भारतीय इतिहास के कुछ विषय
यात्रियों के नज़रिए से (भाग: १)
अध्याय का परिचय
यह अध्याय विभिन्न यात्रियों, जैसे अल-बिरूनी, इब्न बतूता, और फ्रांस्वा बर्नियर के यात्रा वृत्तांतों के माध्यम से भारतीय इतिहास और समाज को समझने पर केंद्रित है। इन यात्रियों ने अलग-अलग समय में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और अपने अनुभवों तथा अवलोकनों को कलमबद्ध किया। उनके लेख तत्कालीन समाज, संस्कृति, शहरों, और शासकों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं, हालाँकि उनके अपने दृष्टिकोण और पूर्वाग्रह भी उनके वृत्तांतों में परिलक्षित होते हैं।
1. महत्वपूर्ण विषयों की सरल एवं स्पष्ट व्याख्या
- यात्रा क्यों करते थे लोग? लोग विभिन्न कारणों से यात्राएँ करते थे। इनमें काम की तलाश, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव, व्यापार, सैन्य अभियान, तीर्थयात्रा, या केवल रोमांच की भावना शामिल थी।
- यात्रा वृत्तांतों का महत्व: जब यात्री किसी नए स्थान पर पहुँचते थे, तो वे एक ऐसी दुनिया पाते थे जो भूदृश्य, भौतिक पर्यावरण, रीति-रिवाजों, भाषाओं, आस्थाओं और व्यवहार में उनके अपने से भिन्न होती थी। कुछ यात्री इन भिन्नताओं के अनुकूल ढल जाते थे। अन्य लोग, जो कुछ हद तक विशिष्ट होते थे, इन्हें सावधानीपूर्वक अपने वृत्तांतों में लिख लेते थे। इन वृत्तांतों में अक्सर असामान्य तथा उल्लेखनीय बातों को अधिक महत्व दिया जाता था।
- महिलाओं के वृत्तांतों की कमी: दुर्भाग्य से, महिलाओं द्वारा लिखे गए वृत्तांत लगभग न के बराबर उपलब्ध हैं, हालाँकि हम जानते हैं कि वे भी यात्राएँ करती थीं।
- वृत्तांतों की विषय-वस्तु: सुरक्षित मिले वृत्तांत अपनी विषय-वस्तु के संदर्भ में अलग-अलग प्रकार के होते हैं। कुछ दरबार की गतिविधियों से संबंधित होते हैं, जबकि अन्य धार्मिक विषयों, या स्थापत्य के तत्वों और स्मारकों पर केंद्रित होते हैं।
2. प्रमुख परिभाषाएँ, संकल्पनाएँ और शब्दों की स्पष्ट व्याख्या
अल-बिरूनी (Al-Biruni): एक विद्वान जिनका जन्म आधुनिक उज़्बेकिस्तान में स्थित ख्वारिज्म में सन 973 में हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था और अल-बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। वे कई भाषाओं के ज्ञाता थे, जिनमें सीरियाई, फ़ारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल थीं।
किताब-उल-हिंद (Kitab-ul-Hind): अल-बिरूनी द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई कृति।
हिंदू शब्द का उद्गम: 'हिंदू' शब्द लगभग छठी-पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रयुक्त होने वाले एक प्राचीन फ़ारसी शब्द से निकला था, जिसका प्रयोग सिंधु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था। अरबी लोगों ने इस फ़ारसी शब्द को जारी रखा और इस क्षेत्र को 'अल-हिंद' तथा यहाँ के निवासियों को 'हिंदी' कहा। कालांतर में तुर्कों ने सिंधु से पूर्व में रहने वाले लोगों को 'हिंदू', उनके निवास क्षेत्र को 'हिंदुस्तान' तथा उनकी भाषा को 'हिंदवी' नाम दिया। इनमें से कोई भी शब्द लोगों की धार्मिक पहचान का द्योतक नहीं था। इस शब्द का धार्मिक संदर्भ में प्रयोग बहुत बाद की बात है।
मापतन्त्र (Metrology): यह विज्ञान मापने के विज्ञान से संबंध रखता है। (यदि यहाँ कोई गणितीय सूत्र होता, तो हम MathJAX का उपयोग करते, जैसे $E=mc^2$)
इब्न बतूता (Ibn Battuta): चौदहवीं शताब्दी में मोरक्को से आया एक यात्री जिसने उत्तरी अफ़्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया के कुछ भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन की यात्रा की थी।
रिहला (Rihla): इब्न बतूता का यात्रा वृत्तांत। जब वह वापस आया, तो स्थानीय शासक ने निर्देश दिया कि उसकी कहानियों को दर्ज किया जाए। इब्न जुज़ाई, जिसे इब्न बतूता के श्रुतलेखों को लिखने के लिए नियुक्त किया गया था, ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है कि राजा ने उन्हें यात्रा में देखे गए शहरों, रोचक घटनाओं, विभिन्न देशों के शासकों, महान साहित्यकारों तथा धर्मनिष्ठ संतों के विषय में बताने का निर्देश दिया था।
उलूक (Ulūq): अश्व डाक व्यवस्था, जो हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा संचालित होती थी।
दावा (Dawa): पैदल डाक व्यवस्था, जिसमें प्रति मील तीन अवस्थापन होते थे। यह अश्व डाक व्यवस्था से अधिक तीव्र होती थी।
फ्रांस्वा बर्नियर (François Bernier): फ्रांस का रहने वाला एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा इतिहासकार। वह 1656 से 1668 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा। पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में, और बाद में मुग़ल दरबार के एक आर्मेनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।
शिविर नगर (Camp Towns): बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को 'शिविर नगर' कहता है। उसका आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका विश्वास था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे।
सती प्रथा (Sati): एक प्रथा जिसमें विधवा अपने पति के शव के साथ जल जाती थी। बर्नियर ने लाहौर में एक बहुत ही सुंदर अल्पवयस्क विधवा को सती होते देखा था।
3. पुस्तक में दिए गए उदाहरणों को चरण-दर-चरण हल करके समझाइए
अध्याय में उदाहरणों को हल करने के लिए कोई संख्यात्मक या विश्लेषणात्मक प्रश्न नहीं दिए गए हैं। बल्कि, इसमें यात्रियों के वृत्तांतों के अंश दिए गए हैं जिन पर चिंतन करने या तुलना करने के लिए प्रश्न पूछे गए हैं। जैसे:
नारियल का वर्णन (इब्न बतूता द्वारा)
- चरण 1: इब्न बतूता नारियल के पेड़ की तुलना खजूर के पेड़ से करता है, यह कहते हुए कि दोनों स्वरूप में समान दिखते हैं, केवल फल में अंतर है।
- चरण 2: वह नारियल के फल की तुलना मानव सिर से करता है।
- चरण 3: वह इस समानता के पीछे के कारण बताता है: नारियल में भी मानो दो आँखें तथा एक मुख है।
- चरण 4: अंदर के भाग को हरे होने पर मस्तिष्क जैसा बताता है।
- चरण 5: इससे जुडे़ रेशे को बालों जैसा बताता है।
- चरण 6: वह बताता है कि लोग इससे रस्सी बनाते हैं और लोहे की कीलों के बजाय इनसे जहाज़ को सिलते हैं, तथा बर्तनों के लिए भी रस्सी बनाते हैं।
यह वर्णन पाठकों को एक अपरिचित फल की कल्पना करने में मदद करता है, उसकी विशेषताओं को ज्ञात वस्तुओं (खजूर, मानव सिर) से जोड़कर।
पान का वर्णन (इब्न बतूता द्वारा)
- चरण 1: वह बताता है कि पान एक ऐसा वृक्ष है जिसे अंगूर-लता की तरह ही उगाया जाता है।
- चरण 2: वह स्पष्ट करता है कि पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है।
- चरण 3: वह इसके उपयोग की विधि बताता है: इसे खाने से पहले सुपारी ली जाती है।
- चरण 4: सुपारी को जायफल जैसी बताता है, जिसे तब तक तोड़ा जाता है जब तक इसके छोटे-छोटे टुकड़े न हो जाएँ।
- चरण 5: इन टुकड़ों को मुँह में रखकर चबाया जाता है, और इसके बाद पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता है।
यह वर्णन भी पाठक को एक अपरिचित पौधे और उसके उपभोग की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है।
दिल्ली का वर्णन (इब्न बतूता द्वारा)
- चरण 1: वह दिल्ली को एक बड़े क्षेत्र में फैला घनी जनसंख्या वाला शहर बताता है।
- चरण 2: वह शहर के चारों ओर बनी प्राचीर (दीवार) का वर्णन करता है, जिसकी चौड़ाई ग्यारह हाथ (लगभग 20 इंच प्रति हाथ) है।
- चरण 3: वह बताता है कि प्राचीर के भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।
- चरण 4: प्राचीरों के अंदर खाद्यसामग्री, हथियार, बारूद, प्रक्षेप्यास्त्र तथा घेराबंदी में काम आने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडारगृह बने हुए हैं।
- चरण 5: प्राचीर के भीतरी भाग में घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शहर के एक से दूसरे छोर तक आते-जाते हैं।
- चरण 6: प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हैं जो शहर की ओर खुलती हैं और इन्हीं खिड़कियों के माध्यम से प्रकाश अंदर आता है।
- चरण 7: प्राचीर का निचला भाग पत्थर से और ऊपरी भाग ईंटों से बना है, जिसमें पास-पास बनी कई मीनारें हैं।
- चरण 8: शहर के अ_ाईस द्वार हैं जिन्हें दरवाज़ा कहा जाता है। बदायूँ दरवाज़ा सबसे विशाल है। मांडवी दरवाज़े के भीतर एक अनाज मंडी है। गुल दरवाज़े के बगल में एक फलों का बागीचा है।
- चरण 9: वह दिल्ली में एक बेहतरीन क़ब्रगाह का भी वर्णन करता है, जिसमें बनी क़ब्रों के ऊपर गुंबद बनाए गए हैं या उनमें मेहराब हैं।
- चरण 10: क़ब्रगाह में चमेली तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं जो सभी मौसमों में खिले रहते हैं।
4. अध्याय के अभ्यास प्रश्नों (Exercise Questions) के विस्तृत उत्तर
प्रश्न 3: बर्नियर के वृत्तांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: बर्नियर मुग़लकालीन शहरी केंद्रों को "शिविर नगर" कहता है। उसका मानना था कि ये शहर अपने अस्तित्व और रखरखाव के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसके अनुसार, ये शहर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और जब दरबार कहीं और चला जाता था तो तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे। बर्नियर ने इन शहरों की सामाजिक और आर्थिक नींव को अव्यावहारिक बताया और कहा कि वे राजकीय आश्रय पर निर्भर थे। हालांकि, बर्नियर का दृष्टिकोण पूरी तरह सटीक नहीं हो सकता है, क्योंकि उसने यूरोप से तुलना करते हुए भारत की स्थिति को दयनीय बताया। उसके वृत्तांतों से यह भी पता चलता है कि शहरी केंद्र भीड़-भाड़ वाली सड़कों और विविध वस्तुओं से भरे बाजारों से जीवंत थे। इब्न बतूता जैसे अन्य यात्रियों ने भी शहरों को अवसरों से भरपूर और समृद्ध पाया। बर्नियर के कुछ विवरण एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई की ओर इशारा करते हैं, जिसमें समृद्ध व्यापारिक समुदाय और कुशल शिल्पी शामिल थे।
प्रश्न 4: इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर: प्रदान किए गए पाठ्यपुस्तक अंशों में, इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में कोई सीधा और विस्तृत साक्ष्य नहीं दिया गया है। हालाँकि, उसके वृत्तांतों में शासकों, उनके सेवकों और दासों का उल्लेख है। उदाहरण के लिए, दौलताबाद के बाजार के वर्णन में, वह गायक-गायकियों के साथ उनकी सेविकाओं और दासों का उल्लेख करता है। राजा द्वारा इब्न बतूता की कहानियों को दर्ज करने के निर्देश में महान साहित्यकारों और धर्मनिष्ठ संतों के साथ-साथ शासकों का भी उल्लेख है। ये उल्लेख अप्रत्यक्ष रूप से यह दर्शाते हैं कि समाज में सेवकों और दासों का अस्तित्व था, लेकिन इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा की प्रकृति या उसके व्यापक प्रचलन पर कोई विस्तृत टिप्पणी इन अंशों में उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न 5: सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर: बर्नियर सती प्रथा के क्रूर और मानवीय पहलुओं से विशेष रूप से प्रभावित हुआ। उसने लाहौर में एक 12 वर्ष से अधिक आयु की सुंदर अल्पवयस्क विधवा को सती होते देखा था, जिसने उसके ध्यान को खींचा। वे तत्व जिन्होंने बर्नियर का ध्यान खींचा:
- कम आयु: विधवा की बहुत कम उम्र (लगभग बारह वर्ष) देखकर वह द्रवित हो गया।
- बेबसी और डर: उसने देखा कि वह बच्ची 'जीवित से अधिक मृत' प्रतीत हो रही थी और 'भय से कांपते हुए बुरी तरह से रो रही थी', जो उसकी बेबसी और डर को दर्शाता है।
- अनिच्छा के बावजूद मजबूर किया जाना: उसे तीन या चार ब्राह्मणों और एक बूढ़ी औरत द्वारा जबरन उस 'घातक स्थल' की ओर ले जाया गया।
- बांध दिया जाना: उसे लकड़ियों पर बिठाकर उसके हाथ और पैर बांध दिए गए, ताकि वह भाग न सके।
- अमानवीय कृत्य: इस 'मासूम प्राणी' को जिंदा जलाना उसके लिए एक 'भयानक नरक' की ओर जाने जैसा था, जिसने उसकी भावनाओं को आहत किया।
बर्नियर इस दृश्य की क्रूरता, लड़की की कम उम्र और उसकी बेबसी को देखकर इतना विचलित हुआ कि वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाया।
प्रश्न 6: जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: अल-बिरूनी ने जाति व्यवस्था को समझने और उसकी व्याख्या करने के लिए अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज की। उसने लिखा कि प्राचीन फ़ारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी: घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक, और अंत में कृषक तथा शिल्पी। इस तुलना के माध्यम से, वह यह दिखाना चाहता था कि सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। इसके साथ ही, उसने यह दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।
अल-बिरूनी ने वर्ण व्यवस्था का भी उल्लेख किया। उसकी व्याख्या के अनुसार वर्णों का क्रम:
- ब्राह्मण: सबसे ऊँची जाति, जिनके विषय में ग्रंथों के अनुसार वे ब्रह्मन (प्रकृति की शक्ति का दूसरा नाम) के सिर से उत्पन्न हुए थे। सिर शरीर का सबसे ऊपरी भाग है, इसलिए ब्राह्मण पूरी प्रजाति के सबसे चुने हुए भाग हैं। हिंदू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
- क्षत्रिय: अगली जाति, जिनका सृजन ब्रह्मन के कंधों और हाथों से हुआ था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है।
अल-बिरूनी ने ब्राह्मणों द्वारा रचित कृतियों, जैसे वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति आदि से अंश उद्धृत किए। हालांकि, उसने धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता तथा अभिमान को भारतीय समाज को समझने में बाधाएँ बताया।
प्रश्न 7: क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर: हाँ, इब्न बतूता का वृत्तांत समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की जानकारी प्राप्त करने में बहुत सहायक है। कारण:
- विस्तृत वर्णन: इब्न बतूता ने शहरों का विस्तृत वर्णन किया है, जिसमें उनकी बनावट (जैसे दिल्ली की प्राचीर, द्वार, भंडारगृह), बाजारों की भीड़-भाड़ और विविधता, और सामाजिक गतिविधियाँ शामिल हैं।
- अवसरों का चित्रण: उसने बताया कि ये शहर उन लोगों के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर थे जिनके पास आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था।
- सांस्कृतिक पहलू: उसने बाजारों को मात्र आर्थिक विनिमय के स्थान नहीं बल्कि सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में दर्शाया है। उसने बाजारों में मस्जिदों और मंदिरों की उपस्थिति और सार्वजनिक प्रदर्शन (नर्तकों, संगीतकारों, गायकों द्वारा) के लिए स्थानों का भी उल्लेख किया है, जैसे दौलताबाद का ताराबाद बाजार। इससे शहरों के सांस्कृतिक जीवन का पता चलता है।
- विशिष्ट विवरण: नारियल और पान जैसे स्थानीय उत्पादों का उसका वर्णन दर्शाता है कि वह उन चीजों पर ध्यान देता था जो उसके पाठकों के लिए अपरिचित थीं, जिससे उन्हें भारतीय जीवन शैली के विशिष्ट पहलुओं को समझने में मदद मिलती है।
- वैश्विक संदर्भ: उसके वृत्तांत से पता चलता है कि भारतीय उपमहाद्वीप एक वैश्विक संचार तंत्र का हिस्सा था, जहाँ विभिन्न भाषाओं के लोग विचारों और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे।
ये सभी विवरण मिलकर चौदहवीं शताब्दी के भारतीय शहरी जीवन का एक जीवंत और विस्तृत चित्र प्रस्तुत करते हैं, जो अध्ययन के लिए मूल्यवान हैं।
प्रश्न 8: चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है।
उत्तर: बर्नियर का वृत्तांत समकालीन ग्रामीण समाज को समझने में कुछ हद तक सहायक है, लेकिन इसमें सीमाएं भी हैं।
सहायक पहलू:
- किसानों की स्थिति: बर्नियर ने ग्रामीण अंचल में कृषकों की दयनीय स्थिति का वर्णन किया। उसने बताया कि कई क्षेत्र रेत या बंजर पर्वत हैं, खेती अच्छी नहीं है और आबादी कम है।
- शोषण और उत्पीड़न: उसने गवर्नरों द्वारा किसानों के साथ किए गए बुरे व्यवहार का उल्लेख किया। उसने बताया कि जब गरीब लोग अपने लालची स्वामियों की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते थे, तो उन्हें न केवल जीवन-निर्वाह के साधनों से वंचित किया जाता था, बल्कि उनके बच्चों को भी दास बनाकर ले जाया जाता था।
- गांवों का पलायन: इस उत्पीड़न के कारण किसान निराश होकर गाँव छोड़कर चले जाते थे।
- कृषि योग्य भूमि का अप्रयुक्त रहना: उसने उल्लेख किया कि श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा बिना खेती के रह जाता था।
सीमाएं/आलोचना:
- पूर्वाग्रह: बर्नियर ने अक्सर भारत की स्थिति की तुलना यूरोप से की और इसे दयनीय बताया। उसका मुख्य तर्क राजकीय भूस्वामित्व था, जिसके कारण भूमि के रखरखाव और सुधार में निवेश की कमी थी, और किसानों का उत्पीड़न होता था। यह विचार सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपीय विचारों (जैसे कि फ्रांस में) से प्रभावित हो सकता है जहाँ निजी संपत्ति को बढ़ावा दिया जा रहा था।
- सरकारी दस्तावेजों से भिन्नता: मुग़ल सरकारी दस्तावेज इस बात का संकेत नहीं देते कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। भूमि राजस्व को 'राजत्व का पारिश्रमिक' बताया गया है, जो सुरक्षा प्रदान करने के बदले राजा द्वारा मांगी गई मांग थी, न कि स्वामित्व वाली भूमि पर लगान।
- जटिल वास्तविकता को अनदेखा करना: जबकि बर्नियर शोषण की बात करता है, उसके वृत्तांत में ऐसे अंश भी हैं जो एक अधिक जटिल सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, उसने बंगाल जैसे क्षेत्रों की अत्यधिक उपजाऊ क्षमता और शिल्पी उत्पादन (जैसे कालीन, जरी, कढ़ाई, सोने और चांदी के वस्त्र) का उल्लेख किया है, जिनमें भारतीय कारीगरों की दक्षता दिखाई देती है। उसने यह भी स्वीकार किया कि बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का निर्यात सोने और चांदी के बदले होता था, जो एक समृद्ध व्यापार का संकेत है। ये बिंदु उसके 'राजकीय भूस्वामित्व के कारण विनाश' के सरल तर्क के विपरीत हैं।
कुल मिलाकर, बर्नियर का वृत्तांत ग्रामीण समाज की कठिनाइयों, विशेष रूप से किसानों के उत्पीड़न और भूमि के अप्रयुक्त रहने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। हालांकि, उसका विश्लेषण यूरोपीय दृष्टिकोण से प्रभावित था और उसने मुग़ल साम्राज्य की आर्थिक जटिलताओं और उत्पादकता के कुछ पहलुओं को अनदेखा किया, या उन्हें अपने तर्क के अनुकूल ढाला। इसलिए, इतिहासकारों को उसके वृत्तांत का उपयोग करते समय आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और अन्य स्रोतों से जानकारी की पुष्टि करनी चाहिए।
प्रश्न 9: यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है: "ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारिगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औज़ारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है। कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नक़ल करते हैं कि असली और नक़ली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में, भारतीय लोग बेहतरीन बंदूकें, और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अक्सर इनके चित्रों की सुंदरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।"। बर्नियर इस विचार को किस प्रकार प्रेषित करता है कि हालांकि हर तरफ बहुत सक्रियता है पर उन्नति बहुत कम?
उत्तर: स्रोत 32 और स्रोत 36 में दिए गए विचार बर्नियर के वृत्तांत के दो अलग-अलग पहलुओं को दर्शाते हैं, और स्रोत 32 वाला प्रश्न स्रोत 36 के उद्धरण पर सीधे लागू नहीं होता है।
स्रोत 32 में बर्नियर मुग़ल शहरों को "शिविर नगर" कहकर और यह तर्क देकर कि उत्पादन पतनोन्मुख है क्योंकि राज्य मुनाफे का अधिग्रहण कर लेता है, यह विचार प्रेषित करता है कि हालांकि बहुत सक्रियता (जैसे भीड़-भाड़ वाले बाजार) दिखाई दे सकती है, वास्तविक उन्नति या प्रगति बहुत कम है। उसका मानना था कि राजकीय संरक्षण पर निर्भरता और निजी स्वामित्व की कमी ने स्थिरता और विकास को रोका। वह यह भी तर्क देता है कि शिल्पी अपने उत्पादों को बेहतर बनाने के लिए उत्साहित नहीं थे क्योंकि मुनाफा राज्य द्वारा ले लिया जाता था, जिससे उत्पादन में गिरावट आई।
इसके विपरीत, स्रोत 36 का उद्धरण भारतीय कारीगरों की कुशलता और उनके उत्पादों की गुणवत्ता (बंदूकें, स्वर्णाभूषण, चित्रकला) की प्रशंसा करता है। यह उद्धरण सीधे तौर पर "बहुत सक्रियता पर उन्नति कम" के विचार को व्यक्त नहीं करता है, बल्कि भारतीय कारीगरी की उत्कृष्टता को उजागर करता है, जो बर्नियर के कुछ अन्य आलोचनात्मक विचारों के विपरीत है।
5. अध्याय की अवधारणाओं पर आधारित नए अभ्यास प्रश्न
- अल-बिरूनी ने भारतीय समाज को समझने में किन बाधाओं का उल्लेख किया है? चर्चा कीजिए कि भाषा ज्ञान इस संदर्भ में कितना महत्वपूर्ण था।
- इब्न बतूता ने भारतीय शहरों को किन विशेषताओं के साथ वर्णित किया है? उसके वृत्तांत के आधार पर, दिल्ली और दौलताबाद के शहरी जीवन की तुलना कीजिए।
- इब्न बतूता ने भारत में डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता का वर्णन कैसे किया है? "उलूक" और "दावा" डाक व्यवस्थाओं के बीच क्या अंतर था?
- फ्रांस्वा बर्नियर ने अपने वृत्तांतों में भारत की तुलना यूरोप से क्यों की? उसके दृष्टिकोण में मुग़ल साम्राज्य की मुख्य कमियाँ क्या थीं और उसने यूरोपीय शासकों को किस बारे में चेतावनी दी?
- इब्न बतूता नारियल और पान जैसे अपरिचित उत्पादों का वर्णन करने के लिए किस विधि का उपयोग करता है? ये वर्णन उसके लेखन शैली के बारे में क्या बताते हैं?
- यात्रा वृत्तांतों को इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए एक स्रोत के रूप में उपयोग करते समय इतिहासकारों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अल-बिरूनी, इब्न बतूता और बर्नियर के वृत्तांतों से उदाहरण दीजिए।
6. अध्याय के अंत में बोर्ड परीक्षा से पहले पुनरावृत्ति के लिए संक्षिप्त सारांश
अध्याय का संक्षिप्त सारांश: यात्रियों के नज़रिए से
यह अध्याय अल-बिरूनी, इब्न बतूता और फ्रांस्वा बर्नियर जैसे यात्रियों के वृत्तांतों के माध्यम से मध्यकालीन भारतीय समाज और संस्कृति को दर्शाता है।
- यात्री और उनके वृत्तांत: यात्री विभिन्न कारणों (कार्य, व्यापार, तीर्थयात्रा, रोमांच) से यात्रा करते थे और अपने अनुभवों को कलमबद्ध करते थे। ये वृत्तांत दरबार, धर्म, स्थापत्य और दैनिक जीवन की जानकारी देते हैं। महिलाओं के वृत्तांतों की कमी है।
- अल-बिरूनी: 11वीं शताब्दी में ख्वारिज्म से आया विद्वान जो कई भाषाओं का ज्ञाता था और महमूद गजनवी के साथ गजनी आया। उसने 'किताब-उल-हिंद' में भारतीय समाज, विशेषकर जाति व्यवस्था और ज्ञान परंपराओं का वर्णन किया। उसने तुलनात्मक विधि का प्रयोग किया और भाषा, धर्म और अभिमान को बाधाएँ बताया।
- इब्न बतूता: 14वीं शताब्दी में मोरक्को से आया व्यापक यात्री जिसने 'रिहला' नामक वृत्तांत लिखा। उसने भारतीय शहरों को अवसरों से भरपूर और जीवंत बताया, विशेषकर दिल्ली और दौलताबाद के बाजारों का वर्णन किया। उसने नारियल और पान जैसे अपरिचित उत्पादों का भी विस्तृत वर्णन किया। उसने कुशल डाक व्यवस्था की प्रशंसा की।
- फ्रांस्वा बर्नियर: 17वीं शताब्दी में फ्रांस से आया चिकित्सक और दार्शनिक जिसने मुग़ल दरबार में समय बिताया। उसने भारत की तुलना अक्सर यूरोप से की और यहाँ की स्थिति को दयनीय बताया, जिसका मुख्य कारण उसने राजकीय भूस्वामित्व और किसानों का उत्पीड़न बताया। उसने शहरों को 'शिविर नगर' कहा। हालांकि, उसने भारतीय कारीगरों की कुशलता और व्यापारिक गतिविधियों का भी उल्लेख किया। उसने सती प्रथा के क्रूर दृश्य का मार्मिक वर्णन किया।
- वृत्तांतों का मूल्यांकन: ये वृत्तांत बहुमूल्य जानकारी देते हैं, लेकिन इन्हें यात्री के व्यक्तिगत दृष्टिकोण, पूर्वाग्रहों और लेखन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर पढ़ना चाहिए। उन्होंने यूरोपीय लोगों के लिए भारत की एक छवि बनाने में मदद की।
यह नोट्स आपको अध्याय को समझने और परीक्षा की तैयारी करने में सहायक होंगे। शुभकामनाएँ!
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