NCERT-Class12-History-Chapter12-भारतीय संविधान का निर्माण: विस्तृत नोट्स और अभ्यास (अध्याय 12)-Revision notes

Team Successcurve
0
भारतीय संविधान का निर्माण: विस्तृत नोट्स और अभ्यास (अध्याय 12) | Self-Learning Guide

🇮🇳 अध्याय: भारतीय संविधान का निर्माण 📜

इस अध्याय में हम जानेंगे कि भारत का संविधान कैसे बना। आज़ादी के बाद हमारे सामने क्या चुनौतियाँ थीं, संविधान सभा कैसे बनी, उसमें क्या बहसें हुईं और किन सिद्धांतों पर सहमति बनी। यह अध्याय आपको हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता और उनके कठिन परिश्रम को समझने में मदद करेगा।

1. आज़ादी के समय की चुनौतियाँ 🌪️

भारत को आज़ादी मिली, लेकिन साथ ही आया विभाजन का दर्द। लाखों लोग अपना घर-बार छोड़कर दूसरी जगह जा रहे थे। मुस्लिम पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान की ओर, तो हिंदू और सिख पश्चिमी बंगाल और पूर्वी पंजाब की ओर जा रहे थे। इस दौरान रास्ते में बहुत हिंसा हुई और लाखों लोगों की जान चली गई। यह एक "निर्मम चुनाव का क्षण" था – या तो तुरंत मौत या जड़ों से उखड़ जाना।

एक और बड़ी चुनौती थी देशी रियासतों की समस्या। ब्रिटिश शासन के दौरान, उपमहाद्वीप का लगभग एक-तिहाई हिस्सा ऐसे नवाबों और राजाओं के नियंत्रण में था जिन्होंने ब्रिटिश ताज की अधीनता स्वीकार कर ली थी। उनके पास अपने राज्यों को चलाने की सीमित आज़ादी थी। जब अंग्रेज़ गए, तो इन रियासतों की संवैधानिक स्थिति बहुत अजीब हो गई। कुछ महाराजा तो "बहुत सारे टुकड़ों में बँटे भारत में स्वतंत्र सत्ता का सपना देख रहे थे"। इन रियासतों को नए राष्ट्र भारत में शामिल करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी।

2. संविधान सभा (Constituent Assembly) 🏛️

भारत का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया। प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस को सामान्य चुनाव क्षेत्रों में बड़ी जीत मिली, और मुस्लिम लीग को अधिकांश आरक्षित मुस्लिम सीटें मिलीं। लेकिन लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया और पाकिस्तान की मांग जारी रखी। समाजवादी भी शुरुआत में संविधान सभा से दूर रहे, क्योंकि वे इसे अंग्रेजों द्वारा बनाई गई संस्था मानते थे। उनका मानना था कि यह सभा स्वायत्त नहीं हो सकती। इन कारणों से, संविधान सभा के 82% सदस्य कांग्रेस पार्टी के थे

संविधान सभा का काम लगभग 3 साल चला। इस दौरान हुई बहसों के लिखित रिकॉर्ड 11 भारी-भरकम खंडों में छपे।

प्रमुख सदस्य और उनकी भूमिकाएँ: 🌟

  • संविधान सभा में कुछ प्रमुख सदस्य थे जैसे जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, बी.आर. अंबेडकर, सी. राजगोपालाचारी, और के.एम. मुंशी
  • डॉ. बी.आर. अंबेडकर संविधान के प्रारूप को सभा में पारित करवाने के लिए ज़िम्मेदार थे और प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष थे।
  • दो प्रशासनिक अधिकारियों ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण सहायता दी:
    • बी.एन. राव: वे भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे। उन्होंने अन्य देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का गहरा अध्ययन करके कई चर्चा पत्र तैयार किए थे।
    • एस.एन. मुखर्जी: वे मुख्य योजनाकार थे। मुखर्जी जटिल प्रस्तावों को स्पष्ट कानूनी भाषा में व्यक्त करने की क्षमता रखते थे।

3. मुख्य बहसें और संकल्पनाएँ 🗣️💡

संविधान सभा में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीर बहसें हुईं।

3.1 उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution) 🎯

13 दिसंबर 1946 को, जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने "उद्देश्य प्रस्ताव" पेश किया। यह एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था जिसमें स्वतंत्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी।

उद्देश्य प्रस्ताव के मुख्य आदर्श:

  • भारत को स्वतंत्र, संप्रभु गणराज्य घोषित करना।
  • नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का आश्वासन देना।
  • अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों, एवं दमित व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान करना।

नेहरू ने इस प्रस्ताव को प्रस्तुत करते हुए कहा कि उनकी नज़र उन ऐतिहासिक प्रयोगों की ओर जा रही है जिनमें अधिकारों के दस्तावेज़ तैयार किए गए थे, जैसे अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियाँ। लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सिर्फ नक़ल करने वाला नहीं है। भारत में शासन की जो व्यवस्था बनेगी, वह "हमारे लोगों के स्वभाव के अनुरूप और उनको स्वीकार्य होनी चाहिए"। पश्चिमी समाजों से सीखना ज़रूरी है, लेकिन भारत को अपने लिए उचित रास्ता रचनात्मक ढंग से सोचना होगा।

3.2 अधिकारों का निर्धारण: अल्पसंख्यकों और दमित वर्गों के अधिकार 🛡️

संविधान सभा में यह तय करना था कि नागरिकों के अधिकार कैसे निर्धारित हों। क्या उत्पीड़ित समूहों को विशेष अधिकार मिलने चाहिए? अल्पसंख्यकों के क्या अधिकार हों?

"अल्पसंख्यक" कौन हैं? विभिन्न दृष्टिकोण:

  • मुस्लिम लीग ने पृथक निर्वाचिका की मांग की। उनका तर्क था कि गैर-मुसलमान मुसलमानों की ज़रूरतें नहीं समझ सकते, और न ही उनका सही प्रतिनिधि चुन सकते हैं।
  • अधिकांश राष्ट्रवादी इस मांग के खिलाफ थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे "अंग्रेजों की शरारत" बताया जो लोगों को बाँटने के लिए थी। उन्होंने कहा कि किसी भी स्वतंत्र देश में पृथक निर्वाचिका नहीं है और विभाजन के बाद इसे जारी रखना सही नहीं होगा।
  • गोविंद वल्लभ पंत ने कहा कि पृथक निर्वाचिका का प्रस्ताव न केवल राष्ट्र के लिए, बल्कि अल्पसंख्यकों के लिए भी खतरनाक है। यह उन्हें स्थायी रूप से अलग-थलग कर देगा, कमज़ोर बना देगा, और शासन में प्रभावी हिस्सेदारी नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक हमेशा अल्पसंख्यक नहीं रहना चाहते, वे भी "एक दिन एक महान राष्ट्र का अभिन्न अंग बनने और उसकी नियति को निर्धारित व नियंत्रित करने का सपना देखते हैं"। पंत का मानना था कि सभी को नागरिक के रूप में सोचना चाहिए, न कि समुदाय के रूप में, क्योंकि "महत्व केवल नागरिक का होता है"।
  • एन.जी. रंगा ने कहा कि असली अल्पसंख्यक हिंदू, सिख या मुस्लिम नहीं हैं, बल्कि इस देश की जनता है जो "इतनी दबी-कुचली और इतनी उत्पीड़ित है कि अभी तक साधारण नागरिक के अधिकारों का लाभ भी नहीं उठा पा रही है"। उन्होंने आदिवासी इलाकों और गांवों में गरीब किसानों और आदिवासियों के शोषण का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि असली सुरक्षा इन्हीं लोगों को मिलनी चाहिए।
  • जयपाल सिंह ने आदिवासियों की स्थिति पर बात की। उन्होंने कहा कि आदिवासी संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं, लेकिन उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें उनकी ज़मीनों और जंगलों से बेदखल कर दिया गया है। उन्होंने आदिवासियों और शेष समाज के बीच मौजूद भावनात्मक और भौतिक फ़ासले को खत्म करने की बात कही और कहा कि हमें उनके साथ "घुलना-मिलना" चाहिए। उन्होंने पृथक निर्वाचिका का समर्थन नहीं किया, लेकिन विधायिका में आदिवासियों के लिए सीटों का आरक्षण ज़रूरी बताया।
  • दलित जातियों (Depressed Castes) के सदस्यों ने भी अपने अधिकारों की बात की। जे. नागप्पा ने कहा कि हरिजन संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं (आबादी का 20-25%)। उनकी पीड़ा का कारण यह है कि उन्हें समाज व राजनीति के हाशिए पर रखा गया है, न कि उनकी संख्या कम है। उन्हें शिक्षा और शासन में हिस्सेदारी नहीं मिली। मध्य प्रांत के श्री के.जे. खांडेकर ने कहा, "हमें हज़ारों साल तक दबाया गया है"
  • विभाजन की हिंसा के बाद, अंबेडकर ने भी पृथक निर्वाचिका की मांग छोड़ दी थी। संविधान सभा ने अंततः सुझाव दिया कि अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए, हिंदू मंदिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाए, और निचली जातियों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।
  • हंसा मेहता ने महिलाओं के लिए न्याय की मांग की, आरक्षित सीटों या पृथक चुनाव क्षेत्र की नहीं। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय और समानता की मांग की।
  • दक्षायणी वेलायुधन ने कहा कि दलितों को "सब तरह की सुरक्षाएँ नहीं चाहिए", बल्कि "नैतिक सुरक्षा का आवरण चाहिए"। उन्होंने अपनी "सामाजिक विकलांगताओं का फौरन ख़ात्मा" मांगा।

4. केंद्र और राज्यों के संबंध (संघवाद - Federalism) 🗺️

संविधान के मसविदे में विषयों की तीन सूचियाँ बनाई गईं:

  • केंद्रीय सूची: विषय केवल केंद्र सरकार के अधीन।
  • राज्य सूची: विषय केवल राज्य सरकारों के अंतर्गत।
  • समवर्ती सूची: विषय केंद्र और राज्य, दोनों की साझा ज़िम्मेदारी।

लेकिन अन्य संघों की तुलना में, बहुत ज़्यादा विषयों को केंद्रीय नियंत्रण में रखा गया। समवर्ती सूची में भी प्रांतों की इच्छाओं की उपेक्षा की गई। खनिज पदार्थों और प्रमुख उद्योगों पर भी केंद्र को नियंत्रण दिया गया। अनुच्छेद 356 में गवर्नर की सिफारिश पर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के सारे अधिकार लेने का अधिकार दिया गया।

इस पर बहस हुई कि केंद्र को कितना शक्तिशाली बनाया जाए:

  • राज्यों के लिए अधिक शक्ति के समर्थक: मद्रास के के. संथानम ने कहा कि केंद्र को ज़रूरत से ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ देने से वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएगा। कुछ ज़िम्मेदारियों को राज्यों को सौंपने से केंद्र ज़्यादा मज़बूत हो सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि वित्तीय प्रावधान प्रांतों को कमज़ोर बना देंगे क्योंकि ज़्यादातर कर केंद्र के पास होंगे। राज्यों के पास विकास परियोजनाओं के लिए पैसा नहीं होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर शक्तियों का वितरण ठीक से नहीं हुआ तो प्रांत "केंद्र के विरुद्ध" उठ खड़े होंगे।
  • शक्तिशाली केंद्र के समर्थक: कई सदस्यों ने विभाजन की हिंसा और देश के टुकड़े होने का हवाला देते हुए एक शक्तिशाली केंद्र की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। अंबेडकर ने "एक शक्तिशाली और एकीकृत केंद्र" चाहा जो 1935 के गवर्नमेंट एक्ट से भी ज़्यादा शक्तिशाली हो। गोपालस्वामी अय्यर ने ज़ोर देकर कहा कि "केंद्र ज़्यादा से ज़्यादा मज़बूत होना चाहिए"। संयुक्त प्रांत के बालकृष्ण शर्मा ने बताया कि एक शक्तिशाली केंद्र देश के हित में योजना बनाने, आर्थिक संसाधन जुटाने, सुशासन स्थापित करने और विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए ज़रूरी है।

अंततः, औपनिवेशिक शासन द्वारा थोपी गई एकल व्यवस्था और विभाजन के बाद की अराजकता को देखते हुए, संविधान में केंद्र के अधिकारों की ओर स्पष्ट झुकाव दिखाया गया। एक मजबूत केंद्र को अब अराजकता पर नियंत्रण और आर्थिक विकास की योजना बनाने के लिए ज़रूरी माना गया।

5. राष्ट्र की भाषा (National Language) 🗣️🌐

विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले देश में एक राष्ट्रीय भाषा कैसे तय हो, यह एक बड़ी चुनौती थी। इस मुद्दे पर कई महीनों तक गरमागरम बहस हुई।

  • हिंदुस्तानी के समर्थक: तीस के दशक तक कांग्रेस मान चुकी थी कि हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा बनाया जाए। महात्मा गांधी का मानना था कि लोगों को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे वे आसानी से समझ सकें। हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिंदुस्तानी भारत की बड़ी आबादी की भाषा थी। यह विविध संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई थी। गांधी को लगता था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विभिन्न समुदायों के बीच संवाद के लिए आदर्श है और हिंदुओं व मुसलमानों को, उत्तर व दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है। अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले, गांधी ने कहा कि हिंदुस्तानी न तो संस्कृतनिष्ठ हिंदी होनी चाहिए और न ही फारसीनिष्ठ उर्दू। यह दोनों का सुंदर मिश्रण हो। इसे क्षेत्रीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं से भी शब्द लेने चाहिए ताकि यह एक समृद्ध और शक्तिशाली भाषा बने।
  • हिंदी के समर्थक: संयुक्त प्रांत के कांग्रेसी सदस्य आर.वी. धुलेकर ने ज़ोर देकर कहा कि हिंदी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाए। जब किसी ने कहा कि सभी हिंदी नहीं समझते, तो धुलेकर ने कहा कि जो हिंदुस्तानी नहीं जानते, वे सभा की सदस्यता के पात्र नहीं हैं और उन्हें चले जाना चाहिए।
  • वर्चस्व का भय और विरोध: धुलेकर के बोलने के अंदाज़ से कई सदस्यों को परेशानी हुई। मद्रास की सदस्य श्रीमती जी. दुर्गाबाई ने चिंता व्यक्त की कि राष्ट्रीय भाषा का सवाल अत्यधिक विवादास्पद बन गया है। गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों को लगने लगा कि यह लड़ाई हिंदी भाषी क्षेत्रों का रवैया दरअसल राष्ट्र की साझा संस्कृति पर अन्य भाषाओं के प्रभाव को रोकने की लड़ाई है।
  • आपसी सामंजस्य की अपील: बहस तेज होने पर कई सदस्यों ने आपसी सामंजस्य और सम्मान की भावना की अपील की। शंकरराव देव ने कहा कि अगर हिंदी के लिए समर्थन चाहिए तो ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे संदेह पैदा हो। टी.ए. रामलिंगम चेट्टियार ने कहा कि यदि हम एक एकीकृत राष्ट्र बनाना चाहते हैं तो आपसी सामंजस्य होना चाहिए और लोगों पर चीजें थोपी नहीं जानी चाहिए।

6. संविधान की मुख्य विशेषताएँ ✨

  • सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise): भारतीय संविधान की एक केंद्रीय विशेषता प्रत्येक वयस्क भारतीय को मतदान का अधिकार देना था। अन्य लोकतंत्रों में यह अधिकार धीरे-धीरे मिला, लेकिन भारत में यह शुरू से ही दिया गया। ✅
  • धर्मनिरपेक्षता (Secularism): संविधान की प्रस्तावना में सीधे 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द का ज़िक्र 1976 में 42वें संशोधन द्वारा किया गया, लेकिन संविधान में इसके आदर्शों को प्रारंभ से ही शामिल किया गया था। मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) के ज़रिए धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28), सांस्कृतिक व शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29, 30), और समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14, 16, 17) दिए गए। राज्य ने सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार की गारंटी दी। राज्य ने खुद को विभिन्न धार्मिक समुदायों से दूर रखने की कोशिश की और स्कूलों व कॉलेजों में अनिवार्य धार्मिक शिक्षा पर रोक लगाई। रोजगार में धार्मिक भेदभाव को अवैध ठहराया गया। 🕊️

संविधान का निर्माण गहन बहसों और चर्चाओं से हुआ। इसके कई प्रावधान लेन-देन (समझौते) की प्रक्रिया से बने।

7. पुस्तक में दिए गए उदाहरणों की व्याख्या (स्रोत और चित्र) 🖼️📜

चित्र 12.1: नेहरू संविधान सभा में भाषण देते हुए 🎤
यह चित्र 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत करते समय का है। यह संविधान निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत का एक महत्वपूर्ण क्षण दर्शाता है।

चित्र 12.2: संविधान सभा के सदस्य 👥
यह चित्र संविधान सभा के सदस्यों को बहस करते हुए दिखाता है। यह दिखाता है कि कैसे विभिन्न नेता, जो प्रांतीय चुनावों से आए थे, संविधान निर्माण के महत्वपूर्ण कार्य में लगे थे।

चित्र 12.3: संविधान सभा का एक और दृश्य 🏛️
यह चित्र भी संविधान सभा की कार्यवाही का दृश्य है, जो विभिन्न मतों और चर्चाओं के माहौल को दर्शाता है।

चित्र 12.5: बी.आर. अंबेडकर ✍️
यह चित्र डॉ. बी.आर. अंबेडकर को हिंदू कोड बिल पर चर्चा का संचालन करते हुए दिखाता है। अंबेडकर संविधान के प्रारूप को पारित करवाने के लिए ज़िम्मेदार थे और प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।

स्रोत 1 और 6: नेहरू का उद्देश्य प्रस्ताव भाषण और टेनिस कोर्ट की शपथ का चित्र (स्रोत 7)

नेहरू के भाषण (स्रोत 1) में वे अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियों का ज़िक्र करते हैं, जिनमें अधिकारों के दस्तावेज़ बने थे। फ्रांस की क्रांति के दौरान जब प्रतिनिधियों को हॉल में घुसने नहीं दिया गया था, तो उन्होंने एक टेनिस कोर्ट में इकट्ठा होकर शपथ ली थी कि वे संविधान बनने तक अलग नहीं होंगे, जिसे 'टेनिस कोर्ट की शपथ' (स्रोत 7 में चित्र) के नाम से जाना जाता है। नेहरू इन ऐतिहासिक संघर्षों से प्रेरणा लेने और भारत के संविधान निर्माण को मुक्ति व स्वतंत्रता के एक लंबे संघर्ष का हिस्सा बताते हैं।

स्रोत 3 और चित्र 12.8: पटेल और लाहिरी के विचार, भारतीय नेता एटली के साथ लंदन में

सोमनाथ लाहिरी (स्रोत 3) ने नेहरू के इस कथन का स्वागत किया कि भारतीय जनता अंग्रेजों द्वारा थोपी गई कोई चीज स्वीकार नहीं करेगी, लेकिन उन्होंने कहा कि जबरदस्ती तो अभी हो रही है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा ब्रिटिश बंदूकों, सेना और वित्तीय शिकंजे के साए में है और सत्ता अभी भी अंग्रेजों के हाथ में है। वे चाहते थे कि तुरंत स्वतंत्रता की घोषणा हो और अंतरिम सरकार दुश्मन (ब्रिटिश साम्राज्यवाद) से लड़ने का आह्वान करे।

सरदार वल्लभ भाई पटेल (स्रोत 12 - अध्याय में इसे स्रोत 12 के रूप में संदर्भित किया गया है, मूल पाठ में यहाँ स्रोत संख्या स्पष्ट नहीं है, परन्तु यह पटेल के पृथक निर्वाचिका पर विचार से सम्बंधित है) ने पृथक निर्वाचिका को अंग्रेजों द्वारा "शरारत का बीज" बोने जैसा बताया जो विभाजन का कारण बना।

चित्र 12.8 में लियाकत अली, मुहम्मद अली जिन्ना, बलदेव सिंह और पैथिक-लॉरेंस को 1946 में एटली के साथ लंदन में वार्ता करते हुए दिखाया गया है। यह वार्ता असफल रही।

स्रोत 4 और 5: गोविंद वल्लभ पंत के विचार

गोविंद वल्लभ पंत (स्रोत 4 और 5) ने पृथक निर्वाचिका का कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे अल्पसंख्यकों के लिए आत्मघाती बताया। उन्होंने कहा कि यह अल्पसंख्यकों को अलग-थलग कर देगा और वे प्रभावी योगदान नहीं दे पाएंगे। उन्होंने 'खंडित निष्ठा' (सामुदायिक निष्ठा बनाम राज्य निष्ठा) का विरोध किया और कहा कि सारी निष्ठाएँ केवल राज्य पर केंद्रित होनी चाहिए।

स्रोत 8: हंसा मेहता और दक्षायणी वेलायुधन के विचार

हंसा मेहता और दक्षायणी वेलायुधन (स्रोत 8) महिलाओं और दमित जातियों के अधिकारों के लिए बोल रही थीं। हंसा मेहता ने आरक्षित सीटों के बजाय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की मांग की। दक्षायणी वेलायुधन ने दमितों के लिए नैतिक सुरक्षा और सामाजिक अक्षमताओं के तत्काल खात्मे की बात कही।

स्रोत 10: गांधी के राष्ट्रीय भाषा पर विचार

इस स्रोत में गांधी हिंदुस्तानी को एक मिश्रित, समृद्ध और शक्तिशाली भाषा के रूप में परिभाषित कर रहे हैं जो विभिन्न भाषाओं से शब्द ले और मानवीय विचारों को व्यक्त कर सके। वे हिंदी या उर्दू से खुद को बांधने को देशभक्ति और समझदारी के खिलाफ अपराध मानते हैं।

8. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर ✍️

(लगभग 100-150 शब्दों में)

1. उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शों पर ज़ोर दिया गया था?

उद्देश्य प्रस्ताव, जिसे जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में प्रस्तुत किया था, स्वतंत्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा थी। इसमें भारत को एक स्वतंत्र, संप्रभु गणराज्य घोषित करने का लक्ष्य रखा गया। प्रस्ताव में सभी नागरिकों के लिए न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक), समानता (प्रतिष्ठा और अवसर की) और स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की) सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया गया था। इसके अतिरिक्त, अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों, तथा दमित व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक प्रावधानों का वादा किया गया था। यह प्रस्ताव भारत के भविष्य के संविधान के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत और एक पवित्र संकल्प के रूप में कार्य करने वाला था।

2. विभिन्न समूह 'अल्पसंख्यक' शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे?

संविधान सभा में 'अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा पर व्यापक मतभेद थे। मुस्लिम लीग और कुछ अन्य धार्मिक समूह, विशेषकर मुसलमानों, को धार्मिक अल्पसंख्यक मानते थे और उनके राजनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए पृथक निर्वाचिका जैसी व्यवस्थाओं की मांग कर रहे थे। इसके विपरीत, राष्ट्रवादी नेता जैसे गोविंद वल्लभ पंत ने इस प्रकार की सांप्रदायिक परिभाषा का विरोध किया और इसे राष्ट्र तथा स्वयं अल्पसंख्यकों के लिए हानिकारक बताया। एन.जी. रंगा जैसे सदस्यों ने 'असली अल्पसंख्यक' की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए कहा कि ये धार्मिक समूह नहीं, बल्कि देश की गरीब, दबी-कुचली और उत्पीड़ित जनता (जैसे आदिवासी और ग्रामीण गरीब) है, जिन्हें बुनियादी नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे। जयपाल सिंह ने आदिवासियों को संख्या में कम न होते हुए भी, ऐतिहासिक अन्याय और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के कारण, संरक्षण की आवश्यकता वाला समूह माना। दलित जातियों के प्रतिनिधियों ने भी स्वयं को सामाजिक उत्पीड़न का शिकार बताया, भले ही वे संख्यात्मक रूप से अल्पसंख्यक न हों, और उनके लिए विशेष सुरक्षा उपायों की मांग की।

3. प्रांतों के लिए ज़्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए थे?

प्रांतों के लिए अधिक शक्तियों के पक्ष में मुख्य तर्क के. संथानम जैसे सदस्यों द्वारा दिए गए। उनका मानना था कि शक्तियों का अत्यधिक केंद्रीकरण केंद्र को अक्षम बना सकता है; यदि केंद्र के पास बहुत अधिक जिम्मेदारियां होंगी, तो वह प्रभावी ढंग से शासन नहीं कर पाएगा। कुछ शक्तियों और जिम्मेदारियों को राज्यों को सौंपने से वास्तव में केंद्र अधिक मजबूत हो सकता है। उन्होंने वित्तीय प्रावधानों पर विशेष चिंता व्यक्त की, जहाँ अधिकांश कर एकत्र करने का अधिकार केंद्र के पास था, जिससे प्रांत आर्थिक रूप से कमजोर और केंद्र पर आश्रित हो जाएंगे। संथानम ने आगाह किया कि यदि राज्य विकास परियोजनाओं के लिए धन जुटाने में असमर्थ रहे और उन्हें हर छोटी चीज के लिए केंद्र से 'भिक्षा' मांगनी पड़ी, तो इससे प्रांतों में असंतोष बढ़ेगा और वे "केंद्र के विरुद्ध" हो सकते हैं, जिससे अंततः राष्ट्रीय एकता कमजोर होगी।

4. महात्मा गांधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिंदुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?

महात्मा गांधी का दृढ़ विश्वास था कि भारत की राष्ट्रीय भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसे देश के अधिकांश लोग आसानी से समझ और बोल सकें। उनके अनुसार, हिंदुस्तानी, जो हिंदी और उर्दू का एक सहज मिश्रण थी, इस भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त थी क्योंकि यह भारत की एक बड़ी आबादी द्वारा बोली और समझी जाती थी। यह भाषा विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं के संपर्क से स्वाभाविक रूप से विकसित हुई थी, जिसमें फारसी, अरबी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्द समाहित थे। गांधीजी इसे एक बहुसांस्कृतिक और समावेशी भाषा मानते थे जो विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से हिंदुओं और मुसलमानों, तथा उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों के बीच एक सेतु का काम कर सकती थी, जिससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होती। वे इसे एक जीवंत और समृद्ध भाषा के रूप में देखते थे जो जटिल विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम हो, न कि किसी एक भाषा के शुद्धतावादी रूप में बंधी हो।

9. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नए अभ्यास प्रश्न 🧠❓

  1. स्वतंत्रता के समय भारत के सामने विभाजन और देशी रियासतों को लेकर क्या मुख्य चुनौतियाँ थीं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  2. संविधान सभा के गठन और संरचना पर टिप्पणी लिखिए। इसमें कांग्रेस पार्टी का क्या प्रभाव था और अन्य समूहों की क्या स्थिति थी?
  3. संविधान निर्माण की प्रक्रिया में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के अतिरिक्त बी.एन. राव और एस.एन. मुखर्जी का क्या विशिष्ट योगदान था?
  4. संविधान सभा में पृथक निर्वाचिका के विरोध में सरदार वल्लभ भाई पटेल और गोविंद वल्लभ पंत द्वारा दिए गए प्रमुख तर्कों का विश्लेषण कीजिए।
  5. एन.जी. रंगा ने 'असली अल्पसंख्यक' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया और इसके पीछे उनका क्या तर्क था? समकालीन भारत में इस तर्क की प्रासंगिकता पर विचार करें।
  6. दलित जातियों (दबाए गए वर्ग) के सदस्यों ने अपनी स्थिति और अधिकारों के बारे में संविधान सभा में क्या विचार रखे? उनकी मांगों का क्या परिणाम हुआ?
  7. केंद्र सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाने के पक्ष में संविधान सभा में क्या दलीलें दी गईं? क्या आपको लगता है कि विभाजन की पृष्ठभूमि ने इन दलीलों को मजबूत किया?
  8. राष्ट्रीय भाषा पर बहस के दौरान आर.वी. धुलेकर और जी. दुर्गाबाई के विचारों में क्या मौलिक अंतर था? इस बहस से भाषा नीति को लेकर क्या दीर्घकालिक चिंताएँ सामने आईं?
  9. संविधान सभा में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को लेकर क्या आम सहमति थी? यह तत्कालीन विश्व के अन्य लोकतंत्रों में मताधिकार के विकास से किस प्रकार भिन्न था?
  10. भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को किन विशिष्ट प्रावधानों के माध्यम से स्थापित किया गया है, भले ही 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द मूल प्रस्तावना में नहीं था?

10. पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश 📝

  • आज़ादी के समय भारत को विभाजन की त्रासदी, शरणार्थी संकट और देशी रियासतों के विलय जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • भारत का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया, जिसमें विभिन्न विचारधाराओं के प्रतिनिधि शामिल थे, यद्यपि कांग्रेस का बहुमत था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष, तथा डॉ. बी.आर. अंबेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। बी.एन. राव और एस.एन. मुखर्जी जैसे अधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • नेहरू का उद्देश्य प्रस्ताव संविधान के मूल आदर्शों (स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य, न्याय, समानता, स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा) को परिभाषित करता था।
  • नागरिकों के अधिकारों पर गहन बहस हुई, खासकर अल्पसंख्यकों और दमित वर्गों के लिए। पृथक निर्वाचिका का अधिकांश नेताओं ने विरोध किया और इसके स्थान पर संयुक्त निर्वाचिका के तहत विधायिका और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का समर्थन किया गया। 'अल्पसंख्यक' की परिभाषा पर विभिन्न मत थे।
  • केंद्र-राज्य संबंधों पर बहस में, विभाजन की पृष्ठभूमि और देश की एकता बनाए रखने की आवश्यकता को देखते हुए, प्रांतों के लिए अधिक स्वायत्तता की मांगों के बावजूद, एक शक्तिशाली केंद्र की स्थापना की गई। विषयों को केंद्रीय, राज्य और समवर्ती सूचियों में विभाजित किया गया।
  • राष्ट्रीय भाषा के मुद्दे पर हिंदुस्तानी (गांधी द्वारा समर्थित) और हिंदी (कुछ सदस्यों द्वारा समर्थित) के बीच तीव्र बहस हुई, जिससे गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रभुत्व का भय पैदा हुआ। अंततः हिंदी को राजभाषा और अंग्रेजी को सहयोगी राजभाषा का दर्जा मिला।
  • संविधान की प्रमुख विशेषताओं में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (सभी वयस्कों को मतदान का अधिकार) और धर्मनिरपेक्षता (राज्य द्वारा सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और धार्मिक स्वतंत्रता) शामिल हैं।
  • संविधान का निर्माण विभिन्न विचारों, गहन चर्चाओं, वाद-विवाद और अंततः आम सहमति एवं समझौतों की एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया का परिणाम था।

प्यारे विद्यार्थियों, इन नोट्स को ध्यान से पढ़ें। महत्वपूर्ण परिभाषाओं और संकल्पनाओं को समझें। उदाहरणों (चित्रों और उद्धरणों) के माध्यम से बहसों के संदर्भ को पकड़ने का प्रयास करें। अभ्यास प्रश्नों के उत्तर लिखकर देखें। नए प्रश्न आपको अध्याय के विभिन्न पहलुओं पर सोचने में मदद करेंगे। संक्षिप्त सारांश अंतिम समय में दोहराने के लिए उपयोगी होगा।

यह अध्याय आपको बताता है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने कितनी चुनौतियों का सामना करते हुए और कितनी सोच-विचार के बाद भारत का संविधान बनाया। इसे पढ़कर आपको अपने देश के संविधान और उसके निर्माताओं के प्रति गर्व और सम्मान का अनुभव होगा। शुभकामनाएं! 🌟📚

भारतीय संविधान का निर्माण, संविधान सभा, उद्देश्य प्रस्ताव, भारत का संविधान, कक्षा 12 इतिहास, बिहार बोर्ड इतिहास, भारतीय संविधान कैसे बना, संविधान सभा के सदस्य, डॉ. बी.आर. अंबेडकर की भूमिका संविधान निर्माण में, जवाहरलाल नेहरू और उद्देश्य प्रस्ताव, संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकार, पृथक निर्वाचिका का विरोध, संविधान में केंद्र राज्य संबंध, भारत की राष्ट्रभाषा पर बहस, भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान, देशी रियासतों का विलय और संविधान, संविधान निर्माण की चुनौतियाँ, बिहार बोर्ड कक्षा 12 इतिहास अध्याय 12, भारतीय संविधान निर्माण नोट्स, संविधान सभा की प्रमुख बहसें, Making of Indian Constitution in Hindi for Bihar Board, Constituent Assembly of India in Hindi, Objective Resolution by Nehru in Hindi

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!