bihar board class 10 Civics chapter -10Hindi notes ||नागरिक शास्त्र ||कक्षा-10|| हिंदी नोट्स ||

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लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष

इस अध्याय में हम ज्ञात कर सकेंगे कि लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी आदर्श व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत समाज में रहने वाले विभिन्न व्यक्तियों के पारिवारिक हितों में टकराव चलता रहता है। अतः लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की विवशता है कि उसे परस्पर विरोधी दबावों के बीच संतुलन एवं सामस्य बनाना पड़ता है।

प्रतिस्पर्धा एवं जनसंघर्ष का अर्थ लोकतंत्र का विकास प्रतिस्पर्धा तथा संघर्ष का ही प्रतिफल है। जहाँ भी राजतंत्र हटा, पहले वहाँ संघर्ष करना पड़ा। जनता कभी-कभी स्वयं भी संघर्ष में शामिल हो जाती है। लेकिन राजनीतिक दल, दबाव-समूह और आन्दोलनकारी समूह संगठित राजनीति के सकारात्मक माध्यम है।

लोकतंत्र में जनसंघर्ष की भूमिका लोकतंत्र को मजबूत और सुदृढ बनाने मे जनसंघर्ष की अहम भूमिका होती है। 1947 में मिली स्वतंत्रता के बाद भारत लगातार अपने लोकतंत्र को मजबूत करता जा रहा है। 1970 के दशक में देश को एक बड़े संघर्ष से गुजरना पड़ा था, 1977 के आम चुनाव में लौह स्तंभ समझी जाने वाली इंदिरा गाँधीचारों खाने चित्त हो गई और जनता पार्टी जीत गई। 

बिहार का छात्र आदोलन- 1974 का बिहार का छात्र आन्दोलन कई दृष्टियों से ऐतिहासिक साबित हुआ। इस आन्दोलन ने एक युगा का अन्त कर नए युग का सूत्रपात किया था। लेकिन नेताओं का स्वार्थ तथा जलन की प्रवृत्ति ने सब किए-कराए पर पानी फेर दिया। जिस दल को लेकर यह सब छिछा लेदर हुआ आज राष्ट्रीय दल के रूप में विद्यमान है तथा औरों को अपने राज्य तक में सिमट कर रह जाना पड़ा है।

देश में हुए विभिन्न आन्दोलन देश में कभी-कभी अनेक प्रकार के आन्दोलन हुआ करते हैं। जैसेचिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन, भारतीय किसान यूनियन आन्दोलन, ताड़ी विरोधी आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, सूचना के अधिकार का आन्दोलन

इन आन्दोलनों के अलावा देश के बाहर भी अनेक आन्दोलन हुए और सफलता प्राप्त कर समाप्त हुए। जैसेनेपाल में लोकतांत्रिक आन्दोलन, बोलिविया में जन संघर्ष, बंगलादेश में लोकतंत्र के लिए संघर्ष, श्रीलंका में लोकतंत्र के लिए संघर्ष इत्यादि

राजनीतिक दल का अर्थ राजनीतिक दल का अर्थ लोकतंत्र के रहने पर ही है। बिना लोकतंत्र के राजनीतिक दल निरर्थक हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक दल ही जनता की आँख, कान और जीभ होते हैं। वही जनता की ओर से कुछ बोलते हैं। वे जो देखते हैं, जो सुनते हैं, उसी आधार पर अपनी नीति का निर्धारण करते हैं।

राजनीतिक दलों का कार्य राजनीतिक दलों के कार्य असीमित हैं। लोकतंत्र में जनता के हित में वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, लाठी की मार सहने से लेकर गोली खाने तक को तैयार रहते हैं। ये नीतियाँ बनाते हैं और कार्यक्रम तय करते हैं। बहुमत मिलने पर शासन का संचालन करते है। यदि बहुमत नहीं मिला तो विरोधी दल की भूमिका निभाते है। दलीय चुनावों का संचालन करते हैं, लोकमत का निर्माण करते है, सरकार और जनता के बीच मध्यस्थ बनते हैं, अपने कार्यकर्ताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण देते है।

इन्हीं सब कारणों से कहा जाता है कि लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दल उसके प्राण है। राजनीतिक दलों के बीच जो प्रतियोगिता होती है, उससे लोकमत सशक्त होता है। राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय विकास में काफी योगदान रहता है। लेकिन राजनीतिक दलों को कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। जैसे

आंतरिक लोकतंत्र की कमी, नेतृत्व का संकट, वंशवाद की परिपाटी, काले धन का प्रभाव, अपराधियों का राजनीतिकरण, सिद्धांतहीन राजनीति का बोलबाला, अवसरवादी गठबंधन

राजनीतिक दलों को प्रभावशाली बनाने के उपाय- ऐसे तो राजनीतिक दलों को प्रभावशाली बनाने के अनेक उपाय है। लेकिन निम्नलिखित महत्वपूर्ण है 

दल-बदल कानून को लागू करना, उच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए उसके आदेशों का पालन करना, पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बहाल करना। 

राजनीतिक दलों के दो प्रकार हैं। एक राष्ट्रीय दल तथा दूसरा क्षेत्रीय दल


 

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