बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत: अध्याय 13 - विश्वशान्तिः (Vishwashantih)
पाठ का सारांश (Summary of the Chapter)
यह पाठ 'विश्वशान्तिः' आज के वैश्विक परिवेश में व्याप्त अशांति और उसके समाधानों पर प्रकाश डालता है। लेखक का मानना है कि वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी देशों में आंतरिक या बाह्य कारणों से अशांति फैली हुई है। कहीं सीमा विवाद, कहीं जल विवाद, कहीं आतंकवाद तो कहीं जातीय संघर्ष अशांति के मुख्य कारण हैं।
अशांति के मूल में दो प्रमुख कारण हैं - द्वेष (ईर्ष्या, घृणा) और असहिष्णुता (दूसरे के धर्म, विचार या प्रगति को सहन न कर पाना)। एक देश दूसरे देश की उन्नति देखकर जलता है और उसे नीचा दिखाने का प्रयास करता है। स्वार्थ की भावना भी अशांति को जन्म देती है।
इस अशांति के कारण मानवता का नाश हो रहा है। ज्ञान और विज्ञान का उपयोग विनाशकारी अस्त्रों के निर्माण में हो रहा है। अतः इस अशांति के निवारण का उपाय सोचना आवश्यक है।
महापुरुषों, विद्वानों और चिंतकों का मानना है कि वैर से वैर कभी शांत नहीं होता। बल्कि अवैरेण (बिना वैर के), करुणा (दया), मैत्रीभाव (मित्रता की भावना) और परोपकार से ही वैर को शांत किया जा सकता है। बुद्ध ने भी कहा था कि वैर से वैर की शांति असंभव है।
विश्वशांति के लिए सभी देशों को परोपकार की भावना अपनानी होगी। एक-दूसरे की सहायता करनी होगी। "वसुधैव कुटुम्बकम्" (पूरी पृथ्वी ही परिवार है) की भावना को आत्मसात करना होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाएं विश्वशांति के लिए प्रयासरत हैं, परन्तु इन प्रयासों को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है। जब तक हम स्वार्थ को त्यागकर परमार्थ की ओर नहीं बढ़ेंगे, तब तक विश्वशांति एक सपना ही रहेगी। क्रिया के बिना ज्ञान भार के समान है, अतः शांति के उपायों को क्रियान्वित करना आवश्यक है।
महत्वपूर्ण पंक्तियाँ/मुख्य बिन्दु (Key Points)
- अद्यत्वे संसारे प्रायशः सर्वेषु देशेषु अशान्तिः दृश्यते। (आजकल संसार में प्रायः सभी देशों में अशांति दिखाई देती है।)
- अशान्तेः कारणद्वयम् – द्वेषः, असहिष्णुता च। (अशांति के दो कारण हैं – द्वेष और असहिष्णुता।)
- एकेन अपरस्य देशस्य उत्कर्षं दृष्ट्वा द्वेष्टि। (एक देश दूसरे देश की उन्नति देखकर ईर्ष्या करता है।)
- वैरस्य वैरेण शमनम् असम्भवम्। (वैर से वैर का शांत होना असंभव है।)
- करुणया मैत्रीभावेन च वैरस्य शान्तिर्भवति। (दया और मित्रता के भाव से वैर की शांति होती है।)
- परोपकारः शान्तिकारणम्। (परोपकार शांति का कारण है।)
- ज्ञानं भारः क्रियां विना। (क्रिया के बिना ज्ञान भार है।)
- वसुधैव कुटुम्बकम्। (पूरी पृथ्वी ही परिवार है।)
शब्दार्थ (Word Meanings)
- अद्यत्वे (अव्यय) - आजकल, इस समय में (nowadays, in present times)
- प्रायशः (अव्यय) - अक्सर, प्रायः (mostly, generally)
- उपद्रुतः (विशेषण) - उपद्रवग्रस्त, अशांत (disturbed, troubled)
- दृश्यते (क्रिया) - दिखाई देता है (is seen)
- क्वचित् (अव्यय) - कहीं (somewhere)
- आन्तरिकः (विशेषण) - भीतरी, अंदर का (internal)
- समस्या (संज्ञा, स्त्री.) - समस्या, उलझन (problem)
- आश्रित्य (अव्यय, ल्यप् प्रत्यय) - आश्रय लेकर, के आधार पर (taking support of, based on)
- कलहः (संज्ञा, पुं.) - झगड़ा, विवाद (dispute, quarrel)
- वर्धयन्ति (क्रिया) - बढ़ाते हैं (they increase)
- निवारणस्य (संज्ञा, पुं., षष्ठी एकवचन) - रोकने का, दूर करने का (of prevention, of removal)
- उपायः (संज्ञा, पुं.) - तरीका, साधन (method, means)
- चिन्तनीयः (विशेषण, कृदन्त) - सोचने योग्य (worth thinking)
- द्वेषः (संज्ञा, पुं.) - ईर्ष्या, घृणा (envy, hatred)
- असहिष्णुता (संज्ञा, स्त्री.) - सहन न करने का भाव (intolerance)
- जनयति (क्रिया) - उत्पन्न करता है (generates, produces)
- उत्कर्षम् (संज्ञा, पुं., द्वितीया एकवचन) - उन्नति, प्रगति (progress, advancement)
- द्वेष्टि (क्रिया) - ईर्ष्या करता है (envies)
- तस्य (सर्वनाम, पुं./नपुं., षष्ठी एकवचन) - उसका (his/its)
- उत्कर्षनाशाय (चतुर्थी एकवचन) - उन्नति के नाश के लिए (for the destruction of progress)
- निरन्तरम् (अव्यय) - लगातार (continuously)
- प्रयतते (क्रिया) - प्रयास करता है (tries)
- स्वार्थः (संज्ञा, पुं.) - अपना मतलब (selfishness)
- प्रवर्तकः (विशेषण) - प्रेरित करने वाला (instigator, promoter)
- बलपूर्वकम् (अव्यय) - जबरदस्ती (forcefully)
- निवारणीयः (विशेषण, कृदन्त) - रोकने योग्य (to be stopped)
- परोपकारम् प्रति - दूसरों की भलाई के प्रति (towards benevolence)
- प्रवृत्तिः (संज्ञा, स्त्री.) - झुकाव, रुझान (inclination, tendency)
- उत्पाद्यते (क्रिया) - उत्पन्न किया जाता है (is produced)
- विद्वांसः (संज्ञा, पुं., प्रथमा बहुवचन) - विद्वान लोग (scholars)
- विरलाः (विशेषण) - बहुत कम (rare)
- उपदेशकाः (संज्ञा, पुं., प्रथमा बहुवचन) - उपदेश देने वाले (preachers)
- शमनम् (संज्ञा, नपुं.) - शांति, दमन (pacification, suppression)
- अवैरेण (तृतीया एकवचन) - बिना वैर के (without enmity)
- करुणया (तृतीया एकवचन) - दया से (with compassion)
- मैत्रीभावेन (तृतीया एकवचन) - मित्रता के भाव से (with a feeling of friendship)
- अनुभूयते (क्रिया) - अनुभव किया जाता है (is experienced)
- प्रतिष्ठापनार्थम् (अव्यय) - स्थापित करने के लिए (for establishing)
- प्रयत्नं कुर्वन्ति - प्रयास करते हैं (they make efforts)
- अपेक्ष्यते (क्रिया) - अपेक्षा की जाती है (is expected)
- भारः (संज्ञा, पुं.) - बोझ (burden)
- क्रियाम् विना - क्रिया के बिना (without action)
- हितम् (संज्ञा, नपुं.) - भलाई, कल्याण (welfare, benefit)
पाठ्यपुस्तक के अभ्यास (Solved Textbook Exercises)
(पाठ्यपुस्तक के अनुसार प्रश्नों के क्रम और संख्या भिन्न हो सकते हैं, यहाँ सामान्य संभावित प्रश्न दिए गए हैं।)
मौखिक (Oral)
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अद्य विश्वे सर्वत्र किं दृश्यते?
उत्तर: अद्य विश्वे सर्वत्र अशान्तिः दृश्यते। (आज विश्व में सब जगह अशांति दिखाई देती है।)
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अशान्तेः कति प्रमुखानि कारणानि सन्ति?
उत्तर: अशान्तेः द्वे प्रमुखे कारणे स्तः - द्वेषः असहिष्णुता च। (अशांति के दो प्रमुख कारण हैं - द्वेष और असहिष्णुता।)
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स्वार्थः किं वर्धयति?
उत्तर: स्वार्थः वैरं वर्धयति। (स्वार्थ वैर को बढ़ाता है।) (पाठ के अनुसार - स्वार्थः द्वेषं वर्धयति - स्वार्थ द्वेष को बढ़ाता है।)
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वैरेण कस्य शमनम् असम्भवम्?
उत्तर: वैरेण वैरस्य शमनम् असम्भवम्। (वैर से वैर का शांत होना असंभव है।)
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ज्ञानं किं विना भारः?
उत्तर: ज्ञानं क्रियां विना भारः। (ज्ञान क्रिया के बिना भार है।)
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केन शान्तिः भवति?
उत्तर: करुणया मैत्रीभावेन च शान्तिः भवति। (दया और मित्रता के भाव से शांति होती है।)
लिखित (Written)
I. एकपदेन उत्तरं लिखत (Write one-word answer):
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क. अद्यत्वे संसारे केषु अशान्तिः दृश्यते?
उत्तर: देशेषु (देशों में)
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ख. अशान्तिसागरे कः निमग्नः दृश्यते?
उत्तर: संसारः (संसार)
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ग. अशान्तिः मानवनाशाय कल्पते इत्येतत् केन उक्तम्?
उत्तर: (वस्तुतः अनेकेषां चिन्तकानां मतम्) वस्तुतः अनेक चिंतकों का मत है। (पाठ के अनुसार – चिंतकैः कथितम्)
(यह किसने कहा कि अशांति मानवनाश के लिए होती है? – पाठ में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, पर यह एक सामान्य सत्य है।) -
घ. एकेन देशेन अपरस्य देशस्य किम् दृष्ट्वा द्वेष्टि?
उत्तर: उत्कर्षम् (उन्नति)
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ङ. अशान्तेः कारणद्वयं किम्?
उत्तर: द्वेषः असहिष्णुता च (द्वेष और असहिष्णुता)
-
च. कः बलपूर्वकं निवारणीयः?
उत्तर: स्वार्थोपदेशः (स्वार्थ का उपदेश) या स्वार्थः (स्वार्थ)
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छ. केन वैरस्य शमनम् असम्भवम्?
उत्तर: वैरेण (वैर से)
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ज. परोपकारः कस्य कारणम्?
उत्तर: शान्तेः (शांति का)
-
झ. ज्ञानं किं विना भारः?
उत्तर: क्रियाम् (क्रिया के)
-
ञ. केषां मध्ये शीतयुद्धं प्रचलति स्म?
उत्तर: राष्ट्राणाम् (राष्ट्रों के मध्य) (पाठ में 'राष्ट्रेषु' शब्द का प्रयोग है, जिसका अर्थ है राष्ट्रों में)
II. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत (Write full sentence answer):
-
क. अद्य संसारे कीदृशं वातावरणं प्रसृतम् अस्ति?
उत्तर: अद्य संसारे सर्वत्र अशान्तेः वातावरणं प्रसृतम् अस्ति। (आज संसार में सब जगह अशांति का वातावरण फैला हुआ है।)
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ख. अशान्तेः कानि प्रमुखानि कारणानि सन्ति?
उत्तर: अशान्तेः प्रमुखानि कारणानि द्वेषः, असहिष्णुता, एकस्य देशस्य अपरस्य देशस्य उत्कर्षं दृष्ट्वा द्वेषः, स्वार्थः इत्यादीनि सन्ति। (अशांति के प्रमुख कारण द्वेष, असहिष्णुता, एक देश का दूसरे देश की उन्नति देखकर ईर्ष्या करना, स्वार्थ इत्यादि हैं।)
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ग. सामान्यजनाः कथं विश्वसन्ति?
उत्तर: सामान्यजनाः न तथा बलवन्तः अपि यदा ते समस्याभिः पीड्यन्ते तदा कञ्चित् बलवन्तं प्रति विश्वसन्ति। (सामान्य लोग उतने बलवान नहीं होते, जब वे समस्याओं से पीड़ित होते हैं तो किसी बलवान पर विश्वास करते हैं।)
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घ. राष्ट्रमध्ये द्वेषस्य मुख्यं कारणं किम्?
उत्तर: राष्ट्रमध्ये द्वेषस्य मुख्यं कारणम् अन्यराष्ट्रस्य उत्कर्षः अस्ति। (राष्ट्रों के मध्य द्वेष का मुख्य कारण दूसरे राष्ट्र की उन्नति है।)
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ङ. वैरस्य शमनं कथं सम्भवति?
उत्तर: वैरस्य शमनम् अवैरेण, करुणया, मैत्रीभावेन च सम्भवति। (वैर का शमन बिना वैर के, दया से और मित्रता के भाव से संभव होता है।)
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च. “वसुधैव कुटुम्बकम्” इति भावना कथं विकसिता भवितुम् अर्हति?
उत्तर: परोपकारेण, स्वार्थत्यागेन, अन्येषां देशहितचिन्तनेन च “वसुधैव कुटुम्बकम्” इति भावना विकसिता भवितुम् अर्हति। (परोपकार से, स्वार्थ त्याग से और दूसरे देशों के हित चिंतन से "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना विकसित हो सकती है।)
III. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (Form questions based on underlined words):
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क. अशान्तिः मानवनाशाय कल्पते।
प्रश्न: का मानवनाशाय कल्पते?
-
ख. एकः देशः अपरस्य देशस्य उत्कर्षं दृष्ट्वा द्वेष्टि।
प्रश्न: कः अपरस्य देशस्य उत्कर्षं दृष्ट्वा द्वेष्टि?
-
ग. महापुरुषाः एव विरलाः सन्ति।
प्रश्न: के एव विरलाः सन्ति?
-
घ. परोपकारः शान्तिकारणम् अस्ति।
प्रश्न: कः शान्तिकारणम् अस्ति?
-
ङ. ज्ञानं क्रियां विना भारः।
प्रश्न: ज्ञानं कां विना भारः? या ज्ञानं कस्याः विना भारः?
IV. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत (Join/Split the Sandhi):
- अशान्तिः + च = अशान्तिश्च
- तस्य + उत्कर्षनाशाय = तस्योत्कर्षनाशाय
- न + अस्ति = नास्ति
- अद्य + एव = अद्यैव
- वैरस्य + एव = वैरस्यैव
- निर्मलम् + हृदयम् = निर्मलं हृदयम् / निर्मलहृदयम्
- परोपकारः + इति = परोपकार इति
- न + इच्छति = नेच्छति
- शीतयुद्धम् = शीतम् + युद्धम्
- स्वार्थोपदेशः = स्वार्थ + उपदेशः
- अवैरेण = न + वैरेण
- इत्यादि = इति + आदि
V. विग्रहं कृत्वा समासनाम लिखत (Perform Vigraha and write the name of Samas):
- अशान्तिः - न शान्तिः (नञ् तत्पुरुष)
- असहिष्णुता - न सहिष्णुता (नञ् तत्पुरुष)
- परोपकारः - परेषां उपकारः (षष्ठी तत्पुरुष)
- विश्वशान्तिः - विश्वस्य शान्तिः (षष्ठी तत्पुरुष)
- शीतयुद्धम् - शीतं च तत् युद्धम् (कर्मधारय) या शीतम् युद्धम् (कर्मधारय)
- उत्कर्षनाशाय - उत्कर्षस्य नाशाय (षष्ठी तत्पुरुष)
- मैत्रीभावेन - मैत्र्याः भावेन (षष्ठी तत्पुरुष)
(पाठ्यपुस्तक में दिए गए अभ्यासों के अनुसार उत्तर दें।)
20 अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (20 Additional Important Q&A)
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प्रश्नः विश्वशान्तिः पाठस्य लेखकः कः? (यद्यपि पाठ में लेखक का नाम स्पष्ट नहीं होता, यह पाठ निबंध शैली में है।)
उत्तरः अयं पाठः कस्यचित् आधुनिकस्य चिन्तकस्य निबन्धः अस्ति। (यह पाठ किसी आधुनिक चिंतक का निबंध है।)
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प्रश्नः सर्वे देशाः कथम् उपद्रुताः दृश्यन्ते?
उत्तरः सर्वे देशाः आन्तरिक्या बाह्यया वा समस्यया उपद्रुताः दृश्यन्ते। (सभी देश आंतरिक या बाह्य समस्या से उपद्रवग्रस्त दिखाई देते हैं।)
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प्रश्नः कानि अशान्तेः कारणानि?
उत्तरः द्वेषः, असहिष्णुता, स्वार्थः, स्पर्धा च अशान्तेः कारणानि। (द्वेष, असहिष्णुता, स्वार्थ और स्पर्धा अशांति के कारण हैं।)
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प्रश्नः कः भावः बलपूर्वकं निवारणीयः?
उत्तरः स्वार्थभावः बलपूर्वकं निवारणीयः। (स्वार्थ का भाव बलपूर्वक रोकने योग्य है।)
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प्रश्नः कस्य उदयः विश्वशान्तये प्रयासान् करोति?
उत्तरः संयुक्तराष्ट्रसङ्घस्य सदृशानां संस्थानाम् उदयः विश्वशान्तये प्रयासान् करोति। (संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं का उदय विश्वशांति के लिए प्रयास करता है।)
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प्रश्नः “अहिंसा परमो धर्मः” इति कस्य वचनम्? (पाठ से सीधे संबंधित नहीं, पर शांति के संदर्भ में महत्वपूर्ण)
उत्तरः इदं महात्मागान्धिनः तथा जैनधर्मस्य प्रमुखं वचनम् अस्ति। (यह महात्मा गाँधी का तथा जैन धर्म का प्रमुख वचन है।)
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प्रश्नः 'द्वेषः' इति पदस्य कः अर्थः?
उत्तरः 'द्वेषः' इति पदस्य अर्थः ईर्ष्या, घृणा वा। (द्वेष पद का अर्थ ईर्ष्या या घृणा है।)
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प्रश्नः 'असहिष्णुता' किं जनयति?
उत्तरः असहिष्णुता अशान्तिं कलहं च जनयति। (असहिष्णुता अशांति और कलह को जन्म देती है।)
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प्रश्नः वयं कथं शान्तिम् अधिगन्तुं शक्नुमः?
उत्तरः वयं करुणया, मैत्रीभावेन, परोपकारेण च शान्तिम् अधिगन्तुं शक्नुमः। (हम दया, मित्रता के भाव और परोपकार से शांति प्राप्त कर सकते हैं।)
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प्रश्नः शान्तिः केन स्थापिता भवति?
उत्तरः शान्तिः करुणया मैत्रीभावेन च स्थापिता भवति। (शांति दया और मित्रता के भाव से स्थापित होती है।)
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प्रश्नः 'वसुधैव कुटुम्बकम्' इति कस्याः भावनायाः द्योतकम्?
उत्तरः 'वसुधैव कुटुम्बकम्' इति उदारचरितानां विश्वबन्धुत्वस्य भावनायाः द्योतकम्। ("पूरी पृथ्वी ही परिवार है" यह उदार चरित्र वालों की विश्वबंधुत्व की भावना का द्योतक है।)
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प्रश्नः कः स्वार्थं प्रेरयति?
उत्तरः उत्कर्षस्य कामना, अन्यस्य अपकर्षस्य इच्छा च स्वार्थं प्रेरयति। (अपनी उन्नति की कामना और दूसरे के पतन की इच्छा स्वार्थ को प्रेरित करती है।)
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प्रश्नः भगवान् बुद्धः किंम् अवदत्?
उत्तरः भगवान् बुद्धः अवदत् यत् वैरेण वैरस्य शमनम् असम्भवम्। (भगवान बुद्ध ने कहा कि वैर से वैर का शांत होना असंभव है।)
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प्रश्नः शान्तेः मूले किं तिष्ठति?
उत्तरः शान्तेः मूले परोपकारः, करुणा, मैत्रीभावः च तिष्ठति। (शांति के मूल में परोपकार, दया और मित्रता का भाव रहता है।)
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प्रश्नः अद्यत्वे कस्य उपयोगः विनाशाय क्रियते?
उत्तरः अद्यत्वे ज्ञानस्य विज्ञानस्य च उपयोगः विनाशाय (अस्त्राणां निर्माणाय) क्रियते। (आजकल ज्ञान और विज्ञान का उपयोग विनाश के लिए (अस्त्रों के निर्माण के लिए) किया जाता है।)
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प्रश्नः यदि सर्वे स्वार्थपराः भवेयुः तर्हि किं भवेत्?
उत्तरः यदि सर्वे स्वार्थपराः भवेयुः तर्हि विश्वे सर्वत्र अशान्तिः कलहश्च व्यापयेत्, मानवता च नश्येत्। (यदि सभी स्वार्थी हो जाएं तो विश्व में सब जगह अशांति और कलह फैल जाएगी और मानवता नष्ट हो जाएगी।)
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प्रश्नः 'विरलाः' इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं किम्?
उत्तरः 'विरलाः' इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं 'बहुलाः' वा 'प्रचुराः' अस्ति। (विरल पद का विपरीतार्थक पद बहुल या प्रचुर है।)
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प्रश्नः कस्य भावनायाः प्रसारेण विश्वशान्तिः सम्भवा?
उत्तरः विश्वबन्धुत्वस्य भावनायाः प्रसारेण विश्वशान्तिः सम्भवा। (विश्वबंधुत्व की भावना के प्रसार से विश्वशांति संभव है।)
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प्रश्नः ....... विना ज्ञानं भारः। (रिक्तस्थानं पूरयत)
उत्तरः क्रियां विना ज्ञानं भारः।
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प्रश्नः भारतदेशः विश्वशान्तये किं सन्देशं ददाति?
उत्तरः भारतदेशः विश्वशान्तये 'वसुधैव कुटुम्बकम्' तथा 'अहिंसा परमो धर्मः' इति सन्देशं ददाति। (भारत देश विश्वशांति के लिए "पूरी पृथ्वी ही परिवार है" तथा "अहिंसा परम धर्म है" यह संदेश देता है।)
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