स्व-अध्ययन नोट्स: सत्ता की साझेदारी की कार्यप्रणाली
इस अध्याय में हम सत्ता की साझेदारी की कार्यप्रणाली के सिद्धांतों को समझेंगे, जो Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति का एक महत्वपूर्ण विषय है। हम जानेंगे कि लोकतंत्र में संघवाद (Federalism) कैसे काम करता है, भारत में स्थानीय स्वशासन का क्या महत्व है, और पंचायती राज व्यवस्था एवं नगर निगम कैसे सत्ता का विकेंद्रीकरण करते हैं। यह ब्लॉग पोस्ट केंद्र-राज्य संबंधों और सत्ता के बँटवारे से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को सरल भाषा में स्पष्ट करेगा।
1. सत्ता की साझेदारी क्या है?
लोकतंत्र में, जनता ही सभी शक्तियों का स्रोत होती है। सत्ता की साझेदारी (Power Sharing) का अर्थ है कि शासन की शक्तियों को विभिन्न स्तरों या समूहों के बीच बाँटा जाए ताकि किसी एक अंग के पास शक्ति का जमाव न हो। एक वैध शासन व्यवस्था वही है जिसमें सभी व्यक्ति अपनी भागीदारी के माध्यम से शासन में शामिल होते हैं। यह विभिन्न सामाजिक समूहों के हितों की रक्षा करता है और संघर्षों को रोकता है, जैसा कि श्रीलंका में तमिल समुदाय की उपेक्षा के कारण हुए संघर्ष से स्पष्ट है।

संघवाद - सत्ता की साझेदारी का एक प्रमुख स्वरूप।
2. सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके (संघवाद)
आधुनिक लोकतंत्रों में सत्ता की साझेदारी का सबसे लोकप्रिय स्वरूप संघवाद (Federalism) है।
संघीय शासन व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ:
- दोहरे स्तर पर शासन: सरकारें दो या अधिक स्तरों (केंद्र और राज्य) पर होती हैं।
- स्वायत्तता: प्रत्येक स्तर की सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती है।
- लिखित संविधान: सरकारों के अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से लिखे होते हैं।
- न्यायपालिका की भूमिका: न्यायपालिका कानूनों की जाँच करती है और संविधान की रक्षा करती है।
- संविधान की कठोरता: केंद्र-राज्य के बीच अधिकारों के बँटवारे में आसानी से बदलाव नहीं किया जा सकता।
संघीय व्यवस्था के उदाहरण और उनकी चुनौतियाँ:
सोवियत संघ: शक्तियों के अत्यधिक जमाव और रूसी आधिपत्य के कारण इसका विघटन हुआ।
वेस्टइंडीज संघवाद: कमजोरियों और राजनीतिक पिछड़ेपन के कारण 1962 में भंग हो गया।
नाइजीरियाई संघीय व्यवस्था: विभिन्न समुदायों के बीच विश्वास की कमी के कारण सफल नहीं हो सकी।
भारतीय संघीय व्यवस्था:
भारत में राज्यों की स्वायत्तता और पहचान को सम्मान दिया गया है। केंद्र सरकार के पास किसी राज्य की सीमा या नाम में परिवर्तन करने का अधिकार है। भारत में संघ एवं राज्यों के बीच अधिकारों का विभाजन तीन सूचियों में हुआ है: संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। जो विषय इन सूचियों में नहीं हैं (अवशिष्ट शक्तियाँ), उन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।

पंचायती राज - जमीनी स्तर पर लोकतंत्र का सशक्तिकरण।
3. स्थानीय स्वशासन (Local Self-Governance)
भारत में सत्ता को केंद्र और राज्य से लेकर स्थानीय स्तर तक विकेंद्रीकृत किया गया है।
पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj System)
क) ग्राम पंचायत (Gram Panchayat)
यह पंचायती राज की प्राथमिक इकाई है। इसका प्रधान मुखिया होता है। ग्राम सभा पंचायत की व्यवस्थापिका सभा है, जिसमें सभी वयस्क नागरिक शामिल होते हैं। ग्राम पंचायत का न्यायिक प्रमुख सरपंच होता है।
ख) पंचायत समिति (Panchayat Samiti)
यह मध्यवर्ती स्तर है। प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) इसका पदेन सचिव होता है। यह समेकित योजना को जिला परिषद् में प्रस्तुत करती है।
ग) जिला परिषद् (Zilla Parishad)
यह पंचायती राज व्यवस्था का शीर्ष स्तर है। इसका कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। इसमें भी आरक्षण का प्रावधान होता है। पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए 'राज्य वित्त आयोग' और चुनाव के लिए 'निर्वाचन आयोग' होता है।

नगर प्रशासन - शहरी विकास और सुशासन की कुंजी।
4. नगर प्रशासन (Urban Administration)
शहरों में स्थानीय स्वशासन के लिए तीन प्रकार की संस्थाएँ हैं: नगर पंचायत, नगर परिषद् और नगर निगम।
नगर परिषद् (Nagar Parishad)
इसके प्रमुख अंग अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कार्यपालक पदाधिकारी होते हैं। इसके कार्यों में नालियों की सफाई, प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध, नई सड़कें बनाना आदि शामिल हैं।
नगर निगम (Municipal Corporation)
भारत में सर्वप्रथम 1688 ई. में मद्रास (चेन्नई) में नगर निगम की स्थापना हुई। इसके प्रमुख अंग पार्षद, महापौर एवं उपमहापौर, और सशक्त स्थानीय समिति हैं। महापौर नगर का प्रथम नागरिक माना जाता है। इसके मुख्य कार्यों में चिकित्सा केंद्रों की स्थापना और बीमारियों को नियंत्रित करना शामिल है।
5. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
1. संघ राज्य की विशेषता नहीं है?
उत्तर: (ग) इकहरी शासन-व्यवस्था
व्याख्या: संघीय व्यवस्था में दोहरी शासन व्यवस्था (केंद्र और राज्य) होती है, जबकि एकहरी शासन व्यवस्था इसकी विशेषता नहीं है।
3. भारत में संघ एवं राज्यों के बीच अधिकारों का विभाजन कितनी सूचियों में हुआ है?
उत्तर: (ख) संघीय सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची
व्याख्या: भारत में शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया है।
सत्ता की साझेदारी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: सत्ता की साझेदारी का अर्थ है कि किसी देश की शासन व्यवस्था में विभिन्न सामाजिक समूहों, क्षेत्रीय इकाइयों या सरकार के अंगों के बीच शक्ति का बँटवारा हो ताकि शक्ति किसी एक केंद्र में केंद्रित न हो और संघर्षों को टाला जा सके।
दबाव समूह किस तरह से सरकार को प्रभावित कर सत्ता में साझीदार बनते हैं?
उत्तर: दबाव समूह (Pressure Groups) सीधे चुनाव नहीं लड़ते, बल्कि अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाते हैं। वे जनमत को आकार देकर, प्रदर्शन करके, और राजनीतिक दलों से संबंध बनाकर सरकार के नीति-निर्माण को प्रभावित करते हैं और इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता में साझीदार बनते हैं।
6. अध्याय पर आधारित 25 नए अभ्यास प्रश्न
लघु एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. 'लोकतंत्र' में सत्ता की साझेदारी क्यों आवश्यक है?
लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह विभिन्न सामाजिक समूहों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर देती है, जिससे सामाजिक संघर्ष को रोका जा सकता है।
2. 'संघवाद' की परिभाषा दीजिए।
संघवाद (Federalism) शासन की वह प्रणाली है जिसमें सत्ता का बँटवारा केंद्र सरकार और विभिन्न क्षेत्रीय या राज्य सरकारों के बीच होता है, और दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती हैं।
6. 'न्यायपालिका' की क्या भूमिका होती है एक संघीय व्यवस्था में?
संघीय व्यवस्था में न्यायपालिका संविधान की संरक्षक होती है। यह केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों को लेकर होने वाले विवादों का निपटारा करती है और कानूनों की समीक्षा करती है।
8. सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण क्या थे?
सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण शक्तियों का अत्यधिक जमाव, विभिन्न गणराज्यों को स्वायत्तता न देना, और सबसे बड़े गणराज्य रूस द्वारा अन्य राष्ट्रीयताओं पर अपनी भाषा और संस्कृति थोपने का प्रयास थे। सत्ता की साझेदारी की कमी ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई।
10. 'पंचायती राज व्यवस्था' के विभिन्न स्तरों का वर्णन करें।
पंचायती राज व्यवस्था भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की त्रि-स्तरीय प्रणाली है:
1. ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर): सबसे निचला स्तर, जिसका प्रधान मुखिया होता है।
2. पंचायत समिति (प्रखंड स्तर): मध्यवर्ती स्तर, जो विकास योजनाओं का निर्माण करती है।
3. जिला परिषद् (जिला स्तर): शीर्ष स्तर, जो पूरे जिले के लिए विकास योजनाओं का समन्वय करती है।
वस्तुनिष्ठ एवं अति लघु उत्तरीय प्रश्न
11. सत्ता की साझेदारी को लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए सबसे लोकप्रिय स्वरूप क्यों माना जाता है?
उत्तर: ख) यह सत्ता के दुरुपयोग को रोकती है।
14. ग्राम पंचायतों का प्रधान कौन होता है?
उत्तर: ग) मुखिया
17. 'दलपति' कौन होता है?
उत्तर: 'दलपति' ग्राम पंचायत के सुरक्षा दल का नेता होता है।
18. 'राज्य वित्त आयोग' का गठन क्यों किया जाता है?
उत्तर: 'राज्य वित्त आयोग' का गठन पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने के लिए किया जाता है।
23. 'पंचायती राज व्यवस्था' में आरक्षण का क्या महत्व है?
उत्तर: आरक्षण का महत्व यह है कि यह समाज के कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों (जैसे SC, ST, महिलाएं) को स्थानीय शासन में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, जिससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।
24. नगर निगम के प्रमुख अंगों और उनके कार्यों का विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर: नगर निगम के प्रमुख अंग पार्षद, महापौर, उपमहापौर और सशक्त स्थानीय समिति हैं। इसके मुख्य कार्य शहरी स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवाएं, पेयजल आपूर्ति, सड़कों का निर्माण, प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध और जन्म-मृत्यु का पंजीकरण करना है।
अध्याय का संक्षिप्त सारांश (Quick Revision)
- सत्ता की साझेदारी: लोकतंत्र में शक्ति का बँटवारा विभिन्न समूहों और स्तरों के बीच होता है ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो।
- संघवाद (Federalism): सत्ता की साझेदारी का मुख्य स्वरूप, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है।
- भारतीय संघीय व्यवस्था: यह "होल्डिंग टुगेदर" संघ है, जिसमें केंद्र शक्तिशाली है लेकिन राज्यों की पहचान का सम्मान किया जाता है।
- स्थानीय स्वशासन: सत्ता का विकेंद्रीकरण, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पंचायती राज व्यवस्था (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद्) और शहरी क्षेत्रों के लिए नगर प्रशासन (नगर पंचायत, नगर परिषद्, नगर निगम) शामिल हैं।
- आरक्षण: स्थानीय स्वशासन में कमजोर वर्गों को प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान है।
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