मानव भूगोल: प्रकृति एवम् विषय क्षेत्र - स्वयं अध्ययन नोट्स
अध्याय का परिचय
आपने पहले भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत नामक पुस्तक के अध्याय 1 में भूगोल की प्रकृति के बारे में पढ़ा है। भूगोल एक ऐसा विषय है जो समाकलनात्मक, आनुभाविक और व्यावहारिक है। इसका मतलब है कि भूगोल में अलग-अलग विषयों को मिलाकर अध्ययन किया जाता है, यह अनुभवों पर आधारित है और वास्तविक जीवन में उपयोगी है। भूगोल किसी भी घटना या परिघटना का अध्ययन कर सकता है जो समय और स्थान के साथ बदलती है।
पृथ्वी के दो मुख्य घटक हैं: प्रकृति (भौतिक पर्यावरण) और जीवन के रूप (जिनमें मनुष्य शामिल हैं)।
भौतिक भूगोल भौतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है, जबकि मानव भूगोल भौतिक/प्राकृतिक और मानवीय दुनिया के बीच संबंधों, मानवीय परिघटनाओं के स्थानिक वितरण, उनके होने के कारणों और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक व आर्थिक विभिन्नताओं का अध्ययन करता है।
भूगोल का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी को मानव के घर के रूप में समझना और उन सभी तत्वों का अध्ययन करना है जिन्होंने मानव को पोषित किया है। इसलिए, प्रकृति और मानव के अध्ययन पर विशेष जोर दिया जाता है।
मानव भूगोल की परिभाषाएँ
मानव भूगोल को अलग-अलग भूगोलविदों ने अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है:
- रेटज़ेल के अनुसार: "मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।" यहाँ संश्लेषण पर जोर दिया गया है।
- एलन सी. सैंपल के अनुसार: "मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।" सैंपल की परिभाषा में संबंधों की गतिशीलता मुख्य शब्द है।
- पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के अनुसार: यह पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न एक नई संकल्पना है।
संक्षेप में, मानव भूगोल पृथ्वी और मनुष्य के अंतर्संबंधों की एक नई संकल्पना प्रस्तुत करता है।
मानव भूगोल की प्रकृति
मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानव-जनित सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण के अंतर्संबंधों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्यक्रिया के द्वारा करता है।
भौतिक पर्यावरण और मानवीय तत्व
आपने भौतिक पर्यावरण के तत्वों (भू-आकृति, मृदाएँ, जलवायु, जल, प्राकृतिक वनस्पति, वन्यजीव और जीव-जंतु) का अध्ययन किया है। मनुष्य ने भौतिक पर्यावरण द्वारा प्रदान किए गए संसाधनों का उपयोग करके कई तत्वों की रचना की है। इनमें शामिल हैं: गृह, गाँव, नगर, सड़कों व रेलों का जाल, उद्योग, खेत, पत्तन, दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ तथा भौतिक संस्कृति के अन्य सभी तत्व। मनुष्य ने भौतिक पर्यावरण को बड़े पैमाने पर बदला भी है, और भौतिक पर्यावरण ने मानव जीवन को प्रभावित किया है।
प्रकृति का मानवीकरण और मानव का प्रकृतिकरण
मनुष्य अपनी प्रौद्योगिकी की सहायता से भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया करता है। महत्वपूर्ण यह है कि वह किन उपकरणों और तकनीकों की सहायता से उत्पादन और निर्माण करता है। प्रौद्योगिकी किसी समाज के सांस्कृतिक विकास के स्तर की सूचक है।
प्रौद्योगिकी का विकास प्रकृति के नियमों को बेहतर ढंग से समझने के बाद ही संभव हुआ है। उदाहरण के लिए:
- घर्षण और ऊष्मा की संकल्पनाओं ने अग्नि की खोज में सहायता की।
- डी.एन.ए. और आनुवंशिकी के रहस्यों की समझ ने अनेक बीमारियों पर विजय पाने में मदद की।
- अधिक तेज गति से चलने वाले वाहन विकसित करने के लिए वायु गति के नियमों का प्रयोग किया जाता है।
प्रकृति का ज्ञान प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है, और प्रौद्योगिकी मनुष्य पर पर्यावरण की बाधाओं को कम करती है।
मानव का प्रकृतिकरण (पर्यावरणीय निश्चयवाद)
अन्योन्यक्रिया की प्रारंभिक अवस्थाओं में, मनुष्य प्राकृतिक पर्यावरण से अत्यधिक प्रभावित था। प्रौद्योगिकी का स्तर बहुत निम्न था और सामाजिक विकास की अवस्था भी आदिम थी। आदिम मानव समाज और प्रकृति की प्रबल शक्तियों के बीच इस अन्योन्यक्रिया को पर्यावरणीय निश्चयवाद कहा गया। इस अवस्था में, मनुष्य प्रकृति के आदेशों के अनुसार खुद को ढाल लेता था। हम उस प्राकृतिक मानव की कल्पना कर सकते हैं जो प्रकृति को सुनता था, उसकी प्रचंडता से भयभीत होता था और उसकी पूजा करता था।
उदाहरण: बेंडा की कहानी (पर्यावरणीय निश्चयवाद)
मध्य भारत के अबूझमाड़ क्षेत्र के जंगलों में रहने वाला बेंडा इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उसका गाँव जंगल के बीच है और वह जंगल के साथ पूर्ण सामंजस्य में रहता है। वह और उसके मित्र स्थानांतरण कृषि (पेण्डा) करते हैं। वह महूआ, पलाश और साल के वृक्षों को देखकर प्रसन्न होता है जिन्होंने उसे बचपन से आश्रय दिया है। वह नदी तक जाता है और पानी पीने से पहले जंगल की आत्मा लॉई-लुगी का धन्यवाद करता है। ऐसे समाजों के लिए प्रकृति एक शक्तिशाली बल है, जिसकी पूजा की जाती है, सत्कार किया जाता है और जिसे संरक्षित किया जाता है। ऐसे समाजों में मनुष्य सतत पोषण हेतु प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर होता है।
प्रकृति का मानवीकरण (संभववाद)
समय के साथ, लोग अपने पर्यावरण और प्राकृतिक शक्तियों को समझने लगते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के साथ, मानव बेहतर और अधिक सक्षम प्रौद्योगिकी विकसित करते हैं। वे अभाव की अवस्था से स्वतंत्रता की अवस्था की ओर बढ़ते हैं। पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों द्वारा वे संभावनाओं को जन्म देते हैं। मानवीय क्रियाएं सांस्कृतिक भू-दृश्य की रचना करती हैं। मानवीय क्रियाओं की छाप सर्वत्र है। पहले के विद्वानों ने इसे संभववाद का नाम दिया। संभववाद के अनुसार, प्रकृति अवसर प्रदान करती है और मानव उनका उपयोग करता है। धीरे-धीरे प्रकृति का मानवीकरण हो जाता है और प्रकृति पर मानव प्रयासों की छाप पड़ने लगती है।
उदाहरण: कैरी की कहानी (संभववाद)
ट्रॉन्डहाइम (Trondheim) शहर में रहने वाली कैरी की कहानी प्रकृति के मानवीकरण का उदाहरण है। इस शहर में सर्दियाँ बहुत ठंडी होती हैं। कैरी प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इस कठोर मौसम का सामना करती है। उसके पास सर्दियों के लिए विशेष टायर हैं और वह अपनी शक्तिशाली कार की लाइटें जलाकर काम पर जाती है। उसका कार्यालय कृत्रिम रूप से गर्म रखा जाता है। विश्वविद्यालय परिसर एक विशाल काँच के गुंबद के नीचे बना है। वह उष्णकटिबंधीय फल (केला, किवी) खाती है जो नियमित रूप से विमानों से मंगाए जाते हैं। कैरी और उस जैसे अन्य लोग प्रौद्योगिकी के कारण प्रकृति द्वारा लगाई गई बाधाओं पर विजय पाने में सक्षम हुए हैं।
नवनिश्चयवाद (रुको और जाओ निश्चयवाद)
भूगोलवेत्ता ग्रिफ़िथ टेलर ने एक नई संकल्पना प्रस्तुत की है जो पर्यावरणीय निश्चयवाद और संभववाद के बीच का मध्य मार्ग है। उन्होंने इसे नवनिश्चयवाद या रुको और जाओ निश्चयवाद नाम दिया।
संकल्पना: ट्रैफ़िक लाइट का उदाहरण
यह संकल्पना शहरों के चौराहों पर यातायात को नियंत्रित करने वाली बत्तियों के समान है।
- 🔴 लाल बत्ती (रुको): यह पर्यावरणीय निश्चयवाद की स्थिति है, जहाँ पूर्ण आवश्यकता है।
- 🟡 पीली बत्ती (तैयार रहो): यह लाल और हरी बत्तियों के बीच रुककर तैयार रहने का अंतराल है। यह प्रकृति का मूल्यांकन करने का संकेत है।
- 🟢 हरी बत्ती (जाओ): यह संभववाद की स्थिति है, लेकिन यह पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है।
नवनिश्चयवाद का अर्थ है कि न तो यहाँ पूर्ण आवश्यकता की स्थिति है और न ही पूर्ण स्वतंत्रता की। इसका अर्थ है कि प्राकृतिक नियमों का पालन करके ही हम प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। हमें प्रकृति के 'लाल संकेतों' पर प्रतिक्रिया देनी होगी और जब प्रकृति परिवर्तन की अनुमति दे, तो हम अपने विकास के प्रयासों में आगे बढ़ सकते हैं।
मानव भूगोल की बृहत् अवस्थाएँ और प्रणोदन (ऐतिहासिक विकास)
काल | उपागम | बृहत् लक्षण |
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आरंभिक उपनिवेश युग | अन्वेषण और विवरण | साम्राज्यीय और व्यापारिक रुचियों ने नए क्षेत्रों में खोजों व अन्वेषणों को प्रोत्साहित किया। |
उत्तर उपनिवेश युग | प्रादेशिक विश्लेषण | प्रदेश के सभी पहलुओं का विस्तृत विवरण, यह मानते हुए कि सभी प्रदेश पृथ्वी के भाग हैं। |
अंतर-युद्ध अवधि (१९३० का दशक) | क्षेत्रीय विभेदन | एक प्रदेश अन्य प्रदेशों से कैसे और क्यों भिन्न है, इस पर जोर दिया गया। |
१९५० के दशक के अंत से १९६० के दशक के अंत तक | स्थानिक संगठन (मात्रात्मक क्रांति) | कंप्यूटर और सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग। मानवीय क्रियाओं के मानचित्र योग्य प्रतिरूपों की पहचान। |
१९७० का दशक | मानवतावादी, आमूलवादी और व्यवहारवादी विचारधाराओं का उदय | मात्रात्मक क्रांति से असंतोष के कारण मानव भूगोल को सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ के प्रति अधिक प्रासंगिक बनाया गया। |
१९९० का दशक | भूगोल में उत्तर-आधुनिकतावाद | वैश्विक सिद्धांतों की प्रयोज्यता पर प्रश्न उठाए गए और स्थानीय संदर्भ की समझ पर जोर दिया गया। |
मानव भूगोल के क्षेत्र और उप-क्षेत्र
मानव भूगोल की प्रकृति अत्यधिक अंतर-विषयक है। यह मानवीय तत्वों को समझने व उनकी व्याख्या करने के लिए सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों के साथ घनिष्ठ अंतरापृष्ठ विकसित करती है।
मानव भूगोल के क्षेत्र | उप-क्षेत्र एवं सहयोगी विषय |
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सामाजिक भूगोल | व्यवहारवादी भूगोल (मनोविज्ञान), सामाजिक कल्याण का भूगोल (कल्याण अर्थशास्त्र), सांस्कृतिक भूगोल (मानवविज्ञान), लिंग भूगोल (समाजशास्त्र/महिला अध्ययन), ऐतिहासिक भूगोल (इतिहास), चिकित्सा भूगोल (महामारी विज्ञान)। |
नगरीय भूगोल | नगरीय अध्ययन और नियोजन। |
राजनीतिक भूगोल | राजनीति विज्ञान, सैन्य भूगोल (सैन्य विज्ञान)। |
जनसंख्या भूगोल | जनसांख्यिकी। |
आवास भूगोल | नगर/ग्रामीण नियोजन। |
आर्थिक भूगोल | संसाधन भूगोल (संसाधन अर्थशास्त्र), उद्योग भूगोल (औद्योगिक अर्थशास्त्र), विपणन भूगोल (व्यावसायिक अर्थशास्त्र), पर्यटन भूगोल (पर्यटन प्रबंधन), अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का भूगोल (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार)। |
अभ्यास प्रश्नों के विस्तृत उत्तर
प्रश्न 1: नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए:
(i) निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक भूगोल का वर्णन नहीं करता है?
- (क) समाकलनात्मक अनुशासन
- (ख) मानव और पर्यावरण के बीच अंतर-संबंधों का अध्ययन
- (ग) द्वैधता पर आश्रित
- (घ) प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप आधुनिक समय में प्रासंगिक नहीं।
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा एक भौगोलिक सूचना का स्रोत नहीं है?
- (क) यात्रियों के विवरण
- (ख) प्राचीन मानचित्र
- (ग) चंद्रमा से चट्टानी पदार्थों के नमूने
- (घ) प्राचीन महाकाव्य
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा एक लोगों और पर्यावरण के बीच अन्योन्यक्रिया का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है?
- (क) मानव बुद्धिमानता
- (ख) प्रौद्योगिकी
- (ग) लोगों के अनुभव
- (घ) मानवीय भाईचारा
(iv) निम्नलिखित में से कौन-सा एक मानव भूगोल का उपगमन नहीं है?
- (क) क्षेत्रीय विभिन्नता
- (ख) मात्रात्मक क्रांति
- (ग) स्थानिक संगठन
- (घ) अन्वेषण और वर्णन
प्रश्न 2: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) मानव भूगोल को परिभाषित कीजिए।
(ii) मानव भूगोल के कुछ उप-क्षेत्रों के नाम बताइये।
(iii) मानव भूगोल किस प्रकार अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंधित है?
प्रश्न 3: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) मानव के प्रकृतिकरण की व्याख्या कीजिए।
(ii) मानव भूगोल के विषय क्षेत्र पर एक टिप्पणी लिखिए।
1. जनसंख्या: जनसंख्या का वितरण, घनत्व, वृद्धि, संरचना और प्रवास का अध्ययन।
2. मानव बस्तियाँ: ग्रामीण और नगरीय बस्तियों के प्रतिरूप, प्रकार और उनकी समस्याएँ।
3. आर्थिक क्रियाएँ: प्राथमिक (कृषि, खनन), द्वितीयक (उद्योग), तृतीयक (सेवा) और चतुर्थक क्रियाओं का स्थानिक वितरण।
4. सांस्कृतिक परिदृश्य: मानव द्वारा निर्मित भू-दृश्य जैसे खेत, नगर, सड़कें और उनका पर्यावरण पर प्रभाव।
5. सामाजिक-राजनीतिक संगठन: राष्ट्र, राज्य, सीमाएँ और विभिन्न सामाजिक समूहों का अध्ययन।
मानव भूगोल एक अंतर-विषयक विज्ञान है जो समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास आदि से जुड़ा है और निश्चयवाद, संभववाद तथा नवनिश्चयवाद जैसी संकल्पनाओं के माध्यम से मानव-पर्यावरण संबंधों की व्याख्या करता है।
अध्याय का संक्षिप्त सारांश (परीक्षा के लिए पुनरावृत्ति)
- मानव भूगोल: भूगोल की वह शाखा जो मानव और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन करती है।
- पर्यावरणीय निश्चयवाद: मानव प्रकृति द्वारा नियंत्रित होता है (उदाहरण: आदिम समाज, बेंडा)।
- संभववाद: प्रकृति अवसर प्रदान करती है और मानव प्रौद्योगिकी से संभावनाओं को जन्म देता है (उदाहरण: आधुनिक समाज, कैरी)।
- नवनिश्चयवाद (रुको और जाओ): ग्रिफ़िथ टेलर द्वारा दिया गया मध्य मार्ग, जो सतत विकास पर जोर देता है (उदाहरण: ट्रैफिक लाइट)।
- ऐतिहासिक विकास: मानव भूगोल का अध्ययन अन्वेषण और विवरण से शुरू होकर प्रादेशिक विश्लेषण, क्षेत्रीय विभेदन, स्थानिक संगठन (मात्रात्मक क्रांति), मानवतावादी विचारधाराओं और उत्तर-आधुनिकतावाद तक विकसित हुआ है।
- अंतर-विषयक प्रकृति: मानव भूगोल समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान आदि सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठ रूप से संबंधित है।
- प्रमुख उप-क्षेत्र: सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, जनसंख्या, आवास भूगोल आदि।
मानव भूगोल, Human Geography in Hindi, निश्चयवाद, संभववाद, नवनिश्चयवाद, Environmental Determinism, Possibilism, Griffith Taylor, Class 12 Geography Notes, मानव भूगोल के उप-क्षेत्र, NCERT Chapter 1 Geography Class 12, मानव का प्रकृतिकरण, प्रकृति का मानवीकरण