स्वयं अध्ययन नोट्स: प्रकाश – परावर्तन, अपवर्तन, मानव नेत्र और रंग-बिरंगा संसार
ये नोट्स आपके पाठ्यपुस्तक के अध्याय 9 (प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन) और अध्याय 10 (मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार) पर आधारित हैं।
भाग 1: प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन (अध्याय 9)
1. परिचय
हम अपने चारों ओर की वस्तुओं को प्रकाश की मदद से देखते हैं। वस्तुएँ उन पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित करती हैं, और जब यह परावर्तित प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है, तो हम वस्तुओं को देख पाते हैं। प्रकाश सरल रेखाओं में गमन करता प्रतीत होता है, जिसे प्रकाश किरण कहते हैं।
2. प्रकाश का व्यवहार
यदि प्रकाश के पथ में रखी अपारदर्शी वस्तु अत्यंत छोटी हो, तो प्रकाश सरल रेखा में चलने के बजाय इसके किनारों पर मुड़ने की प्रवृत्ति दर्शाता है – इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light) कहते हैं। विवर्तन की व्याख्या के लिए प्रकाश को तरंग माना जाता है।
3. प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)
अत्यधिक पॉलिश किया हुआ पृष्ठ, जैसे कि दर्पण, अपने पर पड़ने वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देता है।
परावर्तन के नियम:
- आपतन कोण ($ \angle i $), परावर्तन कोण ($ \angle r $) के बराबर होता है। ($ \angle i = \angle r $)
- आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण, सभी एक ही तल में होते हैं।
4. समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब
- सदैव आभासी (Virtual) तथा सीधा (Erect) होता है।
- प्रतिबिंब का साइज़ बिंब के साइज़ के बराबर होता है।
- प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है।
- प्रतिबिंब पाश्र्व परिवर्तित (Laterally inverted) होता है।
5. गोलीय दर्पण (Spherical Mirrors)
जिन दर्पणों का परावर्तक पृष्ठ गोलीय होता है, उन्हें गोलीय दर्पण कहते हैं।
- अवतल दर्पण (Concave Mirror): परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर वक्रित।
- उत्तल दर्पण (Convex Mirror): परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित।
6. गोलीय दर्पणों से संबंधित प्रमुख परिभाषाएँ
- ध्रुव (Pole, P): परावर्तक पृष्ठ का केंद्र।
- वक्रता केंद्र (Centre of Curvature, C): उस गोले का केंद्र जिसका दर्पण भाग है।
- वक्रता त्रिज्या (Radius of Curvature, R): उस गोले की त्रिज्या। $R = PC$.
- मुख्य अक्ष (Principal Axis): P तथा C से गुजरने वाली सीधी रेखा।
- मुख्य फोकस (Principal Focus, F): मुख्य अक्ष के समानांतर किरणें परावर्तन के बाद जहाँ मिलती हैं (अवतल) या मिलती हुई प्रतीत होती हैं (उत्तल)।
- फोकस दूरी (Focal Length, f): P तथा F के बीच की दूरी। ($ f = R/2 $)।
7. गोलीय दर्पणों द्वारा प्रतिबिंब बनना
प्रतिबिंब की स्थिति ज्ञात करने के लिए कम से कम दो परावर्तित किरणों का प्रतिच्छेदन आवश्यक है।
किरण आरेख बनाने के नियम (दर्पणों के लिए):
- मुख्य अक्ष के समानांतर किरण $\rightarrow$ फोकस से (अवतल) / फोकस से आती प्रतीत (उत्तल)।
- फोकस से किरण (अवतल) / फोकस की ओर किरण (उत्तल) $\rightarrow$ मुख्य अक्ष के समानांतर।
- वक्रता केंद्र C से किरण $\rightarrow$ उसी पथ पर वापस।
(अवतल और उत्तल दर्पण द्वारा विभिन्न स्थितियों में प्रतिबिंब बनने की सारणी पाठ्यपुस्तक से देखें)
8. गोलीय दर्पणों के उपयोग
- अवतल दर्पण: टॉर्च, सर्चलाइट, हेडलाइट, शेविंग दर्पण, दंत चिकित्सक, सौर भट्टियाँ।
- उत्तल दर्पण: वाहनों के पश्च-दृश्य (rear-view) दर्पण (सीधा प्रतिबिंब, अधिक दृष्टि-क्षेत्र)।
9. नई कार्तीय चिह्न परिपाटी (दर्पणों के लिए)
- P को मूल बिंदु, मुख्य अक्ष को x-अक्ष।
- बिंब बाईं ओर। सभी दूरियाँ P से।
- दाईं ओर (+); बाईं ओर (-)। ऊपर (+); नीचे (-)।
- u (बिंब दूरी) हमेशा (-)।
- f अवतल के लिए (-), उत्तल के लिए (+)।
10. प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)
जब प्रकाश एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे में जाता है, तो उसकी दिशा बदल जाती है, इसे प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं। यह प्रकाश की चाल में परिवर्तन के कारण होता है।
उदाहरण:
पानी में डूबी पेंसिल का मुड़ा दिखना, पानी में सिक्के का ऊपर उठा दिखना।
11. आयताकार काँच के स्लैब से अपवर्तन
- वायु (विरल) से काँच (सघन) $\rightarrow$ अभिलंब की ओर झुकती है।
- काँच (सघन) से वायु (विरल) $\rightarrow$ अभिलंब से दूर हटती है।
- निर्गत किरण आपतित किरण के समानांतर, पर पार्श्व विस्थापित।
12. प्रकाशीय घनत्व
अधिक अपवर्तनांक वाला माध्यम प्रकाशीय सघन, कम वाला प्रकाशीय विरल। विरल में प्रकाश की चाल अधिक।
13. लेंस (Lenses)
दो पृष्ठों से घिरा पारदर्शी माध्यम, जिसका कम से कम एक पृष्ठ गोलीय हो।
- उत्तल लेंस (Convex Lens / अभिसारी): बीच से मोटा, किरणों को अभिसरित करता है।
- अवतल लेंस (Concave Lens / अपसारी): किनारों से मोटा, किरणों को अपसरित करता है।
14. लेंसों से संबंधित परिभाषाएँ
- वक्रता केंद्र (C1, C2)
- प्रकाशीय केंद्र (Optical Centre, O): इससे गुजरने वाली किरण बिना विचलन के।
- मुख्य अक्ष
- मुख्य फोकस (F1, F2)
- फोकस दूरी (f)
15. लेंसों द्वारा प्रतिबिंब बनना
(अवतल और उत्तल लेंस द्वारा विभिन्न स्थितियों में प्रतिबिंब बनने की सारणी पाठ्यपुस्तक से देखें)
किरण आरेख बनाने के नियम (लेंसों के लिए):
- मुख्य अक्ष के समानांतर किरण $\rightarrow$ फोकस F2 से (उत्तल) / फोकस F1 से आती प्रतीत (अवतल)।
- फोकस F1 से किरण (उत्तल) / फोकस F2 की ओर किरण (अवतल) $\rightarrow$ मुख्य अक्ष के समानांतर।
- प्रकाशीय केंद्र O से किरण $\rightarrow$ बिना विचलन के सीधी।
16. नई कार्तीय चिह्न परिपाटी (लेंसों के लिए)
- O को मूल बिंदु।
- f उत्तल के लिए (+), अवतल के लिए (-)।
- u हमेशा (-)।
17. लेंस की क्षमता (Power of a Lens)
किरणों को अभिसरित/अपसरित करने की क्षमता।
SI मात्रक: डाइऑप्टर (Dioptre, D). $1 D = 1 m^{-1}$.
उत्तल लेंस की क्षमता (+), अवतल की (-).
संयोजन की क्षमता: $ P = P_1 + P_2 + P_3 + \dots $
अध्याय 9: अभ्यास प्रश्न (हल सहित)
1. अवतल दर्पण के मुख्य फोकस की परिभाषा लिखिए।
मुख्य अक्ष पर वह बिंदु जहाँ मुख्य अक्ष के समानांतर किरणें परावर्तन के बाद मिलती हैं।
2. एक गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या 20 cm है। इसकी फोकस दूरी क्या होगी?
$f = R/2 = 20/2 = 10 \text{ cm}$.
3. उस दर्पण का नाम बताइए, जो बिंब का सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिंब बना सके।
अवतल दर्पण (जब बिंब P और F के बीच हो)।
4. हम वाहनों में उत्तल दर्पण को पश्च-दृश्य दर्पण के रूप में वरीयता क्यों देते हैं?
क्योंकि यह सदैव सीधा प्रतिबिंब बनाता है और इसका दृष्टि-क्षेत्र बहुत अधिक होता है।
5. हीरे का अपवर्तनांक 2.42 है। इस कथन का क्या अभिप्राय है?
इसका अर्थ है कि निर्वात में प्रकाश की चाल और हीरे में प्रकाश की चाल का अनुपात 2.42 है, अर्थात् प्रकाश हीरे में 2.42 गुना धीमा चलता है।
6. किसी लेंस की 1 डाइऑप्टर क्षमता को परिभाषित कीजिए।
1 डाइऑप्टर उस लेंस की क्षमता है जिसकी फोकस दूरी 1 मीटर होती है।
7. कोई उत्तल लेंस किसी सूई का वास्तविक तथा उलटा प्रतिबिंब उस लेंस से 50 cm दूर बनाता है। यह सूई, उत्तल लेंस के सामने कहाँ रखी है, यदि इसका प्रतिबिंब उसी साइज़ का बन रहा है, जिस साइज़ का बिंब है। लेंस की क्षमता भी ज्ञात कीजिए।
समान साइज़ का वास्तविक प्रतिबिंब 2F पर बनता है। अतः, $v = 50 \text{ cm}$, तो $2F = 50 \text{ cm} \Rightarrow F = 25 \text{ cm} = 0.25 \text{ m}$. वस्तु भी 2F पर ($u = -50 \text{ cm}$) रखी होगी। क्षमता $P = 1/F = 1/0.25 = +4 \text{ D}$.
8. 2 m फोकस दूरी वाले किसी अवतल लेंस की क्षमता ज्ञात कीजिए।
$f = -2 \text{ m}$. $P = 1/f = 1/(-2) = -0.5 \text{ D}$.
9. (d) मिट्टी
10. (d) दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच
11. (b) फोकस दूरी की दोगुनी दूरी पर
12. (a) दोनों अवतल
13. (d) या तो समतल अथवा उत्तल
14. (c) 5 cm फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस
15. (उत्तर पिछले उत्तर से देखें)
16. (उत्तर पिछले उत्तर से देखें)
17. (उत्तर पिछले उत्तर से देखें)
भाग 2: मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार (अध्याय 10)
1. मानव नेत्र: एक अद्भुत ज्ञानेंद्रिय
मानव नेत्र एक मूल्यवान और सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है जो हमें संसार को देखने और रंगों को पहचानने में मदद करता है। यह एक कैमरे की भांति कार्य करता है।
2. मानव नेत्र की संरचना
- कॉर्निया (स्वच्छ मंडल): पारदर्शी झिल्ली जिससे प्रकाश प्रवेश करता है, अधिकांश अपवर्तन यहीं होता है।
- आइरिस (परितारिका): पुतली के आकार को नियंत्रित करती है।
- पुतली (Pupil): नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करने वाला छिद्र।
- क्रिस्टलीय लेंस (अभिनेत्र लेंस): उत्तल लेंस, फोकस दूरी समायोजित करता है।
- रेटिना (दृष्टिपटल): प्रकाश-सुग्राही पर्दा, जहाँ प्रतिबिंब (उलटा, वास्तविक) बनता है।
- दृक तंत्रिका (Optic Nerve): विद्युत सिग्नल मस्तिष्क तक पहुँचाती है।
3. समंजन क्षमता (Power of Accommodation)
अभिनेत्र लेंस की अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूर की वस्तुओं को रेटिना पर फोकसित करने की क्षमता।
- निकट बिंदु (Near Point): स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी (सामान्यतः ~25 cm)।
- दूर बिंदु (Far Point): वह दूरतम बिंदु जिसे नेत्र स्पष्ट देख सकता है (सामान्यतः अनंत)।
4. दृष्टि के सामान्य अपवर्तन दोष
दोष | लक्षण | कारण | संशोधन |
---|---|---|---|
निकट-दृष्टि दोष (Myopia) | निकट स्पष्ट, दूर अस्पष्ट। | अभिनेत्र लेंस की वक्रता अधिक / नेत्र गोलक लंबा। प्रतिबिंब रेटिना के सामने। | उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस। |
दीर्घ-दृष्टि दोष (Hypermetropia) | दूर स्पष्ट, निकट अस्पष्ट। | अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी अधिक / नेत्र गोलक छोटा। प्रतिबिंब रेटिना के पीछे। | उपयुक्त क्षमता का उत्तल लेंस। |
जरा-दूरदृष्टिता (Presbyopia) | आयु के साथ समंजन क्षमता में कमी, पास की वस्तुएँ अस्पष्ट। | पक्ष्माभी पेशियाँ दुर्बल, लेंस का लचीलापन कम। | द्विफोकसी लेंस (Bifocal lens)। |
आजकल संपर्क लेंस या शल्य क्रिया द्वारा भी संशोधन संभव है।
6. नेत्रदान
मृत्यु के पश्चात नेत्रदान करके दृष्टिहीन व्यक्तियों को दृष्टि प्रदान की जा सकती है। यह एक सरल प्रक्रिया है और किसी भी आयु का व्यक्ति कर सकता है (यदि कोई संक्रामक रोग न हो)। मृत्यु के 4-6 घंटे के भीतर नेत्र निकाल लिए जाने चाहिए।
8. प्रकाश का विक्षेपण (Dispersion of Light)
श्वेत प्रकाश का प्रिज्म से गुजरने पर अपने अवयवी सात रंगों (VIBGYOR: बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल) में विभक्त होना विक्षेपण कहलाता है। लाल प्रकाश सबसे कम मुड़ता है, बैंगनी सबसे अधिक।
9. इंद्रधनुष (Rainbow)
वर्षा के पश्चात जल की सूक्ष्म बूंदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के विक्षेपण, अपवर्तन और आंतरिक परावर्तन के कारण बनने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम। यह सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।
10. वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction)
पृथ्वी के वायुमंडल की विभिन्न घनत्व वाली परतों के कारण प्रकाश का निरंतर अपवर्तित होना।
11. तारों का टिमटिमाना
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारों से आने वाले प्रकाश का पथ लगातार बदलता है, जिससे तारे की आभासी स्थिति और आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा बदलती रहती है, फलतः तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं।
12. ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते
ग्रह पृथ्वी के निकट हैं और विस्तृत स्रोत माने जाते हैं। विभिन्न बिंदुओं से आने वाले प्रकाश में अपवर्तन के कारण होने वाले परिवर्तनों का औसत प्रभाव शून्य हो जाता है।
13. सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का दिखाई देना
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पहले और वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट बाद तक दिखाई देता है।
14. प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)
वायुमंडल के सूक्ष्म कणों द्वारा प्रकाश का विसरित होना।
- टिंडल प्रभाव: कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से किरण पुंज का मार्ग दिखाई देना।
- प्रकीर्णित प्रकाश का रंग कणों के आकार पर निर्भर करता है।
- अत्यंत सूक्ष्म कण नीले प्रकाश को अधिक प्रकीर्णित करते हैं।
- बड़े कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को या सभी रंगों को समान रूप से (श्वेत प्रकाश) प्रकीर्णित करते हैं।
15. स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है
वायु के अणु और अन्य सूक्ष्म कण दृश्य प्रकाश में से नीले रंग (कम तरंगदैर्ध्य) को लाल रंग (अधिक तरंगदैर्ध्य) की अपेक्षा अधिक प्रबलता से प्रकीर्णित करते हैं। यह प्रकीर्णित नीला प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है।
16. खतरे के संकेत लाल क्यों होते हैं
लाल रंग का प्रकाश कुहरे या धुएँ से सबसे कम प्रकीर्णित होता है, इसलिए यह दूर से भी स्पष्ट दिखाई देता है।
अध्याय 10: अभ्यास प्रश्न (हल सहित)
1. नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूर स्थित वस्तुओं को रेटिना पर स्पष्ट फोकसित कर लेता है।
2. निकट दृष्टिदोष का कोई व्यक्ति 1.2 m से अधिक दूरी पर रखी वस्तुएँ को स्पष्ट नहीं देख सकता। इस दोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त संशोधित लेंस किस प्रकार का होना चाहिए?
अवतल लेंस। (क्षमता की गणना: $f = -1.2 \text{ m}$, $P = 1/f = 1/(-1.2) \approx -0.83 \text{ D}$)।
3. मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु तथा निकट बिंदु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं?
दूर बिंदु: अनंत दूरी पर। निकट बिंदु: लगभग 25 cm।
4. अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीड़ित है? इसका संशोधन किस प्रकार किया जा सकता है?
निकट-दृष्टि दोष (Myopia)। संशोधन: उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस।
5. तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण। तारों से आने वाले प्रकाश का पथ वायुमंडल की विभिन्न परतों से गुजरते हुए लगातार बदलता रहता है, जिससे तारे की आभासी स्थिति और चमक में परिवर्तन होता है।
6. व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते।
ग्रह पृथ्वी के निकट हैं और विस्तृत प्रकाश स्रोत माने जाते हैं। विभिन्न बिंदुओं से आने वाले प्रकाश में वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होने वाले परिवर्तनों का औसत प्रभाव शून्य हो जाता है।
7. किसी अंतरिक्ष यात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है?
अंतरिक्ष में वायुमंडल नहीं होता, इसलिए प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता। प्रकीर्णन के अभाव में आकाश काला दिखाई देता है।
अध्यायों का संक्षिप्त सारांश (पुनरावृत्ति के लिए)
- प्रकाश सरल रेखाओं में चलता है; परावर्तन और अपवर्तन दर्शाता है।
- दर्पण: परावर्तन के नियम, गोलीय दर्पण (अवतल, उत्तल), दर्पण सूत्र ($1/v + 1/u = 1/f$), आवर्धन ($m = -v/u$)।
- लेंस: अपवर्तन के नियम (स्नेल का नियम), गोलीय लेंस (उत्तल, अवतल), लेंस सूत्र ($1/v - 1/u = 1/f$), आवर्धन ($m = v/u$), लेंस की क्षमता ($P=1/f$)।
- मानव नेत्र: संरचना (कॉर्निया, आइरिस, पुतली, लेंस, रेटिना), समंजन क्षमता, निकट और दूर बिंदु।
- दृष्टि दोष: निकट-दृष्टि (अवतल लेंस), दीर्घ-दृष्टि (उत्तल लेंस), जरा-दूरदृष्टिता (द्विफोकसी लेंस)।
- प्रकाशीय परिघटनाएँ: विक्षेपण (इंद्रधनुष), वायुमंडलीय अपवर्तन (तारों का टिमटिमाना, अग्रिम सूर्योदय/विलंबित सूर्यास्त), प्रकीर्णन (टिंडल प्रभाव, आकाश का नीला रंग, खतरे के लाल संकेत)।
मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स आपकी बोर्ड परीक्षा की तैयारी में बहुत सहायक होंगे। मन लगाकर पढ़िए और अभ्यास करते रहिए! शुभकामनाएँ!
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