नमस्ते! यह आत्म-अध्ययन नोट्स विशेष रूप से कक्षा 10 के छात्रों के लिए तैयार किए गए हैं ताकि वे "धातु एवं अधातु" अध्याय को गहराई से समझ सकें और बोर्ड परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
अध्याय 3: धातु एवं अधातु (Metals and Non-metals)
नौवीं कक्षा में आपने विभिन्न तत्वों के बारे में पढ़ा होगा और देखा होगा कि तत्वों को उनके गुणों के आधार पर धातु एवं अधातु में वर्गीकृत किया जाता है। इस अध्याय में हम धातुओं और अधातुओं के कुछ गुणों का विस्तार से अध्ययन करेंगे और जानेंगे कि किस प्रकार ये गुण इन तत्वों के उपयोग से संबंधित हैं।
3.1 भौतिक गुणधर्म (Physical Properties)
पदार्थों को उनके भौतिक गुणों की तुलना करके समूहों में अलग करना सबसे आसान होता है।
3.1.1 धातु (Metals)
- धात्विक चमक (Metallic Lustre): अपने शुद्ध रूप में धातु की सतह चमकदार होती है। इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं।
- कठोरता (Hardness): धातुएँ सामान्यतः कठोर होती हैं। प्रत्येक धातु की कठोरता अलग-अलग होती है। हालाँकि, क्षारीय धातुएँ जैसे लिथियम (Li), सोडियम (Na), और पोटैशियम (K) इतनी मुलायम होती हैं कि उन्हें चाकू से भी काटा जा सकता है।
- आघातवर्ध्यता (Malleability): धातुओं को पीटकर पतली चादर बनाया जा सकता है। इस गुणधर्म को आघातवर्ध्यता कहते हैं। सोना (Au) तथा चाँदी (Ag) सबसे अधिक आघातवर्ध्य धातुएँ हैं।
- तन्यता (Ductility): धातु के पतले तार के रूप में खींचने की क्षमता को तन्यता कहा जाता है। सोना (Au) सबसे अधिक तन्य धातु है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक ग्राम सोने से 2 किलोमीटर लंबा तार बनाया जा सकता है। आघातवर्ध्यता तथा तन्यता के कारण धातुओं को हमारी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न आकार दिए जा सकते हैं।
- ऊष्मा चालकता (Conductivity of Heat): धातुएँ ऊष्मा की सुचालक होती हैं और इनका गलनांक बहुत अधिक होता है। सिल्वर (Ag) तथा कॉपर (Cu) ऊष्मा के सबसे अच्छे चालक हैं। इनकी तुलना में लेड (Pb) तथा मर्करी (Hg) ऊष्मा के कुचालक हैं।
- विद्युत चालकता (Conductivity of Electricity): धातुएँ विद्युत की भी चालक होती हैं। इसीलिए एल्युमीनियम या कॉपर के तार बिजली पहुँचाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। विद्युत तारों पर पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC) अथवा रबड़ जैसी सामग्री की परत चढ़ी होती है, क्योंकि ये पदार्थ विद्युत के कुचालक होते हैं।
- ध्वनिक (Sonorous): जो धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर आवाज़ उत्पन्न करती हैं, उन्हें ध्वनिक (सोनोरस) कहते हैं। स्कूल की घंटी धातु की बनी होती है क्योंकि यह टकराने पर आवाज़ उत्पन्न करती है।
3.1.2 अधातु (Non-metals)
पिछली कक्षा में आपने पढ़ा है कि धातुओं की तुलना में अधातुओं की संख्या कम है। कार्बन (C), सल्फर (S), आयोडीन (I), ऑक्सीजन (O), हाइड्रोजन (H) आदि अधातुओं के कुछ उदाहरण हैं। ब्रोमीन (Br) ऐसी अधातु है, जो द्रव होती है। इसके अलावा, सारी अधातुएँ या तो ठोस या फिर गैसें होती हैं।
भौतिक गुणों के आधार पर वर्गीकरण के अपवाद (Exceptions)
केवल भौतिक गुणधर्मों के आधार पर ही हम तत्वों का वर्गीकरण नहीं कर सकते, क्योंकि इसमें कई अपवाद हैं:
- मर्करी (Hg) को छोड़कर सारी धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में पाई जाती हैं। कमरे के ताप पर मर्करी द्रव होता है।
- धातुओं का गलनांक अधिक होता है, लेकिन गैलियम (Ga) और सीज़ियम (Cs) का गलनांक बहुत कम है। यदि आप अपनी हथेली पर इन दोनों धातुओं को रखेंगे तो ये पिघलने लगेंगी।
- आयोडीन (I) अधातु होते हुए भी चमकीला होता है।
- कार्बन (C) ऐसी अधातु है, जो विभिन्न रूपों में विद्यमान रहती है। प्रत्येक रूप को अपररूप (Allotrope) कहते हैं।
- हीरा (Diamond), कार्बन का एक अपररूप है, जो सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ है एवं इसका गलनांक तथा क्वथनांक बहुत अधिक होता है।
- कार्बन का एक अन्य अपररूप ग्रैफ़ाइट (Graphite), विद्युत का सुचालक है।
- क्षारीय धातुएँ (लिथियम, सोडियम, पोटैशियम) इतनी मुलायम होती हैं कि उनको चाकू से भी काटा जा सकता है। इनके घनत्व तथा गलनांक कम होते हैं।
- अधातुओं के गुणधर्म धातुओं के विपरीत होते हैं। यह न तो आघातवर्ध्य तथा न ही तन्य होते हैं। ग्रैफ़ाइट के अलावा सभी अधातुएँ ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती हैं।
तत्वों को उनके रासायनिक गुणधर्मों के आधार पर अधिक स्पष्टता से धातुओं एवं अधातुओं में वर्गीकृत किया जा सकता है।
3.2 धातुओं के रासायनिक गुणधर्म (Chemical Properties of Metals)
3.2.1 धातुओं का वायु में दहन करने से क्या होता है?
जब धातुओं का वायु (ऑक्सीजन) में दहन किया जाता है, तो लगभग सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ मिलकर संगत धातु के ऑक्साइड बनाती हैं।
उदाहरण के लिए, जब कॉपर को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर काले रंग का कॉपर (II) ऑक्साइड बनाता है।
इसी प्रकार एल्युमीनियम, एल्युमीनियम ऑक्साइड प्रदान करता है।
अधिकांश धातु ऑक्साइड जल में अघुलनशील हैं, लेकिन इनमें से कुछ जल में घुल कर क्षार प्रदान करते हैं। सोडियम ऑक्साइड एवं पोटैशियम ऑक्साइड जल में घुल कर क्षार प्रदान करते हैं।
अधिकांश अधातुएँ ऑक्साइड प्रदान करती हैं, जो जल में घुल कर अम्ल बनाते हैं। वहीं अधिकतर धातुएँ क्षारकीय ऑक्साइड (Basic Oxides) प्रदान करती हैं।
उभयधर्मी ऑक्साइड (Amphoteric Oxides)
एल्युमीनियम ऑक्साइड ($\text{Al}_2\text{O}_3$), जिंक ऑक्साइड ($\text{ZnO}$) जैसी कुछ धातु ऑक्साइड अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों प्रकार के व्यवहार प्रदर्शित करती हैं। ऐसे धातु ऑक्साइड, जो अम्ल तथा क्षारक दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करते हैं, उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते हैं।
अम्ल तथा क्षारक के साथ एल्युमीनियम ऑक्साइड की अभिक्रिया:
ऑक्सीजन के साथ विभिन्न धातुओं की अभिक्रियाशीलता भिन्न-भिन्न होती है। पोटैशियम (K) तथा सोडियम (Na) जैसी कुछ धातुएँ इतनी तेज़ी से अभिक्रिया करती हैं कि खुले में रखने पर आग पकड़ लेती हैं। इसलिए, इन्हें सुरक्षित रखने तथा आकस्मिक आग को रोकने के लिए किरोसिन तेल में डुबोकर रखा जाता है।
सामान्य ताप पर मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, जिंक, लेड आदि जैसी धातुओं की सतह पर ऑक्साइड की पतली परत चढ़ जाती है। ऑक्साइड की यह परत धातुओं को पुनः ऑक्सीकरण से सुरक्षित रखती है।
एनोडीकरण (Anodising)
एल्युमीनियम पर ऑक्साइड की मोटी परत बनाने की प्रक्रिया को एनोडीकरण कहते हैं। यह परत एल्युमीनियम को संक्षारण से बचाती है। एनोडीकरण के लिए, एल्युमीनियम की एक साफ वस्तु को एनोड बनाकर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ इसका विद्युत-अपघटन किया जाता है। एनोड पर उत्सर्जित ऑक्सीजन गैस एल्युमीनियम के साथ अभिक्रिया करके ऑक्साइड की एक मोटी परत बनाती है। इस ऑक्साइड की परत को आसानी से रंग कर एल्युमीनियम की आकर्षक वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं।
3.2.2 धातुओं का जल के साथ अभिक्रिया
जल के साथ अभिक्रिया करके धातुएँ हाइड्रोजन गैस तथा धातु ऑक्साइड उत्पन्न करती हैं। जो धातु ऑक्साइड जल में घुलनशील हैं, जल में घुल कर धातु हाइड्रॉक्साइड प्रदान करते हैं, लेकिन सभी धातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती हैं।
- पोटैशियम (K) तथा सोडियम (Na) जैसी धातुएँ ठंडे जल के साथ तेज़ी से अभिक्रिया करती हैं। अभिक्रिया इतनी तीव्र तथा ऊष्माक्षेपी होती है कि उत्पन्न हाइड्रोजन गैस में तुरंत आग लग जाती है।
$$ 2\text{K(s) + 2H}_2\text{O(l)} \rightarrow 2\text{KOH(aq) + H}_2\text{(g) + ऊष्मीय ऊर्जा} $$$$ 2\text{Na(s) + 2H}_2\text{O(l)} \rightarrow 2\text{NaOH(aq) + H}_2\text{(g) + ऊष्मीय ऊर्जा} $$
- कैल्शियम (Ca) ठंडे जल के साथ धीरे-धीरे अभिक्रिया करता है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले कैल्शियम धातु की सतह पर चिपक जाते हैं, जिससे कैल्शियम तैरना प्रारंभ कर देता है।
$$ \text{Ca(s) + 2H}_2\text{O(l)} \rightarrow \text{Ca(OH)}_2\text{(aq) + H}_2\text{(g)} $$
- मैग्नीशियम (Mg) शीतल जल के साथ अभिक्रिया नहीं करता है, परंतु गर्म जल के साथ अभिक्रिया करके मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड एवं हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है। हाइड्रोजन गैस के बुलबुले मैग्नीशियम धातु की सतह से चिपक जाते हैं, जिससे यह भी तैरना प्रारंभ कर देता है।
$$ \text{Mg(s) + 2H}_2\text{O(l) (गर्म)} \rightarrow \text{Mg(OH)}_2\text{(aq) + H}_2\text{(g)} $$
- एल्युमीनियम (Al), आयरन (Fe) तथा जिंक (Zn) जैसी धातुएँ न तो शीतल जल के साथ और न ही गर्म जल के साथ अभिक्रिया करती हैं। लेकिन भाप के साथ अभिक्रिया करके यह धातु ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन प्रदान करती हैं।
$$ 2\text{Al(s) + 3H}_2\text{O(g) (भाप)} \rightarrow \text{Al}_2\text{O}_3\text{(s) + 3H}_2\text{(g)} $$$$ 3\text{Fe(s) + 4H}_2\text{O(g) (भाप)} \rightarrow \text{Fe}_3\text{O}_4\text{(s) + 4H}_2\text{(g)} $$
- लेड (Pb), कॉपर (Cu), सिल्वर (Ag) और गोल्ड (Au) जैसी धातुएँ जल के साथ बिल्कुल भी अभिक्रिया नहीं करती हैं।
3.2.3 धातुओं का अम्ल के साथ अभिक्रिया
जब धातुएँ तनु अम्लों (जैसे $\text{HCl}$ या $\text{H}_2\text{SO}_4$) के साथ अभिक्रिया करती हैं, तो सामान्यतः लवण तथा हाइड्रोजन गैस उत्पन्न होती है।
उदाहरण: मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, जिंक तथा आयरन तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करते हैं। बुलबुले बनने की दर मैग्नीशियम के साथ सबसे अधिक होती है, जो सबसे अधिक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। अभिक्रियाशीलता का क्रम $\text{Mg > Al > Zn > Fe}$ होता है। कॉपर तनु $\text{HCl}$ के साथ अभिक्रिया नहीं करता है।
जब धातुएँ नाइट्रिक अम्ल ($\text{HNO}_3$) के साथ अभिक्रिया करती हैं तब हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित नहीं होती है, क्योंकि $\text{HNO}_3$ एक प्रबल ऑक्सीकारक होता है जो उत्पन्न $\text{H}_2$ को ऑक्सीकृत करके जल में परिवर्तित कर देता है एवं स्वयं नाइट्रोजन के किसी ऑक्साइड ($\text{N}_2\text{O, NO, NO}_2$) में अपचयित हो जाता है। हालाँकि, मैग्नीशियम (Mg) एवं मैंगनीज (Mn), अति तनु $\text{HNO}_3$ के साथ अभिक्रिया कर $\text{H}_2$ गैस उत्सर्जित करते हैं।
एक्वा रेजिया (Aqua regia)
एक्वा रेजिया (लैटिन में 'रॉयल वॉटर') सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ($\text{HCl}$) एवं सांद्र नाइट्रिक अम्ल ($\text{HNO}_3$) का 3:1 के अनुपात में ताज़ा मिश्रण होता है। यह गोल्ड को गला सकता है, जबकि दोनों में से किसी अम्ल में अकेले यह क्षमता नहीं होती है। एक्वा रेजिया भभकता द्रव होने के साथ प्रबल संक्षारक है। यह उन अभिकर्मकों में से एक है, जो गोल्ड एवं प्लैटिनम को गलाने में समर्थ होता है।
3.2.4 अन्य धातु लवणों के विलयन के साथ धातुएँ कैसे अभिक्रिया करती हैं?
अधिक अभिक्रियाशील धातु अपने से कम अभिक्रियाशील धातु को उसके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था से विस्थापित कर देती है। यह विस्थापन अभिक्रिया धातुओं की अभिक्रियाशीलता का उत्तम प्रमाण प्रस्तुत करती है।
उदाहरण: यदि कॉपर के तार को आयरन सल्फेट के विलयन में और आयरन की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डालें। आयरन कॉपर से अधिक अभिक्रियाशील है। इसलिए, आयरन की कील कॉपर सल्फेट के विलयन से कॉपर को विस्थापित कर देगी।
कॉपर आयरन से कम अभिक्रियाशील है, इसलिए कॉपर का तार आयरन सल्फेट के विलयन से आयरन को विस्थापित नहीं कर पाएगा।
सक्रियता श्रेणी (Reactivity Series)
सक्रियता श्रेणी वह सूची है, जिसमें धातुओं की क्रियाशीलता को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
तत्व (प्रतीक) | नाम | अभिक्रियाशीलता |
---|---|---|
K | पोटैशियम | सबसे अधिक अभिक्रियाशील |
Na | सोडियम | ↓ |
Ca | कैल्शियम | ↓ |
Mg | मैग्नीशियम | ↓ |
Al | एल्युमीनियम | ↓ |
Zn | जिंक | घटती अभिक्रियाशीलता |
Fe | आयरन | ↓ |
Pb | लेड | ↓ |
[H] | [हाइड्रोजन] | (संदर्भ) |
Cu | कॉपर | ↓ |
Hg | मर्करी | ↓ |
Ag | सिल्वर | ↓ |
Au | गोल्ड | सबसे कम अभिक्रियाशील |
सक्रियता श्रेणी में हाइड्रोजन के ऊपर स्थित धातुएँ तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर सकती हैं। अधिक अभिक्रियाशील धातुएँ अपने से कम अभिक्रियाशील धातुओं को उसके लवण विलयन से विस्थापित कर सकती हैं।
3.3 धातुएँ एवं अधातुएँ कैसे अभिक्रिया करती हैं?
तत्वों की अभिक्रियाशीलता को, संयोजकता कोश को पूर्ण करने की प्रवृत्ति के रूप में समझा जा सकता है। उत्कृष्ट गैसों की रासायनिक अभिक्रियाएँ बहुत कम होती हैं क्योंकि उनका संयोजकता कोश पूर्ण होता है।
धातुएँ विद्युत धनात्मक (Electropositive) तत्व होती हैं, क्योंकि यह अधातुओं को इलेक्ट्रॉन देकर स्वयं धन आयन में परिवर्तित हो जाती हैं। अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक (Electronegative) तत्व होती हैं, क्योंकि धातुओं के साथ अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋण आवेशित आयन बनाती हैं।
उदाहरण: सोडियम क्लोराइड (NaCl) का निर्माण
सोडियम (Na) परमाणु (परमाणु संख्या 11, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 1) के बाह्यतम कोश में केवल एक इलेक्ट्रॉन है। यह एक इलेक्ट्रॉन त्याग कर स्थायी अष्टक प्राप्त कर लेता है और सोडियम धनायन ($\text{Na}^+$) बनाता है।
क्लोरिन (Cl) परमाणु (परमाणु संख्या 17, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 7) के बाह्यतम कोश में 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसे अष्टक पूर्ण करने के लिए एक इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है। यह एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके स्थायी अष्टक प्राप्त कर लेता है और क्लोराइड ऋणायन ($\text{Cl}^-$) बनाता है।
जब सोडियम एवं क्लोरीन अभिक्रिया करते हैं, तो सोडियम द्वारा त्यागा गया एक इलेक्ट्रॉन क्लोरीन ग्रहण कर लेता है। विपरीत आवेश होने के कारण सोडियम तथा क्लोराइड आयन परस्पर आकर्षित होते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बंध कर सोडियम क्लोराइड ($\text{NaCl}$) के रूप में उपस्थित रहते हैं।
ध्यान देने योग्य बात है कि सोडियम क्लोराइड अणु के रूप में नहीं पाया जाता है, बल्कि यह विपरीत आयनों का समुच्चय (क्रिस्टल जालक) होता है।
धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण से बने यौगिकों को आयनिक यौगिक (Ionic Compounds) या वैद्युत संयोजक यौगिक कहा जाता है।
उदाहरण: मैग्नीशियम क्लोराइड ($\text{MgCl}_2$) में मैग्नीशियम धनायन ($\text{Mg}^{2+}$) और क्लोराइड ऋणायन ($\text{Cl}^-$) उपस्थित हैं।
3.3.1 आयनिक यौगिकों के गुणधर्म
- भौतिक प्रकृति: धन एवं ऋण आयनों के बीच मजबूत आकर्षण बल के कारण आयनिक यौगिक ठोस एवं थोड़े कठोर होते हैं। ये यौगिक सामान्यतः भंगुर (Brittle) होते हैं तथा दाब डालने पर टुकड़ों में टूट जाते हैं।
- गलनांक एवं क्वथनांक: आयनिक यौगिकों का गलनांक एवं क्वथनांक बहुत अधिक होता है। इसका कारण यह है कि मजबूत अंतर-आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता होती है।
- घुलनशीलता: वैद्युत संयोजक यौगिक सामान्यतः जल में घुलनशील तथा किरोसिन, पेट्रोल आदि जैसे विलायकों में अविलेय होते हैं।
- विद्युत चालकता:
- ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत का चालन नहीं करते हैं। इसका कारण यह है कि ठोस अवस्था में दृढ़ संरचना के कारण आयनों की गति संभव नहीं होती है।
- आयनिक यौगिक गलित अवस्था या जलीय विलयन में विद्युत का चालन करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गलित अवस्था में या जल में घोलने पर आयन स्वतंत्र रूप से गमन करने लगते हैं।
3.4 धातुओं की प्राप्ति (Occurrence of Metals)
पृथ्वी की भूपर्पटी धातुओं का मुख्य स्रोत है। समुद्री जल में भी सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड आदि जैसे कुछ विलेय लवण उपस्थित रहते हैं।
- खनिज (Minerals): पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं।
- अयस्क (Ores): कुछ स्थानों पर खनिजों में कोई विशेष धातु काफी मात्रा में होती है, जिसे निकालना लाभकारी होता है। इन खनिजों को अयस्क कहते हैं।
- गैंग (Gangue): पृथ्वी से खनित अयस्कों में मिट्टी, रेत आदि जैसी कई अशुद्धियाँ होती हैं, जिन्हें गैंग कहते हैं। धातुओं के निष्कर्षण से पहले अयस्क से अशुद्धियों को हटाना आवश्यक होता है।
3.4.1 धातुओं का निष्कर्षण (Extraction of Metals)
अयस्क से शुद्ध धातु का निष्कर्षण कई चरणों में होता है। धातुओं की सक्रियता श्रेणी के आधार पर उनके निष्कर्षण के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
- अयस्कों का समृद्धिकरण (Enrichment of Ores): यह अयस्कों से गैंग (अशुद्धियों) को हटाने की प्रक्रिया है।
- धातुओं का निष्कर्षण:
- सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण: इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही धातु प्राप्त किया जा सकता है।
उदाहरण: सिनेबार ($\text{HgS}$), मर्करी का अयस्क है।
$$ 2\text{HgS(s) + 3O}_2\text{(g)} \xrightarrow{\Delta} 2\text{HgO(s) + 2SO}_2\text{(g)} $$$$ 2\text{HgO(s)} \xrightarrow{\Delta} 2\text{Hg(l) + O}_2\text{(g)} $$ - सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण: ये प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं। इन्हें पहले ऑक्साइड में बदला जाता है।
- भर्जन (Roasting): सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।
$$ 2\text{ZnS(s) + 3O}_2\text{(g)} \xrightarrow{\Delta} 2\text{ZnO(s) + 2SO}_2\text{(g)} $$
- निस्तापन (Calcination): कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।
$$ \text{ZnCO}_3\text{(s)} \xrightarrow{\Delta} \text{ZnO(s) + CO}_2\text{(g)} $$
- धातु ऑक्साइड का अपचयन कार्बन (कोक) जैसे अपचायक से किया जाता है।
$$ \text{ZnO(s) + C(s)} \xrightarrow{\Delta} \text{Zn(s) + CO(g)} $$
कभी-कभी विस्थापन अभिक्रियाओं का भी उपयोग किया जाता है, जैसे थर्माइट अभिक्रिया। $\text{Fe}_2\text{O}_3\text{(s)} + 2\text{Al(s)} \rightarrow 2\text{Fe(l)} + \text{Al}_2\text{O}_3\text{(s)} + \text{ऊष्मा}$
- भर्जन (Roasting): सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।
- सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण: इन अत्यंत अभिक्रियाशील धातुओं को उनके यौगिकों से कार्बन द्वारा अपचयित नहीं किया जा सकता। इन्हें वैद्युत अपघटनी अपचयन (Electrolytic Reduction) द्वारा प्राप्त किया जाता है।
उदाहरण: सोडियम, मैग्नीशियम एवं कैल्शियम को उनके गलित क्लोराइडों के वैद्युत अपघटन से प्राप्त किया जाता है।
कैथोड पर: $\text{Na}^+ + \text{e}^- \rightarrow \text{Na}$
एनोड पर: $2\text{Cl}^- \rightarrow \text{Cl}_2 + 2\text{e}^-$
एल्युमीनियम ऑक्साइड के वैद्युत अपघटनी अपचयन से एल्युमीनियम प्राप्त किया जाता है।
- सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण: इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही धातु प्राप्त किया जा सकता है।
- धातुओं का परिष्करण (Refining of Metals): विभिन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएँ पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होती हैं। सबसे प्रचलित विधि वैद्युत अपघटनी परिष्करण है।
वैद्युत अपघटनी परिष्करण (Electrolytic Refining)
कॉपर, जिंक, टिन, निकैल, सिल्वर, गोल्ड आदि धातुओं का परिष्करण इस विधि से होता है।
- अशुद्ध धातु को एनोड बनाया जाता है।
- शुद्ध धातु की पतली परत को कैथोड बनाया जाता है।
- धातु के लवण विलयन का उपयोग वैद्युत अपघट्य (Electrolyte) के रूप में होता है।
- विद्युत धारा प्रवाहित करने पर, एनोड से अशुद्ध धातु वैद्युत अपघट्य में घुलती है और उतनी ही मात्रा में शुद्ध धातु कैथोड पर निक्षेपित हो जाती है।
- विलेय अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं, अविलेय अशुद्धियाँ एनोड की तली पर एनोड पंक (Anode mud) के रूप में जमा हो जाती हैं।
3.5 संक्षारण (Corrosion)
लंबे समय तक आर्द्र वायु के संपर्क में रहने से लोहा जैसे कुछ धातुओं की सतह संक्षारित हो जाती है। इस परिघटना को संक्षारण कहते हैं।
- चांदी का संक्षारण: खुली वायु में सिल्वर की वस्तुएँ काली हो जाती हैं (सिल्वर सल्फाइड, $\text{Ag}_2\text{S}$, बनने के कारण)।
- कॉपर का संक्षारण: कॉपर आर्द्र कार्बन डाइऑक्साइड से अभिक्रिया कर हरे रंग की परत (बेसिक कॉपर कार्बोनेट, $\text{CuCO}_3 \cdot \text{Cu(OH)}_2$) बनाता है।
- लोहे में जंग लगना: लोहे पर भूरे रंग की परत (जंग, हाइड्रेटेड आयरन(III) ऑक्साइड, $\text{Fe}_2\text{O}_3 \cdot x\text{H}_2\text{O}$) चढ़ जाती है। जंग लगने के लिए वायु (ऑक्सीजन) एवं जल दोनों की उपस्थिति आवश्यक है।
3.5.1 संक्षारण से सुरक्षा (Protection from Corrosion)
लोहे और इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के तरीके:
- पेंट करके
- तेल या ग्रीज़ लगाकर
- यशदलेपन (Galvanisation): लोहे पर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाना।
- क्रोमियम लेपन
- एनोडीकरण (एल्युमीनियम के लिए)
- मिश्रातु बनाकर (Making alloys)
3.6 मिश्रातु (Alloys)
दो या दो से अधिक धातुओं अथवा एक धातु या एक अधातु के समांगी मिश्रण को मिश्रातु (Alloy) कहते हैं। इसे तैयार करने के लिए पहले मूल धातु को गलित अवस्था में लाया जाता है एवं तत्पश्चात दूसरे तत्वों को एक निश्चित अनुपात में इसमें विलीन किया जाता है। फिर इसे कमरे के ताप पर शीतलीकृत किया जाता है।
यदि कोई एक धातु पारा है, तो इसके मिश्रातु को अमलगम (Amalgam) कहते हैं। शुद्ध धातु की अपेक्षा उसके मिश्रातु की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम हो सकता है, या कठोरता बढ़ सकती है।
कुछ प्रमुख मिश्रातु:
- पीतल (Brass): कॉपर ($\text{Cu}$) एवं जस्ता ($\text{Zn}$)
- काँसा (Bronze): कॉपर ($\text{Cu}$) एवं टिन ($\text{Sn}$)
- सोल्डर (Solder): सीसा ($\text{Pb}$) एवं टिन ($\text{Sn}$), कम गलनांक, वेल्डिंग के लिए।
- स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel): लोहा ($\text{Fe}$) के साथ निकैल ($\text{Ni}$) एवं क्रोमियम ($\text{Cr}$), कठोर और जंगरोधी।
शुद्ध सोना (24 कैरट) नरम होता है। आभूषण बनाने के लिए इसे कठोर बनाने के लिए चाँदी या ताँबा मिलाया जाता है (जैसे 22 कैरट सोना)।
प्राचीन भारतीय धातुकर्म का चमत्कार: दिल्ली स्थित लौह स्तंभ (लगभग 1600 वर्ष पुराना) जंग प्रतिरोधकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अभ्यास प्रश्न (Exercise Questions)
(पृष्ठ 46 पर प्रश्न) 1. ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए जो—
(i) कमरे के ताप पर द्रव होती है।
(ii) चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।
(iii) ऊष्मा की सबसे अच्छी चालक होती है।
(iv) ऊष्मा की कुचालक होती है।
उत्तर:
(i) मर्करी (पारा)
(ii) सोडियम, पोटैशियम, लिथियम
(iii) सिल्वर (चाँदी), कॉपर (ताँबा)
(iv) लेड (सीसा), मर्करी (पारा)
2. आघातवर्ध्य तथा तन्य का अर्थ बताइए।
उत्तर:
आघातवर्ध्यता: धातुओं का वह गुण जिसके कारण उन्हें पीटकर पतली चादरों में परिवर्तित किया जा सकता है।
तन्यता: धातुओं का वह गुण जिसके कारण उन्हें खींचकर पतले तारों में परिवर्तित किया जा सकता है।
(पृष्ठ 55 पर प्रश्न 1) 1. सोडियम को किरोसिन में डुबोकर क्यों रखा जाता है?
उत्तर: सोडियम अत्यंत अभिक्रियाशील धातु है। यह वायु में उपस्थित ऑक्सीजन तथा नमी के साथ तेज़ी से अभिक्रिया करके आग पकड़ लेता है। इसे सुरक्षित रखने तथा आकस्मिक आग से बचाने के लिए इसे किरोसिन तेल में डुबोकर रखा जाता है, क्योंकि किरोसिन सोडियम के साथ अभिक्रिया नहीं करता और उसे वायु/नमी के संपर्क से बचाता है।
2. इन अभिक्रियाओं के लिए समीकरण लिखिए—
(i) भाप के साथ आयरन।
(ii) जल के साथ कैल्शियम तथा पोटैशियम।
उत्तर:
(i) भाप के साथ आयरन:
(ii) जल के साथ कैल्शियम:
जल के साथ पोटैशियम:
3. A, B, C एवं D चार धातुओं के नमूनों को लेकर एक-एक करके निम्नलिखित विलयन में डाला गया। इससे प्राप्त परिणाम को सारणीबद्ध किया गया है:
धातु | आयरन(II) सल्फेट | कॉपर(II) सल्फेट | जिंक सल्फेट | सिल्वर नाइट्रेट |
---|---|---|---|---|
A | कोई अभिक्रिया नहीं | विस्थापन | कोई अभिक्रिया नहीं | विस्थापन |
B | विस्थापन | (कोई अभिक्रिया नहीं) | (कोई अभिक्रिया नहीं) | विस्थापन |
C | कोई अभिक्रिया नहीं | कोई अभिक्रिया नहीं | कोई अभिक्रिया नहीं | विस्थापन |
D | कोई अभिक्रिया नहीं | कोई अभिक्रिया नहीं | कोई अभिक्रिया नहीं | कोई अभिक्रिया नहीं |
(i) सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु कौन सी है?
(ii) धातु B को कॉपर(II) सल्फेट के विलयन में डाला जाए तो क्या होगा?
(iii) धातु A, B, C एवं D को अभिक्रियाशीलता के घटते हुए क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर:
विश्लेषण:
- A: Fe से कम, Zn से कम, Cu से अधिक, Ag से अधिक। (Fe, Zn > A > Cu > Ag)
- B: Fe से अधिक, Ag से अधिक। (अन्य लवणों से क्रिया स्पष्ट नहीं, पर Fe से अधिक है तो सबसे अधिक हो सकती है)
- C: Fe से कम, Cu से कम, Zn से कम, Ag से अधिक। (Fe, Cu, Zn > C > Ag)
- D: सबसे कम अभिक्रियाशील (किसी से अभिक्रिया नहीं)।
(i) सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु B है, क्योंकि यह आयरन(II) सल्फेट से आयरन को विस्थापित करती है।
(ii) धातु B आयरन से अधिक अभिक्रियाशील है, और आयरन कॉपर से अधिक अभिक्रियाशील है। अतः B कॉपर से भी अधिक अभिक्रियाशील होगी। इसलिए, धातु B को कॉपर(II) सल्फेट के विलयन में डालने पर यह कॉपर को विस्थापित कर देगी।
(iii) अभिक्रियाशीलता का घटता क्रम: B > A > C > D
स्पष्टीकरण: B > Fe. A: Fe, Zn > A > Cu, Ag. C: Fe, Zn, Cu > C > Ag. D सबसे कम। अतः, B (Fe से अधिक), A (Fe से कम, Cu से अधिक), C (Cu से कम, Ag से अधिक), D (Ag से कम)।
4. अभिक्रियाशील धातु को तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में डाला जाता है तो कौन-सी गैस निकलती है? आयरन के साथ तनु $\text{H}_2\text{SO}_4$ की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
- अभिक्रियाशील धातु को तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में डालने पर हाइड्रोजन गैस ($\text{H}_2$) निकलती है।
- आयरन के साथ तनु $\text{H}_2\text{SO}_4$ की रासायनिक अभिक्रिया:
5. जिंक को आयरन (II) सल्फेट के विलयन में डालने से क्या होता है? इसकी रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर: जब जिंक को आयरन (II) सल्फेट के विलयन में डाला जाता है, तो जिंक आयरन को उसके विलयन से विस्थापित कर देता है, क्योंकि जिंक आयरन से अधिक अभिक्रियाशील है।
रासायनिक अभिक्रिया:
(पृष्ठ 55 पर प्रश्न 2) 1. (i) सोडियम, ऑक्सीजन एवं मैग्नीशियम के लिए इलेक्ट्रॉन-बिंदु संरचना लिखिए।
(ii) इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण के द्वारा $\text{Na}_2\text{O}$ एवं $\text{MgO}$ का निर्माण दर्शाइए।
(iii) इन यौगिकों में कौन से आयन उपस्थित हैं?
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉन-बिंदु संरचना:
- सोडियम (Na): Na• (एक संयोजकता इलेक्ट्रॉन)
- ऑक्सीजन (O): ••O•••• (छह संयोजकता इलेक्ट्रॉन, जोड़े में दिखाने का प्रयास) या :Ö: (दो अयुग्मित, दो युग्मित)
- मैग्नीशियम (Mg): •Mg• (दो संयोजकता इलेक्ट्रॉन)
(ii) $\text{Na}_2\text{O}$ का निर्माण:
दो सोडियम परमाणु प्रत्येक एक इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन परमाणु को देते हैं।
$\text{MgO}$ का निर्माण:
मैग्नीशियम परमाणु दो इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन परमाणु को देता है।
(iii) इन यौगिकों में उपस्थित आयन:
- $\text{Na}_2\text{O}$ में: सोडियम आयन ($\text{Na}^+$) और ऑक्साइड आयन ($\text{O}^{2-}$)
- $\text{MgO}$ में: मैग्नीशियम आयन ($\text{Mg}^{2+}$) और ऑक्साइड आयन ($\text{O}^{2-}$)
2. आयनिक यौगिकों का गलनांक उच्च क्यों होता है?
उत्तर: आयनिक यौगिकों में धनायनों और ऋणायनों के बीच मजबूत स्थिरवैद्युत आकर्षण बल (अंतर-आयनिक आकर्षण बल) होता है। इन मजबूत आकर्षण बलों को तोड़ने के लिए बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिए, आयनिक यौगिकों का गलनांक उच्च होता है।
(पृष्ठ 61 पर प्रश्न) 1. जिंक, मैग्नीशियम एवं कॉपर के धात्विक ऑक्साइडों को निम्नलिखित धातुओं के साथ गर्म किया गया— (सारणी पाठ से देखें) किस स्थिति में विस्थापन अभिक्रिया घटित होगी?
उत्तर: विस्थापन अभिक्रियाएँ तब घटित होंगी जब गर्म की जाने वाली धातु, ऑक्साइड में मौजूद धातु से अधिक अभिक्रियाशील हो (सक्रियता श्रेणी: Mg > Zn > Cu)।
- जिंक + कॉपर ऑक्साइड $\rightarrow$ विस्थापन ($\text{Zn + CuO} \rightarrow \text{ZnO + Cu}$)
- मैग्नीशियम + जिंक ऑक्साइड $\rightarrow$ विस्थापन ($\text{Mg + ZnO} \rightarrow \text{MgO + Zn}$)
- मैग्नीशियम + कॉपर ऑक्साइड $\rightarrow$ विस्थापन ($\text{Mg + CuO} \rightarrow \text{MgO + Cu}$)
2. कौन सी धातु आसानी से संक्षारित नहीं होती है?
उत्तर: सोना (Gold, Au), प्लैटिनम (Platinum, Pt) और कुछ हद तक चाँदी (Silver, Ag) जैसी कम अभिक्रियाशील धातुएँ आसानी से संक्षारित नहीं होती हैं।
3. मिश्रातु क्या होते हैं?
उत्तर: मिश्रातु दो या दो से अधिक धातुओं का, अथवा एक धातु और एक अधातु का समांगी मिश्रण होते हैं। इनके गुणधर्म मूल धातुओं से भिन्न और प्रायः अधिक उपयोगी होते हैं।
(पृष्ठ 62-63 पर पाठ्यपुस्तक के अंत के प्रश्न)
1. निम्नलिखित में कौन सा युग्म विस्थापन अभिक्रिया प्रदर्शित करता है—
(a) NaCl विलयन एवं कॉपर धातु (b) MgCl₂ विलयन एवं एल्युमीनियम धातु (c) FeSO₄ विलयन एवं सिल्वर धातु (d) AgNO₃ विलयन एवं कॉपर धातु
उत्तर: (d) AgNO₃ विलयन एवं कॉपर धातु
2. लोहे के फ्राइंग पैन को जंग से बचाने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी विधि उपयुक्त है—
(a) ग्रीज़ लगाकर (b) पेंट लगाकर (c) जिंक की परत चढ़ाकर (d) ऊपर के सभी
उत्तर: (c) जिंक की परत चढ़ाकर (यशदलेपन)। (हालांकि सभी विधियां जंग से बचाती हैं, फ्राइंग पैन के लिए यशदलेपन सबसे व्यावहारिक है। यदि प्रश्न सभी संभावित तरीकों के बारे में है तो (d) भी तर्कसंगत हो सकता है, लेकिन "उपयुक्त" पूछा गया है।)
3. कोई धातु ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कर उच्च गलनांक वाला यौगिक निर्मित करती है। यह यौगिक जल में विलेय है। यह तत्व क्या हो सकता है?
(a) कैल्शियम (b) कार्बन (c) सिलिकन (d) लोहा
उत्तर: (a) कैल्शियम
4. खाद्य पदार्थ के डिब्बों पर जिंक की बजाय टिन का लेप होता है, क्योंकि—
(a) टिन की अपेक्षा जिंक महँगा है। (b) टिन की अपेक्षा जिंक का गलनांक अधिक है। (c) टिन की अपेक्षा जिंक अधिक अभिक्रियाशील है। (d) टिन की अपेक्षा जिंक कम अभिक्रियाशील है।
उत्तर: (c) टिन की अपेक्षा जिंक अधिक अभिक्रियाशील है।
प्रश्न संख्या 5 से 8 पाठ्यपुस्तक के अंत के प्रश्न यहाँ नोट्स में शामिल नहीं हैं क्योंकि वे मूल दिए गए Markdown में विस्तृत रूप से शामिल नहीं थे। छात्र उन्हें अपनी पाठ्यपुस्तक से हल करने का प्रयास करें।
9. मैग्नीशियम के साथ तनु HCl की अभिक्रिया में उत्सर्जित गैस की क्रिया सूखे और आर्द्र लिटमस पत्र पर क्या होगी? इस अभिक्रिया का संतुलित रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर:
मैग्नीशियम तनु $\text{HCl}$ से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित करता है:
हाइड्रोजन गैस उदासीन होती है।
(a) गैस की क्रिया:
- (i) सूखे लिटमस पत्र पर: कोई प्रभाव नहीं।
- (ii) आर्द्र लिटमस पत्र पर: कोई प्रभाव नहीं।
(b) संतुलित रासायनिक अभिक्रिया ऊपर दी गई है।
10. लोहे को जंग से बचाने के लिए दो तरीके बताइए।
उत्तर: 1. पेंट करके 2. यशदलेपन (Galvanisation)
11. ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अधातुएँ कैसा ऑक्साइड बनाती हैं?
उत्तर: ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अधातुएँ सामान्यतः अम्लीय ऑक्साइड या उदासीन ऑक्साइड बनाती हैं।
12. कारण बताइए—
(a) प्लैटिनम, सोना एवं चाँदी का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया जाता है।
(b) सोडियम, पोटैशियम एवं लिथियम को तेल के अंदर संग्रहीत किया जाता है।
(c) एल्युमीनियम अत्यंत अभिक्रियाशील धातु है, फिर भी इसका उपयोग खाना बनाने वाले बर्तन बनाने के लिए किया जाता है।
(d) निष्कर्षण प्रक्रम में कार्बोनेट एवं सल्फाइड अयस्क को ऑक्साइड में परिवर्तित किया जाता है।
उत्तर:
(a) ये धातुएँ बहुत कम अभिक्रियाशील होती हैं, संक्षारित नहीं होतीं, अपनी चमक बनाए रखती हैं और आघातवर्ध्य व तन्य होती हैं।
(b) ये अत्यंत अभिक्रियाशील धातुएँ हैं जो वायु और नमी से तेजी से अभिक्रिया करती हैं; तेल इन्हें संपर्क से बचाता है।
(c) एल्युमीनियम वायु के संपर्क में ऑक्साइड की एक सुरक्षात्मक, निष्क्रिय परत बनाता है जो इसे आगे संक्षारण से बचाती है। यह ऊष्मा का अच्छा सुचालक और हल्का भी होता है।
(d) धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना (अपचयन द्वारा) कार्बोनेट या सल्फाइड अयस्कों की तुलना में अधिक आसान होता है।
13. आपने ताँबे के मलीन बर्तन को नींबू या इमली के रस से साफ करते अवश्य देखा होगा। यह खट्टे पदार्थ बर्तन को साफ करने में क्यों प्रभावी हैं?
उत्तर: ताँबे पर बनी क्षारीय कॉपर कार्बोनेट की हरी परत को नींबू या इमली में मौजूद अम्ल (जैसे सिट्रिक/टार्टरिक अम्ल) अभिक्रिया करके घोल देते हैं, जिससे बर्तन साफ हो जाता है।
14. रासायनिक गुणधर्मों के आधार पर धातुओं एवं अधातुओं में विभेद कीजिए।
गुणधर्म | धातुएँ | अधातुएँ |
---|---|---|
इलेक्ट्रॉनिक प्रवृत्ति | इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाती हैं (विद्युत धनात्मक)। | इलेक्ट्रॉन ग्रहणकर ऋणायन बनाती हैं (विद्युत ऋणात्मक)। |
ऑक्साइड की प्रकृति | सामान्यतः क्षारकीय ऑक्साइड (कुछ उभयधर्मी)। | सामान्यतः अम्लीय या उदासीन ऑक्साइड। |
तनु अम्लों से अभिक्रिया | $\text{H}_2$ गैस विस्थापित करती हैं (यदि H से अधिक अभिक्रियाशील)। | सामान्यतः अभिक्रिया नहीं करतीं। |
क्लोरीन से अभिक्रिया | आयनिक क्लोराइड बनाती हैं। | सहसंयोजक क्लोराइड बनाती हैं। |
15. एक व्यक्ति प्रत्येक घर में सुनार बनकर जाता है...एक जासूस की तरह क्या आप उस विलयन की प्रकृति के बारे में बता सकते हैं।
उत्तर: वह विलयन संभवतः एक्वा रेजिया (सांद्र $\text{HCl}$ और सांद्र $\text{HNO}_3$ का 3:1 मिश्रण) था, जो सोने को घोल सकता है। इससे आभूषणों की ऊपरी परत घुलकर चमक आ जाती है, पर वजन कम हो जाता है।
16. गर्म जल का टैंक बनाने में ताँबे का उपयोग होता है, परंतु इस्पात (लोहे की मिश्रातु) का नहीं। इसका कारण बताइए।
उत्तर: ताँबा गर्म जल से अभिक्रिया नहीं करता और संक्षारित नहीं होता है, जबकि इस्पात (लोहा) गर्म जल या भाप से अभिक्रिया कर संक्षारित हो सकता है (जंग लग सकता है)। ताँबा ऊष्मा का अच्छा सुचालक भी है।
अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नए अभ्यास प्रश्न
- आयनिक यौगिकों में विद्युत चालकता ठोस अवस्था में नहीं होती, जबकि गलित अवस्था में होती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
- सल्फाइड अयस्क तथा कार्बोनेट अयस्क में अंतर स्पष्ट करते हुए बताइए कि धातु निष्कर्षण में इन्हें पहले ऑक्साइड में क्यों बदला जाता है।
- एनोडीकरण क्या है? एल्युमीनियम में एनोडीकरण प्रक्रिया का क्या महत्व है?
- सक्रियता श्रेणी क्या है? सक्रियता श्रेणी के आधार पर समझाइए कि जिंक कॉपर सल्फेट विलयन से कॉपर को क्यों विस्थापित करता है, जबकि कॉपर जिंक सल्फेट विलयन से जिंक को क्यों विस्थापित नहीं करता?
- धातुओं के किन्ही चार भौतिक गुणों का वर्णन कीजिए। इन गुणों के आधार पर आप धातुओं को अधातुओं से कैसे अलग करेंगे?
बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश
- तत्वों का वर्गीकरण: धातु और अधातु (भौतिक और रासायनिक गुणों के आधार पर)।
- धातुओं के भौतिक गुण: धात्विक चमक, कठोरता (अपवाद: Na, K), आघातवर्ध्यता, तन्यता, ऊष्मा/विद्युत के सुचालक, ध्वनिक। मर्करी (द्रव)।
- अधातुओं के भौतिक गुण: विपरीत गुण, भंगुर, कुचालक (अपवाद: ग्रेफाइट)। ब्रोमीन (द्रव), आयोडीन (चमकीला), हीरा (कठोर)।
- धातुओं के रासायनिक गुण: क्षारकीय/उभयधर्मी ऑक्साइड बनाती हैं, जल/अम्लों से $\text{H}_2$ विस्थापित करती हैं (सक्रियता पर निर्भर)।
- आयनिक यौगिक: इलेक्ट्रॉन स्थानांतरण से बनते हैं, ठोस, कठोर, भंगुर, उच्च गलनांक/क्वथनांक, जल में विलेय, गलित/जलीय विलयन में सुचालक।
- धातु निष्कर्षण: अयस्क $\rightarrow$ समृद्धिकरण $\rightarrow$ ऑक्साइड में परिवर्तन (भर्जन/निस्तापन) $\rightarrow$ अपचयन (कार्बन/विद्युत अपघटन) $\rightarrow$ परिष्करण (वैद्युत अपघटनी)।
- संक्षारण: धातु का वायु/नमी से क्षय। सुरक्षा: पेंट, तेल, यशदलेपन, एनोडीकरण, मिश्रातु।
- मिश्रातु: धातुओं/अधातुओं का समांगी मिश्रण, बेहतर गुणधर्म। उदा: पीतल, काँसा, सोल्डर, अमलगम।
हमें उम्मीद है कि ये नोट्स आपके अध्ययन में सहायक होंगे। शुभकामनाएँ!