अध्याय: महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन - सविनय अवज्ञा और उससे आगे
यह अध्याय हमें महात्मा गांधी के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश और उनके द्वारा शुरू किए गए प्रमुख आंदोलनों के बारे में बताता है। इन नोट्स का उद्देश्य अध्याय की महत्वपूर्ण बातों को सरल भाषा में समझाना है।
1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या:
गांधी जी का भारत आगमन
मोहनदास करमचंद गांधी जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका में दो दशक बिताने के बाद भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में, वह एक वकील के रूप में गए थे, लेकिन बाद में वहां के भारतीय समुदाय के नेता बन गए। इतिहासकार चंद्रन देवनेसन के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका ने ही गांधी जी को 'महात्मा' बनाया।
दक्षिण अफ्रीका में अनुभव
दक्षिण अफ्रीका में, महात्मा गांधी ने पहली बार सत्याग्रह नामक अहिंसक विरोध की अपनी विशिष्ट तकनीक का उपयोग किया। उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव बढ़ाने का प्रयास किया और उच्च जातीय भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के लिए चेतावनी दी।
1915 में भारत की स्थिति
जब महात्मा गांधी 1915 में भारत आए, तब का भारत 1893 की तुलना में अपेक्षाकृत भिन्न था, जब वे यहां से गए थे। यह अभी भी एक ब्रिटिश उपनिवेश था, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से अधिक सक्रिय हो गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएं अधिकांश प्रमुख शहरों और कस्बों में थीं। 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन ने व्यापक रूप से मध्यम वर्गों के बीच अपनी अपील का विस्तार किया था। इस आंदोलन ने कुछ प्रमुख नेताओं को जन्म दिया, जैसे बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय, जिन्हें 'लाल, बाल और पाल' के नाम से जाना जाता था।
उदारवादी और उग्रवादी
जहां 'लाल, बाल, पाल' जैसे नेता औपनिवेशिक शासन के प्रति लड़ाकू विरोध का समर्थन करते थे, वहीं उदारवादियों का एक समूह क्रमिक और लगातार प्रयास का समर्थक था। इन उदारवादियों में गोपाल कृष्ण गोखले (गांधी जी के राजनीतिक परामर्शदाता) और मोहम्मद अली जिन्ना शामिल थे।
प्रारंभिक आंदोलन (चंपारण, अहमदाबाद, खेड़ा)
चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा में की गई पहल से गांधी जी एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में उभरे जिनमें गरीबों के लिए गहरी सहानुभूति थी। ये सभी स्थानीय संघर्ष थे।
रॉलेट एक्ट का विरोध
1919 में, औपनिवेशिक शासकों ने रॉलेट एक्ट जैसा मुद्दा पेश किया, जिससे गांधी जी अधिक व्यापक आंदोलन खड़ा कर सकते थे। प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान, अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जांच के कारावास की अनुमति दे दी थी। सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिशों के आधार पर इन कठोर उपायों को जारी रखा गया। इसके जवाब में, गांधी जी ने देश भर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक अभियान चलाया। उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में बंद के समर्थन में दुकानों और स्कूलों के बंद होने के कारण जीवन लगभग थम गया था। पंजाब में विशेष रूप से कड़ा विरोध हुआ। पंजाब जाते समय गांधी जी को कैद कर लिया गया।
असहयोग आंदोलन
गांधी जी ने असहयोग को खिलाफत आंदोलन के साथ मिलाने की आशा की थी ताकि भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय - हिंदू और मुसलमान - मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत कर सकें। इन आंदोलनों ने लोकप्रिय कार्रवाई के प्रवाह को मुक्त कर दिया, जो औपनिवेशिक भारत में बिल्कुल अभूतपूर्व था। असहयोग को शांति की दृष्टि से नकारात्मक, किंतु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक माना गया। इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग और स्व-अनुशासन आवश्यक थे। यह स्वशासन के लिए एक प्रशिक्षण था।
खिलाफत आंदोलन
खिलाफत आंदोलन (1919-1920) मोहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आंदोलन था। इसकी मांगें थीं कि पहले के ओटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की सुल्तान या खलीफा का नियंत्रण बना रहे, जज़ीरात-उल-अरब (अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन) इस्लामी संप्रभुता के अधीन रहें, और खलीफा के पास इतना क्षेत्र हो कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित करने में योग्य बन सके। कांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और गांधी जी ने इसे असहयोग आंदोलन के साथ मिलाने की कोशिश की।
आंदोलन में विभिन्न वर्गों की भागीदारी
असहयोग आंदोलन के दौरान, छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक वर्ग हड़ताल पर चला गया। देहात भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था। उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना की। अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए। कुमाऊं के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। इन विरोध आंदोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवज्ञा करते हुए कार्यान्वित किया गया। किसान, श्रमिक और अन्य ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की और औपनिवेशिक शासन के साथ 'असहयोग' के लिए अपने हितों से मेल खाते तरीकों का इस्तेमाल किया।
चौरी-चौरा घटना और आंदोलन की वापसी
फरवरी 1922 में, किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी। इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस कार्रवाई से गांधी जी को आंदोलन तत्काल वापस लेना पड़ा।
गांधी जी की गिरफ्तारी
असहयोग आंदोलन के दौरान हजारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया। स्वयं गांधी जी को मार्च 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी जांच की कार्यवाही की अध्यक्षता करने वाले जज जस्टिस सी. एन. ब्रूमफील्ड ने उन्हें सजा सुनाते समय एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। जज ने टिप्पणी की कि गांधी जी एक महान देशभक्त और नेता हैं, उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन वाले व्यक्ति हैं, यहां तक कि जो लोग राजनीति में उनसे भिन्न मत रखते हैं, वे भी उन्हें ऐसा देखते हैं। क्योंकि गांधी जी ने कानून की अवहेलना की थी, उन्हें 6 वर्षों की जेल की सजा सुनाना आवश्यक था। लेकिन जज ब्रूमफील्ड ने कहा कि यदि भारत में घटनाओं के कारण सरकार के लिए सजा कम करना और उन्हें मुक्त करना संभव हुआ, तो उनसे ज्यादा कोई प्रसन्न नहीं होगा।
गांधी जी की छवि
इतिहासकार शाहिद अमीन ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के मन में महात्मा गांधी की कल्पना को खोजने की कोशिश की है, स्थानीय प्रेस द्वारा ज्ञात रिपोर्टों और अफवाहों के जरिये। फरवरी 1921 में जब वे इस क्षेत्र से गुजर रहे थे, तो हर जगह भीड़ ने उनका बड़े प्यार से स्वागत किया। गांधी जी जहां भी गए, वहीं उनकी चमत्कारी शक्तियों की अफवाहें फैल गईं। उन्हें एक उद्धारक के समान देखा जाता था जो गरीबों, विशेषकर किसानों को ऊंची करों और दमनकारी अधिकारियों से सुरक्षा देते थे। उनकी अपील को उनकी सात्विक जीवन शैली और धोती तथा चरखा जैसे प्रतीकों के विवेकपूर्ण प्रयोग से बहुत बल मिला।
नमक सत्याग्रह
नमक एकाधिकार एक चौतरफा अभिशाप था। यह लोगों को मूल्यवान सुलभ ग्राम उद्योग से वंचित करता था। यह प्रकृति द्वारा बहुत आयत में उत्पादित संपदा का अत्यधिक विनाश करता था। इस विनाश का अर्थ है और अधिक राष्ट्रीय खर्च। चौथा और इस मूर्खता का चरमोत्कर्ष भूखे लोगों से हजारों प्रतिशत से अधिक की उगाही है। गांधी जी ने नमक कानून के खिलाफ अभियान चलाया। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें गांधी जी भी शामिल थे।
नमक यात्रा का महत्व
नमक यात्रा कम से कम तीन कारणों से उल्लेखनीय थी:
- पहला, यही घटना थी जिसके चलते महात्मा गांधी दुनिया की नजर में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी।
- दूसरा, यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गांधी जी को समझाया कि वे अपने आंदोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें।
- तीसरा और संभवतः सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह एहसास हुआ कि अब उनका राज बहुत दिन टिक नहीं सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।
गोलमेज सम्मेलन
लंदन में हुआ यह सम्मेलन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका, इसलिए गांधी जी को खाली हाथ लौटना पड़ा। भारत लौटने पर उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया।
पृथक निर्वाचिका पर गांधी जी का मत
गोलमेज सम्मेलन के दौरान, महात्मा गांधी ने दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचिका प्रस्ताव के खिलाफ अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि इससे उनकी दासता स्थायी रूप ले लेगी और उनके प्रति कलंक का यह भाव और मजबूत हो जाएगा। जरूरत अस्पृश्यता के विनाश की है।
भारत छोड़ो आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन एक जनआंदोलन था जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे। इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया, जिन्होंने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया।
गांधी जी और जिन्ना
जिस दौरान कांग्रेस के नेता जेल में थे, उसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फैलाने में लगे थे। जून 1944 में, गांधी जी को रिहा कर दिया गया और उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच फासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार बात की।
चुनाव (1946)
1946 की शुरुआत में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव कराए गए। 'सामान्य' श्रेणी में कांग्रेस को भारी सफलता मिली। मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। राजनीतिक ध्रुवीकरण पूरा हो चुका था।
कैबिनेट मिशन और प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस
1946 की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत आया, जिसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक संघीय व्यवस्था पर राज़ी करने का प्रयास किया। यह प्रयास विफल रहा। वार्ता टूट जाने के बाद, जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की मांग के समर्थन में एक 'प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' का आह्वान किया। इसके लिए 16 अगस्त 1946 का दिन तय किया गया था। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से शुरू होकर ग्रामीण बंगाल, बिहार और संयुक्त प्रांत व पंजाब तक फैल गई।
विभाजन और शांति स्थापना का प्रयास
सितंबर और अक्टूबर के दौरान, गांधी जी पीड़ितों को सांत्वना देते हुए अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों के चक्कर लगा रहे थे। उन्होंने सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों से अतीत को भुलाकर भाईचारे का हाथ बढ़ाने और शांति से रहने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
कांग्रेस और अल्पसंख्यक अधिकार
गांधी जी और नेहरू के आग्रह पर, कांग्रेस ने 'अल्पसंख्यकों के अधिकारों' पर एक प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस ने कभी 'दो राष्ट्र सिद्धांत' स्वीकार नहीं किया था। विभाजन पर मजबूरी में मंजूरी देने के बाद भी, उसका दृढ़ विश्वास था कि भारत बहुत सारे धर्मों और नस्लों का देश है और उसे ऐसा ही बनाए रखा जाना चाहिए। भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जहां सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे और धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना राज्य से संरक्षण का अधिकार होगा। कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर संभव रक्षा का आश्वासन दिया।
2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या:
सत्याग्रह: अहिंसक प्रतिरोध की विशिष्ट तकनीक, जिसका पहली बार महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में इस्तेमाल किया। यह सच्चाई और अहिंसा पर आधारित एक आंदोलन है।
महात्मा: यह उपाधि दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के कार्यों के कारण उन्हें मिली। यह महान आत्मा का प्रतीक है।
उदारवादी: राजनीतिक समूह जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ क्रमिक और लगातार संवैधानिक प्रयासों का समर्थक था।
स्वदेशी आंदोलन: 1905-07 का आंदोलन जिसने व्यापक रूप से मध्यम वर्गों के बीच राष्ट्रीय चेतना का विस्तार किया। इसमें स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार शामिल था।
रॉलेट एक्ट: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लागू कठोर उपाय जो प्रेस पर प्रतिबंध लगाते थे और बिना जांच के कारावास की अनुमति देते थे, और युद्ध समाप्त होने के बाद भी जारी रखे गए।
असहयोग (Non-Cooperation): औपनिवेशिक शासन के साथ सहयोग न करना। इसमें सरकारी संस्थानों का बहिष्कार और नागरिक अवज्ञा शामिल थी। यह एक प्रकार का प्रतिरोध था।
खिलाफत आंदोलन: भारतीय मुसलमानों का आंदोलन (1919-1920) जिसने तुर्की में खलीफा की स्थिति और इस्लामी पवित्र स्थानों के नियंत्रण की मांग की। गांधी जी ने इसे असहयोग के साथ जोड़ने का प्रयास किया।
नमक एकाधिकार: ब्रिटिश सरकार का नमक उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार। इसे गांधी जी ने एक अत्याचारी कर माना।
सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience): कानूनों को जानबूझकर और अहिंसक रूप से तोड़ना। नमक यात्रा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत थी।
स्वराज: स्वशासन या पूर्ण स्वतंत्रता। गांधी जी ने कहा कि स्वराज सिर्फ नमक कर या अन्य करों के खत्म होने से नहीं मिलेगा। इसके लिए अस्पृश्यता का प्रायश्चित करना होगा और सभी समुदायों को एकजुट होना होगा।
पृथक निर्वाचिका: दलित वर्गों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र का प्रस्ताव। गांधी जी ने इसका विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि यह अस्पृश्यता को स्थायी कर देगा।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement): 1942 में गांधी जी द्वारा शुरू किया गया एक व्यापक जनआंदोलन जिसने 'करो या मरो' का नारा दिया (इस नारे का उल्लेख स्रोत में नहीं है, लेकिन आंदोलन का उल्लेख है)।
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस: 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग के समर्थन में बुलाया गया दिवस, जिसके कारण कलकत्ता और अन्य स्थानों पर हिंसक संघर्ष हुए।
दो राष्ट्र सिद्धांत: यह विचार कि भारत में हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। कांग्रेस ने इस सिद्धांत को कभी स्वीकार नहीं किया।
3. पुस्तक में दिए गए सभी उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए:
इस अध्याय के अंशों में कोई ऐसे उदाहरण नहीं दिए गए हैं जिन्हें चरण-दर-चरण हल करने की आवश्यकता हो, जैसे गणित या विज्ञान के उदाहरण। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और लोगों की प्रतिक्रियाओं का वर्णन है, साथ ही गांधी जी की चमत्कारी शक्तियों से जुड़ी अफवाहों और कहानियों का उल्लेख है। ये कहानियां किसानों की गांधी जी में आस्था को दर्शाती हैं, लेकिन ये तथ्यात्मक उदाहरण नहीं हैं जिन्हें हल किया जा सके। इसलिए, इन अंशों के आधार पर चरण-दर-चरण उदाहरण समाधान प्रदान करना संभव नहीं है।
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर:
प्रश्न 1 (44): महात्मा गांधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
महात्मा गांधी ने आम लोगों, विशेषकर गरीबों, से जुड़ने के लिए एक सादा जीवन शैली अपनाई। वे धोती पहनते थे और चरखे का उपयोग करते थे। उनकी सादी जीवन शैली और हाथों से काम करने के प्रति उनका लगाव गरीब श्रमिकों के प्रति उनकी सहानुभूति का कारण बना, और बदले में वे लोग गांधी जी से सहानुभूति रखते थे। जहां अधिकांश अन्य राजनीतिक उन्हें कृपा की दृष्टि से देखते थे, वहीं गांधी जी न केवल उनके जैसा दिखने बल्कि उन्हें अच्छी तरह समझने और उनके जीवन के साथ स्वयं को जोड़ने के लिए सामने आते थे।
प्रश्न 2 (44): किसान महात्मा गांधी को किस तरह देखते थे?
भारतीय किसान गांधी जी को 'गांधी बाबा', 'गांधी महाराज' या सामान्य 'महात्मा' जैसे अलग-अलग नामों से जानते थे और उन्हें एक उद्धारक के समान देखते थे। उनका मानना था कि गांधी जी ऊंची करों और दमनकारी अधिकारियों से उनकी सुरक्षा करेंगे और उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाएंगे। गांधी जी की चमत्कारी शक्तियों की अफवाहें भी फैली हुई थीं। कुछ स्थानों पर कहा गया कि उन्हें राजा द्वारा किसानों के दुख-तकलीफों में सुधार के लिए भेजा गया है और उनके पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकार करने की शक्ति है। कुछ अन्य स्थानों पर यह दावा किया गया कि गांधी जी की शक्ति अंग्रेज बादशाह से उत्कृष्ट है और उनके आने से औपनिवेशिक शासक जिले से भाग जाएंगे। गांधी जी का विरोध करने वालों के लिए भयानक परिणाम की बातें भी बताई गईं।
प्रश्न 3 (44): नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
गांधी जी ने नमक एकाधिकार को एक चौतरफा अभिशाप बताया। उन्होंने कहा कि यह लोगों को एक मूल्यवान और आसानी से उपलब्ध ग्राम उद्योग से वंचित करता है। यह प्रकृति द्वारा बहुतायत में उत्पादित धन का अत्यधिक विनाश करता है। इस विनाश का मतलब है और अधिक राष्ट्रीय खर्च। और सबसे बुरी बात यह थी कि भूखे लोगों से हजारों प्रतिशत से अधिक की उगाही की जाती थी। गांधी जी का मानना था कि यह कर आम जनता की उदासीनता के कारण लंबे समय से अस्तित्व में था, और अब जनता जाग चुकी है, इसलिए इस कर को समाप्त करना होगा। गांधी जी के लिए, यह कानून ब्रिटिश शासन के सबसे दमनकारी पहलुओं में से एक का प्रतीक था, जिस पर हर कोई प्रभावित होता था, चाहे वह गरीब हो या अमीर। इस प्रकार, नमक कानून को चुनौती देना एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया जो पूरे राष्ट्र को एकजुट कर सकता था।
प्रश्न 4 (44): गृह विभाग लगातार यह क्यों कहता रहा कि डांडी यात्रा के प्रति लोगों में कोई उत्साह नहीं है?
औपनिवेशिक शासक हमेशा उन तत्वों पर कड़ी नज़र रखते थे जिन्हें वे अपने खिलाफ मानते थे। सरकारी रिकॉर्ड, जैसे कि गृह विभाग की पाक्षिक रिपोर्टें, अक्सर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होती थीं और उनमें अधिकारियों की आशंकाएं और बेचैनियां झलकती थीं जो किसी आंदोलन को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे और उसके प्रसार के बारे में चिंतित थे। गृह विभाग यह मानने को तैयार नहीं था कि महात्मा गांधी की कार्रवाइयों के प्रति कोई व्यापक जनसमर्थन पैदा हो रहा था। रिपोर्टों में डांडी यात्रा को एक नाटक, एक करतब, और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने के प्रति अनिच्छुक तथा शासन के अंतर्गत सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को गोलबंद करने की एक हताश कोशिश के रूप में प्रस्तुत किया जाता था। यह उनके खुद को यह आश्वासन देने के प्रयास का हिस्सा हो सकता है कि विद्रोह की आशंकाओं का कोई आधार नहीं है। हालांकि, अन्य स्रोतों से पता चलता है कि यात्रा को भारी जनसमर्थन मिला, जिसने अंग्रेज शासकों को 'गहरे तौर पर बेचैन' कर दिया।
प्रश्न 5 (44): चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
स्रोत सीधे तौर पर यह नहीं बताता है कि चरखे को क्यों चुना गया एक राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में, लेकिन यह बताता है कि महात्मा गांधी की अपील को उनकी सात्विक जीवन शैली और धोती तथा चरखा जैसे प्रतीकों के विवेकपूर्ण प्रयोग से बहुत बल मिला। गांधी जी, जाति से एक व्यापारी और पेशे से वकील होने के बावजूद, अपनी सादी जीवन शैली और हाथों से काम करने के प्रति लगाव के कारण गरीब श्रमिकों के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति रखते थे। चरखा आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादन का प्रतीक था, जो विदेशी, विशेषकर ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं पर निर्भरता को कम कर सकता था। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और गरीब जनता को सशक्त बनाने का एक साधन था। इस प्रकार, चरखा गांधी जी के आत्मनिर्भरता, ग्रामीण उत्थान और ब्रिटिश आर्थिक शोषण के विरोध के दर्शन का प्रतीक बन गया, जिसने इसे राष्ट्रीय आंदोलन से गहराई से जोड़ा।
प्रश्न 6 (45): असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
असहयोग आंदोलन औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक प्रभावी प्रतिरोध का तरीका था। इसमें शासन के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग न करने का आह्वान किया गया था। विभिन्न सामाजिक वर्गों ने विभिन्न तरीकों से इसमें भाग लिया। छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार किया। श्रमिक वर्ग ने हड़तालें कीं। किसानों और पहाड़ी जनजातियों ने औपनिवेशिक कानूनों, जैसे वन्य कानूनों और करों की अवहेलना की। कुछ स्थानों पर लोगों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। इन कार्यों से औपनिवेशिक प्रशासन का काम बाधित हुआ। हालांकि, स्रोत बताता है कि यह 'शांति की दृष्टि से नकारात्मक' था (संभवतः सहयोग न करने के अर्थ में), लेकिन 'प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक' था। इसमें प्रतिवाद, परित्याग और स्व-अनुशासन की आवश्यकता थी। 1857 के विद्रोह के बाद पहली बार, असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजी राज की नींव हिल गई।
प्रश्न 7 (45): गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
स्रोत के अनुसार, लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन में वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकी और गांधी जी को खाली हाथ लौटना पड़ा। इसके बाद उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः शुरू किया। स्रोत विशेष रूप से उल्लेख करता है कि गोलमेज सम्मेलन के दौरान, महात्मा गांधी ने 'अस्पृश्यों' के लिए पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया। उनका मानना था कि यह 'अस्पृश्यता' के कलंक को स्थायी कर देगा और उनकी दासता को बनाए रखेगा। स्रोत वार्ता की विफलता के अन्य कारणों का विस्तार से वर्णन नहीं करता है, लेकिन पृथक निर्वाचिका का मुद्दा एक प्रमुख विवादास्पद बिंदु था जिसने संभवतः सहमति तक पहुंचने में बाधा डाली।
प्रश्न 8 (45): महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
महात्मा गांधी ने 1915 में भारत लौटने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप में महत्वपूर्ण बदलाव किए। उन्होंने अहिंसक प्रतिरोध, जिसे सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है, की अपनी विशिष्ट तकनीक का परिचय दिया। उन्होंने इसे बड़े पैमाने पर लागू किया, जैसे रॉलेट एक्ट के खिलाफ और असहयोग आंदोलन में। उन्होंने स्थानीय संघर्षों (चंपारण, अहमदाबाद, खेड़ा) के माध्यम से खुद को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति रखने वाले नेता के रूप में स्थापित किया। उन्होंने खिलाफत आंदोलन के साथ असहयोग को जोड़कर हिंदू और मुस्लिम समुदायों को एक साथ लाने का प्रयास किया। उनके आह्वान ने समाज के विभिन्न वर्गों को औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें छात्र, वकील, श्रमिक, किसान और जनजातियाँ शामिल थीं। उन्होंने महिलाओं को भी राष्ट्रवादी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल किया, जैसे नमक यात्रा में। उनकी सादी जीवन शैली और आम लोगों से जुड़ने के प्रयासों (जैसे धोती और चरखे का उपयोग) ने उन्हें जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को अभिजात्य वर्गों से निकालकर एक व्यापक जनआंदोलन में बदल दिया। उन्होंने स्वराज्य के लिए सांप्रदायिक एकता और अस्पृश्यता उन्मूलन जैसे सामाजिक सुधारों को भी आवश्यक बताया। नमक यात्रा जैसे आंदोलनों से उन्होंने ब्रिटिश सरकार को एहसास दिलाया कि उनका शासन अब अधिक समय तक नहीं टिकेगा।
प्रश्न 9 (45): निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
निजी पत्र किसी व्यक्ति के आंतरिक विचारों और भावनाओं की जानकारी देते हैं। उनमें लेखक का गुस्सा, दर्द, असंतोष, बेचैनी, आशाएं और निराशाएं व्यक्त हो सकती हैं, जिन्हें वे सार्वजनिक मंच पर शायद व्यक्त न करें। हालांकि, पत्रों की भाषा इस भावना से भी प्रभावित हो सकती है कि उन्हें एक दिन प्रकाशित किया जा सकता है। आत्मकथाएं किसी व्यक्ति के जीवन का लेखा-जोखा होती हैं जो स्मृति पर आधारित होती हैं। उनसे पता चलता है कि लेखक को क्या याद रहा, क्या महत्वपूर्ण लगा, वह क्या याद रखना चाहता था, या वह दूसरों की नजर में अपना जीवन कैसे दिखाना चाहता था। आत्मकथाएं एक तरह से अपनी छवि बनाने का तरीका होती हैं और उनमें जानबूझकर या अनजाने में कुछ बातें छोड़ी जा सकती हैं। सरकारी ब्यौरों, जैसे पुलिस रिपोर्टों, की तुलना में निजी पत्र और आत्मकथाएं अक्सर अधिक व्यक्तिगत और व्यक्तिपरक होती हैं। सरकारी रिकॉर्ड औपनिवेशिक शासकों के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो अक्सर अपने खिलाफ माने जाने वाले तत्वों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पुलिस रिपोर्टें गोपनीय होती थीं और स्थानीय क्षेत्रों से पुलिस के माध्यम से मिलने वाली सूचनाओं पर आधारित होती थीं। वे यह भी दर्शाती हैं कि उच्च अधिकारी क्या देखते थे या क्या मानना चाहते थे। वे अक्सर आंदोलन को नियंत्रित न कर पाने वाले अधिकारियों की आशंकाओं और बेचैनियों को दर्शाती हैं, और कभी-कभी आंदोलन के जनसमर्थन को कम आंकने का प्रयास करती हैं। निजी पत्र और आत्मकथाएं व्यक्ति के आंतरिक अनुभव और दृष्टिकोण को सामने लाती हैं, जबकि सरकारी ब्यौरे अक्सर शासन के दृष्टिकोण, चिंताओं और नियंत्रण के प्रयासों पर केंद्रित होते हैं। दोनों प्रकार के स्रोत इतिहास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें उनके संदर्भ और संभावित पूर्वाग्रहों को ध्यान में रखते हुए पढ़ा जाना चाहिए।
5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न तैयार कीजिए:
- दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए गांधी जी ने किन तरीकों से भारतीय समुदाय के नेता के रूप में काम किया?
- 1915 में गांधी जी के भारत लौटने पर देश की राजनीतिक स्थिति 1893 की तुलना में कैसे भिन्न थी? प्रमुख राजनीतिक शक्तियाँ कौन थीं?
- रॉलेट एक्ट क्या था और गांधी जी ने इसका विरोध क्यों किया?
- असहयोग आंदोलन के दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की प्रतिक्रिया में क्या अंतर था?
- खिलाफत आंदोलन की मुख्य मांगें क्या थीं? कांग्रेस और गांधी जी ने इस आंदोलन का समर्थन क्यों किया?
- चौरी-चौरा घटना असहयोग आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ क्यों साबित हुई?
- 1922 में गांधी जी की गिरफ्तारी और उन पर हुए मुकदमे का क्या महत्व था? जज ब्रूमफील्ड की टिप्पणी से गांधी जी के प्रति तत्कालीन दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?
- डांडी मार्च के कारण महात्मा गांधी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान कैसे मिली?
- गोलमेज सम्मेलन में पृथक निर्वाचिका के मुद्दे पर गांधी जी के क्या विचार थे?
- भारत छोड़ो आंदोलन को सही मायने में 'जनआंदोलन' क्यों कहा जाता है?
- 1946 के चुनावों के परिणामों ने भारत के राजनीतिक ध्रुवीकरण को कैसे दर्शाया?
- अगस्त 1946 के 'प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' का क्या परिणाम हुआ?
- विभाजन के बाद गांधी जी ने शांति और सद्भाव स्थापित करने के लिए क्या प्रयास किए?
- कांग्रेस पार्टी ने 'दो राष्ट्र सिद्धांत' को कभी स्वीकार क्यों नहीं किया?
- राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबारों और पुलिस रिपोर्टों जैसे विभिन्न स्रोतों का विश्लेषण करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
6. अध्याय के अंत में बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश:
यह अध्याय महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण चरणों को कवर करता है। गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटे और सत्याग्रह, अहिंसक विरोध की तकनीक का उपयोग किया। भारत में उन्होंने पहले चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा जैसे स्थानीय संघर्षों का नेतृत्व किया, जिससे वे गरीबों के नेता के रूप में उभरे। 1919 में रॉलेट एक्ट के विरोध में उन्होंने राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। उन्होंने खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन (1920-22) शुरू किया, जिसमें विभिन्न वर्गों के लोगों ने स्कूलों, अदालतों और सरकारी संस्थानों का बहिष्कार किया। चौरी-चौरा में हिंसा के कारण आंदोलन वापस ले लिया गया। उन्हें 1922 में गिरफ्तार किया गया। गांधी जी की सादी जीवन शैली और प्रतीकों के उपयोग ने उन्हें आम लोगों, विशेषकर किसानों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया। 1930 में, उन्होंने नमक कानून को चुनौती देने के लिए डांडी मार्च का नेतृत्व किया, जो सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत थी। इस यात्रा ने उन्हें वैश्विक पहचान दिलाई और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया। गोलमेज सम्मेलन सफल नहीं हुआ। बाद में, भारत छोड़ो आंदोलन (1942) एक व्यापक जनआंदोलन बना। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद बढ़े, और 1946 के चुनाव एवं प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ने विभाजन की ओर बढ़ाया। विभाजन के बाद, गांधी जी ने शांति स्थापना का प्रयास किया। राष्ट्रीय आंदोलन का अध्ययन करने के लिए गांधी जी के लेखों और भाषणों, निजी पत्रों, आत्मकथाओं, सरकारी रिकॉर्डों (पुलिस रिपोर्टों), और अखबारों जैसे विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है, हालांकि प्रत्येक स्रोत का अपना दृष्टिकोण और सीमाएं हैं।
यह नोट्स आपको अध्याय की मुख्य बातों को समझने में सहायक होंगे। शुभकामनाएँ!
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