Bihar Board class10 Hindi poem: गुरु नानक के पद: Class 10 Hindi Notes | राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा

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गुरु नानक के पद: Class 10 Hindi Notes | राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा

नमस्ते विद्यार्थीगण! इस पाठ्यपुस्तक अध्याय पर आधारित आपके आत्म-अध्ययन नोट्स यहाँ प्रस्तुत हैं। इन नोट्स को पढ़कर आप **गुरु नानक के पद** जैसे **"राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा"** और **"जो नर दुख में दुख नहिं मानै"** को आसानी से समझ पाएंगे। यह **Class 10 Hindi** के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय है और ये **Self-Learning Notes** आपकी बोर्ड परीक्षा की तैयारी को बेहतर बनाएंगे, जिसमें **नाम-स्मरण की महत्ता** और **आडंबरों का त्याग** जैसे विषयों पर प्रकाश डाला गया है।

गुरु नानक देव जी के पद: आत्म-ज्ञान की यात्रा

गुरु नानक देव जी का एक प्रेरणादायक और शांत चित्र।
गुरु नानक देव जी - सिख धर्म के संस्थापक और एक महान संत कवि।

1. महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट व्याख्या

पहला पद: "राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा"

यह पद नाम-स्मरण की महत्ता और बाहरी आडंबरों की व्यर्थता पर केंद्रित है। गुरु नानक देव जी समझाते हैं कि भगवान के नाम के बिना मनुष्य का जीवन संसार में व्यर्थ है।

"राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा। बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना।।"

व्याख्या: गुरु नानक देव जी कहते हैं कि राम नाम (ईश्वर का नाम) के बिना संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। जो व्यक्ति नाम-स्मरण नहीं करता, वह विष खाता है (विषय-वासनाओं में लिप्त रहता है) और विष बोलता है (कटु वचन बोलता है)। ईश्वर के नाम के बिना उसकी बुद्धि (मटि) का भटकना निष्फल है।

प्रमुख शब्द: बिरथे: व्यर्थ ही, जगि: संसार में, बिखु: विष, निहफलु: निष्फल, मटि: मति, बुद्धि

"पुस्तक पाठ ब्याकरण बखानै संध्या करम निकाल करै। बिनु गुरुसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै।।"

व्याख्या: लोग पुस्तकें पढ़ते हैं, व्याकरण का बखान करते हैं और संध्यावंदन जैसे कर्मकांड करते हैं। लेकिन गुरु के उपदेश (गुरुसबद) के बिना प्राणी को मुक्ति कहाँ मिलती है? वह राम नाम के बिना सांसारिक बंधनों में उलझकर मर जाता है।

प्रमुख शब्द: गुरसबद: गुरु का उपदेश, संधिया: संध्याकालीन उपासना, करम: कर्म, अरुझि: उलझकर

"दंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवनु अति भ्रमणु करै। रामनाम बिनु सांति न आवै जपि हरि हरि नामु सु पारि परै।।"

व्याख्या: लोग वैराग्य के चिह्न जैसे दंड, कमंडल, सिखा (चोटी), सूत (जनेऊ) धारण करते हैं और तीर्थ यात्राएं करते हैं। लेकिन राम नाम के बिना शांति नहीं मिलती। हरि (ईश्वर) के नाम का जप करने से ही व्यक्ति भवसागर से पार हो सकता है।

प्रमुख शब्द: दंड: दंड, सिखा: चोटी, सूत: जनेऊ, तीरथ गवनु: तीर्थ यात्रा, पारि परै: पार हो जाता है

"जटा मुकुट तन भसम लगाई बसन छोडि दिगंबरु भया। जेते जीअ जंत जल थल महोअल जत्र तत्र तू सरब जीआ।।"

व्याख्या: कुछ लोग जटाओं का मुकुट धारण करते हैं, शरीर पर भस्म लगाते हैं और वस्त्र त्याग कर दिगंबर हो जाते हैं। लेकिन ईश्वर तो जल, थल और धरती पर हर जगह, हर जीव-जंतु में विद्यमान है।

प्रमुख शब्द: भसम: भस्म, दिगंबरु: वस्त्रहीन, जीअ जंत: जीव, प्राणी, महोअल: धरती पर, सरब: सब

"गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरि रस नानक झोलि पीआ।।"

व्याख्या: गुरु नानक देव जी कहते हैं कि गुरु की कृपा (परसादि) से ही किसी विरले भक्त को हरि रस (ईश्वर भक्ति का अमृत) प्राप्त होता है, जिसे वह आत्मसात करता है।

प्रमुख शब्द: परसादि: कृपा, हरि रस: ईश्वर भक्ति का आनंद/अमृत, झोलि: झोली

दूसरा पद: "जो नर दुख में दुख नहिं मानै"

यह पद एक आदर्श व्यक्ति के गुणों और मोह-माया से विरक्ति के महत्व पर केंद्रित है। सच्चा मनुष्य वही है जो सुख-दुख, मान-अपमान से परे होकर ईश्वर में लीन रहता है।

एक शांत झील का चित्र जो मन की स्थिरता और समभाव को दर्शाता है।
सुख-दुख में समभाव ही सच्ची शांति का मार्ग है।
"जो नर दुख में दुख नहिं मानै। सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानें।।"

व्याख्या: सच्चा मनुष्य वह है जो दुख में भी दुख नहीं मानता है। जिसे सुख, स्नेह और भय प्रभावित नहीं करते, और जो सोने को मिट्टी के समान समझता है (धन-संपत्ति के प्रति आसक्ति नहीं रखता)।

प्रमुख शब्द: नर: मनुष्य, सनेह: स्नेह, कंचन: सोना, माटी: मिट्टी

"नहिं निंदा अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना। हरष सोक तें रहैं नियारो, नाहि मान अपमाना।।"

व्याख्या: जिस व्यक्ति को न निंदा का भय होता है और न स्तुति (प्रशंसा) की चाह, जो लोभ, मोह और अभिमान से मुक्त है, वही सच्चा ज्ञानी है। वह हर्ष (खुशी) और शोक (दुख) दोनों से अलग रहता है।

प्रमुख शब्द: अस्तुति: स्तुति, नियारो: न्यारा, अलग, हरष: हर्ष, सोक: शोक

"आसा मनसा सकल त्यागी कै जग तें रहै निरासा। काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा।।"

व्याख्या: जिसने सभी आशाओं और इच्छाओं का त्याग कर दिया है और संसार से निराश रहता है (सांसारिक बंधनों से मुक्त)। जिसे काम और क्रोध छू भी नहीं पाते, ऐसे व्यक्ति के हृदय (घट) में ब्रह्म (ईश्वर) का निवास होता है।

प्रमुख शब्द: मनसा: इच्छाएं, सकल: सारा, निरासा: निरास, परसे: स्पर्श, घट: हृदय

"गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्ही यह जुगति पिछानी। नानक लीन भयो गोविंद सों ज्यों पानी संग पानी।।"

व्याख्या: जिस मनुष्य पर गुरु की कृपा होती है, वही इस युक्ति (मोक्ष का उपाय) को पहचान पाता है। ऐसा व्यक्ति गोविंद (ईश्वर) में इस प्रकार लीन हो जाता है, जैसे पानी पानी में मिल जाता है।

प्रमुख शब्द: जुगति: युक्ति, पिछानी: पहचानी, लीन भयो: लीन हो जाता है, गोविंद: ईश्वर

2. प्रमुख परिभाषाएँ और शब्द

राम नाम/हरि नाम/गोविंद: यह किसी विशेष देवता का नाम न होकर परमात्मा के सार का प्रतीक है।
गुरुसबद: गुरु का उपदेश या वचन, जो मुक्ति का सच्चा मार्ग है।
बिरथे: व्यर्थ ही।
बिखु: विष, सांसारिक मोह-माया।
मटि: मति या बुद्धि।
कंचन: सोना, भौतिक संपत्ति का प्रतीक।
नियारो: न्यारा, अलग, पृथक।
घट: प्रतीकात्मक रूप से देह या हृदय।
जुगति: युक्ति या मोक्ष का उपाय।

3. पुस्तक में दिए गए उदाहरण

आपके पाठ्यपुस्तक अध्याय में कोई हल किया हुआ उदाहरण नहीं दिया गया है, केवल दो पद और उनके अभ्यास प्रश्न हैं।

4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर

1. कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है?

कवि **राम नाम (ईश्वर के नाम) के बिना** जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है। उनके अनुसार, जो व्यक्ति ईश्वर का नाम-स्मरण नहीं करता, उसका जीवन संसार में भटकता रहता है और अंततः निष्फल हो जाता है।

2. वाणी कब विष के समान हो जाती है?

वाणी तब विष के समान हो जाती है जब व्यक्ति **ईश्वर के नाम का स्मरण नहीं करता** और केवल विषय-वासनाओं में लिप्त रहता है, या कटु वचन बोलता है।

3. नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?

नाम-कीर्तन के आगे कवि निम्नलिखित कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है:

  • पुस्तक पाठ और व्याकरण का बखान करना।
  • संध्याकालीन धार्मिक क्रियाएं करना।
  • दंड, कमंडल, सिखा, सूत और धोती धारण करना।
  • तीर्थ यात्राएं और बहुत भ्रमण करना।
  • शरीर पर भस्म लगाना और वस्त्र त्याग कर दिगंबर होना।
4. प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे हैं?

प्रथम पद के आधार पर कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कई बाहरी और आडंबरपूर्ण रूप देखे हैं, जैसे - धार्मिक पुस्तकों का पाठ, संध्याकालीन कर्मकांड, साधु-संतों की वेशभूषा (दंड, कमंडल, सिखा), तीर्थ यात्राएं, शरीर पर भस्म लगाना और दिगंबर हो जाना।

5. हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?

हरिरस से कवि का अभिप्राय **ईश्वर की भक्ति के अमृत या आनंद** से है। यह वह आंतरिक अनुभव है जो ईश्वर के नाम का जप करने और उसकी कृपा प्राप्त होने पर मिलता है।

6. कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?

कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास **उस व्यक्ति के हृदय (घट) में है जो काम, क्रोध, लोभ, मोह और अभिमान से परे हो**। ईश्वर सर्वव्यापी भी है, जो जल, थल और धरती पर हर जगह विद्यमान है।

7. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है?

गुरु की कृपा से **मोक्ष प्राप्त करने की युक्ति (उपाय) की पहचान** हो पाती है। यह युक्ति है **ईश्वर के नाम का जप करना और आंतरिक विकारों का त्याग करके समत्व भाव प्राप्त करना**।

8. व्याख्या करें।

(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै।
व्याख्या: ईश्वर के नाम का स्मरण किए बिना मनुष्य सांसारिक मोह-माया के जाल में उलझकर मर जाता है, अर्थात् आध्यात्मिक पतन को प्राप्त होता है।

(ख) कंचन माटी जानें।
व्याख्या: सच्चा ज्ञानी सोने (धन-संपत्ति) को मिट्टी के समान तुच्छ समझता है और उसके प्रति कोई आसक्ति नहीं रखता।

(ग) हरष सोक तें रहैं नियारो, नाहि मान अपमाना।
व्याख्या: जो व्यक्ति हर्ष (खुशी) और शोक (दुख) दोनों भावनाओं से अलग रहता है, और जिसे मान या अपमान से कोई फर्क नहीं पड़ता, वही स्थिरप्रज्ञ है।

(घ) नानक लीन भयो गोविंद सों, ज्यों पानी संग पानी।
व्याख्या: गुरु की कृपा से भक्त ईश्वर में उसी तरह लीन हो जाता है, जैसे पानी पानी में मिलकर एकाकार हो जाता है। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की अवस्था है।

9. आधुनिक जीवन में नानक के पदों की क्या प्रासंगिकता है?

आधुनिक जीवन में भी नानक के पद अत्यंत प्रासंगिक हैं। आज के दिखावे और भौतिकवाद के युग में, ये पद हमें सच्ची शांति और संतोष का मार्ग दिखाते हैं, जो बाहरी कर्मकांडों में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि, नाम-स्मरण और मानवीय मूल्यों में निहित है।

कविता के आस-पास

1. गुरुनानक के इन पदों से मिलते-जुलते कबीर के दो पद एकत्र करें।

यह प्रश्न बाहरी जानकारी पर आधारित है। इसके लिए आपको कबीरदास जी के पदों का अध्ययन करना होगा।

2. नाम महिमा का बखान करने वाले सगुण भक्त कवियों के कुछ वचन एकत्र करें।

यह प्रश्न तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। इसके लिए आपको अन्य सगुण भक्त कवियों जैसे तुलसीदास, सूरदास आदि की रचनाओं का अध्ययन करना होगा।

3. मथुरा के निर्गुण संत कवियों की सूची तैयार करें।

यह प्रश्न भी बाहरी जानकारी पर आधारित है। यह इतिहास और साहित्य के सामान्य ज्ञान से संबंधित है।

4. 'गोधूलि भाग-1' में पठित रैदास के पदों की साथ गुरुनानक के पदों की तुलना करें।

यह प्रश्न भी बाहरी जानकारी पर आधारित है। इसके लिए 'गोधूलि भाग-1' के रैदास के पदों का अध्ययन करना होगा।

भाषा की बात

1. पद में प्रयुक्त शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें।
  • विरथे: व्यर्थ ही
  • बिषु: विष
  • निहफलु: निष्फल
  • मटि: मति, बुद्धि
  • संधिया: संध्याकालीन उपासना
  • करम: कर्म
  • गुरसबद: गुरु का उपदेश
  • तीरथगवनु: तीर्थ गमन
  • महोअल: महीतल
  • सरब: सब
  • माटी: मिट्टी
  • अस्तुति: स्तुति
  • नियारो: न्यारा
  • जुगति: युक्ति
  • पिछानी: पहचानी
2. दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिह्नित करें और भेद बताएँ।

पहला पद:

  • तू: पुरुषवाचक सर्वनाम (मध्यम पुरुष)
  • कोउ: अनिश्चयवाचक सर्वनाम

दूसरा पद:

  • जो, जाके, जेहि: संबंधवाचक सर्वनाम
  • तेहि: निश्चयवाचक/संबंधवाचक सर्वनाम

5. अध्याय पर आधारित 20 नये अभ्यास प्रश्न

1. गुरु नानक देव जी ने 'राम नाम' की क्या महिमा बताई है?

गुरु नानक देव जी ने 'राम नाम' को जीवन का सार बताया है। उनके अनुसार, राम नाम के बिना संसार में जन्म लेना व्यर्थ है, बुद्धि भटकती है और शांति नहीं मिलती। राम नाम का जप ही भवसागर से पार करा सकता है।

2. कवि के अनुसार, संसार में 'विष' खाने और 'विष' बोलने का क्या अर्थ है?

'विष' खाने का अर्थ है विषय-वासनाओं में लिप्त रहना और 'विष' बोलने का अर्थ है ईश्वर के नाम के बिना व्यर्थ या कटु बातें करना।

3. बाहरी धार्मिक क्रियाएं जैसे पुस्तक पाठ, व्याकरण आदि को कवि क्यों व्यर्थ मानते हैं?

कवि इन्हें व्यर्थ मानते हैं क्योंकि वे सच्ची आंतरिक भक्ति और गुरु के उपदेश के बिना मुक्ति नहीं दिला सकतीं।

4. 'बिनु गुरुसबद मुकति कहा प्राणी' पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

इसका भाव है कि गुरु के उपदेश के बिना किसी भी प्राणी को मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। सच्चा ज्ञान गुरु की कृपा से ही संभव है।

5. गुरु नानक ने कौन-कौन से बाहरी वेशभूषा और कर्मकांडों का उल्लेख किया है?

गुरु नानक ने दंड, कमंडल, सिखा, सूत, धोती, जटा मुकुट, भस्म लगाना और दिगंबर होने जैसे बाहरी वेशभूषा और तीर्थ यात्रा आदि कर्मकांडों का उल्लेख किया है।

6. कवि ने ईश्वर की सर्वव्यापकता को किन पंक्तियों में दर्शाया है?

ईश्वर की सर्वव्यापकता को "जेते जीअ जंत जल थल महोअल जत्र तत्र तू सरब जीआ" पंक्तियों में दर्शाया है।

7. 'हरि रस' से क्या अभिप्राय है? इसे कौन प्राप्त कर सकता है?

'हरि रस' से अभिप्राय ईश्वर भक्ति के अमृत या आनंद से है। इसे वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जिस पर गुरु की कृपा होती है।

8. दूसरे पद में सच्चे 'नर' की क्या पहचान बताई गई है?

सच्चे 'नर' की पहचान है कि वह दुख में दुख नहीं मानता, सुख, स्नेह, भय उसे प्रभावित नहीं करते, और वह सोने को मिट्टी के समान समझता है।

9. 'कंचन माटी जानें' – इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?

इसके माध्यम से कवि संदेश देना चाहते हैं कि सच्चा ज्ञानी धन-संपत्ति के प्रति आसक्ति नहीं रखता और उसे तुच्छ समझता है।

10. एक सच्चा ज्ञानी व्यक्ति निंदा और स्तुति के प्रति कैसा भाव रखता है?

वह निंदा और स्तुति दोनों के प्रति तटस्थ भाव रखता है और इनसे अप्रभावित रहता है।

11. 'लोभ मोह अभिमाना' से मुक्त होने का क्या महत्व है?

इनसे मुक्त होकर ही व्यक्ति मन की शांति प्राप्त कर सकता है और ईश्वर के करीब आ सकता है।

12. 'हरष सोक तें रहैं नियारो' पंक्ति का अर्थ समझाइए।

इसका अर्थ है कि व्यक्ति सुख और दुख दोनों परिस्थितियों में समान भाव से रहता है और विचलित नहीं होता।

13. कवि के अनुसार, काम और क्रोध का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?

काम और क्रोध वे विकार हैं जो व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग से भटकाते हैं। इनसे मुक्त व्यक्ति के हृदय में ही ब्रह्म का निवास होता है।

14. 'आसा मनसा सकल त्यागी' का क्या अभिप्राय है?

इसका अभिप्राय है कि व्यक्ति ने सभी आशाओं और सांसारिक इच्छाओं का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया है।

15. 'तेहि घट ब्रह्म निवासा' में 'घट' शब्द का भाव क्या है?

'घट' शब्द का भाव हृदय या अंतरात्मा से है, जहाँ ईश्वर का वास होता है।

16. कवि ने गुरु की कृपा को क्यों महत्वपूर्ण बताया है?

गुरु की कृपा को महत्वपूर्ण बताया है क्योंकि गुरु ही सच्चा मार्गदर्शक है जो ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

17. 'ज्यों पानी संग पानी' उपमा का प्रयोग किस संदर्भ में किया है?

इसका प्रयोग आत्मा के परमात्मा में विलीन होने के संदर्भ में किया है, जहाँ दोनों एकाकार हो जाते हैं।

18. गुरु नानक के पदों से हमें अपने जीवन में क्या शिक्षा मिलती है?

हमें शिक्षा मिलती है कि सच्ची शांति आंतरिक शुद्धि और नाम-स्मरण में है, न कि बाहरी आडंबरों में।

19. दोनों पदों के मूल संदेश में क्या समानता है?

समानता यह है कि वास्तविक आध्यात्मिक जीवन आंतरिक शुद्धि, वैराग्य और ईश्वर के प्रति एकाग्रता से प्राप्त होता है, बाहरी दिखावों से नहीं।

20. गुरु नानक की उपासना पद्धति की मुख्य विशेषता क्या थी?

उनकी उपासना पद्धति की मुख्य विशेषता ईश्वर के निराकार रूप की उपासना, नाम-स्मरण पर बल, गुरु की महत्ता और बाहरी आडंबरों का खंडन है।

अध्याय का संक्षिप्त सारांश (Quick Revision)

पहला पद: "राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा"

  • मुख्य संदेश: ईश्वर के नाम (राम नाम) के बिना मानव जीवन व्यर्थ है।
  • आडंबरों का खंडन: बाहरी धार्मिक क्रियाएं नाम-स्मरण के बिना निरर्थक हैं।
  • मार्ग: मुक्ति केवल गुरु के उपदेश (गुरुसबद) और हरि नाम का जप करने से ही मिलती है।

दूसरा पद: "जो नर दुख में दुख नहिं मानै"

  • मुख्य संदेश: एक सच्चे ज्ञानी और आदर्श मनुष्य के गुणों का वर्णन।
  • आदर्श गुण: सुख-दुख में समभाव, निर्लोभता, निंदा-स्तुति से परे, काम-क्रोध से मुक्ति।
  • अंतिम लक्ष्य: गुरु की कृपा से ईश्वर में लीन हो जाना।

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