कक्षा 11 इतिहास अध्याय 7: आधुनिकीकरण के रास्ते (जापान और चीन)

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आधुनिकीकरण के रास्ते (जापान और चीन): अध्याय नोट्स | Self Learning Guide

अध्याय: आधुनिकीकरण के रास्ते (जापान और चीन)

प्रिय विद्यार्थियों,

यह अध्याय हमें उन्नीसवीं सदी में पूर्वी एशिया के दो महत्वपूर्ण देशों, जापान और चीन, के आधुनिकीकरण के सफर पर ले जाता है। यह दिखाता है कि कैसे इन दोनों देशों ने पश्चिमी शक्तियों और आधुनिक दुनिया की चुनौतियों का सामना किया और अलग-अलग रास्ते अपनाकर अपने देश को आधुनिक बनाने की कोशिश की।

1. महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट व्याख्या

शुरुआत का दौर: चीन और जापान की स्थिति (उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में)

- उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में, पूर्वी एशिया में चीन का दबदबा था।

- चीन का चिंग राजवंश (Ching dynasty) मजबूत लगता था, जिसकी परंपरा बहुत पुरानी थी।

- जापान, एक छोटा द्वीप समूह होने के कारण, उस समय अलग-थलग (isolated) दिखता था।

- लेकिन, कुछ दशकों में ही स्थिति बदल गई। चीन आंतरिक अशांति और औपनिवेशिक चुनौतियों का सामना करने में असफल रहा। चिंग राजवंश ने अपना राजनीतिक नियंत्रण खो दिया और देश गृह युद्धों में उलझ गया।

- दूसरी ओर, जापान तेजी से एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य (nation-state) बनाने में सफल रहा। उसने औद्योगिक अर्थव्यवस्था विकसित की और यहाँ तक कि ताइवान (1895) और कोरिया (1910) को मिलाकर एक औपनिवेशिक साम्राज्य भी खड़ा किया।

- जापान ने 1894 में चीन को हराया, जो उसकी संस्कृति और आदर्शों का स्रोत रहा था। उसने 1905 में रूस जैसी यूरोपीय शक्ति को भी पराजित किया।

जापान का आधुनिकीकरण और उसका सफर

- जापान एक उन्नत औद्योगिक राष्ट्र बन गया, लेकिन साम्राज्य की लालसा ने उसे युद्ध में झोंक दिया।

- 1945 में, जापान को एंग्लो-अमेरिकी सैन्य शक्तियों के सामने हार माननी पड़ी।

- अमेरिकी कब्जे के साथ, जापान में अधिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत हुई।

- 1970 के दशक तक जापान ने अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण किया और एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा।

- जापान का आधुनिकीकरण पूंजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित था और यह पश्चिमी उपनिवेशवाद के प्रभुत्व वाली दुनिया में हुआ।

- जापान ने दूसरे देशों में अपने विस्तार को पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध करने और एशिया को आज़ाद कराने की मांग के आधार पर सही ठहराया।

- जापान का तीव्र विकास उसकी संस्थाओं और समाज में परंपरा की मजबूती, सीखने की शक्ति और राष्ट्रवाद की ताकत को दिखाता है।

- जापान के आधुनिकीकरण में सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं में सुधार के साथ-साथ रोजमर्रा की जिंदगी को बदलना भी शामिल था। यह केवल परंपराओं को बनाए रखने या पकड़ने का सवाल नहीं था, बल्कि उन्हें नए और रचनात्मक तरीकों से इस्तेमाल करने का था।

जापान का भूगोल और समाज

- जापान एक द्वीप श्रृंखला है जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप होंशू, क्यूशू, शिकोकू और होक्काइडो हैं। ओकिनावा द्वीप श्रृंखला सबसे दक्षिण में है।

- मुख्य द्वीपों की 50% से अधिक ज़मीन पहाड़ी है।

- जापान बहुत सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र (active earthquake zone) में स्थित है, जिसने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है।

- अधिकांश आबादी जापानी है, लेकिन कुछ ऐनु अल्पसंख्यक और कोरियाई लोग भी हैं जिन्हें जापान के उपनिवेश बनने के समय श्रमिक के रूप में लाया गया था।

- जापान में पशुपालन की परंपरा नहीं है। चावल मुख्य फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है।

- कच्ची मछली (साशिमी या सुशी) अब दुनिया भर में लोकप्रिय है क्योंकि इसे सेहतमंद माना जाता है।

जापान की राजनीतिक व्यवस्था (इतिहास)

- जापान पर कभी क्योटो में रहने वाले सम्राट का शासन होता था, लेकिन बारहवीं सदी तक वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई, जो सम्राट के नाम पर शासन करते थे।

- 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुन बने रहे।

- देश 250 भागों में विभाजित था जिनका शासन डेम्यो (Daimyo) चलाते थे। शोगुन डेम्यो पर नियंत्रण रखते थे।

- शोगुन डेम्यो को लंबे समय के लिए राजधानी एडो (आधुनिक टोक्यो) में रहने का आदेश देते थे ताकि उनकी तरफ से कोई खतरा न रहे।

- शोगुन प्रमुख शहरों और खानों पर भी नियंत्रण रखते थे।

- सामुराई (Samurai - योद्धा वर्ग) शासक वर्ग थे और वे शोगुन तथा डेम्यो की सेवा करते थे।

तोकुगावा काल के बदलाव (16वीं सदी का अंत)

- सोलहवीं शताब्दी के अंतिम भाग में तीन परिवर्तनों ने आगे के विकास की तैयारी की।

  1. किसानों से हथियार ले लिए गए, केवल समुराई तलवार रख सकते थे। इससे शांति और व्यवस्था बनी रही।
  2. डेम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने और काफी हद तक स्वायत्तता देने का आदेश दिया गया।
  3. मालिकों और करदाताओं को निर्धारित करने और उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण करने के लिए भूमि सर्वेक्षण किया गया। इसका उद्देश्य राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।

शहरों का विकास और वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था

- डेम्यो की राजधानियाँ बड़ी हुईं। 17वीं शताब्दी के मध्य तक, एडो दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया। ओसाका और क्योटो अन्य बड़े शहरों के रूप में उभरे।

- कम से कम छह किले वाले शहर ऐसे उभरे जहाँ जनसंख्या 50,000 से अधिक थी, जबकि उस समय के अधिकांश यूरोपीय देशों में केवल एक बड़ा शहर था।

- इससे वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त तथा ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं।

- शहरों में जीवंत संस्कृति विकसित हुई, जहाँ बढ़ते व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहन दिया।

- लोगों को पढ़ने का शौक था, जिससे प्रतिभावान लेखक लेखन से अपनी आजीविका चला सकते थे। एडो में लोग नूडल की कटोरी की कीमत पर किताब किराए पर ले सकते थे, जो छपाई के स्तर और पढ़ने की लोकप्रियता को दर्शाता है।

- छपाई लकड़ी के ब्लॉकों से की जाती थी।

व्यापार और आर्थिक नीति

- जापान को अमीर देश समझा जाता था क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी विलासिता की वस्तुएँ आयात करता था।

- इन आयातों के लिए चाँदी और सोने में कीमत चुकानी पड़ती थी, जिससे अर्थव्यवस्था पर भार पड़ता था। तोकुगावा सरकार ने कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी।

- उन्होंने क्योटो के निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए कदम उठाए ताकि रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम दुनिया भर में बेहतरीन माना जाने लगा।

- मुद्रा का बढ़ता इस्तेमाल और चावल के शेयर बाज़ार का निर्माण आर्थिक विकास की नई दिशाएँ दिखाते हैं।

- रेशम उत्पादन से क्षेत्रीय उद्यमी वर्ग का विस्तार हुआ, जिन्होंने आगे चलकर तोकुगावा व्यवस्था को चुनौती दी।

- 1859 में विदेशी व्यापार की शुरुआत होने पर, जापान से रेशम का निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया।

अमेरिकी कोमोडोर पेरी का आगमन और मीजी पुनर्स्थापना

- कमोडोर पेरी के आगमन का जापानी राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

- सम्राट का महत्व अचानक बढ़ गया, जिसे तब तक बहुत कम राजनीतिक सत्ता मिली हुई थी।

- 1868 में, एक आंदोलन द्वारा शोगुन को जबरदस्ती सत्ता से हटा दिया गया और सम्राट मीजी को एडो ले आया गया। एडो को राजधानी बनाया गया और इसका नया नाम टोक्यो (पूर्वी राजधानी) रखा गया।

- अधिकारी और लोग जानते थे कि यूरोपीय देश भारत और अन्य जगहों पर औपनिवेशिक साम्राज्य बना रहे हैं।

- ब्रिटेन के हाथों चीन की हार की खबरें फैल रही थीं और उन्हें नाटकों में दिखाया जा रहा था।

- इस सब से लोगों में एक असली डर पैदा हो रहा था कि जापान भी उपनिवेश बनाया जा सकता है।

- कई विद्वान और नेता यूरोप के नए विचारों से सीखना चाहते थे। कुछ यूरोपीय लोगों को गैर मानते हुए दूर रखना चाहते थे, भले ही वे उनकी नई तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार थे। कुछ ने देश को बाहरी दुनिया के लिए धीरे-धीरे और सीमित तरीके से खोलने का तर्क दिया।

मीजी सरकार की नीतियाँ

- सरकार ने 'फुकोकू क्योंहेई' (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की।

- उन्होंने समझा कि उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था का विकास और मजबूत सेना का निर्माण करने की आवश्यकता है, अन्यथा उन्हें भी भारत की तरह पराधीनता का सामना करना पड़ सकता है।

- इस कार्य के लिए, उन्हें जनता के बीच राष्ट्र की भावना का निर्माण करने और प्रजा को नागरिक की श्रेणी में बदलने की आवश्यकता महसूस हुई।

- नई सरकार ने 'सम्राट-व्यवस्था' के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया। (जापानी विद्वानों के अनुसार सम्राट व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था थी जिसमें सम्राट, नौकरशाही और सेना एक साथ सत्ता चलाते थे और ये सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे)।

- राजतांत्रिक व्यवस्था के नमूनों को समझने के लिए कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया।

- सम्राट को सीधे-सीधे सूर्य देवी का वंशज माना गया, लेकिन साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी बनाया गया। सम्राट का जन्मदिन राष्ट्रीय छुट्टी का दिन बन गया और उसने पश्चिमी अंदाज़ के सैनिक कपड़े पहनना शुरू कर दिया।

शिक्षा और भाषा सुधार

- 1890 की शिक्षा संबंधी राजाज्ञा ने लोगों को पढ़ने, जनता के सार्वजनिक और साझा हितों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया।

- 1870 के दशक से नई विद्यालय व्यवस्था का निर्माण शुरू हुआ। लड़के और लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो गया, और 1910 तक लगभग ऐसी स्थिति आ गई कि स्कूल जाने से कोई वंचित नहीं रहा। पढ़ाई की फीस बहुत कम थी।

- शुरुआत में पाठ्यक्रम पश्चिमी नमूनों पर आधारित था, लेकिन 1870 के दशक तक आधुनिक विचारों पर ज़ोर देने के साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया जाने लगा।

- शिक्षा मंत्रालय पाठ्यक्रम, किताबों के चयन और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर नियंत्रण रखता था।

- जिसे नैतिक संस्कृति का विषय कहा गया, उसे पढ़ना ज़रूरी था, और किताबों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति वफादारी और अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी।

- जापानी भाषा एक साथ तीन लिपियों का प्रयोग करती है: कांजी (छठी शताब्दी में चीनी से ली गई), हीरागाना (Hiragana) और कटकना (Katakana) (दो ध्वन्यात्मक वर्णमालाएँ)।

- हीरागाना नारी सुलभ समझी जाती है। लेखन में चीनी चित्रात्मक चिह्नों (कांजी) और ध्वन्यात्मक अक्षरों (हीरागाना या कटकाना) का मिश्रण होता है।

- ध्वन्यात्मक अक्षरमाला की मौजूदगी के कारण ज्ञान कुलीन वर्गों से व्यापक समाज में काफी तेजी से फैल सका।

प्रशासनिक और सैन्य सुधार

- राष्ट्र के एकीकरण के लिए, मीजी सरकार ने पुराने गाँवों और क्षेत्रीय सीमाओं को बदलकर नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया।

- प्रशासनिक इकाई में पर्याप्त राजस्व ज़रूरी था जिससे स्थानीय स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएँ जारी रखी जा सकें। ये इकाइयाँ सेना के लिए भर्ती केंद्रों का काम भी आती थीं।

- 20 साल से अधिक उम्र के नौजवानों के लिए कुछ अरसे के लिए सेना में काम करना अनिवार्य हो गया।

- एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया।

- कानून व्यवस्था बनाई गई जो राजनीतिक गुटों के गठन को देख सके, बैठकें बुलाने पर नियंत्रण रख सके और सख्त सेंसर व्यवस्था बना सके। इन उपायों में सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा।

- सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के निर्देश में रखा गया। संविधान बनने के बावजूद ये दो गुट सरकारी नियंत्रण के बाहर रहे।

- लोकतांत्रिक संविधान और आधुनिक सेना – इन दो अलग आदर्शों को महत्व देने के दूरगामी परिणाम हुए। सेना ने और इलाके जीतने के मकसद से मजबूत विदेश नीति के लिए दबाव डाला। इस वजह से चीन और रूस के साथ युद्ध हुए, दोनों में ही जापान विजयी रहा।

- अधिक जनवाद की लोकप्रिय मांग अक्सर सरकार की इन आक्रामक नीतियों के विरोध में जाती थी।

औद्योगिक विकास और दैनिक जीवन में बदलाव

- जापान आर्थिक रूप से विकास करता गया और उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित किया।

- अपने देश में उसने लोकतंत्र के प्रसार को कुचला और साथ ही उपनिवेशीकृत लोगों के साथ टकराव का रिश्ता कायम किया।

- औद्योगिक मज़दूरों की संख्या 1870 में 7 लाख से बढ़कर 1913 में 40 लाख पहुँच गई।

- अधिकांश मज़दूर ऐसी इकाइयों में काम करते थे जिनमें 5 से कम लोग थे और जिनमें मशीनों और बिजली ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता था।

- आधुनिक कारखानों में काम करने वालों में आधे से ज्यादा महिलाएँ थीं। 1886 में पहली आधुनिक हड़ताल का आयोजन महिलाओं ने ही किया था।

- 1900 के बाद कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी, लेकिन 1930 के दशक में आकर ही पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक हुई।

- कारखानों में मज़दूरों की संख्या भी बढ़ने लगी। 100 से ज्यादा मज़दूर वाले कारखानों की संख्या 1909 में 1000 थी। 1920 तक 2000 से ज्यादा और 1930 के दशक में 4000 पहुँच गई।

- तनाका शोज़ो (Tanaka Shozo), एक किसान का बेटा, जिसने खुद पढ़ाई की और एक मुख्य राजनीतिक हस्ती के रूप में उभरा। उन्होंने 1880 के दशक में जनवादी हकों के आंदोलन में हिस्सा लिया, जिसने संवैधानिक सरकार की मांग की।

- तनाका शोज़ो का मानना था कि औद्योगिक प्रगति के लिए आम लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए।

- आशियो (Ashio) खान से वातारसे (Watarase) नदी में प्रदूषण फैल रहा था, जिससे कृषि भूमि बर्बाद हो रही थी और परिवार प्रभावित हो रहे थे। आंदोलन के चलते कंपनी को प्रदूषण नियंत्रण के उपाय करने पड़े।

- पति-पत्नी साथ रहकर कमाते और घर बसाते थे। पारिवारिक जीवन की इस नई समझ ने नए घरेलू उत्पादों, मनोरंजन और घरों की मांग पैदा की।

- 1920 के दशक में निर्माण कंपनियों ने सस्ती किश्तों पर लोगों को सस्ते मकान उपलब्ध कराए।

- बिजली से चलने वाली नई घरेलू वस्तुएँ (जैसे चावल पकाने वाला कुकर) लोकप्रिय हुईं।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का जापान

- भयानक हार के बावजूद जापान की अर्थव्यवस्था का जिस तेज़ी से पुनर्निर्माण हुआ, उसे युद्धोत्तर 'चमत्कार' कहा गया। यह चमत्कार से कहीं अधिक था और इसकी जड़ें जापान के लंबे इतिहास में थीं।

- संविधान को औपचारिक स्तर पर गणतंत्रात्मक रूप इसी समय दिया गया।

- जापान में जनवादी आंदोलन और राजनीतिक भागीदारी का आधार बढ़ाने में बौद्धिक सक्रियता की ऐतिहासिक परंपरा रही है।

- युद्ध से पहले के काल की सामाजिक संबद्धता को गणतंत्रात्मक रूपरेखा के बीच सुदृढ़ किया गया।

- इसके चलते सरकार, नौकरशाही और उद्योग के बीच एक करीबी रिश्ता कायम हुआ।

- अमेरिकी समर्थन और कोरिया और वियतनाम में युद्धों से जापानी अर्थव्यवस्था को मदद मिली।

चीन का आधुनिकीकरण का सफर

- चीन का आधुनिक इतिहास संप्रभुता की पुन:प्राप्ति, विदेशी कब्ज़े के अपमान का अंत और समानता तथा विकास को संभव करने के सवालों के इर्द-गिर्द घूमता है।

- चीनी बहसों में तीन समूहों के नज़रिए झलकते हैं।

  1. शुरुआती सुधारक जैसे कांग योवेई (Kang Youwei) या लियांग किचाओ (Liang Qichao) ने पश्चिम की चुनौतियों का सामना करने के लिए पारंपरिक विचारों को नए और अलग तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश की।
  2. गणतंत्र के पहले राष्ट्राध्यक्ष सन यात-सेन (Sun Yat-sen) जैसे गणतंत्रात्मक क्रांतिकारी जापान और पश्चिम के विचारों से प्रभावित थे।
  3. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी युगों-युगों की असमानताओं को खत्म करना और विदेशियों को खदेड़ देना चाहती थी।

पश्चिम के साथ पहला संपर्क और उसके परिणाम

- आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में पश्चिम के साथ उसके पहले आमने-सामने होने के समय से मानी जा सकती है, जब जेसुइट मिशनरियों ने खगोल विज्ञान और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को वहाँ पहुँचाया। इसका तात्कालिक असर तो सीमित था।

- लेकिन इसने उन चीज़ों की शुरुआत कर दी, जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में तेजी पकड़ी, जब ब्रिटेन ने अफीम के फायदेमंद व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का इस्तेमाल किया।

उपनिवेशों के उदाहरण और चीनी विचार

- उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों ने चीनी विचारकों पर जबरदस्त प्रभाव डाला।

- 18वीं सदी में पोलैंड का बँटवारा सर्वाधिक चर्चित उदाहरण था। 1890 के दशक में 'पोलैंड' शब्द का इस्तेमाल क्रिया के रूप में किया जाने लगा, जिसका मतलब था 'हमें पोलैंड करने के लिए'।

- भारत का उदाहरण भी सामने था। विचारक लियांग किचाओ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता लाकर ही चीन पश्चिम का विरोध कर पाएगा।

- 1903 में उन्होंने लिखा कि भारत एक ऐसा देश है जो किसी और देश नहीं, बल्कि एक कंपनी के हाथों बर्बाद हो गया – ईस्ट इंडिया कंपनी।

- उन्होंने ब्रिटेन की चाकरी करने और अपने लोगों के साथ क्रूर होने के लिए हिंदुस्तानियों की आलोचना की।

- कई लोगों ने महसूस किया कि परंपरागत सोच को बदलने की ज़रूरत है।

- कन्फ्यूशियसवाद (Confucianism) चीन में प्रमुख विचारधारा रही है। यह कन्फ्यूशियस और उनके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित हुई। इसका दायरा अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक संबंधों के सिद्धांतों का था। इसने चीनियों के जीवन के प्रति रवैये को प्रभावित किया, सामाजिक मानक दिए और चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को आधार दिया।

शाही परीक्षा प्रणाली

- शाही परीक्षा प्रणाली विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में बाधक का काम करती थी, क्योंकि इसमें सिर्फ पारंपरिक ज्ञान पर ज़ोर दिया जाता था। (अंश में परीक्षा के स्तर और पास होने वालों की संख्या का भी उल्लेख है)।

कुओमिन्तांग और शहरी विकास

- कुओमिन्तांग (Kuomintang) का सामाजिक आधार शहरी इलाकों में था।

- औद्योगिक विकास धीमा और कुछ ही क्षेत्रों में था।

- शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मज़दूर वर्ग उभर रहा था और उनकी संख्या 5 लाख थी। लेकिन इनमें से केवल कुछ प्रतिशत मज़दूर ही जहाज़ निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में काम कर रहे थे।

- ज्यादातर लोग 'नगण्य शहरी' (xiaoshi min), व्यापारी और दुकानदार होते थे।

- शहरी मज़दूरों, खासकर महिलाओं को बहुत कम वेतन मिलता था। काम करने के घंटे बहुत लंबे थे और काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थीं।

- जैसे-जैसे व्यक्तिवाद बढ़ा, महिलाओं के अधिकार, परिवार बनाने के तरीके और प्यार-मुहब्बत की चर्चा - इन सब विषयों को लेकर सरोकार बढ़ते गए।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और नया जनवाद

- माओ त्से-तुंग (Mao Zedong) के आमूल परिवर्तनवादी तरीके जियांग्शी में देखे जा सकते हैं। यहाँ पहाड़ों में 1928-1934 के बीच उन्होंने कुओमिन्तांग के हमलों से सुरक्षित शिविर लगाए।

- मजबूत किसान परिषद (सोवियत) का गठन किया, ज़मीन पर कब्ज़ा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण हुआ।

- माओ ने आज़ाद सरकार और सेना पर ज़ोर दिया।

- वह महिलाओं की समस्याओं से अवगत थे और उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को उभरने में प्रोत्साहन दिया। उन्होंने शादी के नए कानून बनाए जिसमें आयोजित शादियों और शादी के समझौते खरीदने और बेचने पर रोक लगाई और तलाक को आसान बनाया।

- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार 1949 में कायम हुई। यह 'नए लोकतंत्र' के सिद्धांतों पर आधारित थी।

- 'सर्वहारा की तानाशाही' (Proletariat Dictatorship) से भिन्न, नया लोकतंत्र सभी सामाजिक वर्गों का गठबंधन था।

- अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में रखे गए और निजी कारखानों तथा भूस्वामित्व को धीरे-धीरे खत्म किया गया।

- यह कार्यक्रम 1953 तक चला जब सरकार ने समाजवादी बदलाव का कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की।

- 1958 में 'लंबी छलांग' (Great Leap Forward) वाले आंदोलन की नीति के ज़रिए देश का तेज़ी से औद्योगिकीकरण करने की कोशिश की गई। लोगों को अपने घर के पिछवाड़े में इस्पात की भट्टियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

- ग्रामीण इलाकों में पीपल्स कम्यून्स (People's Communes) - जहाँ लोग इकट्ठे ज़मीन के मालिक थे और मिलकर फसल उगाते थे - शुरू किए गए। 1958 तक 26,000 ऐसे समुदाय थे जो कृषक आबादी का 98 प्रतिशत था।

- माओ पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। उनकी चिंता 'समाजवादी व्यक्ति' बनाने की थी जिसे पाँच चीज़ें प्रिय होंगी: पितृभूमि, जनता, काम, विज्ञान और जन संपत्ति।

- किसानों, महिलाओं, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन संस्थाएँ बनाई गईं।

- लेकिन ये लक्ष्य और तरीके पार्टी में सभी लोगों को पसंद नहीं थे। 1953-54 में कुछ लोग औद्योगिक संगठनों और आर्थिक विकास की तरफ ज्यादा ध्यान देने के लिए कह रहे थे।

सुधारों के बाद की बहसें

- सुधारों के बाद के समय में चीन के विकास के विषय पर दोबारा बहस शुरू हुई।

- पार्टी द्वारा समर्थित प्रधान मत मजबूत राजनीतिक नियंत्रण, आर्थिक खुलेपन और विश्व बाज़ार से जुड़ाव पर आधारित है।

- आलोचकों का कहना है कि सामाजिक गुटों, क्षेत्रों, पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ती हुई असमानताओं से सामाजिक तनाव बढ़ रहा है और बाज़ार पर जो भारी महत्व दिया जा रहा है उस पर सवाल खड़े कर रहा है।

- अंत में, पहले के पारंपरिक विचार पुनर्जीवित हो रहे हैं। जैसे कि कन्फ्यूशियसवाद और यह तर्क कि पश्चिम की नकल करने के बजाय चीन अपनी परंपरा पर चलते हुए एक आधुनिक समाज बना सकता है।

ताइवान का किस्सा

- चीनी कम्युनिस्ट दल द्वारा पराजित होने के बाद चियांग काई-शेक (Chiang Kai-shek) 1949 में ताइवान भाग निकले और वहाँ चीनी गणतंत्र की स्थापना की।

- 1894-95 में जापान के साथ हुई लड़ाई में यह जगह चीन को जापान के हाथ सौंपनी पड़ी थी और तब से वह जापानी उपनिवेश बनी हुई थी।

- काहिरा घोषणापत्र (1943) और पॉट्सडैम उद्घोषणा (1949) द्वारा चीन को संप्रभुता वापस मिली।

- फरवरी 1947 में हुए जबरदस्त प्रदर्शनों के बाद कुओमिन्तांग ने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी की निर्ममतापूर्वक हत्या करवा दी।

- चियांग काई-शेक के नेतृत्व में कुओमिन्तांग ने एक दमनकारी सरकार की स्थापना की, बोलने की और राजनीतिक विरोध करने की आज़ादी छीन ली और सत्ता की जगहों से स्थानीय आबादी को पूरी तरह बाहर कर दिया।

- फिर भी, उन्होंने भूमि सुधार लागू किया, जिसके चलते खेती की उत्पादकता बढ़ी।

- उन्होंने अर्थव्यवस्था का भी आधुनिकीकरण किया, जिसके चलते 1973 में कुल राष्ट्रीय उत्पाद के मामले में ताइवान पूरे एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा।

- अर्थव्यवस्था, जो मुख्य रूप से व्यापार पर आधारित थी, लगातार वृद्धि करती गई।

- अहम बात यह है कि अमीर और गरीब के बीच का अंतर लगातार घटता गया है।

- ताइवान का एक लोकतंत्र में रूपांतरण और भी नाटकीय रहा है। यह 1975 में चियांग की मौत के बाद धीरे-धीरे शुरू हुआ और 1987 में जब फौजी कानून हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को कानूनी इजाज़त मिल गई, तब इस प्रक्रिया ने गति पकड़ी।

- पहले स्वतंत्र मतदान ने स्थानीय ताइवानीयों को सत्ता में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

- मुख्य भूमि के साथ पुन:एकीकरण का प्रश्न अभी भी विवादास्पद मुद्दा होकर रहा है। व्यापार और निवेश मुख्य भूमि में बड़े पैमाने पर हो रहा है और आवागमन कहीं अधिक सहज हो गया है। चीन ताइवान को एक अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र के रूप में स्वीकार कर लेने में सहमत हो जाएगा अगर ताइवान पूर्ण स्वतंत्रता के लिए कोई कदम उठाने से परहेज करता है।

कोरिया की कहानी

- उन्नीसवीं सदी के अंत में, कोरिया के जोसोन राजवंश (1392-1910) ने आंतरिक और सामाजिक संघर्ष का सामना किया और इसके साथ ही उसे चीन, जापान और पश्चिमी देशों का विदेशी दबाव भी सहना पड़ा।

- इन सब के बीच कोरिया ने अपनी सरकारी संरचनाओं, राजनीतिक संबंधों, बुनियादी ढाँचे एवं समाज के आधुनिकीकरण के लिए सुधार नीतियाँ लागू कीं।

- दशकों के राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद, साम्राज्यवादी जापान ने 1910 में अपनी कॉलोनी के रूप में कोरिया पर जबरन कब्ज़ा कर लिया। इससे 500 वर्ष से अधिक समय से चले आ रहे जोसोन राजवंश का अंत हो गया।

- कोरियाई लोग जापानियों द्वारा किए जा रहे कोरियाई संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के दमन से काफी नाराज़ थे।

- आज़ादी के इच्छुक कोरियाई लोगों ने जापानी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने एक अस्थायी सरकार की स्थापना की और काहिरा, याल्टा और पॉट्सडैम सम्मेलनों जैसी अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में विदेशी नेताओं से अपील करने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेजे।

- मजबूत नेताओं, प्रशिक्षित अफसरों, आक्रामक उद्योगपतियों और सक्षम श्रम बल के संयोजन से कोरिया आज सारे विश्व को अपनी आर्थिक वृद्धि से चौंका रहा है।

- महत्वाकांक्षी उद्यमी, सरकारी प्रोत्साहनों से निर्यात को बढ़ाने और नए उद्योगों के विकास में सक्षम रहे।

- उच्च स्तर की शिक्षा ने भी कोरिया के आर्थिक विकास में योगदान दिया। आधुनिकीकरण की शुरुआत से ही लगभग सभी कोरियाई श्रमिक दल साक्षर थे और प्रगति के नए कौशल प्राप्त करने के लिए तैयार थे।

- कोरिया ने अपनी खुली आर्थिक नीति द्वारा अन्य देशों के अधिक उन्नत संस्थानों और तकनीकों को अपने देश में लाना शुरू कर दिया था।

- विदेशी निवेश और कोरिया की उच्च घरेलू बचत दर ने औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने में मदद की, जबकि विदेशों में दक्षिण कोरियाई श्रमिकों के प्रेषण ने भी समग्र आर्थिक विकास में योगदान दिया।

कोरियाई लोकतंत्र

- नए संविधान के अनुसार, 1971 के बाद से पहला प्रत्यक्ष चुनाव दिसंबर 1987 में हुआ। लेकिन विपक्षी पार्टियों की एकजुटता में विफलता के कारण, चुने गए सैन्य दल के एक साथी सैन्य नेता, रोह ताए-वू का चुनाव हुआ।

- हालांकि, कोरिया में लोकतंत्र जारी रहा। 1990 में, लंबे समय से विपक्षी नेता रह चुके, किम यंग-सैम ने एक बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बनाने के लिए रोह की पार्टी से समझौता किया।

- दिसंबर 1992 में, दशकों से चल रहे सैन्य शासन के बाद, एक नागरिक नेता, किम को राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया।

- नए चुनावों एवं सत्तावादी सैन्य शक्ति के विघटन के फलस्वरूप, एक बार फिर लोकतंत्र की शुरुआत हुई।

2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या

चिंग राजवंश (Ching dynasty): उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में चीन पर शासन करने वाला राजवंश, जिसकी सत्ता उस समय मजबूत दिखती थी।

शोगुन (Shogun): बारहवीं सदी के बाद जापान में वास्तविक सत्ता संभालने वाले सैनिक नेता, जो सैद्धांतिक रूप से सम्राट के नाम पर शासन करते थे। तोकुगावा परिवार ने 1603 से 1867 तक इस पद पर शासन किया।

डेम्यो (Daimyo): जापान में तोकुगावा काल के दौरान देश को विभाजित करने वाले 250 भागों के शासक। शोगुन उन पर नियंत्रण रखते थे।

सामुराई (Samurai): जापान का योद्धा वर्ग, जो शासक कुलीन थे और शोगुन तथा डेम्यो की सेवा में थे।

एडो (Edo): तोकुगावा शोगुनत की राजधानी, जिसे अब टोक्यो के नाम से जाना जाता है। यह 17वीं सदी के मध्य तक दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया था।

निशिजिन (Nishijin): क्योटो की एक बस्ती जो अपने रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध थी और दुनिया भर में बेहतरीन रेशम के लिए जानी जाती थी।

पेरी का आगमन: अमेरिकी कमोडोर मैथ्यू पेरी का जापान आगमन, जिसने जापान की राजनीतिक व्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला और मीजी पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

मीजी पुनर्स्थापना (Meiji Restoration): 1868 में शोगुन को सत्ता से हटाकर सम्राट मीजी की सत्ता को फिर से स्थापित करने वाला आंदोलन। इसे जापान के आधुनिकीकरण की शुरुआत माना जाता है।

टोक्यो (Tokyo): मीजी पुनर्स्थापना के बाद एडो का नया नाम और जापान की नई राजधानी, जिसका अर्थ है 'पूर्वी राजधानी'।

फुकोकू क्योंहेई (Fukoku Kyohei): मीजी सरकार का नारा, जिसका अर्थ है 'समृद्ध देश, मजबूत सेना'। यह जापान के आधुनिकीकरण का मुख्य उद्देश्य था।

सम्राट-व्यवस्था (Emperor System): एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सम्राट, नौकरशाही और सेना मिलकर सत्ता चलाते थे और सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। मीजी सरकार ने इसका पुनर्निर्माण किया।

कांजी (Kanji), हीरागाना (Hiragana), कटकाना (Katakana): जापानी भाषा में प्रयुक्त होने वाली तीन लिपियाँ।

तनाका शोज़ो (Tanaka Shozo): एक किसान नेता और सांसद जिन्होंने औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन किया।

कन्फ्यूशियसवाद (Confucianism): चीन की प्रमुख विचारधारा, जो अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक संबंधों पर केंद्रित है।

कुओमिन्तांग (Kuomintang): चीन में एक राजनीतिक दल, जिसकी स्थापना सन यात-सेन ने की थी। इसका सामाजिक आधार शहरी इलाकों में था। यह 1949 में चीन की मुख्य भूमि पर कम्युनिस्ट पार्टी से पराजित होने के बाद ताइवान चला गया।

सन यात-सेन (Sun Yat-sen): चीन के पहले गणतंत्रात्मक राष्ट्रपति और कुओमिन्तांग के संस्थापक।

माओ त्से-तुंग (Mao Zedong): चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, जिन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में क्रांतिकारी तरीकों को अपनाया और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की।

लंबी छलांग (Great Leap Forward): 1958 में चीन द्वारा देश का तेज़ी से औद्योगिकीकरण करने की कोशिश के लिए अपनाई गई नीति।

पीपल्स कम्यून्स (People's Communes): चीन के ग्रामीण इलाकों में शुरू किए गए समुदाय जहाँ लोग सामूहिक रूप से ज़मीन के मालिक होते थे और मिलकर खेती करते थे।

नया लोकतंत्र (New Democracy): 1949 में चीन में स्थापित पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार के सिद्धांत, जो सभी सामाजिक वर्गों के गठबंधन पर आधारित थे।

सर्वहारा की तानाशाही (Dictatorship of the Proletariat): मार्क्सवाद की एक संकल्पना जिसमें श्रमिक वर्ग की क्रांतिकारी सरकार स्थापित करने पर बल दिया गया।

3. पुस्तक में दिए गए सभी उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए।

माफ़ कीजिए, उपलब्ध अंशों में कोई विशिष्ट उदाहरण या गणितीय समस्याएँ नहीं दी गई हैं जिन्हें चरण-दर-चरण हल करके समझाया जा सके। पाठ में मुख्य रूप से ऐतिहासिक घटनाएँ, भौगोलिक विवरण और सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन वर्णित हैं।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर।

माफ़ कीजिए, उपलब्ध अंशों में अध्याय के अंत में दिए गए अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर शामिल नहीं हैं। अतः, मैं इस पाठ्यांश के आधार पर उनके उत्तर प्रदान नहीं कर सकता।

5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न तैयार कीजिए।

चूंकि आपने पूरे अध्याय के बजाय केवल कुछ अंश प्रदान किए हैं, इसलिए पूरे अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नए और प्रासंगिक अभ्यास प्रश्न तैयार करना संभव नहीं है। मैं केवल इन अंशों पर आधारित कुछ प्रश्न बना सकता हूँ, लेकिन वे पूरे अध्याय को कवर नहीं करेंगे।

6. अध्याय के अंत में बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश।

संक्षिप्त सारांश (केवल उपलब्ध अंशों पर आधारित)

यह अध्याय उन्नीसवीं सदी में चीन और जापान के आधुनिकीकरण के भिन्न रास्तों का विश्लेषण करता है। जहाँ चीन आंतरिक संघर्ष और औपनिवेशिक चुनौतियों का सामना करने में विफल रहा, वहीं जापान ने तेज़ी से आधुनिकीकरण किया, औद्योगिक शक्ति बना और एक साम्राज्य स्थापित किया। जापान ने पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव के बावजूद अपनी परंपराओं और सीखने की क्षमता का उपयोग किया। तोकुगावा काल में शहरों का विकास हुआ और एक वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था उभरी। अमेरिकी पेरी के आगमन के बाद मीजी पुनर्स्थापना हुई, जिसने सम्राट को केंद्र में लाकर सैन्य, प्रशासनिक और शिक्षा सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया। जापान में औद्योगिकीकरण के साथ शहरीकरण बढ़ा और दैनिक जीवन में बदलाव आए। द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापान ने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई और तेजी से आर्थिक पुनर्निर्माण किया।

दूसरी ओर, चीन ने संप्रभुता की वापसी, अपमान का अंत और समानता तथा विकास के लिए संघर्ष किया। पश्चिमी संपर्क और औपनिवेशिक उदाहरणों ने चीनी विचारकों को प्रभावित किया। कन्फ्यूशियसवाद जैसी पारंपरिक विचारधाराओं और शाही परीक्षा प्रणाली की सीमाओं पर बहस हुई। कुओमिन्तांग का आधार शहरी था, जहाँ औद्योगिक मज़दूर वर्ग उभरा। माओ त्से-तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने भूमि सुधार लागू किए और पीपल्स कम्यून्स जैसी पहल की। 1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना 'नए लोकतंत्र' के सिद्धांतों पर हुई। वर्तमान चीन में आर्थिक शक्ति बढ़ने के साथ-साथ असमानताएँ और पारंपरिक विचारों का पुनरुद्धार देखा जा रहा है। ताइवान का किस्सा कुओमिन्तांग की हार, दमनकारी शासन, आर्थिक विकास और धीरे-धीरे लोकतंत्र में परिवर्तन को दर्शाता है। कोरिया ने भी उन्नीसवीं सदी में सुधारों की कोशिश की लेकिन जापान का उपनिवेश बन गया, फिर आर्थिक विकास किया और लोकतंत्र की ओर बढ़ा। कुल मिलाकर, यह अध्याय दिखाता है कि कैसे इन एशियाई देशों ने आधुनिक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने-अपने रास्ते चुने, जिसके अलग-अलग परिणाम हुए।

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मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स आपको पाठ्यांश को समझने में मदद करेंगे। कृपया ध्यान दें कि ये नोट्स केवल आपके द्वारा अपलोड किए गए अंशों पर आधारित हैं। पूरे अध्याय को बेहतर ढंग से समझने के लिए आपको पूरी पाठ्यपुस्तक का अध्ययन करना चाहिए और अन्य संसाधनों का उपयोग करना चाहिए।

पढ़ाई के लिए शुभकामनाएँ!

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