Bihar Board class10 Hindi chapter8: पंडित बिरजू महाराज: जीवन, कला और कथक परंपरा (सम्पूर्ण नोट्स) | Pandit Birju Maharaj Biography

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पंडित बिरजू महाराज: जीवन, कला और कथक परंपरा (सम्पूर्ण नोट्स) | Pandit Birju Maharaj Biography

पंडित बिरजू महाराज: एक गहन आत्म-अध्ययन नोट्स

यह ब्लॉग पोस्ट महान कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज की जीवनी पर आधारित है, जो छात्रों के लिए एक संपूर्ण अध्ययन सामग्री है। यहाँ हम कथक नृत्य की बारीकियों, लखनऊ घराना की परंपरा, और बिरजू महाराज के जीवन के संघर्षों और उनकी कला साधना को समझेंगे। यह अध्याय आपको भारतीय शास्त्रीय नृत्य की इस जीवंत विरासत के वाहक के जीवन में गहराई से झाँकने का अवसर देगा, जिसमें उनके गुरुओं पं. अछन महाराज, शंभु महाराज, और लच्छू महाराज का योगदान भी शामिल है।

पंडित बिरजू महाराज कथक नृत्य करते हुए

1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट व्याख्या

1.1 पंडित बिरजू महाराज का परिचय और वंश परंपरा

पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के जफरीन अस्पताल में हुआ था। उनका मूल नाम बृजमोहन मिश्र था। वे कथक नृत्य की लखनऊ घराना परंपरा के सातवीं पीढ़ी के कलाकार थे। उनके पिता और गुरु का नाम पं. अछन महाराज था, जो स्वयं एक प्रसिद्ध नर्तक थे। उनके दो चाचा भी प्रसिद्ध नर्तक थे – शंभु महाराज और लच्छू महाराज। इस प्रकार, बिरजू महाराज को नृत्य की शिक्षा और संस्कार विरासत में मिले थे।

1.2 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

बिरजू महाराज का बचपन काफी चुनौतियों भरा रहा। जब वह लगभग $9.5$ साल के थे, उनके पिता का देहांत हो गया। उनके पिता उनके अंतिम समय तक नृत्य सिखाते रहे और बिरजू महाराज को भी अपने साथ ले जाते थे। पिता के देहांत के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया, जिससे बिरजू महाराज को कम उम्र में ही कमाना शुरू करना पड़ा। उन्होंने बाबूजी से ही नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। उनके बाबूजी ने उन्हें हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाने के लिए नाचने को कहा था और उसी दिन वे दिल्ली में हनुमान जी के मंदिर में संपर्क में आए

1.3 कला साधना और गुरु परंपरा

बिरजू महाराज की शिक्षा उनके पिता, अछन महाराज से शुरू हुई। पिता की मृत्यु के बाद, उनके चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज ने उन्हें विधिवत तालीम दी। उन्होंने कथक की बारीकियों और आत्मा को इन गुरुओं से सीखा। महाराज की अथक साधना, एकाग्रनिष्ठा और कल्पनाशील सृजनात्मकता के संयोजन से ही यह सब संभव हो सका। उन्होंने नृत्य के व्याकरण और कौशल को संयमित बोध और काव्य दिया। उनकी परंपरा की प्रामाणिकता को रखते हुए उन्होंने सृजनात्मक साहस के साथ कथक का अनेक नई दिशाओं में विस्तार किया

1.4 दिल्ली में शिक्षण और शुरुआती संघर्ष

पिता के देहांत के बाद, बिरजू महाराज को अपनी माँ के कहने पर दिल्ली में हिंदुस्तानी डांस म्यूजिक स्कूल में पढ़ाने का अवसर मिला। उस समय वे मुश्किल से 6 महीने तक यहाँ रहे। बाद में वे साढ़े पांच सौ रुपये में पढ़ाने लगे और उनकी पहली कमाई 500 रुपये थी। उन्हें रामपुरी के नवाब ने अपने यहां नाचने को कहा था, और वह नवाब को पसंद आ गया।

1.5 बिरजू महाराज की नृत्य शैली और योगदान

बिरजू महाराज की कला में लय, हेसमुख, मिलनसार व्यक्तित्व और सहज-निकट भावुकता का अद्भुत मेल था। उनकी उंगलियाँ नृत्य में उलझी रहती थीं और चेहरा भावहीन होने पर भी उनमें शून्य से भरे भाव दिखते थे। वे न केवल एक उत्कृष्ट नर्तक थे बल्कि एक प्रतिभाशाली संगीतकार भी थे। वे सितार, गिटार, हारमोनियम और तबला भी बजाते थे। उन्होंने अपनी कला से जनसाधारण और नृत्य रसिकों के बीच एक गहरा संबंध स्थापित किया। उन्होंने कथक को अपनी साधना, एकाग्रनिष्ठा और कल्पनाशीलता से एक नया आयाम दिया।

1.6 जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव और अनुभव

  • - पहला पुरस्कार: बिरजू महाराज को अपना पहला पुरस्कार 14 साल की उम्र में मिला, जब वे एक कार्यक्रम में नाच रहे थे और एक नवाब साहब ने उन्हें 500 रुपये का पुरस्कार दिया।
  • - विवाह के मायने: बिरजू महाराज के अनुसार, विवाह का अर्थ है कि जो व्यक्ति खुशी से मेरे साथ रह सके
  • - कलाकारों का सम्मान: वे हमेशा कलाकारों का सम्मान करते थे और मानते थे कि कलाकार को अपना काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए
  • - शिष्यों के प्रति दृष्टिकोण: वे अपने शिष्यों को अपने बच्चों जैसा मानते थे। उन्हें शिष्यों से यह उम्मीद थी कि वे मेहनत करें और नृत्य कला को आगे बढ़ाएं

2. प्रमुख परिभाषाएँ और संकल्पनाएँ

  • कथक (Kathak): भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक शैली जिसका मूल उत्तर भारत से है। यह नृत्य कथावाचन (कथा कहने) पर केंद्रित है और इसमें भाव, ताल और मुद्राएँ महत्वपूर्ण होती हैं।
  • लखनऊ घराना (Lucknow Gharana): कथक नृत्य की एक विशेष शैली और परंपरा, जिसमें नज़ाकत, भाव-भंगिमा और कहानी कहने पर अधिक जोर दिया जाता है। बिरजू महाराज इसी घराने से संबंधित थे।
  • रियाज़ (Riyaz): संगीत या नृत्य का निरंतर अभ्यास। यह किसी भी कलाकार के लिए अपनी कला में निपुणता प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
  • साधना (Sadhana): किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किया गया गहरा और एकाग्र प्रयास या तपस्या।
  • सृजनात्मकता (Creativity): कुछ नया और मौलिक रचने की क्षमता।
  • गंडा बाँधना (Ganda Bandhna): एक पारंपरिक समारोह जिसमें गुरु अपने शिष्य के हाथ में एक पवित्र धागा बाँधकर उसे औपचारिक रूप से अपना शिष्य स्वीकार करते हैं।

3. जीवन के प्रेरक कथा-प्रसंग

3.1 पिता का देहांत और परिवार पर प्रभाव

यह एक दुखद प्रसंग है जब बिरजू महाराज के पिता पं. अछन महाराज का देहांत हो जाता है जब बिरजू महाराज केवल $9.5$ वर्ष के थे। यह घटना परिवार के लिए एक बड़ा आर्थिक और भावनात्मक संकट लेकर आई। इस घटना के बाद, बिरजू महाराज को बहुत कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी उठाने और कमाना शुरू करना पड़ा।

3.2 नवाब साहब का आशीर्वाद और हनुमान जी की पूजा

यह प्रसंग बिरजू महाराज के शुरुआती जीवन का है जब वे रामपुरी के नवाब के यहां नाचने गए थे। नवाब साहब को बिरजू महाराज का नृत्य इतना पसंद आया कि उन्होंने उनकी बहुत प्रशंसा की। उनके बाबूजी ने उन्हें एक बार हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए नाचने को कहा था। उसी दिन वे दिल्ली में हनुमान जी के मंदिर में संपर्क में आए और यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

3.3 पहली कमाई और संघर्ष

यह प्रसंग बिरजू महाराज के शुरुआती संघर्षों को दर्शाता है। जब वे दिल्ली में पढ़ा रहे थे, तब उन्होंने अपनी पहली कमाई के रूप में 500 रुपये प्राप्त किए। वे बताते हैं कि उन्हें कभी-कभी अपने खाने के लिए $1.5$ रुपये भी कम पड़ते थे। यह दर्शाता है कि प्रसिद्धि पाने से पहले उन्हें कितने आर्थिक संघर्षों से गुजरना पड़ा था।

कथक नृत्य की भाव-भंगिमा

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्न (विस्तृत उत्तर)

1. लखनऊ और रामपुर का बिरजू महाराज से क्या संबंध है?

उत्तर: पंडित बिरजू महाराज का संबंध लखनऊ घराना से है, वे इस घराने की सातवीं पीढ़ी के कलाकार थे। रामपुर से उनका संबंध इसलिए था क्योंकि उनके बाबूजी (पिताजी) रामपुर के नवाब के यहां नाचते थे। बाद में, बिरजू महाराज को भी रामपुर के नवाब ने अपने यहां नाचने को कहा था।

2. रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया?

उत्तर: बिरजू महाराज के पिता (बाबूजी) ने मन्नत मांगी थी कि यदि नौकरी दोबारा लग जाए तो वे हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाएंगे। जब बिरजू महाराज छोटे थे, तब उनके बाबूजी ने उन्हें हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए नाचने को कहा था।

3. गुरु की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े?

उत्तर: गुरु की शिक्षा के लिए बिरजू महाराज सबसे पहले दिल्ली में हिंदुस्तानी डांस म्यूजिक स्कूल से जुड़े।

4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?

उत्तर: उन्हें 14 साल की उम्र में एक कार्यक्रम में नाचते हुए एक नवाब साहब से 500 रुपये का पहला पुरस्कार मिला था।

5. बिरजू महाराज के गुरु कौन-कौन थे? उनका संक्षिप्त परिचय दें।

उत्तर: उनके गुरु थे:
- पं. अछन महाराज (पिता): प्रथम गुरु, जिन्होंने नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा दी।
- पं. शंभु महाराज (चाचा): पिता की मृत्यु के बाद विधिवत तालीम दी।
- पं. लच्छू महाराज (चाचा): शंभु महाराज के साथ मिलकर कला को निखारा।

6. बिरजू महाराज ने गुरु की शिक्षा कब देनी शुरू की?

उत्तर: जब वे लगभग 14 साल के थे, तब वे दिल्ली के हिंदुस्तानी डांस म्यूजिक स्कूल में पढ़ाने लगे थे।

7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया?

उत्तर: सबसे दुखद समय तब आया जब उनके पिता का देहांत हो गया। उस समय वे लगभग $9.5$ साल के थे

8. शंभु महाराज की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: शंभु महाराज जैसे महान गुरु से शिक्षा प्राप्त करना स्वयं में एक सकारात्मक प्रभाव था, जिसने उन्हें कथक की गहरी समझ और कलात्मक बारीकियों को सीखने में मदद की।

9. संगीत भारती में बिरजू महाराज का दिनचर्या क्या थी?

उत्तर: स्रोत में 'संगीत भारती' का उल्लेख नहीं है, लेकिन हिंदुस्तानी डांस म्यूजिक स्कूल में उनकी दिनचर्या बहुत व्यस्त थी, जिसमें शिक्षण, रियाज़ और कार्यक्रम शामिल थे।

10. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे?

उत्तर: वे सितार, गिटार, हारमोनियम और तबला जैसे कई वाद्य यंत्र बजाते थे।

11. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं?

उत्तर: उनके लिए विवाह का अर्थ था कि जो व्यक्ति खुशी से उनके साथ रह सके, वही उनका जीवनसाथी है, जिसमें ईमानदारी और आपसी समझ हो।

12. बिरजू महाराज की अपने शिष्यों के बारे में क्या राय है?

उत्तर: वे अपने शिष्यों को अपने बच्चों जैसा मानते थे और चाहते थे कि वे मेहनत करें और नृत्य कला को आगे बढ़ाएं।

13. व्याख्या करें:

(क) पाँच सौ रुपए देकर गंडा बँधवाया।
उत्तर: इसका अर्थ है कि गुरु ने शिष्य को स्वीकार करने के लिए 500 रुपये की दक्षिणा ली और 'गंडा बाँधकर' (पवित्र धागा) औपचारिक रूप से शिष्य स्वीकार किया।
(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने को लिए ये रखना, उसको सिखाना है।
उत्तर: इसका अर्थ है कि वे अपनी कला को छिपाते नहीं, बल्कि उदारतापूर्वक अपने शिष्यों को सिखाते हैं।
(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेन्ट हूँ। उस नाचने वाले का।
उत्तर: यह उनकी विनम्रता को दर्शाता है। वे स्वयं को अपने गुरुओं का मात्र सहायक या शिष्य मानते थे।

14. बिरजू महाराज अपने सबसे बड़ा शत्रु किसको मानते थे?

उत्तर: स्रोत में बिरजू महाराज द्वारा किसी को 'सबसे बड़ा शत्रु' मानने का सीधा उल्लेख नहीं है।

15. पुराने और आज के नर्तकों में बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं?

उत्तर: पुराने नर्तक कला के प्रति अधिक समर्पित और साधना करने वाले थे। आज के कुछ नर्तकों में वह सृजनात्मक साहस और परंपरा की प्रामाणिकता की कमी महसूस करते हैं।

16. कथक क्या है?

उत्तर: कथक भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक प्रमुख शैली है जिसका उद्गम उत्तर भारत से हुआ है। यह 'कथा' (कहानी) शब्द से बना है। इसकी विशेषताओं में कथावाचन, लय-ताल, अभिनय और घराना परंपरा शामिल हैं।

5. अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (विस्तृत समाधान सहित)

1. पंडित बिरजू महाराज किस घराने से संबंधित थे और वे उस घराने की कौन सी पीढ़ी के कलाकार थे?

उत्तर: पंडित बिरजू महाराज लखनऊ घराने से संबंधित थे और वे इस घराने की सातवीं पीढ़ी के कलाकार थे।

2. बिरजू महाराज के पिता का देहांत किस उम्र में हुआ था और इसका उनके परिवार पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: बिरजू महाराज के पिता का देहांत तब हुआ था जब वे लगभग $9.5$ साल के थे। इसके बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया था।

3. बिरजू महाराज की कला में किन प्रमुख तत्वों का अद्भुत मेल था?

उत्तर: उनकी कला में लय, हेसमुख, मिलनसार व्यक्तित्व और सहज-निकट भावुकता का अद्भुत मेल था।

4. बिरजू महाराज ने कथक को किस प्रकार नई दिशाओं में विस्तार दिया?

उत्तर: उन्होंने अपनी अथक साधना, एकाग्रनिष्ठा और कल्पनाशील सृजनात्मकता तथा सृजनात्मक साहस के साथ कथक का विस्तार किया।

5. बिरजू महाराज के अनुसार, एक कलाकार को किस तरह का होना चाहिए?

उत्तर: उनके अनुसार, कलाकार को एकाग्रनिष्ठ, कल्पनाशील सृजनात्मक और अपने काम के प्रति ईमानदार होना चाहिए।

6. बिरजू महाराज ने दिल्ली के हिंदुस्तानी डांस म्यूजिक स्कूल में कितने रुपये में पढ़ाना शुरू किया था?

उत्तर: उन्होंने साढ़े पांच सौ रुपये (550 रुपये) में पढ़ाना शुरू किया था।

7. बिरजू महाराज ने अपनी पहली कमाई के कितने रुपये अपनी माँ को दिए थे?

उत्तर: उन्होंने अपनी पहली कमाई के 500 रुपये अपनी माँ को दिए थे।

8. बिरजू महाराज की उंगलियों और चेहरे के बारे में अध्याय में क्या विशेष बात कही गई है?

उत्तर: उनकी उंगलियाँ नृत्य में निरंतर उलझी रहती थीं और उनका चेहरा भावहीन रहने पर भी शून्य से भरे भाव बेचैन करने वाले होते थे

9. कलकत्ता के दर्शकों को बिरजू महाराज किस प्रकार याद करते हैं?

उत्तर: वे कलकत्ता के दर्शकों को ईमानदार और कला को सराहने वाले मानते थे, जो अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहते थे।

10. 'गंडा बाँधना' का क्या अर्थ है?

उत्तर: 'गंडा बाँधना' गुरु-शिष्य परंपरा का एक संस्कार है, जिसमें गुरु शिष्य के हाथ में पवित्र धागा बाँधकर उसे औपचारिक रूप से अपना शिष्य स्वीकार करते हैं।

11. बिरजू महाराज की तुलना किन कवियों से की गई है, और क्यों?

उत्तर: उनकी तुलना कबीर और धूमिल जैसे कवियों से की गई है क्योंकि वे कला और जनसाधारण के बीच एक पुल थे और उनकी कला में संयमित बोध और काव्य का मेल था।

12. बिरजू महाराज का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर: उनका जन्म लखनऊ के जफरीन अस्पताल में हुआ था।

13. बिरजू महाराज ने नृत्य के अलावा और कौन-कौन से संगीत उपकरण बजाना सीखा था?

उत्तर: नृत्य के अलावा, बिरजू महाराज सितार, गिटार, हारमोनियम और तबला भी बजाते थे।

14. बिरजू महाराज को अपना पहला बड़ा पुरस्कार कब और किससे मिला?

उत्तर: उन्हें 14 साल की उम्र में एक नवाब साहब से 500 रुपये का पुरस्कार मिला।

15. पिता की मृत्यु के बाद बिरजू महाराज की तालीम किसने पूरी करवाई?

उत्तर: पिता की मृत्यु के बाद, उनके चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज ने उन्हें विधिवत तालीम दी।

16. बिरजू महाराज के जीवन की शुरुआती आर्थिक स्थिति कैसी थी?

उत्तर: उनकी शुरुआती आर्थिक स्थिति काफी संघर्षपूर्ण थी, और उन्हें बहुत कम उम्र में कमाना पड़ा।

17. बिरजू महाराज ने अपने शिष्यों से क्या उम्मीद रखी?

उत्तर: वे उम्मीद करते थे कि उनके शिष्य मेहनत करें और नृत्य कला को आगे बढ़ाएं

18. बिरजू महाराज ने अपनी कला को जनसाधारण से कैसे जोड़ा?

उत्तर: उन्होंने अपनी कला में मिलनसार व्यक्तित्व और सहज-निकट भावुकता का समावेश कर जनसाधारण और नृत्य रसिकों के बीच एक गहरा संबंध स्थापित किया।

19. बिरजू महाराज के शरीर पर बचपन में किस बीमारी के निशान थे?

उत्तर: स्रोत के अनुसार, उनके शरीर पर बचपन में चेचक के हल्के दाग और बड़ी-बड़ी फुंसियों वाला दोहरा बदन था।

20. बिरजू महाराज के नृत्य में परंपरा और नवीनता का संगम कैसे दिखता है?

उत्तर: उन्होंने परंपरा की प्रामाणिकता को बनाए रखते हुए अपनी कल्पनाशील सृजनात्मकता और सृजनात्मक साहस से कथक को नई दिशाओं में विस्तार दिया, जो परंपरा और नवीनता का अद्भुत संगम है।

6. अध्याय का संक्षिप्त सारांश (पुनरावृत्ति)

"पंडित बिरजू महाराज" अध्याय महान कथक नर्तक के प्रेरक जीवन और कला साधना का एक संक्षिप्त परिचय है। उनका जन्म लखनऊ के प्रतिष्ठित कथक घराने में हुआ। कम उम्र में पिता के देहांत के बाद, उन्होंने आर्थिक चुनौतियों का सामना किया और अपनी मेहनत, एकाग्रनिष्ठा और कल्पनाशीलता से कथक को एक नया आयाम दिया। वे केवल नर्तक ही नहीं, बल्कि एक बहुमुखी संगीतकार भी थे। यह अध्याय हमें एक महान कलाकार के समर्पण, संघर्ष और भारतीय शास्त्रीय कला में उनके अमूल्य योगदान से परिचित कराता है।

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