रदायिक राजनीति (धर्म के आधार पर भेदभाव) देश की एकता के लिए खतरा है।
  • लिंग और राजनीति: लैंगिक असमानता के कारण राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। पितृ-प्रधान मानसिकता एक बड़ी चुनौती है।
  • मुख्य सीख: लोकतंत्र सामाजिक विविधताओं को समायोजित करने और संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने का सबसे अच्छा तरीका है।

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