बिहार बोर्ड कक्षा 10 विज्ञान: आनुवंशिकता (अध्याय 8)

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कक्षा 10 विज्ञान अध्याय: आनुवंशिकता - विस्तृत नोट्स | NCERT तैयारी
नमस्ते प्यारे विद्यार्थियों! 😊 चलो, मिलकर विज्ञान के एक बहुत ही दिलचस्प अध्याय 'आनुवंशिकता' को गहराई से समझते हैं। यह नोट्स खास आपके लिए तैयार किए गए हैं, ताकि आप इस अध्याय को खुद पढ़कर अच्छे से सीख सकें, सारे कॉन्सेप्ट्स दिमाग में बिठा सकें और परीक्षा के लिए एकदम तैयार हो जाएँ! यह समझ लो कि यह नोट्स आपकी पढ़ाई के सफर में आपके दोस्त की तरह हैं। तो चलिए, ज्ञान की यात्रा शुरू करते हैं! 🚀

अध्याय: आनुवंशिकता

अध्याय का परिचय

आपने देखा होगा कि जब नए जीव जन्म लेते हैं, तो वे अपने माता-पिता जैसे दिखते तो हैं, लेकिन पूरी तरह से एक जैसे नहीं होते। उनमें कुछ न कुछ अंतर होता है। यही अंतर या भिन्नता (Variation) हमें जीवों में दिखाई देती है। जनन (Reproduction) के तरीके, खासकर लैंगिक जनन (Sexual Reproduction), इन भिन्नताओं को पैदा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस अध्याय में हम यही जानेंगे कि ये भिन्नताएँ कैसे पैदा होती हैं और माता-पिता से बच्चों में लक्षण कैसे पहुँचते हैं।

1. विविधता (Variation) और इसका महत्व

विविधता की सरल व्याख्या:

विविधता का मतलब है, एक ही प्रजाति के जीवों के बीच पाए जाने वाले अंतर। जैसे आपकी कक्षा में सभी छात्र इंसान हैं (एक ही प्रजाति), लेकिन सभी की शक्ल, ऊँचाई, बालों का रंग, आँखों का रंग आदि अलग-अलग है। यही विविधता है।

मुख्य बातें:

  • जनन की प्रक्रिया से नए जीव बनते हैं जो अपने जनक (Parents) से मिलते-जुलते होते हैं, लेकिन कुछ भिन्नताएँ भी होती हैं।
  • अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction): इसमें केवल एक ही जीव जनन करता है। इसमें भिन्नताएँ बहुत कम होती हैं, मुख्य रूप से DNA कॉपी होने के समय होने वाली छोटी-मोटी गलतियों के कारण।
  • लैंगिक जनन (Sexual Reproduction): इसमें दो जीव (नर और मादा) भाग लेते हैं। इसमें भिन्नताएँ बहुत अधिक होती हैं, क्योंकि दो अलग-अलग जीवों का DNA मिलकर नया जीव बनाता है।

विविधता का महत्व:

प्रकृति में विविधता का होना बहुत ज़रूरी है। यदि सभी जीव एक जैसे होते, तो पर्यावरण में थोड़ा सा भी बदलाव उन सभी को एक साथ खत्म कर सकता था। विविधता के कारण, कुछ जीवों में ऐसे लक्षण हो सकते हैं जो उन्हें बदले हुए माहौल में जीवित रहने में मदद करें।

उदाहरण: अगर जीवाणुओं की एक आबादी है और अचानक तापमान बहुत बढ़ जाता है। अगर कुछ जीवाणुओं में गर्मी सहने की क्षमता (विविधता के कारण) है, तो वे जीवित रहेंगे और अपनी संख्या बढ़ाएँगे, जबकि बाकी जीवाणु मर जाएँगे। इस तरह, भिन्नताएँ प्रजातियों को विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रहने और अपने अस्तित्व को बनाए रखने में मदद करती हैं। पर्यावरण कारकों द्वारा अनुकूल भिन्नता वाले जीवों का चुनाव ही जैव विकास (Evolution) का आधार बनता है।

2. आनुवंशिकता (Heredity) क्या है?

आनुवंशिकता की सरल व्याख्या:

यह वह प्रक्रिया है जिससे लक्षण (Traits) माता-पिता से उनकी संतान में जाते हैं। यही कारण है कि आप अपने माता-पिता या दादा-दादी जैसे दिखते हैं। आनुवंशिकता के नियम यह निर्धारित करते हैं कि कौन से लक्षण और कितनी सटीकता से अगली पीढ़ी में पहुँचेंगे।

प्रमुख परिभाषाएँ और संकल्पनाएँ:

  • लक्षण (Traits): ये जीव की विशेषताएँ होती हैं, जैसे पौधों की ऊँचाई (लंबा या बौना), बीज का आकार (गोल या झुर्रीदार), फूलों का रंग (बैंगनी या सफेद), या मनुष्यों में आँखों का रंग, बालों का प्रकार, कान की बनावट आदि।
  • वंशागत लक्षण (Inherited Traits): वे लक्षण जो माता-पिता से संतान में आनुवंशिक रूप से पहुँचते हैं।
  • जीन (Gene): DNA का वह छोटा सा हिस्सा जिसमें किसी खास प्रोटीन को बनाने की जानकारी होती है। यही प्रोटीन जीव के लक्षणों को नियंत्रित करता है। हर लक्षण के लिए आमतौर पर एक या एक से ज़्यादा जीन जिम्मेदार होते हैं।
  • प्रभावी लक्षण (Dominant Trait): लैंगिक जनन वाले जीवों में, हर लक्षण के लिए जीन की दो प्रतियाँ (एलील) होती हैं (एक माता से, एक पिता से)। अगर ये दोनों प्रतियाँ अलग-अलग जानकारी रखती हैं, तो जो लक्षण दिखाई देता है, उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं।
  • अप्रभावी लक्षण (Recessive Trait): जब प्रभावी लक्षण मौजूद होता है, तो जो लक्षण दिखाई नहीं देता, उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं। अप्रभावी लक्षण तभी दिखाई देता है जब जीन की दोनों प्रतियाँ उस अप्रभावी लक्षण वाली हों।

उदाहरण: कान की बनावट (कर्णपालि - Earlobe)

कुछ लोगों की कर्णपालि सिर से जुड़ी होती है, जबकि कुछ की स्वतंत्र होती है। यह मानव में एक वंशागत लक्षण है। (पाठ्यपुस्तक चित्र 8.2 देखें)।

गतिविधि 8.1: अपनी कक्षा के छात्रों की कर्णपालि देखकर पता लगाएँ कि कितनों की स्वतंत्र है और कितनों की जुड़ी हुई। अपने माता-पिता की कर्णपालि देखकर यह समझने का प्रयास करें कि यह लक्षण कैसे वंशागत होता है।

3. मेंडल का योगदान (Mendel's Contribution)

ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor Johann Mendel) को आनुवंशिकता का जनक (Father of Genetics) कहा जाता है। उन्होंने मटर के पौधों पर कई प्रयोग किए और आनुवंशिकता के महत्वपूर्ण नियम दिए।

मेंडल के प्रयोगों की व्याख्या:

मेंडल ने मटर के पौधों (Pisum sativum) को चुना क्योंकि:

  • उनमें कई स्पष्ट विपरीत लक्षण होते हैं (जैसे, लंबा/बौना)।
  • उनका जीवन चक्र छोटा होता है।
  • उनमें स्व-परागण और पर-परागण आसानी से कराया जा सकता है।
  • एक ही पीढ़ी में अनेक बीज उत्पन्न होते हैं।

एकल लक्षण की वंशागति (वंशागति का पहला नियम - प्रभाविता का नियम और विसंयोजन का नियम)

मेंडल ने शुद्ध लंबे मटर के पौधों (माना TT) का संकरण (Cross) शुद्ध बौने मटर के पौधों (माना tt) से कराया।

  • $\text{F}_1$ पीढ़ी (पहली संतति पीढ़ी): सभी पौधे लंबे थे। कोई भी पौधा मध्यम ऊँचाई का नहीं था। इससे पता चला कि लंबाई का लक्षण (T) बौनेपन के लक्षण (t) पर प्रभावी है।
  • $\text{F}_2$ पीढ़ी (दूसरी संतति पीढ़ी): मेंडल ने $\text{F}_1$ पीढ़ी के लंबे पौधों (Tt) का स्व-परागण कराया।
  • परिणाम: $\text{F}_2$ पीढ़ी में उन्हें लंबे और बौने दोनों तरह के पौधे लगभग 3:1 के अनुपात में मिले (तीन-चौथाई लंबे, एक-चौथाई बौने)। (पाठ्यपुस्तक चित्र 8.3 देखें)।

निष्कर्ष:

  1. प्रत्येक लक्षण जीन द्वारा नियंत्रित होता है, जिनकी दो प्रतियाँ (एलील) होती हैं।
  2. यदि एलील भिन्न हैं, तो एक (प्रभावी) व्यक्त होता है और दूसरा (अप्रभावी) छिपा रहता है (प्रभाविता का नियम)।
  3. युग्मक निर्माण के समय, प्रत्येक जीन की दोनों प्रतियाँ (एलील) एक दूसरे से अलग हो जाती हैं, और प्रत्येक युग्मक को केवल एक ही प्रति मिलती है (विसंयोजन या पृथक्करण का नियम)।
जनक पीढ़ी (P): शुद्ध लंबा (TT) x शुद्ध बौना (tt) युग्मक: T t F1 पीढ़ी: सभी लंबे (Tt) F1 का स्व-परागण: लंबा (Tt) x लंबा (Tt) युग्मक (F1 से): T, t T, t F2 पीढ़ी (पनेट वर्ग द्वारा): T t ________________ T | TT Tt | (लंबा) (लंबा) ---------------- t | Tt tt | (लंबा) (बौना) ---------------- परिणाम: 3 लंबे : 1 बौना

दो लक्षणों की स्वतंत्र वंशागति (वंशागति का दूसरा नियम - स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम)

मेंडल ने दो अलग-अलग लक्षणों (जैसे बीज का आकार और रंग) का एक साथ अध्ययन किया।

उन्होंने गोल और पीले बीज वाले पौधों (माना RRYY, जहाँ R गोल के लिए और Y पीले के लिए प्रभावी जीन) का संकरण झुर्रीदार और हरे बीज वाले पौधों (माना rryy) से कराया।

  • $\text{F}_1$ पीढ़ी: सभी पौधे गोल और पीले बीज वाले थे (RrYy)।
  • $\text{F}_2$ पीढ़ी: $\text{F}_1$ पीढ़ी के पौधों का स्व-परागण कराने पर $\text{F}_2$ पीढ़ी में चार प्रकार के संयोजन मिले:
    • गोल, पीले बीज
    • गोल, हरे बीज
    • झुर्रीदार, पीले बीज
    • झुर्रीदार, हरे बीज
    यह संयोजन लगभग 9:3:3:1 के अनुपात में थे। (पाठ्यपुस्तक चित्र 8.5 देखें)।

निष्कर्ष: यह प्रयोग दर्शाता है कि विभिन्न लक्षणों के जीन (जैसे बीज का आकार और बीज का रंग) एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से वंशागत होते हैं। एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती (स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम)।

लक्षण स्वयं को कैसे व्यक्त करते हैं?

जीन DNA में स्थित होते हैं और प्रोटीन बनाने के लिए जानकारी रखते हैं। ये प्रोटीन एंजाइम के रूप में कार्य कर सकते हैं या संरचनात्मक घटक हो सकते हैं, जो अंततः जीव के लक्षणों को निर्धारित करते हैं।

उदाहरण: पौधे की लंबाई। पौधे की लंबाई एक विशेष हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है। यह हार्मोन एक एंजाइम द्वारा बनता है। इस एंजाइम को बनाने की सूचना जीन में होती है। यदि जीन में कोई परिवर्तन होता है, तो एंजाइम ठीक से नहीं बन पाता, जिससे हार्मोन कम बनता है और पौधा बौना रह जाता है।

जनन कोशिकाओं में जीन सेट:

लैंगिक जनन में, संतान को प्रत्येक लक्षण के लिए जीन की दो प्रतियाँ मिलती हैं - एक माता से और एक पिता से। सामान्य कायिक कोशिकाओं में जीन की दो प्रतियाँ (द्विगुणित, 2n) होती हैं। युग्मक (शुक्राणु और अंडाणु) निर्माण (अर्धसूत्रीविभाजन) के समय, गुणसूत्रों की संख्या आधी (एकगुणित, n) हो जाती है, जिससे प्रत्येक युग्मक में जीन का केवल एक सेट होता है। निषेचन के समय नर और मादा युग्मक मिलकर पुनः द्विगुणित (2n) युग्मनज बनाते हैं, जिससे प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या स्थिर बनी रहती है और माता-पिता दोनों का आनुवंशिक योगदान सुनिश्चित होता है।

4. लिंग निर्धारण (Sex Determination)

लिंग निर्धारण की सरल व्याख्या:

यह वह प्रक्रिया है जिससे किसी जीव का लिंग (नर या मादा) तय होता है।

विभिन्न जीवों में:

  • कुछ सरीसृपों में, अंडे के ऊष्मायन का तापमान लिंग निर्धारित करता है।
  • घोंघे जैसे कुछ प्राणी अपना लिंग बदल सकते हैं (आनुवंशिक नहीं)।

मानव में लिंग निर्धारण (Genetic Sex Determination in Humans)

मानव में लिंग निर्धारण आनुवंशिक रूप से लिंग गुणसूत्रों (Sex Chromosomes) द्वारा होता है।

  • मानव में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं: 22 जोड़े ऑटोसोम + 1 जोड़ा लिंग गुणसूत्र।
  • स्त्रियों (Females): XX (दोनों लिंग गुणसूत्र X होते हैं)।
  • पुरुषों (Males): XY (एक X और एक Y गुणसूत्र)।

प्रक्रिया:

  1. स्त्री अपने सभी अंडाणुओं में एक X गुणसूत्र देती है।
  2. पुरुष अपने आधे शुक्राणुओं में X गुणसूत्र और आधे में Y गुणसूत्र देता है।
  3. निषेचन के समय:
    • यदि X-शुक्राणु अंडे (X) से मिलता है: संतान $\rightarrow$ XX (लड़की)।
    • यदि Y-शुक्राणु अंडे (X) से मिलता है: संतान $\rightarrow$ XY (लड़का)।

इस प्रकार, बच्चे का लिंग पिता से मिलने वाले गुणसूत्र पर निर्भर करता है। (पाठ्यपुस्तक चित्र 8.6 देखें)।

माता (XX) पिता (XY) | | अंडाणु (X) शुक्राणु (X) या (Y) संभावनाएँ: 1. अंडाणु (X) + शुक्राणु (X) ---> XX (लड़की) 2. अंडाणु (X) + शुक्राणु (Y) ---> XY (लड़का)

अभ्यास प्रश्न

पुस्तक में दिए गए प्रश्न (पृष्ठ 142)

1. यदि एक ‘लक्षण - A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण - B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?

लक्षण - B पहले उत्पन्न हुआ होगा। अलैंगिक जनन में भिन्नताएँ धीरे-धीरे उत्पन्न होती हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी संचित होती हैं। जो लक्षण पहले उत्पन्न होगा, उसे आबादी में फैलने के लिए अधिक समय मिलेगा, इसलिए वह अधिक सदस्यों में पाया जाएगा।

2. भिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?

भिन्नताएँ स्पीशीज के सदस्यों को बदलते पर्यावरण के प्रति अनुकूलन क्षमता प्रदान करती हैं। यदि पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन आता है, तो भिन्नताओं के कारण कुछ सदस्य जीवित रह सकते हैं और प्रजाति का अस्तित्व बना रहता है। इस प्रकार भिन्नताएँ उत्तरजीविता की संभावना को बढ़ाती हैं।

पुस्तक में दिए गए प्रश्न (पृष्ठ 146)

1. मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?

मेंडल ने जब शुद्ध लंबे (TT) और शुद्ध बौने (tt) मटर के पौधों का संकरण कराया, तो $\text{F}_1$ पीढ़ी में सभी पौधे लंबे (Tt) थे। बौनेपन का लक्षण व्यक्त नहीं हुआ। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि लंबापन बौनेपन पर प्रभावी है। जब $\text{F}_1$ पीढ़ी का स्व-परागण कराया गया, तो $\text{F}_2$ पीढ़ी में बौनेपन का लक्षण पुनः प्रकट हुआ (3 लंबे : 1 बौना अनुपात), जिससे प्रभावी और अप्रभावी लक्षणों की अवधारणा की पुष्टि हुई।

2. मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशागत होते हैं?

मेंडल ने द्विसंकर संकरण (जैसे गोल/पीले बीज x झुर्रीदार/हरे बीज) किया। $\text{F}_1$ पीढ़ी में सभी पौधे गोल और पीले बीज वाले थे। $\text{F}_2$ पीढ़ी में न केवल जनक संयोजन (गोल/पीले, झुर्रीदार/हरे) बल्कि नए संयोजन (गोल/हरे, झुर्रीदार/पीले) भी 9:3:3:1 के अनुपात में प्राप्त हुए। नए संयोजनों का बनना यह दर्शाता है कि विभिन्न लक्षण (जैसे बीज का आकार और रंग) स्वतंत्र रूप से वंशागत होते हैं।

3. एक ‘A-रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग - ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन सा विकल्प लक्षण- रुधिर वर्ग- ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण हैं? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए।

हाँ, यह सूचना पर्याप्त है। रुधिर वर्ग 'A' प्रभावी लक्षण है और 'O' अप्रभावी है।

स्पष्टीकरण: स्त्री का रुधिर वर्ग 'O' है, तो उसका जीनोटाइप 'OO' होगा (क्योंकि 'O' अप्रभावी है)। पुत्री का रुधिर वर्ग 'O' है, तो उसका जीनोटाइप भी 'OO' होगा। पुत्री को एक 'O' एलील माँ से और एक 'O' एलील पिता से मिला होगा। पिता का रुधिर वर्ग 'A' है, लेकिन उन्होंने पुत्री को 'O' एलील दिया है, इसका अर्थ है कि पिता का जीनोटाइप 'AO' है। चूँकि पिता में 'A' और 'O' दोनों एलील होने पर भी रुधिर वर्ग 'A' व्यक्त हो रहा है, यह सिद्ध करता है कि 'A' लक्षण 'O' पर प्रभावी है।

4. मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?

मानव में लिंग निर्धारण लिंग गुणसूत्रों (X और Y) द्वारा होता है। स्त्री (XX) हमेशा अंडाणु में X गुणसूत्र देती है। पुरुष (XY) अपने शुक्राणुओं में या तो X या Y गुणसूत्र देता है। यदि X-शुक्राणु अंडे से मिलता है, तो XX (लड़की) और यदि Y-शुक्राणु अंडे से मिलता है, तो XY (लड़का) बनता है। अतः, बच्चे का लिंग पिता द्वारा दिए गए गुणसूत्र पर निर्भर करता है।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ 147)

1. मेंडल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्नलिखित थी— (a) TTWW (b) TTww (c) TtWW (d) TtWw

उत्तर: (c) TtWW

स्पष्टीकरण:

  • संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे, जबकि दूसरे जनक के पुष्प सफेद थे। इसका अर्थ है कि बैंगनी (माना W) सफेद (w) पर प्रभावी है। सभी संतति बैंगनी होने का अर्थ है कि बैंगनी जनक से सभी संतति को W एलील मिला है। बौने सफेद जनक का जीनोटाइप ttww होगा। यदि बैंगनी जनक WW होता, तो सभी संतति Ww (बैंगनी) होती।
  • संतति में लगभग आधे बौने (tt) थे। बौनेपन का एलील (t) दोनों जनकों से आना चाहिए। चूँकि दूसरा जनक बौना (tt) है, वह केवल t एलील दे सकता है। आधे संतति बौने होने का अर्थ है कि लंबे जनक से 50% संतति को t एलील मिला है, जिसका मतलब है कि लंबा जनक विषमयुग्मजी (Tt) था।
  • इसलिए, लंबे बैंगनी पुष्प वाले जनक की आनुवंशिक रचना TtWW थी। (संकरण: TtWW x ttww $\rightarrow$ संतति: TtWw - लंबे बैंगनी, ttWw - बौने बैंगनी। यह 1:1 का अनुपात देगा लंबाई के लिए)।

2. एक अध्ययन से पता चला कि हलके रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हलके रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।

इस सूचना के आधार पर, हम कह सकते हैं कि आँखों के हलके रंग का लक्षण अप्रभावी है।

व्याख्या: अप्रभावी लक्षण केवल तभी व्यक्त होता है जब जीन की दोनों प्रतियाँ उस अप्रभावी लक्षण वाली हों। यदि हलके रंग की आँखों वाले बच्चों के माता-पिता दोनों की आँखें भी हलके रंग की हैं, तो इसका मतलब है कि माता-पिता दोनों हलके रंग के लिए समयुग्मजी (homozygous recessive) हैं। यदि हलका रंग प्रभावी होता, तो गहरे रंग की आँखों वाले माता-पिता (जो हलके रंग के लिए विषमयुग्मजी हो सकते थे) से भी हलकी आँखों वाले बच्चे पैदा हो सकते थे।

3. कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।

प्रोजेक्ट: कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करना

  1. उद्देश्य: कुत्तों में खाल के विभिन्न रंगों (उदा. काला, भूरा, सफेद) में से प्रभावी और अप्रभावी रंगों की पहचान करना।
  2. सामग्री: विभिन्न नस्लों और रंगों के कुत्तों का अवलोकन, उनके वंशावली रिकॉर्ड (यदि उपलब्ध हों), नोटबुक, कैमरा।
  3. विधि:
    • विभिन्न कुत्तों के जोड़ों और उनकी संतानों के खाल के रंगों का डेटा एकत्र करें। विशेष रूप से उन जोड़ों पर ध्यान दें जिनके खाल के रंग अलग-अलग हों।
    • यदि संभव हो, तो शुद्ध नस्ल के अलग-अलग रंग के कुत्तों के बीच नियंत्रित संकरण (पशु प्रजनकों की सहायता से और नैतिक दिशानिर्देशों का पालन करते हुए) के परिणामों का अध्ययन करें।
    • $\text{F}_1$ पीढ़ी के पिल्लों के रंग का अवलोकन करें। जो रंग $\text{F}_1$ पीढ़ी में व्यक्त होगा, वह संभावित प्रभावी रंग है।
    • यदि $\text{F}_1$ पीढ़ी के कुत्तों का आपस में संकरण कराकर $\text{F}_2$ पीढ़ी प्राप्त की जा सके, तो $\text{F}_2$ में रंगों के अनुपात का अध्ययन करें। (उदा. 3:1 अनुपात प्रभावी-अप्रभावी संबंध दर्शाता है)।
  4. विश्लेषण: एकत्र किए गए डेटा और संकरण के परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकालें कि कौन सा रंग किस पर प्रभावी है।
  5. सावधानियाँ: जानवरों के साथ नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करें। सटीक डेटा संग्रह पर ध्यान दें।

4. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबरी की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?

यह अर्धसूत्रीविभाजन और निषेचन की प्रक्रियाओं द्वारा सुनिश्चित किया जाता है:

  • अर्धसूत्रीविभाजन (Meiosis): युग्मक (शुक्राणु और अंडाणु) बनते समय, जनक की द्विगुणित (2n) कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या आधी होकर एकगुणित (n) हो जाती है। प्रत्येक गुणसूत्र जोड़े में से केवल एक ही गुणसूत्र प्रत्येक युग्मक में जाता है।
  • निषेचन (Fertilisation): जब नर युग्मक (n) और मादा युग्मक (n) मिलते हैं, तो एक द्विगुणित (2n) युग्मनज बनता है। इस युग्मनज में आधे गुणसूत्र (और जीन) नर जनक से और आधे मादा जनक से आते हैं।

इस प्रकार, प्रत्येक जनक संतति को गुणसूत्रों का एक पूरा सेट प्रदान करता है, जिससे आनुवंशिक योगदान में बराबरी सुनिश्चित होती है।

अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नये अभ्यास प्रश्न

  1. मटर के पौधे में फली का हरा रंग (G) पीले रंग (g) पर प्रभावी है। यदि एक विषमयुग्मजी हरी फली वाले पौधे (Gg) का संकरण एक पीले फली वाले पौधे (gg) से कराया जाए, तो संतान में हरी और पीली फली वाले पौधों का अनुपात क्या होगा? पनेट वर्ग बनाकर दर्शाइए।
  2. मानव में स्वतंत्र कर्णपालि (F) जुड़ी हुई कर्णपालि (f) पर प्रभावी है। यदि एक विषमयुग्मजी स्वतंत्र कर्णपालि वाले पुरुष (Ff) का विवाह एक समयुग्मजी स्वतंत्र कर्णपालि वाली स्त्री (FF) से होता है, तो उनकी संतानों में जुड़ी हुई कर्णपालि वाले बच्चे होने की क्या संभावना है?
  3. "लैंगिक जनन करने वाले जीवों में विविधता की संभावना अलैंगिक जनन करने वाले जीवों की तुलना में अधिक होती है।" इस कथन के पक्ष में दो कारण दीजिए।
  4. यदि किसी जीव में लिंग निर्धारण पूरी तरह से पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करता है, तो क्या मेंडल के आनुवंशिकता के नियम उस जीव में लिंग निर्धारण पर लागू होंगे? अपने उत्तर का कारण स्पष्ट कीजिए।
  5. DNA प्रतिकृति में त्रुटियाँ किस प्रकार भिन्नताओं को जन्म देती हैं? यह जैव विकास के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

अध्याय का संक्षिप्त सारांश (Quick Revision Notes)

  • जनन के दौरान उत्पन्न भिन्नताएँ पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत हो सकती हैं और स्पीशीज के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • लैंगिक जनन में प्रत्येक लक्षण के लिए जीन की दो प्रतियाँ होती हैं; एक प्रभावी और दूसरी अप्रभावी हो सकती है।
  • मेंडल ने मटर के पौधों पर प्रयोग करके आनुवंशिकता के नियम दिए: प्रभाविता का नियम, विसंयोजन का नियम, और स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम।
  • विभिन्न लक्षण अक्सर एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से वंशागत होते हैं।
  • लिंग निर्धारण विभिन्न जीवों में अलग-अलग तरीकों से होता है (पर्यावरणीय या आनुवंशिक)।
  • मानव में लिंग का निर्धारण पिता से मिलने वाले लिंग गुणसूत्र (X या Y) पर निर्भर करता है। XX लड़की होती है, XY लड़का।

तो प्यारे बच्चों, यह थे 'आनुवंशिकता' अध्याय के आपके स्वयं अध्ययन नोट्स। मुझे उम्मीद है कि इन्हें पढ़कर आप इस अध्याय को अच्छे से समझ पाए होंगे। इन नोट्स को बार-बार पढ़ें, उदाहरणों को फिर से समझें और अभ्यास प्रश्नों को हल करें। अगर कोई शंका हो तो अपनी पुस्तक या शिक्षक की मदद लें।
परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ! मन लगाकर पढ़ें और आगे बढ़ें! 👍

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