अध्याय 8: अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार - आत्म-अध्ययन नोट्स
व्यापार क्या है?
मूल अवधारणा
- आप पहले से ही जानते हैं कि व्यापार एक तृतीयक क्रियाकलाप है।
- व्यापार का मतलब वस्तुओं और सेवाओं का स्वैच्छिक आदान-प्रदान होता है।
- व्यापार करने के लिए दो पक्षों का होना ज़रूरी है: एक पक्ष बेचता है और दूसरा पक्ष खरीदता है।
- कुछ स्थानों पर लोग वस्तुओं का विनिमय (बार्टर) करते हैं।
- व्यापार दोनों ही पक्षों के लिए समान रूप से लाभदायक होता है।
व्यापार दो स्तरों पर किया जा सकता है: अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्या है?
यह विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान है। राष्ट्रों को व्यापार करने की ज़रूरत इसलिए होती है क्योंकि वे उन वस्तुओं को या तो स्वयं उत्पादित नहीं कर सकते या जिन्हें वे अन्य स्थानों से कम दामों में खरीद सकते हैं।
व्यापार का प्रारंभिक स्वरूप: विनिमय व्यवस्था (Barter System)
- आदिम समाज में व्यापार का शुरुआती रूप विनिमय व्यवस्था थी।
- इसमें वस्तुओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था, यानि रुपये के बजाय वस्तु के बदले वस्तु दी जाती थी।
- उदाहरण: यदि आप एक कुम्हार होते और आपको एक नलसाज़ की ज़रूरत होती, तो आपको एक ऐसा नलसाज़ ढूँढना पड़ता जिसे आपके बनाए बर्तनों की ज़रूरत होती, और आप उसकी सेवा के बदले अपने बर्तन देकर विनिमय कर सकते थे।
क्या आप जानते हैं?
आज भी भारत में एक ऐसा मेला है जहाँ विनिमय व्यवस्था जीवित है। जागीरोड, गुवाहाटी से 35 कि.मी. दूर लगने वाला जॉन बीले मेला, जो हर जनवरी में फसल कटाई के बाद लगता है, संभवतः भारत का एकमात्र ऐसा मेला है जहाँ विभिन्न जनजातियों और समुदायों के लोग अपनी वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं।
मुद्रा का आगमन
रुपये अथवा मुद्रा के आगमन से विनिमय व्यवस्था की कठिनाइयाँ दूर हो गईं। पुराने समय में कागज़ी व धात्विक मुद्रा से पहले, उच्च मूल्य वाली दुर्लभ वस्तुओं को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
उदाहरण: चकमक पत्थर, आब्सिडियन (आग्नेय काँच), कौड़ी शेल, चीते के पंजे, ह्वेल के दाँत, कुत्ते के दाँत, खालें, बाल (फर), मवेशी, चावल, पैपरकॉर्न, नमक, छोटे यंत्र, ताँबा, चाँदी और स्वर्ण।
शब्द व्युत्पत्ति
शब्द "सैलरी" लैटिन शब्द "सालैरियम" से बना है, जिसका अर्थ है नमक द्वारा भुगतान। उस समय नमक बनाना केवल खनिज नमक से ज्ञात था (समुद्र जल से नहीं), जो दुर्लभ और महँगा था, इसलिए यह भुगतान का एक माध्यम बना।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास
प्राचीन समय
लंबी दूरी तक वस्तुओं का परिवहन जोखिमपूर्ण था, इसलिए व्यापार स्थानीय बाज़ारों तक ही सीमित था। लोग अपनी अधिकांश कमाई भोजन और वस्त्र जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर खर्च करते थे। केवल धनी लोग ही आभूषण व महँगे परिधान खरीदते थे, जिससे विलासिता की वस्तुओं का व्यापार शुरू हुआ।
रेशम मार्ग (Silk Road)
यह लंबी दूरी के व्यापार का एक शुरुआती उदाहरण है। यह 6000 कि.मी. लंबा मार्ग था जो रोम को चीन से जोड़ता था। व्यापारी चीन के रेशम, रोम की ऊन व बहुमूल्य धातुओं और अन्य महँगी वस्तुओं का परिवहन भारत, पर्शिया (ईरान) और मध्य एशिया जैसे मध्यवर्ती स्थानों से करते थे।
मध्यकाल (12वीं और 13वीं शताब्दी)
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद यूरोपीय वाणिज्य में वृद्धि हुई। समुद्रगामी युद्धपोतों के विकास से यूरोप तथा एशिया के बीच व्यापार बढ़ा और अमेरिका की खोज हुई।
उपनिवेशवाद और दास व्यापार (15वीं शताब्दी से)
यूरोपीय उपनिवेशवाद शुरू हुआ और एक नए प्रकार का व्यापार उदय हुआ जिसे दास व्यापार (Slave Trade) कहा गया। पुर्तगालियों, डचों, स्पेनिश लोगों व अंग्रेजों ने अफ्रीकी मूल निवासियों को पकड़ा और उन्हें बलपूर्वक अमेरिका में बागानों में श्रम के लिए भेज दिया। दास व्यापार दो सौ वर्षों से भी अधिक समय तक लाभदायक रहा। यह 1792 में डेनमार्क में, 1807 में ग्रेट ब्रिटेन में और 1808 में संयुक्त राज्य में समाप्त कर दिया गया।
औद्योगिक क्रांति के बाद
कच्चे माल (जैसे अनाज, मांस, ऊन) की माँग बढ़ी, लेकिन निर्मित वस्तुओं की तुलना में उनका मौद्रिक मूल्य घट गया। औद्योगीकृत राष्ट्र कच्चे माल (प्राथमिक उत्पादों) का आयात करते थे और मूल्यवर्धित तैयार माल को गैर-औद्योगीकृत राष्ट्रों को निर्यात कर देते थे।
विश्व युद्ध
प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्रों ने पहली बार व्यापार कर और संख्यात्मक प्रतिबंध लगाए। विश्व युद्ध के बाद के समय में GATT (ट्रेड और टैरिफ पर सामान्य समझौता) जैसी संस्थाओं ने (जो बाद में WTO बना) टैरिफ को घटाने में मदद की।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्यों अस्तित्व में है? (आधार)
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण का परिणाम है। यह विश्व की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वस्तुओं और सेवाओं के तुलनात्मक लाभ, परिपूरकता व हस्तांतरणीयता के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के मुख्य आधार
- राष्ट्रीय संसाधनों में भिन्नता:
- भौगोलिक संरचना: खनिज संसाधन आधार निर्धारित करती है। धरातलीय भिन्नताएँ फसलों व पशुओं की विविधता सुनिश्चित करती हैं।
- खनिज संसाधन: संपूर्ण विश्व में असमान रूप से वितरित हैं और औद्योगिक विकास का आधार हैं।
- जलवायु: पादप व वन्य जीव के प्रकार को प्रभावित करती है। जैसे, ऊन ठंडे क्षेत्रों में, जबकि केला-रबड़ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगते हैं।
- जनसंख्या कारक:
- सांस्कृतिक कारक: विशिष्ट संस्कृतियों में कला तथा हस्तशिल्प के विभिन्न रूप विकसित हुए हैं। जैसे चीन का पॉर्सलिन, ईरान के कालीन।
- जनसंख्या का आकार: सघन बसाव वाले देशों में आंतरिक व्यापार अधिक होता है, जबकि बाह्य व्यापार कम।
- आर्थिक विकास की प्रावस्था:
- कृषि प्रधान देश कृषि उत्पादों का विनिमय निर्मित वस्तुओं से करते हैं।
- औद्योगिक राष्ट्र मशीनरी और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते हैं।
- विदेशी निवेश की सीमा:
- विदेशी निवेश विकासशील देशों में व्यापार को बढ़ावा देता है जहाँ पूँजी का अभाव है।
- परिवहन:
- परिवहन के बेहतर साधनों (रेल, समुद्री, वायु) ने व्यापार के स्थानिक विस्तार को बढ़ाया है।
व्यापार संतुलन (Trade Balance)
यह एक देश द्वारा अन्य देशों को आयात एवं निर्यात की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा का रिकॉर्ड है।
- ऋणात्मक (प्रतिकूल) व्यापार संतुलन: यदि आयात का मूल्य, निर्यात मूल्य से अधिक है।
- धनात्मक (अनुकूल) व्यापार संतुलन: यदि निर्यात का मूल्य, आयात मूल्य से अधिक है।
ध्यान दें!
ऋणात्मक व्यापार संतुलन किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है। इसका मतलब है कि देश वस्तुओं को खरीदने पर बेचने से ज़्यादा खर्च करता है। यह अंततः वित्तीय संचय की समाप्ति को दर्शाता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार
- द्विपार्श्विक व्यापार (Bilateral Trade): दो देशों के बीच किया जाता है। वे आपस में विशिष्ट वस्तुओं का व्यापार करने के लिए सहमत होते हैं।
- बहु पार्श्विक व्यापार (Multilateral Trade): बहुत से व्यापारिक देशों के साथ किया जाता है। देश कुछ व्यापारिक साझेदारों को "सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र" (MFN - Most Favored Nation) की स्थिति प्रदान कर सकता है।
मुक्त व्यापार (Free Trade) और डंपिंग
मुक्त व्यापार (Trade Liberalisation)
अर्थव्यवस्थाओं को व्यापार के लिए खोलना मुक्त व्यापार या व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है। यह व्यापार बाधाओं, जैसे सीमा शुल्क, को घटाकर किया जाता है।
मुक्त व्यापार के नकारात्मक प्रभाव
वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं, उन्हें विकास के समान अवसर नहीं मिलते। धनी देश और धनी हो जाते हैं, जिससे गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती है। देशों को डंप की गई वस्तुओं से भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।
डंप करना (Dumping)
परिभाषा: डंपिंग
लागत की दृष्टि से नहीं, बल्कि अलग-अलग कारणों से एक ही वस्तु को दो देशों में अलग-अलग कीमत पर बेचने की प्रथा डंपिंग कहलाती है। इस प्रकार की सस्ती डंप की गई वस्तुएँ घरेलू उत्पादकों को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
विश्व व्यापार संगठन (WTO)
WTO: एक परिचय
- गठन: 1948 में GATT (ट्रेड और टैरिफ पर सामान्य समझौता) बना। जनवरी 1995 से GATT को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में बदल दिया गया।
- कार्य: WTO एकमात्र ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य वैश्विक नियमों का व्यवहार करता है। यह विश्वव्यापी व्यापार तंत्र के लिए नियम निर्धारित करता है और सदस्य देशों के मध्य विवादों का निपटारा करता है।
- मुख्यालय: जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड)।
- सदस्यता: 2024 में 166 देश WTO के सदस्य थे। भारत WTO के संस्थापक सदस्यों में से एक है।
- आलोचना: इसकी आलोचना की जाती है कि यह अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई को बढ़ाता है और आम लोगों के जीवन को समृद्ध नहीं बनाता।
बंदरगाह (Port): अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार
बंदरगाह (पत्तन) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया के मुख्य प्रवेश द्वार होते हैं। इन्हीं के द्वारा जहाज़ी माल तथा यात्री विश्व के एक भाग से दूसरे भाग को जाते हैं। एक बंदरगाह द्वारा निपटाया नौभार, उसके पृष्ठ प्रदेश (Hinterland) के विकास के स्तर का सूचक है।
बंदरगाहों के प्रकार
1. निपटाए गए नौभार के अनुसार:
- औद्योगिक बंदरगाह (Industrial Ports): थोक नौभार (अनाज, चीनी, अयस्क, तेल) के लिए।
- वाणिज्यिक बंदरगाह (Commercial Ports): सामान्य नौभार (पैकेज्ड उत्पाद), विनिर्मित वस्तुओं और यात्री यातायात का प्रबंधन करते हैं।
- विस्तृत बंदरगाह (Comprehensive Ports): बड़े परिमाण में सामान्य और थोक नौभार दोनों का प्रबंधन करते हैं।
2. अवस्थिति के आधार पर:
- अंतर्देशीय बंदरगाह (Inland Ports): समुद्र तट से दूर, नदी या नहर द्वारा समुद्र से जुड़े। उदाहरण: मैनचेस्टर, मेम्फिस, कोलकाता (हुगली नदी पर)।
- बाह्य बंदरगाह (Out Ports): गहरे जल के बंदरगाह जो वास्तविक बंदरगाह से दूर बने होते हैं। ये बड़े जहाज़ों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। उदाहरण: एथेंस का बाह्य बंदरगाह पिरैअस।
3. विशिष्टीकृत कार्यकलापों के आधार पर:
- तेल बंदरगाह (Oil Ports): तेल के प्रसंस्करण और नौ-परिवहन का कार्य करते हैं। उदाहरण: वेनेज़ुएला में माराकाइबो (टैंकर), पर्शिया की खाड़ी पर आबादान (तेलशोधन)।
- मार्ग बंदरगाह (Ports of Call): मुख्य समुद्री मार्गों पर विश्राम केंद्र। उदाहरण: अदन, होनोलूलू, सिंगापुर।
- पैकेट स्टेशन (Packet Stations): छोटी दूरियों पर डाक और यात्रियों का परिवहन। उदाहरण: इंग्लैंड में डोवर और फ्रांस में कैले।
- आंत्रपो बंदरगाह (Entrepot Ports): एकत्रीकरण केंद्र जहाँ विभिन्न देशों से निर्यात हेतु वस्तुएँ लाई जाती हैं। उदाहरण: सिंगापुर (एशिया के लिए), रॉटरडैम (यूरोप के लिए)।
- नौ सेना बंदरगाह (Naval Ports): सामरिक महत्व के बंदरगाह, युद्धक जहाज़ों को सेवाएँ देते हैं। उदाहरण: भारत में कोच्चि तथा कारवार।
अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
(i) संसार के अधिकांश महान बंदरगाह इस प्रकार वर्गीकृत किए गए हैं:
(ii) विश्व व्यापार संगठन के आधारभूत कार्य कौन-से हैं?
(iii) ऋणात्मक भुगतान संतुलन का होना किसी देश के लिए क्यों हानिकारक होता है?
(i) बंदरगाह किस प्रकार व्यापार के लिए सहायक होते हैं? बंदरगाहों का वर्गीकरण उनकी अवस्थिति के आधार पर कीजिए।
अवस्थिति के आधार पर बंदरगाहों का वर्गीकरण:
- अंतर्देशीय बंदरगाह: ये समुद्र तट से दूर होते हैं और किसी नदी या नहर द्वारा समुद्र से जुड़े होते हैं। उदाहरण: मैनचेस्टर, कोलकाता (हुगली नदी)।
- बाह्य बंदरगाह: ये गहरे जल के बंदरगाह हैं जो मुख्य बंदरगाह से दूर बने होते हैं और उन बड़े जहाज़ों को सेवाएँ देते हैं जो मुख्य बंदरगाह तक नहीं पहुँच सकते। उदाहरण: पिरैअस (एथेंस का बाह्य बंदरगाह)।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देश कैसे लाभ प्राप्त करते हैं?
अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न
1. विनिमय व्यवस्था की दो मुख्य कठिनाइयों का उल्लेख करें।
2. डंपिंग से आप क्या समझते हैं? यह घरेलू उत्पादकों को कैसे प्रभावित कर सकती है?
3. आंत्रपो बंदरगाह (Entrepot Ports) से आप क्या समझते हैं? उनके दो उदाहरण दें।
बोर्ड परीक्षा के लिए त्वरित सारांश
यह अध्याय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (राष्ट्रों के बीच वस्तुओं/सेवाओं का आदान-प्रदान) पर केंद्रित है। यह एक तृतीयक क्रियाकलाप है जो राष्ट्रों में संसाधनों, जनसंख्या, और आर्थिक विकास की भिन्नता पर आधारित है।
- प्रारंभिक रूप: विनिमय व्यवस्था (Barter), जिसे बाद में मुद्रा ने आसान बना दिया।
- ऐतिहासिक पड़ाव: रेशम मार्ग, दास व्यापार, और औद्योगिक क्रांति।
- मुख्य अवधारणाएँ: व्यापार संतुलन (आयात-निर्यात का अंतर), द्विपार्श्विक/बहु पार्श्विक व्यापार, मुक्त व्यापार (व्यापार उदारीकरण), और डंपिंग।
- वैश्विक संस्था: विश्व व्यापार संगठन (WTO), जो 1995 में GATT के स्थान पर बना, वैश्विक व्यापार के नियम बनाता है।
- व्यापार के द्वार: बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन्हें नौभार, अवस्थिति और कार्य के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है (जैसे औद्योगिक, अंतर्देशीय, तेल, आंत्रपो बंदरगाह आदि)।
- प्रभाव: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लाभदायक (विशिष्टीकरण, उच्च जीवन स्तर) और हानिकारक (निर्भरता, शोषण, पर्यावरण हानि) दोनों हो सकता है।
प्रिय छात्रों, ये नोट्स आपको अध्याय की मुख्य बातों को समझने में मदद करेंगे। इन्हें बार-बार पढ़ें, प्रमुख शब्दों की परिभाषाएँ याद रखें और अभ्यास प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें। शुभकामनाएँ!
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, International Trade in Hindi, Class 12 Geography Chapter 8 Notes, भूगोल कक्षा 12 अध्याय 8, विश्व व्यापार संगठन, WTO in Hindi, GATT, विनिमय व्यवस्था, बंदरगाह के प्रकार, मुक्त व्यापार, व्यापार संतुलन, द्विपार्श्विक व्यापार, बहु पार्श्विक व्यापार, CBSE Class 12 Geography Hindi