Bihar Board class12 physics chapter 7 : प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) Notes: LCR परिपथ, ट्रांसफार्मर, और अनुनाद | कक्षा 12 भौतिकी

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प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) Notes: LCR परिपथ, ट्रांसफार्मर, और अनुनाद | कक्षा 12 भौतिकी

इस विस्तृत ब्लॉग पोस्ट में, हम कक्षा 12 भौतिकी के अध्याय 7, प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) का गहन अध्ययन करेंगे। हम AC वोल्टेज और AC धारा की मूल अवधारणाओं से लेकर LCR परिपथ, अनुनाद (Resonance), शक्ति गुणांक (Power Factor), और ट्रांसफार्मर (Transformer) के सिद्धांत तक सभी महत्वपूर्ण विषयों को कवर करेंगे। यह लेख छात्रों को rms मान, प्रेरकीय प्रतिघात, संधारित्र प्रतिघात और फेज़र आरेख जैसी जटिल अवधारणाओं को आसानी से समझने में मदद करेगा, साथ ही हल किए गए उदाहरण और अभ्यास प्रश्नों के साथ परीक्षा की तैयारी को मजबूत करेगा।

अध्याय 7: प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)

7.1 भूमिका (Introduction)

अभी तक आपने केवल दिष्ट धारा (DC) और उनसे जुड़े परिपथों के बारे में पढ़ा है। दिष्ट धारा में समय के साथ धारा की दिशा नहीं बदलती है। लेकिन, वास्तविक जीवन में हम अक्सर ऐसी धाराओं और वोल्टेजों का सामना करते हैं जो समय के साथ बदलते रहते हैं। हमारे घरों और दफ्तरों में आने वाली बिजली (electric mains supply) एक ऐसी ही वोल्टेज का स्रोत है जो समय के साथ ज्या फलन (sine function) की तरह बदलती है।

ऐसी वोल्टेज को प्रत्यावर्ती (AC) वोल्टेज कहा जाता है, और इसके कारण परिपथ में बहने वाली धारा को प्रत्यावर्ती धारा (AC धारा) कहते हैं। आजकल हम जितनी भी बिजली से चलने वाली चीजें इस्तेमाल करते हैं, उनमें से ज्यादातर को AC वोल्टेज की ही ज़रूरत होती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ज़्यादातर बिजली कंपनियां हमें AC धारा के रूप में ही बिजली भेजती और बांटती हैं।

AC को DC से बेहतर क्यों माना जाता है? इसका मुख्य कारण यह है कि AC वोल्टेज को ट्रांसफार्मर की मदद से आसानी और कुशलता से एक मान से दूसरे मान में बदला जा सकता है। इसके अलावा, लंबी दूरी तक बिजली को AC के रूप में भेजना DC की तुलना में कम खर्चीला होता है।

महत्वपूर्ण शब्दावली:

  • दिष्ट धारा (DC): ऐसी धारा जिसकी दिशा समय के साथ नहीं बदलती।
  • प्रत्यावर्ती धारा (AC): ऐसी धारा जिसकी दिशा समय के साथ आवर्ती रूप से बदलती है, आमतौर पर ज्या फलन के रूप में।
  • AC वोल्टेज: वह वोल्टेज जो समय के साथ ज्या फलन के रूप में बदलती है।
  • AC धारा: AC वोल्टेज द्वारा किसी परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा।

क्या आप जानते हैं?

AC वोल्टेज और AC धारा शब्दों का उपयोग थोड़ा असंगत लग सकता है क्योंकि शाब्दिक अर्थ क्रमशः 'प्रत्यावर्ती धारा वोल्टेज' और 'प्रत्यावर्ती धारा' होगा। फिर भी, AC समय के साथ सरल आवर्ती क्रम में बदलने वाली विद्युत राशि को व्यक्त करने के लिए सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य हो गया है। इसलिए हम प्रचलित परिपाटी का ही पालन करेंगे।

निकोल टेस्ला (Nikola Tesla) (1856 – 1943)

निकोल टेस्ला सर्बियाई-अमेरिकी वैज्ञानिक, आविष्कारक और एक असाधारण व्यक्ति थे। चुंबकीय क्षेत्र को घुमाने का उनका विचार ही सभी व्यावहारिक प्रत्यावर्ती धारा मशीनों का आधार बना, जिससे विद्युत शक्ति के युग में प्रवेश संभव हुआ। उन्होंने इंडक्शन मोटर, AC पावर की बहु-फेज़ प्रणाली, रेडियो, टेलीविजन और अन्य विद्युत उपकरणों में लगने वाली उच्च आवृत्ति इंडक्शन कॉइल (टेस्ला कॉइल) का आविष्कार भी किया। चुंबकीय क्षेत्र के SI मात्रक का नाम उनके सम्मान में रखा गया है।

जॉर्ज वेस्टिंगहाउस (George Westinghouse) (1846 – 1914)

जॉर्ज वेस्टिंगहाउस दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा के प्रमुख पक्षधर थे। इसलिए उनका दिष्ट धारा के समर्थक थॉमस अल्वा एडिसन से सीधा संघर्ष हुआ। वेस्टिंगहाउस का पूरा विश्वास था कि प्रत्यावर्ती धारा प्रौद्योगिकी के हाथ में ही विद्युतीय भविष्य की कुंजी है। उन्होंने अपने नाम की प्रसिद्ध कंपनी स्थापित की और निकोल टेस्ला और अन्य आविष्कारकों को प्रत्यावर्ती धारा मोटरों और उच्च वोल्टेज पर विद्युत धारा के संचरण संबंधी उपकरणों के विकास के लिए नियुक्त किया, जिससे बड़े पैमाने पर प्रकाश प्राप्त करने का मार्ग खुला।

7.2 प्रतिरोधक पर प्रयुक्त AC वोल्टेज (AC Voltage Applied to a Resistor)

मान लीजिए हमने चित्र 7.1 में दिखाए गए एक प्रतिरोधक R को AC वोल्टेज स्रोत \( \varepsilon \) से जोड़ा है। परिपथ आरेख में AC स्रोत का प्रतीक चिह्न ~ है। हम यहां एक ऐसे स्रोत की बात कर रहे हैं जो अपने सिरों के बीच ज्यावक्रीय रूप से बदलने वाला विभवांतर उत्पन्न करता है। मान लीजिए यह विभवांतर, जिसे AC वोल्टेज भी कहते हैं, निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जाता है:

$$ v = v_m \sin \omega t \quad \text{(समीकरण 7.1)} $$

यहाँ \( v_m \) दोलायमान विभवांतर का आयाम (peak value) है, और \( \omega \) इसकी कोणीय आवृत्ति (angular frequency) है। प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली धारा का मान प्राप्त करने के लिए, हम किरचॉफ का लूप नियम लागू करते हैं: \( v - iR = 0 \)।

$$ i = \left(\frac{v_m}{R}\right) \sin \omega t = i_m \sin \omega t \quad \text{(समीकरण 7.2)} $$

यहाँ धारा आयाम \( i_m \) के लिए सूत्र है:

$$ i_m = \frac{v_m}{R} \quad \text{(समीकरण 7.3)} $$

यह समीकरण ओम का नियम है। समीकरण (7.1) और (7.2) से स्पष्ट है कि वोल्टेज और धारा एक-दूसरे के साथ समान कला (in phase) में हैं।

प्रतिरोधक पर प्रयुक्त AC वोल्टेज और वोल्टेज-धारा ग्राफ

चित्र 7.1: प्रतिरोधक पर प्रयुक्त AC वोल्टेज। चित्र 7.2: शुद्ध प्रतिरोधक में वोल्टेज और धारा एक ही कला में हैं।

एक संपूर्ण चक्र में औसत धारा शून्य होती है, लेकिन जूल तापन (Joule heating) \( i^2R \) के कारण ऊर्जा का क्षय होता है। क्षय होने वाली तात्क्षणिक शक्ति होती है:

$$ p = iv = i^2R = i_m^2 R \sin^2 \omega t \quad \text{(समीकरण 7.4)} $$

एक पूरे चक्र में औसत शक्ति है:

$$ \bar{p} = \frac{1}{2} i_m^2 R $$

AC शक्ति को DC शक्ति ( \( P = I^2R \) ) के रूप में व्यक्त करने के लिए, हम वर्ग माध्य मूल (rms) या प्रभावी (effective) धारा \( I \) का उपयोग करते हैं।

$$ I = I_{rms} = \frac{i_m}{\sqrt{2}} \approx 0.707 i_m \quad \text{(समीकरण 7.6)} $$ $$ V = V_{rms} = \frac{v_m}{\sqrt{2}} \approx 0.707 v_m \quad \text{(समीकरण 7.8)} $$

rms मानों के पदों में औसत शक्ति और ओम का नियम:

$$ \bar{p} = I^2 R \quad \text{और} \quad V = IR $$

घरेलू आपूर्ति में 220 V वोल्टेज का rms मान है। इसका शिखर मान \( v_m = \sqrt{2} \times 220 \text{ V} \approx 311 \text{ V} \) होता है।

उदाहरण 7.1

एक विद्युत बल्ब 220V आपूर्ति पर 100W शक्ति देने के लिए बनाया गया है। ज्ञात कीजिए: (a) बल्ब का प्रतिरोध, (b) स्रोत की शिखर वोल्टेज और (c) बल्ब में प्रवाहित होने वाली rms धारा।

हल:

(a) प्रतिरोध: \( R = \frac{V^2}{P} = \frac{(220 \text{ V})^2}{100 \text{ W}} = \mathbf{484 \, \Omega} \)

(b) शिखर वोल्टेज: \( v_m = \sqrt{2} V = \sqrt{2} \times 220 \text{ V} \approx \mathbf{311 \, V} \)

(c) rms धारा: \( I = \frac{P}{V} = \frac{100 \text{ W}}{220 \text{ V}} \approx \mathbf{0.450 \, A} \)

7.3 AC धारा और वोल्टेज का घूर्णी सदिश द्वारा निरूपण - कलासमंजक (Phasors)

AC परिपथ में धारा और वोल्टेज के बीच कला संबंध दर्शाने के लिए हम फेज़र (phasor) की अवधारणा का उपयोग करते हैं। फेज़र एक सदिश है जो मूल बिंदु के परितः कोणीय वेग \( \omega \) से घूर्णन करता है। फेज़र का परिमाण राशि के शिखर मान (\(v_m\) या \(i_m\)) को और ऊर्ध्वाधर अक्ष पर इसका प्रक्षेप तात्क्षणिक मान (\(v\) या \(i\)) को निरूपित करता है।

फेज़र आरेख और v-i ग्राफ

चित्र 7.4: (a) प्रतिरोधक के लिए फेज़र आरेख (b) v और i का समय के साथ ग्राफ।

प्रतिरोधक के लिए, वोल्टेज फेज़र V और धारा फेज़र I हमेशा एक ही दिशा में होते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके बीच कला कोण (phase angle) शून्य होता है।

7.4 प्रेरक पर प्रयुक्त AC वोल्टेज (AC Voltage Applied to an Inductor)

एक शुद्ध प्रेरकीय AC परिपथ में, स्रोत वोल्टेज \( v = v_m \sin \omega t \) है। किरचॉफ के नियम से, \( v - L(di/dt) = 0 \)। इस समीकरण को हल करने पर हमें धारा का मान मिलता है:

$$ i = i_m \sin(\omega t - \pi/2) $$

यहाँ धारा का आयाम \( i_m = v_m / X_L \) है, जहाँ \( X_L \) प्रेरकीय प्रतिघात (inductive reactance) है।

$$ X_L = \omega L $$

समीकरणों की तुलना करने पर यह स्पष्ट है कि एक शुद्ध प्रेरक में, धारा वोल्टेज से \( \pi/2 \) (या 90°) पीछे (lags) रहती है।

प्रेरक के लिए फेज़र आरेख और v-i ग्राफ

चित्र 7.6: (a) प्रेरक के लिए फेज़र आरेख (b) v और i का समय के साथ ग्राफ।

एक पूरे चक्र में शुद्ध प्रेरक को दी गई औसत शक्ति शून्य होती है।

उदाहरण 7.2

25.0 mH का एक शुद्ध प्रेरक 220 V, 50 Hz के एक स्रोत से जुड़ा है। परिपथ का प्रेरकीय प्रतिघात एवं rms धारा ज्ञात कीजिए।

हल:

प्रेरकीय प्रतिघात: \( X_L = 2\pi\nu L = 2 \times 3.14 \times 50 \times 25.0 \times 10^{-3} \approx \mathbf{7.85 \, \Omega} \)

rms धारा: \( I = V / X_L = 220 \text{ V} / 7.85 \, \Omega \approx \mathbf{28 \, A} \)

7.5 संधारित्र पर प्रयुक्त AC वोल्टेज (AC Voltage Applied to a Capacitor)

एक शुद्ध संधारित्रकीय AC परिपथ में, स्रोत वोल्टेज \( v = v_m \sin \omega t \) है। हम जानते हैं कि \( v = q/C \) और \( i = dq/dt \)। इन संबंधों का उपयोग करके धारा का मान प्राप्त होता है:

$$ i = i_m \sin(\omega t + \pi/2) $$

यहाँ धारा का आयाम \( i_m = v_m / X_C \) है, जहाँ \( X_C \) संधारित्र प्रतिघात (capacitive reactance) है।

$$ X_C = \frac{1}{\omega C} $$

समीकरणों की तुलना करने पर यह स्पष्ट है कि एक शुद्ध संधारित्र में, धारा वोल्टेज से \( \pi/2 \) (या 90°) आगे (leads) रहती है।

संधारित्र के लिए फेज़र आरेख और v-i ग्राफ

चित्र 7.8: (a) संधारित्र के लिए फेज़र आरेख (b) v और i का समय के साथ ग्राफ।

एक पूरे चक्र में शुद्ध संधारित्र को दी गई औसत शक्ति भी शून्य होती है।

उदाहरण 7.4

15.0 µF का एक संधारित्र, 220 V, 50 Hz स्रोत से जोड़ा गया है। प्रतिघात और धारा का मान बताइए। यदि आवृत्ति दोगुनी कर दी जाए तो क्या होगा?

हल:

संधारित्रकीय प्रतिघात: \( X_C = \frac{1}{2\pi\nu C} = \frac{1}{2 \times 3.14 \times 50 \times 15.0 \times 10^{-6}} \approx \mathbf{212 \, \Omega} \)

rms धारा: \( I = V / X_C = 220 \text{ V} / 212 \, \Omega \approx \mathbf{1.04 \, A} \)

शिखर धारा: \( i_m = \sqrt{2} I \approx 1.414 \times 1.04 \text{ A} \approx \mathbf{1.47 \, A} \)

यदि आवृत्ति दोगुनी हो जाए, तो \( X_C' = X_C / 2 \) (प्रतिघात आधा हो जाएगा) और \( I' = 2I \) (धारा दोगुनी हो जाएगी)।

7.6 श्रेणीबद्ध LCR परिपथ पर प्रयुक्त AC वोल्टेज (AC Voltage Applied to a Series LCR Circuit)

एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ में, प्रतिरोधक (R), प्रेरक (L), और संधारित्र (C) एक AC स्रोत से श्रेणीक्रम में जुड़े होते हैं। फेज़र आरेख विधि का उपयोग करके, हम पाते हैं कि कुल वोल्टेज \( V \) का आयाम पाइथागोरस प्रमेय द्वारा दिया जाता है:

$$ v_m^2 = v_{Rm}^2 + (v_{Lm} - v_{Cm})^2 $$

इससे धारा का आयाम प्राप्त होता है:

$$ i_m = \frac{v_m}{\sqrt{R^2 + (X_L - X_C)^2}} $$

हर में दिए गए पद को परिपथ की प्रतिबाधा (Impedance), Z कहते हैं।

$$ Z = \sqrt{R^2 + (X_L - X_C)^2} $$

वोल्टेज और धारा के बीच कला कोण \( \phi \) इस सूत्र से दिया जाता है:

$$ \tan \phi = \frac{X_L - X_C}{R} $$
  • यदि \( X_L > X_C \), तो \( \phi \) धनात्मक होता है और परिपथ प्रेरकीय होता है (धारा वोल्टेज से पीछे रहती है)।
  • यदि \( X_C > X_L \), तो \( \phi \) ऋणात्मक होता है और परिपथ धारितीय होता है (धारा वोल्टेज से आगे रहती है)।
  • यदि \( X_L = X_C \), तो \( \phi = 0 \) और परिपथ प्रतिरोधकीय होता है (धारा और वोल्टेज समान कला में होते हैं)। यह अनुनाद की स्थिति है।

7.6.2 अनुनाद (Resonance)

अनुनाद वह स्थिति है जब परिपथ में धारा का आयाम अधिकतम हो जाता है। यह तब होता है जब प्रतिबाधा \( Z \) न्यूनतम होती है, अर्थात् जब \( X_L = X_C \)। इस स्थिति में, प्रयुक्त स्रोत की आवृत्ति अनुनादी आवृत्ति (\( \omega_0 \)) कहलाती है।

$$ \omega_0 L = \frac{1}{\omega_0 C} \implies \omega_0 = \frac{1}{\sqrt{LC}} $$

अनुनाद पर, \( Z = R \), और धारा का आयाम अधिकतम होता है: \( i_{m,max} = v_m / R \)। रेडियो और टीवी की ट्यूनिंग अनुनाद के सिद्धांत पर ही काम करती है।

RLC परिपथ में अनुनाद वक्र

चित्र 7.14: विभिन्न प्रतिरोधों के लिए अनुनादी वक्र। कम प्रतिरोध पर अनुनाद तीक्ष्ण होता है।

7.7 AC परिपथों में शक्ति: शक्ति गुणांक (Power in AC Circuits: Power Factor)

एक LCR परिपथ में, तात्क्षणिक शक्ति \( p = vi \)। एक पूरे चक्र में औसत शक्ति क्षय है:

$$ \bar{p} = V_{rms} I_{rms} \cos \phi = VI \cos \phi $$

यहाँ, \( \cos \phi \) को शक्ति गुणांक (power factor) कहा जाता है। इसका मान प्रतिबाधा आरेख से \( \cos \phi = R/Z \) होता है।

  • प्रतिरोधकीय परिपथ (R-only): \( \phi = 0 \), \( \cos \phi = 1 \)। शक्ति क्षय अधिकतम होता है (\( P = VI \))।
  • शुद्ध प्रेरकीय या धारितीय परिपथ (L or C only): \( \phi = \pm \pi/2 \), \( \cos \phi = 0 \)। कोई शक्ति क्षय नहीं होता। इस परिपथ में बहने वाली धारा को वाटहीन धारा (wattless current) कहते हैं।
  • LCR परिपथ में अनुनाद: \( \phi = 0 \), \( \cos \phi = 1 \)। शक्ति क्षय अधिकतम होता है (\( P = I^2 R \))।

7.8 ट्रांसफार्मर (Transformer)

ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण (mutual induction) के सिद्धांत पर आधारित एक युक्ति है जो AC वोल्टेज को एक मान से दूसरे मान में परिवर्तित करती है। इसमें एक नर्म-लौह-क्रोड पर दो कुंडलियां (प्राथमिक और द्वितीयक) लिपटी होती हैं।

ट्रांसफार्मर की संरचना

चित्र 7.16: ट्रांसफार्मर की संरचना।

एक आदर्श ट्रांसफार्मर (100% दक्ष) के लिए, प्राथमिक (p) और द्वितीयक (s) कुंडलियों में फेरों की संख्या (N), वोल्टेज (V), और धारा (I) के बीच संबंध है:

$$ \frac{V_s}{V_p} = \frac{N_s}{N_p} \quad \text{और} \quad \frac{I_s}{I_p} = \frac{N_p}{N_s} $$
  • उच्चायी ट्रांसफार्मर (Step-up): \( N_s > N_p \), जिससे \( V_s > V_p \) (वोल्टेज बढ़ता है) और \( I_s < I_p \) (धारा घटती है)।
  • अपचयी ट्रांसफार्मर (Step-down): \( N_s < N_p \), जिससे \( V_s < V_p \) (वोल्टेज घटता है) और \( I_s > I_p \) (धारा बढ़ती है)।

वास्तविक ट्रांसफार्मरों में फ्लक्स क्षरण, कुंडलियों का प्रतिरोध, भंवर धाराओं और शैथिल्य के कारण ऊर्जा का क्षय होता है। लंबी दूरी तक विद्युत संचरण में I²R हानि को कम करने के लिए ट्रांसफार्मर आवश्यक हैं।

7.9 अभ्यास प्रश्न (Exercise Questions)

प्रश्न 7.1

एक 100 Ω का प्रतिरोधक 200 V, 50 Hz आपूर्ति से संयोजित है। (a) परिपथ में धारा का rms मान कितना है? (b) एक पूरे चक्र में कितनी नेट शक्ति व्यय होती है।

हल:
(a) \( I_{rms} = V_{rms} / R = 200 \, \text{V} / 100 \, \Omega = \mathbf{2 \, A} \)
(b) \( P = V_{rms} I_{rms} = 200 \, \text{V} \times 2 \, \text{A} = \mathbf{400 \, W} \)

प्रश्न 7.3

एक 44 mH का प्रेरक 220 V, 50 Hz आपूर्ति से जोड़ा गया है। परिपथ में धारा के rms मान को ज्ञात कीजिए।

हल:
\( X_L = 2\pi\nu L = 2 \times 3.14 \times 50 \times 44 \times 10^{-3} \approx 13.8 \, \Omega \)
\( I_{rms} = V_{rms} / X_L = 220 \, \text{V} / 13.8 \, \Omega \approx \mathbf{15.94 \, A} \)

प्रश्न 7.7

एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ को, जिसमें R = 20 Ω, L = 1.5 H तथा C = 35 µF, एक परिवर्ती आवृत्ति की 200 V AC आपूर्ति से जोड़ा गया है। जब आपूर्ति की आवृत्ति परिपथ की मूल आवृत्ति (अनुनादी आवृत्ति) के बराबर होती है तो एक पूरे चक्र में परिपथ को स्थानांतरित की गई माध्य शक्ति कितनी होगी?

हल:
अनुनादी आवृत्ति पर, \( Z = R = 20 \, \Omega \)।
\( I_{rms} = V_{rms} / R = 200 \, \text{V} / 20 \, \Omega = \mathbf{10 \, A} \)
माध्य शक्ति \( P = I_{rms}^2 R = (10 \, \text{A})^2 \times 20 \, \Omega = \mathbf{2000 \, W} \)

अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न

  1. एक 50 V rms वोल्टेज 60 Hz आवृत्ति के AC स्रोत से जुड़ा है। वोल्टेज का शिखर मान और कोणीय आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
    उत्तर: शिखर मान ≈ 70.7 V, कोणीय आवृत्ति ≈ 377 rad/s।
  2. एक श्रेणीबद्ध RC परिपथ में R = 15 Ω और X_C = 15 Ω है। परिपथ की प्रतिबाधा और वोल्टेज एवं धारा के बीच कला अंतर ज्ञात कीजिए。
    उत्तर: प्रतिबाधा ≈ 21.21 Ω, कला अंतर = -45° (धारा वोल्टेज से 45° आगे)।
  3. अनुनाद की स्थिति में एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ की प्रतिबाधा कितनी होती है?
    उत्तर: Z = R (न्यूनतम)।
  4. वाटहीन धारा क्या है? यह किस प्रकार के परिपथों में होती है?
    उत्तर: वाटहीन धारा वह घटक है जो शक्ति अवशोषित नहीं करता। यह शुद्ध प्रेरकीय या शुद्ध धारितीय परिपथों में होती है।
  5. एक आदर्श उच्चायी ट्रांसफार्मर में द्वितीयक कुंडली में 200 फेरे और प्राथमिक में 100 फेरे हैं। यदि निवेशी वोल्टेज 110V है, तो निर्गत वोल्टेज क्या होगी?
    उत्तर: \( V_s = (N_s/N_p) V_p = (200/100) \times 110V = \mathbf{220V} \)।

बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश

  1. प्रतिरोधक (R): धारा और वोल्टेज समान कला में ( \( \phi=0 \) )। औसत शक्ति व्यय \( \bar{p} = VI \)।
  2. प्रेरक (L): धारा, वोल्टेज से 90° पीछे रहती है। प्रतिघात \( X_L = \omega L \)। औसत शक्ति व्यय शून्य।
  3. संधारित्र (C): धारा, वोल्टेज से 90° आगे रहती है। प्रतिघात \( X_C = 1 / (\omega C) \)। औसत शक्ति व्यय शून्य।
  4. LCR श्रेणी परिपथ: प्रतिबाधा \( Z = \sqrt{R^2 + (X_L - X_C)^2} \)। कला कोण \( \tan \phi = (X_L - X_C)/R \)।
  5. शक्ति गुणांक: \( \cos \phi = R/Z \)। औसत शक्ति \( P = VI \cos \phi \)।
  6. अनुनाद: जब \( X_L = X_C \), तब अनुनादी आवृत्ति \( \omega_0 = 1 / \sqrt{LC} \)। इस स्थिति में प्रतिबाधा न्यूनतम (\( Z=R \)) और धारा अधिकतम होती है।
  7. ट्रांसफार्मर: अन्योन्य प्रेरण पर आधारित। \( V_s / V_p = N_s / N_p \) और \( I_s / I_p = N_p / N_s \)।

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