बिहार बोर्ड कक्षा 12 इतिहास अध्याय 1: हड़प्पा सभ्यता: नगर योजना, कृषि, व्यापार और पतन

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हड़प्पा सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता): विस्तृत नोट्स | भारतीय इतिहास

भारतीय इतिहास के कुछ विषय: हड़प्पा सभ्यता

प्रिय छात्रों, यह ब्लॉग पोस्ट उपलब्ध स्रोतों के आधार पर पाठ्यपुस्तक के अध्याय के महत्वपूर्ण बिंदुओं, परिभाषाओं और अवधारणाओं की सरल हिंदी में व्याख्या प्रदान करने का एक प्रयास है, जिसे आप नोट्स के रूप में उपयोग कर सकते हैं।

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  • पुस्तक में दिए गए सभी उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करना: स्रोतों में प्रक्रियाओं का वर्णन है (जैसे मनके बनाने की प्रक्रिया), लेकिन ये "हल" करने वाले उदाहरण नहीं हैं। ये वर्णनात्मक जानकारी है।
  • अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर: स्रोत पाठ में अभ्यास प्रश्न दिए गए हैं, लेकिन उनके उत्तर उपलब्ध नहीं हैं। मेरा कार्य केवल दिए गए स्रोतों में उपलब्ध जानकारी प्रदान करना है।
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इसलिए, मैं आपके लिए स्रोतों में दी गई जानकारी को व्यवस्थित करके, महत्वपूर्ण अवधारणाओं और विषयों को सरल और स्पष्ट हिंदी में समझाते हुए नोट्स तैयार करूँगा। आप इस नोट्स का उपयोग अध्याय को समझने और अपनी परीक्षा की तैयारी के लिए कर सकते हैं, लेकिन अभ्यास प्रश्नों के उत्तर और नए प्रश्न आपको स्वयं खोजने होंगे।

यह अध्याय हमें हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, के बारे में बताता है। यह एक प्राचीन सभ्यता है जिसके बारे में हम मुख्य रूप से पुरातात्विक साक्ष्यों (पुराने समय की वस्तुओं) से जानते हैं।

1. प्रारंभिक बिंदु: हड़प्पा सभ्यता क्या है और हम इसके बारे में कैसे जानते हैं?

  • सबसे विशिष्ट पुरावनस्पति: हड़प्पा सभ्यता की सबसे खास चीज इसकी मुहर (seal) हो सकती है। ये मुहरें सेलखड़ी पत्थर से बनी होती थीं और इन पर जानवरों के चित्र और एक अज्ञात लिपि अंकित होती थी, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
  • जानकारी का स्रोत: हमें इस सभ्यता के बारे में पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है, जैसे उनके घर (आवासों), मिट्टी के बर्तन (मृदभांडों), गहनों (आभूषणों), औजारों और मुहरों से।
  • पुरातत्व का अध्ययन: यह अध्याय बताता है कि पुरातात्विक साक्ष्यों की व्याख्या कैसे की जाती है और ये व्याख्याएँ समय के साथ कैसे बदल सकती हैं। इस सभ्यता के कई पहलू आज भी अज्ञात हैं।

2. पारिभाषिक शब्द, स्थान और काल

हड़प्पा संस्कृति: पुरातत्वविद 'संस्कृति' शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के समूह के लिए करते हैं जिनकी एक विशिष्ट शैली होती है और वे आमतौर पर एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र और समय-काल से जुड़ी होती हैं।

  • हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट वस्तुएं: इस सभ्यता की विशिष्ट वस्तुओं में मुहरें, मनके (beads), बाँट (weights), पत्थर के फलक (blades), और पकी हुई ईंटें शामिल हैं।
  • भौगोलिक विस्तार: ये वस्तुएं अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान), और गुजरात जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में पाई गई हैं। (पाठ्यपुस्तक में नक्शा 1 देखें)।
  • नामकरण: इस सभ्यता का नाम हड़प्पा स्थान के नाम पर रखा गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी।
  • काल निर्धारण: इस सभ्यता का काल लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व (BCE) के बीच निर्धारित किया गया है।
  • प्रारंभिक और परवर्ती संस्कृतियाँ: इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ थीं, जिन्हें क्रमशः 'प्रारंभिक हड़प्पा' और 'परवर्ती हड़प्पा' कहा जाता है। विकसित हड़प्पा संस्कृति को अलग करने के लिए इसे कभी-कभी 'विकसित हड़प्पा संस्कृति' भी कहते हैं।

काल से जुड़े शब्द:

  • B.C.E. (ई.पू.): 'Before Common Era' (ईसा पूर्व)।
  • C.E. (ई.): 'Common Era' (ईसवी) - यह 'Anno Domini' (लैटिन) से बना है, जिसका अर्थ ईसा मसीह के जन्म का वर्ष है।
  • B.P.: 'Before Present' (वर्तमान से पहले)।

3. आरंभिक और विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ

  • प्रारंभिक संस्कृतियाँ: विकसित हड़प्पा से पहले इस क्षेत्र में कई संस्कृतियाँ मौजूद थीं। इनकी अपनी विशिष्ट मिट्टी के बर्तन बनाने की शैली थी। हमें कृषि, पशुपालन और कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं।
  • बस्तियों का आकार: प्रारंभिक हड़प्पा बस्तियाँ आमतौर पर छोटी होती थीं और इनमें बड़े आकार की संरचनाएं लगभग नहीं थीं।
  • क्रम-भंग: कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर जलाए जाने के संकेत और कुछ स्थलों को छोड़ दिए जाने से लगता है कि प्रारंभिक हड़प्पा और हड़प्पा सभ्यता के बीच कोई क्रम-भंग था।
  • बस्तियों की संख्या में बदलाव: सिंध और चोलिस्तान में बस्तियों की संख्या के आंकड़े प्रारंभिक और विकसित हड़प्पा स्थलों की संख्या में अंतर दिखाते हैं, जिसमें विकसित हड़प्पा काल में बस्तियों की संख्या बढ़ी और कई प्रारंभिक स्थल छोड़ दिए गए।

4. मोहनजोदड़ो: एक नियोजित शहरी केंद्र

  • शहरीकरण का अनूठा पहलू: हड़प्पा सभ्यता का संभवतः सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का विकास था।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा: मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है, लेकिन सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था।
  • बस्ती का विभाजन: मोहनजोदड़ो जैसी बस्ती दो भागों में विभाजित है: एक छोटा, ऊँचा भाग और एक बड़ा, लेकिन नीचे स्थित भाग। पुरातत्वविद इन्हें क्रमशः दुर्ग (Citadel) और निचला शहर (Lower Town) कहते हैं। (धोलावीरा और लोथल जैसे कुछ स्थलों पर पूरी बस्ती किलेबंद थी, और शहर के कई हिस्से दीवारों से अलग किए गए थे। लोथल में दुर्ग दीवार से घिरा नहीं था, लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया था।)
  • हड़प्पा का विनाश: हड़प्पा स्थल ईंट चुराने वालों द्वारा बुरी तरह नष्ट कर दिया गया था। 1875 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने लिखा था कि यहाँ से ले जाई गई ईंटें लाहौर और मुल्तान के बीच 100 मील लंबी रेल-पटरी बिछाने के लिए पर्याप्त थीं। इसके विपरीत मोहनजोदड़ो कहीं बेहतर संरक्षित था।

5. गृह स्थापत्य (Residential Architecture)

  • आँगन केंद्रित घर: मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। इनमें से कई घर एक आँगन पर केंद्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। आँगन संभवतः खाना पकाने और कताई जैसी गतिविधियों का केंद्र था, खासकर गर्म और शुष्क मौसम में।
  • गोपनीयता को महत्व: घरों की दीवारों में भूमि तल पर कोई खिड़कियाँ नहीं थीं। मुख्य द्वार से आंतरिक भाग या आँगन का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
  • स्नानघर और नालियाँ: हर घर का ईंटों के फर्श से बना अपना स्नानघर होता था जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी होती थीं।
  • सीढ़ियाँ: कुछ घरों में दूसरे तल या छत पर जाने के लिए बनाई गई सीढ़ियों के अवशेष मिले हैं।
  • कुएँ: कई घरों में कुएँ थे, जो अधिकतर ऐसे कमरे में बनाए गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था, और संभवतः इनका उपयोग राहगीरों द्वारा किया जाता था। विद्वानों का अनुमान है कि मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।

6. नालियाँ (Drainage System) - अब तक खोजी गई प्राचीनतम प्रणाली

अर्नस्ट मैके (Ernest Mackay) नालियों के बारे में लिखते हैं कि यह "निश्चित रूप से अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है"

  • घरों का जुड़ाव: हर घर गली की नालियों से जोड़ा गया था।
  • मुख्य नाले: मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईंटों से ढका गया था जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके। कुछ स्थानों पर चूना पत्थर की पट्टिका का उपयोग किया गया था।
  • हौदियाँ (Cesspits): घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलगुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में बह जाता था।
  • सफाई: बहुत लंबे नालों में कुछ अंतरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं। नालों के अगल-बगल पड़े मलबे (मुख्यतः रेत के ढेर) मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि नालों की सफाई के बाद कचरे को हमेशा हटाया नहीं जाता था।

7. दुर्ग (Citadel) की संरचनाएँ

  • सार्वजनिक प्रयोजन: दुर्ग पर ऐसी संरचनाओं के साक्ष्य मिलते हैं जिनका उपयोग संभवतः विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था।
  • माल गोदाम (Warehouse): इसमें एक माल गोदाम शामिल है, जो एक विशाल संरचना थी। केवल ईंटों से बने निचले हिस्से ही बचे हैं, जबकि लकड़ी से बने ऊपरी हिस्से नष्ट हो गए थे।
  • विशाल स्नानघर (Great Bath): यह आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी थीं। ईंटों को जमाकर और जिप्सम के गारे का प्रयोग कर इसे जलरोधक (watertight) बनाया गया था। इसके तीनों ओर कमरे बने हुए थे, जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशय से पानी एक बड़े नाले में बह जाता था।
  • स्नानघरों का समूह: इसके उत्तर में एक गली के दूसरी ओर एक अपेक्षाकृत छोटी संरचना थी जिसमें आठ स्नानघर बनाए गए थे। एक गलियारे के दोनों ओर चार-चार स्नानघर थे। प्रत्येक स्नानघर से नालियाँ गलियारे के साथ-साथ बने एक नाले में मिलती थीं।
  • महत्व: इन संरचनाओं का अनूठापन और दुर्ग क्षेत्र में मिलना इनके विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजन का स्पष्ट संकेत देता है।

8. सामाजिक भिन्नताओं का अवलोकन

  • पुरातत्वविदों के तरीके: पुरातत्वविद समाज में सामाजिक और आर्थिक भिन्नताओं को जानने के लिए कई तरीकों का उपयोग करते हैं।
  • शवाधान (Burials): शवाधानों का अध्ययन एक तरीका है। मिस्र के विशाल पिरामिड (हड़प्पा के समकालीन) राजकीय शवाधान थे जहाँ बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफनाई गई थी। हड़प्पा के शवाधान आमतौर पर सादे गड्ढे होते थे। इनमें कभी-कभी मिट्टी के बर्तन और आभूषण पाए गए हैं। ये शायद मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास का संकेत देते हैं, लेकिन मिस्र की तुलना में यहाँ सामाजिक भिन्नता कम दिखाई देती है।
  • 'विलासिता' की वस्तुओं की खोज: सामाजिक भिन्नता पहचानने का दूसरा तरीका उन पुरावस्तुओं का अध्ययन है जिन्हें पुरातत्वविद मोटे तौर पर उपयोगी और विलास (luxury) की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं।
    • उपयोगी वस्तुएँ: रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुएँ जो पत्थर या मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से आसानी से बनाई जा सकती हैं। इनमें चक्कियाँ, मिट्टी के बर्तन, सुइयाँ आदि शामिल हैं। ये आमतौर पर बस्तियों में हर जगह पाई जाती हैं।
    • कीमती/विलास वस्तुएँ: पुरातत्वविद उन वस्तुओं को कीमती मानते हैं जो दुर्लभ हों या महँगी, स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से, या जटिल तकनीकों से बनी हों। जैसे, फयॉन्स (घिसी हुई रेत या बालू, रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र शायद कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था।

9. शिल्प उत्पादन (Craft Production)

  • चन्हुदड़ो: यह मोहनजोदड़ो की तुलना में एक बहुत छोटी बस्ती है जो लगभग पूरी तरह से शिल्प उत्पादन में संलग्न थी।
  • शिल्प कार्य: शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातु कर्म, मुहर निर्माण और बाँट बनाना शामिल थे।
  • मनके बनाने में प्रयुक्त पदार्थ: इसमें काफी विविधता थी: कार्नीलियन, जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज़, सेलखड़ी जैसे पत्थर; ताँबा, काँसा, सोना जैसी धातुएँ; तथा शंख, फयॉन्स और पकी मिट्टी। कुछ मनके दो या अधिक पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे, और कुछ सोने के टॉप वाले पत्थर के होते थे। इनके कई आकार होते थे।
  • उत्पादन प्रक्रिया: प्रयोगों से पता चला है कि कार्नीलियन का लाल रंग कच्चे पीले माल और उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था। पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था, फिर बारीक छिलके निकालकर अंतिम रूप दिया जाता था। घिसाई, पॉलिश और छेद करने के साथ यह प्रक्रिया पूरी होती थी। चन्हुदड़ो, लोथल और धोलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण मिले हैं।
  • शंख से बनी वस्तुएँ: नागेश्वर और बालाकोट जैसी बस्तियाँ समुद्र तट के समीप स्थित थीं। ये शंख से बनी वस्तुओं जैसे चूड़ियाँ, करछियाँ और पच्चीकारी के काम के लिए विशिष्ट केंद्र थे।
  • शिल्प केंद्रों की पहचान: पुरातत्वविद शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान के लिए कच्चा माल, अपूर्ण वस्तुएँ, बेकार टुकड़े (कचरा) और तैयार वस्तुएँ ढूंढते हैं। बेकार टुकड़े इस ओर संकेत करते हैं कि छोटे विशिष्ट केंद्रों के अतिरिक्त, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरों में भी शिल्प उत्पादन का कार्य किया जाता था।

10. माल प्राप्त करने संबंधी नीतियाँ (Strategies for Procuring Materials)

  • कच्चे माल की आवश्यकता: शिल्प उत्पादन के लिए कई प्रकार के कच्चे माल का प्रयोग होता था। कुछ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थे (जैसे मिट्टी), अन्य (जैसे पत्थर, लकड़ी, धातु) जलोढ़ मैदान से बाहर के क्षेत्रों से मंगाने पड़ते थे।
  • परिवहन के साधन: मिट्टी के बने खिलौनों के बैलगाड़ियों के प्रतिरूप संकेत करते हैं कि यह सामान और लोगों के लिए स्थल मार्गों द्वारा परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन था। संभवतः सिंधु और इसकी उपनदियों के बगल में बने नदी मार्गों और साथ ही तटीय मार्गों का भी प्रयोग किया जाता था।
  • सामग्री के स्रोत: ताँबा राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से मंगाया जाता रहा होगा। ताँबे में निकल के अंश मिले हैं, जो लंबी दूरी के संपर्कों की ओर संकेत करते हैं।
  • मेसोपोटामिया से संपर्क: मेसोपोटामिया के लेखों से दिलमुन (संभवतः बहरीन), मगान, और मेलुहा (संभवतः हड़प्पा क्षेत्र के लिए प्रयुक्त शब्द) नामक क्षेत्रों से संपर्क की जानकारी मिलती है। ये लेख मेलुहा से प्राप्त उत्पादों का उल्लेख करते हैं: कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना और विविध प्रकार की लकड़ियाँ। एक अन्य मेसोपोटामियाई लेख मेलुहा को 'नाविकों का देश' कहता है।

11. सत्ता और शासक

  • पुरातत्विक विवरण की कमी: सत्ता के केंद्र या सत्ताधारी लोगों के विषय में पुरातात्विक विवरण हमें कोई त्वरित उत्तर नहीं देते।
  • 'प्रसाद' और 'पुरोहित-राजा': मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को 'प्रसाद' (महल) की संज्ञा दी गई, लेकिन इससे संबंधित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिलीं। एक पत्थर की मूर्ति को 'पुरोहित-राजा' (Priest-King) की संज्ञा दी गई और यह नाम आज भी प्रचलित है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पुरातत्वविद मेसोपोटामिया के इतिहास और वहाँ के 'पुरोहित-राजाओं' से परिचित थे और उन्होंने यही समानताएँ सिंधु क्षेत्र में भी ढूंढ़ी।
  • अनुष्ठानिक प्रथाएँ: हड़प्पा सभ्यता की अनुष्ठानिक प्रथाएँ अभी तक ठीक प्रकार से समझी नहीं जा सकी हैं, और यह जानने के साधन उपलब्ध नहीं हैं कि जो लोग इन अनुष्ठानों का निष्पादन करते थे, उन्हीं के पास राजनीतिक सत्ता होती थी।

शासक के बारे में विभिन्न मत:

  • कुछ पुरातत्वविद मानते हैं कि हड़प्पा समाज में शासक नहीं थे और सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • दूसरे मानते हैं कि यहाँ कोई एक नहीं, बल्कि कई शासक थे (जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे)।
  • कुछ और तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था। इसके साक्ष्य के रूप में पुरावस्तुओं में समानताएँ, नियोजित बस्तियों के साक्ष्य, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात, तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के समीप स्थापित होने का हवाला दिया जाता है। यह अंतिम परिकल्पना अब तक सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होती है, क्योंकि पूरे समुदायों द्वारा मिलकर ऐसे जटिल निर्णय लेना और लागू करना संभव नहीं लगता।

12. अतीत को जोड़कर पूरा करने की समस्याएँ (Problems of Reconstruction)

  • लिपि की असहायता: हड़प्पा लिपि से इस प्राचीन सभ्यता को जानने में कोई मदद नहीं मिलती क्योंकि यह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
  • भौतिक साक्ष्य पर निर्भरता: पुनर्निर्माण भौतिक साक्ष्यों पर निर्भर करता है: मिट्टी के बर्तन, औजार, आभूषण, घरेलू सामान।
  • जैविक पदार्थों का क्षय: कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी और सरकंडे जैसे जैविक पदार्थ आमतौर पर सड़ जाते हैं, खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में। जो वस्तुएँ बच जाती हैं, वे हैं पत्थर, पकी मिट्टी और धातु।
  • खोजों का वर्गीकरण: पुरावस्तुओं की प्राप्ति के बाद पुरातत्वविद उन्हें वर्गीकृत करते हैं। एक सिद्धांत प्रयुक्त पदार्थों (पत्थर, मिट्टी, धातु आदि) पर आधारित है। दूसरा, अधिक जटिल, उनकी उपयोगिता पर आधारित है: औजार, आभूषण, या अनुष्ठानिक वस्तु।
  • संदर्भ का महत्व: पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाएँ विकसित करनी पड़ती हैं। पहली प्राप्त हड़प्पा मुहर को तब तक नहीं समझा जा सका जब तक पुरातत्वविदों को उसे समझने के लिए सही संदर्भ नहीं मिला - सांस्कृतिक अनुक्रम और मेसोपोटामिया में हुई खोजों से तुलना।

व्याख्या की समस्याएँ: धार्मिक प्रथाओं का पुनर्निर्माण

पुरातत्विक व्याख्या की समस्याएँ धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण के प्रयासों में सबसे अधिक आती हैं।

  • धार्मिक महत्व की वस्तुएँ: शुरुआती पुरातत्वविदों को जो वस्तुएँ असामान्य लगती थीं, वे संभवतः धार्मिक महत्व की मानते थे। गहनों से लदी नारी मृण्मूर्तियाँ ('मातृदेवियाँ') और दुर्लभ पत्थर की पुरुष मूर्तियाँ ('पुरोहित-राजा') को इसी प्रकार वर्गीकृत किया गया।
  • अनुष्ठानिक संरचनाएँ: विशाल स्नानघर और कालीबंगन तथा लोथल से मिली वेदियों को अनुष्ठानिक महत्व का माना गया है।
  • मुहरों से धार्मिक विश्वास: मुहरों पर बने अनुष्ठान के दृश्यों, पेड़-पौधों (प्रकृति पूजा), और जानवरों (जैसे एक सींग वाला जानवर) के आधार पर धार्मिक आस्थाओं का पुनर्निर्माण करने का प्रयास किया गया है। पालथी मारकर 'योगी' मुद्रा में बैठे और जानवरों से घिरी एक आकृति को 'आद्य शिव' (हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का प्रारंभिक रूप) की संज्ञा दी गई है। पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

13. पुरातत्विक कार्यों की उपलब्धियाँ और अनुत्तरित प्रश्न

उपलब्धियाँ:
दशकों के पुरातत्विक कार्यों से हड़प्पाई अर्थव्यवस्था के बारे में हमारी जानकारी बेहतर हुई है। सामाजिक भिन्नताओं को समझने में कुछ सफलता मिली है। सभ्यता की कार्यप्रणाली के विषय में हमारी जानकारी बढ़ी है।
अनुत्तरित प्रश्न:
लिपि के पढ़े जाने की स्थिति में हम कितना जान पाते, यह स्पष्ट नहीं है। कई पुनर्निर्माण अभी भी संदिग्ध हैं: क्या विशाल स्नानघर एक अनुष्ठानिक संरचना थी? साक्षरता कितनी व्यापक थी? हड़प्पाई कब्रिस्तानों में सामाजिक भिन्नताएँ कम क्यों दिखाई देती हैं? स्त्री-पुरुष संबंधों से जुड़े प्रश्न भी अनुत्तरित हैं (क्या महिलाएँ मिट्टी के बर्तन बनाती थीं या केवल उन्हें रंगने का कार्य करती थीं? अन्य शिल्पकर्मियों के क्या कार्य थे? नारी मृण्मूर्तियों का क्या उपयोग था?)। स्त्री-पुरुष संबंधों से जुड़े पहलुओं पर बहुत कम विद्वानों ने अन्वेषण किया है, और यह भविष्य के कार्य के लिए पूरी तरह से नया क्षेत्र है।

14. पुरातत्व का इतिहास: कनिंघम से मार्शल तक

  • कनिंघम का भ्रम: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले महानिदेशक, अलेक्जेंडर कनिंघम, पुरातात्विक उत्खनन में लिखित स्रोतों (साहित्य और अभिलेख) का उपयोग अधिक पसंद करते थे। उनकी मुख्य रुचि प्रारंभिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) और बाद के कालों से संबंधित पुरातत्व में थी। उन्होंने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध तीर्थयात्रियों के वृत्तांतों का उपयोग किया। उन्हें हड़प्पा के महत्व को समझने में चूक हुई क्योंकि वे चीनी तीर्थयात्रियों के खातों पर निर्भर थे, जिन्होंने हड़प्पा का उल्लेख नहीं किया था। उन्हें मिली एक हड़प्पा मुहर उनके ऐतिहासिक ढांचे में फिट नहीं हुई, और उन्होंने सोचा कि यह बाद के काल की है।
  • एक नवीन प्राचीन सभ्यता की खोज: 20वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में दया राम साहनी जैसे पुरातत्वविदों ने हड़प्पा में मुहरें खोजीं जो निश्चित रूप से प्रारंभिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से संबंधित थीं। रखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो से हड़प्पा से मिली मुहरों के समान मुहरें खोजीं, जिससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा थे।
  • मार्शल की घोषणा: इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की। एस.एन. राव के अनुसार, मार्शल ने भारत को "जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा"। मेसोपोटामिया के पुरास्थलों में हुई उत्खननों में हड़प्पा स्थलों पर मिली मुहरों जैसी मुहरें मिलीं, जिससे यह भी पता चला कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया के समकालीन थी।
  • जॉन मार्शल का योगदान: उनका कार्यकाल भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था। वे भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे और वे यहाँ यूनान और क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव भी लाए। कनिंघम की तरह आकर्षक खोजों में रुचि के साथ-साथ, उन्हें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी।

संक्षिप्त सारांश (Revision Summary)

हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व) सिंधु घाटी में विकसित एक महत्वपूर्ण शहरी सभ्यता थी। हम इसके बारे में मुख्य रूप से पुरातात्विक साक्ष्यों से जानते हैं, जैसे मुहरें, मनके, ईंटें, और नियोजित बस्तियों के अवशेष। मोहनजोदड़ो जैसे शहर दो भागों में बंटे थे - दुर्ग और निचला शहर। यहाँ उन्नत जल निकासी प्रणाली, आंगन केंद्रित आवास और सार्वजनिक संरचनाएं (जैसे विशाल स्नानघर) थीं। समाज में सामाजिक भिन्नता थी, जिसे शवाधानों और विलास की वस्तुओं के अध्ययन से समझा जाता है। चन्हुदड़ो जैसे केंद्र शिल्प उत्पादन में विशिष्ट थे, जिसके लिए कच्चा माल स्थानीय और दूर के क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता था। मेसोपोटामिया से भी संपर्क था। सत्ता और शासकों के बारे में पुरातत्वविदों में मतभेद हैं, हालांकि एक एकीकृत राज्य की परिकल्पना सबसे युक्तिसंगत लगती है। हड़प्पा लिपि अज्ञात है, इसलिए पुनर्निर्माण भौतिक साक्ष्यों पर निर्भर करता है। पुरातत्वविदों ने सांस्कृतिक अनुक्रम और संदर्भ के महत्व को समझा है। धार्मिक प्रथाओं की व्याख्या सबसे कठिन है। कनिंघम जैसे शुरुआती पुरातत्वविदों ने हड़प्पा के महत्व को पहचानने में चूक की, जिसे बाद में मार्शल और अन्य ने उजागर किया। आज भी सभ्यता के कई पहलू, खासकर धार्मिक प्रथाओं और स्त्री-पुरुष संबंधों से जुड़े प्रश्न अनुत्तरित हैं।

अभ्यास प्रश्न और हल किए गए उदाहरण

जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह ब्लॉग पोस्ट मुख्य रूप से अवधारणाओं और जानकारी को सरल बनाने पर केंद्रित है।

  • हल किए गए उदाहरण: इस अध्याय में वर्णित प्रक्रियाएँ (जैसे मनके बनाना) वर्णनात्मक हैं, जिन्हें "हल" करने की आवश्यकता नहीं है।
  • अभ्यास प्रश्न: आपकी पाठ्यपुस्तक में अध्याय के अंत में अभ्यास प्रश्न दिए गए होंगे। उनके उत्तर इस ब्लॉग में उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। कृपया अपनी पाठ्यपुस्तक और अन्य अध्ययन सामग्री का संदर्भ लें।

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उम्मीद है कि यह विस्तृत नोट्स आपको अध्याय को समझने में मदद करेंगे। अपनी परीक्षा के लिए शुभकामनाएं!

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