Bihar Board Class10 Poem: स्वदेशी (भारतेंदु हरिश्चंद्र) - कक्षा 10 हिंदी | सम्पूर्ण व्याख्या और प्रश्न उत्तर

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स्वदेशी (भारतेंदु हरिश्चंद्र) - कक्षा 10 हिंदी | सम्पूर्ण व्याख्या और प्रश्न उत्तर

स्वदेशी - भारतेंदु हरिश्चंद्र

प्रिय छात्रों,
यह नोट्स आपके "गो धूलि" पाठ्यपुस्तक के अध्याय "स्वदेशी" पर आधारित हैं, जिसे महान कवि और आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा है। यह अध्याय हमें भारतीय समाज में बढ़ती विदेशी वस्तुओं और आदतों के प्रभाव तथा स्वदेशी भावना के महत्व के बारे में गहन विचार करने पर मजबूर करता है। इन नोट्स का उद्देश्य आपको कक्षा 10 हिंदी के इस अध्याय को गहराई से समझने, सभी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को आत्मसात करने और बोर्ड परीक्षा के लिए आत्मविश्वास के साथ तैयारी करने में मदद करना है।

महत्वपूर्ण शब्दार्थ (Important Word Meanings)

यहाँ अध्याय में प्रयोग किए गए कुछ महत्वपूर्ण शब्द और उनके अर्थ दिए गए हैं, जो 'शब्द निधि' से लिए गए हैं, और कुछ अतिरिक्त शब्द भी हैं:

  • गति: स्वभाव, प्रकृति, आदत
  • रीत: पद्धति, तरीका, विधि
  • मनुज भारती: भारतीय मनुष्य
  • ख्रिस्तान: ईसाई, अंग्रेज
  • बसन: वस्त्र, कपड़ा
  • बानक: वेशभूषा, पहनावा
  • खामख्याली: कोरी कल्पना, मनमौजी विचार
  • चाहूँ बरन: चारों वर्णों में (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र)
  • डफली: डफ बजानेवाला, बाजा बजानेवाला
  • सबै: सभी, सारे
  • देस: देश, राष्ट्र
  • परदेस: विदेश
  • लखात: दिखाई देता है
  • मरसद्द: महसूस होता है
  • कोऊ: कोई भी
  • सकत: सकते हैं, सक्षम
  • पहचान: पहचानना
  • भयो: हो गया है
  • बढ़त: बढ़ती है
  • उच्छेदन: नष्ट करना, मिटाना
  • ओ: और, तथा
  • बाजन: बजाना
  • उपभोग: उपयोग, इस्तेमाल
  • रूचि: पसंद, स्वाद, चाह
  • गृह: घर, मकान
  • सकल: सभी, संपूर्ण
  • देस विपरीत: देश के विरुद्ध
  • सकुचि: संकोच करके
  • लाजात: शर्माते हैं, लज्जित होते हैं
  • सो: वही, वह
  • बिनु: बिना, बगैर
  • हातन: हाथों में
  • दिख्खहु: देखो
  • माळ (माल): सामान
  • तनकी (तान की): ताकत की
  • खोटी: खराब, बुरी
  • डाली (छोड़ दी): फेंक दी
  • प्रबंध: व्यवस्था
  • दास-बृत्ति: गुलामी की आदत
  • खुशामद: चाटुकारिता, चापलूसी
  • झूठ: असत्य
  • मानहुँ: मानो, समझो

पद्यांशों की व्याख्या (Explanation of Stanzas)

यह कविता छह दोहों में लिखी गई है। आइए, प्रत्येक दोहे को विस्तार से समझते हैं:

पहला दोहा

"सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रीत लखात।
भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात।।"
व्याख्या: कवि कहते हैं कि आजकल लोगों में हर जगह विदेशी वस्तुएँ और विदेशी तौर-तरीके (गति रीत) ही दिखाई पड़ते हैं। अब भारत में भारतीयता नाम की कोई चीज दिखाई या महसूस नहीं होती। कवि इस बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि भारतीय लोग अपनी पहचान खोते जा रहे हैं।

दूसरा दोहा

"मनुज भारती देखि कोऊ, सकत नहिं पहिचान।
मुसलमान, हिंदू किधौं, कै है ये ख्रिस्तान।।"
व्याख्या: कवि इस दोहे में कहते हैं कि किसी भारतीय व्यक्ति को देखकर अब कोई यह पहचान नहीं सकता कि वह कौन है। विदेशी पहनावे और तौर-तरीकों के कारण यह भेद कर पाना मुश्किल हो गया है कि वह मुसलमान है, हिंदू है या ईसाई (ख्रिस्तान)। इसका अर्थ है कि लोग अपनी संस्कृति और पहचान भूलकर पश्चिमी संस्कृति अपना रहे हैं।

तीसरा दोहा

"पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि बिदेसी पाय।
चाल-चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय।।"
व्याख्या: कवि बताते हैं कि भारतीयों ने विदेशों की विद्या पढ़कर विदेशी बुद्धि प्राप्त कर ली है। अब उन्हें विदेशी चाल-चलन और रहन-सहन बहुत अधिक पसंद आने लगा है। यह दोहा शिक्षा और संस्कृति पर विदेशी प्रभाव को दर्शाता है।

चौथा दोहा

"ठटे बिदेसी ठाट सब, बन्यो देस बिदेस।
सपनेंहूँ जिनु कहौ, भारतीयता लेसु।।"
व्याख्या: कवि कहते हैं कि अब भारत में हर तरफ विदेशी शान-शौकत (ठाट) ही दिखाई देती है, ऐसा लगता है जैसे देश ही विदेश बन गया हो। सपने में भी कहीं भारतीयता का जरा सा भी अंश (लेसु) नहीं दिखाई देता। यह भारतीय संस्कृति के लुप्त होने की ओर इशारा करता है।

पांचवां दोहा

"अंगरेजी भाजन करत, अंगरेजी उपभोग।
अंगरेजी बाहन, बसन, बेष रीत ओ नीति।।"
व्याख्या: इस दोहे में कवि विस्तार से बताते हैं कि भारतीय लोग अंग्रेजों के बर्तनों (भाजन) का उपयोग करते हैं और अंग्रेजी चीजों का उपभोग (उपयोग) करते हैं। वे अंग्रेजों के वाहन (गाड़ियाँ), वस्त्र (बसन), वेशभूषा (बेष), रीति-रिवाज (रीत) और यहाँ तक कि उनकी नीतियों को भी अपना रहे हैं।

छठा दोहा

"अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।
हिंदुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात।।"
व्याख्या: कवि कहते हैं कि लोगों की रुचि अंग्रेजी चीजों में हो गई है, उनके घर (गृह) और सभी वस्तुएँ (सकल वस्तु) देश के विरुद्ध (देस विपरीत) विदेशी हो गई हैं। स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अब भारतीय लोग 'हिंदुस्तानी' नाम सुनकर भी संकोच करते हैं और शर्मिंदा होते हैं। इसका अर्थ है कि वे अपनी पहचान और परंपरा से कट गए हैं।

अभ्यास प्रश्न और उनके उत्तर (Exercise Questions and Answers)

बोध और अभ्यास (Understanding and Practice)

1. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कविता का शीर्षक 'स्वदेशी' पूर्णतः सार्थक है। कवि ने इस शीर्षक के माध्यम से भारतीयों में बढ़ती हुई विदेशी वस्तुओं, वेशभूषा, चाल-चलन, भाषा और रीति-रिवाजों के प्रति मोह तथा अपनी भारतीयता के परित्याग पर गहरा व्यंग्य किया है। कविता का मूल विषय ही स्वदेश प्रेम और अपनी संस्कृति के प्रति जागरूकता का आह्वान करना है। कवि चाहते हैं कि लोग विदेशी संस्कृति के प्रभाव से निकलकर अपनी स्वदेशी पहचान को पुनः अपनाएँ। शीर्षक कविता के केंद्रीय भाव को सटीक रूप से व्यक्त करता है।
2. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिख पड़ती?
उत्तर: कवि को भारत में भारतीयता इसलिए नहीं दिख पड़ती क्योंकि भारतीयों ने हर क्षेत्र में विदेशी वस्तुओं, चाल-चलन और रीति-रिवाजों को अपना लिया है। कवि के अनुसार, लोग विदेशी विद्या पढ़कर विदेशी बुद्धि पा गए हैं, उन्हें विदेशी चाल-चलन अत्यधिक भाने लगा है। देश में चारों ओर विदेशी शान-शौकत (ठाट) ही दिखाई देती है। वे अंग्रेजी बर्तनों, वाहनों, वस्त्रों और नीतियों को अपनाते हैं। यहाँ तक कि 'हिंदुस्तानी' नाम सुनकर भी उन्हें शर्म आती है। इसी कारण कवि को भारत में भारतीयता का 'लेसु' (अंश) भी कहीं दिखाई नहीं देता।
3. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों?
उत्तर: कवि समाज के उस वर्ग की आलोचना करते हैं जो विदेशी शिक्षा, संस्कृति, वेशभूषा और वस्तुओं का अंधानुकरण कर रहा है। यह वह वर्ग है जो अपनी मूल भारतीय पहचान, भाषा और परंपराओं को त्यागकर पश्चिमी सभ्यता को अपना रहा है। कवि उनकी आलोचना इसलिए करते हैं क्योंकि इस प्रवृत्ति के कारण भारतीयता लुप्त होती जा रही है, लोग अपनी ही संस्कृति से विमुख हो रहे हैं और 'हिंदुस्तानी' कहलाने में भी संकोच महसूस कर रहे हैं। यह स्थिति देश की आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए हानिकारक है।
4. कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है?
उत्तर: कवि ने नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर सीधे तौर पर टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उनकी कविताओं से यह स्पष्ट होता है कि वे विदेशी वस्तुओं की बढ़ती हुई पैठ से चिंतित हैं। कवि कहते हैं कि "सबै बिदेसी वस्तु नर..." और "अंग्रेजी उपभोग", जिससे बाजार में स्वदेशी उत्पादों की मांग कम हो रही है और विदेशी उत्पादों का बोलबाला बढ़ रहा है। यह परोक्ष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के कमजोर होने और विदेशी निर्भरता बढ़ने की ओर इशारा करता है।
5. नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है?
उत्तर: प्रस्तुत कविता में कवि ने सीधे तौर पर नेताओं के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। हालाँकि, इस कविता में सामान्य जनमानस पर विदेशी प्रभाव का वर्णन है, जो परोक्ष रूप से यह भी दर्शाता है कि शायद उस समय के मार्गदर्शक वर्ग ने भी स्वदेशी चेतना को पर्याप्त बढ़ावा नहीं दिया।
6. कवि ने 'डफली' किसे कहा है और क्यों?
उत्तर: प्रस्तुत कविता में 'डफली' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। दिए गए 'शब्द निधि' में 'डफली' का अर्थ 'डफ बजानेवाला' है। कविता में जो 'डफली' से मिलता-जुलता भाव है वह "करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली" है। यदि यह प्रश्न इस पंक्ति से संबंधित है, तो कवि ने उन लोगों को 'डफली' कहा है जो अंग्रेजों की चापलूसी करते हैं और उनकी झूठी प्रशंसा करते हैं, क्योंकि वे बिना सोचे-समझे दूसरों की धुन पर नाचते हैं।
7. व्याख्या करें: (क) मनुज भारती देखि कोऊ, सकत नहिं पहिचान। (ख) अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।

(क) मनुज भारती देखि कोऊ, सकत नहिं पहिचान।

उत्तर: इस पंक्ति में कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र विदेशी वेशभूषा और तौर-तरीकों को अपनाने के कारण भारतीयों की बदलती पहचान पर चिंता व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि आज भारतीय व्यक्ति को देखकर कोई भी उसे पहचान नहीं पाता कि वह मूल रूप से कौन है। विदेशी प्रभाव इतना गहरा हो गया है कि लोग अपनी पारंपरिक पहचान खो रहे हैं। यह पंक्ति सांस्कृतिक पहचान के संकट को उजागर करती है।


(ख) अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।

उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से कवि बताते हैं कि लोगों की पसंद (रुचि) पूरी तरह से अंग्रेजी हो गई है। उनके घर और घर में मौजूद सभी वस्तुएँ भी ऐसी हो गई हैं जो देश की संस्कृति के विपरीत हैं। यह दर्शाता है कि विदेशी प्रभाव केवल बाहरी वेशभूषा तक सीमित नहीं है, बल्कि वह व्यक्ति के निजी जीवन में भी गहराई तक उतर गया है, जिससे भारतीयता नष्ट हो रही है।

8. आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है? स्पष्ट करें।
उत्तर: मेरे मत से, स्वदेशी की भावना को छठे दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है:
"अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत। हिंदुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात।।"
स्पष्टीकरण: यह दोहा इसलिए सबसे अधिक प्रभावशाली है क्योंकि यह न केवल विदेशी वस्तुओं को अपनाने का वर्णन करता है, बल्कि इसके सबसे गंभीर परिणाम को भी उजागर करता है। सबसे मार्मिक बात यह है कि भारतीय लोग अपने ही देश के नाम 'हिंदुस्तानी' को सुनकर संकोच और शर्म महसूस करते हैं। यह पंक्ति स्वदेशी भावना के पूर्ण ह्रास और अपनी ही पहचान के प्रति अस्वीकृति को दर्शाती है, जो किसी भी देश के लिए अत्यंत चिंताजनक स्थिति है।

भाषा की बात (Language Talk)

1. निम्नांकित शब्दों से विशेषण बनाएँ - रुचि, देस, नगर, प्रबंध, खुशामद, दासता, झूठ, परदेस।
  • रुचि: रुचिकर, रुचिपूर्ण
  • देस: देसी, देशीय
  • नगर: नागरिक, नागरीय
  • प्रबंध: प्रबंधकीय, प्रबंधित
  • खुशामद: खुशामदी
  • दासता: दास, दासतापूर्ण
  • झूठ: झूठा
  • परदेस: परदेसी
2. निम्नांकित शब्दों का लिंग-निर्णय करते हुए वाक्य बनाएँ - चाल-चलन, खामख्याली, खुशामद, माल, बसु, वाहन, रीत, हाट, दासबृत्ति, बानक।
  • चाल-चलन (पुल्लिंग): उसका चाल-चलन बहुत अच्छा है।
  • खामख्याली (स्त्रीलिंग): उसकी खामख्याली ने उसे मुश्किल में डाल दिया।
  • खुशामद (स्त्रीलिंग): मुझे खुशामद करना बिल्कुल पसंद नहीं।
  • माल (पुल्लिंग): व्यापारी ने बहुत सारा माल खरीदा।
  • बसु (पुल्लिंग): उसके पास बहुत बसु (धन) है।
  • वाहन (पुल्लिंग): यह एक नया वाहन है।
  • रीत (स्त्रीलिंग): यह हमारे गाँव की पुरानी रीत है।
  • हाट (पुल्लिंग): गाँव में हर सोमवार को हाट लगता है।
  • दासबृत्ति (स्त्रीलिंग): दासबृत्ति से मुक्ति पाना अत्यंत आवश्यक है।
  • बानक (पुल्लिंग): उस व्यक्ति का बानक प्रभावशाली था।
3. कविता से संज्ञा पदों का चुनाव करें और उनके प्रकार भी बताएँ।

कविता से कुछ संज्ञा पद और उनके प्रकार:

  • वस्तु (जातिवाचक संज्ञा), नर (जातिवाचक संज्ञा), भारतीयता (भाववाचक संज्ञा), भारत (व्यक्तिवाचक संज्ञा), मनुज (जातिवाचक संज्ञा), मुसलमान (जातिवाचक संज्ञा), हिंदू (जातिवाचक संज्ञा), ख्रिस्तान (जातिवाचक संज्ञा), विद्या (भाववाचक संज्ञा), बुद्धि (भाववाचक संज्ञा), चाल-चलन (भाववाचक संज्ञा), ठाट (भाववाचक संज्ञा), देस (जातिवाचक संज्ञा), सपनेंहूँ (जातिवाचक संज्ञा), लेसु (भाववाचक संज्ञा), भाजन (जातिवाचक संज्ञा), उपभोग (भाववाचक संज्ञा), वाहन (जातिवाचक संज्ञा), बसन (जातिवाचक संज्ञा), बेष (जातिवाचक संज्ञा), रीत (भाववाचक संज्ञा), नीति (भाववाचक संज्ञा), रुचि (भाववाचक संज्ञा), गृह (जातिवाचक संज्ञा), नाम (जातिवाचक संज्ञा), खुशामद (भाववाचक संज्ञा), प्रशंसा (भाववाचक संज्ञा), डफाली (जातिवाचक संज्ञा)

20 नए अभ्यास प्रश्न और उनके विस्तृत उत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

1. 'स्वदेशी' कविता के कवि का क्या नाम है?
उत्तर: भारतेंदु हरिश्चंद्र।
2. कवि ने कविता में किस बात पर चिंता व्यक्त की है?
उत्तर: भारतीयों द्वारा विदेशी वस्तुओं और रीति-रिवाजों को अपनाने तथा भारतीयता के लुप्त होने पर।
3. 'गति रीत' का क्या अर्थ है?
उत्तर: तौर-तरीके या आचरण।
4. कवि के अनुसार, भारतीय व्यक्ति को देखकर अब क्या पहचानना मुश्किल हो गया है?
उत्तर: यह पहचानना कि वह मुसलमान है, हिंदू है या ईसाई।
5. 'ठाट' शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: शान-शौकत या वैभव।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

6. 'सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रीत लखात' पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि कवि को भारतीय समाज में हर तरफ विदेशी वस्तुएँ और विदेशी तौर-तरीके ही दिखाई पड़ते हैं।
7. कवि के अनुसार, विदेश की विद्या पढ़ने का क्या परिणाम हुआ है?
उत्तर: विदेश की विद्या पढ़ने से भारतीयों की बुद्धि भी विदेशी हो गई है और उन्हें विदेशी चाल-चलन पसंद आने लगा है।
8. 'बन्यो देस बिदेस' से कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: इससे कवि कहना चाहते हैं कि भारतीय समाज में विदेशी प्रभाव इतना गहरा हो गया है कि देश अब अपने मूल स्वरूप में नहीं रहा, बल्कि वह विदेशी रंग में रंग गया है।
9. भारतीयों ने अंग्रेजों की कौन-कौन सी चीजों को अपना लिया है?
उत्तर: भारतीयों ने अंग्रेजों के बर्तन, उपभोग की वस्तुएँ, वाहन, वस्त्र, वेशभूषा, रीति-रिवाज और उनकी नीतियाँ अपना ली हैं।
10. 'हिंदुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात' पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर: इस पंक्ति में व्यंग्य यह है कि भारतीयों में विदेशीपन इतना बढ़ गया है कि उन्हें अब अपना ही 'हिंदुस्तानी' नाम सुनकर शर्म आती है। यह अपनी सांस्कृतिक पहचान से विमुख होने को दर्शाता है।

मध्यम उत्तरीय प्रश्न (3 अंक)

11. कविता 'स्वदेशी' में कवि ने किस प्रकार के सांस्कृतिक परिवर्तन को रेखांकित किया है?
उत्तर: कविता 'स्वदेशी' में कवि ने भारतीयों द्वारा अपनी मूल संस्कृति को त्यागकर विदेशी संस्कृति (विशेषकर अंग्रेजी) को अपनाने के सांस्कृतिक परिवर्तन को रेखांकित किया है। यह परिवर्तन भारतीय समाज की जड़ों को कमजोर कर रहा है।
12. कवि ने 'खुशामद' और 'डफली' का उल्लेख किस संदर्भ में किया है?
उत्तर: कवि ने 'खुशामद' और 'डफली' का उल्लेख उन लोगों के संदर्भ में किया है जो अंग्रेजों की झूठी प्रशंसा और चापलूसी करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे डफली बजाने वाला किसी की धुन पर नाचता है।
13. कविता में 'अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत' कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: इसका अभिप्राय यह है कि भारतीयों की पसंद, उनके घर और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली सभी वस्तुएँ भी विदेशी हो गई हैं, जो भारतीय परंपराओं और जरूरतों के विपरीत हैं।
14. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इस कविता के माध्यम से भारतीयों को क्या संदेश दिया है?
उत्तर: उन्होंने संदेश दिया है कि भारतीयों को विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण छोड़कर अपनी भारतीयता पर गर्व करना चाहिए और अपनी संस्कृति, भाषा और वस्तुओं को अपनाना चाहिए।
15. कविता में वर्णित समाज की दशा का वर्तमान संदर्भ में विश्लेषण करें।
उत्तर: कविता में वर्णित समाज की दशा आज भी कुछ हद तक प्रासंगिक है। वैश्वीकरण के इस युग में विदेशी वस्तुओं और जीवनशैली का प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है। कवि की चिंता आज भी हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति सचेत करती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

16. 'स्वदेशी' कविता में कवि ने भारतीय समाज के किन-किन पहलुओं पर प्रकाश डाला है?
उत्तर: कवि ने विदेशी वस्तुओं का अंधानुकरण, पहचान का संकट, शिक्षा पर विदेशी प्रभाव, आत्म-सम्मान का ह्रास और देश के विदेशीकरण जैसे पहलुओं पर प्रकाश डाला है, और इन सभी को भारतीयता के लिए हानिकारक बताया है।
17. 'स्वदेशी' कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए कि भारतेंदु हरिश्चंद्र एक महान राष्ट्रवादी कवि थे।
उत्तर: यह कविता भारतेंदु के गहन राष्ट्रवाद का सशक्त प्रमाण है। उनकी राष्ट्रीय पहचान की चिंता, विदेशी संस्कृति की आलोचना, आत्म-सम्मान का आह्वान, स्वदेशी का समर्थन और सामाजिक जागरण का उद्देश्य उन्हें एक महान राष्ट्रवादी कवि के रूप में स्थापित करता है।
18. स्वदेशी और विदेशी के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए, कविता के संदर्भ में उनके महत्व पर चर्चा करें।
उत्तर: 'स्वदेशी' अपनी पहचान, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। इसके विपरीत, कविता में 'विदेशी' के अंधानुकरण को सांस्कृतिक क्षरण और राष्ट्रीय पतन का कारण बताया गया है। कविता स्वदेशी को अपनाने और विदेशी के अंधानुकरण से बचने की आवश्यकता पर बल देती है।
19. कविता 'स्वदेशी' के केंद्रीय भाव को अपने शब्दों में व्यक्त करें।
उत्तर: 'स्वदेशी' का केंद्रीय भाव भारतीय समाज में फैल रहे विदेशी वस्तुओं और संस्कृति के अंधानुकरण पर चिंता व्यक्त करना तथा स्वदेशी चेतना को जगाना है। कवि का मुख्य संदेश यह है कि भारतीयों को अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपने देश के उत्पादों पर गर्व करना चाहिए और अपनी समृद्ध विरासत को सहेजना चाहिए।
20. 'भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात' - इस पंक्ति का गहन विश्लेषण कीजिए और बताइए कि यह आज के संदर्भ में कितनी प्रासंगिक है।
उत्तर: यह पंक्ति कवि की गहरी निराशा को व्यक्त करती है। यह आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वैश्वीकरण के युग में पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है। यह पंक्ति हमें आज भी अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने और उस पर गर्व करने की प्रेरणा देती है, ताकि हम विदेशी प्रभावों के बावजूद अपनी मौलिकता को सुरक्षित रख सकें।

संक्षिप्त सारांश (Brief Summary for Revision)

'स्वदेशी' कविता कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने भारतीयों द्वारा विदेशी वस्तुओं, वेशभूषा, चाल-चलन और रीति-रिवाजों के अंधानुकरण पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कवि कहते हैं कि अब भारत में भारतीयता कहीं दिखाई नहीं पड़ती, क्योंकि लोग विदेशी विद्या पढ़कर विदेशी बुद्धि पा गए हैं। स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि पूरा देश ही विदेशी ठाट-बाट में रंग गया है, और 'हिंदुस्तानी' नाम सुनकर भी लोग शर्म महसूस करते हैं। कवि भारतीयों को अपनी पहचान और स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए स्वदेशी अपनाने का संदेश देते हैं।

आशा है कि ये आत्म-अध्ययन नोट्स आपको 'स्वदेशी' अध्याय को गहराई से समझने में सहायक सिद्ध होंगे। शुभकामनाएँ!

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