घनानंद के सवैये और घनाक्षरी
स्व-अध्ययन नोट्स
1. महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं विस्तृत व्याख्या
कविता 1: "अति सूधो सनेह को मारग है"
यह कविता घनानंद के निष्छल प्रेम और उनकी प्रेमिका सुजान के प्रति उनकी भावनाओं को व्यक्त करती है। इसमें कवि प्रेम के सीधे मार्ग की विशेषताओं का वर्णन करते हैं और अपनी प्रिय सुजान से अपने मन की पीड़ा व्यक्त करते हैं।
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बांक नहीं।
तहाँ सांचे चले तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसंक नहीं।।
सरल व्याख्या: कवि कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा (अति सूधो) और सरल होता है। इस मार्ग पर थोड़ी सी भी चतुराई (नेकु सयानप) या टेढ़ापन (बांक) नहीं होता। इस प्रेम मार्ग पर वे लोग ही सीधे (सांचे) चल पाते हैं जो अपना अहंकार (आपनपौ) और अभिमान छोड़कर चलते हैं। जो कपटी लोग होते हैं, वे इस मार्ग पर चलने से झिझकते हैं, क्योंकि वे निडर होकर छल नहीं कर पाते। प्रेम का मार्ग इतनी सीधा है कि वहां छल-कपट की कोई गुंजाइश नहीं है।
भाव: घनानंद प्रेम के सच्चे स्वरूप को उजागर करते हैं, जहाँ सरलता और निस्वार्थता ही सर्वोपरि है। छल-कपट करने वाले व्यक्ति के लिए इस मार्ग पर चलना असंभव है।
'घनआनंद' प्यारे सुजान सुनो यहाँ एक तैं दूसरी आंक नहीं।
तुम कौन धौ पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटांक नहीं
सरल व्याख्या: कवि घनानंद अपनी प्रिय सुजान को संबोधित करते हुए कहते हैं: "हे प्रिय सुजान! मेरी बात सुनो, इस प्रेम के मार्ग में एक के लिए दूसरे के सिवा कोई दूसरा अंक (चिह्न या पहचान) नहीं होता"। अर्थात, प्रेम में केवल दो ही होते हैं – प्रेमी और प्रेमिका, तीसरा कोई स्थान नहीं रखता। कवि फिर सुजान से प्रश्न करते हैं, "तुमने भला कौन सी ऐसी पट्टी (पाटी) पढ़ ली है? मुझे बताओ, तुम मेरा पूरा मन (मन) तो ले लेती हो, परंतु बदले में एक छटांक (छोटा सा अंश) भी नहीं देती हो"।
भाव: यह छंद कवि की वेदना को दर्शाता है, जहाँ वे सुजान पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने केवल लेना सीखा है, देना नहीं। यह प्रेम में एकतरफापन की पीड़ा को व्यक्त करता है। घनानंद का यह प्रश्न उनकी निराशा और अपेक्षा को दर्शाता है।
कविता 2: "मो अँसुवानिहिं लै बरसौ"
यह कविता घनानंद की विरह वेदना और उनकी आकांक्षा को दर्शाती है कि उनके आँसू उनकी प्रिय सुजान तक पहुँचें। वे मेघों (बादलों) को परोपकारी मानकर उनसे अपनी व्यथा कहते हैं।
परकाजहि देह को धारी फिरौ परजन्य जथारथ है दरसौ।
निधि-नीर सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
सरल व्याख्या: कवि बादलों (परजन्य) को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम दूसरों के कार्य (परकाजहि) के लिए ही शरीर (देह) धारण करके घूमते हो। तुम वास्तविक रूप से (जथारथ) परोपकारी (परजन्य) दिखाई देते हो। तुम अपने अमृत समान जल (निधि-नीर सुधा) को सभी पर समान रूप से बरसाते हो। तुम्हारा यह कार्य सभी प्रकार से सज्जनता और सरलता (सज्जनता सरसौ) को दर्शाता है।
भाव: कवि बादलों की परोपकारी प्रवृत्ति की प्रशंसा करते हैं। बादल बिना किसी भेदभाव के सभी प्राणियों को जल प्रदान करते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे एक सज्जन व्यक्ति सभी पर कृपा करता है। कवि बादलों की इस विशेषता को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए एक आधार के रूप में देखते हैं।
'घनआनंद' जीवनदायक हौ कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबौं वा बिसासी सुजान के आँगन मो अँसुवानिहिं लै बरसौ
सरल व्याख्या: कवि घनानंद बादलों को पुनः संबोधित करते हुए कहते हैं कि "हे घन (बादल), तुम जीवन देने वाले (जीवनदायक) हो!" कवि उनसे प्रार्थना करते हैं, "मेरी थोड़ी सी पीड़ा (मेरियौ पीर) भी अपने हृदय में धारण करो।" वे बादलों से निवेदन करते हैं कि कभी तो तुम उस विश्वासघाती (बिसासी) सुजान के आँगन में मेरे आँसुओं (मो अँसुवानिहिं) को लेकर बरसो।
भाव: इस छंद में कवि की चरम विरह वेदना और लाचारी व्यक्त होती है। वे बादलों को अपनी व्यथा का संदेशवाहक बनाना चाहते हैं ताकि सुजान को उनके दर्द का एहसास हो। 'बिसासी' शब्द सुजान के धोखेबाज स्वभाव को दर्शाता है, जिसने कवि के प्रेम को स्वीकार नहीं किया। कवि चाहते हैं कि उनके आँसू ही उनकी व्यथा बनकर सुजान तक पहुँचें।
2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या
यहां कविता में प्रयुक्त कुछ महत्वपूर्ण शब्द और उनकी व्याख्या दी गई है, जो 'शब्द निधि' और कविता के संदर्भ पर आधारित है:
- रीतिमुक्त काव्यधारा:
- हिंदी साहित्य में एक ऐसी काव्यधारा जो रीति-ग्रंथों के नियमों और परंपराओं से मुक्त होकर प्रेम की निजी अनुभूतियों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करती है। घनानंद इसके प्रमुख कवि हैं।
- सूधो:
- सीधा, सरल, निष्कपट। (संदर्भ: प्रेम का मार्ग)
- मारग:
- मार्ग, रास्ता।
- नेकु:
- तनिक भी, थोड़ा भी।
- सयानप:
- चतुराई, समझदारी।
- बांक:
- टेढ़ापन, कुटिलता।
- आपनपौ:
- अहंकार, अभिमान, अपनापन।
- झिझकैं:
- हिचकिचाना, संकोच करना।
- कपटी:
- छल करने वाला, धोखेबाज।
- निसंक:
- निश्शंक, शंका रहित, निर्भय। (यहाँ नकारात्मक अर्थ में - बिना किसी संकोच के छल करने वाले)
- आंक:
- अंक, चिह्न, पहचान। (संदर्भ: प्रेम में एक-दूसरे के सिवा कोई नहीं)
- पाटी:
- पट्टी, तकती। (संदर्भ: शिक्षा, ज्ञान)
- मन:
- माप-तौल का एक पैमाना, हृदय, पूरा मन।
- छटांक:
- माप-तौल का एक छोटा पैमाना। (संदर्भ: जरा सा भी, बिलकुल थोड़ा)
- परजन्य:
- बादल, मेघ।
- जथारथ:
- यथार्थ, वास्तविक।
- निधि-नीर:
- धन रूपी जल, मूल्यवान जल।
- सुधा:
- अमृत।
- सरसौ:
- स्पर्श करो, सरसता बढ़ाओ, फैले। (यहाँ 'सज्जनता सरसौ' का अर्थ है सज्जनता का फैलाव या सज्जनता से पूर्ण होना)
- जीवनदायक:
- जीवन देने वाला।
- पीर:
- पीड़ा, दर्द।
- हिएँ:
- हृदय में।
- परसौ:
- स्पर्श करना, अनुभव करना।
- बिसासी:
- विश्वासी, विश्वासपात्र। (यहाँ व्यंग्यात्मक रूप से 'विश्वासघाती' के लिए प्रयुक्त)
- अँसुवानिहिं:
- आँसुओं को।
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
कविता के साथ
इस मार्ग की विशेषताएँ हैं:
- सरलता और स्पष्टता: यहाँ तनिक भी चतुराई या टेढ़ापन नहीं होता।
- निस्वार्थता: इस मार्ग पर चलने वाले को अपना अहंकार (आपनपौ) छोड़कर चलना पड़ता है।
- सच्चाई: इस पर केवल सच्चे लोग ही चल सकते हैं, कपटी लोग झिझकते हैं।
- एकनिष्ठता: प्रेम में केवल दो ही होते हैं – प्रेमी और प्रेमिका, यहाँ कोई तीसरा नहीं होता।
- त्याग और समर्पण: इसमें केवल देने का भाव होता है, पाने की इच्छा नहीं होती।
कवि का अभिप्राय है:
- प्रेमिका की निष्ठुरता: सुजान ने कवि के संपूर्ण हृदय (मन) और प्रेम को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन बदले में उन्हें प्रेम या स्नेह का एक छोटा सा अंश (छटांक) भी नहीं दिया।
- एकतरफा संबंध: यह दर्शाता है कि कवि का प्रेम पूर्ण रूप से निस्वार्थ और समर्पित था, जबकि सुजान ने उनके प्रति कोई भावनात्मक प्रतिदान नहीं दिया।
- प्रेम में मिली निराशा: कवि इस पंक्ति से अपनी निराशा, पीड़ा और उपेक्षा की भावना को व्यक्त करते हैं, जो उन्हें सुजान के व्यवहार से मिली है।
संबोधित करने का कारण:
- प्रेम की व्याख्या: कवि पहले छंद में प्रेम के मार्ग की विशेषताएँ बताते हैं, और फिर सीधे अपनी प्रिय सुजान से जानना चाहते हैं कि क्या उन्होंने प्रेम के इस सरल और निस्वार्थ नियम को नहीं समझा।
- शिकायत और वेदना व्यक्त करना: कवि सुजान को यह बताना चाहते हैं कि प्रेम के मार्ग पर केवल लेना नहीं होता, देना भी होता है। वे अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं कि सुजान ने उनका पूरा मन तो ले लिया, पर बदले में उन्हें कुछ भी नहीं दिया। वे सुजान की निष्ठुरता और अपनी निराशा को सीधे उन्हीं तक पहुँचाना चाहते हैं।
स्पष्टीकरण: कवि कहते हैं कि बादल आकाश में परोपकार के उद्देश्य से ही घूमते हैं। वे अपनी देह को दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित करते हैं। वे अमृत समान जल (निधि-नीर सुधा) को बिना किसी भेदभाव के सभी जीवों पर समान रूप से बरसाते हैं। बादलों का यह कार्य सज्जनता और परोपकारिता का प्रतीक है, क्योंकि वे प्यासी धरती और जीवों को जीवन प्रदान करते हैं।
पहुँचाने का कारण:
- विरह वेदना का अनुभव कराना: कवि चाहते हैं कि उनके आँसू ही उनकी विरह वेदना का संदेश बनकर सुजान तक पहुँचें, ताकि सुजान को भी उनके दर्द का एहसास हो।
- निष्ठुरता पर प्रकाश: सुजान ने कवि के प्रेम को स्वीकार नहीं किया और उन्हें धोखा दिया। कवि चाहते हैं कि उनके आँसू सुजान को उनकी निष्ठुरता का स्मरण कराएँ।
- अंतिम आशा: यह कवि की अंतिम आशा है कि शायद उनके आँसुओं का संदेश सुजान के हृदय को पिघला दे और उन्हें कवि की पीड़ा का बोध हो।
(क) यहाँ एक तैं दूसरी आंक नहीं
(ख) कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ
(क) यहाँ एक तैं दूसरी आंक नहीं
प्रसंग: यह पंक्ति घनानंद द्वारा रचित पहले सवैये 'अति सूधो सनेह को मारग है' से ली गई है, जहाँ वे प्रेम मार्ग की विशेषताओं का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या: इस पंक्ति का अर्थ है कि प्रेम के मार्ग में दो के अतिरिक्त कोई तीसरा नहीं होता। प्रेम का संबंध पूरी तरह से प्रेमी और प्रेमिका के बीच एकाग्र और अनन्य होता है। इसमें किसी तीसरे व्यक्ति, किसी बाधा या किसी स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं होता। सच्चा प्रेम केवल दो हृदयों का मिलन होता है, जहाँ एक दूसरे के लिए ही समर्पित होता है। यह प्रेम की अनन्यता और एकनिष्ठता को दर्शाता है।
(ख) कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ
प्रसंग: यह पंक्ति घनानंद द्वारा रचित दूसरे घनाक्षरी 'मो अँसुवानिहिं लै बरसौ' से ली गई है, जहाँ वे बादलों से अपनी पीड़ा को सुजान तक पहुँचाने की विनती कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम तो जीवन देने वाले हो और परोपकारी हो। अतः, हे बादल! मेरी भी थोड़ी सी पीड़ा (कछू मेरियौ पीर) अपने हृदय में धारण करो और उसे अनुभव करो। कवि चाहते हैं कि बादल उनकी विरह वेदना को समझें और उसमें भागीदारी करें, ताकि वे उनकी तरफ से सुजान तक उनके आँसुओं का संदेश पहुँचा सकें। यह पंक्ति कवि की अत्यधिक पीड़ा, लाचारी और बादलों से की गई करुण प्रार्थना को व्यक्त करती है।
भाषा की बात
- सूधो: विशेषण (मार्ग की विशेषता)
- मारग: संज्ञा (जातिवाचक)
- नेकु: क्रिया विशेषण (तनिक भी)
- बांक: संज्ञा (भाववाचक – टेढ़ापन)
- कपटी: विशेषण (व्यक्ति की विशेषता)
- निसंक: विशेषण (व्यक्ति की विशेषता)
- पाटी: संज्ञा (जातिवाचक)
- जथारथ: विशेषण (रूप की विशेषता)
- जीवनदायक: विशेषण (बादलों की विशेषता)
- पीर: संज्ञा (भाववाचक – पीड़ा)
- हिएँ: संज्ञा (भाववाचक – हृदय)
- बिसासी: विशेषण (सुजान की विशेषता – विश्वासघाती)
- नेकु: तनिक भी, ज़रा सा भी।
- धौ: भला, आखिर।
- पै: लेकिन, परंतु।
- कछू: कुछ।
- कबौं: कभी।
- सनेह को मारग: संबंध कारक (सनेह का मारग)
- प्यारे सुजान: संबोधन कारक (हे प्यारे सुजान!)
- मेरिओ पीर: संबंध कारक (मेरी पीड़ा)
- हिएँ: अधिकरण कारक (हृदय में)
- अँसुवानिहिँ: संप्रदान/कर्म कारक (आँसुओं को)
- मो: संबंध कारक ('मो अँसुवानिहिं' में अर्थ 'मेरे' है)
5. अध्याय पर आधारित 20 नये अभ्यास प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न (2-3 अंक)
मध्यम उत्तरीय प्रश्न (4-5 अंक)
उदाहरण:
- 'मन लेहु पै देहु छटांक नहीं': यह पंक्ति सीधे तौर पर कवि की पीड़ा को व्यक्त करती है कि सुजान ने उनका पूरा मन ले लिया, पर बदले में कुछ नहीं दिया।
- 'मो अँसुवानिहिं लै बरसौ': इस घनाक्षरी में कवि अपनी आँखों के आँसुओं को बादलों के माध्यम से सुजान तक पहुँचाना चाहते हैं। यह उनकी चरम विरह वेदना और लाचारी का प्रतीक है।
- 'सनेह को मारग': यह प्रतीकात्मक रूप से निष्कपट, सीधा, और निस्वार्थ प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रेम की पवित्रता और सच्चाई का प्रतीक है।
- 'जीवनदायक': यह शब्द प्रतीकात्मक रूप से बादलों को संबोधित है जो धरती पर जीवन का संचार करते हैं। कवि इस शब्द का प्रयोग बादलों की परोपकारी प्रवृत्ति को दर्शाने और उनसे अपनी विरह-संतप्त आत्मा को भी कुछ जीवन देने की विनती करने के लिए करते हैं।
महत्व: यह प्रश्न कवि की हृदय पीड़ा और निराशा को दर्शाता है। यह सुजान की निष्ठुरता पर सीधा आरोप है और प्रेम में आदान-प्रदान के नियम पर जोर देता है। यह प्रेम की नैतिकता और निष्ठा पर सवाल उठाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (6-7 अंक)
- 'अति सूधो सनेह को मारग है' का संदेश: यह प्रेम के निष्कपट, सरल और निस्वार्थ स्वरूप को उजागर करता है। केंद्रीय भावना प्रेम की पवित्रता और उसकी कठिन परीक्षा है।
- 'मो अँसुवानिहिं लै बरसौ' का संदेश: यह कवि की विरह-व्यथा और उनकी अत्यधिक पीड़ा को व्यक्त करता है। मूल संदेश यह है कि प्रेम में मिली निराशा इतनी गहरी हो सकती है कि व्यक्ति प्रकृति को अपना संदेशवाहक बनाता है। केंद्रीय भावना यहाँ लाचारी, विरह की अग्नि और प्रिय तक संदेश पहुँचाने की तीव्र इच्छा है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (1 अंक)
6. अध्याय का संक्षिप्त सारांश (बोर्ड परीक्षा हेतु)
यह अध्याय रीतिमुक्त कवि घनानंद की दो कविताओं को प्रस्तुत करता है, जो प्रेम की गहनता और विरह वेदना को दर्शाती हैं।
कविता 1: "अति सूधो सनेह को मारग है"
- केंद्रीय विषय: प्रेम मार्ग की पवित्रता, सरलता और निस्वार्थता।
- प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा और निष्कपट होता है, जहाँ चतुराई का कोई स्थान नहीं।
- कवि प्रेमिका सुजान पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने केवल लेना सीखा है, देना नहीं – "मन लेहु पै देहु छटांक नहीं"।
कविता 2: "मो अँसुवानिहिं लै बरसौ"
- केंद्रीय विषय: विरह वेदना की तीव्रता और प्रिय तक संदेश पहुँचाने की लालसा।
- कवि बादलों (परजन्य) को परोपकारी और जीवनदायक बताते हैं।
- कवि की इच्छा है कि बादल उनकी विश्वासघाती प्रेमिका 'सुजान' के आँगन में उनके आँसुओं को लेकर बरसें।
समग्र संदेश: घनानंद की ये कविताएँ सच्चे प्रेम के आदर्शों, प्रेम में मिले धोखे और उसकी वजह से उत्पन्न गहरी भावनात्मक पीड़ा को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
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