आत्म-अध्ययन नोट्स: भारतमाता
नमस्ते प्यारे विद्यार्थियों!
यह नोट्स 'भारतमाता' कविता अध्याय पर आधारित हैं, जिन्हें विशेष रूप से आपकी बोर्ड परीक्षा की तैयारी और गहन समझ के लिए तैयार किया गया है। यह कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है और कक्षा 10 हिंदी 'गो धूलि' का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन नोट्स में हम 'भारतमाता ग्रामवासिनी' की सम्पूर्ण व्याख्या, शब्दार्थ, भावार्थ और सभी महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर को समझेंगे। इन्हें पढ़कर आप पूरे अध्याय को आसानी से समझ सकेंगे और सभी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को आत्मसात कर सकेंगे।
कवि परिचय
प्रस्तुत कविता "भारतमाता" सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है [यह जानकारी दिए गए स्रोतों में नहीं है और इसे स्वतंत्र रूप से सत्यापित किया जा सकता है]। पंत जी छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं और अपनी प्रकृति चित्रण तथा मानवीय संवेदनाओं के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इस कविता में भारतमाता के परतंत्रता काल के दुखद चित्र के साथ-साथ उसकी गरिमा का भी वर्णन किया है।
1. सभी महत्वपूर्ण विषयों की सरल, विस्तृत एवं स्पष्ट हिंदी में व्याख्या
यह कविता परतंत्र भारत की दीन-हीन दशा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है और भारतमाता को एक ऐसी ग्रामीण महिला के रूप में चित्रित करती है जो अपने ही देश में पराई हो गई है।
कविता का सारांश एवं व्याख्या
पहला पद (Stanza 1)
"भारतमाता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू-जल
मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी !"
व्याख्या: कवि कहता है कि भारतमाता गाँवों में निवास करने वाली हैं ('ग्रामवासिनी')। उनके हरे-भरे खेत आज श्यामले (फीके/उदास) पड़ गए हैं, मानो वही उनका मैला-सा, धूल से भरा आँचल हो। गंगा और यमुना नदियाँ, जो कभी जीवनदायिनी थीं, आज आँसुओं के जल से भरी हुई प्रतीत होती हैं। इस तरह, भारतमाता मिट्टी की एक उदास प्रतिमा के समान प्रतीत होती हैं, जो परतंत्रता के कारण दीन-हीन और शक्तिहीन हो गई हैं।
दूसरा पद (Stanza 2)
"दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन, अंधों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन
वह अपने घर में प्रवासिनी !"
व्याख्या: भारतमाता की दृष्टि गरीबी के कारण निश्चल और झुकी हुई है ('दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन')। उनके करोड़ों बच्चों की आँखों में अंधकार छाया हुआ है, और वे चुपचाप निरंतर रोते रहते हैं। उनका मन युगों-युगों के अज्ञानता और दुःख के अंधकार से विषादपूर्ण है। सबसे दुखद बात यह है कि वह आज अपने ही घर में परदेसी (प्रवासिनी) बन गई हैं।
तीसरा पद (Stanza 3)
"तीस कोटि नग्न तन मन, अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक तरु-तल निवासिनी !"
व्याख्या: कवि बताता है कि भारत की तीस करोड़ जनता आज वस्त्रहीन, आधी भूखी, शोषित, और शस्त्रविहीन है। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन हो गए हैं। उनके मस्तक झुके हुए हैं और वे पेड़ों के नीचे रहने को विवश हैं।
चौथा पद (Stanza 4)
"स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित, राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी !"
व्याख्या: भारत की सोने जैसी फसलें दूसरों के पैरों तले रौंदी जा रही हैं। भारतमाता का मन, जो धरती के समान सहनशील है, अब कुंठित हो गया है। उनके होंठ रुदन से काँप रहे हैं, फिर भी वे चुपचाप मुस्कुराने का प्रयास कर रही हैं। उनकी सुंदर शरद पूर्णिमा के चंद्रमा जैसी हंसी आज राहु द्वारा ग्रसित हो गई है।
पाँचवाँ पद (Stanza 5)
"चितित भ्रुकुटी क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
गीता प्रकाशिनी !"
व्याख्या: भारतमाता की भौंहें चिंता से तनी हुई हैं और वे क्षितिज के अंधकार से घिरी हुई हैं। उनके झुके हुए नयन आकाश में वाष्प (आँसुओं) से ढके हुए हैं। उनके मुख की शोभा चंद्रमा की छाया से उपमा दी गई है। लेकिन इन सबके बावजूद, वह भारतमाता ही हैं जिन्होंने विश्व को गीता का ज्ञान दिया है।
छठा पद (Stanza 6)
"सफल आज उसका तप संयम, पिला अहिंसा सत्य सुधोपम,
हस्ती जन-जन भय, भव-तम-भ्रम,
जय-जननी जीवन-विकासिनी !"
व्याख्या: आज भारतमाता का तप और संयम सफल हुआ है। उन्होंने अपनी जनता को अहिंसा और सत्य रूपी अमृत पिलाया है। यह अहिंसा और सत्य ही लोगों के मन से भय और संसार के अंधकार को दूर कर रहा है। कवि अंत में भारतमाता को 'जय-जननी' और 'जीवन-विकासिनी' कहकर उनका जयगान करता है।
2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या
यहां कविता में प्रयुक्त कुछ महत्वपूर्ण शब्दों और अवधारणाओं की व्याख्या दी गई है:
- श्यामल: साँवला
- दैन्य: दीनता, गरीबी
- जड़ित: स्थिर, चेतनाहीन
- नत: झुका हुआ
- चितवन: दृष्टि
- चिर: पुराना, स्थायी
- नीरव: नि:शब्द, ध्वनिहीन
- तम: अंधकार
- विषण्ण: विषादमय
- प्रवासिनी: विदेशिनी, बेगानी
- क्षुधित: भूखा
- निरस्त्रजन: निहत्थे लोग
- शस्य: फसल
- तरु-तल: वृक्ष के नीचे
- पर-पद-तल: दूसरों के पाँवों के नीचे
- लुंठित: रौंदा जाता हुआ
- सहिष्णु: सहनशील
- कुंठित: रुका हुआ, रुद्ध
- क्रंदन: रुदन, रोना
- अधर: होंठ
- स्मित: मुस्कान
- शरदेन्दु: शरद ऋतु का चन्द्रमा
- भ्रुकुटी: भौंह
- तिमिरांकित: अंधकार से घिरा हुआ
- नमित: झुका हुआ
- वाष्पाच्छादित: भाप से ढँका हुआ
- आनन-श्री: मुख की शोभा
- शशि-उपमित: चंद्रमा से उपमा दी जाने वाली
- सत्य: सत्य का दूध
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
कविता के साथ
1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है?
उत्तर: प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता को एक ग्रामवासिनी के रूप में चित्रित करते हैं। उनका आँचल धूल से भरा और मैला है, गंगा-यमुना आँसुओं से भरी हैं, और वे स्वयं मिट्टी की एक उदास प्रतिमा के समान हैं। यह चित्र परतंत्रता कालीन भारत की दयनीय स्थिति का मार्मिक वर्णन है।
2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है?
उत्तर: भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी इसलिए बनी हुई हैं, क्योंकि परतंत्रता के कारण वे अपने ही देश में पराई हो गई हैं। विदेशी शासन के अधीन होने के कारण, भारत के संसाधनों का शोषण हो रहा है और उनकी अपनी भूमि पर उनका अधिकार नहीं है, जिससे वे एक बेगानी स्त्री की तरह असहाय महसूस कर रही हैं।
3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है?
उत्तर: कवि भारतवासियों का अत्यंत दयनीय चित्र खींचता है। वे तीस करोड़ लोग नग्न, भूखे, शोषित, निहत्थे, मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन हैं। उनके मस्तक झुके हुए हैं और वे पेड़ों के नीचे निवास करने को विवश हैं, जो उनकी सामाजिक और आर्थिक गुलामी को दर्शाता है।
4. भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर कवि ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है?
उत्तर: कवि भारतमाता को 'गीता प्रकाशिनी' कहता है क्योंकि भारत ने विश्व को गीता का ज्ञान दिया। इसके बावजूद, कवि भारतवासियों को 'ज्ञानमूढ़' कहता है क्योंकि परतंत्रता के कारण उसी देश के लोग अज्ञानता के अंधकार में डूबे हुए हैं। यह विरोधाभास कवि को व्यथित करता है।
5. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम सफल है?
उत्तर: हाँ, कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम सफल है। कविता के अंत में कवि कहता है कि भारतमाता ने अपनी जनता को अहिंसा और सत्य का अमृत पिलाया है, जिससे लोग भय और भ्रम से मुक्त हो रहे हैं। यह स्वतंत्रता संग्राम की सफलता और एक नए युग के आरंभ का संकेत है।
6. व्याख्या करें: (क) "स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित..." (ख) "चितित भ्रुकुटी क्षितिज तिमिरांकित..."
(क) "स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित...": यह पंक्तियाँ परतंत्र भारत के आर्थिक शोषण और मानसिक पीड़ा का चित्रण करती हैं। भारत की सोने जैसी फसलें दूसरों के पैरों तले रौंदी जा रही हैं। भारतमाता का धरती जैसा सहनशील मन भी अब कुंठित हो गया है। उनके होंठ रोने से काँप रहे हैं, पर वे मौन मुस्कुरा रही हैं। उनकी शरद पूर्णिमा जैसी हँसी पर राहु (परतंत्रता) का ग्रहण लग गया है।
(ख) "चितित भ्रुकुटी क्षितिज तिमिरांकित...": यह पंक्तियाँ भारतमाता की चिंता और दुःख से भरी अवस्था का वर्णन करती हैं। उनकी भौंहें चिंता के कारण तनी हुई हैं और वे अंधकार से घिरे क्षितिज को देख रही हैं। उनके झुके हुए नयन आँसुओं की भाप से ढके हुए हैं, जो उनकी गहरी उदासी और पीड़ा को प्रकट करते हैं।
भाषा की बात
1. कविता के हर अनुच्छेद में विशेषण का संज्ञा की तरह प्रयोग हुआ है। आप उनका चयन करें एवं वाक्य बनाएँ।
- उदासिनी (उदास स्त्री): वह उदासिनी मिट्टी की प्रतिमा जैसी लग रही थी।
- प्रवासिनी (प्रवासी स्त्री): भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई थी।
- अशिक्षित (जो शिक्षित न हो): देश की बड़ी आबादी आज भी अशिक्षित है।
- निर्धन (गरीब): लाखों निर्धन लोग अभाव में जी रहे हैं।
2. निम्नलिखित को विग्रह करते हुए समास स्पष्ट करें:
- ग्रामवासिनी: ग्राम में वास करने वाली (तत्पुरुष समास)
- गंगा-यमुना: गंगा और यमुना (द्वंद्व समास)
- शरदेन्दु: शरद का इन्दु (चंद्रमा) (तत्पुरुष समास)
- दैन्यजड़ित: दैन्य से जड़ित (करण तत्पुरुष)
- तिमिरांकित: तिमिर से अंकित (करण तत्पुरुष)
- वाष्पाच्छादित: वाष्प से आच्छादित (करण तत्पुरुष)
- ज्ञानमूढ़: ज्ञान से मूढ़ (करण तत्पुरुष)
- तपसंयम: तप और संयम (द्वंद्व समास)
- जन-मन-भय: जन के मन का भय (षष्ठी तत्पुरुष)
- भव-तम-भ्रम: भव के तम का भ्रम (षष्ठी तत्पुरुष)
3. कविता से तीन तत्पुरुष समास चुनें और उनका स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें:
- जीवन-विकासिनी: हमारी माँ परिवार की जीवन-विकासिनी हैं।
- शरदेन्दु: आकाश में शरदेन्दु की चाँदनी मनमोहक थी।
- ज्ञानमूढ़: अज्ञानता के कारण वह ज्ञानमूढ़ बना हुआ है।
4. कविता से तीन विशेषण चुनें और उनका स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें:
- उदासिनी: वह लड़की आज बहुत उदासिनी दिख रही थी।
- श्यामल: रात का श्यामल रंग धीरे-धीरे गहरा हो रहा था।
- सहिष्णु: हमें एक-दूसरे के प्रति सहिष्णु होना चाहिए।
20 नए अभ्यास प्रश्न (विस्तृत समाधान सहित)
1. कवि ने भारतमाता के आँचल को 'धूल-भरा मैला-सा' क्यों कहा है?
उत्तर: यह परतंत्र भारत की गरीबी, दुर्दशा और उपेक्षा का प्रतीक है। धूल यहाँ उपेक्षा और गंदगी को दर्शाती है, जबकि मैलापन देश की गिरी हुई स्थिति को।
2. 'गंगा-यमुना में आँसू-जल' पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर: इसका आशय है कि गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियाँ आज भारतमाता के दुःख और पीड़ा का प्रतीक बन गई हैं, मानो वे भारतवासियों की दयनीय दशा के कारण बहाए गए आँसुओं से भरी हों।
3. भारतमाता को 'मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी' कहने का क्या कारण है?
उत्तर: इसका कारण यह है कि परतंत्रता के कारण वे शक्तिहीन, निर्जीव और असहाय हो गई हैं, जैसे मिट्टी की प्रतिमा में जान नहीं होती।
4. 'दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन' पंक्ति से कवि क्या भाव व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर: इस पंक्ति से कवि भारतमाता की गरीबी और लाचारी से उत्पन्न स्थिर, झुकी हुई दृष्टि का भाव व्यक्त करना चाहता है।
5. 'युग-युग के तम से विषण्ण मन' का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि भारतमाता का मन युगों-युगों से चले आ रहे अंधकार (गुलामी, शोषण) के कारण विषादपूर्ण और दुखी है।
6. 'तीस कोटि नग्न तन मन' से कवि किस समस्या को उजागर करता है?
उत्तर: इससे कवि भारतीय समाज की गरीबी, भुखमरी और वस्त्रहीनता की समस्या को उजागर करता है।
7. भारतीयों को 'मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन' क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि ब्रिटिश शासन ने उनका शोषण किया और शिक्षा व विकास पर ध्यान नहीं दिया, जिससे वे अज्ञानता और गरीबी में धंस गए।
8. 'स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित' पंक्ति में किस प्रकार के शोषण की बात हो रही है?
उत्तर: इस पंक्ति में भारत की कृषि संपदा और संसाधनों के आर्थिक शोषण की बात हो रही है, जिसे विदेशी शासक रौंद रहे हैं।
9. 'धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित' में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर: इसमें उपमा अलंकार है, क्योंकि 'सा' शब्द के प्रयोग से मन की तुलना धरती से की गई है।
10. 'क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित' पंक्ति में निहित विरोधाभास को स्पष्ट करें।
उत्तर: यहाँ 'रोने से काँपते होंठ' और 'चुपचाप मुस्कान' दो विपरीत क्रियाएँ हैं, जो भारतमाता के आंतरिक दुःख और बाहरी धैर्य को दर्शाती हैं।
11. 'राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी' में 'राहु' किसका प्रतीक है?
उत्तर: इसमें 'राहु' ब्रिटिश उपनिवेशवाद और उसके द्वारा किए गए शोषण का प्रतीक है।
12. 'चितित भ्रुकुटी क्षितिज तिमिरांकित' पंक्ति में भारतमाता की किस मनःस्थिति का चित्रण है?
उत्तर: इस पंक्ति में भारतमाता की चिंता और भविष्य के प्रति अनिश्चितता से भरी मनःस्थिति का चित्रण है।
13. 'आनन श्री छाया-शशि उपमित' से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: कवि कहना चाहता है कि भारतमाता का मुख परतंत्रता के कारण अपनी स्वाभाविक कांति और तेज खो चुका है, जैसे चंद्रमा पर ग्रहण लग गया हो।
14. भारतमाता को 'गीता प्रकाशिनी' क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि भारत ही वह भूमि है जहाँ श्रीमद्भगवद्गीता की रचना हुई, जिसने विश्व को आध्यात्मिक ज्ञान का प्रकाश दिखाया।
15. कवि किस 'तप-संयम' के सफल होने की बात करता है?
उत्तर: कवि भारतमाता के उस 'तप-संयम' की बात करता है जो उन्होंने अपनी जनता को अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाकर प्राप्त किया, यह स्वतंत्रता आंदोलन की ओर संकेत है।
16. 'पिला अहिंसा सत्य सुधोपम' पंक्ति का क्या महत्व है?
उत्तर: इसका महत्व यह है कि यह गांधीवादी दर्शन को दर्शाती है, जहाँ अहिंसा और सत्य को अमृत के समान जीवनदायिनी और मुक्तिदायक बताया गया है।
17. 'हस्ती जन-जन भय, भव-तम-भ्रम' पंक्ति किस बदलाव को इंगित करती है?
उत्तर: यह पंक्ति स्वतंत्रता संग्राम में जनता के भीतर आए बदलाव को इंगित करती है, जहाँ उनके मन से भय और भ्रम दूर हो रहा था।
18. कवि भारतमाता को 'जीवन-विकासिनी' क्यों कहता है?
उत्तर: क्योंकि वही अपने बच्चों (जनता) को जीवन देती हैं और स्वतंत्रता के बाद उनके विकास का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
19. कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर: इसका केंद्रीय भाव परतंत्र भारत की दयनीय दशा और भारतमाता की पीड़ा का चित्रण करना, साथ ही अहिंसा और सत्य के मार्ग से स्वतंत्रता की ओर बढ़ते भारत का आशावादी संदेश देना है।
20. इस कविता में कवि ने 'माँ' और 'मातृभूमि' के बीच क्या संबंध स्थापित किया है?
उत्तर: कवि ने 'माँ' (भारतमाता) और 'मातृभूमि' के बीच एक अभेद संबंध स्थापित किया है। मातृभूमि सिर्फ एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक सजीव माँ है जिसके सुख-दुःख का सीधा संबंध उसके बच्चों और धरती से है।
संक्षिप्त सारांश (बोर्ड परीक्षा हेतु)
'भारतमाता' कविता परतंत्र भारत की दयनीय स्थिति का मार्मिक चित्रण करती है, जहाँ भारतमाता को एक उदास, धूल-धूसरित, गरीबी से जकड़ी हुई ग्रामीण स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनकी 30 करोड़ संतानें भूखी, नंगी, अशिक्षित और शोषित हैं। विदेशी शासन के कारण देश के स्वर्णिम संसाधन लूटे जा रहे हैं। हालांकि, कवि यह भी दर्शाता है कि भारतमाता ने गीता का ज्ञान दिया है और उनका तप-संयम सफल हुआ है। उन्होंने अपनी जनता को अहिंसा और सत्य का अमृत पिलाया है, जिससे लोगों के मन से भय और भ्रम दूर हो गया है। अंत में, कवि भारतमाता को 'जय-जननी' और 'जीवन-विकासिनी' कहकर उनके भावी जागरण की उद्घोषणा करता है।
मुझे उम्मीद है कि यह विस्तृत आत्म-अध्ययन नोट्स आपकी 'भारतमाता' अध्याय को समझने में पूरी सहायता करेंगे और आपको बोर्ड परीक्षा के लिए आत्मविश्वास प्रदान करेंगे। शुभकामनाएँ!
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भारतमाता, सुमित्रानंदन पंत, भारतमाता ग्रामवासिनी, कक्षा 10 हिंदी, गो धूलि, भारतमाता कविता की व्याख्या, Class 10 Hindi Chapter BharatMata, Sumitranandan Pant, भारतमाता प्रश्न उत्तर, तीस कोटि संतान, गीता प्रकाशिनी, बिहार बोर्ड हिंदी कक्षा 10, BSEB Class 10 Hindi notes, भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है, स्वर्ण शस्य पर पद तल लुंठित, राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी, छायावाद, पंत की कविता, परतंत्र भारत का चित्रण, अहिंसा सत्य सुधोपम, जीवन-विकासिनी, भारतमाता का सारांश, भारतमाता का भावार्थ, दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन, तरु तल निवासिनी, हिंदी कविता व्याख्या.