आत्म-अध्ययन नोट्स: लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष
नमस्ते! आपके द्वारा उपलब्ध कराए गए बिहार बोर्ड कक्षा 10 के "लोकतांत्रिक राजनीति" अध्याय 3, 'लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष' के अंशों के आधार पर, यहाँ आपके लिए सम्पूर्ण आत्म-अध्ययन नोट्स हिंदी भाषा में तैयार किए गए हैं। ये नोट्स आपको लोकतंत्र की कार्यप्रणाली, जन संघर्ष और आंदोलन के महत्व, राजनीतिक दल की भूमिका, 1975 का आपातकाल, चिपको आंदोलन, और सूचना का अधिकार आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण विषयों को समझने में मदद करेंगे। यह ब्लॉग पोस्ट आपकी बोर्ड परीक्षा की तैयारी को सरल और रोचक बनाने के लिए डिज़ाइन की गई है।
अध्याय का परिचय
यह अध्याय हमें यह समझने में मदद करता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार के विभिन्न अंग और अलग-अलग सामाजिक समूह सत्ता में किस प्रकार भागीदारी करते हैं। इसमें इस बात पर भी विचार किया गया है कि विभिन्न विचारधाराओं, मांगों और दबावों के बीच लोकतंत्र कैसे फलता-फूलता है। इस अध्याय में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन-संघर्षों और आंदोलनों की सकारात्मक भूमिका का क्या प्रभाव पड़ता है। हम राजनीतिक दलों के महत्व, उनकी नीतियों और कार्यक्रमों, और राष्ट्रीय विकास में उनके योगदान पर भी चर्चा करेंगे। अंत में, हम भारत के प्रमुख राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय (क्षेत्रीय) दलों के बारे में जानेंगे।

लोकतंत्र का विकास जन संघर्षों के माध्यम से ही संभव हुआ है।
1. लोकतंत्र में जन संघर्ष और आंदोलन
लोकतंत्र में जन संघर्षों और आंदोलनों का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिन्हें लोकतांत्रिक सरकारें अनदेखा नहीं कर सकती हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि लोकतंत्र का विकास जन संघर्ष के माध्यम से ही हुआ है। किसी भी संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के सहारे ही संभव है।
जन संघर्ष की भूमिका: जन संघर्ष लोकतंत्र को मजबूत बनाने और उसे और सुदृढ़ करने में एक अहम् भूमिका निभाते हैं। जन संघर्ष से ही राजनीतिक संगठनों का विकास होता है। भारत और अन्य पड़ोसी देशों में ऐसे अनेक जन संघर्ष हुए हैं जिन्होंने लोकतंत्र को व्यापक बनाया है।
प्रमुख जन संघर्ष एवं आंदोलन:
1970 का दशक और आपातकाल (Emergency)
- भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में 1970 का दशक कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। श्रीमती इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत में सरकार बनी।
- उन्होंने संविधान के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन करने का प्रयास किया।
- 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देकर इंदिरा गांधी को सांसद नहीं रहने का फैसला सुनाया।
- 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की उद्घोषणा कर दी।
- आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र की कमजोरियों को उजागर किया, लेकिन इसकी समाप्ति के बाद हुए चुनावों ने लोकतंत्र को और मजबूत किया।
- 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई और जनता पार्टी को बहुमत मिला।
- बिहार में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नेतृत्व किया।
चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)

चिपको आंदोलन में महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण में अभूतपूर्व भूमिका निभाई।
- यह आंदोलन उत्तराखंड में शुरू हुआ जब वन विभाग ने व्यावसायिक उपयोग के लिए जमीन का एक टुकड़ा आवंटित कर दिया, जिसके विरोध में गाँववालों ने आंदोलन किया।
- उनकी स्पष्ट मांग थी कि स्थानीय निवासियों को जल, जंगल, जमीन जैसे संसाधनों पर अधिकार दिया जाना चाहिए।
- चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई और शराबखोरी के विरुद्ध भी आवाज उठाई।
- इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण मुद्दों का संरक्षण था।
दलित पैंथर्स (Dalit Panthers)
- 1970 के दशक के प्रारंभ में भारतीय समाज के शिक्षित दलितों के बीच महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स का उदय हुआ।
- यह आंदोलन छुआछूत और जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ था।
- इन्होंने सृजनशीलता का उपयोग प्रतिरोध की आवाज बनाकर किया और दलितों को समाज में गरिमापूर्ण स्थान दिलाने की मांग की।
भारतीय किसान यूनियन (BKU)

भारतीय किसान यूनियन ने किसानों के आर्थिक हितों के लिए संघर्ष किया।
- 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने यह आंदोलन शुरू किया।
- भारतीय किसान यूनियन की मुख्य मांगें थीं बिजली की दरों में कमी, कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य और किसानों के लिए बेहतर सुविधाएं।
ताड़ी विरोधी आंदोलन (Anti-Toddy Movement)
- वर्ष 1992 में आंध्र प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं ने ताड़ी (एक प्रकार की शराब) के खिलाफ यह आंदोलन छेड़ा।
- उनका प्रसारण नारा था - "ताड़ी की बिक्री बंद करो!"।
- इस आंदोलन ने महिलाओं के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला और महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा उदाहरण बना।
नर्मदा बचाओ आंदोलन (Narmada Bachao Andolan)
- यह आंदोलन 1980 के दशक में मध्य भारत के नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के खिलाफ शुरू हुआ।
- मुद्दा नर्मदा नदी पर बनने वाले बड़े बांधों से विस्थापित हो रहे लोगों के समुचित पुनर्वास का था।
- इस आंदोलन ने 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को प्रभावित किया।
सूचना के अधिकार का आंदोलन (Right to Information Movement)

सूचना के अधिकार ने प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की।
- इस आंदोलन की शुरुआत राजस्थान से हुई।
- इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना था।
इनके अलावा, अध्याय में नेपाल में लोकतंत्र आंदोलन, बोलिविया का जल युद्ध, बांग्लादेश में संघर्ष और श्रीलंका में जातीय समस्या जैसे अंतरराष्ट्रीय उदाहरण भी दिए गए हैं जो लोकतंत्र में संघर्ष के महत्व को दर्शाते हैं।
2. राजनीतिक दल: महत्व एवं चुनौतियाँ
राजनीतिक दल लोकतंत्र की आधारशिला हैं। वे सरकार के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राजनीतिक दल क्या है?
आमतौर पर, राजनीतिक दल का आशय व्यक्तियों के किसी भी ऐसे समूह से है जो एक समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। यदि उस दल का उद्देश्य राजनीतिक कार्यकलापों से संबंधित है, जैसे नीतियाँ बनाना, चुनाव लड़ना, सरकार बनाना, तो वह एक राजनीतिक दल कहलाता है।
राजनीतिक दलों के कार्य:
- चुनावों का संचालन (Elections): दल चुनाव घोषणा-पत्र (Manifesto) जारी करते हैं और अपने उम्मीदवारों को जिताने का प्रयास करते हैं।
- सरकारी पदों को प्राप्त करना: सभी राजनीतिक दलों का एक प्रमुख उद्देश्य सरकारी पदों को प्राप्त करना होता है।
- नीतियाँ एवं कार्यक्रम बनाना: देश के लोगों की भावनाओं को जोड़कर नीतियाँ बनाना।
- जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता: जनता की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाना।
- राष्ट्रीय विकास में योगदान: राजनीतिक स्थिरता लाकर और जन कल्याणकारी कार्यक्रम बनाकर विकास में योगदान करना।
- विवादों का समाधान: राज्य में एकता कायम रखने के लिए विवादों का समाधान करना।
राजनीतिक दलों की चुनौतियाँ:
- आंतरिक लोकतंत्र का अभाव: दलों में निर्णय कुछ ही नेता लेते हैं।
- नेतृत्व का संकट: सर्वमान्य नेता की कमी।
- धन और बाहुबल का प्रभाव: चुनावों में जीतने के लिए नाजायज तरीकों का इस्तेमाल।
- सिद्धांतहीनता की स्थिति: गठबंधन सरकारों के लिए सिद्धांतों से समझौता करना।
3. भारत के प्रमुख राजनीतिक दल
भारत एक बहुदलीय लोकतांत्रिक देश है। यहाँ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर कई दल सक्रिय हैं। दलों को मान्यता और चुनाव-चिह्न चुनाव आयोग (Election Commission) प्रदान करता है।
राष्ट्रीय राजनीतिक दल (National Party)
मान्यता के लिए, दल को लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम-से-कम 4 राज्यों में 6% वोट और लोकसभा में 4 सीटें, या लोकसभा की कुल 2% सीटें (कम से कम 3 राज्यों से) जीतनी होती हैं।
भारत के कुछ प्रमुख दल:
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress): भारत का सबसे पुराना दल, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा।
- भारतीय जनता पार्टी (BJP): 1980 में गठन, मुख्य लक्ष्य प्राचीन संस्कृति से प्रेरणा लेकर आधुनिक भारत का निर्माण।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI): 1925 में गठन, किसानों, गरीबों एवं मजदूरों के हितों की रक्षक।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (CPI(M)): सामाजिक एवं आर्थिक न्याय पर बल।
- बहुजन समाज पार्टी (BSP): मुख्य जनआधार उत्तर प्रदेश, दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों के हितों पर केंद्रित।
- जनता दल यूनाइटेड (JDU): 1999 में गठन, सामाजिक समरसता पर बल।
- लोक जनशक्ति पार्टी (LJP): 2000 में गठित।
- समाजवादी पार्टी (SP): 1992 में गठन।
- झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM): एक प्रमुख क्षेत्रीय दल।
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Questions)
- वर्ष 1975 भारतीय राजनीति में किस लिए जाना जाता है? उत्तर: इस वर्ष देश में आपातकाल की उद्घोषणा हुई थी।
- भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के विरुद्ध जन आक्रोश किस दशक से प्रारंभ हुआ? उत्तर: (ख) 1970 के दशक से
- बिहार में संपूर्ण क्रांति का नेतृत्व निम्नलिखित में से किसने किया? उत्तर: (ख) जयप्रकाश नारायण
- भारत में हुए 1977 में आम चुनाव में किस पार्टी को बहुमत मिला था? उत्तर: (ख) जनता पार्टी को
- 'भारतीय किसान यूनियन' के प्रमुख नेता थे? उत्तर: (ग) महेंद्र सिंह टिकैत
- 'ताड़ी विरोधी आंदोलन' निम्नलिखित में से किस प्रांत में शुरू किया गया? उत्तर: (ख) आंध्र प्रदेश
- 'नर्मदा घाटी परियोजना' किन राज्यों से संबंधित है? उत्तर: (ख) गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश
- 'सूचना के अधिकार आंदोलन' की शुरुआत कहाँ से हुई? उत्तर: (क) राजस्थान
- नेपाल में सप्तदलीय गठबंधन का मुख्य उद्देश्य क्या है? उत्तर: (ख) लोकतंत्र की स्थापना करना
- श्रीलंका कब आजाद हुआ? उत्तर: 1948 में (यह जानकारी स्रोत में नहीं है, सामान्य ज्ञान पर आधारित है)।
- कौन-सा प्रमुख उद्देश्य प्राय: सभी राजनीतिक दलों का होता है? उत्तर: (ख) सरकारी पदों को प्राप्त करना
- कौन-सा कार्य राजनीतिक दल नहीं करता है? उत्तर: (ख) संविधान को बदलना (यह कार्य विधायिका का है)।
- कौन-सा विचार लोकतंत्र में राजनीतिक दलों से मेल नहीं खाता है? उत्तर: (घ) राजनीतिक दल देश में राजनीतिक स्थिरता नहीं ला सकते हैं (यह कथन गलत है)।
- किस देश में द्विदलीय व्यवस्था है? उत्तर: (ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
- किसी भी देश में राजनीतिक स्थायित्व के लिए क्या आवश्यक नहीं है? उत्तर: (घ) एकदलीय व्यवस्था
- दलबदल कानून निम्नलिखित में से किस पर लागू होता है? उत्तर: (क) सांसदों और विधायकों पर
- जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी का गठन कब हुआ? उत्तर: (ख) 1999 में
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
1. "जन संघर्ष से भी लोकतंत्र मजबूत होता है।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने पक्ष में उत्तर दें।
उत्तर: हाँ, मैं इस कथन से पूरी तरह सहमत हूँ। जन संघर्ष लोकतंत्र को जीवंत और मजबूत बनाते हैं। इसके माध्यम से जनता अपनी मांगों को सरकार के सामने रखती है और सत्ता पर नागरिक नियंत्रण बढ़ता है। भारत में चिपको आंदोलन, सूचना का अधिकार आंदोलन और आपातकाल के विरुद्ध हुए संघर्षों ने लोकतंत्र को अधिक जवाबदेह और परिपक्व बनाया है। ये संघर्ष सुनिश्चित करते हैं कि लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित न रहकर जनता की निरंतर भागीदारी का माध्यम बने।
2. राजनीतिक दल को 'लोकतंत्र का प्राण' क्यों कहा जाता है?
उत्तर: राजनीतिक दलों को 'लोकतंत्र का प्राण' इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके बिना लोकतांत्रिक शासन की कल्पना नहीं की जा सकती। वे चुनाव लड़ते हैं, सरकार बनाते हैं, नीतियां निर्धारित करते हैं, जनता और सरकार के बीच पुल का काम करते हैं, और जनता को राजनीतिक शिक्षा देते हैं। वे विपक्ष की भूमिका निभाकर सरकार को निरंकुश होने से रोकते हैं। इस प्रकार, वे लोकतंत्र की पूरी व्यवस्था को संचालित और जीवंत रखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे प्राण शरीर को।
3. राजनीतिक दल राष्ट्रीय विकास में किस प्रकार योगदान करते हैं?
उत्तर: राजनीतिक दल राष्ट्रीय विकास में कई प्रकार से योगदान करते हैं: (1) वे देश के लिए आर्थिक और सामाजिक नीतियां बनाते हैं। (2) वे चुनाव जीतकर एक स्थिर सरकार प्रदान करते हैं, जो विकास के लिए आवश्यक है। (3) वे जनता की मांगों को सरकार तक पहुंचाकर विकास को जन-केंद्रित बनाते हैं। (4) वे जन कल्याणकारी योजनाएं लागू करते हैं। (5) वे देश में राजनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय एकता बनाए रखने में मदद करते हैं।
4. राष्ट्रीय एवं राज्य-स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करते हैं और इसके मापदंड क्या हैं?
उत्तर: भारत में राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय या राज्य-स्तरीय दल के रूप में मान्यता चुनाव आयोग प्रदान करता है।
राष्ट्रीय दल के मापदंड: (1) लोकसभा या विधानसभा चुनाव में 4 या अधिक राज्यों में कुल वैध मतों का 6% प्राप्त करना और लोकसभा में कम-से-कम 4 सीटें जीतना। (2) या, लोकसभा में कुल सीटों का 2% (कम से कम 3 राज्यों से) जीतना।
5. दलबदल कानून क्या है?
उत्तर: दलबदल कानून एक ऐसा कानून है जो निर्वाचित प्रतिनिधियों (सांसदों और विधायकों) को अपनी पार्टी बदलने से रोकता है। यदि कोई निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से अपनी पार्टी छोड़ता है या पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है, तो उसकी सदन की सदस्यता समाप्त हो सकती है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक अस्थिरता को रोकना और राजनीतिक दलों को मजबूत बनाना है।
5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित 20 नए अभ्यास प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
- लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा और संघर्ष किसलिए आवश्यक माने जाते हैं? उत्तर: (ग) विभिन्न मांगों और दबावों को व्यक्त करने के लिए
- भारतीय लोकतंत्र में जन आंदोलन और संघर्षों की सकारात्मक भूमिका किसने निभाई? उत्तर: (घ) जनता की सक्रिय भागीदारी ने
- किस आंदोलन का मुख्य नारा "ताड़ी की बिक्री बंद करो!" था? उत्तर: (ग) ताड़ी विरोधी आंदोलन
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किस वर्ष हुआ था? उत्तर: (ख) 1925
- बहुजन समाज पार्टी (BSP) का मुख्य जनआधार किस राज्य में है? उत्तर: (घ) उत्तर प्रदेश
- नेपाल में लोकतंत्र बहाली के लिए सप्तदलीय गठबंधन का नेतृत्व किसने किया? उत्तर: (ग) गिरिजा प्रसाद कोइराला
- किस आंदोलन के कारण हिमालयी क्षेत्र में 15 वर्षों के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई थी? उत्तर: (ख) चिपको आंदोलन
- भारतीय लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति की अनुमति का क्या अर्थ है? उत्तर: (ग) क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाना
- राजनीतिक दलों का एक समान उद्देश्य क्यों होता है? उत्तर: (ख) किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एकजुट होकर कार्य करने हेतु
- भारतीय जनता पार्टी (BJP) का गठन किस पार्टी के स्थान पर हुआ था? उत्तर: (ख) भारतीय जनसंघ
लघु उत्तरीय प्रश्न
11. राजनीतिक दलों में 'आंतरिक लोकतंत्र के अभाव' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: इसका अर्थ है कि दलों के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी सदस्यों की भागीदारी नहीं होती है। फैसले कुछ शीर्ष नेता ही लेते हैं, जिससे सामान्य कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होती है।
12. भारतीय लोकतंत्र के लिए 1970 का दशक क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?
उत्तर: यह दशक सत्ता के विरुद्ध जन आक्रोश, आपातकाल की घोषणा, और उसके बाद लोकतंत्र की मजबूती के लिए जाना जाता है। इसी दशक में कई सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ।
13. नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य मुद्दा क्या था?
उत्तर: इसका मुख्य मुद्दा नर्मदा नदी पर बनने वाले बड़े बांधों के कारण विस्थापित हो रहे लोगों का उचित पुनर्वास और परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव थे।
14. राजनीतिक दलों को प्रभावी बनाने के लिए कौन से उपाय सुझाए गए हैं?
उत्तर: दलबदल कानून को सख्ती से लागू करना, दलों में आंतरिक चुनाव अनिवार्य करना, और राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाना।
15. श्रीलंका में प्रमुख जातीय समस्या क्या है?
उत्तर: श्रीलंका में प्रमुख जातीय समस्या बहुसंख्यक सिंहली और अल्पसंख्यक तमिल समुदायों के बीच अधिकारों, भाषा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर हुआ संघर्ष है।
16. बोलिविया का जल युद्ध क्यों हुआ था?
उत्तर: यह युद्ध सरकार द्वारा जल आपूर्ति का निजीकरण करने और उसके कारण पानी की कीमतों में भारी वृद्धि के खिलाफ हुआ एक स्वतःस्फूर्त जन संघर्ष था।
17. राजनीतिक दलों में 'सिद्धांतहीनता की स्थिति' का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए अपनी मूल विचारधारा और सिद्धांतों से समझौता कर लेते हैं, खासकर गठबंधन सरकारें बनाते समय।
18. चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के लिए कौन सा महत्वपूर्ण कार्य करता है?
उत्तर: चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय या राज्य-स्तरीय दल के रूप में मान्यता देता है और उन्हें चुनाव-चिह्न आवंटित करता है।
19. महिलाओं ने चिपको आंदोलन में किस प्रकार सक्रिय भूमिका निभाई?
उत्तर: महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया और आंदोलन का विस्तार करते हुए शराबखोरी जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी आवाज उठाई।
20. दलित पैंथर्स आंदोलन का उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
उत्तर: इसका उदय 1970 के दशक में महाराष्ट्र में दलितों के खिलाफ हो रहे सामाजिक भेदभाव और उत्पीड़न के विरुद्ध हुआ, जब मौजूदा राजनीतिक दल उनके हितों की रक्षा में विफल रहे थे।
6. अध्याय का संक्षिप्त सारांश
यह अध्याय लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा और संघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह बताता है कि जन संघर्ष और आंदोलन (जैसे चिपको, दलित पैंथर्स, किसान आंदोलन, सूचना का अधिकार) लोकतंत्र को मजबूत और जवाबदेह बनाते हैं। 1975 का आपातकाल और उसके बाद के घटनाक्रम भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाते हैं। अध्याय में राजनीतिक दलों को 'लोकतंत्र का प्राण' कहा गया है, जो चुनाव लड़ने, सरकार बनाने और नीतियां निर्धारित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। हालांकि, दलों के सामने आंतरिक लोकतंत्र की कमी, धन-बल का प्रभाव और सिद्धांतहीनता जैसी चुनौतियां भी हैं। अंत में, यह भारत के प्रमुख राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों का परिचय देता है और उनकी मान्यता के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित मापदंडों को समझाता है।
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