हमारा पर्यावरण - अध्याय 13 (आत्म-अध्ययन नोट्स)
अध्याय का परिचय
हम सभी 'पर्यावरण' शब्द से परिचित हैं। यह शब्द अक्सर टेलीविजन, समाचार पत्रों और हमारे आस-पास के लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है। हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि अब पर्यावरण वैसा नहीं रहा जैसा पहले था, और दूसरे कहते हैं कि हमें स्वस्थ पर्यावरण में काम करना चाहिए। पर्यावरणीय समस्याओं पर चर्चा के लिए विकसित और विकासशील देशों के वैश्विक सम्मेलन भी नियमित रूप से होते रहते हैं। इस अध्याय में, हम चर्चा करेंगे कि विभिन्न कारक पर्यावरण में किस प्रकार परस्पर क्रिया करते हैं और हम पर्यावरण पर क्या प्रभाव डालते हैं।
1. परितंत्र—इसके घटक क्या हैं?
महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या:
सभी जीव जैसे पौधे, जंतु, सूक्ष्मजीव और मानव, भौतिक कारकों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं और प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हैं। किसी क्षेत्र के सभी जीव और वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से परितंत्र बनाते हैं। अतः, एक परितंत्र में सभी जीवों के जैव घटक और अजैव घटक होते हैं। भौतिक कारक जैसे ताप, वर्षा, वायु, मृदा और खनिज आदि अजैव घटक हैं।
उदाहरण के लिए, यदि आप बगीचे में जाएँ तो आपको विभिन्न पौधे (जैसे घास, वृक्ष, गुलाब, चमेली, सूरजमुखी जैसे फूल वाले सजावटी पौधे) और जंतु (जैसे मेंढक, कीट एवं पक्षी) दिखाई देंगे। ये सभी सजीव परस्पर क्रिया करते हैं और इनकी वृद्धि, जनन एवं अन्य क्रियाकलाप परितंत्र के अजैव घटकों द्वारा प्रभावित होते हैं। इसलिए, यह बगीचा एक परितंत्र है। वन, तालाब और झील परितंत्र के अन्य प्रकार हैं। ये प्राकृतिक परितंत्र हैं। जबकि बगीचा और खेत मानव निर्मित (कृत्रिम) परितंत्र हैं।
प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या:
परितंत्र (Ecosystem): किसी क्षेत्र के सभी जीव (जैव घटक) और वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से परितंत्र बनाते हैं। इनमें परस्पर अनयोनयक्रिया होती है।
जैव घटक (Biotic Components): परितंत्र में सभी जीव, जैसे पौधे, जंतु, सूक्ष्मजीव और मानव।
अजैव घटक (Abiotic Components): परितंत्र में निर्जीव भौतिक कारक, जैसे ताप, वर्षा, वायु, मृदा और खनिज।
प्राकृतिक परितंत्र (Natural Ecosystem): प्रकृति में पाए जाने वाले परितंत्र, जैसे वन, तालाब, झील।
मानव निर्मित/कृत्रिम परितंत्र (Man-made/Artificial Ecosystem): मानव द्वारा बनाए गए परितंत्र, जैसे बगीचा, खेत, जल जीवशाला (aquarium)।
जीवों का वर्गीकरण (पोषण के आधार पर)
हम पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं कि जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों को उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक वर्गों में बाँटा गया है।
उत्पादक (Producers): वे जीव जो सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थ (जैसे शर्करा और मंड) का निर्माण कर सकते हैं। सभी हरे पौधे एवं नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, इस वर्ग में आते हैं और उत्पादक कहलाते हैं। उत्पादक प्रथम पोषी स्तर बनाते हैं।
उपभोक्ता (Consumers): वे जीव जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपने निर्वाह हेतु उत्पादकों पर निर्भर करते हैं। ये जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ता को मुख्यतः शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है। शाकाहारी प्राथमिक उपभोक्ता (द्वितीय पोषी स्तर), छोटे मांसाहारी द्वितीय उपभोक्ता (तीसरा पोषी स्तर), तथा बड़े मांसाहारी तृतीय उपभोक्ता (चौथे पोषी स्तर) का निर्माण करते हैं।
अपघटक (Decomposers): जीवाणु और कवक जैसे सूक्ष्मजीव मृत जैव अवशेषों का अपमार्जन करते हैं। ये सूक्ष्मजीव अपमार्जक हैं, क्योंकि ये जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं। ये अकार्बनिक पदार्थ मिट्टी में चले जाते हैं और पौधों द्वारा पुनः उपयोग में लिए जाते हैं।
अध्याय में दिए गए उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए:
उदाहरण 1: बगीचा एक परितंत्र के रूप में
- स्थान: एक बगीचा।
- जैव घटक: घास, वृक्ष, गुलाब, चमेली, सूरजमुखी जैसे पौधे (उत्पादक), मेंढक, कीट, पक्षी (उपभोक्ता)।
- अजैव घटक: ताप, वर्षा, वायु, मृदा, खनिज (जो बगीचे में मौजूद हैं)।
- परस्पर क्रिया: ये सजीव (पौधे, जंतु) आपस में और अजैव घटकों (ताप, मिट्टी आदि) से परस्पर क्रिया करते हैं।
- प्रभाव: पौधों की वृद्धि, जनन और अन्य क्रियाकलाप अजैव घटकों द्वारा प्रभावित होते हैं।
- निष्कर्ष: क्योंकि इसमें जैव और अजैव घटक होते हैं और वे परस्पर क्रिया करते हैं, इसलिए बगीचा एक परितंत्र है। यह एक मानव निर्मित परितंत्र का उदाहरण है।
उदाहरण 2: जल जीवशाला (Aquarium) एक परितंत्र के रूप में
- निर्माण: एक जल जीवशाला (aquarium) बनाना। इसके लिए पर्याप्त स्थान (एक बड़ा जार), जल, ऑक्सीजन और भोजन चाहिए।
- आवश्यकताएँ: ऑक्सीजन के लिए वायु पंप (वातक) का उपयोग कर सकते हैं और मछली का भोजन बाज़ार में उपलब्ध होता है।
- परितंत्र बनाना: यदि इसमें कुछ पौधे लगा दें, तो यह एक स्वनिर्वाह तंत्र बन जाएगा। पौधे प्रकाश संश्लेषण से ऑक्सीजन और भोजन उत्पन्न करेंगे।
- मानव निर्मित परितंत्र: जल जीवशाला मानव निर्मित परितंत्र का उदाहरण है।
- परस्पर निर्भरता: जल जीवशाला में जलीय जीव (मछलियाँ) और पौधे एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। मछलियाँ भोजन के लिए पौधों या अन्य जीवों पर निर्भर कर सकती हैं, और पौधे जीवित रहने के लिए जल और प्रकाश पर निर्भर करते हैं। ऑक्सीजन का आदान-प्रदान भी होता है।
- साफ-सफाई: जल जीवशाला को नियमित रूप से साफ करने की आवश्यकता होती है। तालाबों और झीलों की तरह इनकी प्राकृतिक रूप से सफाई नहीं होती।
- खाद्य श्रृंखला: जल जीवशाला में जलीय जीवों के नाम उस क्रम में लिखकर एक खाद्य श्रृंखला बनाई जा सकती है, जिसमें एक जीव दूसरे जीव को खाता है। इसमें कम से कम तीन चरण होने चाहिए। उदाहरण के लिए: शैवाल (उत्पादक) → छोटी मछली (प्राथमिक उपभोक्ता) → बड़ी मछली (द्वितीय उपभोक्ता)।
उदाहरण 3: अपघटकों की भूमिका
- स्थिति: कल्पना कीजिए जब आप जल जीवशाला को साफ करना छोड़ दें और कुछ मछलियाँ एवं पौधे इसमें मर भी गए हैं।
- सवाल: क्या आपने कभी सोचा है कि क्या होता है, जब एक जीव मरता है?
- अपघटकों की क्रिया: जीवाणु और कवक जैसे सूक्ष्मजीव मृत जैव अवशेषों का अपमार्जन करते हैं।
- प्रक्रिया: ये सूक्ष्मजीव जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं।
- परिणाम: ये सरल अकार्बनिक पदार्थ मिट्टी (भूमि) में मिल जाते हैं और पौधों द्वारा पुनः उपयोग में लिए जाते हैं।
- महत्व: इनकी अनुपस्थिति में मृत जंतुओं एवं पौधों पर प्रभाव पड़ेगा। अपमार्जकों के न रहने पर भी मृदा की प्राकृतिक पुनःपूर्ति नहीं होगी। अपघटक परितंत्र में पदार्थों के चक्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1.1 आहार श्रृंखला एवं जाल
महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या:
जीवों की एक श्रृंखला जो एक-दूसरे का आहार करते हैं, आहार श्रृंखला का निर्माण करती है। विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की यह श्रृंखला आहार श्रृंखला (चित्र 13.1) का निर्माण करती है। आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं।
- पोषी स्तर (Trophic Level): आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण या कड़ी एक पोषी स्तर बनाती है। स्वपोषी (उत्पादक) प्रथम पोषी स्तर हैं। शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ता) द्वितीय पोषी स्तर। छोटे मांसाहारी (द्वितीय उपभोक्ता) तीसरे पोषी स्तर। तथा बड़े मांसाहारी (तृतीय उपभोक्ता) चौथे पोषी स्तर (चित्र 13.2) का निर्माण करते हैं।
- ऊर्जा का प्रवाह (Energy Flow): भोजन जो हम खाते हैं, ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों की परस्पर अन्योन्यक्रिया में निकाय के एक घटक से दूसरे में ऊर्जा का प्रवाह होता है। स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह ऊर्जा सम्पूर्ण जैव समुदाय की सभी क्रियाओं के संपादन में सहायक है। स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है। जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है।
- स्थलीय परितंत्र में हरे पौधे की पत्तियाँ प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
- जब हरे पौधे प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं, तो ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ऊष्मा के रूप में ह्रास होता है। कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है।
- अतः, प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है (10 प्रतिशत का नियम)।
- चूँकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार श्रृंखला सामान्यतः तीन अथवा चार चरण की होती है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।
- आहार जाल (Food Web): विभिन्न आहार श्रृंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में काफी अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है, जो स्वयं अनेक प्रकार के जीवों का आहार बनते हैं। अतः, एक सीधी आहार श्रृंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखित होते हैं तथा शाखित श्रृंखलाओं का एक जाल बनाते हैं, जिसे ‘आहार जाल’ (चित्र 13.3) कहते हैं।
- ऊर्जा प्रवाह की दिशा: ऊर्जा का प्रवाह एकदिशिक (एक ही दिशा में) होता है। स्वपोषी जीवों द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा पुनः सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती। और शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुनः स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती। यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है और अपने से पहले स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती है।
- जैविक आवर्धन (Biomagnification): आहार श्रृंखला का एक दूसरा आयाम यह है कि हमारी जानकारी के बिना ही कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रृंखला से होते हुए हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। विभिन्न फसलों को रोग और पीड़कों से बचाने के लिए पीड़कनाशक एवं रसायनों का अत्यधिक प्रयोग करना जल प्रदूषण का एक कारण है। ये रसायन बहकर मिट्टी में अथवा जल स्रोत में चले जाते हैं। मिट्टी से इन पदार्थों का पौधों द्वारा जल एवं खनिजों के साथ-साथ अवशोषण हो जाता है तथा जलाशयों से यह जलीय पौधों एवं जंतुओं में प्रवेश कर जाते हैं। चूँकि ये पदार्थ अजैव निम्नीकृत हैं, यह प्रत्येक पोषी स्तर पर उत्तरोत्तर संग्रहित होते जाते हैं। किसी भी आहार श्रृंखला में मनुष्य शीर्षस्थ स्तर है, अतः हमारे शरीर में यह रसायन सर्वाधिक मात्रा में संचित हो जाते हैं। इसे ‘जैविक आवर्धन’ कहते हैं। यही कारण है कि हमारे खाद्यान्न (जैसे गेहूँ, चावल, सब्जियाँ, फल तथा मांस) में पीड़क रसायन के अवशिष्ट विभिन्न मात्रा में उपस्थित होते हैं। उन्हें पानी से धोकर अथवा अन्य प्रकार से अलग नहीं किया जा सकता है।
प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या:
आहार श्रृंखला (Food Chain): जीवों की एक श्रृंखला जिसमें एक जीव दूसरे जीव का आहार करता है।
आहार जाल (Food Web): अनेक आहार श्रृंखलाओं से बना जीवों के मध्य आहार संबंधों का शाखित जाल।
ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow): परितंत्र के एक घटक से दूसरे घटक में ऊर्जा का स्थानांतरण। यह एकदिशिक होता है।
10 प्रतिशत का नियम (Ten Percent Law): प्रत्येक पोषी स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है।
जैविक आवर्धन (Biomagnification): हानिकारक रासायनिक पदार्थों (जैसे पीड़कनाशक) का आहार श्रृंखला के प्रत्येक पोषी स्तर पर उत्तरोत्तर संग्रहित होना। यह शीर्षस्थ स्तर पर सर्वाधिक होता है।
उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए:
उदाहरण 1: आहार श्रृंखला का उदाहरण
चित्र 13.1 में प्रकृति में आहार श्रृंखलाओं के उदाहरण दिए गए हैं।
(a) वन में आहार श्रृंखला: घास (उत्पादक) → हिरण (प्राथमिक उपभोक्ता/शाकाहारी) → शेर (द्वितीय उपभोक्ता/मांसाहारी)। यह एक तीन-चरण की आहार श्रृंखला है।
(b) घास के मैदानों में आहार श्रृंखला: घास (उत्पादक) → टिड्डा (प्राथमिक उपभोक्ता) → मेंढक (द्वितीय उपभोक्ता) → साँप (तृतीय उपभोक्ता) → चील (चतुर्थ उपभोक्ता)। यह एक पाँच-चरण की आहार श्रृंखला है। (नोट: पाँचवाँ स्तर स्रोत में सीधे तौर पर वर्णित नहीं है, लेकिन श्रृंखला इस प्रकार बन सकती है।)
(c) तालाब में आहार श्रृंखला: शैवाल/जलीय पौधे (उत्पादक) → छोटी मछली (प्राथमिक उपभोक्ता) → बड़ी मछली (द्वितीय उपभोक्ता)। यह एक तीन-चरण की आहार श्रृंखला है।
इन आहार श्रृंखलाओं में प्रत्येक चरण एक पोषी स्तर का प्रतिनिधित्व करता है। ऊर्जा का प्रवाह उत्पादक से शुरू होकर उपभोक्ताओं की ओर होता है।
उदाहरण 2: जैविक आवर्धन की प्रक्रिया
- रसायनों का प्रवेश: पीड़कनाशक जैसे हानिकारक रसायन फसलों पर प्रयोग किए जाते हैं।
- परिवहन: ये रसायन बहकर मिट्टी या जल स्रोतों में चले जाते हैं।
- उत्पादकों में प्रवेश: मिट्टी से पौधे इन रसायनों को जल और खनिजों के साथ अवशोषित कर लेते हैं। जलाशयों में ये जलीय पौधों में प्रवेश कर जाते हैं।
- उपभोक्ताओं में संचय: जब प्राथमिक उपभोक्ता (जैसे शाकाहारी जीव) इन पौधों को खाते हैं, तो ये रसायन उनके शरीर में प्रवेश करते हैं। चूँकि ये अजैव निम्नीकृत होते हैं, ये शरीर में जमा होते रहते हैं और उत्सर्जित नहीं होते।
- उच्चतर स्तरों पर संचय: जब द्वितीय उपभोक्ता (छोटे मांसाहारी) प्राथमिक उपभोक्ताओं को खाते हैं, तो रसायन उनके शरीर में स्थानांतरित हो जाते हैं। प्रत्येक अगले पोषी स्तर पर इन रसायनों की सांद्रता (मात्रा) बढ़ती जाती है।
- मनुष्य पर प्रभाव: आहार श्रृंखला में मनुष्य शीर्षस्थ स्तर पर होता है। इसलिए, मनुष्य के शरीर में ये रसायन सर्वाधिक मात्रा में संचित हो जाते हैं। यह प्रक्रिया जैविक आवर्धन कहलाती है।
अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर:
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन-से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं—
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नीबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास
उत्तर: (c) फलों के छिलके, केक एवं नीबू का रस, और (d) केक, लकड़ी एवं घास।
व्याख्या: जैव निम्नीकरणीय पदार्थ वे होते हैं जो जैविक प्रक्रमों द्वारा अपघटित हो जाते हैं। विकल्प (a) में चमड़ा, यद्यपि जैविक स्रोत से है, लेकिन इसके प्रसंस्करण में प्रयुक्त रसायन इसे धीरे-धीरे अपघटित होने वाला बना सकते हैं या कुछ मामलों में कठिनाई से। घास और पुष्प जैव निम्नीकरणीय हैं। विकल्प (b) में प्लास्टिक अजैव निम्नीकरणीय है। विकल्प (c) में फलों के छिलके, केक, और नींबू का रस सभी खाद्य पदार्थ या उनके अवशेष हैं और आसानी से जैव निम्नीकरणीय होते हैं। विकल्प (d) में केक, लकड़ी, और घास भी जैव निम्नीकरणीय हैं। प्रश्न "केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ" पूछता है। दिए गए विकल्पों में से, (c) और (d) सबसे स्पष्ट रूप से सभी जैव निम्नीकरणीय पदार्थों के समूह हैं। यदि एक ही चुनना हो, तो (c) सबसे अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसमें सभी खाद्य-संबंधित वस्तुएँ हैं जो तेजी से अपघटित होती हैं। लकड़ी भी जैव निम्नीकरणीय है लेकिन धीमी गति से। स्रोत के आधार पर, दोनों (c) और (d) मान्य हैं। (NCERT पाठ्यपुस्तक अक्सर ऐसे विकल्प देती है, और (c) सामान्यतः पसंदीदा उत्तर होता है)।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं—
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर: (b) घास, बकरी तथा मानव
व्याख्या: आहार श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह एक जीव से दूसरे जीव में होता है जब एक जीव दूसरे को खाता है। (b) घास (उत्पादक) को बकरी (प्राथमिक उपभोक्ता) खाती है, और बकरी को मानव (द्वितीयक उपभोक्ता) खा सकता है। यह एक सही आहार श्रृंखला है: घास → बकरी → मानव।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं—
(a) बाज़ार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट्स (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना
(c) माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने के बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: ये सभी क्रियाएँ पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों की बचत में योगदान करती हैं: (a) कपड़े का थैला प्लास्टिक कचरे को कम करता है। (b) लाइट और पंखे बंद करने से ऊर्जा की बचत होती है। (c) पैदल जाने से जीवाश्म ईंधन की खपत और प्रदूषण कम होता है।
प्रश्न 4: क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?
उत्तर: यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें, तो परितंत्र में गंभीर असंतुलन उत्पन्न होगा और ऊर्जा का प्रवाह बाधित हो जाएगा।
- अगले पोषी स्तर पर प्रभाव: उस पोषी स्तर पर निर्भर रहने वाले अगले पोषी स्तर के जीवों के लिए भोजन समाप्त हो जाएगा, जिससे उनकी संख्या घट जाएगी या वे विलुप्त हो सकते हैं।
- पिछले पोषी स्तर पर प्रभाव: जिस पोषी स्तर को हटाया गया है, उसके द्वारा खाए जाने वाले पिछले पोषी स्तर के जीवों की संख्या अनियंत्रित रूप से बढ़ सकती है, जिससे उस स्तर पर भी असंतुलन पैदा होगा।
- संपूर्ण परितंत्र पर प्रभाव: आहार जाल में व्यवधान आएगा, जिससे पूरे परितंत्र की स्थिरता और संरचना प्रभावित होगी। उदाहरण के लिए, यदि सभी उत्पादकों (पौधों) को हटा दिया जाए, तो पूरा परितंत्र नष्ट हो जाएगा क्योंकि ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत समाप्त हो जाएगा।
प्रश्न 5: क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को परितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?
उत्तर:
हाँ, किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा।
- उत्पादकों को हटाना: यह सबसे विनाशकारी होगा, क्योंकि यह आहार श्रृंखला का आधार है और पूरे परितंत्र के लिए ऊर्जा स्रोत को समाप्त कर देगा।
- प्राथमिक उपभोक्ताओं को हटाना: उत्पादकों की संख्या बढ़ जाएगी और द्वितीयक उपभोक्ताओं के लिए भोजन की कमी हो जाएगी।
- उच्च मांसाहारियों को हटाना: उनके शिकार (निचले पोषी स्तर) की आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ सकती है।
नहीं, किसी भी पोषी स्तर के जीवों को परितंत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किए बिना हटाना संभव नहीं है। प्रत्येक जीव परितंत्र में एक विशिष्ट भूमिका निभाता है, और उन्हें हटाने से आहार श्रृंखला, ऊर्जा प्रवाह और पोषक चक्रण में व्यवधान उत्पन्न होगा, जिससे परितंत्र की स्थिरता और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
प्रश्न 6: जैविक आवर्धन (Biological magnification) क्या है? क्या परितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर:
जैविक आवर्धन (Biomagnification): यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कुछ हानिकारक, अजैव निम्नीकरणीय रासायनिक पदार्थ (जैसे पीड़कनाशक, भारी धातुएँ) आहार श्रृंखला के माध्यम से एक पोषी स्तर से अगले पोषी स्तर में स्थानांतरित होते हैं और प्रत्येक क्रमिक पोषी स्तर पर उनकी सांद्रता बढ़ती जाती है।
हाँ, परितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भिन्न-भिन्न होगा।
- यह रसायन उत्पादकों द्वारा पर्यावरण (मिट्टी या पानी) से अवशोषित होते हैं।
- जब प्राथमिक उपभोक्ता इन उत्पादकों को खाते हैं, तो रसायन उनके ऊतकों में जमा हो जाते हैं।
- जब द्वितीयक उपभोक्ता प्राथमिक उपभोक्ताओं को खाते हैं, तो वे अधिक मात्रा में रसायन ग्रहण करते हैं क्योंकि वे कई प्राथमिक उपभोक्ताओं का सेवन करते हैं।
- यह प्रक्रिया प्रत्येक उच्च पोषी स्तर पर दोहराई जाती है, जिससे शीर्षस्थ उपभोक्ताओं (जैसे मनुष्य, बड़ी मछलियाँ, शिकारी पक्षी) में इन रसायनों की सांद्रता सबसे अधिक हो जाती है। इसलिए, जैविक आवर्धन का नकारात्मक प्रभाव शीर्षस्थ उपभोक्ताओं पर सबसे गंभीर होता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, प्रजनन विफलता या मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न 7: हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर: हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे (जैसे प्लास्टिक, धातु, काँच) से निम्नलिखित प्रमुख समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- पर्यावरण में दीर्घकालिक दृढ़ता: ये पदार्थ सूक्ष्मजीवों द्वारा आसानी से अपघटित नहीं होते हैं, इसलिए वे पर्यावरण में सैकड़ों या हजारों वर्षों तक बने रहते हैं, जिससे भूमि और जल प्रदूषण होता है।
- भूमि भराव क्षेत्रों का भरना: अजैव निम्नीकरणीय कचरा भूमि भराव क्षेत्रों (landfills) में बड़ी मात्रा में जगह घेरता है, जो तेजी से भर रहे हैं।
- जलीय जीवन को खतरा: प्लास्टिक जैसे पदार्थ जल निकायों में पहुँचकर जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा करते हैं। वे उन्हें निगल सकते हैं या उनमें फँस सकते हैं।
- मृदा प्रदूषण: ये पदार्थ मिट्टी की उर्वरता को कम कर सकते हैं और हानिकारक रसायन मिट्टी में रिस सकते हैं।
- दृश्य प्रदूषण: कचरे के ढेर पर्यावरण की सुंदरता को নষ্ট करते हैं।
- नालियों का अवरुद्ध होना: प्लास्टिक की थैलियाँ और अन्य अजैव निम्नीकरणीय कचरा नालियों को अवरुद्ध कर सकता है, जिससे जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है।
प्रश्न 8: यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर: यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो, तो भी इसका हमारे पर्यावरण पर कुछ प्रभाव पड़ेगा, हालांकि यह अजैव निम्नीकरणीय कचरे की तुलना में कम गंभीर और कम स्थायी होगा।
- अपघटन के लिए समय और स्थान: बड़ी मात्रा में जैव निम्नीकरणीय कचरे को अपघटित होने के लिए समय और उचित परिस्थितियों (जैसे ऑक्सीजन, नमी, सूक्ष्मजीव) की आवश्यकता होती है। यदि यह बहुत अधिक मात्रा में एक ही स्थान पर जमा हो जाता है, तो यह दुर्गंध, कीटों का प्रजनन और रोगजनक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि का कारण बन सकता है।
- पोषक तत्वों का असंतुलन: यदि कचरा अनुचित तरीके से निपटाया जाता है, तो अपघटन से पोषक तत्व जल निकायों में रिस सकते हैं, जिससे सुपोषण (eutrophication) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
- ग्रीनहाउस गैसें: कुछ जैव निम्नीकरणीय कचरे के अवायवीय (anaerobic) अपघटन से मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न हो सकती हैं।
हालांकि, उचित प्रबंधन (जैसे कंपोस्टिंग) के साथ, जैव निम्नीकरणीय कचरा पर्यावरण के लिए एक संसाधन (जैसे खाद) बन सकता है। इसलिए, प्रभाव पूरी तरह से शून्य नहीं होगा, लेकिन यह अजैव निम्नीकरणीय कचरे की समस्याओं से काफी कम होगा।
प्रश्न 9: ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
ओजोन परत की क्षति चिंता का विषय क्यों है:
ओजोन (O₃) परत समतापमंडल में स्थित है और यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (UV-B) विकिरण को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है। ओजोन परत की क्षति से निम्नलिखित गंभीर परिणाम हो सकते हैं:
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: त्वचा कैंसर (मेलानोमा), मोतियाबिंद, और प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना।
- पौधों पर प्रभाव: प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होना, वृद्धि में कमी, और फसलों की उपज में कमी।
- जलीय परितंत्र पर प्रभाव: प्लवक (phytoplankton) की वृद्धि में कमी, जो जलीय आहार श्रृंखला का आधार हैं, जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
क्षति को सीमित करने के लिए उठाए गए कदम:
ओजोन परत की क्षति का मुख्य कारण क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और अन्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODS) हैं, जिनका उपयोग रेफ्रिजरेंट, एरोसोल प्रणोदक और विलायक के रूप में किया जाता था।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987): यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है। 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में सर्वानुमति बनी कि CFC के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए।
- CFCs के विकल्पों का विकास: वैज्ञानिक और उद्योग जगत ने CFCs के कम हानिकारक या गैर-हानिकारक विकल्पों (जैसे HFCs, HCFCs - हालांकि HCFCs भी कुछ हद तक हानिकारक हैं और अब उन्हें भी चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है) का विकास किया है।
- जागरूकता और नियमन: विभिन्न देशों ने ODS के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय नियम बनाए हैं और जनता में जागरूकता बढ़ाई है। अब यह अनिवार्य है कि दुनिया भर की सभी विनिर्माण कंपनियाँ CFC रहित रेफ्रिजरेटर बनाएँ।
अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न:
- परितंत्र के जैव और अजैव घटकों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए। प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
- एक तालाब को प्राकृतिक परितंत्र का उदाहरण मानते हुए, इसके विभिन्न घटकों की पहचान कीजिए और बताइए कि वे आपस में कैसे परस्पर क्रिया करते हैं।
- उत्पादक और उपभोक्ता में क्या अंतर है? पोषण के आधार पर उपभोक्ताओं के विभिन्न प्रकारों को समझाइए।
- अपघटकों की परितंत्र में क्या भूमिका है? यदि किसी परितंत्र से सभी अपघटकों को हटा दिया जाए तो क्या होगा?
- आहार श्रृंखला क्या है? एक स्थलीय आहार श्रृंखला और एक जलीय आहार श्रृंखला का उदाहरण देते हुए उनके विभिन्न पोषी स्तरों को नामांकित कीजिए।
- ऊर्जा प्रवाह के 10 प्रतिशत नियम को समझाइए। इस नियम के आधार पर बताइए कि आहार श्रृंखला सामान्यतः तीन या चार चरण की क्यों होती है।
- आहार जाल, आहार श्रृंखला से किस प्रकार भिन्न है? आहार जाल परितंत्र में स्थिरता कैसे प्रदान करता है?
- जैविक आवर्धन किसे कहते हैं? यह हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है?
- ओजोन परत का निर्माण कैसे होता है? यह पृथ्वी पर जीवन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) ओजोन परत को कैसे नुकसान पहुँचाते हैं? इस समस्या से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर क्या प्रयास किए गए हैं?
- जैव निम्नीकरणीय और अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ क्या होते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
- हमारे जीवन शैली में बदलाव ने अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या को कैसे बढ़ाया है? अजैव निम्नीकरणीय कचरे के कारण होने वाली किन्हीं दो समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- आप अपने दैनिक जीवन में कचरा उत्पादन को कम करने और उसके उचित निपटान में कैसे योगदान कर सकते हैं? किन्हीं दो तरीकों का सुझाव दीजिए।
संक्षिप्त सारांश (आपने क्या सीखा):
- परितंत्र के विभिन्न घटक (जैव और अजैव) परस्पर अनयोन्याश्रित होते हैं।
- उत्पादक सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को परितंत्र के अन्य सदस्यों को उपलब्ध कराते हैं।
- आहार श्रृंखला में जब हम एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर पर जाते हैं तो ऊर्जा का ह्रास होता है (लगभग 90%, केवल 10% स्थानांतरित होती है)। यह ऊर्जा का ह्रास आहार श्रृंखला में पोषी स्तरों को सीमित करता है।
- मानव की गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव होता है।
- CFCs जैसे रसायनों ने ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाया है। ओज़ोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (UV) विकिरण से सुरक्षा प्रदान करती है। अतः, इसकी क्षति से पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है।
- हमारे द्वारा उत्पादित कचरा जैव निम्नीकरणीय अथवा अजैव निम्नीकरणीय हो सकता है।
- हमारे द्वारा उत्पादित कचरे का निपटान एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है।
- हानिकारक रसायन आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जैविक आवर्धन का कारण बन सकते हैं, खासकर अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों के मामले में।
यह नोट्स आपको "हमारा पर्यावरण" अध्याय की प्रमुख अवधारणाओं को समझने में सहायक होंगे। इन्हें ध्यान से पढ़ें, चित्रों को समझें और दी गई गतिविधियों पर विचार करें। शुभकामनाएँ!
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