कक्षा 10 विज्ञान chapter12: विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव - बिहार बोर्ड नोट्स

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विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव (Magnetic Effects of Electric Current) - Class 10 Science Chapter 12 Notes | Self Learning Guide

विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव - अध्याय 12

नमस्ते छात्रों! इस अध्याय के नोट्स में आपका स्वागत है। यहाँ हम विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभावों को आसान भाषा में समझेंगे, ताकि आप स्वयं पढ़कर सभी अवधारणाओं को अच्छे से सीख सकें और परीक्षा के लिए तैयार हो सकें। ये नोट्स विशेष रूप से आपके लिए बनाए गए हैं।

इस अध्याय में, हम विद्युत धारा के रोचक प्रभावों के बारे में जानेंगे, खासकर यह कैसे चुंबकत्व से संबंधित है।

1. महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट व्याख्या:

पिछले अध्याय में हमने विद्युत धारा के तापीय प्रभावों के बारे में पढ़ा था। इस अध्याय में, हम जानेंगे कि विद्युत धारा के और क्या प्रभाव हो सकते हैं। एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह है कि विद्युत धारा प्रवाहित होने वाला तार चुंबक की तरह व्यवहार करता है।

प्रक्रिया 12.1 (Activity 12.1) - चुंबकीय प्रभाव का अवलोकन:

  • एक सीधे, मोटे तांबे के तार को विद्युत परिपथ के दो बिंदुओं X और Y के बीच रखिए।
  • तार के पास क्षैतिज रूप में एक छोटी दिक्सूचक रखिए और उसकी सुई की स्थिति नोट कीजिए।
  • परिपथ में कुंजी लगाकर विद्युत धारा प्रवाहित कीजिए।
  • दिक्सूचक सुई की स्थिति में परिवर्तन का अवलोकन कीजिए।

अवलोकन और निष्कर्ष:

  • आप देखेंगे कि दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है।
  • इसका मतलब है कि तांबे के तार से प्रवाहित विद्युत धारा ने चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न किया है
  • यह तथ्य दर्शाता है कि विद्युत और चुंबकत्व एक-दूसरे से संबंधित हैं।

हेंस क्रिश्चियन ऑस्ट्रेड (Hans Christian Ørsted):

  • 19वीं शताब्दी के एक अग्रणी वैज्ञानिक, हेंस क्रिश्चियन ऑस्ट्रेड ने विद्युतचुंबकत्व को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सन 1820 में, उन्होंने अचानक यह खोजा कि जब किसी धातु के तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके पास रखी दिक्सूचक सुई में विक्षेप उत्पन्न होता है।
  • उनके अवलोकन के आधार पर, ऑस्ट्रेड ने साबित किया कि विद्युत और चुंबकत्व परस्पर संबंधित घटनाएं हैं
  • उनके अनुसंधान ने रेडियो, टेलीविजन, तंतु प्रकाशिकी आदि जैसी नई प्रौद्योगिकियों का सृजन किया।
  • उनके सम्मान में चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक 'ऑस्ट्रेड' रखा गया है।

2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या:

दिक्सूचक (Compass): एक छोटी चुंबक होती है, जिसकी सुई एक छोटे छड़ चुंबक की तरह होती है। इसका एक सिरा उत्तर दिशा (उत्तरी ध्रुव) की ओर और दूसरा सिरा दक्षिण दिशा (दक्षिणी ध्रुव) की ओर संकेत करता है। इसे चुंबक या धारावाही चालक के पास लाने पर इसकी सुई विक्षेपित होती है।

उत्तरी ध्रुव (North Pole): दिक्सूचक की सुई का वह सिरा जो उत्तर दिशा की ओर संकेत करता है। छड़ चुंबक का वह सिरा जिससे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं निकलती प्रतीत होती हैं।

दक्षिणी ध्रुव (South Pole): दिक्सूचक की सुई का वह सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है। छड़ चुंबक का वह सिरा जिसमें चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं विलीन होती प्रतीत होती हैं।

सजातीय ध्रुव (Like Poles): समान प्रकार के ध्रुव (जैसे उत्तर-उत्तर या दक्षिण-दक्षिण)। सजातीय ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण होता है।

विजातीय ध्रुव (Unlike Poles): विपरीत प्रकार के ध्रुव (जैसे उत्तर-दक्षिण)। विजातीय ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है।

चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field): किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके बल का संसूचन किया जा सकता है। यह एक ऐसी राशि है जिसमें परिमाण और दिशा दोनों होते हैं।

चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं (Magnetic Field Lines): वे रेखाएं जिनके अनुदिश लौहचूर्ण स्वयं को व्यवस्थित कर लेता है (चित्र 12.2 देखें)। ये वे पथ हैं जिनके अनुदिश कोई कल्पित स्वतंत्र उत्तरी ध्रुव गमन करने की प्रवृत्ति रखता है। ये चुंबकीय क्षेत्र का निरूपण करती हैं।

परिनालिका (Solenoid): पास-पास लिपटे विद्युतरोधी तांबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।

विद्युत चुंबक (Electromagnet): परिनालिका के भीतर नरम लोहे की क्रोड रखकर चुंबक बनाने में इसका उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं। इसमें नर्म लोहा होता है जिसके चारों ओर विद्युतरोधी तांबे के तार की कुंडली लिपटी रहती है।

दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम (Right-Hand Thumb Rule): किसी सीधे धारावाही चालक से संबद्ध चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने का एक सुगम उपाय। कल्पना कीजिए कि आप अपने दाहिने हाथ में धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अंगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है, तो आपकी अंगुलियां चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी (चित्र 12.7 देखें)। इसे मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम भी कहते हैं।

फ्लेमिंग का वामहस्त नियम (Fleming's Left-Hand Rule): चुंबकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा ज्ञात करने का नियम। इस नियम के अनुसार, अपने बाएं हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों (चित्र 12.13 देखें)। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है, तो अंगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।

विद्युन्मय तार (Live Wire): आपूर्ति के तारों में से एक तार जिस पर प्रायः लाल विद्युतरोधी आवरण होता है। इसे धनात्मक तार भी कहते हैं।

उदासीन तार (Neutral Wire): आपूर्ति के तारों में से एक तार जिस पर काला आवरण होता है। इसे ऋणात्मक तार भी कहते हैं। भारत में, विद्युन्मय तार और उदासीन तार के बीच 220 V का विभवांतर होता है।

भू-संपर्क तार (Earth Wire): जिस पर प्रायः हरा विद्युतरोधी आवरण होता है। यह घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। यह एक सुरक्षा उपाय है।

लघुपथन (Short Circuiting): जब विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार दोनों सीधे संपर्क में आते हैं। यह तब होता है जब तारों का विद्युतरोधन क्षतिग्रस्त हो जाता है अथवा साधित्र में कोई दोष होता है। ऐसी परिस्थितियों में, किसी परिपथ में विद्युत धारा अकस्मात बहुत अधिक हो जाती है।

अतिभारण (Overloading): जब परिपथ में विद्युत धारा का मान बहुत अधिक हो जाता है। यह लघुपथन से हो सकता है। आपूर्ति वोल्टता में आकस्मिक वृद्धि से भी अतिभारण हो सकता है। कभी-कभी एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करने से भी अतिभारण हो जाता है।

विद्युत फ्यूज (Electric Fuse): सभी घरेलू परिपथों का एक महत्वपूर्ण अवयव। यह परिपथ तथा साधित्र को अतिभारण के कारण होने वाली क्षति से बचाता है। यह अवांछनीय उच्च विद्युत धारा के प्रवाह को समाप्त करके संभावित क्षति से बचाता है। फ्यूज में होने वाला जूल तापन फ्यूज को पिघला देता है, जिससे विद्युत परिपथ टूट जाता है।

3. पुस्तक में दिए गए सभी उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए:

उदाहरण 12.1:

प्रश्न: किसी क्षैतिज रखी संचरण लाइन (पावर लाइन) में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इसके ठीक नीचे के किसी बिंदु पर तथा इसके ठीक ऊपर के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?

हल:

  • चरण 1: विद्युत धारा की दिशा पहचानें। प्रश्न में दिया गया है कि विद्युत धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है।
  • चरण 2: दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम लागू करें। कल्पना कीजिए कि आप तार को अपने दाहिने हाथ में इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अंगूठा धारा की दिशा (पूर्व से पश्चिम) की ओर है।
  • चरण 3: अंगुलियों की दिशा देखें। जब अंगूठा पूर्व से पश्चिम की ओर होगा, तो आपकी अंगुलियां तार के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी।
  • चरण 4 (तार के नीचे): तार के नीचे के किसी बिंदु पर, आपकी अंगुलियां दक्षिण की ओर संकेत करेंगी (यदि आप तार को अपने सामने और धारा को अपनी बाईं से दाईं ओर जाता हुआ देख रहे हैं)। चुंबकीय क्षेत्र संकेंद्रित वृत्तों के रूप में होता है। यदि धारा पूर्व से पश्चिम की ओर है, तो तार के नीचे चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण की ओर होगी।
  • चरण 5 (तार के ऊपर): तार के ऊपर के किसी बिंदु पर, आपकी अंगुलियां उत्तर की ओर संकेत करेंगी। यदि धारा पूर्व से पश्चिम की ओर है, तो तार के ऊपर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उत्तर की ओर होगी।

स्पष्टीकरण (पाठ्यपुस्तक और नियम के अनुसार): सीधे तार के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र संकेंद्रित वृत्त होते हैं। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम से इन वृत्तों की दिशा ज्ञात होती है। तार के ऊपर और नीचे के बिंदुओं पर क्षेत्र की दिशा इन वृत्तों के स्पर्शरेखीय (tangential) होगी।

यदि धारा पूर्व (East) से पश्चिम (West) की ओर है:

  • तार के ठीक नीचे के बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण (South) की ओर होगी।
  • तार के ठीक ऊपर के बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उत्तर (North) की ओर होगी।

(स्रोत का उल्लेख: प्रश्न में दिए गए मूल Markdown में "पूर्वी सिरे से अवलोकन करने पर दक्षिणावर्त और पश्चिमी सिरे से अवलोकन करने पर वामावर्त" का उल्लेख था। यह व्याख्या तब अधिक प्रासंगिक होती है जब हम तार के सिरे से वृत्त को देखते हैं। हालांकि, किसी बिंदु पर क्षेत्र की विशिष्ट दिशा के लिए उपरोक्त (उत्तर/दक्षिण) स्पष्टीकरण अधिक सटीक है।)

उदाहरण 12.2:

प्रश्न: चित्र 12.14 में दर्शाए अनुसार कोई इलेक्ट्रॉन किसी चुंबकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लंबवत प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर आरोपित बल की दिशा क्या है? (a) दाईं ओर (b) बाईं ओर (c) कागज से बाहर की ओर आते हुए (d) कागज में भीतर की ओर जाते हुए

हल: (चित्र 12.14 के अनुसार कल्पना करें)

  • चरण 1: ज्ञात दिशाएं पहचानें। मान लीजिए चित्र 12.14 में चुंबकीय क्षेत्र पृष्ठ के लंबवत अंदर की ओर (या किसी विशिष्ट दिशा में, जैसे ऊपर की ओर) है और इलेक्ट्रॉन क्षैतिज रूप से प्रवेश कर रहा है। (पाठ्यपुस्तक के चित्र 12.14 को संदर्भित करें) प्रश्न के मूल Markdown में चुंबकीय क्षेत्र को ऊर्ध्वाधर (ऊपर की ओर) और इलेक्ट्रॉन को बाईं ओर क्षैतिज रूप से प्रवेश करते हुए माना गया है।
  • चरण 2: विद्युत धारा की दिशा पहचानें। विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉनों की गति की दिशा के विपरीत होती है। इसलिए, यदि इलेक्ट्रॉन बाईं ओर जा रहा है, तो विद्युत धारा की दिशा दाईं ओर होगी।
  • चरण 3: फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लागू करें।
    • अपने बाएं हाथ की तर्जनी (Forefinger) को चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में रखें (प्रश्न के अनुसार, ऊपर की ओर)।
    • अपनी मध्यमा (Middle finger) को विद्युत धारा की दिशा में रखें (दाईं ओर)।
    • ध्यान दें कि तर्जनी और मध्यमा परस्पर लंबवत होनी चाहिए।
  • चरण 4: अंगूठे की दिशा देखें। यदि आपकी तर्जनी ऊपर और मध्यमा दाईं ओर है, तो आपका अंगूठा (Thumb) कागज में भीतर की ओर संकेत करेगा।
  • चरण 5: निष्कर्ष निकालें। आरोपित बल की दिशा कागज में भीतर की ओर जाते हुए है।

सही विकल्प: (d) कागज में भीतर की ओर जाते हुए।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर:

प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धारावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएं तार के लंबवत होती हैं।
(b) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएं तार के समांतर होती हैं।
(c) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएं अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्रीय क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।

उत्तर: (d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्रीय क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है। क्रियाकलाप 12.5 में हमने देखा कि धारावाही सीधे तार के चारों ओर लौहचूर्ण संकेंद्रीय वृत्तों के रूप में व्यवस्थित होता है। ये संकेंद्रीय वृत्त चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को निरूपित करते हैं और इनका केंद्र तार होता है।

प्रश्न 2: लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान—
(a) बहुत कम हो जाता है।
(b) परिवर्तित नहीं होता।
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(d) निरंतर परिवर्तित होता है।

उत्तर: (c) बहुत अधिक बढ़ जाता है। लघुपथन तब होता है जब विद्युन्मय तार और उदासीन तार सीधे संपर्क में आते हैं। ऐसी स्थिति में, परिपथ में प्रतिरोध बहुत कम हो जाता है और विद्युत धारा का मान अकस्मात बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 3: निम्नलिखित कथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे कथन के सामने अंकित कीजिए—
(a) किसी लंबी वृत्ताकार विद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएं होता है।
(b) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।

उत्तर:

  • (a) सही। वृत्ताकार धारावाही पाश के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं सरल रेखा जैसी प्रतीत होने लगती हैं। लंबी वृत्ताकार कुंडली (परिनालिका) के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं समांतर सरल रेखाएं होती हैं, जो दर्शाता है कि केंद्र सहित भीतर सभी बिंदुओं पर क्षेत्र समान होता है।
  • (b) गलत। हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः भू-संपर्क तार होता है। विद्युन्मय तार पर लाल विद्युतरोधन होता है।

प्रश्न 4: चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के दो तरीकों की सूची बनाइए।

उत्तर: चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के दो तरीके निम्नलिखित हैं:

  1. चुंबक द्वारा: एक स्थायी चुंबक, जैसे छड़ चुंबक या नाल चुंबक, अपने चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
  2. विद्युत धारा द्वारा: किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा अपने चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यह क्षेत्र सीधे तार, वृत्ताकार पाश, या परिनालिका के कारण उत्पन्न हो सकता है।

प्रश्न 5: किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?

उत्तर: चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल उस समय अधिकतम होता है, जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत (perpendicular, 90°) होती है।

प्रश्न 6: मान लीजिए आप किसी चैंबर में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?

उत्तर:

  • चरण 1: दिशाएं निर्धारित करें।
    • इलेक्ट्रॉन पुंज की गति: आपके पीछे से सामने की ओर।
    • विक्षेपण (बल की दिशा): आपके दाईं ओर।
  • चरण 2: विद्युत धारा की दिशा पहचानें। विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉनों की गति के विपरीत होती है। अतः, विद्युत धारा सामने वाली दीवार से पीछे की दीवार की ओर होगी।
  • चरण 3: फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लागू करें।
    • अपने बाएं हाथ का अंगूठा बल की दिशा (आपके दाईं ओर) में रखें।
    • अपनी मध्यमा विद्युत धारा की दिशा (सामने से पीछे की ओर) में रखें।
  • चरण 4: तर्जनी की दिशा देखें। आपकी तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को इंगित करेगी। इस स्थिति में, तर्जनी नीचे की ओर (अधोमुखी) संकेत करेगी।

निष्कर्ष: चुंबकीय क्षेत्र की दिशा अधोमुखी (downwards) है।

प्रश्न 7: निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए—
(i) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र,
(ii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल।

उत्तर:

(i) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम (Right-Hand Thumb Rule) द्वारा निर्धारित किया जाता है।

(ii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल की दिशा को फ्लेमिंग का वामहस्त नियम (Fleming's Left-Hand Rule) द्वारा निर्धारित किया जाता है।

प्रश्न 8: किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?

उत्तर: किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन तब होता है जब विद्युन्मय तार (live wire) और उदासीन तार (neutral wire) सीधे संपर्क में आ जाते हैं। यह प्रायः तब होता है जब तारों का विद्युतरोधन क्षतिग्रस्त हो जाता है या किसी विद्युत साधित्र (appliance) में कोई खराबी होती है। इसके कारण परिपथ में प्रतिरोध बहुत कम हो जाता है और विद्युत धारा का मान अकस्मात बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 9: भू-संपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भू-संपर्कित करना क्यों आवश्यक है?

उत्तर:

  • भू-संपर्क तार का कार्य: भू-संपर्क तार धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों के लिए एक सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करता है। यह धातु के आवरण को भूमि से जोड़ता है, जिससे विद्युत धारा के लिए एक अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत होता है।
  • धातु के आवरण वाले साधित्रों को भू-संपर्कित करने की आवश्यकता: धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों (जैसे इलेक्ट्रिक इस्तरी, टोस्टर, फ्रिज) में कभी-कभी अंदर के तारों का विद्युतरोधन क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण विद्युत धारा आवरण में लीक हो सकती है। यदि आवरण भू-संपर्कित न हो, तो आवरण उच्च विभव पर आ जाएगा, और यदि कोई व्यक्ति उस साधित्र को छूता है, तो उसे तीव्र विद्युत आघात लग सकता है। भू-संपर्कित होने पर, यदि आवरण में धारा लीक होती है, तो यह भू-संपर्क तार के माध्यम से सीधे भूमि में चली जाती है। इससे साधित्र का विभव भूमि के विभव (जो शून्य माना जाता है) के बराबर हो जाता है। परिणामस्वरूप, साधित्र का उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।

5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न:

  1. दिक्सूचक सुई की विक्षेप की मात्रा धारावाही सीधे तार से दूरी बढ़ने पर कैसे बदलती है? कारण स्पष्ट कीजिए।
  2. एक वृत्ताकार धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ाने से उसके केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता पर क्या प्रभाव पड़ता है? क्यों?
  3. परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र की प्रकृति कैसी होती है? इसका क्या उपयोग है?
  4. फ्लेमिंग का वामहस्त नियम किन तीन परस्पर लंबवत दिशाओं को संबंधित करता है?
  5. घरेलू विद्युत परिपथों में समानांतर संयोजन का क्या लाभ है?
  6. लघुपथन और अतिभारण में क्या अंतर है? ये दोनों किस प्रकार खतरनाक हैं?
  7. अपने घर के किसी ऐसे साधित्र का नाम बताइए जिसमें विद्युत मोटर का उपयोग होता है। विद्युत मोटर किस सिद्धांत पर कार्य करती है?
  8. यदि किसी इलेक्ट्रॉन को चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के समानांतर प्रक्षेपित किया जाए, तो उस पर कितना बल लगेगा?
  9. मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम क्या है? यह किस भौतिक घटना से संबंधित है?
  10. चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के चार गुणधर्म सूचीबद्ध कीजिए।

6. अध्याय के अंत में बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश:

आपने इस अध्याय में सीखा कि:

  • विद्युत धारा प्रवाहित होने वाला तार चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
  • चुंबकीय क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ चुंबक के बल का अनुभव किया जा सकता है।
  • चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं चुंबकीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं; ये उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं (चुंबक के बाहर) और दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर जाती हैं (चुंबक के अंदर)। ये बंद वक्र होती हैं। जहाँ क्षेत्र रेखाएं पास-पास होती हैं, वहाँ चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है। दो क्षेत्र रेखाएं कभी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं।
  • सीधे धारावाही चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र संकेंद्रीय वृत्तों के रूप में होता है जिसकी दिशा दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम से ज्ञात होती है। धारा बढ़ने पर क्षेत्र की प्रबलता बढ़ती है और चालक से दूरी बढ़ने पर घटती है।
  • विद्युत चुंबक नरम लोहे की क्रोड होती है जिसके चारों ओर धारावाही कुंडली लिपटी होती है।
  • चुंबकीय क्षेत्र में रखा धारावाही चालक बल का अनुभव करता है। यह बल अधिकतम होता है जब धारा की दिशा क्षेत्र के लंबवत होती है। बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से ज्ञात होती है।
  • घरेलू विद्युत आपूर्ति में विद्युन्मय तार (लाल), उदासीन तार (काला) और भू-संपर्क तार (हरा) होते हैं। विद्युन्मय और उदासीन तार के बीच 220V विभवांतर होता है।
  • भू-संपर्कण एक सुरक्षा उपाय है जो धातु के आवरण वाले साधित्रों के उपयोग से विद्युत आघात से बचाता है।
  • विद्युत परिपथों की सुरक्षा के लिए फ्यूज एक महत्वपूर्ण युक्ति है। यह लघुपथन या अतिभारण के कारण होने वाली अत्यधिक धारा से परिपथ को सुरक्षित रखता है।

मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स आपको इस अध्याय को अच्छी तरह से समझने में मदद करेंगे। शुभकामनाएं!

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