कक्षा 11 इतिहास अध्याय 6:मूल निवासियों का विस्थापन और आधुनिकीकरण के रास्ते

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मूल निवासियों का विस्थापन और आधुनिकीकरण के रास्ते | अध्याय 6 इतिहास संपूर्ण नोट्स

अध्याय 6: मूल निवासियों का विस्थापन और आधुनिकीकरण के रास्ते

परिचय

यह अध्याय आधुनिकीकरण की प्रक्रिया और इसके विभिन्न आयामों पर केंद्रित है, विशेष रूप से औद्योगिक क्रांति और राजनीतिक क्रांतियों तथा यूरोपीय उपनिवेशवाद के संदर्भ में। यह उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों पर यूरोपीय बस्तियों के प्रभाव और दुनिया भर में आधुनिकीकरण के विभिन्न मॉडलों को भी देखता है। यह अध्याय 15वीं शताब्दी के मध्य से शुरू होने वाली उन घटनाओं पर प्रकाश डालता है जिन्होंने आधुनिक दुनिया को बनाने में योगदान दिया। इसमें मुख्य रूप से दो बड़े बदलाव शामिल हैं: औद्योगिक क्रांति और राजनीतिक क्रांतियाँ।

1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या

  • आधुनिकीकरण की प्रक्रिया: आधुनिकीकरण केवल औद्योगिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन भी शामिल हैं। औद्योगिक क्रांति ने उत्पादन के तरीके बदले, जबकि राजनीतिक क्रांतियों (जैसे अमेरिकी क्रांति 1776-81 और फ्रांसीसी क्रांति 1789-94) ने प्रजा को नागरिक में बदल दिया। इसका अर्थ था संप्रभुता का सिद्धांत, जहाँ राजनीतिक सत्ता जनता के हाथ में मानी जाती है।
  • औद्योगिक क्रांति: ब्रिटेन दुनिया का पहला औद्योगिक राष्ट्र था। लंबे समय तक यह माना जाता रहा कि ब्रिटेन का मॉडल अन्य देशों के लिए आदर्श था, लेकिन इतिहासकारों ने इस विचार पर प्रश्न उठाए हैं। प्रत्येक देश ने दूसरों के अनुभवों से सीखा, लेकिन किसी ने भी आँख बंद करके ब्रिटिश मॉडल का अनुसरण नहीं किया। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में औद्योगीकरण के पहले चरण में कोयला और सूती कपड़ा उद्योगों का विकास हुआ, जबकि रेलवे ने दूसरे चरण की शुरुआत की। रूस जैसे देशों में, जहाँ औद्योगीकरण देर से (19वीं शताब्दी के अंत में) शुरू हुआ, रेलवे और भारी उद्योग पहले चरण में ही विकसित होने लगे। औद्योगीकरण में राज्य और बैंकों की भूमिका भी हर देश में अलग रही।
  • उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद: यूरोपीय शक्तियों ने औद्योगिक क्रांति से बहुत पहले अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था। 17वीं शताब्दी के बाद फ्रांस, हॉलैंड और इंग्लैंड जैसे देशों ने अपने व्यापार का विस्तार किया और अमेरिका, अफ्रीका तथा एशिया में उपनिवेश बसाए। दक्षिण एशिया (जैसे भारत) में, व्यापारिक कंपनियों ने राजनीतिक सत्ता का रूप ले लिया, स्थानीय शासकों को हराया और अपने क्षेत्रों का विस्तार किया। चीन 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में अर्ध-उपनिवेश का उदाहरण है, जहाँ ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, अमेरिका और जापान ने सत्ता संभाले बिना चीन के मामलों में हस्तक्षेप किया और देश के संसाधनों का फायदा उठाया।
  • सेटलर्स और मूल निवासियों का विस्थापन: 'सेटलर्स' शब्द का उपयोग दक्षिण अफ्रीका में डच, आयरलैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश, और अमेरिका में यूरोपीय लोगों के लिए किया जाता था। 18वीं शताब्दी से यूरोपीय आप्रवासी दक्षिणी अमेरिका के अन्य हिस्सों और मध्य, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के क्षेत्रों में बसने लगे। इस प्रक्रिया ने वहाँ के बहुत से मूल निवासियों को दूसरे क्षेत्रों में जाने पर मजबूर किया। जब इन यूरोपीय बस्तियों के निवासी 'मातृदेश' से स्वतंत्र हुए, तो उन्हें 'राज्य' या देश का दर्जा मिला। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देश 18वीं शताब्दी के अंत में अस्तित्व में आए और उन्होंने अगले सौ वर्षों में अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में काफी इज़ाफ़ा किया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने फ्रांस और रूस से ज़मीन खरीदी, और युद्ध में भी ज़मीन जीती (जैसे मेक्सिको से)। इन क्षेत्रों में रहने वाले मूल निवासियों की सहमति नहीं ली गई।
  • यूरोपीय और मूल निवासियों की परस्पर धारणाएँ: 18वीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग 'सभ्य' मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म और शहरीपन के आधार पर करते थे। उन्हें अमेरिका के मूल निवासी 'असभ्य' प्रतीत हुए। कुछ यूरोपीय दार्शनिकों जैसे ज्यां जैक रूसो के लिए, मूल निवासी तारीफ के काबिल थे क्योंकि वे 'सभ्यता' की विकृतियों से अछूते थे, जिन्हें 'उत्कृष्ट उत्तम जंगली' (The noble savage) कहा गया। दूसरी ओर, कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने उन्हें 'जंगलों में' रहने वाला बताया जहाँ कल्पना शक्ति बहुत कम थी। थॉमस जेफरसन जैसे अन्य लोगों ने मूल निवासियों को एक 'अभागी नस्ल' कहा। मूल निवासियों की लोककथाओं में यूरोपीय लोगों का मज़ाक उड़ाया गया और उन्हें लालची तथा धूर्त बताया गया।
  • भूमि और व्यापार पर भिन्न दृष्टिकोण: मूल निवासी भूमि, मछली और जानवरों पर स्वामित्व जताना ज़रूरी नहीं समझते थे। वे इन चीजों को बेचने और खरीदने की वस्तुओं के रूप में बदलने की इच्छा नहीं रखते थे। यदि चीजों के आदान-प्रदान की ज़रूरत थी, तो उन्हें आसानी से उपहार में दिया जा सकता था। यूरोपीय लोगों के लिए, मछली और फर 'माल' थे जिन्हें यूरोप में बेचकर मुनाफा कमाना था। वे आपूर्ति के आधार पर बदलते दामों को नहीं समझ पाते थे। यूरोपीय लोगों ने मूल निवासियों से तंबाकू की आदत अपनाई।
  • विस्थापन और भूमि का उपयोग: जैसे-जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी बस्तियों का विस्तार किया, मूल निवासियों को भूमि बिक्री समझौतों पर हस्ताक्षर करने के बाद वहाँ से हटने के लिए प्रेरित या बाध्य किया गया। उन्हें दी गई कीमतें बहुत कम थीं, और यूरोपीय लोगों द्वारा धोखाधड़ी या पैसे न देने के उदाहरण भी मिलते हैं। यूरोपीय आप्रवासी (जैसे छोटे बेटे जिन्हें पिता की संपत्ति नहीं मिली, या जिनकी ज़मीन बड़े किसानों के हाथ चली गई) अमेरिका में ज़मीन के मालिक बनना चाहते थे। उन्होंने खेती के लिए जंगलों को साफ़ किया और कृषि का विकास किया। उन्होंने ऐसी फसलें उगाईं जो यूरोप में नहीं उग सकती थीं और जिन्हें वहाँ ऊँचे मुनाफे पर बेचा जा सकता था। यूरोपीय लोगों का मानना था कि मूल निवासी ज़मीन का अधिकतम उपयोग करना नहीं जानते, इसलिए वह उनके कब्ज़े में नहीं रहनी चाहिए। उन्होंने मूल निवासियों को आलसी और 'मर-खपने लायक' कहा।
  • आधुनिकीकरण के विभिन्न मॉडल: आधुनिकीकरण के कई मॉडल देखने को मिले हैं। विभिन्न समाजों ने अपनी विशिष्ट आधुनिकता विकसित की है। जापान उपनिवेशी नियंत्रण से आज़ाद रहने में सफल रहा और 20वीं सदी के दौरान तेजी से आर्थिक और औद्योगिक प्रगति कर सका। द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापानी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में हुई उन्नति का परिणाम था। जापान के आधुनिकीकरण में भी अपनी दिक्कतें थीं, जैसे लोकतंत्र और सैन्यवाद के बीच, जातीय राष्ट्रवाद और नागरिक राष्ट्र निर्माण के बीच, और 'परंपरा' तथा 'पश्चिमीकरण' के बीच का संघर्ष। चीन ने बाज़ार के कुछ सिद्धांतों को अपनाकर खुद को आर्थिक शक्ति में बदल दिया।

2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या

  • आधुनिकीकरण (Modernization): एक बहुआयामी प्रक्रिया जिसमें औद्योगिक, राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन शामिल हैं जो आधुनिक विश्व के निर्माण में योगदान करते हैं। इसके विभिन्न देशों में अलग-अलग मॉडल देखने को मिलते हैं।
  • औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution): उत्पादन के तरीकों में बड़े पैमाने पर बदलाव लाने वाली प्रक्रिया, जिसकी शुरुआत ब्रिटेन में हुई।
  • राजनीतिक क्रांतियाँ (Political Revolutions): ऐसी क्रांतियाँ जिन्होंने राजनीतिक सत्ता के स्वरूप को बदला, जैसे अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांति, जिन्होंने प्रजा को नागरिक में बदला।
  • उपनिवेशवाद (Colonialism): किसी देश या क्षेत्र पर किसी बाहरी शक्ति द्वारा नियंत्रण स्थापित करना और उसका शोषण करना।
  • सेटलर्स (Settlers): यूरोपीय लोग जो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में बस गए।
  • मूल निवासी/स्वदेशी लोग (Native/Indigenous people): वे लोग जो किसी स्थान पर हमेशा से रहते आए हैं। यह शब्द बीसवीं सदी की शुरुआत तक यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों के निवासियों के लिए इस्तेमाल होता था। उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका तथा कैरेबियन के मूल निवासियों के लिए 'अमेरिकन इंडियन', 'अमेरिंड', 'अमेरिंडियन' और अब 'नेटिव अमेरिकन' जैसे शब्द प्रचलित हैं। कनाडा में मूल निवासियों के संगठित समूहों को 'फर्स्ट नेशंस पीपल्स' कहा जाता है। ऑस्ट्रेलिया के सबसे शुरुआती मनुष्यों को 'एबॉरिजिनीज़' कहते हैं।
  • नागरिक राष्ट्रवाद (Civic Nationalism): राष्ट्रवाद का वह रूप जो भाषा, धर्म, जाति और लिंग पर ध्यान दिए बिना सभी लोगों को संप्रभुता प्रदान करता है और राष्ट्रीयता को नागरिकता से परिभाषित करता है।
  • जातीय/धार्मिक राष्ट्रवाद (Ethnic/Religious Nationalism): राष्ट्रवाद का वह रूप जो राष्ट्रीय एकता का निर्माण किसी भाषा, धर्म या कुछ परंपराओं के इर्द-गिर्द करता है, जहाँ लोगों को जातीयता के आधार पर परिभाषित किया जाता है, समान नागरिकता के आधार पर नहीं। जर्मनी में जातीय राष्ट्रवाद का लंबा और कष्टदायी इतिहास रहा है।
  • उत्कृष्ट उत्तम जंगली (The noble savage): एक संकल्पना जो कुछ यूरोपीय विचारकों (जैसे रूसो) द्वारा उन लोगों के लिए उपयोग की गई जो 'सभ्यता' की विकृतियों से अछूते माने जाते थे।
  • फ्रंटियर (Frontier): संयुक्त राज्य अमेरिका में बस्तियों के विस्तार के साथ पश्चिम की ओर खिसकने वाली सीमा। इसे कार्ल मार्क्स ने 'आखिरी सकारात्मक पूंजीवादी यूटोपिया' के रूप में देखा जहाँ असीमित प्रकृति और स्थान असीमित मुनाफे की चाहत के अनुरूप खुद को ढालते हैं।
  • स्वप्नकाल (Dreamtime): ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों (एबॉरिजिनीज़) की परंपराओं में बीती सदियों को 'स्वप्नकाल' कहा जाता था, जहाँ अतीत और वर्तमान का अंतर धुंधला हो जाता था।

3. पुस्तक में दिए गए सभी उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए

नोट: पाठ्यपुस्तक के इन अंशों में 'हल' करने जैसे चरण-दर-चरण उदाहरण नहीं दिए गए हैं, बल्कि विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं और प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है। यहाँ कुछ मुख्य उदाहरणों और उनसे जुड़े बिंदुओं की व्याख्या की गई है:

  • ब्रिटेन और रूस में औद्योगीकरण:

    1. चरण 1 (ब्रिटेन): औद्योगीकरण की शुरुआत। मुख्य उद्योग: कोयला और सूती कपड़ा।
    2. चरण 2 (ब्रिटेन): रेलवे का आविष्कार औद्योगीकरण प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है।
    3. रूस (देर से शुरुआत): 19वीं शताब्दी के अंत में औद्योगिक विकास शुरू।
    4. मुख्य अंतर (रूस): औद्योगीकरण के पहले चरण में ही रेलवे और भारी उद्योग विकसित होने लगे।
    5. राज्य की भूमिका: ब्रिटेन और रूस तथा अन्य देशों में राज्य और बैंकों की भूमिका भिन्न रही। ब्रिटेन के औद्योगिक विकास ने अमेरिका और जर्मनी जैसे अन्य औद्योगिक देशों को प्रभावित किया।
  • औपनिवेशिक नियंत्रण के प्रकार:

    • उदाहरण 1 (सेटलर उपनिवेश): अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे उपनिवेश जहाँ यूरोपीय गोरे लोग बस गए। यहाँ कनाडा को छोड़कर राजभाषा अंग्रेज़ी थी।
    • उदाहरण 2 (सीधा औपनिवेशिक नियंत्रण): भारत में ब्रिटिश शासन। यहाँ व्यापारिक कंपनियों ने राजनीतिक सत्ता संभाली, स्थानीय शासकों को हराया, और पुरानी प्रशासनिक व्यवस्था जारी रखी व ज़मींदारों से कर वसूलते रहे। बाद में व्यापार सुगम बनाने के लिए रेलवे बनाई, खदानें खुदवाईं और बड़े बागान स्थापित किए।
    • उदाहरण 3 (अर्ध-उपनिवेश): 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत का चीन। यहाँ कई यूरोपीय देशों और जापान ने बिना सत्ता हाथ में लिए चीन के मामलों में हस्तक्षेप किया और संसाधनों का फायदा उठाया, जिससे चीन की संप्रभुता को ठेस पहुँची और उसका दर्जा अर्ध-उपनिवेश का हो गया।
    • अफ्रीका: दक्षिणी अफ्रीका को छोड़कर, यूरोपीय लोग अफ्रीका में समुद्र तटों पर ही व्यापार करते रहे। 19वीं सदी के आखिर में ही वे अंदरूनी इलाकों में जा सके, जिसके बाद कुछ यूरोपीय मुल्कों के बीच अफ्रीका का बंटवारा हुआ।
  • मूल निवासियों का विस्थापन (उत्तरी अमेरिका):

    • पृष्ठभूमि: उत्तरी अमेरिका में यूरोपीय लोगों के आने से हजारों साल पहले लोग रहते थे। ये लोग बेरिंग स्ट्रेट्स के पार भूमि सेतु के रास्ते एशिया से आए थे। वे समूह बनाकर रहते थे, मछली और मांस खाते थे, तथा सब्ज़ियाँ व मक्का उगाते थे। वे बाइसन जैसे जानवरों का शिकार करते थे। 17वीं शताब्दी से स्पेनिश आप्रवासियों से घोड़े खरीदने के बाद घोड़ों पर शिकार करना आसान हो गया।
    • यूरोपीय आप्रवासियों का आना: 17वीं शताब्दी से यूरोप के कुछ समूह धार्मिक उत्पीड़न के कारण अमेरिका में बसने आए।
    • भूमि पर नियंत्रण: जैसे-जैसे बस्तियों का विस्तार हुआ, मूल निवासियों को भूमि बिक्री समझौतों पर हस्ताक्षर कराकर वहाँ से हटने के लिए प्रेरित या बाध्य किया गया। उन्हें कम कीमतें दी गईं, और धोखाधड़ी भी हुई।
    • सरकारी नीतियां: संयुक्त राज्य अमेरिका ने भूमि खरीदकर (जैसे लुइसियाना और अलास्का) और युद्ध जीतकर (जैसे मेक्सिको से) अपना क्षेत्र बढ़ाया, बिना मूल निवासियों की सहमति लिए। अमेरिकी राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन का सपना छोटे खेतों वाले यूरोपीय लोगों से आबाद देश का था।
    • तुलनात्मक दृष्टिकोण: यूरोपीय आप्रवासियों के लिए ज़मीन का मालिक बनना महत्वपूर्ण था। उन्होंने कृषि के लिए ज़मीन साफ़ की। मूल निवासियों के लिए ज़मीन 'मालिकाना हक' की चीज़ नहीं थी; वे उससे मिलने वाले भोजन और आश्रय से संतुष्ट थे।
  • कला और संपर्क के उदाहरण:

    • जे. लिप्शिट्ज़ की मूर्ति: 1920 के दशक में बनी यह मूर्ति मध्य अफ्रीका की मूर्तिकला से प्रभावित है, जो दुनिया को जोड़ने का एक उदाहरण है।
    • जापान की ज़ेन चित्रकारी: पश्चिमी कलाकार ऐसे चित्रों की प्रशंसा करते थे। 1920 के दशक के अमेरिका में ज़ेन का प्रभाव 'निराकार अभिव्यंजनावादी' चित्रकारी पर पड़ा।
    • चार्ल्स लिंडबर्ग की अटलांटिक पार यात्रा: 1927 में एक इंजन वाले हवाई जहाज में न्यूयॉर्क से पेरिस की यात्रा, जो दुनिया को जोड़ने का एक और उदाहरण है।
    • वेम्पुम बेल्ट: रंगीन सीपियों को सिलकर बनाई जाने वाली बेल्ट जिसका आदान-प्रदान स्थानीय कबीलों के बीच समझौते के बाद होता था।
    • मिसीसिपी के किनारे व्यापार: फ्रांसीसी लोगों ने देखा कि स्थानीय लोग नियमित रूप से हस्तशिल्प और खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान करने के लिए इकट्ठा होते थे। यूरोपीय लोग स्थानीय उत्पादों के बदले कंबल, लोहे के बर्तन, बंदूकें और शराब देते थे।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर

यहाँ अध्याय के अंत में दिए गए अभ्यास प्रश्नों के उत्तर पाठ्यपुस्तक के अंशों के आधार पर दिए गए हैं:

प्रश्न 2: आप उन्नीसवीं सदी के संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेज़ी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेज़ों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौन-सी विशेषताएँ देखते हैं?

आर्थिक विशेषताएँ:

  • भूमि पर स्वामित्व की चाहत: यूरोपीय आप्रवासियों में भूमि का मालिक बनने की तीव्र इच्छा थी, खासकर उन लोगों में जिन्हें यूरोप में पैतृक संपत्ति नहीं मिली।
  • कृषि का विकास और मुनाफे के लिए उत्पादन: ज़मीन साफ़ करके बड़े पैमाने पर कृषि की गई। धान और कपास जैसी फसलें यूरोप में बेचने और मुनाफा कमाने के लिए उगाई गईं।
  • खनिज और उद्योग का विकास: तेल, गैस और खनिज संसाधनों के कारण बड़े उद्योग विकसित हुए। रेलवे उपकरण और कृषि यंत्र बनाने वाले कारखाने लगे।
  • पूंजीवाद का विस्तार: अमेरिकी फ्रंटियर को असीमित मुनाफे के लिए असीमित प्रकृति के रूप में देखा गया।

सामाजिक विशेषताएँ:

  • आप्रवासन: बड़ी संख्या में यूरोपीय लोग नया जीवन शुरू करने के लिए अमेरिका आए।
  • मूल निवासियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण: यूरोपीय लोगों ने मूल निवासियों को 'असभ्य' और आलसी माना, जो ज़मीन का सही उपयोग नहीं करते थे और 'मर-खपने' लायक थे।
  • जबरन विस्थापन: मूल निवासियों को धोखे या बल से उनकी ज़मीन से विस्थापित किया गया।
  • नस्लीय भेदभाव: मूल निवासियों और अफ्रीकी मूल के दासों के साथ गंभीर नस्लीय भेदभाव किया गया, उन्हें नागरिक अधिकार नहीं दिए गए और उन्हें निकृष्ट माना गया।
  • सांस्कृतिक वर्चस्व और भिन्न जीवनशैली: यूरोपीय लोगों ने अपनी जीवनशैली को श्रेष्ठ माना और मूल निवासियों की संस्कृति का अनादर किया, जैसे उनके नामों का गलत उपयोग करना।

प्रश्न 3: अमेरिकी लोगों के लिए 'फ्रंटियर' के क्या मायने थे?

अमेरिकी लोगों (यूरोपीय मूल के) के लिए 'फ्रंटियर' (पश्चिमी सीमा) के कई मायने थे:

  • यह संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्तार का प्रतीक था, जो धीरे-धीरे पश्चिम की ओर खिसकता गया।
  • यह यूरोपीय आप्रवासियों के लिए नई भूमि और अवसरों का द्वार था, जहाँ वे ज़मीन के मालिक बन सकते थे, खेती कर सकते थे और मुनाफा कमा सकते थे।
  • यह मूल निवासियों के विस्थापन से जुड़ा था, क्योंकि जैसे-जैसे फ्रंटियर आगे बढ़ा, मूल निवासियों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया गया।
  • कार्ल मार्क्स के शब्दों में, यह 'आखिरी सकारात्मक पूंजीवादी यूटोपिया' था, जहाँ असीमित प्रकृति असीमित मुनाफे की चाहत के अनुरूप थी।

प्रश्न 4: इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था?

ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को इतिहास की किताबों में शामिल न किए जाने के कई कारण थे, जो यूरोपीय लोगों के उनके प्रति दृष्टिकोण और व्यवहार से जुड़े हैं:

  • यूरोपीय लोगों ने मूल निवासियों को 'पिछड़े हुए आदिमानव' माना जिनकी कोई स्थानबद्ध कृषि, शहर या भविष्य की योजना नहीं थी।
  • उन्हें नागरिक के रूप में नहीं देखा गया और उन्हें असमान माना गया।
  • यूरोपीय लोगों का उनके साथ व्यवहार विचित्र और हिंसक था, और उन्होंने उनकी भूमि के प्रति उनके दृष्टिकोण को समझने में कठिनाई दिखाई।
  • मानवशास्त्र जैसे विषयों ने भी उन्हें 'आदिम' और 'समाप्त होने वाले' समुदाय के रूप में प्रस्तुत किया।
  • इन नकारात्मक दृष्टिकोणों के कारण उनके इतिहास और संस्कृति को महत्व नहीं दिया गया। इतिहास लेखन शासकों और 'सभ्यताओं' पर केंद्रित रहा, जिसमें मूल निवासियों को स्थान नहीं मिला।
  • उनके मौखिक इतिहास और कहानियों को दस्तावेज़ नहीं माना गया
  • आज स्थिति बदल रही है, और उनके इतिहास तथा कला को संग्रहालयों और लेखन के माध्यम से मान्यता मिल रही है।

प्रश्न 5: लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण विचार कीजिए।

संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें किसी संस्कृति को समझाने में आंशिक रूप से ही कामयाब रहती हैं।

सफलता:

  • वे संस्कृति के भौतिक पहलुओं जैसे कला, शिल्प, औजार, पहनावा और जीवन शैली की झलक दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक वेम्पुम बेल्ट समझौते के महत्व को या किसी कबीले के घर की प्रतिकृति उनकी वास्तुकला को दर्शा सकती है।

सीमाएं:

  • वे संस्कृति के गैर-भौतिक पहलुओं जैसे विश्वास, परंपराएँ, मौखिक इतिहास, सामाजिक संरचनाएँ और भूमि या प्रकृति के प्रति गहरे आध्यात्मिक संबंधों को पूरी तरह से समझाने में अक्सर विफल रहती हैं। चीफ सिएटल का पत्र या ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासियों का 'स्वप्नकाल' जैसी अवधारणाएँ केवल वस्तुओं से स्पष्ट नहीं हो सकतीं।
  • कलाकृतियों को उनके मूल संदर्भ से हटाकर प्रदर्शित करने से उनका गहरा अर्थ खो सकता है।

(छात्र यहाँ अपने व्यक्तिगत संग्रहालय भ्रमण का अनुभव जोड़ सकते हैं, जैसे: मैंने राष्ट्रीय संग्रहालय में हड़प्पा सभ्यता की प्रदर्शनी देखी। वहाँ मैंने मुहरें, बर्तन और आभूषण देखे, जिनसे मुझे उनके शिल्प कौशल और शहरी जीवन का अंदाज़ा लगा। लेकिन उनके धार्मिक विश्वासों या सामाजिक व्यवस्था के बारे में केवल इन वस्तुओं को देखकर पूरी तरह समझना मुश्किल था। अतिरिक्त जानकारी और व्याख्या की आवश्यकता थी।)

यदि प्रदर्शनी उस संस्कृति के लोगों द्वारा स्वयं क्यूरेट की जाती है, जैसे नया अमेरिकन इंडियन राष्ट्रीय संग्रहालय, तो यह संस्कृति को अधिक प्रामाणिक रूप से समझाने में मदद कर सकती है।

प्रश्न 6: कैलिफोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाक़ात की कल्पना करिए। ये चार लोग हैं: एक अफ्रीकी गुलाम, एक चीनी मजदूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होप कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन करिए।

यह एक रचनात्मक लेखन प्रश्न है। यहाँ एक काल्पनिक बातचीत का ढाँचा है:

पात्र और उनके संभावित अनुभव:

  • अफ्रीकी गुलाम (मुक्त या भगोड़ा): स्वतंत्रता और उत्पीड़न का अनुभव।
  • चीनी मजदूर: रेलवे या खदान में कार्यरत, श्रम और भेदभाव का अनुभव।
  • जर्मन (गोल्ड रश): सोने की तलाश में आया आप्रवासी, अवसर और संपत्ति की चाह।
  • होप कबीले का मूल निवासी: पारंपरिक भूमि से विस्थापन, यूरोपीय दबाव, भूमि से आध्यात्मिक जुड़ाव।

संभावित संवाद बिंदु:

  • भूमि: जर्मन स्वामित्व और खनन की बात करेगा, होप व्यक्ति भूमि के प्रति पवित्रता और यूरोपीय लालच पर दुख व्यक्त करेगा, अफ्रीकी व्यक्ति अपनी ज़मीन का सपना देखेगा, चीनी मजदूर पराई ज़मीन पर काम करने की बात करेगा।
  • श्रम और अवसर: जर्मन सोने की मेहनत पर, चीनी मजदूर कम वेतन पर कठिन काम पर, अफ्रीकी गुलाम बलपूर्वक श्रम और अब काम की तलाश पर, होप व्यक्ति ज़रूरत के हिसाब से काम और यूरोपीय अति-उत्पादन पर।
  • यूरोपीय लोगों के प्रति दृष्टिकोण: सभी अपने-अपने अनुभव साझा करेंगे - होप व्यक्ति यूरोपीय लालच पर, अफ्रीकी गुलाम नस्लीय भेदभाव पर, चीनी मजदूर भेदभाव पर, जर्मन आप्रवासी चुनौतियों पर।
  • भविष्य की चिंताएँ: होप व्यक्ति अपनी संस्कृति और ज़मीन के नुकसान पर, अफ्रीकी गुलाम समानता के संघर्ष पर, चीनी मजदूर बेहतर जीवन की उम्मीद पर, जर्मन अमीर बनने के लक्ष्य पर।

(छात्रों को इन बिंदुओं के आधार पर एक संवाद विकसित करना चाहिए, जिसमें प्रत्येक पात्र की विशिष्ट भाषा और दृष्टिकोण झलके।)

5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न तैयार कीजिए।

  1. आधुनिकीकरण के ब्रिटिश और रूसी मॉडलों के बीच मुख्य अंतरों का वर्णन करें।
  2. औपनिवेशिक नियंत्रण के विभिन्न प्रकार क्या थे जिनका उल्लेख पाठ्यपुस्तक के अंशों में किया गया है? उदाहरण सहित समझाएँ।
  3. नागरिक राष्ट्रवाद और जातीय/धार्मिक राष्ट्रवाद में क्या अंतर है? पाठ्यपुस्तक के अंशों में दिए गए उदाहरणों के आधार पर समझाएँ।
  4. अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासियों के भूमि तथा प्रकृति के प्रति दृष्टिकोण की यूरोपीय आप्रवासियों के दृष्टिकोण से तुलना करें। इन भिन्नताओं के क्या परिणाम हुए?
  5. यूरोपीय व्यापार का उत्तरी अमेरिकी मूल निवासियों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  6. ज्यां जैक रूसो, विलियम वर्ड्सवर्थ और थॉमस जेफरसन जैसे यूरोपीय विचारकों ने मूल निवासियों को कैसे देखा? उनके विचारों में क्या अंतर था?
  7. समझौतों और जबरन विस्थापन के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका का भौगोलिक रूप से विस्तार कैसे हुआ? इसमें मूल निवासियों की सहमति की क्या भूमिका थी?
  8. ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के लिए 'स्वप्नकाल' की अवधारणा का क्या महत्व था? यूरोपीय लोगों को इसे समझने में कठिनाई क्यों हुई?
  9. पाठ्यपुस्तक के अंशों के आधार पर यूरोपीय लोगों द्वारा मूल निवासियों के विस्थापन को सही ठहराने के लिए दिए गए तर्कों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
  10. जापान किस प्रकार उपनिवेशी नियंत्रण से मुक्त रहा और उसने आधुनिकीकरण का अपना विशिष्ट मार्ग कैसे विकसित किया?

6. अध्याय के अंत में बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश।

  • आधुनिक विश्व का निर्माण: 15वीं शताब्दी के मध्य से औद्योगिक क्रांति और राजनीतिक क्रांतियों जैसी घटनाओं ने आधुनिक विश्व की नींव रखी।
  • औद्योगीकरण के अलग रास्ते: ब्रिटेन पहला औद्योगिक राष्ट्र था, लेकिन हर देश ने औद्योगीकरण का अपना रास्ता अपनाया। रूस जैसे देशों में रेलवे और भारी उद्योग बाद में विकसित हुए।
  • उपनिवेशवाद के विभिन्न रूप: यूरोपीय देशों ने अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश बनाए। इसमें सेटलर उपनिवेश, सीधा नियंत्रण और अर्ध-उपनिवेश शामिल थे।
  • राष्ट्रवाद और नागरिकता: राष्ट्रवाद जन संप्रभुता पर आधारित एक आधुनिक अवधारणा है। नागरिक राष्ट्रवाद सभी को समान नागरिकता देता है, जबकि जातीय राष्ट्रवाद लोगों को जातीयता या धर्म के आधार पर परिभाषित करता है।
  • मूल निवासियों का विस्थापन: यूरोपीय आप्रवासियों के बसने से उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ। उनकी ज़मीनें समझौतों, खरीद या युद्ध के माध्यम से ले ली गईं, अक्सर उनकी सहमति के बिना।
  • भिन्न दृष्टिकोण: यूरोपीय लोगों ने मूल निवासियों को 'असभ्य' माना, जबकि मूल निवासियों के भूमि और प्रकृति के प्रति गहरे आध्यात्मिक संबंध थे और वे यूरोपीय लोगों के लालच को नहीं समझ पाते थे।
  • विस्थापन का औचित्य: यूरोपीय लोगों ने तर्क दिया कि मूल निवासी ज़मीन का 'अधिकतम उपयोग' नहीं करते, इसलिए उन्हें हटाया जा सकता है। उन्होंने उन्हें आलसी और 'मर-खपने लायक' भी कहा।
  • आधुनिकीकरण के विविध मॉडल: आधुनिकीकरण के कई रास्ते रहे हैं। जापान ने उपनिवेशी नियंत्रण से मुक्त होकर अपना विशिष्ट आधुनिकीकरण हासिल किया, जबकि चीन ने बाज़ार सिद्धांतों को अपनाकर आर्थिक शक्ति बनने का प्रयास किया।
  • आज का परिदृश्य: आज मूल निवासियों के इतिहास और संस्कृति को संग्रहालयों और लिखित कथाओं के माध्यम से समझने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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आशा है ये नोट्स आपको अध्याय को गहराई से समझने और परीक्षा की तैयारी करने में सहायक होंगे। शुभकामनाएँ!

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