Bihar Board class10 geography part2 chapter3 अध्याय: प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन – भूकंप एवं सुनामी | सम्पूर्ण नोट्स |Digital Bihar Board

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अध्याय: प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन – भूकंप एवं सुनामी | सम्पूर्ण नोट्स

प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन: भूकंप एवं सुनामी

इस विस्तृत लेख में, हम कक्षा 10 भूगोल के अध्याय प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन: भूकंप एवं सुनामी का गहराई से विश्लेषण करेंगे। हम भूकंप के कारण, रिक्टर स्केल द्वारा इसका मापन, और भारत के विभिन्न भूकंपीय क्षेत्र को समझेंगे। साथ ही, हम जानेंगे कि सुनामी से बचाव के क्या उपाय हैं और एक प्रभावी आपदा प्रबंधन योजना कैसे बनाई जाती है, जिसमें अधिकेंद्र और भूकंपीय तरंगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

भाग 1: विस्तृत आत्म-अध्ययन नोट्स

1. प्राकृतिक आपदाएँ: भूकंप और सुनामी - एक परिचय

भूकंप और सुनामी ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनका संबंध पृथ्वी की आंतरिक संरचना से है। हम सब ठोस भू-पटल (पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत) पर रहते हैं, लेकिन इसके अंदर आग की लहरें चलती रहती हैं। इन लहरों से ही कंपन उत्पन्न होता है, जो भूकंप और सुनामी का रूप ले लेता है।

2. भूकंप (Earthquake)

क. भूकंप क्या है?

भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसका संबंध पृथ्वी की आंतरिक संरचना से है। ठोस भू-पटल के अंदर का तापमान 1000° से भी अधिक होता है, जिससे उत्पन्न ऊर्जा तरंगें चट्टानों में कंपन उत्पन्न करती हैं। जब आंतरिक ऊर्जा से संचालित क्षैतिज प्रवाह के कारण ठोस भू-पटल पर कंपन होता है, तो उसे भूकंप कहते हैं।

ख. भूकंप के कारण

भूकंप का मुख्य कारण पृथ्वी के अंदर आंतरिक ऊर्जा से संचालित क्षैतिज प्रवाह है, जो भू-पटल में कंपन उत्पन्न करता है। जिन क्षेत्रों में भू-पटल की चट्टानें विखंडित होती हैं (जैसे वलित पर्वत क्षेत्र, भू-पट्टीय दरार क्षेत्र, महासागरीय गर्त, मध्य महासागरीय कटक), वहाँ की चट्टानें कमजोर होती हैं और ऊर्जा प्रवाह में आकर भूकंप या सुनामी का शिकार हो जाती हैं।

ग. भूकंपीय तरंगें (Seismic Waves)

भूकंप के समय उत्पन्न होने वाले कंपन को मुख्य रूप से तीन प्रकार की तरंगों में बाँटा जाता है:

  1. प्राथमिक (P) तरंगें: ये तरंगें सबसे पहले पृथ्वी की सतह पर पहुँचती हैं।
  2. द्वितीयक (S) तरंगें: ये अनुप्रस्थ तरंगें हैं और इनकी गति प्राथमिक तरंगों से कम होती है।
  3. दीर्घ (L) तरंगें: ये भू-पट्टीय सतह पर उत्पन्न होती हैं और इनकी गहनता (तीव्रता) सबसे अधिक होती है। ये धीमी गति से क्षैतिज रूप से चलने के कारण किसी स्थान पर सबसे बाद में पहुँचती हैं, लेकिन ये सबसे अधिक विनाशकारी तरंगें होती हैं।

घ. अधिकेंद्र (Epicenter) और भूकंप केंद्र (Hypocenter) में अंतर

  • भूकंप केंद्र (Hypocenter): भू-पटल के नीचे वह स्थान जहाँ भूकंपीय कंपन प्रारंभ होता है, उसे भूकंप केंद्र कहते हैं।
  • अधिकेंद्र (Epicenter): भू-पटल पर वह केंद्र जहाँ भूकंप की तरंगें सर्वप्रथम पहुँचती हैं, उसे अधिकेंद्र कहते हैं। अधिकेंद्र भूकंप केंद्र के ठीक ऊपर ऊर्ध्वाधर (vertical) दिशा में स्थित होता है।

ङ. भूकंप की तीव्रता का मापन

भूकंप की ऊर्जा तरंग की गहनता का मापन रिक्टर स्केल की मदद से होता है। यह एक लॉग स्केल (लघुगणकीय मापक) है जिसमें प्रत्येक एक इकाई के बाद गहनता में दस गुनी वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, रिक्टर स्केल पर 6.0 तीव्रता का भूकंप, 5.0 तीव्रता के भूकंप से दस गुना अधिक तीव्र होता है।

च. भारत में भूकंपीय क्षेत्र

भारत के प्रायः सभी भागों में भूकंप के झटके आते हैं, लेकिन गहनता और बारंबारता में भारी अंतर होता है। इसी आधार पर भारत को 5 भूकंपीय पेटियों (जोन) में बाँटा गया है:

  1. जोन 1: इस जोन में दक्षिणी पठारी क्षेत्र आते हैं, जहाँ भूकंप का खतरा लगभग नहीं के बराबर है।
  2. जोन 2: इसके अंतर्गत प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं। यहाँ भूकंप की संभावना तो होती है, लेकिन तीव्रता कम होने के कारण अति सीमित खतरे होते हैं।
  3. जोन 3: इसमें मुख्यतः गंगा-सिंधु का मैदान, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के कुछ क्षेत्र आते हैं। यहाँ भूकंप का प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन वह विनाशकारी नहीं होता।
  4. जोन 4: इसमें अधिक खतरे की संभावना होती है। इसमें मुख्यतः शिवालिक हिमालय का क्षेत्र, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, पूर्वी भारत का कुछ क्षेत्र तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह आते हैं।
  5. जोन 5: यह भारत का सर्वाधिक खतरे का क्षेत्र है। इसके अंतर्गत गुजरात का कच्छ प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड का कुमाऊँ पर्वतीय क्षेत्र, सिक्किम तथा दार्जिलिंग का पहाड़ी क्षेत्र आता है। भारत के इस प्रदेश में कई विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं। (जैसे, बिहार में बीसवीं शताब्दी में करीब 20 बार भूकंप के तीव्र झटके अनुभव किए गए, लेकिन सिर्फ 1934 का भूकंप ही विनाशकारी था)।

छ. भूकंप के विनाशकारी प्रभाव

भूकंप से भारी तबाही होती है। इसके मुख्य प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • लाखों लोगों की मृत्यु होती है।
  • भवनों का गिरना, पुलों का टूट जाना, जमीन में दरारें पड़ना।
  • इन दरारों से गर्म जल के सोते का निकलना।

3. सुनामी (Tsunami)

क. सुनामी क्या है?

सुनामी भी एक प्राकृतिक आपदा है जिसका संबंध पृथ्वी की आंतरिक संरचना से है। जब महासागर के तली (नीचे) पर कंपन होता है, तो उसे सुनामी के नाम से जाना जाता है। इस कंपन से जल में क्षैतिज गति उत्पन्न होती है, और यह आंतरिक ऊर्जा से संचालित क्षैतिज प्रवाह ही सुनामी का कारण बनता है। सुनामी की विनाशलीला तटीय स्थल और सुनामी की विनाशकारी लहरों के रूप में देखने को मिलती है।

ख. सुनामी की उत्पत्ति

सुनामी की उत्पत्ति समुद्र के अंदर भूकंप या ज्वालामुखी के सक्रिय होने से होती है। इसकी प्रक्रिया निम्न चरणों में होती है:

  1. समुद्र के अंदर भूकंप/ज्वालामुखी का सक्रिय होना: समुद्र के तल पर अचानक हलचल होती है।
  2. सुनामी लहर श्रृंखला का निर्माण: इस हलचल से समुद्र में लहरों की एक श्रृंखला बनती है।
  3. तट पर पहुँचने पर: जैसे ही ये लहरें समुद्र तट पर पहुँचती हैं, उनकी गति धीमी हो जाती है, लेकिन उनकी ऊँचाई और ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है।
  4. शक्तिशाली महाआपदाीय लहरों का निर्माण: तट पर ये लहरें अत्यंत शक्तिशाली और विनाशकारी रूप ले लेती हैं, जिससे भारी तबाही होती है।

ग. सुनामी के विनाशकारी प्रभाव

सुनामी की लहरें तट पर अत्यंत विनाशकारी होती हैं। इनसे होने वाले मुख्य प्रभाव हैं:

  • लाखों लोगों की मृत्यु होती है।
  • तट के किनारे आनंद ले रहे पर्यटक, मछुआरे, और नारियल के कृषक सीधे प्रभावित होते हैं।
  • तटीय पुलिन (समुद्र तट पर रेत) में बालू और मृदा का अपरदन (कटाव) हो जाता है।
  • तट के किनारे की बस्तियाँ बर्बाद हो जाती हैं।
  • समुद्री तट पर स्थित नारियलों के पेड़ उखड़ जाते हैं।
  • 26 दिसंबर 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया में आए एक सुनामी से सैकड़ों लोग विलुप्त हो गए थे, और निकोबार द्वीप समूह के दक्षिण स्थित इंदिरा पॉइंट (भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु) इस झटके के प्रभाव से विलुप्त हो गया।

4. आपदा प्रबंधन: बचाव के उपाय

भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ व्यापक और दूरदृष्टि वाले बहुआयामी प्रयासों की माँग करती हैं।

क. भूकंप से बचाव के उपाय

  1. भूकंप का पूर्वानुमान: भूकंपलेखी यंत्र से पूर्व तरंगों और अनुकंपन तरंगों की माप करके बड़े भूकंप का पूर्वानुमान किया जा सकता है। चीन जैसे देशों में रेंगने वाले जीवों, बतखों की गतिविधियों और शोर के आधार पर भी भूकंप के पूर्वानुमान का कार्य किया जा रहा है, लेकिन अभी तक पूर्ण भविष्यवाणी नहीं मिली है।
  2. भवन निर्माण: भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में भवन निर्माण भूकंप निरोधी तकनीकों पर आधारित होना चाहिए। ऐसे भवनों के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की व्यवस्था भी आवश्यक है।
  3. जान-माल की सुरक्षा: भूकंप के संभावित प्रभाव को कम करने के लिए विशेष सुरक्षा बल की आवश्यकता होती है।
  4. प्रशासनिक कार्य: भूकंप की बर्बादी को रोकने और राहत कार्यों के लिए प्रशासनिक सतर्कता अति आवश्यक है। प्रभावित क्षेत्रों को "आपदा संभावित क्षेत्र" घोषित किया जाना चाहिए। पुलिस और जिला प्रशासन को अधिक सक्रिय होने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकार को आपदा प्रबंधन समितियों का गठन करना चाहिए और उनकी भागीदारी को अधिक सक्रिय करने की जरूरत है। भूकंप के बाद राहत कार्यों के लिए तत्पर रहना चाहिए।
  5. गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग: भूकंप सहित किसी भी आपदा प्रबंधन में स्वयंसेवी संस्थाएँ, विद्यालय और आम लोग भूमिका निभा सकते हैं। ये संगठन मलबे से लोगों को निकालने में मदद कर सकते हैं, भूकंप निरोधी भवन निर्माण तथा बचाव हेतु लोगों को प्रशिक्षित कर सकते हैं।
  6. सार्वजनिक जागरूकता एवं प्रशिक्षण: विद्यालय में बच्चों को भूकंप से बचाव की जानकारी दी जानी चाहिए। उन्हें डिलोडिंग में बताया जाना चाहिए कि भूकंप आने पर तुरंत जाति और धर्म के भेदभाव को भुलाकर एकजुट होना है। जापान जैसे देशों में छोटे आकार के वीडियो कैमरे जीवित लोगों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं। स्वयंसेवी संगठन लोगों को भूकंप आने पर अपने घर में किसी कोने में दीवार के सहारे खड़ा होने का प्रशिक्षण दे सकते हैं, क्योंकि गिरने वाले मलबे का सबसे कम प्रभाव पड़ता है।
  7. तत्काल प्रबंधन: अंग-भंग की अधिक संभावना के कारण, प्रशासन की प्रतीक्षा न करके तुरंत नजदीकी अस्पताल या नर्सिंग होम में टेलीफोन द्वारा सूचना देनी चाहिए। गाँव में किसी के पास कार, ट्रैक्टर या अन्य वाहन हो तो घायल लोगों को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
  8. मृत्यु प्रबंधन: दुर्घटना से मृत्यु होने पर धार्मिक नियम से अंतिम संस्कार करना चाहिए। महामारी न फैले इसके लिए डी.डी.टी. और अन्य रासायनिक पदार्थों का छिड़काव होना चाहिए।

ख. सुनामी से बचाव के उपाय

सुनामी का विनाशकारी प्रभाव तटीय प्रदेशों में अधिक होता है। इससे बचाव के लिए निम्न उपाय आवश्यक हैं:

  1. तटबंध निर्माण: सुनामी के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिए कंक्रीट के तटबंध (दीवारें) बनाने की जरूरत है। ये तटबंध सुनामी तरंगों का तटीय मैदान पर सीमित प्रभाव डालते हैं।
  2. मैंग्रोव झाड़ी का विकास: तटबंध से टकराने वाली सुनामी तरंगों की गति कम हो जाती है यदि मैंग्रोव जैसी सघन वनस्पति को लगाया जाए। तटीय दलदली क्षेत्र में मैंग्रोव अधिक लाभकारी हो सकता है।
  3. पूर्वानुमान: भूकंपीय झटकों के समान सुनामी के पूर्व कंपन और अनुकंपन आते हैं, अतः उनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
  4. स्टेशन/प्लेटफार्म बनाना: समुद्र के बीच में स्टेशन या प्लेटफार्म बनाने की जरूरत है जो समुद्री जल के सतह के नीचे की क्षैतिज हलचल का अध्ययन कर सकें, ताकि लोगों को वहाँ से हटाया जा सके और तट के किनारे वाले मल्हारों को तट पर न जाकर बीच समुद्र में जाने का संदेश दे सके। गहरे सागर में लहरें कम विनाश करती हैं, क्योंकि वहाँ क्षैतिज अवरोधक नहीं होते।
  5. तटीय प्रदेश के लोगों को प्रशिक्षण: राज्य सरकार तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा तटीय प्रदेश में रहने वाले लोगों को सुनामी से बचाव का प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करनी चाहिए। इस व्यवस्था के अंतर्गत सुनामी की सूचना मिलते ही या तो समुद्र की तरफ या स्थलखंड की तरफ भागने के लिए तैयार करना चाहिए।
  6. राहत कार्य और पुनर्वास: सुनामी जल के स्थिर होने के बाद सामूहिक रूप से बचाव कार्य में लगना, घायलों को चिकित्सा सुविधाएँ, स्वच्छ पेयजल और भोजन की व्यवस्था करना, असामाजिक तत्वों द्वारा लूट-मार को रोकना, और बस्तियों के पुनर्वास हेतु भवन निर्माण में डिजाइन का उपयोग करना आवश्यक है जो सुनामी जल का न्यूनतम प्रभाव डाले।
  7. आम लोगों का सहयोग: आम लोगों का सहयोग तथा स्वयंसेवी और प्रशासनिक संस्थाओं की भागीदारी ही भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं से राहत दिला सकती है।

ग. पुस्तक में दिए गए उदाहरणों का स्पष्टीकरण

पाठ्यपुस्तक में सीधे तौर पर "उदाहरणों" (समस्याओं जिन्हें चरण-दर-चरण हल करना हो) का उल्लेख नहीं है। हालांकि, "क्या आप जानते हैं" खंडों में महत्वपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी या उदाहरण दिए गए हैं, जिन्हें यहाँ स्पष्ट किया गया है:

1. 26 दिसंबर 2004 का सुनामी:

  • घटना: 26 दिसंबर 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर बंगाल की खाड़ी तक एक विशाल सुनामी आई थी।
  • प्रभाव: इस सुनामी में सैकड़ों लोग मारे गए, और कई नाविकों का पता नहीं चला। निकोबार द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी बिंदु, इंदिरा पॉइंट, इस सुनामी के झटके के प्रभाव से समुद्र में विलीन हो गया था।
  • स्पष्टीकरण: यह उदाहरण सुनामी की विनाशकारी शक्ति को दर्शाता है। यह बताता है कि कैसे एक समुद्री कंपन बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान कर सकता है और भौगोलिक संरचनाओं को भी बदल सकता है।

2. भूकंपीय तरंगों की जानकारी:

  • जानकारी:
    • अधिकेंद्र भू-पटल पर वह केंद्र है जहाँ भूकंप की तरंगें सर्वप्रथम पहुँचती हैं।
    • भूकंप केंद्र भू-पटल के नीचे वह स्थल है जहाँ भूकंपीय कंपन प्रारंभ होता है।
    • पूर्व कंपन तथा अनुकंपन भूकंप आने के पूर्व तथा भूकंप के बाद कम गहनता के अनेक कंपन होते हैं।
    • सामान्य तौर पर यंत्रों की मदद के बिना भूकंप का अनुभव नहीं होता है।
  • स्पष्टीकरण: यह जानकारी भूकंपीय घटनाओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों और अवधारणाओं को स्पष्ट करती है। यह बताता है कि भूकंप कहाँ से उत्पन्न होता है (भूकंप केंद्र) और उसका प्रभाव सबसे पहले कहाँ महसूस होता है (अधिकेंद्र)। साथ ही, यह पूर्व कंपन (foreshocks) और अनुकंपन (aftershocks) की अवधारणा को भी समझाता है, जो भूकंपीय घटनाओं से पहले और बाद में आने वाले छोटे झटके होते हैं। अंत में, यह बताता है कि छोटे भूकंप अक्सर मानव अनुभव से परे होते हैं और उन्हें मापने के लिए विशेष उपकरणों (जैसे भूकंपलेखी) की आवश्यकता होती है।

भाग 2: पुस्तक के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. महासागर के तली पर होनेवाले कंपन को किस नाम से जाना जाता है?

(क) भूकंप (ख) चक्रवात (ग) सुनामी (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (ग) सुनामी

स्पष्टीकरण: जब महासागर के तली पर कंपन होता है, तो वह समुद्र में विशाल लहरें उत्पन्न करता है जिन्हें सुनामी कहा जाता है।

2. 26 दिसंबर, 2004 को विश्व के किस हिस्से में भयंकर सुनामी आया था?

(क) पश्चिम एशिया (ख) प्रशांत महासागर (ग) दक्षिण पूरब एशिया (घ) बंगाल की खाड़ी
उत्तर: (ग) दक्षिण पूरब एशिया

स्पष्टीकरण: 26 दिसंबर 2004 को दक्षिण पूरब एशिया से लेकर बंगाल की खाड़ी तक एक सुनामी आया था।

3. भूकंप से पृथ्वी की सतह पर पहुँचनेवाली सबसे पहली तरंग को किस नाम से जाना जाता है?

(क) पी-तरंग (ख) एस-तरंग (ग) एल-तरंग (घ) टी-तरंग
उत्तर: (क) पी-तरंग

स्पष्टीकरण: भूकंप के समय उत्पन्न होने वाली प्राथमिक (P) तरंगें सबसे पहले पृथ्वी की सतह पर पहुँचती हैं।

4. भूकंप केंद्र के ऊर्ध्वाधर पृथ्वी पर स्थित केंद्र को क्या कहा जाता है?

(क) भूकंप केंद्र (ख) अधिकेंद्र (ग) अनु केंद्र (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (ख) अधिकेंद्र

स्पष्टीकरण: भूकंप केंद्र के ऊर्ध्वाधर (ठीक ऊपर) भू-पटल पर स्थित केंद्र को अधिकेंद्र कहते हैं। यह वह स्थान होता है जहाँ भूकंप की तरंगें सर्वप्रथम पहुँचती हैं।

5. भूकंप अथवा सुनामी से बचाव में कौन सा तरीका सही नहीं है?

(क) भूकंप के पूर्वानुमान को गंभीरता से लेना (ख) भूकंप निरोधी भवनों का निर्माण करना (ग) गैर-सरकारी संगठनों द्वारा राहत कार्य हेतु तैयार रहना (घ) भगवान भरोसे बैठे रहना
उत्तर: (घ) भगवान भरोसे बैठे रहना

स्पष्टीकरण: भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं से बचाव के लिए वैज्ञानिक पूर्वानुमान, भूकंप निरोधी निर्माण, और संगठनों की तैयारी महत्वपूर्ण है। केवल भगवान भरोसे बैठे रहना एक लापरवाह और गलत तरीका है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. भूकंप के केंद्र एवं अधिकेंद्र के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

  • भूकंप केंद्र (Hypocenter): यह भू-पटल के नीचे वह बिंदु होता है जहाँ भूकंपीय कंपन वास्तव में शुरू होता है। यह भूकंप का उद्गम स्थल होता है।
  • अधिकेंद्र (Epicenter): यह भू-पटल पर वह बिंदु होता है जो भूकंप केंद्र के ठीक ऊपर ऊर्ध्वाधर (लंबवत) दिशा में स्थित होता है। अधिकेंद्र वह स्थान है जहाँ भूकंप की तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं और जहाँ भूकंप का सबसे अधिक प्रभाव महसूस किया जाता है।

संक्षेप में: भूकंप केंद्र पृथ्वी के अंदर होता है जहाँ कंपन उत्पन्न होता है, जबकि अधिकेंद्र पृथ्वी की सतह पर वह स्थान होता है जो भूकंप केंद्र के ठीक ऊपर होता है और जहाँ प्रभाव सबसे पहले महसूस होता है।

2. भूकंपीय तरंगों से आप क्या समझते हैं? प्रमुख भूकंपीय तरंगों के नाम लिखिए?

भूकंपीय तरंगें वे ऊर्जा तरंगें होती हैं जो पृथ्वी के अंदर भूकंप के कारण उत्पन्न होती हैं और चारों दिशाओं में फैलती हैं, जिससे भू-पटल में कंपन होता है। प्रमुख भूकंपीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं:

  1. प्राथमिक (P) तरंगें: ये सबसे तेज गति से चलने वाली तरंगें हैं जो सबसे पहले पृथ्वी की सतह पर पहुँचती हैं। ये ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं।
  2. द्वितीयक (S) तरंगें: ये अनुप्रस्थ तरंगें हैं जिनकी गति P तरंगों से कम होती है। ये केवल ठोस माध्यम से ही गुजर सकती हैं, तरल या गैसीय माध्यम से नहीं।
  3. दीर्घ (L) तरंगें: ये भू-पट्टीय सतह पर उत्पन्न होती हैं और इनकी गहनता (तीव्रता) सबसे अधिक होती है। इनकी गति सबसे धीमी होती है और ये क्षैतिज रूप से चलती हैं। ये सबसे अधिक विनाशकारी तरंगें मानी जाती हैं।

3. भूकंप और सुनामी के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

भूकंप और सुनामी दोनों प्राकृतिक आपदाएँ हैं और पृथ्वी की आंतरिक संरचना से संबंधित हैं, लेकिन उनके स्थान और प्रभावों में मुख्य अंतर हैं:

अंतर का आधार भूकंप (Earthquake) सुनामी (Tsunami)
उत्पत्ति का स्थान यह ठोस भू-पटल (पृथ्वी की भूमिगत सतह) में आंतरिक ऊर्जा से उत्पन्न कंपन है। यह महासागर के तली (समुद्र के नीचे) पर उत्पन्न होने वाला कंपन है। अक्सर यह समुद्री भूकंप या ज्वालामुखी के सक्रिय होने के कारण होता है।
प्रभाव इसका प्रभाव मुख्य रूप से भूमि पर होता है, जिससे भवन गिरते हैं, पुल टूटते हैं, जमीन में दरारें पड़ती हैं और जान-माल का भारी नुकसान होता है। इसका प्रभाव मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में होता है, जहाँ यह विशाल समुद्री लहरों के रूप में आती है जो तटीय बस्तियों, पर्यटक स्थलों, मछुआरों और नारियल के खेतों को नष्ट कर देती हैं।
गति की प्रकृति कंपन ठोस भू-पटल में उत्पन्न होता है और तरंगों के रूप में फैलता है। कंपन जल में क्षैतिज गति उत्पन्न करता है, जिससे विशाल जल लहरें बनती हैं।
मापन रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता मापी जाती है। इसकी तीव्रता का प्रत्यक्ष मापन रिक्टर स्केल पर नहीं होता, बल्कि इसके कारण उत्पन्न समुद्री लहरों की ऊँचाई और विनाशकारी क्षमता से इसका अनुमान लगाया जाता है।

4. सुनामी से बचाव के कोई तीन उपाय बताइए?

सुनामी से बचाव के तीन प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं:

  1. तटबंधों का निर्माण और मैंग्रोव वनस्पति का विकास: तटीय क्षेत्रों में कंक्रीट के तटबंधों का निर्माण सुनामी की लहरों के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त, तटों पर सघन मैंग्रोव झाड़ियों को लगाना भी अत्यंत लाभकारी होता है, क्योंकि मैंग्रोव लहरों की गति को कम करके उनके विनाशकारी प्रभाव को अवशोषित कर लेते हैं।
  2. तटीय क्षेत्रों में लोगों का प्रशिक्षण और जागरूकता: तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को सुनामी के बारे में शिक्षित करना और उन्हें सुनामी आने पर सुरक्षित स्थानों पर जाने (समुद्र से दूर या ऊँचे स्थलखंड की ओर भागने) का प्रशिक्षण देना महत्वपूर्ण है। इसमें बचाव और राहत कार्यों की जानकारी भी शामिल होनी चाहिए।
  3. समुद्र में स्टेशन/प्लेटफार्म का निर्माण और पूर्वानुमान प्रणाली: समुद्र के बीच में ऐसे स्टेशन या ऊँचे प्लेटफार्म बनाए जाने चाहिए जो समुद्री जल के नीचे की क्षैतिज हलचल का अध्ययन कर सकें। इससे सुनामी का पूर्वानुमान लगाने में मदद मिलेगी, जिससे तटीय आबादी को समय रहते सूचित कर सुरक्षित स्थानों पर हटाया जा सकेगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. भूकंप क्या है? भारत को प्रमुख भूकंप क्षेत्रों में विभाजित करते हुए सभी क्षेत्रों का संक्षिप्त विवरण दीजिए?

भूकंप क्या है? भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है जिसका सीधा संबंध पृथ्वी की आंतरिक संरचना से है। ठोस भू-पटल के अंदर का तापमान 1000° सेल्सियस से भी अधिक होता है। इस अत्यधिक तापमान के कारण उत्पन्न आंतरिक ऊर्जा तरंगें चट्टानों में कंपन पैदा करती हैं। जब आंतरिक ऊर्जा से संचालित क्षैतिज प्रवाह के कारण ठोस भू-पटल में कंपन होता है, तो उसे भूकंप कहते हैं। यह कंपन भू-पटल पर दरारें, भू-स्खलन और संरचनाओं के गिरने का कारण बनता है, जिससे भारी जान-माल का नुकसान होता है।

भारत के प्रमुख भूकंपीय क्षेत्र: भारत के प्रायः सभी भागों में भूकंप के झटके आते हैं, लेकिन इनकी गहनता और बारंबारता (आने की आवृत्ति) में काफी अंतर होता है। इसी अंतर के आधार पर भारत को 5 प्रमुख भूकंपीय पेटियों (जोन) में विभाजित किया गया है:

  1. जोन 1 (कम जोखिम वाला क्षेत्र): इसमें मुख्य रूप से दक्षिणी पठारी क्षेत्र आते हैं। यहाँ भूकंप का खतरा लगभग नगण्य होता है।
  2. जोन 2 (सीमित जोखिम वाला क्षेत्र): इसके अंतर्गत प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं। इस क्षेत्र में भूकंप की संभावना तो होती है, लेकिन इनकी तीव्रता सामान्यतः कम होती है।
  3. जोन 3 (मध्यम जोखिम वाला क्षेत्र): इस जोन में मुख्यतः गंगा-सिंधु का मैदान, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। यहाँ भूकंप का प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन आमतौर पर यह बहुत अधिक विनाशकारी नहीं होता है।
  4. जोन 4 (अधिक जोखिम वाला क्षेत्र): इस जोन में अधिक खतरे की संभावना होती है। इसमें मुख्य रूप से शिवालिक हिमालय का क्षेत्र, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, पूर्वी भारत का कुछ क्षेत्र तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह आते हैं।
  5. जोन 5 (सर्वाधिक खतरे वाला क्षेत्र): यह भारत का सबसे अधिक भूकंपीय खतरे वाला क्षेत्र है। इसके अंतर्गत गुजरात का कच्छ प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड का कुमाऊँ पर्वतीय क्षेत्र, सिक्किम तथा दार्जिलिंग का पहाड़ी क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में कई विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं।

2. सुनामी से आप क्या समझते हैं? सुनामी से बचाव के उपायों का उल्लेख कीजिए?

सुनामी क्या है? सुनामी एक विशाल और विनाशकारी समुद्री लहर श्रृंखला है जो महासागर के तली में होने वाले कंपन के कारण उत्पन्न होती है। जब आंतरिक ऊर्जा से संचालित क्षैतिज प्रवाह महासागर के तल पर कंपन उत्पन्न करता है, तो यह जल में क्षैतिज गति पैदा करता है, जिससे सुनामी का जन्म होता है। ये लहरें गहरे समुद्र में छोटी और कम हानिकारक होती हैं, लेकिन जैसे ही वे तट के पास पहुँचती हैं, उनकी गति धीमी हो जाती है और उनकी ऊँचाई तथा विनाशकारी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

सुनामी से बचाव के उपाय: सुनामी के विनाशकारी प्रभावों को कम करने और जान-माल की रक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  1. समुद्री तटबंधों और दीवारों का निर्माण: तटीय क्षेत्रों में कंक्रीट के मजबूत तटबंधों (समुद्री दीवारों) का निर्माण सुनामी की लहरों की शक्ति को कम करने में सहायक होता है।
  2. मैंग्रोव वनस्पति का विकास: तटीय क्षेत्रों में सघन मैंग्रोव वनों को लगाना एक अत्यंत प्रभावी उपाय है। मैंग्रोव वन लहरों की गति को कम करते हैं और उनकी ऊर्जा को अवशोषित करते हैं।
  3. पूर्वानुमान प्रणाली और चेतावनी तंत्र: समुद्र में भूकंपीय हलचलों का पता लगाने के लिए उन्नत चेतावनी प्रणालियों और निगरानी स्टेशनों की स्थापना आवश्यक है।
  4. तटीय आबादी का प्रशिक्षण और जागरूकता: तटीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों को सुनामी के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जिसमें सुरक्षित निकासी और राहत कार्यों की जानकारी शामिल हो।
  5. समुद्र में उच्च स्थान और प्लेटफार्म का निर्माण: गहरे समुद्र में ऊँचे प्लेटफार्म या स्टेशन बनाने पर विचार किया जा सकता है ताकि मछुआरे या नाविक चेतावनी मिलने पर सुरक्षित स्थानों पर रुक सकें।
  6. आपदा प्रबंधन और राहत कार्य: सुनामी के बाद राहत और बचाव कार्य तुरंत शुरू किए जाने चाहिए, जिसमें चिकित्सा सहायता, भोजन, और पुनर्वास शामिल है।
  7. जन सहयोग: आपदाओं से राहत दिलाने में आम लोगों का सहयोग और स्वयंसेवी तथा प्रशासनिक संस्थाओं की सक्रिय भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

3. भूकंप एवं सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने के उपायों का वर्णन कीजिए?

भूकंप और सुनामी दोनों ही अत्यंत विनाशकारी प्राकृतिक आपदाएँ हैं, जिनसे बचने और इनके प्रभावों को कम करने के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता होती है।

A. भूकंप से बचाव के उपाय:

  • भूकंप निरोधी भवन निर्माण: भूकंप संभावित क्षेत्रों में भवनों का निर्माण भूकंप-प्रतिरोधी तकनीकों के आधार पर किया जाना चाहिए।
  • पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली: भूकंपलेखी यंत्रों के माध्यम से पूर्व कंपन का अध्ययन करके बड़े भूकंपों का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • जन जागरूकता और प्रशिक्षण: लोगों को भूकंप आने पर क्या करें और क्या न करें, इसकी जानकारी देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • आपदा प्रबंधन समितियों का गठन: केंद्र और राज्य सरकारों को सक्रिय आपदा प्रबंधन समितियों का गठन करना चाहिए।
  • गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका: स्वयंसेवी संस्थाएँ राहत कार्यों, प्रशिक्षण और जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  • तत्काल राहत और बचाव कार्य: भूकंप के बाद, घायल लोगों को तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान करनी चाहिए और महामारी नियंत्रण के उपाय करने चाहिए।

B. सुनामी से बचाव के उपाय:

  • तटीय सुरक्षा संरचनाएँ: तटीय क्षेत्रों में कंक्रीट के तटबंधों (समुद्री दीवारों) और मैंग्रोव वनों का विकास सुनामी के प्रभाव को कम करता है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: सुनामी के पूर्वानुमान के लिए उन्नत सेंसर और चेतावनी केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए।
  • तटीय क्षेत्र के लोगों का प्रशिक्षण: लोगों को सुरक्षित निकासी मार्गों और शरण स्थलों के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  • समुद्र में सुरक्षित स्थान/प्लेटफार्म: गहरे समुद्र में सुरक्षित प्लेटफार्म विकसित किए जा सकते हैं, जहाँ मछुआरे शरण ले सकें।
  • पुनर्वास और लचीलापन: प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण कार्य में सुनामी-प्रतिरोधी डिजाइन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • सामुदायिक भागीदारी: आपदा प्रबंधन में आम लोगों, स्वयंसेवी संस्थाओं और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है।

इन उपायों को अपनाकर भूकंप और सुनामी जैसी विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

भाग 3: नए अभ्यास प्रश्न और उनके विस्तृत उत्तर

1. रिक्टर स्केल क्या है और यह भूकंप की तीव्रता कैसे मापता है?

रिक्टर स्केल एक लघुगणकीय मापक है जिसका उपयोग भूकंप की ऊर्जा तरंग की गहनता (तीव्रता) को मापने के लिए किया जाता है। इस स्केल पर प्रत्येक एक इकाई की वृद्धि भूकंप की गहनता में दस गुनी वृद्धि को दर्शाती है। उदाहरण के लिए, रिक्टर 6.0 का भूकंप, रिक्टर 5.0 के भूकंप से दस गुना अधिक तीव्र होता है।

2. भूकंप के समय उत्पन्न होने वाली सबसे विनाशकारी तरंग कौन सी है और क्यों?

भूकंप के समय उत्पन्न होने वाली दीर्घ (L) तरंगें सबसे विनाशकारी होती हैं। यद्यपि इनकी गति सबसे धीमी होती है और ये सबसे बाद में पहुँचती हैं, लेकिन इनकी गहनता (तीव्रता) सबसे अधिक होती है और ये क्षैतिज रूप से चलती हैं, जिससे भवनों और अन्य संरचनाओं को भारी नुकसान होता है।

3. भारत का कौन सा भूकंपीय क्षेत्र सर्वाधिक खतरे वाला है और इसमें कौन से प्रमुख राज्य या क्षेत्र शामिल हैं?

भारत का जोन 5 सर्वाधिक खतरे वाला भूकंपीय क्षेत्र है। इसमें मुख्य रूप से गुजरात का कच्छ प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड का कुमाऊँ पर्वतीय क्षेत्र, सिक्किम तथा दार्जिलिंग का पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं।

4. सुनामी की उत्पत्ति का मुख्य कारण क्या है?

सुनामी की उत्पत्ति का मुख्य कारण महासागर के तली (समुद्र के नीचे) पर होने वाला कंपन है, जो अक्सर समुद्री भूकंप या समुद्र के नीचे ज्वालामुखी के सक्रिय होने के कारण होता है।

5. 26 दिसंबर 2004 की सुनामी से भारत का कौन सा महत्वपूर्ण भौगोलिक बिंदु विलुप्त हो गया था?

26 दिसंबर 2004 की सुनामी के प्रभाव से निकोबार द्वीप समूह के दक्षिण में स्थित भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु इंदिरा पॉइंट विलुप्त हो गया था।

6. भूकंप निरोधी भवन निर्माण के पीछे क्या अवधारणा है?

भूकंप निरोधी भवन निर्माण की अवधारणा ऐसी इमारतों को डिजाइन करना है जो भूकंप के झटकों का सामना कर सकें और क्षतिग्रस्त हुए बिना खड़ी रह सकें। इसमें मजबूत नींव, लचीली संरचनात्मक सामग्री और उचित इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग शामिल है, जिससे कंपन ऊर्जा को अवशोषित किया जा सके और भवन को गिरने से रोका जा सके।

7. भूकंप के संदर्भ में "पूर्व कंपन" (Foreshocks) और "अनु कंपन" (Aftershocks) क्या होते हैं?

पूर्व कंपन भूकंप आने के पूर्व कम गहनता के कंपन होते हैं, जो मुख्य भूकंप के आने का संकेत हो सकते हैं। अनु कंपन मुख्य भूकंप के बाद आने वाले कम गहनता के कंपन होते हैं, जो भूकंपीय क्षेत्र में ऊर्जा के धीरे-धीरे मुक्त होने का परिणाम होते हैं।

8. सुनामी की लहरें गहरे समुद्र में और तट के पास पहुँचने पर कैसे व्यवहार करती हैं?

सुनामी की लहरें गहरे समुद्र में लंबी तरंगदैर्ध्य और कम ऊँचाई वाली होती हैं, जिससे वे अक्सर अदृश्य होती हैं और कम विनाशकारी होती हैं। हालाँकि, जैसे ही वे तट के पास उथले पानी में पहुँचती हैं, उनकी गति धीमी हो जाती है, लेकिन उनकी ऊँचाई और ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है, जिससे वे अत्यंत विनाशकारी हो जाती हैं।

9. भूकंप से होने वाले किन्हीं चार विनाशकारी प्रभावों का उल्लेख कीजिए।

भूकंप से होने वाले चार विनाशकारी प्रभाव हैं: भवनों का गिरना, पुलों का टूट जाना, जमीन में दरारें पड़ना, और इन दरारों से गर्म जल के सोते का निकलना। इसके अतिरिक्त, लाखों लोगों की मृत्यु भी होती है।

10. आपदा प्रबंधन में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की क्या भूमिका होती है?

गैर-सरकारी संगठन (NGOs) आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे राहत कार्यों में सहायता कर सकते हैं, मलबे से लोगों को निकालने में मदद कर सकते हैं, भूकंप निरोधी भवन निर्माण के बारे में लोगों को प्रशिक्षित कर सकते हैं, और आपदा के समय लोगों को जागरूक कर सकते हैं।

11. भारत के किन क्षेत्रों को "जोन 1" और "जोन 2" में वर्गीकृत किया गया है और उनकी भूकंपीय विशेषता क्या है?

जोन 1: इसमें दक्षिणी पठारी क्षेत्र आते हैं, जहाँ भूकंप का खतरा लगभग नहीं के बराबर है।
जोन 2: इसमें प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं। यहाँ भूकंप की संभावना तो होती है, लेकिन तीव्रता कम होने के कारण खतरा अति सीमित होता है।

12. भूकंप की तीव्रता का मापन रिक्टर स्केल पर किस प्रकार लॉग स्केल के रूप में किया जाता है?

रिक्टर स्केल एक लघुगणकीय (लॉग) मापक है। इसका मतलब यह है कि स्केल पर प्रत्येक पूर्ण संख्या वृद्धि (जैसे 5 से 6 तक) भूकंप द्वारा जारी ऊर्जा में 32 गुना की वृद्धि और कंपन की आयाम में 10 गुना की वृद्धि को दर्शाती है। यह एक गैर-रैखिक माप है जो बड़े भूकंपों की विशाल ऊर्जा को दर्शाने के लिए उपयुक्त है।

13. सुनामी से बचाव के लिए मैंग्रोव वनस्पति का विकास क्यों महत्वपूर्ण है?

मैंग्रोव वनस्पति सुनामी से बचाव के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ये घने वृक्ष समुद्र की लहरों के लिए एक प्राकृतिक अवरोध का काम करते हैं। ये सुनामी की लहरों की गति को कम करते हैं और उनकी ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों में होने वाला नुकसान काफी हद तक कम हो जाता है।

14. भूकंप के बाद राहत कार्यों के दौरान किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए?

भूकंप के बाद राहत कार्यों के दौरान तुरंत घायलों को चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए। बिना किसी जाति या धर्म के भेदभाव के लोगों को राहत सामग्री और सहायता प्रदान करनी चाहिए। महामारी फैलने से रोकने के लिए स्वच्छता बनाए रखना और मृत शरीरों का उचित निपटान करना आवश्यक है।

15. भूकंप के समय उत्पन्न होने वाली प्राथमिक (P) और द्वितीयक (S) तरंगों में मुख्य अंतर क्या है?

प्राथमिक (P) तरंगें: ये अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं जो ध्वनि तरंगों के समान होती हैं। ये सबसे तेज गति से चलती हैं और ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं।
द्वितीयक (S) तरंगें: ये अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं जो जल तरंगों के समान होती हैं। इनकी गति P तरंगों से कम होती है और ये केवल ठोस माध्यम से ही गुजर सकती हैं।

16. सुनामी के कारण तटीय पुलिन (Beach) पर क्या प्रभाव पड़ता है?

सुनामी के कारण तटीय पुलिन (समुद्र तट पर रेत) में बालू और मृदा का अपरदन (कटाव) हो जाता है। विशाल लहरें तट से बड़ी मात्रा में रेत और मिट्टी को बहा ले जाती हैं, जिससे तटीय भू-भाग का क्षरण होता है।

17. भारत में 20वीं शताब्दी में सबसे विनाशकारी भूकंप कब आया था, और वह किस भूकंपीय क्षेत्र में था?

भारत में 20वीं शताब्दी में सबसे विनाशकारी भूकंप 1934 में बिहार में आया था। यह भूकंप जोन 5 में स्थित था, जो भारत का सर्वाधिक खतरे वाला भूकंपीय क्षेत्र है।

18. सुनामी चेतावनी मिलने पर तटीय क्षेत्रों के लोगों को क्या करना चाहिए?

सुनामी चेतावनी मिलने पर तटीय क्षेत्रों के लोगों को तुरंत समुद्र से दूर, ऊँचे और सुरक्षित स्थलखंड की ओर भागना चाहिए। उन्हें अपने साथ आवश्यक वस्तुओं और दस्तावेज़ों को ले जाना चाहिए और प्रशासनिक निर्देशों का पालन करना चाहिए।

19. भूकंप आने से पहले जानवरों के व्यवहार में क्या बदलाव देखे जा सकते हैं, और क्या यह भूकंप का सटीक पूर्वानुमान है?

चीन जैसे देशों में रेंगने वाले जीवों (जैसे साँप), बतखों और अन्य जानवरों की गतिविधियों और उनके शोर में बदलाव को भूकंप के संभावित संकेत के रूप में देखा जाता है। हालांकि, यह भूकंप का पूर्ण या सटीक पूर्वानुमान नहीं देता है, लेकिन कभी-कभी यह एक अनौपचारिक चेतावनी हो सकता है।

20. आपदा प्रबंधन में 'डिस्क्रिमिनेशन' (भेदभाव) से बचने का क्या महत्व है?

आपदा प्रबंधन में 'डिस्क्रिमिनेशन' (जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव) से बचना अत्यंत महत्वपूर्ण है। आपदा के समय सभी प्रभावित व्यक्तियों को समान रूप से सहायता, राहत और समर्थन मिलना चाहिए, क्योंकि आपदा किसी को देखकर नहीं आती और संकट के समय मानवीय सहायता ही सबसे बड़ी आवश्यकता होती है। भेदभाव राहत प्रयासों को कमजोर कर सकता है और जरूरतमंदों तक पहुँचने में बाधा डाल सकता है।

भाग 4: अध्याय का संक्षिप्त सारांश (पुनरावृत्ति के लिए)

यह अध्याय भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं और उनसे बचाव के उपायों पर केंद्रित है।

  • भूकंप: पृथ्वी के ठोस भू-पटल में आंतरिक ऊर्जा से उत्पन्न कंपन को भूकंप कहते हैं। इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर मापी जाती है। भूकंपीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं - प्राथमिक (P), द्वितीयक (S), और दीर्घ (L) तरंगें, जिनमें L तरंगें सबसे विनाशकारी होती हैं। भारत को 5 भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसमें जोन 5 सर्वाधिक खतरे वाला है।
  • सुनामी: महासागर के तली पर होने वाले कंपन से उत्पन्न विशाल समुद्री लहरों को सुनामी कहते हैं। ये तट के पास बहुत शक्तिशाली हो जाती हैं। 2004 की सुनामी ने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारी विनाश किया था।
  • बचाव के उपाय:
    • भूकंप से बचाव: इसमें भूकंप निरोधी भवनों का निर्माण, जन जागरूकता, प्रशासनिक तैयारी, और गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग शामिल है।
    • सुनामी से बचाव: इसमें तटबंधों का निर्माण, मैंग्रोव वनस्पति का विकास, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, और तटीय आबादी का प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है।

यह नोट्स आपको अध्याय की गहराई को समझने और बोर्ड परीक्षा के लिए प्रभावी ढंग से तैयारी करने में मदद करेंगे। शुभकामनाएं!

अध्याय से संबंधित कीवर्ड्स

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