Bihar Board class12 Physics अध्याय 2: स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता - नोट्स, उदाहरण और प्रश्न | Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance | BSEB

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अध्याय 2: स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता - नोट्स, उदाहरण और प्रश्न | Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

अध्याय 2: स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता (Electrostatic Potential and Capacitance)

प्रिय विद्यार्थी,

इस अध्याय में हम स्थिरवैद्युत विभव (Electrostatic Potential) और धारिता (Capacitance) जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं का अध्ययन करेंगे। यह अवधारणाएँ आवेशों और उनके बीच लगने वाले बलों से गहराई से जुड़ी हुई हैं, जिनके बारे में आपने पिछले अध्याय में सीखा था। इन नोट्स को पढ़कर आप इन टॉपिक्स को विस्तार से समझ पाएंगे।

2.1 भूमिका (Introduction)

आप कक्षा 11 में स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) की अवधारणा से परिचित हो चुके हैं। जब कोई बाहरी बल किसी वस्तु को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक किसी अन्य बल (जैसे स्प्रिंग बल, गुरुत्वीय बल) के विरुद्ध ले जाता है, तो बाहरी बल द्वारा किया गया कार्य उस वस्तु में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। जब बाहरी बल हटा दिया जाता है, तो वस्तु गति करने लगती है और गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) प्राप्त करती है, जबकि उसकी स्थितिज ऊर्जा कम हो जाती है। इस प्रकार, वस्तु की स्थितिज ऊर्जा और गतिज ऊर्जा का योग संरक्षित रहता है। ऐसे बलों को संरक्षी बल (Conservative Force) कहते हैं। स्प्रिंग बल और गुरुत्वाकर्षण बल संरक्षी बलों के उदाहरण हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल की तरह ही, दो स्थिर आवेशों के बीच लगने वाला कूलॉम बल (Coulomb Force) भी संरक्षी बल होता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि गणितीय रूप से कूलॉम बल और गुरुत्वाकर्षण बल समान हैं - दोनों में दूरी की व्युत्क्रम वर्ग निर्भरता (inverse square dependence on distance) होती है, और उनमें मुख्य अंतर आनुपातिकता स्थिरांक (proportionality constant) में होता है। गुरुत्वाकर्षण नियम में द्रव्यमान की भूमिका कूलॉम नियम में आवेशों द्वारा निभाई जाती है।

जिस प्रकार हम गुरुत्वीय क्षेत्र में किसी द्रव्यमान की स्थितिज ऊर्जा को परिभाषित करते हैं, उसी प्रकार हम किसी स्थिरवैद्युत क्षेत्र (Electrostatic Field) में किसी आवेश की स्थिरवैद्युत स्थितिज ऊर्जा (Electrostatic Potential Energy) को परिभाषित कर सकते हैं।

स्थिरवैद्युत विभव और धारिता का चित्र

2.1.1 स्थिरवैद्युत स्थितिज ऊर्जा (Electrostatic Potential Energy)

आवेशों के किसी विन्यास (charge configuration) के कारण उत्पन्न स्थिरवैद्युत क्षेत्र E पर विचार कीजिए। सरलता के लिए, पहले मूल बिंदु पर स्थित आवेश Q के कारण क्षेत्र E पर विचार करें। कल्पना कीजिए कि हम एक परीक्षण आवेश (test charge) q को आवेश Q के कारण q पर लगने वाले प्रतिकर्षण बल (repulsive force) के विरुद्ध, बिंदु R से बिंदु P तक लाते हैं।

परीक्षण आवेश को क्षेत्र में लाना (चित्र 2.1)

यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य हैं:

  1. परीक्षण आवेश \(q\) इतना छोटा है कि यह मूल विन्यास (जैसे मूल बिंदु पर आवेश \(Q\)) को विक्षुब्ध (disturb) नहीं करता है।
  2. आवेश \(q\) को R से P तक लाने के लिए, हम एक बाहरी बल \((\vec{F}_{\text{ext}})\) लगाते हैं जो प्रतिकर्षण वैद्युत बल \((\vec{F}_E)\) को ठीक-ठीक निष्क्रिय कर देता है (अर्थात् \(\vec{F}_{\text{ext}} = - \vec{F}_E\))। इसका अर्थ है कि आवेश \(q\) पर कोई नेट बल या त्वरण कार्य नहीं करता - इसे अत्यंत धीमी नियत चाल से लाया जाता है।

इस स्थिति में, बाहरी बल द्वारा आवेश पर किया गया कार्य वैद्युत बल द्वारा किए गए कार्य का ऋणात्मक होता है, और पूर्णतः आवेश \(q\) की स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।

स्थितिज ऊर्जा अंतर (Potential Energy Difference) को इस प्रकार परिभाषित करते हैं:

\[ \Delta U = U_P - U_R = W_{RP} \]

जहाँ \(W_{RP}\) बाहरी बल द्वारा आवेश \(q\) को बिंदु R से P तक (बिना त्वरित किए) ले जाने में किया गया कार्य है।

हम सदैव ही कोई यादृच्छिक स्थिरांक \( \alpha \) हर बिंदु पर स्थितिज ऊर्जा के साथ जोड़ सकते हैं, क्योंकि इससे स्थितिज ऊर्जा अंतर के मान में कोई परिवर्तन नहीं होगा: \( (U_P + \alpha) - (U_R + \alpha) = U_P - U_R \)।

एक सुविधाजनक चयन यह है कि हम अनंत (infinity) पर स्थिरवैद्युत स्थितिज ऊर्जा को शून्य मानें। इस चयन के अनुसार, किसी बिंदु पर आवेश \(q\) की स्थितिज ऊर्जा, बाहरी बल द्वारा आवेश \(q\) को अनंत से उस बिंदु तक ले जाने में किए गए कार्य के बराबर होती है।

\[ U(\vec{r}) = W_{\infty \rightarrow \vec{r}} \]

2.2 स्थिरवैद्युत विभव (Electrostatic Potential)

किए गए कार्य को आवेश \(q\) से विभाजित करना सुविधाजनक होता है, क्योंकि परिणामस्वरूप जो राशि प्राप्त होती है वह \(q\) पर निर्भर नहीं करती। इससे हमें दिए गए आवेश विन्यास के कारण स्थिरवैद्युत विभव \(V\) की अवधारणा प्राप्त होती है।

विभवांतर (Potential Difference):

\[ V_P - V_R = \frac{U_P - U_R}{q} = \frac{W_{RP}}{q} \]

स्थिरवैद्युत विभव (Electrostatic Potential):

स्थिरवैद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु पर स्थिरवैद्युत विभव (\(V\)) वह न्यूनतम कार्य है जो किसी एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।

\[ V(\vec{r}) = \frac{W_{\infty \rightarrow \vec{r}}}{q} \]

अलेसांद्रो वोल्टा (Alessandro Volta) (1745-1827)

इटालियन भौतिकीविद् थे, जिन्होंने प्रथम वोल्टेइक पाइल (Voltaic Pile) या बैटरी का विकास किया, जिससे एक स्थिर वैद्युत धारा प्राप्त की जा सकती थी। विभव के SI मात्रक 'वोल्ट' का नाम उन्हीं के सम्मान में रखा गया है।

2.3 बिंदु आवेश के कारण विभव (Potential due to a Point Charge)

मूल बिंदु पर स्थित किसी बिंदु आवेश \(Q\) के कारण, स्थिति सदिश \(\vec{r}\) वाले बिंदु P पर विभव ज्ञात करने के लिए, हमें एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया गया कार्य परिकलित करना होगा।

बिंदु आवेश के कारण विभव (चित्र 2.3)

पथ के किसी मध्यवर्ती बिंदु P' (दूरी \(r'\)) पर एकांक धनावेश पर बल है: \[ \vec{F}_E = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{Q}{r'^2} \hat{r}' \] इस बल के विरुद्ध एकांक धनावेश को अनंत से बिंदु \(r\) तक लाने में किया गया कार्य \(W\): \[ W = \int_{\infty}^{r} \vec{F}_{\text{ext}} \cdot d\vec{l} = \int_{\infty}^{r} (-\vec{F}_E) \cdot d\vec{r}' = -\int_{\infty}^{r} \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{Q}{r'^2} dr' \] \[ W = -\frac{Q}{4\pi\epsilon_0} \left[ -\frac{1}{r'} \right]_{\infty}^{r} = \frac{Q}{4\pi\epsilon_0} \left( \frac{1}{r} - \frac{1}{\infty} \right) = \frac{Q}{4\pi\epsilon_0 r} \]

बिंदु आवेश \(Q\) के कारण \(r\) दूरी पर विभव:

\[ V(r) = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{Q}{r} \]
विभव और क्षेत्र की दूरी पर निर्भरता (चित्र 2.4)

ऊपर चित्र में दर्शाया गया है कि स्थिरवैद्युत विभव (\(\propto 1/r\)) तथा स्थिरवैद्युत क्षेत्र (\(\propto 1/r^2\)) दूरी \(r\) के साथ कैसे परिवर्तित होते हैं।

उदाहरण 2.1

(a) आवेश \(4 \times 10^{-7}\) C के कारण इससे 9 cm दूरी पर स्थित किसी बिंदु P पर विभव परिकलित कीजिए।

(b) अब, आवेश \(2 \times 10^{-9}\) C को अनंत से बिंदु P तक लाने में किया गया कार्य ज्ञात कीजिए। क्या उत्तर जिस पथ के अनुदिश आवेश को लाया गया है उस पर निर्भर करता है?

हल:

(a) यहाँ \(Q = 4 \times 10^{-7}\) C, \(r = 9 \text{ cm} = 0.09 \text{ m}\).

\[ V = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{Q}{r} = (9 \times 10^9) \times \frac{4 \times 10^{-7}}{0.09} = \frac{36 \times 10^2}{0.09} = 4 \times 10^4 \text{ V} \]

(b) किया गया कार्य \(W = qV\).

\[ W = (2 \times 10^{-9} \text{ C}) \times (4 \times 10^4 \text{ V}) = 8 \times 10^{-5} \text{ J} \]

नहीं, कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता क्योंकि स्थिरवैद्युत बल एक संरक्षी बल है।

2.4 वैद्युत द्विध्रुव के कारण विभव (Potential due to an Electric Dipole)

एक वैद्युत द्विध्रुव (\(q\) तथा \(-q\) आवेश, पृथक्करण \(2a\)) के कारण किसी बिंदु P पर विभव, दोनों आवेशों के कारण उत्पन्न विभवों का बीजगणितीय योग होता है।

वैद्युत द्विध्रुव के कारण विभव (चित्र 2.5) \[ V = V_{+q} + V_{-q} = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left( \frac{q}{r_1} - \frac{q}{r_2} \right) = \frac{q}{4\pi\epsilon_0} \left( \frac{r_2 - r_1}{r_1 r_2} \right) \]

जब बिंदु P द्विध्रुव से बहुत दूर हो (\(r \gg a\)), तो हम सन्निकटन (approximation) का उपयोग कर सकते हैं:

\(r_2 - r_1 \approx 2a \cos\theta\) और \(r_1 r_2 \approx r^2\)।

इसलिए,

\[ V \approx \frac{q}{4\pi\epsilon_0} \frac{2a \cos\theta}{r^2} \]

चूंकि द्विध्रुव आघूर्ण \(p = q \times 2a\) है,

वैद्युत द्विध्रुव के कारण विभव (\(r \gg a\)):

\[ V = \frac{p \cos\theta}{4\pi\epsilon_0 r^2} = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{\vec{p} \cdot \hat{r}}{r^2} \]

मुख्य बातें:

  • द्विध्रुव विभव \(1/r^2\) के रूप में घटता है, जबकि एकल आवेश विभव \(1/r\) के रूप में।
  • विभव कोण \(\theta\) पर भी निर्भर करता है।
  • द्विध्रुव के अक्ष पर (\(\theta=0^\circ, 180^\circ\)), विभव अधिकतम होता है।
  • निरक्षीय तल पर (\(\theta=90^\circ\)), विभव शून्य होता है।

2.5 आवेशों के निकाय के कारण विभव (Potential due to a System of Charges)

अध्यारोपण सिद्धांत (superposition principle) के अनुसार, आवेशों \(q_1, q_2, ..., q_n\) के निकाय के कारण किसी बिंदु P पर कुल विभव, सभी व्यक्तिगत आवेशों के कारण उस बिंदु पर विभवों का बीजगणितीय योग होता है।

\[ V_P = V_1 + V_2 + \dots + V_n = \sum_{i=1}^{n} V_i \] \[ V_P = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \sum_{i=1}^{n} \frac{q_i}{r_{iP}} \]

यहाँ \(r_{iP}\) आवेश \(q_i\) से बिंदु P की दूरी है।

एकसमान आवेशित गोलीय खोल (Uniformly Charged Spherical Shell) के कारण विभव:

  • खोल के बाहर (\(r \ge R\)): \(V = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{q}{r}\)
  • खोल के भीतर (\(r < R\)): \(V = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{q}{R}\) (अंदर विभव नियत रहता है और पृष्ठ के बराबर होता है)

उदाहरण 2.2

\(3 \times 10^{-8}\)C तथा \(–2 \times 10^{-8}\)C के दो आवेश एक-दूसरे से 15 cm दूरी पर रखे हैं। इन दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के किस बिंदु पर वैद्युत विभव शून्य है? अनंत पर वैद्युत विभव शून्य लीजिए।

हल:

मान लीजिए \(q_1 = 3 \times 10^{-8}\)C मूल बिंदु पर है और \(q_2 = -2 \times 10^{-8}\)C, \(x=15\) cm पर है। मान लीजिए विभव \(x\) दूरी पर शून्य है।

स्थिति 1: आवेशों के बीच (0 < x < 15)

\[ \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left( \frac{3 \times 10^{-8}}{x} + \frac{-2 \times 10^{-8}}{15-x} \right) = 0 \] \[ \frac{3}{x} = \frac{2}{15-x} \implies 45 - 3x = 2x \implies 5x = 45 \implies x = 9 \text{ cm} \]

स्थिति 2: छोटे आवेश के बाहर (x > 15)

\[ \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left( \frac{3 \times 10^{-8}}{x} + \frac{-2 \times 10^{-8}}{x-15} \right) = 0 \] \[ \frac{3}{x} = \frac{2}{x-15} \implies 3x - 45 = 2x \implies x = 45 \text{ cm} \]

अतः विभव धनावेश से 9 cm तथा 45 cm की दूरी पर शून्य होगा।

2.6 समविभव पृष्ठ (Equipotential Surfaces)

समविभव पृष्ठ ऐसा पृष्ठ होता है जिसके हर बिंदु पर विभव का मान नियत रहता है।

गुणधर्म:

  1. समविभव पृष्ठ के किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर शून्य होता है।
  2. इस पृष्ठ पर किसी आवेश को गति कराने में कोई कार्य नहीं करना पड़ता।
  3. वैद्युत क्षेत्र रेखाएँ समविभव पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर अभिलंबवत (perpendicular) होती हैं।
  4. दो समविभव पृष्ठ कभी एक-दूसरे को काट नहीं सकते।
एकल आवेश और द्विध्रुव के लिए समविभव पृष्ठ (चित्र 2.9, 2.11)

2.6.1 वैद्युत क्षेत्र तथा वैद्युत विभव में संबंध

वैद्युत क्षेत्र की दिशा में, विभव सबसे तेजी से घटता है। वैद्युत क्षेत्र का परिमाण, विभव प्रवणता (potential gradient) के ऋणात्मक मान के बराबर होता है।

\[ E = -\frac{dV}{dl} \]

जहाँ \(dl\) वैद्युत क्षेत्र \(E\) की दिशा में विस्थापन है। यह संबंध दर्शाता है:

  • वैद्युत क्षेत्र उस दिशा में होता है जहाँ विभव में सर्वाधिक ह्रास (maximum decrease) होता है।
  • किसी बिंदु पर वैद्युत क्षेत्र का परिमाण, उस बिंदु पर समविभव पृष्ठ के अभिलंबवत विभव के परिमाण में प्रति एकांक विस्थापन परिवर्तन द्वारा व्यक्त किया जाता है।

2.7 आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा

किसी आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा, उन आवेशों को अनंत से उनकी वर्तमान स्थितियों तक लाने में बाहरी बल द्वारा किए गए कुल कार्य के बराबर होती है।

दो आवेशों \(q_1, q_2\) के निकाय की स्थितिज ऊर्जा:

\[ U = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \frac{q_1 q_2}{r_{12}} \]

तीन आवेशों \(q_1, q_2, q_3\) के निकाय की स्थितिज ऊर्जा:

\[ U = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left( \frac{q_1 q_2}{r_{12}} + \frac{q_1 q_3}{r_{13}} + \frac{q_2 q_3}{r_{23}} \right) \]

उदाहरण 2.4

भुजा \(d\) वाले किसी वर्ग ABCD के शीर्षों पर चार आवेश \(+q, -q, +q, -q\) व्यवस्थित किए गए हैं। इस व्यवस्था को बनाने में किया गया कार्य ज्ञात कीजिए।

हल:

हमें सभी आवेश युग्मों की स्थितिज ऊर्जा का योग करना होगा।

भुजाओं पर युग्म (4): \(AB, BC, CD, DA\)। दूरियाँ \(d\)।

विकर्णों पर युग्म (2): \(AC, BD\)। दूरियाँ \(d\sqrt{2}\)।

\[ U = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left[ \frac{(+q)(-q)}{d} + \frac{(-q)(+q)}{d} + \frac{(+q)(-q)}{d} + \frac{(-q)(+q)}{d} + \frac{(+q)(+q)}{d\sqrt{2}} + \frac{(-q)(-q)}{d\sqrt{2}} \right] \] \[ U = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left[ \frac{-4q^2}{d} + \frac{q^2}{d\sqrt{2}} + \frac{q^2}{d\sqrt{2}} \right] = \frac{1}{4\pi\epsilon_0} \left[ \frac{-4q^2}{d} + \frac{2q^2}{d\sqrt{2}} \right] \] \[ U = \frac{q^2}{4\pi\epsilon_0 d} \left( -4 + \sqrt{2} \right) = -\frac{q^2}{4\pi\epsilon_0 d} (4 - \sqrt{2}) \]

2.10 परावैद्युत तथा ध्रुवण (Dielectrics and Polarization)

परावैद्युत (Dielectrics) अचालक पदार्थ होते हैं। जब किसी परावैद्युत को बाह्य वैद्युत क्षेत्र में रखा जाता है, तो यह ध्रुवित (polarized) हो जाता है।

  • अध्रुवीय अणु (Non-polar molecules): इनमें धनावेश और ऋणावेश के केंद्र संपाती होते हैं (जैसे \(O_2, H_2\))। बाह्य क्षेत्र में, ये खिंच जाते हैं और एक प्रेरित द्विध्रुव आघूर्ण प्राप्त करते हैं।
  • ध्रुवीय अणु (Polar molecules): इनमें स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण होता है (जैसे \(H_2O, HCl\))। बाह्य क्षेत्र में, ये द्विध्रुव क्षेत्र की दिशा में संरेखित होने की प्रवृत्ति रखते हैं।

इस ध्रुवण के कारण, परावैद्युत के अंदर एक आंतरिक वैद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है जो बाह्य क्षेत्र का विरोध करता है। इससे परावैद्युत के भीतर कुल वैद्युत क्षेत्र का मान कम हो जाता है।

परावैद्युत का ध्रुवण (चित्र 2.22)

यदि बाह्य क्षेत्र \(E_0\) है, तो परावैद्युत के अंदर कुल क्षेत्र \(E = E_0 / K\) होता है, जहाँ \(K\) पदार्थ का परावैद्युत स्थिरांक (Dielectric Constant) है। \(K > 1\)।

2.11 संधारित्र तथा धारिता (Capacitors and Capacitance)

संधारित्र (Capacitor) विद्युतरोधी द्वारा पृथक किए गए दो चालकों का एक निकाय है जिसका उपयोग वैद्युत आवेश और ऊर्जा को संचित करने के लिए किया जाता है।

धारिता (Capacitance) किसी संधारित्र की आवेश संचित करने की क्षमता का माप है। यह संधारित्र पर आवेश \(Q\) और उसके चालकों के बीच विभवांतर \(V\) के अनुपात के बराबर होती है।

\[ C = \frac{Q}{V} \]

धारिता का SI मात्रक फैरड (Farad, F) है। 1 फैरड = 1 कूलॉम/वोल्ट।

2.12 समांतर पट्टिका संधारित्र (Parallel Plate Capacitor)

यह सबसे सरल प्रकार का संधारित्र है, जिसमें दो समांतर चालक पट्टिकाएँ होती हैं। यदि पट्टिकाओं का क्षेत्रफल \(A\) और उनके बीच की दूरी \(d\) है,

समांतर पट्टिका संधारित्र (चित्र 2.25)

निर्वात में धारिता:

\[ C_0 = \frac{\epsilon_0 A}{d} \]

परावैद्युत माध्यम (स्थिरांक K) में धारिता:

\[ C = \frac{K \epsilon_0 A}{d} = K C_0 \]

परावैद्युत भरने से संधारित्र की धारिता \(K\) गुना बढ़ जाती है।

2.14 संधारित्रों का संयोजन (Combination of Capacitors)

2.14.1 श्रेणीक्रम संयोजन (Series Combination)

जब संधारित्रों को एक के बाद एक जोड़ा जाता है, तो इसे श्रेणीक्रम संयोजन कहते हैं।

  • सभी संधारित्रों पर आवेश (Q) समान रहता है।
  • कुल विभवांतर (V) व्यक्तिगत विभवांतरों के योग के बराबर होता है (\(V = V_1 + V_2 + \dots\))।

तुल्य धारिता (\(C_{eq}\)):

\[ \frac{1}{C_{eq}} = \frac{1}{C_1} + \frac{1}{C_2} + \frac{1}{C_3} + \dots \]

2.14.2 पार्श्वक्रम (समांतर) संयोजन (Parallel Combination)

जब संधारित्रों की सभी धनात्मक पट्टिकाओं को एक बिंदु से और सभी ऋणात्मक पट्टिकाओं को दूसरे बिंदु से जोड़ा जाता है, तो इसे पार्श्वक्रम संयोजन कहते हैं।

  • सभी संधारित्रों पर विभवांतर (V) समान रहता है।
  • कुल आवेश (Q) व्यक्तिगत आवेशों के योग के बराबर होता है (\(Q = Q_1 + Q_2 + \dots\))।

तुल्य धारिता (\(C_{eq}\)):

\[ C_{eq} = C_1 + C_2 + C_3 + \dots \]

2.15 संधारित्र में संचित ऊर्जा (Energy Stored in a Capacitor)

किसी संधारित्र को आवेशित करने में किया गया कार्य उसमें स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। यह ऊर्जा संधारित्र की पट्टिकाओं के बीच वैद्युत क्षेत्र में संचित होती है।

संचित ऊर्जा (U):

\[ U = \frac{1}{2}CV^2 = \frac{Q^2}{2C} = \frac{1}{2}QV \]

ऊर्जा घनत्व (Energy Density, u): प्रति एकांक आयतन में संचित ऊर्जा।

\[ u = \frac{1}{2}\epsilon_0 E^2 \]

उदाहरण 2.10

(a) 900 pF के किसी संधारित्र को 100 V बैटरी से आवेशित किया गया। संधारित्र में संचित कुल स्थिरवैद्युत ऊर्जा कितनी है?

(b) इस संधारित्र को बैटरी से वियोजित करके किसी अन्य 900 pF के संधारित्र से संयोजित किया गया। निकाय द्वारा संचित स्थिरवैद्युत ऊर्जा कितनी है?

हल:

(a) \(C = 900 \text{ pF} = 9 \times 10^{-10}\) F, \(V = 100\) V.

\[ U_i = \frac{1}{2}CV^2 = \frac{1}{2} (9 \times 10^{-10})(100)^2 = 4.5 \times 10^{-6} \text{ J} \]

(b) जब दूसरे संधारित्र से जोड़ा जाता है, तो कुल आवेश \(Q = CV = 9 \times 10^{-8}\) C संरक्षित रहता है, लेकिन यह दोनों संधारित्रों में बंट जाता है। नया विभव \(V' = V/2 = 50\) V होगा (क्योंकि धारिता दोगुनी हो गई)।

कुल धारिता \(C_{eq} = C+C = 1800\) pF. \[ U_f = \frac{Q^2}{2C_{eq}} = \frac{(9 \times 10^{-8})^2}{2 \times (1800 \times 10^{-12})} = 2.25 \times 10^{-6} \text{ J} \]

ऊर्जा में हानि \(\Delta U = U_i - U_f = 2.25 \times 10^{-6}\) J. यह ऊर्जा तारों में ऊष्मा के रूप में क्षय हो जाती है।

सारांश (Summary)

  1. स्थिरवैद्युत बल एक संरक्षी बल है।
  2. किसी बिंदु पर विभव, एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया गया कार्य है: \(V(r) = \frac{1}{4\pi\epsilon_0}\frac{Q}{r}\)।
  3. आवेशों के निकाय के कारण विभव अध्यारोपण सिद्धांत का पालन करता है।
  4. समविभव पृष्ठ पर विभव नियत रहता है और वैद्युत क्षेत्र इसके लंबवत होता है।
  5. आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा उन्हें अनंत से लाकर बनाने में किए गए कार्य के बराबर होती है।
  6. चालक के भीतर स्थिरवैद्युत क्षेत्र शून्य होता है और विभव नियत रहता है। अतिरिक्त आवेश केवल पृष्ठ पर रहता है।
  7. संधारित्र की धारिता \(C = Q/V\) है। समांतर पट्टिका संधारित्र के लिए \(C = K \epsilon_0 A/d\)।
  8. संधारित्रों के श्रेणीक्रम संयोजन में \(1/C_{eq} = \sum 1/C_i\) और पार्श्वक्रम संयोजन में \(C_{eq} = \sum C_i\)।
  9. संधारित्र में संचित ऊर्जा \(U = \frac{1}{2}CV^2\) है।

विचारणीय विषय (Points to Ponder)

  1. स्थिरवैद्युतिकी में आवेश विराम में होते हैं, इसका अर्थ है कि उन पर लगे कूलॉम बल को कुछ अन्य अनिर्दिष्ट बलों द्वारा संतुलित किया जाता है।
  2. गोलीय कोश के पृष्ठ के आर-पार वैद्युत क्षेत्र असंतत होता है, लेकिन विभव संतत होता है।
  3. किसी आवेश q के कारण अपनी ही स्थिति पर विभव अपरिभाषित (अनंत) होता है।
  4. स्थिरवैद्युत परिरक्षण (Electrostatic shielding) का उपयोग संवेदनशील उपकरणों को बाह्य वैद्युत क्षेत्रों से बचाने के लिए किया जाता है।

अध्याय के अभ्यास प्रश्न

  1. प्रश्न 2.1: 5 × 10⁻⁸ C तथा –3 × 10⁻⁸ C के दो आवेश 16 cm दूरी पर स्थित हैं। दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के किस बिंदु पर वैद्युत विभव शून्य होगा?

    उत्तर: धनात्मक आवेश से 10 cm और 40 cm की दूरी पर।

  2. प्रश्न 2.2: 10 cm भुजा वाले, एक सम-षट्भुज के प्रत्येक शीर्ष पर 5 µC का आवेश है। षट्भुज के केंद्र पर विभव परिकलित कीजिए।

    उत्तर: \(2.7 \times 10^6\) V

  3. प्रश्न 2.5: एक समांतर पट्टिका संधारित्र, जिसकी पट्टिकाओं के बीच वायु है, की धारिता 8 pF है। यदि पट्टिकाओं के बीच की दूरी को आधा कर दिया जाए, और इनके बीच के स्थान में 6 परावैद्युत स्थिरांक का एक पदार्थ भर दिया जाए तो इसकी धारिता क्या होगी?

    उत्तर: 96 pF

  4. प्रश्न 2.11: 200 V संभरण से, एक 600 pF के संधारित्र को आवेशित किया जाता है। फिर इसको संभरण से वियोजित कर देते हैं तथा एक अन्य 600 pF वाले अनावेशित संधारित्र से जोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में कितनी ऊर्जा की हानि होती है?

    उत्तर: \(6 \times 10^{-6}\) J

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